भाषा शिक्षण/प्रशिक्षण

विकिपुस्तक से

प्रशिक्षण का अभिप्राय एवं स्वरुप :

शिक्षण और अधिगम के बीच की कड़ी है 'प्रशिक्षण। प्रशिक्षण अर्थात ट्रेनिंग का अर्थ है कि किसी पेशे या कला कौशल की क्रियात्मक रूप में दी जाने वाली शिक्षा। ऐसी शिक्षा जो किसी पध्दति से या नियमित रूप से दी जाती हो। उदाहरण के लिए राम अपने स्कूल में बच्चों को कम्पूटर की शिक्षा देता है।

प्रशिक्षण का संबंध किसी विशेष उददेश्य के लिए विशेष दक्षता प्राप्त करना है। शिक्षा एक व्यापक शब्द है। जिसमें व्यक्ति का सामाजिक बौद्धिक और भौतिक रूप से सम्पूर्ण विकास शामिल हैं। इस प्रकार प्रशिक्षण शिक्षा की सकल प्रक्रिया का केवल एक भाग है।

प्रशिक्षण वह सुव्यवस्थित विधि हैं। जिसके द्वारा व्यक्ति एक निश्चित उद्देश्य के लिए ज्ञान और कुशलताएं सीखते हैं।

ऑक्सफोर्ड शब्दकोश में प्रशिक्षण का अर्थ नियमित रूप से व्याहारिक शिक्षा बताया गया है।

प्रशिक्षण के प्रकार :

1- तकनीकी प्रशिक्षण

2- मानविय संबंध प्रशिक्षण

3- सिध्दांत बोधन प्रशिक्षण

4- क्रियात्मक प्रशिक्षण

प्रशिक्षण की विशेषता : 1- प्रशिक्षण एक निरंतर रहने वाली प्रक्रिया है। 2- प्रशिक्षण के माध्यम से विधार्थी के ज्ञान एवं योग्यता में वृद्धि होती है। 3- प्रशिक्षण लक्ष्य किए गए कार्यों की पूर्ति करता है। 4- प्रशिक्षण सीखने की महत्वपूर्ण क्रिया है। 5- प्रशिक्षण एक व्यावहारिक प्रक्रिया है। 6- प्रशिक्षण सिद्धांत और व्यवहार दोनों का मेल हैं 7- प्रशिक्षण एक सीमित- सीमा के भीतर प्राप्त किया गया ज्ञान है।

उदाहरण : यह मेरा घर है। मेरा घर बडा है। इसमें मेरा परिवार रहता है। मेरे पिताजी किसान हैं। वे खेती करते हैं। वे पहाड़ खोदकर खेत बनाते हैं। वे खेत में धान और गेहूं बोते हैं। इस रचना में मेरा, घर और वे के प्रशिक्षण पर बल दिया गया है। विधार्थी इन शब्दों को बार-बार पढता और सुनता है। इससे वह इनके अर्थ और संदर्भ से दुबारा परिचित हो जाता है। इसी प्रकार प्राथमिक कक्षाओं में आवश्यकता न होने पर भी कुछ शब्दों का प्रयोग सिखाया जाता है।

1- मुझे दो मीटर कपडा नापकर दीजिए। 2- मुझे दो लिटर तेल मापकर दीजिए। 3- मुझे दो किलो आलू तौलकर दीजिए। इन वाक्यों में नापकर, मापकर, तौलकर शब्दों का प्रयोग सामान्य वाक्य रचना की नजरों अनुपयुक्त एवं अनावश्यक है। परंतु यहाँ इनका प्रयोग इसलिए किया जा रहा है। ताकि विधार्थी बार-बार सुनकर अथवा पढ़कर इनके अर्थ और संदर्भ से परिचित हो सके।                 प्रशिक्षण की आवश्यकता और महत्व को चारों भाषाई कौशल के सन्दर्भ में देखा जा सकता है-         1- श्रवण-प्रशिक्षण :बालक के लिए श्रवण- प्रशिक्षण आवश्यक है। उचित श्रवण ही भाषा सीखने का मूलाधार बनता है मातृभाषाभाषी तो सहज रूप से अपने परिवेश में श्रवण का प्रशिक्षण प्राप्त करता रहता है परन्तु अन्य भाषा शिक्षण के संदर्भ में प्रायः यह प्रयास से ही संभव हो पाता है। श्रवण- प्रशिक्षण के लिए आवश्यक है कि विधार्थी के सम्मुख आदर्श उच्चारण प्रस्तुत किया जाए और वह भी उपयुक्त बलाघात, अनुतान, संगम आदि के साथ। यदि ऐसा नहीं होगा तो विधार्थी समान प्रतीत होनेवाली ध्वनियों - ट-ठ, ड-ढ,श-स आदि में अंतर करने कठिनाई का अनुभव करेगा और इसका प्रभाव भाषण एवं वाचन पर भी पडेगा।

2- भाषण- प्रशिक्षण :श्रवण के समान ही मात्रभाषाभाषी को भाषण अभ्यास भी औपचारिक शिक्षा के पुर्व ही प्राप्त हो जाता है। परंतु इस अनौपचारिक शिक्षण में त्रिटियां रह सकती है। उदाहरण :कई बार बच्चा तोतला बोलता है तो प्यार प्रदर्शित करने के लिए माता-पिता भी उसके साथ उसी प्रकार बोलने लगते हैं। इससे यह तुतलाहट स्थायी होने का भय रहता है। इसी प्रकार भावात्मक असुरक्षा के कारण कभी - कभी विधार्थी हकलाने लगता है औपचारिक शिक्षण में अध्यापक को इस प्रकार का भाषण - प्रशिक्षण देना होता है। जिससे विधार्थी इन दोषो से बच सके।

3- वाचन- प्रशिक्षण :वाचन - प्रशिक्षण भाषा शिक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यघपि इसे गौण भाषाई कौशल माना जाता है। तथापि मातृभाषाभाषी के लिए तो यह अनिवार्य कौशल है। वाचन कि अभ्यास विधार्थी औपचारिक शिक्षण में ही प्रारम्भ करता है अंतः इसकी सफलता - असफलता का पुरा दायित्व अध्यापक का है। इस नजरिए से अध्यापक का दायित्व बढ़ जाता है। विधार्थी स्पष्ट, शुध्द, उचित विराम, अनुतान, बलाघात के साथ वाचन करें इसके लिए आवश्यक है कि उसे इसका अधिक से अधिक अवसर मिले तथा अध्यापक उसकी गलतियों से उसे तुरंत अवगत कराए। 4- लेखन-प्रशिक्षण :लेखन-प्रशिक्षण भी भाषा-शिक्षण का महत्वपूर्ण भाग है। शिक्षण क्रम में इसका अभ्यास वाचन के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है, परन्तु नवीन भाषा-शिक्षण पध्दतियां अब इस बात पर बल देने लगी है कि बालक को पहले वर्ष लिखना सिखाने के स्थान पर उल्टी - सीधी रेखाएं खीचने का अभ्यास कराना चाहिए ताकि वे खेल - खेल में लेखन - प्रशिक्षण के अभ्यास के लिए स्वयं को तैयार कर लें। इसके बाद विधार्थी रेत, मिट्टी आदि को समतल कर खेल पध्दति उस पर लिखे। फिर धीरे धीरे वह अनुकरण के माध्यम से लेखन का अभ्यास करे।