भाषा शिक्षण/भाषा कौशल

विकिपुस्तक से
भाषा कौशल


भाषा कौशल का अर्थ-

भाषा कौशल से तात्पर्य है|भाषा के ठीक तरह से काम करने की योग्यता या सामर्थ्य हासिल करना । अर्थात् अध्येता भाषा के चारों कौशलों सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना में पूर्ण रूप से दक्षता हासिल कर सके। अध्येता के भाषा सीखने पर यदि उसका भाषा के उपरोक्त चारों कौशल पर पूर्णता अधिकार ना हो तब भाषा कौशल अधूरा रह जाता है । अध्यापक को चाहिए कि वह अध्येता को भाषा शिक्षण के दौरान भाषा के चारों कौशलों का सामान रूप से विकास करवाए ।

डैली करंट अफेयर्स हिन्दी

'व्यक्ति की संप्रेषण की सक्षमता भाषा कौशलों की दक्षता पर ही निर्भर होती है। भाषा की प्रभावशीलता का मानदंड बोधगम्यता होती है। जिन भावो एवं विचारों की अभिव्यक्ति करना चाहते है उन्हें कितनी सक्षमता से बोधगम्य कराते है यह भाषा कौशलों के उपयोग पर निर्भर होता है।'[[१]

हमारा देश बहुभाषी देश है| अनेक क्षेत्रीय बोलियां और भाषाएं यहां बोली जाती हैं| भाषा न केवल शिक्षा प्राप्ति का साधन है बल्कि विचार ,विनिमय ,प्रशासन ,व्यापार ,संचार, पर्यटन ,रोजगार आदि के लिए भी भाषा शिक्षण किया जाता है|

भाषा शिक्षण को दो भागों में बाटा गया है|

  • 1.प्रधान कौशल
  • 2.गौण कौशल
  • 1.प्रधान कौशल :

    भाषा का सर्वप्रथम कार्य संप्रेषण करना ही है। यह संप्रेषण भाषा के बिना अधूरा है|संप्रेषण के लिए हमें भाषा के उच्चरित रूप की ही आवश्यकता होती है| भाषा का उच्चरित भाषा का वह रूप है जिसे एक निरीक्षण व्यक्ति भी प्रयोग करता है| इसलिए इससे संबंधित कौशल ही प्रधान कौशल कहे जाते हैं| इसमें निम्नलिखित दो कौशल आते हैं -

  • 1. सुनना
  • 2. बोलना
  • 2.गौण कौशल :

    बालक अपनी प्रारंभिक भाषा परिवार और समाज से सीखता है| परिवार और समाज ही भाषा सीखने का उसका प्रथम स्कूल होता है| उसके बाद वह विद्यालय जाकर लिखना-पढ़ना सीखता है| इस प्रकार के भाषा शिक्षण को गौण कौशल के अंतर्गत परिभाषित किया गया है| इसके दो रूप हैं-

  • 1. पढ़ना
  • 2. लिखना
  • भाषा कौशल- श्रवण, भाषण ,वाचन, लेखन-

    1.श्रवण कौशल (Listening Skill):

    'श्रवण' शब्द 'श्रु' धातु से बना है जिसका संबंध 'सुनने' और 'अधिगम' करना आदि से है । 'श्रवण' अंग्रेजी के शब्द 'Listening' शब्द का पर्याय है । 'श्रवण' केवल ध्वनियों को सुनना भर नहीं है बल्कि उन ध्वनियों को सुनकर उसका अर्थ निकालने, सुनी हुई बातों पर चिंतन मनन करने और अर्थ की प्रतिक्रिया देने से है । श्रवण कौशल के लिए मस्तिष्क की एकाग्रता एवं इंद्रियों का संयम होना अत्यंत आवश्यक है । बालक के जन्म लेने के उपरांत उसकी प्रारंभिक शिक्षा उसकी श्रवण शक्ति पर निर्भर करती है ।यदि छात्र की श्रवण इन्द्रियों में दोष है, तो वह न भाषा सीख सकता है और न अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर सकता है। अत: उसका भाषा ज्ञान शून्य के बराबर ही रहेगा। बालक सुनकर ही अनुकरण द्वारा भाषा ज्ञान अर्जित करता है|

    डॉक्टर किशोरी लाल शर्मा श्रवण कौशल के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि-
    "श्रवण कौशल में केवल ध्वनि श्रवण का ही समावेश नहीं होता है, अपितु जो कुछ हम सुनते हैं, उसे पहचानते हैं, समझते हैं और अर्थ ग्रहण करके उसे स्मरण रखते हैं इसी प्रकार किसी भाषण को ग्रहण करने की प्रक्रिया को निष्क्रिय नहीं कहा जा सकता, यह एक कड़ी है तथा सोद्देश्य है ।"

    श्रवण कौशल शिक्षण का महत्व (Importance of Listening Skill):

  • बच्चा जन्मोपरान्त ही सुनने लग जाता है। ये ध्वनियाँ उसके मन मस्तिष्क पर अंकित हो जाती हैं। ये अंकित ध्वनियाँ ही बच्चे के भाषा ज्ञान का आधार बनती हैं। अच्छी प्रकार से सुनने के कारण ही बालक ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को समझ पाता है।
  • श्रवण कौशल ही अन्य भाषायी कौशलों को विकसित करने का प्रमुख आधार बनता है।
  • इससे ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को पहचानने की क्षमता विकसित होती है।
  • इसे अध्ययन की आधारशिला भी कहा जाता है।
  • इससे वाचन कौशल का विकास होता है।
  • इससे लेखन कौशल के विकास में भी सहायता मिलती है|
  • [२]

    श्रवण कौशल के उद्देश्य (Objectives of Listening Skill):

  • सुनकर अर्थ ग्रहण करने की योग्यता का विकास करना।
  • छात्रों में भाषा व साहित्य के प्रति रूचि पैदा करना।
  • छात्रों को साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने व सुनने के लिए प्रेरित करना।
  • श्रुत सामग्री का सारांश ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना।
  • धैर्यपूर्वक सुनना, सुनने के शिष्टाचार का पालन करना।
  • ग्रहणशीलता की मन: स्थिति बनाए रखना। शब्दों, मुहावरों व उक्तियों का प्रसंगानुकूल भाव व अर्थ समझ सकना।
  • किसी भी श्रुत सामग्री को मनोयोगपूर्वक सुनने की प्रेरणा प्रदान करना।
  • [३]

    श्रवण कौशल के विकास की समस्याएं (Problems in the development of hearing skills):

    सामान्य रूप से यह देखा जाता है कि अनेक छात्र शिक्षक द्वारा विषय वस्तु को ध्यान पूर्वक नहीं सुनते हैं इससे शिक्षक क्रोधित होकर उन पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हैं तथा उनको दंड प्रदान करते हैं इससे उनका मनोबल टूट जाता है तथा छात्र विद्यालय व्यवस्था में अरुचि करने लगते हैं। श्रवण कौशल के विकास में कुछ प्रमुख समस्याएं हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित रुप से किया जा सकता है-

  • शैक्षिक वातावरण का अभाव (Lack of educational environment)-
  • प्रायः देखा जाता है कि शिक्षक द्वारा कक्षा में शैक्षिक वातावरण तैयार किए बिना ही गठन प्रारंभ कर दिया जाता है अर्थात शिक्षण प्रारंभ कर दिया जाता है। इस स्थिति में छात्र पूर्ण मनोयोग के साथ श्रवण नहीं कर पाते हैं ,क्योंकि वह मानसिक रूप से श्रवण करने के लिए तैयार नहीं होते हैं|

  • कठिन भाषा का प्रयोग (Use of difficult language)-
  • जब शिक्षक द्वारा अपने कथन में या प्रस्तुतीकरण में कठिन भाषा का प्रयोग किया जाता है, तो इस स्थिति में छात्र विषयवस्तु के भाव को समझ नहीं पाता है और ध्यानपूर्वक श्रवण नहीं कर पाता है ,क्योंकि उस श्रवण के प्रतीक उसमें कोई रुचि नहीं होती है|

  • अशुद्ध उच्चारण (Mispronunciation)-
  • सामान्य रूप से अनेक शिक्षकों में ही उच्चारण संबंधी दोष पाए जाते हैं जिसके आधार पर छात्र उनके द्वारा प्रस्तुत विचारों को ध्यान पूर्वक नहीं सुनते हैं| प्रत्येक छात्र यह जान जाता है कि प्रस्तुत सामग्री ज्ञानवर्धक एवं स्पष्ट नहीं है, तो उसके प्रतिभा ध्यान नहीं देते हैं|

  • शिक्षण अधिगम सामग्री के प्रयोग का अभाव(Lack of use of teaching materials)-
  • श्रवण कौशल के विकास पर उस समय बाधा उत्पन्न होती है जब शिक्षक द्वारा विषयवस्तु के प्रस्तुतीकरण में शिक्षण अधिगम सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाता है | शिक्षण अधिगम सामग्री के अभाव में छात्र एक मूक श्रोता की भांति कार्य करते हैं तथा उनकी सामग्री में कोई रूचि नहीं होती है | परिणाम स्वरूप छात्रों में श्रवण कौशल का विकास नहीं हो पाता है|[४]

    श्रवण कौशल विकास हेतु उपाय एवं समस्याओं का समाधान (Measures for hearing skills development and solutions to problems):

    भाषा शिक्षक का यह प्रमुख दायित्व होता है कि वह भाषा संबंधी कौशलों के विकास में अपना पूर्ण योगदान प्राप्त करें| श्रवण कौशल भाषा का प्रथम एवं महत्वपूर्ण क्वेश्चन है इसलिए कक्षा एवं विद्यालय स्तर पर श्रवण कौशल के विकास हेतु तथा इसके विकास मार्ग में आने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए-

    1. छात्रों की योग्यता के अनुसार शिक्षण प्रदान करना चाहिए अर्थात प्रस्तुत सामग्री का स्वरूप छात्रों की योग्यता के अनुरूप होना चाहिए जिससे छात्र उसको पूर्ण रूप से सुन सकें|

    2. छात्रों के समक्ष सामग्री के प्रस्तुतीकरण से पूर्व कचा कच का वातावरण इस प्रकार का होना चाहिए जिससे छात्र शिक्षक के प्रस्तुतीकरण को ध्यान पूर्वक सुन सकें| जैसे बैठने की उचित व्यवस्था तथा शांति का वातावरण |

    3. श्रवण कौशल के विकास हेतु छात्र की मनोदशा का ज्ञान करना भी एक शिक्षक के लिए आवश्यक है ,क्योंकि छात्र मानसिक रूप से जब तक श्रवण के लिए तैयार नहीं होगा तब तक श्रवण कौशल का विकास संभव नहीं होगा |

    4. शिक्षक को सामग्री के प्रति करण से पूर्व की सभी समस्याओं का समाधान कर देना चाहिए इससे छात्रों को दो प्रकार से लाभ होता है| प्रथम अवस्था में छात्र शिक्षक के प्रति विश्वास रखने लगता है तथा दूसरी अवस्था में वह उसके तथ्यों को ध्यानपूर्वक सुने लगता है|[५]

    2.भाषण कौशल(Speech skills):

    भाषण का अर्थ है "मौखिक अभिव्यक्ति"| अंग्रेजी में इसे "Speaking" या "Speech" कहते हैं| जब छात्र अपने विचारों एवं भावों को स्पष्ट रूप से प्रकट करने का प्रयास करता है, तो उसे भाषण कौशल का सहारा लेना पड़ता है| भाषा कौशल के आधार पर ही उनकी अभिव्यक्ति का मूल्यांकन किया जाता है |जब एक छात्र सस्वर एवं धाराप्रवाह रूप में बोलते हुए अपने विचारों को प्रस्तुत करता है,तो यह माना जाता है कि उसमें वाचन कौशल की योग्यता है |

    फ्रांसीसी लेखक कार्लाइल ने कहा है कि- "भाषण के दौरान कुछ पल का विराम और मौन भाषण शक्ति को प्रखर बनाते हैं|"

    भाषण कौशल के उद्देश्य एवं महत्व(Aims and Importance of Speaking Skills):

    वाचन कौशल के उद्देश्य एवं भाषा शिक्षण में इसके महत्व को निम्नलिखित रुप से स्पष्ट किया जा सकता है-

    1. भाषण कौशल का महत्व(Importance of Speaking Skills)-

    वाचन कौशल को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि भाषा की शिक्षा का आधार वाचन कौशल होता है इसके महत्व को अग्रलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

    1. दैनिक जीवन में सभी कार्य भाषण कौशल के आधार पर ही संभव है जो छात्र जितना अधिक वाकपटु होता है उतना ही जीवन में सफल माना जाता है|

    2. भाषण कौशल के माध्यम से छात्र द्वारा कठिन विचारों को भी सरलतम रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है ,तथा दूसरे के मनोभावों को भी सरलतम रूप में समझा जा सकता है|

    3. भाषण कौशल के माध्यम से छात्रों का व्यक्तित्व विकसित होता है, क्योंकि वे प्रत्येक तथ्य का प्रस्तुतीकरण सारगर्भित एवं प्रभावी रूप से करने में सक्षम होते हैं|

    4. भाषण कौशल के माध्यम से बालकों के शब्द भंडार में वृद्धि होती है, क्योंकि वाचन में अनेक प्रकार के नवीन शब्दों को बोलने का प्रयास करता है|

    2.भाषण कौशल के उद्देश्य (Aims of Speaking Skills)-

    भाषण कौशल के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नलिखित रुप में स्पष्ट किया जा सकता है-

    1. छात्रों में अपने भाव एवं विचारों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुतीकरण की योग्यता का विकास करना जिससे कि वे सभी तथ्यों का सारगर्भित प्रस्तुतीकरण कर सकें|

    2. भाषण कौशल के उद्देश्य छात्रों में क्रमिक रूप से तथा धाराप्रवाह रूप में बोलने की क्षमता विकसित करना है जिससे विभिन्न वासी प्रकरणों पर अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर सकें|

    3. छात्रों में संकोच एवं झिझक को दूर करके आत्मविश्वास की भावना जागृत करना तथा जिससे भाषा के अनेक प्रकरणों पर धारा प्रवाह रूप में आत्मविश्वास के साथ बोल सकें|

    4. छात्रों में प्रसंगानुसार मुहावरे एवं लोकोक्तियां के प्रयोग की क्षमता विकसित करना जिससे वे अपने प्रस्तुतीकरण को प्रभावोत्पादक बना सकें|

    भाषण कौशल संबंधी प्रमुख समस्याएं(Speaking Skill Related Main Problems):

    भाषा कौशल के विकास में अनेक प्रकार की समस्याएं भाषा शिक्षक द्वारा अनुभूत की जाती है,इन समस्याओं के कारण ही भाषण कौशल का विकास संभव नहीं हो पाता है इसलिए छात्रों में सर्वप्रथम भाषण कौशल के विकास हेतु उनके मार्ग की बाधाओं को जानना तथा उन्हें दूर करना एक भाषा शिक्षक का प्रमुख दायित्व है| भाषण कौशल की प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित है-

    1. भाषण कौशल की प्रमुख बाधा छात्र में आत्मविश्वास के अभाव को माना जाता है| इसके कारण छात्र अपने कथन में ओजस्विता नहीं ला पाते हैं|

    2. छात्रों द्वारा अपने भाषण में शब्दों का अशुद्ध उच्चारण किया जाता है जिससे कि भाषण में अर्थ का अनर्थ उत्पन्न हो जाता है तथा भाषण की सार्थकता तथा एवं प्रभावशीलता समाप्त हो जाती है|

    3. छात्र अपने भाषण में दोषपूर्ण वाक्यों का प्रयोग करते हैं जिनमें कर्ता, क्रिया, कर्म एवं विशेषण को उचित स्थान नहीं मिलता है इससे भाषण कौशल दोषपूर्ण हो जाता है|

    4. भाषण में प्रकरण एवं विधा की आवश्यकता के अनुसार भाव एवं लाइव का अभाव भी भाषण को दोषपूर्ण बना देता है तथा भाषण प्रभावहीन हो जाता है|

    भाषण कौशल के विकास के उपाय एवं समस्याओं के समाधान(Measures and Solution of Problems of Development of Speaking Skills):

    भाषण कौशल के विकास में भाषा शिक्षक एवं विद्यालय व्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका होती है|

    1. शिक्षक को भाषण कौशल के विकास हेतु बालक में आत्मविश्वास की भावना विकसित करनी चाहिए तथा उसके संकोच को समाप्त करना चाहिए|

    2. छात्रों को शिक्षक द्वारा उसके भाषण को सकारात्मक रूप में स्वीकार करना चाहिए तथा उनकी त्रुटियों को दूर करने में आत्मीय व्यवहार का सहारा लेना चाहिए|

    3. शिक्षक द्वारा छात्रों को भाषण संबंधी प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा समय-समय पर उनको पृष्ठ पोषण प्रदान करना चाहिए|

    4. छात्रों को भाषण में एक ही शब्द जैसे 'मतलब' तथा एक ही वाक्य के प्रयोग को बार-बार करने से जिससे भाषण को प्रभावोत्पादक बनाया जा सके|

    [६]

    3.वाचन/पठन कौशल (Reading Skill):

    [७] भाषा शब्द से ही ज्ञात होता है कि भाषा का मूल रूप उच्चरित रूप है। इसका दृष्टिकोण प्रतीक लिपिबद्ध होता है। मुद्रित रूप लिपिबद्ध रूप का प्रतिनिधि है। जब हम बच्चे को पढ़ाना आरम्भ करते हैं तो अक्षरों के प्रत्यय हमारे मस्तिष्क के कक्ष भाग में क्रमबद्ध होकर एक तस्वीर बनाती हैं और हम उसे उच्चरित करते हैं। यह क्रिया जिसमें शब्दों के साथ अर्थ ध्वनि भी निहित है। वाचन कहलाती है।

    कैथरीन ओकानर के मतानुसार “वाचन पठन वह जटिल अधिगम प्रक्रिया है, जिसमें दृश्य, श्रव्यों सर्किटों का मस्तिष्ट के अधिगम केंद्र से संबंध निहित है|"

    वाचन/पठन कौशल का महत्व (Importance of Reading Skill):

  • वाचन की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता होती है। वाचन की योग्यता न रखने से व्यक्ति संसार की सांस्कृतिक महानता में अपने अस्तित्व का आनन्द नहीं ले पाता।
  • वाचन योग्यता के बिना मनुष्य के जीवन में कई प्रकार की बाधाएँ खड़ी हो जाती हैं।
  • वाचन शिक्षा प्राप्ति में सहायक है।
  • वाचन कौशल ज्ञानोपार्जक का साधन है, क्योंकि पाठ्य पुस्तक पढ़ने से तो केवल ज्ञान के दर्शन होते हैं। संदर्भ ग्रन्थ पढ़ने से ज्ञान की पिपासा कुछ हद तक शान्त होती है।
  • आधुनिक युग ‘विशिष्टताओं’ का युग है, व्यक्ति जिस भी व्यवसाय मैं है वह विशिष्टता प्राप्त करना चाहता है, नवीनतम जानकारी प्राप्त करना चाहता, है या जानकारी उसे पुस्तकों से मिलती है|
  • वाचन/पठन कौशल के उद्देश्य (Objectives of Reading Skill):

  • बालकों के स्वर में आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि यथावसर भावों के अनुकूल स्वर में लोच देकर पढ़े।
  • बालकों को वाचन के माध्यम से शब्द ध्वनियों का पूर्ण ज्ञान कराया जाता है वाचन की इस कला से छात्र मुँह व जिव्हा के उचित स्थान से ध्वनि उच्चारित करते रहेंगे।
  • वाचन के माध्यम से शब्दों पर उचित बल दिया जाता है।
  • छात्र पढ़कर उसका भाव समझें तथा दूसरों को भी समझाएँ वाचन का यह एक उद्देश्य है।
  • वाचन के अक्षर, उच्चारण, ध्वनि, बल, निर्गम, सस्वरता आदि को सम्यक् संस्कार प्राप्त होता है।
  • वाचन/पठन संबंधी त्रुटियाँ (Errors Related to Reading):

  • अटक-अटक कर पढ़ना।
  • वाचन के समय अनुचित मुद्रा, पुस्तक को आँखों सन्निकट या दूर रखना।
  • अशुद्ध उच्चारण।
  • वाचन में गति का न होना।
  • दृष्टि दोष से अक्षरों का ठीक दिखाई न देना।
  • पाठ्य सामग्री का कठिन होना।
  • अक्षर या संयुक्ताक्षरों संबंधी त्रुटियाँ।
  • भावानुकूल आरोह-अवरोह का अभाव।
  • वाचन संबंधी मार्ग दर्शन का अभाव।
  • अध्यापक का व्यवहार।
  • वाचन/पठन संबंधी दोषों का निवारण (Prevention of Reading Related Defects):

  • आवृत्ति-पुनरावृत्ति इसका अभिप्राय यह है कि बार-बार आवृत्ति या पुनरावृत्ति के माध्यम से अभ्यास कराकर उच्चारण संबंधी दोषों का निवारण किया जा सकता है।
  • वातावरण परिवर्तन बच्चों को सिखाई जाने वाली भाषा हेतु उपयुक्त वातावरण उपलब्ध करवाकर पठन संबंधी दोषों का निवारण किया जा सकता है।
  • चिकित्सा विधि यदि किसी अंग में कोई खराबी के कारण या भय, घबराहट आदि के कारण बच्चों के वाचन संबंधी कठिनाई हो, तो उसे चिकित्सकों की मदद से दूर किया जा सकता है।
  • छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल पाठ्य सामग्री का चुनाव|
  • 4.लेखन कौशल (Writing Skill):

    मौखिक रूप के अन्तर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप एवं भावों की मौखिक अभिव्यक्ति है। जब इन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त किया जाता है और इन्हें लिपिबऋ करके स्थायित्व प्रदान करते हैं, तो वह भाषा का लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस प्रतीक रूप की शिक्षा, प्रतीकों को पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया अथवा ध्वनि को लिपिबद्ध करना लिखना है।

    लेखन शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Writing Skill):

  • छात्र सोचने एवं निरीक्षण करने के उपरान्त भावों को क्रमबद्ध रूप से व्यक्त कर सकेगा।
  • छात्र सुपाठ्य लेख लिख सकेगा।
  • शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिख सकेगा।
  • छात्र ध्वनि, ध्वनि समूहों, शब्द, सूक्ति, मुहावरों का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।
  • विराम चिन्हों का यथोचित प्रयोग कर सकेगा।
  • अनुलेख, अतिलेख तथा श्रुतलेख लिख सकेगा।
  • व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करने में सक्षम होंगे।
  • वह वाक्यों में शब्दों, वाक्यांशों तथा उपवाक्यों का क्रम अर्थानुकूल रख सकेगा।
  • विभिन्न रचना वाले वाक्यों का शुद्ध गठन करेगा।
  • लेखन कौशल के गुण (Merits of Writing Skill):

  • लेखन, सुन्दर, स्पष्ट एवं सुडौल हो।
  • उसमें प्रवाहशीलता एवं क्रमबद्धता हो।
  • विषय (शिक्षण) सामग्री उपयुक्त अनुच्छेदों में विभाजित हो।
  • भाषा एवं शैली में प्रभावोत्पादकता हो।
  • भाषा व्याकरण सम्मत हो।
  • अभिव्यक्ति संक्षिप्त, स्पष्ट तथा प्रभावोत्पादक हो।
  • [८]

    लेखन शिक्षण की प्रविधियाँ (Techniques of Writing Skill):

  • मॉण्टेसरी विधि- मॉण्टेसरी ने लिखना सिखाने में आँख, कान और हाथ तीनों के समुचित प्रयोग पर बल दिया है। उनके मतानुसार, पहले बालक को लकड़ी अथवा गत्ते या प्लास्टिक के बने अक्षरों पर ऊँगली फेरने को कहा जाए, फिर उन्हें पेन्सिल को उन्हीं अक्षरों पर घुमवाना चाहिए। पेन्सिल प्राय: रंगीन होनी चाहिए। इसी प्रकार बालक अक्षरों के स्वरूप से परिचित होकर उन्हें लिखना सीख जाता है।
  • रूपरेखानुकरण विधि- इस विधि में शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट पर चाक या पेंसिल से बिंदु रखते हुए शब्द या वाक्य लिख देता है ,और छात्रों से उनके निशाने पर पेंसिल से लिखने के लिए बोलता है, जिससे शब्द, वाक्य, वर्ण उभर आए|इस प्रकार अभ्यास के माध्यम से वह वर्णों को लिखना सीख जाता है|
  • स्वतन्त्र अनुकरण विधि – इसमें अध्यापक श्यामपट्ट, कापी या स्लेट पर अक्षरों को लिख देता है और छात्रों को कहता है कि उन अक्षरों को देखकर उनके नीचे स्वयं उसी प्रकार अक्षर बनाए।
  • तुलना विधि – हिन्दी भाषी क्षेत्रों में तुलना विधि उपयोगी मानी जाती है। बालक को तीसरी चौथी कक्षा में मातृभाषा के लेखन का अभ्यास हो चुका होता है। अतः उससे तुलना करते हुए हिन्दी भाषा शीघ्रता से सीखी जा सकती है।
  • [९]

    लेखन शिक्षण के लिए आवश्यक बातें(Things Needed for Teaching Writing):

    ये बातें निम्नलिखित हैं-

    1. बालक को लिखना तभी सिखायें जब वह लिखने में रुचि ले।

    2. अक्षरों को सरल से कठिन के क्रम में लिखना सिखाया जाये जैसे-प, व, र, भ आदि अक्षर पहले क्ष, त्र, ज्ञ आदि कठिन अक्षर बाद में। वाक्य भी सरल से कठिन की ओर सूत्र के आधार पर लिखने सिखाये जायें।

    3. अध्यापक को चाहिए कि वह बालक के लिखने की गति पर प्रारम्भ में ध्यान न देकर अक्षरों, शब्दों और वाक्यों की शुद्धता पर ध्यान दे।

    4. प्रारम्भ में अक्षरों का आकार बड़ा होना चाहिए धीरे-धीरे अक्षरों के आकार छोटे किये जायें।

    5. बालक के मन में लिखने के प्रति उदासीनता नहीं होनी चाहिए।

    6. लिखना सिखाते समय बालक की व्यक्तिगत् विभिन्नता पर ध्यान देना चाहिए। सभी बालक एक सा नहीं लिख सकते।

    7. लेखन कार्य पढ़े हुए अंश से सिखाना चाहिए। बालक पढ़ी हुई बात को आसानी से लिख लेते हैं।

    [१०]

    1. https://www.scotbuzz.org/2019/05/bhasha-kaushal-ka-ar.html
    2. https://www.doorsteptutor.com/Exams/CTET/Paper-1/Hindi/Study-Material/Topic-Pedagogy-of-Language-Development-1/Subtopic-Language-Skills-5/Part-2.html
    3. https://www.doorsteptutor.com/Exams/CTET/Paper-1/Hindi/Study-Material/Topic-Pedagogy-of-Language-Development-1/Subtopic-Language-Skills-5/Part-2.html
    4. Kendriya Shikshak Patrta Pariksha Samajik Adhyayan (Paper-II)page no .19
    5. Kendriya Shikshak Patrta Pariksha Samajik Adhyayan (Paper-II) page no.20
    6. Kendriya Shikshak Patrta Pariksha Samajik Adhyayan (Paper-II) page no.25
    7. JTET JHARKHAND SHIKSHAK PATRATA PAREEKSHA PAPER -I (CLASS : I – V )page no.77
    8. JTET JHARKHAND SHIKSHAK PATRATA PAREEKSHA PAPER -I (CLASS : I – V )page no.79
    9. http://a2znotes.com/deied-lekhan-shikshan-study-material-notes-previous-question-answer/
    10. http://a2znotes.com/deied-lekhan-shikshan-study-material-notes-previous-question-answer./