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भाषा साहित्य और संस्कृति/स्त्री-पुरुष तुलना

विकिपुस्तक से

नारी जन्मतः कोमल लज्जाशील,मृदुल रहती है और तुम उसे ही निर्बल,अविचारी और मूर्ख कहते हो? अरे मूर्ख,क्या तुम जन्मजात सबल और पराकमी उत्पन हुए हो? माता का दुगधामृत क्या तुम पुरुष नही परशन करते? तो दोष क्या केवल नारी में रहते हैं? "जिसके हाथ में लाठी वही बलवान,बाकी सब निर्बल" यही तो आचरण है तुम्हारा ,तुमने अपने हाथो में सब धन-दौलत रख कर नारी को कोठी में दासी बना कर ,धौंस जमा कर दुनिया से दूर रखा। उस पर अधिकार जमाया। नारी के सदगुणों को, कर अपने ही गुणावगुणों के दिए तुमने जलाए। नारी को विद्या प्राप्ति के अधिकार से वंचित कर दिया। उसके आने-जाने पर रोक लगा दी। जहां भी वह जाती थी, वहीं उसे उसके समान अज्ञानी स्त्रियां ही मिलती थीं। फिर दुनियादारी की समझ कहां से सीखती वह? पति के पहले

पत्नी की मृत्यु हो या पत्नी के पहले पति की- मृत्यु और जीवन दोनों ही तो सर्वशकितमान नारायण के हाथों में है। किसी को जीवन या किसी को मृत्यु तुम दे सकते हों? जवान मृत हो या बूढ़ा, इसका भी कोई नियम है? कोई जन्म लेते ही, कोई भरीं जवानी में, कोई सौ साल जी कर ,कोई सारा परिवार राज-पाट का सुख उपभोग कर,खुशी से अथवा दुखी हो कर मृत्यु पाते हैं या नहीं? जब काल के आगे तुम्हारे जैसे 'सबल'परूष कुछ नहीं कर सकते, वहां इन बेचारी अबलाओं से क्या होगा? जब किसी नारी की कथा कही जाती है कि वह अपना सौभाग्य प्राप्त करने के लिए बृहा जी के पास गई थी,तो क्या प्रजापति ने उसे यह कहा था कि "किसी भी नारी को उसका सौभाग्य प्राप्त नहीं होगा?"

इसका कोई प्रमाण दे सकते हो तुम?एक सावित्री को छोड़ कौन नारी यम के पास गई है?सावित्री ने पति क प्राणो के साथ और भी बहुत कुछ मांग लिया था

अरे,जब तक तुम्हारी वीरता नही आज़माई जाती तब तक ही तुमहारी शान है। झांसी की रानी के समान चार-पांच सौ औरतें निस्संग हो कर हाथो में तरवार लिए निकलें तो तुम्हारे भागने का ठिकाना नही रहेगा। पीठ दिखा कर ऐसे भागोगे कि ढूंढ पता न चलेगा। पहले मरहटों में ऐसे सगींन बहादुर थे, जिन्होंने दिल्ली तख्त को हिला कर पखा था और आज अंग्रेजो का राज आते ही तुम्हारी घिग्घी बँध गई। तुम चाहे अपने आप को बड़े कलम बहादुर क्यो़ न समझो,उसे कौन घी डाल रहा है़? वैसे भी आज की स्थिति में कंलम बहादुर की जगह रोटी-बहादुर कहा जाए जो हर्जं ही क्या?

मुँह में दाँत नहीं है सर से बाल गायब हो रहे हैं, झुर्रियों से भरे शरीर में कब कभी छूट रही है बोलते वक़्त तोतले बोल निकल रहे हैं और कान ऊंचा सुनने के लिए मजबूर हैं ऐसी स्थिति में हाथ में लकड़ी लेकर सर पर साफा दुबले शरीर पर बढ़िया अंगौछा धारीदार धोती ऐसा पहनावा पहनकर पुरुष अपनी स्तुति पाठकों से पूछता है "कैसा लगता हूँ मैं? " और वे लालची कह उठते हैं " आप तो बिलकुल 25 साल के युवा लगते हैं। " शादी करने में कोई हर्ज नहीं। " हमें भी तसल्ली मिलेगी "। बात सुनते ही बूढ़ा की नज़र में नारी का रूप छा जाता है। किसी गरीब को हजार दो हजार देकर उसकी सुंदर लड़की को खरीदा जाता है। जैसे बाघ के सामने मेमने को डाला जाना। जब यह बूढ़े महाराज स्वर्गारोहण के पथ पर मार्ग स्थित होते हैं तो उस बालिका की वही अपमानित स्थिति। क्यों यही सच है न?

स्त्री को कभी इस तरह स्वांग रचते देखा है किसी ने? एक बार उस पर यह वैधव्य की गाज़ गिरी तो बेचारी वही गठरी अपने पास रख कर अपने पति के गुण-अवगुण याद करती हुई घर में,बाहर भी लोगो के अत्याचार सहती हुई एक दिन भगवान को प्यारी हो जाती है।पति बीमार हुआ तो नारी डरती है। उसकी सेवा करती है -चाहे भक्ति भाव से या भय से। पति चाहे भला हो या बुरा-स्त्री सदा उसकी इच्छा के अनुसार ही आचरण करती है। और यदी पत्नी दो-चार साल बीमार हुई तो पति सोचता है, "न जाने इससे कब छुटकारा मिलेगा-दवाएँ पिला-पिला कर हैरान होता जा रहा हूँ" कभी सुना है कब छुटकारा मिलेगा-