मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति/वैश्विक संकट में सरल मौद्रिक नीति

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जब वैश्विक मंदी शुरू हुई, केंद्रीय बैंक ने उदार मौद्रिक नीति अपनाना शुरू कर दिया। विभिन्न चरणों में लिए गए फैसलों से और अधिक नकदी उपलब्ध करायी गयी तथा उधार की लागत को कम कर दिया गया। सी आर आर घटकर तीन प्रतिशत तक आ गया तथा रेपो दर करीब 4 प्रतिशत पर लायी गयी। इससे बैंकिंग प्रणाली में 3 लाख करोड़ (30 खरब) रुपए से भी अधिक की राशि छोड़ी गई और विकास को बढ़ावा देने के लिए बाजार में पर्याप्त नकदी उपलब्ध हो सकी।

अर्थव्यवस्था के वापस पटरी पर आने तथा मुद्रास्फीति में तेजी से हुई वृध्दि को देखते हुए पिछले कुछ महीनों से राजकोषीय प्रोत्साहन देने के लिए फूंक-फूंक कर कदम उठाए जा रहे हैं। जनवरी में ही मौद्रिक संकुचन शुरू हो गया था ताकि बाजार में पड़ी अतिशेष नकदी को धीरे-धीरे वापस ले लिया जाए, जिससे विकास की गति को अवरुध्द किये बिना मुद्रास्फीति को काबू में रखा जा सके। ऐसा करना इसलिए जरूरी था कि अर्थव्यवस्था अभी अधिक सुदृढ़ नहीं हो सकी है।