लिंग समाज और विद्यालय/लिंग की अवधारणा

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लिंग की अवधारणा[सम्पादन]

समाज की संरचना संगठन और व्यवस्था में लिंग समानता और असमानता का विशेष महत्व है। लिंग की असमानता पर समाज के संरचनात्मक संस्थागत और संगठनात्मक ढांचे का प्रभाव पड़ता है। लिंग की असमानता भी समाज के संतुलन व्यवस्था और विकास को प्रभावित करती है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अध्ययन करना होगा कि लिंग की असमानता किसे कहते हैं? इस असमानता के कारण कौन-कौन से हैं? लिंग की असमानता के कारण स्त्री और पुरुष में से किसका शोषण हो रहा है? असमानता का शिकार कौन सा वर्ग (स्त्री वर्ग या पुरुष वर्ग) है? लिंग के अनुसार समाज की धारणाएं क्या है? भेदभाव के क्षेत्र कौन-कौन से हैं? लिंग असमानता को दूर करने के लिए क्या क्या प्रयास और प्रावधान किए गए हैं? संवैधानिक अधिकारों और उनके व्यवहार में कितना अंतर है? आदि की विवेचना समाजशास्त्री दृष्टिकोण से यहां किया गया है।लिंग की अवधारणा एक प्राकृतिक तथ्य है, जिसको नकार कर के हम समाज की संकल्पना ही नहीं कर सकते,अतः समष्टि,समाज के संरक्षण व विकास हेतु लिंग की अवधारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण है |

लिंग की परिभाषा एवं अर्थ[सम्पादन]

लिंग और यौन अवधारणाएं एक दूसरे से संबंधित है इसीलिए लिंग और लिंग भेद को यौन और योन भेद के संदर्भ में समझना अधिक सरल है। इसी संदर्भ में लिंग की परिभाषा और अर्थ की विवेचना प्रस्तुत है।

प्राकृतिक विज्ञान में विशेष प्रणाली से प्राणी विज्ञान स्त्री-पुरुष के जैविक लक्षणों का वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं। इनका जैविक और पुनर्जनन कार्यों पर ही ध्यान केंद्रित रहता है। विगत वर्षों में ऐसे अध्ययनों को योनि भेद (सेक्स) से संबंधित किया जाने लगा है। सामाजिक विज्ञानों में विशेष रूप से समाजशास्त्र में स्त्री-पुरुषों का अध्ययन लिंग भेद के आधार पर किया जाता है, जिसका तात्पर्य है कि उन्हें सामाजिक अर्थ प्रदान किया जाता है। “स्त्री” और “पुरुष” का अध्ययन सामाजिक संबंधों को गहराई से समझने के लिए किया जाता है। योनि-भेद जैविक-सामाजिक है, और लिंग-भेद सामाजिक संस्कृतिक है। योनि- भेद शीर्षक के अंतर्गत “स्त्री” “पुरुष” का नर-मादा के बीच विभिन्नताओ का अध्ययन करते हैं, जिसमें जैविक गुण जैसे पुनर्जनन कार्य पद्धति, शुक्राणु-अंडाणु एवं गर्भाधान क्षमता, शारीरिक बल क्षमता, शरीर रचना की भिन्नता आदि पर ध्यान दिया जाता है। लिंग भेद में "स्त्री" और "पुरुष" का अध्ययन पति-पत्नी, माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र- पुत्री के रूप में अर्थात सामाजिक सांस्कृतिक दृष्टिकोण से किया जाता है। उनकी समाज में प्रस्थिति और भूमिकाए क्या है? उनके कर्तव्य व अधिकार क्या है? का अध्ययन किया जाता है। लिंग भेद की धारणा का उद्देश्य “स्त्री” और “पुरुष” के बीच सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आदि विभिन्नताओं, समानताओं और असमानताओं का वर्णन व्याख्या करना है।

लिंग भेद (सेक्स) शब्द का प्रयोग अन्य ओकेल ने 1972 में अपनी कृति “सेक्स जेंडर एंड सोसाइटी” में किया था। आपके अनुसार “योन भेद” का अर्थ “स्त्री” और “पुरुष” का जैविकीय विभाजन है और लिंगभेद से आपका तात्पर्य स्त्रीत्व और पुरुषत्व के रूप में समानांतर एवं सामाजिक रूप से आसामान विभाजन से है। लिंग भेद की अवधारणा के अंतर्गत “स्त्री” और “पुरुष” के बीच में सामाजिक दृष्टिकोण से जो विभिन्नताएं हैं उनका अध्ययन किया जाता है। लिंग भेद शब्द का प्रयोग सांस्कृतिक आदर्शों स्त्रीत्व और पुरुषत्व से संबंधित धारणाओं के लिए किया जाता है। इस अवधारणा का प्रयोग स्त्री और पुरुष के बीच शारीरिक क्षमताओं के आधार पर जो सामाजिक संस्थाओं और संगठनों में श्रम विभाजन होता है,उनके लिए भी किया जाता है।

निष्कर्ष[सम्पादन]

यह कहा जा सकता है कि लिंग असमानता एक समाजशास्त्री महत्वपूर्ण अवधारणा है जिनका प्रयोग स्त्री- पुरुषों के बीच सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक राजनीति मनोवैज्ञानिक तथा ऐसी ही विशेषता लक्षणों के आधार पर विभिन्न गांवों के क्रमबद्ध और व्यवस्थित अध्ययन विश्लेषण और व्याख्या करने के लिए किया जाता है।