विकिपुस्तक:नामकरण नीति
इस पृष्ठ पर विकिपुस्तक के लिए किसी प्रस्तावित नीति अथवा दिशानिर्देश का प्रारूप रखा गया है। इसके चर्चा पृष्ठ पर इसमें सुधारों और बदलावों के बारे में चर्चा करें। आम सहमति होने पर यह स्थापित आधिकारिक नीति अथवा दिशानिर्देश बन जाएगा। |
नामकरण परंपरा
हर पृष्ठ के नाम के पहले उस पुस्तक का नाम आना चाहिए जिस पुस्तक का वह पृष्ठ हिस्सा है, दोनों को स्लैश (/
) द्वारा अलग किया जाना चाहिए:
पुस्तक_का_नाम/पृष्ठ_का_नाम
नीति-विरुद्ध पुस्तकें
विकि पर मीडियाविकि द्वारा स्थापित तरीके में, कोई भी पृष्ठ जिसके नाम में स्लैश लगा हो, स्लैश से पहले वाले नाम का उपपृष्ठ होता है। अतः उपर्युक्त तरीके से नामकरण करने पर, "पुस्तक_का_नाम" मुख्य पृष्ठ होता है और स्लैश के साथ लिखा पूरा नाम "पुस्तक_का_नाम/पृष्ठ_का_नाम" उस मुख्य पृष्ठ का उपपृष्ठ होता है।
आमतौर पर "पुस्तक_का_नाम" उस पुस्तक का नाम होता है और पृष्ठ_का_नाम" उस पुस्तक के अध्याय का नाम होता है। हर पुस्तक का एक ही मुख्य पृष्ठ हो सकता है, अर्थात एक पुस्तक में उसके नाम वाले पृष्ठ के अतिरिक्त बाकी सभी पन्ने उसके नाम वाले पृष्ठ के उपपृष्ठों के रूप में ही रखे जाने चाहिएँ, उपर्युक्त तरीके से स्लैश लगाकर अलग करते हुए।
अतः, यदि कोई पुस्तक आपको ऐसी मिलती है जो उपर्युक्त परंपरा का अनुपालन नहीं करती और उसमें अध्यायों के नाम मुख्य पृष्ठ के उपपृष्ठ के रूप में नहीं रखे गए हैं तो उनके अध्यायों के नाम बदलकर इस नीति के अनुसार कर दिया जाना चाहिए। यदि किसी कारण आप स्थानांतरण करके नाम नहीं बदल पा रहे हों तो पुस्तक के ऊपर {{fix title}} का टैग जोड़ दें। पृष्ठों का स्थानांतरण केवल स्वतः स्थापित सदस्य कर सकते हैं, और जिस नाम पर स्थानांतरण करना है अगर वह पहले से मौज़ूद है तो उस नाम पर स्थानांतरण केवल प्रबंधकों द्वारा किया जा सकता है। आप पृष्ठों के नाम बदलाव हेतु टैग {{rename}} लिख कर लगा सकते कि इसे किस नाम पर स्थानांतरण द्वारा ले जाया जाना चाहिए।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
उपर्युक्त पृष्ठ/उपपृष्ठ के रूप में नामकरण परंपरा के अतिरिक्त कुछ अन्य बिंदुओं का अनुपालन करना आवश्यक है।
पुस्तक के नाम और पृष्ठ के नामों में वर्तनी
- देवनागरी लिपि
- पुस्तक का नाम और उसके सभी पृष्ठों का नाम अनिवार्य रूप से देवनागरी लिपि में लिखा होना चाहिए।
- अप्रचलित युनिकोड अक्षर नहीं
- पुस्तक अथवा उसके उपपृष्ठ के नाम में अप्रचलित युनिकोड अक्षरों का प्रयोग नहीं होना चाहिए भले ही वे विस्तारित युनिकोड देवनागरी का हिस्सा हों (जैसे: ह्रस्व ए के लिए
ऎ ॆ
ह्रस्व ओ के लिएऒ ॊ
अवग्रह चिह्नऽ
लाघव चिह्न॰
इत्यादि)। ग़ैर-हिंदी भाषाओं के शब्दों के उच्चारण अनुसार उन्हें बेहतर दिखाने के लिए कुछ प्रचलित विस्तारित देवनागरी अक्षरोंॅ ऑ ऍ
इत्यादि, और अति आवश्यक होने पर हलंत चिह्न्
का प्रयोग किया जा सकता है। - लिखित रूप की विरासत
- ऋ और इसकी मात्राएँ
ृ ॄ
इत्यादि तथा नुक़्ता (नीचे लगने वाली बिंदी़
) का प्रयोग अनिवार्य है, भले ही ऋ का उच्चारण आमतौर पर रि अथवा री के रूप में और नुक़ते वाले अक्षरों का उच्चारण बिना नुक़्ते वाले रूप में होता है। - पंचमाक्षर प्रयोग नहीं
- एकरूपता और सरलता हेतु, पुस्तकों के शीर्षक और पृष्ठों के नाम में पंचमाक्षरों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए, सिवाय न् और म् के उन स्थानों पर प्रयोग के जहाँ इनका प्रयोग करना आवश्यक ही होता है (जैसे: सन्निहित, विभिन्न इत्यादि को संनिहित अथवा विभिंन नहीं लिखा जा सकता; सम्मत को संमत नहीं लिखा जा सकता); साथ ही कुछ ग़ैर-हिंदी शब्दों में, यदि उन्हें उसी भाषा में लिखने का मज़बूत कारण हो, अनुस्वार
ं
का प्रयोग लिपि की सीमाओं के चलते नहीं किया जा सकता (जैसेॅ
के तुरंत बादं
का प्रयोग नहीं हो सकता क्योंकि फिर यह चंद्रबिंदी जैसा दिखता है, उदाहरण के लिए "कॉंपैक्ट" और "काँपैक्ट" में कई फोंट में देखकर अंतर करना मुश्किल है, अतः कॉम्पैक्ट लिखना ही विकल्प बचता है) । - देवनागरी अंक
- पुस्तक पुस्तक अथवा उसके उपपृष्ठों के नाम में सदैव देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाना चाहिए यदि कोई विशेष और पर्याप्त मज़बूत कारण न हो।
- अनुस्वार और अनुनासिक
- बिंदी और चंद्रबिंदी में सदैव अंतर करके लिखा जाना चाहिए सिवाय उन जगहों पर जहाँ देवनागरी लिपि की कुछ सीमाओं के चलते चंद्रबिंदी का प्रयोग अटपटा दिखता है (जैसे इसे कुछ मात्राओं के साथ लगाना मुश्किल और अस्वाभाविक दिखता, जैसे "नहीं" को नियम सम्मत रूप से "नहीँ " लिखना)।
नामकरण शैली
- पुस्तकों के नाम में कॉलन अथवा डैश लगाकर न लिखें (जैसे "कखग : एक परिचय", "कखग : एक विस्तृत अध्ययन", "कखग — एक अबस अध्ययन" इत्यादि)। इनकी आवश्यकता तभी होती है जब उसी विषय पर कई स्तर की पुस्तकें बनी हों और उनके नाम में विभेद स्थापित करना हो। तब भी प्रयास करें कि इनके नाम में ये अक्षर न आयें (जैसे "कखग : एक परिचय" की जगह "परिचयात्मक कखग" लिख कर इस समस्या से निबटा जा सकता)
- पुस्तकों के नाम में कोष्ठकों का प्रयोग न करें। उदाहरण के लिए "कखग का इतिहास (आधुनिक काल)" की बजाय इसे "कखग का आधुनिककालीन इतिहास" लिखा जा सकता है।
लागू कराना
इस नीति को लागू करने कराने का कार्य कोई भी संपादक कर सकता है, आप भी! जहाँ कहीं उपर्युक्त बातों का उल्लंघन दिखे आप स्वयं बदलाव कर सकते हैं।
जहाँ आप नाम नहीं बदल पा रहे, पृष्ठों को {{fix title}} {{rename}} से टैग करें। बहुत सारे नाम बदलने हों; बहुत अधिक पन्नों के स्थानांतरण के लिए किसी बॉट चालक से संपर्क करें। आवश्यकता अनुसार प्रबंधकों को सूचित करें अथवा वि:चौपाल पर लिखें।