विज्ञापन और हिंदी भाषा/विज्ञापन का महत्त्व एवं उपयोगिता

विकिपुस्तक से

आज की युग-चेतना की दृष्टि से विभिन्न कलाओं के अंतर्गत विज्ञापन को भी एक उपयोगी कला कह सकते हैं। इस दृष्टि से ही आज के युग को विज्ञापन का युग भी कहा जाता है। विज्ञापन का एक खास प्रभाव और महत्व हुआ करता है। वह सामान्य को विशेष और कई बार विशेष को सामान्य बना देने की अदभुत क्षमता रखता है। यह क्षमता ही वास्तव में इसकी कला है ओर यही कारण है कि विज्ञापनों से जुड़े लोग भी आज कलाकार कहलाते हैं। वस्तुत: इस विज्ञापन कला को प्रभावी बनाने के कारण रूप में अन्य कई कलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। उनमें से प्रमुा है – लेखन-कला, चित्रकला, सिने-कला और प्रकाशन प्रसारण कला। प्रकाशन-कला और छापेखाने का भी विज्ञापन कला के प्रचार-प्रसार में कम योगदान नहीं है।


उपलब्ध साधनों के आधार पर आज हमारे पास विज्ञापन के प्रसारण के तीन दृश्य, श्रव्य और पाठय साधन विद्यमान है। सिनेमा और दूरदर्शन में दृश्य-श्रव्य दोनों का एकीकरण या समावेश हो जाता है। इनमें हम विज्ञापित वस्तुओं के रंग-रूप, आकार-प्रकार के साथ-साथ उनके प्रयोग-प्रभाव के भी प्रत्यक्ष दर्शन कर लेेते हैं और वह प्रभाव प्राय: गहरा हुआ करता है। श्रव्य साधन के रूप में वस्तुओं का विज्ञापन करने के लिए आकाशवाणी या रेडियो का सहारा लिया जाता है। विज्ञापनकर्ता यानी विज्ञापित वस्तु के संबंध में बताने वाले कलाकार ऐसे-ऐसे श्रव्य साधनों का सहारा लेते हैं कि वास्तव में दृश्य जैसा प्रभाव ही दिखाई देने लगता है। वस्तु या उत्पादन के संबंध में तो प्रभावशाली भाषा-भंगिमा का सहारा लिया ही जाता है, बीच में चुटकुलों, फिल्मी गीतों, छोटी-छोटी कहानियों, श्रव्य-झांकियों का सहारा लेकर भी विज्ञापित वस्तु के महत्व की छाप बिठा दी जाती है। वास्तव में ऐसा करने में ही इस कला की सफलता और महत्व है। पाठयरूप में समाचार-पत्रों, पोस्टरों, साइनबोर्डों, बड़े-बड़े बैनरों और नियोन साइन आदि का सहारा लिया जाता है। नियोन साइन तथा बड़े-बड़े प्ले बोर्ड तो पाठयता के साथ-साथ दृश्यमयता का प्रभाव भी डालकर प्रदर्शित या विज्ञापित वस्तु तक अवश्य पहुंचने का प्रभाव छोड़ जाते हैं। दृश्य, श्रव्य, पाठय आदि सभी रूपों में आज की विज्ञापन-कला नारी के सुघड़ सौंदर्य का खूब प्रयोग कर रही है। पर स्थिति दुखद या भयावह तब प्रतीत होने लगती है, जब नारी को नज्न या अर्धनज्न रूप में प्रस्तुत किया जाता है। उन वस्तुओं के विज्ञापन के साथ भी उन्हें जोड़ दिया जाता है जिनका प्रयोग न तो वे करती हैं और न ही कर सकती हैं। आज की जागरुक नारी इसके विरोध में खड़ी होने लगी है। यह एक अच्छी बात है, वस्तुत: मातृ-सत्ता का इस प्रकार का दुरुपयोग बंद होना चाहिए और इसे वे नारियां ही समाप्त कर सकती हैं, जो इस प्रकार की विज्ञापनबाजी में कुछ पैसों के लालच में भागीदार बना करती हैं। उनके द्वारा बहिष्कार ही समस्या का हल है।


विज्ञापन-कला का वास्तविक उद्देश्यय और उपयोग किसी नए एंव उपयोगी उत्पादन की सूचना आम लोगों तक पहुंचाना, उसका प्रचार-प्रसार करना ही है। यदि यह सुरूचिपूर्ण और विशुद्ध कलात्मक ढंग से हो, तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? फिर यह भी जरूरी है कि वास्तविक उपयोगी एंव लाभदायक वस्तुओं को ही विज्ञापन में महत्व दिया जाना चाहिए। पर आजकल धन के लोभ में ऐसी वस्तुओं पर भी पानी की तरह पैसा बहाया जाता है कि जो वस्तुत: देश-जाति के लिए हानिप्रद, बल्कि घातक भी सिद्ध हो सकती है। इसी प्रकार विज्ञापन-कला को जो अश्लील और घातक ढंग अपनाए जा रहे हैं, उनसे बचाव भी आवश्यक है। बाकी इस कला का उपयोग और महत्व असंदिज्धा हैं। छोटी-बड़ी प्रत्येक वस्तु की सूचना उपभोक्ता तक पहुंचाने का माध्यम या संभव साधन आज के विश्व में विज्ञापन ही हो सकता है। इसी प्रकार वैचारिक प्रचार तथा प्रभाव-विस्तार के लिए भी आजकल विज्ञापन-कला का सहारा लिया जाने लगा है और भी कई तरह के इसके उपयोग और महत्व हैं।


समाचार-पत्रों में आवश्यकता के विज्ञापन दे या पढक़र किसी की सेवा ली और दी जा सकती है। विज्ञापनों के माध्यम से आज उपयुक्त वर-वधु की खोज होने लगी है। मकान किराए पर देने-लेने के लिए, खरीद-बेच के लिए, सरकारी सूचनांए और कार्यों की जानकारी देने के लिए, कोर्ट-कचहरी आदि के आवश्यक सम्मनों-कार्यों आदि के लिए आज अनेक प्रकार से विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है। तात्पर्य यह है कि आज स्थूल-सूक्ष्म कोई भी कार्य, गतिविधि, विचार और उत्पाद क्यों न हो, दूसरों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम विज्ञापन के रूप में हमारे सामने विद्यमान है। आवश्यकता इस बात की है कि एक सुरूचिपूर्ण कला-माध्यम के रूप में इसका उपयोग किया जाए, ताकि जिस प्रयोजन या उद्देश्य के लिए इस कला का अविष्कार हुआ, वह सार्थक सफल हो सके। उपभोक्ताओं का भी भला हो इस कला से जुड़े लोगों मान-मूल्य पा सकें। यही इसका उद्देश्य, प्रयोजन और महत्व है। सदुपयोग करके इस उद्देश्य और महत्व को हमेशा प्रभावी बनाए रखा जा सकता है। आज जो नज्न-अश्लील विज्ञापनबाजी शुरू हो गई है। उसे बंद कर इस कला को सुरुचिपूर्ण बनाया जाना परम आवश्यक है।