विज्ञापन और हिंदी भाषा/विज्ञापन : अर्थ व परिभाषा

विकिपुस्तक से

वि ज्ञापन एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा हम किसी सामग्री या व्यक्ति विशेष के प्रति जनसामान्य को आकषिर्त करने का प्रयास करते हैं। अंग्रेजी में विज्ञापन के लिए ‘Advertising’ शब्द प्रयोग किया जाता है। Advertising लैटिन के ‘Advertere’ से बना है जिसका अर्थ ’मस्तिष्क का केन्द्रीभूत होना’ है। दूसरे शब्दों में मस्तिष्क को प्रभावित करना या किसी विशेष वस्तु व व्यक्ति विशेष के प्रति जनसामान्य के मस्तिष्क को आकर्षित करने का प्रयास करना ही विज्ञापन है।

विज्ञापन शब्द ‘वि’ और ‘ज्ञापन’ इन दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘वि’ से तात्पर्य ‘विशेष’ से तथा ‘ज्ञापन’ से आशय ‘ज्ञान कराना’ अथवा सूचना देना है। इस प्रकार ‘विज्ञापन’ शब्द का मूल अर्थ है ‘किसी तथ्य या बात की विशेष जानकारी अथवा सूचना देना।’

विज्ञापन के व्यापक फलैाव के अनुरूप इसकी कई परिभाषाएं हैं। रामचन्द्र वर्मा की परिभाषा के अनुसार- विज्ञापन वह है “जिसके द्वारा कोई बात लोगों को बतलायी जाए, वह सूचना पत्र, इश्तिहार, बिक्री आदि के माध्यम से हो और जो सूचना माध्यमों के द्वारा दी जाए”

  • वृहत्त हिन्दी कोष के अनुसार- विज्ञापन का अर्थ है- “समझना, सूचना देना, इश्तहार, निवेदन या प्रार्थना।”
  • डॉ. एम. बाउस के मुताबिक- “एक सीधी कार्यवाही को उकसाने के उद्देश्य से किसी संचार माध्यम में समय या स्थान को खरीद का नाम विज्ञापन है।”
  • रोजर रीवज ने कहा है कि- “विज्ञापन एक व्यक्ति के मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में एक विचार को स्थानान्तरित करने की कला है।”
  • कैनन एवं विचर्ट के अनुसार- “विज्ञापन में उन दृश्यों एवं मौखिक संदेशों को सम्मिलित किया जाता है जो समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन, परिवहन के साधनों अथवा बाह्य बोर्डों पर दिए होते हैं और जिनके लिए विज्ञापनकर्ता भुगतान करते हैं और जिनका उद्देश्य उपभोक्ताओं के क्रय आचरण को प्रभावित करना होता है।”

फ्रैंक जेफकिन्स ने क्रय और विक्रय योग्य वस्तुओं को जनता तक पहुंचाने के माध्यम को विज्ञापन माना है। उन्होंने सस्ते दर पर उत्पादित सामग्रियों एवं सेवाओं के उचित ढंग से प्रभावकारी प्रस्तुतीकरण को विज्ञापन कहा है। विज्ञापन के अन्तर्गत हर प्रकार का वह कार्य सम्मिलित है जिसमें विक्रय योग्य वस्तुओं या सेवाओं के विक्रय को प्रोत्साहन देने हेतु सूचना का प्रसार किया जाता है विज्ञापन एक जटिल प्रक्रिया है। अब विज्ञापन की जगह बेची जाती है या उसका विपणन किया जाता है।

‘इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका’ के अनुसार किसी वस्तु के विक्रय अथवा किसी सेवा के प्रसार हेतु मूल्य चुका कर की गयी घोषणा ही विज्ञापन है। वास्तव में यह प्रचार का एक प्रभावशाली साधन है जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय का विकास होता है। विक्रय-व्यवस्था में विज्ञापन, वस्तु का परिचय कराने, उसकी विशेषताएं तथा उसके लाभ बताने का कार्या सम्पादित कर ग्राहकों को आकृष्ट करता है। उत्पादित वस्तु के ब्रांड को लोकप्रिय बनाना तथा कम्पनी के नाम को जनता के मन-मस्तिष्क में जमाने का कार्य विज्ञापन ही करता है। विचार प्रधान विज्ञापन अब सामाजिक विकास के माध्यम बनते जा रहे हैं।

किसी व्यक्ति, वस्तु, सेवा या आंदोलन को प्रस्तुत करने वाली मुद्रित सामग्री, लिखित शब्द, बोले गये शब्द या चित्रांकन विज्ञापन है जिसे विज्ञापनदाता अपने खर्चे पर बिक्री, प्रयोग, वोट या अन्य प्रकार की सहमति प्राप्ति के लिए खुल्लमखुल्ला प्रस्तुत कर सकता है। वर्तमान में तो विज्ञापन किसी भी उद्योग, वस्तु, स्थान व समाचार माध्यमों हेतु अपरिहार्य वस्तु बन गया है। जिस तरह रक्त संचरण के बिना जीवन चलना असंभव है उसी तरह वर्तमान स्वरूप में बिना विज्ञापन के किसी भी उद्योग, वस्तु, संस्थान व समाचार माध्यमों (टीवी, रेडियो, समाचार पत्र-पत्रिकाओं) का चलना असंभव हो गया है।

विज्ञापन उन समस्त गतिविधियों का नाम है जिनका उद्देश्य अपने खर्चे पर किसी विचार, वस्तु या सेवा के विषय में जानकारी प्रसारित करना हो, जिससे विज्ञापनदाता की इच्छा के अनुसार व्यक्ति कार्रवाई करने को मन से बाध्य हो जाए।


इस परिभाषा में विज्ञापन के क्षेत्र की उन समस्त गतिविधियों का समावेश संभव है जिनमें-
1. बिक्री-व्यवस्था के क्षेत्र में की गई गवेषणा, विज्ञापन और वस्तु की डिजाइन
2. दूर-दृष्टियुक्त विज्ञापन-उदेद्श्य, उसकी लागत, प्रसार माध्यम तथा उपयुक्त संदेश
3. इन उद्देश्यों या योजना के अनुसार उठाये गये अल्पकालीन कदम
4. विज्ञापन का वास्तविक प्रस्तुतीकरण-सामग्री-लेखन, ले-आउट, कलापक्ष तथा प्रस्तुतीकरण
5. विज्ञापन-प्रयास के प्रभाव से संबंधित अधिक अनुसंधान आदि सभी कुछ सम्मिलित है।


इन सब गतिविधियों का लक्ष्य अंततः ‘किसी विचार, वस्तु या सेवा के विषय में जानकारी के प्रसार’ द्वारा ग्राहक को प्रभावित करना होता है। जानकारी का यह प्रसार एक दृष्टि से निर्वेयक्तिक होता है क्योंकि वह किसी एक व्यक्ति को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि, व्यक्ति-समूह को सामने रखकर प्रसारित की जाती है। स्वाभाविक रूप से यह समझा जा सकता है कि जिस माध्यम से यह जानकारी प्रसारित की जा रही है, उसे उसकी सेवा के बदले में भुगतान तो करना ही होता है।

इस अवस्था में यह सहज ही पूछा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति, उपभोक्ता या औद्योगिक उपयोगकर्ता या जनसाधारण को क्यों प्रभावित करना चाहता है? जाहिर है, उसे दिशा-विशेष में कार्यवाई करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से। यह दिशा-विशेष है वस्तु अथवा सेवा की खरीद के लिए उत्सुकता जगाना या प्रसारित विचार के प्रति सहमति अर्जित करना। खरीद या विचार के प्रति यह सहमति भी उस व्यक्ति या व्यक्तियों की इच्छानुसार होनी चाहिए जो उस विज्ञापन का खर्च उठाता है या जिसकी, प्रस्तुत की गई उस वस्तु, सेवा या विचार में दिलचस्पी होती है। ये व्यक्ति कौन हैं, यह उस विज्ञापन से प्रकट होता ही है।

अतः विज्ञापन किसी भी वस्तु, व्यक्ति, संस्थान के प्रति लोगों का ध्यान आकर्षित करने व उनमें इनके प्रति विश्वास जगाने का एक ऐसा माध्यम है जो वर्तमान व्यवसायिक युग का एक अभिन्न अंग बन गया है।