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संयुक्त राष्ट्र का घोषणापत्र

विकिपुस्तक से
संयुक्त राष्ट्र का घोषणा पत्र और अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि

भूमिका

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अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के संबंध में आयोजित संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के सम्मेलन समाप्ति पर सैन फ्रैंसिस्को में 26 जून, 1945 को संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए और घोषणा पत्र 24 अक्टूबर, 1945 से लागू हुआ था। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का अध्यादेश इस घोषणा पत्र का अनिवार्य अंश है।

इस घोषणापत्र के अनुच्छेद 23, 27 और 61, 17 दिसम्बर, 1963 को महासभा द्वारा संशोधित किए गए और ये संशोधन 31 अगस्त, 1965 से लागू हुए। महासभा ने 20 दिसम्बर, 1971 को अनुच्छेद 61 में एक और संशोधन किया जो 24 दिसम्बर, 1973 से लागू हुआ। 20 दिसम्बर, 1965 को महासभा द्वारा अनुच्छेद 109 के संबंध में अंगीकार किया गया संशोधन 12 जून, 1968 से लागू किया गया।

अनुच्छेद 23 से संबंधित संशोधन के द्वारा सुरक्षा परिषद् के सदस्यों की संख्या ग्यारह से बढ़ाकर पन्द्रह कर दी गई। संशोधित अनुच्छेद 27 में यह व्यवस्था की गई कि क्रिया विधि सम्बन्धी मामलों के लिए सुरक्षा परिषद् का निर्णय नौ सदस्यों के समर्थक मतदान (जबकि पहले सात की व्यवस्था थी) पर आश्रित होगा औरअन्य सभी मामलों में नौ सदस्य (पहले यह संख्या सात थी) के स्वीकारात्मक मतदानों पर आश्रित होगा और इसमें सुरक्षा परिषद् के पाँच स्थायी सदस्यों का स्वीकारात्मकमतदान भी सम्मिलित होगा।

अनुच्छेद 61 के संशोधन के द्वारा (जो 31 अगस्त, 1965 को लागू हुआ) आर्थिक और सामाजिक परिषद् के सदस्यों की संख्या अट्ठारह से बढ़कर सत्ताईस हो गई थी। इस अनुच्छेद के बाद के संशोधन से, जो 24 सितम्बर, 1973 को लागू किया गया, परिषद् के सदस्यों की संख्या सत्ताईस से बढ़ाकर चौवन कर दी गई।

अनुच्छेद 109 में किए संशोधन का सम्बन्ध उसी अनुच्छेद के पहले पैरा से है। इसके अनुसार घोषणा पत्र का पुनरीक्षण करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों का एक सामान्य सम्मेलन किया जा सकता है जिसकी तारीख और स्थान महासभा दो-तिहाई बहुमत से और सुरक्षा परिषद् अपने किन्ही नौ सदस्योंके (पहले यह संख्या सात थी) मतों से तय करेगी। जहाँ तक सुरक्षा परिषद् में किन्हीं सात सदस्यों के वोटों का संबंध है अनुच्छेद 109 के पैरा 3 को मूल रूप में रख लिया गया है। इसके महासभा के दसवें नियमित अधिवेशन में पुनर्विचार करने के लिए आयोजित किए जा सकने वाले सम्मेलन के विषय में विचार करने का उल्लेख है। 1955 में इस पैरा के अनुसार महासभा अपने दसवें नियमित अधिवेशन में, और सुरक्षा परिषद् भी, कार्यवाही कर चुकी है।

प्रस्तावना

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संयुक्त राष्ट्र के हमलोग दृढ़ संकल्प हैं कि

युद्ध की जिन विभीषिकाओं से हमारे जीवनकाल में दो बार मानवजाति को संकट में डाला उनसे आने वाली पीढ़ियों की हम रक्षा करने और

मूलभूत मानवाधिकारों, प्रत्येकव्यक्ति का प्रतिष्ठा और महत्व, पुरुषों एवं स्त्रियों तथा छोटे और बड़े राष्ट्रों केसमान अधिकारों के प्रति आस्था की पुष्टि करने, और

ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करने के लिए जिनके अधीन संधियों और अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न होने वाले दायित्वों के संबंध में न्याय और आदर की भावना बनाए रखी जा सके,

व्यापक स्वतंत्रता के लिए सामाजिक प्रगति तथा बेहतर जीवन स्तर को बढ़ावा देने के लिए,

और इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हम सहनशीलता के आदर्श को अपनायेंगे और आदर्श पड़ोसियों की भाँति शांतिपूर्वक मिलजुल कर रहेंगे, और अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए अपनी शक्तियों को संगठित करेंगे, और यह सुनिश्चितकरेंगे कि इस सिद्धान्त को स्वीकार किया जाए और ऐसी पद्धति प्रारम्भ की जाए जिससे सामान्य हितों की रक्षा के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य के लिए सशस्त्र शक्ति का उपयोग नहीं किया जाएगा, और सभी लोगों की आर्थिक और सामाजिक प्रगति के प्रोत्साहन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तंत्र का उपयोग किया जाएगायअतः हमने इन उद्देश्यों की प्राप्तिके लिए मिलजुलकर प्रयास करने का संकल्प किया है।

तदनुसार हमारी विभिन्न सरकारें सैन फ्रैंसिस्को नगर में एकत्र हुए अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से जिन्होंने अपने पूर्णाधिकार पत्र प्रस्तुत किए और उनको उपयुक्त और सही रूप में पाया गया है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तुत घोषणा पत्र पर सहमत हैं और इसके द्वारा ‘‘संयुक्त राष्ट्र’’ नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करते हैं।

अध्याय एक

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प्रयोजन और सिद्धान्त
अनुच्छेद 1

संयुक्त राष्ट्र संघ के निम्नलिखित प्रयोजन हैं :

  • 1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखना, और इस उद्देश्य से निम्नलिखित कार्यों के लिए प्रभावी और सामूहिक रूप से कदम उठना, जिन बातों से शान्ति भंग होने का खतरा हो, उन्हें रोकना या दूर करना; और आक्रामक या अन्य शान्ति भंग करने वाले कार्यों या तत्वों की समाप्ति करनायतथा न्याय और अन्तर्राष्ट्रीय विधि के आधार पर शान्तिपूर्ण साधनों से उन अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों या संकटपूर्ण स्थितियों को सुलझाना या तय करना जिनके कारण शान्ति भंग होने की आशंका हो।
  • 2. समान अधिकार और आत्मनिर्णय के सिद्धान्त के लिए आदर की भावना के आधार पर विभिन्न राष्ट्रों के बीच मित्रतापूर्ण भावना को बढ़ावा देना और विश्व भर में शान्ति को मजबूत करने के लिए उपयुक्त उपाय करना।
  • 3. आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या मानव कल्याण सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा मानवाधिकारों के लिए और किसी प्रकार के जाति, लिंग भाषा या धर्म पर आधारित किसी भेदभाव के बिना सबकी मौलिक स्वतन्त्रता के लिए आदर की भावना को बढ़ावा और प्रोत्साहन देना।
  • 4. इन सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न राष्ट्रों द्वारा किए गए कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिए एक केन्द्रीय संगठन के रूप में कार्य करना।
अनुच्छेद 2

यह संघ और इसके सदस्य अनुच्छेद 1 में बताए गये प्रयोजनों को पूरा करने की दृष्टि से निम्नलिखित सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेंगे :

  • 1. यह संघ सभी सदस्यों की समान प्रभुसत्ता के सिद्धान्त पर आधारित है।
  • 2. प्रस्तुत घोषणा पत्र के अनुसार सदस्यों नेअपने ऊपर जिन दायित्वों का भार लिया है उन्हें सभी ईमानदारी के साथ निभाएंगे जिससे कि उन सभी सदस्यों को निश्चित रूप से संघ का सदस्य बनने के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले अधिकार और लाभ प्राप्त हो सकें।
  • 3. सभी सदस्य अपने अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को शान्तिपूर्ण साधनों से इस प्रकार तय करेंगे कि विश्व की सुरक्षा, शान्ति और न्याय को किसी प्रकार का खतरा न हो।
  • 4. सभी सदस्य अपने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में किसी राज्य की क्षेत्रीय अखण्डता, या राजनीतिक स्वाधीनता के विरुद्ध न तो धमकी देंगे, न ही बल प्रयोग करेंगे और न कोई ऐसा कार्य करेंगे जो किसी अन्य रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों के प्रतिकूल हो।
  • 5. संयुक्त राष्ट्र प्रस्तुत घोषणा पत्र के अनुंसार जो भी कार्रवाई करेगा उसमें सभी सदस्य हर प्रकार की सहायता प्रदान करेंगे जिसके विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कोई निवारक अथवा बाध्य कार्रवाई कर रहा हो।
  • 6. संघ इस बात की निश्चित व्यवस्था करेगा कि जहाँ तक अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक हो, वे राज्य भी जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य नहीं है, इन्हीं सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करें।
  • 7. प्रस्तुत घोषणा पत्र में जो कुछ भी कहा गया है वह संयुक्त राष्ट्र को किसी भी राज्य के ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं प्रदान करेगा, जो मूलतः उसके आन्तरिक अधिकार क्षेत्र में आते हों, और न ही वह सदस्य राज्यों से अपने ऐसे मामले प्रस्तुत घोषणा पत्र के अधीन निपटाने क लिए संघ के समक्ष प्रस्तुत करने की अपेक्षा करेगायपरन्तु सातवें अध्याय में किसी राज्य को किसी कार्य के लिए बाघ्य करने के जो उपाय बताए गए हैं, उनको लागू किए जाने पर इस सिद्धान्त का कोई असर नहीं पड़ेगा।

अध्याय 2

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सदस्यता
अनुच्छेद 3

संयुक्त राष्ट्र के मूल सदस्य वे राज्य होंगे जिन्होंने अन्तराष्ट्रीय संगठन पर सैन फ्रैंसिस्को में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भागलिया है अथवा जिन्होंने पहले 1 जनवरी, 1942 की संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पर हस्ताक्षर किए हैं और उसके पश्चात् जिन्होंने प्रस्तुत घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करके उसे अनुच्छेद 110 के अनुसार सत्यापित किया है।

अनुच्छेद-4
  • 1. अन्य ऐसे समस्त शान्तिप्रिय राज्य जो प्रस्तुतघोषणा पत्र में सौंपे गए दायित्वों को स्वीकार करते हों, और जो संघ के विचार में इस दायित्व को पूरा करने के योग्य और इच्छुक हों, संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य बन सकते हैं।
  • 2. ऐसे किसी राज्य को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता में प्रवेश सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा के निर्णय के द्वारा प्राप्त होगा।
अनुच्छेद 5

संयुक्त राष्ट्र के ऐसे किसी सदस्य को, जिसके विरुद्ध सुरक्षा परिषद् द्वारा कोई निवारक या बाध्यकारी कार्रवाई की गई हो, महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर सदस्यता के अधिकारों या विशेषाधिकारों का प्रयोग करने से निलम्बित किया जा सकता है। इन अधिकारों और विशेषाधिकारों के प्रयोग का अधिकार सुरक्षा परिषद् द्वारा पुनः प्रदान किया जा सकता है।

अनुच्छेद 6

संयुक्त राष्ट्र संघ का कोई सदस्य यदि प्रस्तुतघोषणा पत्र के सिद्धान्तों का बार-बार उल्लंघन करता रहा है, सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा संघ से उसका निष्कासन कर सकती है।

अध्याय तीन

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अंग
अनुच्छेद 7
  • 1. निम्नलिखित संस्थाएं संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों के रूप में स्थापित की गई हैं - महासभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक और सामाजिक परिषद्, न्यासिता परिषद् अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय, और सचिवालय।
  • 2. प्रस्तुत घोषणा पत्र के अनुसार आवश्यकता होने पर सहायक अंग भी स्थापित किए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 8

संयुक्त राष्ट्र अपने मुख्य या सहायक अंगों में स्त्रियों और पुरुषों की किसी भी हैसियत से और समानता के आधार पर भाग लेने की पात्रता पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाएगा।

अध्याय चार

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महासभा
गठन
अनुच्छेद 9
  • 1. महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य रहेंगे।
  • 2. महासभा में किसी भी सदस्य देश के पांच से अधिक प्रतिनिधि नहीं रहेंगे।

कार्य और शक्तियाँ :

अनुच्छेद 10

प्रस्तुत घोषणा पत्र के अधिकार क्षेत्र में आने वाली या संयुक्त राष्ट्र के किसी भी अंग की उन शक्तियों और कार्यां से, जिनकी व्यवस्था प्रस्तुत घोषणा पत्र में की गई है, सम्बन्धित किसी भी प्रश्न या किसी भी मामले पर महासभा विचार कर सकती है, और अनुच्छेद 12 में की गई व्यवस्था के अतिरिक्त, इस प्रकार के किसीभी प्र्रश्न या मामले के संबंध में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से या सुरक्षा परिषद् से, या दोनों से ही सिफारिश कर सकती है।

अनुच्छेद 11
  • 1. महासभा अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने की दृष्टि से वांछित सहयोग के सामान्य सिद्धान्तों पर विचार कर सकती है जिनमें निरस्त्रीकरण और शस्त्रनियन्त्रण का नियमन करने वाले सिद्धान्त भी सम्मिलित हैं और इसके साथ ही महासभा ऐसे सिद्धान्तों के संबंध में सदस्यों या सुरक्षा परिषद् या दोनों से ही सिफारिश भी कर सकती है।
  • 2. महासभा संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के द्वारा या सुरक्षा परिषद् अथवा किसी ऐसे राज्य के द्वारा जो अनुच्छेद 35 के पैरा 2 के अनुसार संयुक्त राष्ट्र का सदस्य न हो, प्रस्तुत किए गये अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने से सम्बन्धित किसी भी प्रश्न पर विचार कर सकती है, और अनुच्छेद 12 में की गई व्यवस्था के अतिरिक्त ऐसे किसी भी प्रश्न के सम्बन्ध में सम्बन्धित राष्ट्र या राष्ट्रों या सुरक्षा परिषद् या दोनों से ही सिफारिश कर सकती है। महासभा ऐसे किसी भी प्रश्न को, जिसपर कार्रवाई आवश्यक है, विचार-विमर्श के पूर्व या पश्चात्, सुरक्षा परिषद् के पास विचारार्थ अवश्य भेजेगी।
  • 3. महासभा सुरक्षा परिषद् का ध्यान उन परिस्थितियों की और आकर्षित कर सकती है जिनसे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न होने की सम्भावना हो।
  • 4. इस अनुच्छेद में महासभा की जो शक्तियाँनिश्चित की गई हैं उनसे अनुच्छेद 10 का सामान्य विषय क्षेत्र सीमित नहीं होगा।
अनुच्छेद 12
  • 1. प्रस्तुत घोषणा पत्र में निर्दिष्ट कार्यों के अनुसार जब सुरक्षा परिषद् किसी झगड़े या परिस्थिति के सम्बन्ध में कोई कार्रवाई कर रही हो तो जब तक सुरक्षा परिषद् महासभा में ऐसा करने का अनुरोध नहीं करे तब तक महासभा उस झगड़े या परिस्थिति के सम्बन्ध में कोई सिफारिश नहीं करेगी।
  • 2. महासचिव सुरक्षा परिषद् की सहमति से महासभा को उसके प्रत्येक अधिवेशन के समय अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने से सम्बन्धित ऐसे किसी भी मामले की सूचना देना जिसपर कि सुरक्षा परिषद् कार्रवाई कर रही हो, और इसी प्रकार यदि महासभा का अधिवेशन न हो रहा हो, तो जैसे ही इस प्रकार के मामले पर सुरक्षा परिषद् कार्रवाई कर चुके वह महासभा को यासंयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को इस संबंध में सूचना देगा।
अनुच्छेद 13

महासभा निम्नलिखित प्रयोजनों के लिए अध्ययन की व्यवस्था करेगी और उनपर सिफारिश करेगीः

  • 1. (क) राजनीतिक क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोगबढ़ाना और अन्तर्राष्ट्रीय विधि के क्रमिक विकास और उसके संहिताकरण को प्रोत्साहन देना।

(ख) आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना और जाति, लिंग, भाषा याधर्म पर आधारित भेदभाव के बिना सबके लिए मानवाधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं की प्राप्ति में सहयोग देना।

  • 2. ऊपर पैरा (ख) में उल्लिखित मामले के सम्बन्ध में महासभा के जो अतिरिक्त दायित्व कार्य और शक्तियाँ हैं वेअध्याय 9 और 10 में निर्दिष्ट हैं।
अनुच्छेद 14

किसी भी कारण से उत्पन्न किसी ऐसी परिस्थिति को जिससे महासभा की राय में राष्ट्रों के सामान्य कल्याण या मित्रतापूर्णसम्बन्धों को ठेस पहुँचने की सम्भावना हो, महासभा अनुच्छेद 12 के उपबन्धों केअधीन शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिए उपायों की सिफारिश कर सकती है। इनपरिस्थितियों में प्रस्तुत घोषणा पत्र के जिन उपबन्धों में संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धान्तों को निर्दिष्ट किया गया है उनका उल्लंघन करने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली स्थितियां भी शामिल है।

अनुच्छेद 15
  • 1. महसभा को सुरक्षा परिषद् से वार्षिक औरविशेष रिपोर्टें प्राप्त होंगी जिनपर वह विचार करेगी। इन रिपोर्टां में उन कार्रवाइयों का विवरण रहेगा जिन्हें सुरक्षा परिषद् ने अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए करने का निश्चय कर लिया है या कर चुकी है।
  • 2. महासभा को संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों से रिपोर्टें प्राप्त होंगी और वह उनपर विचार करेगी।
अनुच्छेद 16

महासभा अन्तर्राष्ट्रीय न्यासधारिता पद्धति के सम्बन्ध में ऐसा कार्य करेगी जो बारहवें और तेरहवें अध्याय में निर्दिष्ट किए गये हैं, इनमें ऐसे क्षेत्रों के लिए न्यासधारिता समझौतों का अनुमोदन भी शामिल है जिन्हें सामयिक महत्व के क्षेत्रों के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया है।

अनुच्छेद 17
  • 1. महासभा संघ के बजट पर विचार करेगी और उसका अनुमोदन करेगी।
  • 2. संघ का व्यय महासभा द्वारा निर्धारित अनुपात के अनुसार सभी सदस्य राष्ट्र वहन करेंगे।
  • 3. महासभा अनुच्छेद 57 में उल्लिखित विशेष अभिकरणों के साथ हुए वित्त और बजट सम्बन्धी सभी समझौतों पर विचार करेगी और सम्बन्धित अभिकरणों को अपनी सिफारिशें देने की दृष्टि से इस प्रकार के विशेष अभिकरणों के प्रशासन सम्बन्धी बजटों की जांच करेगी।

मतदान :

अनुच्छेद 18
  • 1. महासभा के प्रत्येक सदस्य का एक मत होगा।
  • 2. महत्वपूर्ण प्रश्नों पर महासभा के निर्णय उस समय उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से किए जाएंगे। इन प्रश्नों में निम्नलिखित बातें शामिल होंगी : अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने के सम्बन्ध में सिफारिशें, सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का निर्वाचन, आर्थिक और सामाजिक परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन, अनुच्छेद 86 पैरा 1 (ग) के अनुसार न्यासिता परिषद् के सदस्यों का निर्वाचन, संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्यों का प्रवेश, सदस्य के अधिकारों और विशेषाधिकारों का निलम्बन, सदस्यों का निष्कासन, न्यासधारिता पद्धति के परिचालन से सम्बन्धित प्रश्न तथा बजट संबंधी प्रश्न।
  • 3. अन्य प्रश्नों का, जिनमें अतिरिक्त प्रकार सेऐसे प्रश्न भी शामिल हैं जिनके निर्णय दो-तिहाई बहमुत से किए जाने हैं, निर्णयउपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा।
अनुच्छेद 19

संयुक्त राष्ट्र का वह सदस्य जिसके नाम उसके द्वारा संघ को दिया जाने वाला अंशदान बकाया है, उस दशा में महासभा में मतदान करने का अधिकारी नहीं होगा, जबकि उसके नाम बकाया राशि पिछले पूरे दो वर्षां में उसके द्वारा देय अंशदान की राशि के बराबर या उससे अधिक है। फिर भी, यदि महासभा का यह विश्वास हो कि सम्बन्धित सदस्य ऐसे कारणों से अंशदान चुकाने में असमर्थ रहा जो उसके वश के बाहर हैं तो वह उस सदस्य को मतदान करने की अनुमति प्रदान कर सकती है।

क्रियाविधि :

अनुच्छेद 20

महासभा की बैठकें नियमित वांर्षक अधिवेशनों में तथा अवसरोचित विशेष अधिवेशनों में हुआ करेंगी। विशेष अधिवेशन सुरक्षा परिषद् या संयुक्त राष्ट्र के अधिसंख्यक सदस्यों के अनुरोध पर महासचिव द्वारा बुलाए जाएंगे।

अनुच्छेद 21

महासभा स्वयं अपने क्रियाविधि-सम्बन्धी नियम बनाएगी। वह प्रत्येक अधिवेशन के लिए अपने अध्यक्ष का चुनाव करेगी।

अनुच्छेद 22

अपने कार्यां को सम्पन्न करने के लिए महासभा ऐसे सहायक अंगों की स्थापना कर सकेगी जिन्हें वह आवश्यक समझती हो।

अध्याय पाँच

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सुरक्षा परिषद्
गठन
अनुच्छेद 23
  • 1. सुरक्षा परिषद् में संयुक्त राष्ट्र के पन्द्रह सदस्य होंगे। चीन गणराज्य, फ्रांस, सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ, यूनाइटेड किंगडम ऑव ग्रेट ब्रिटेन ऐंड नार्दर्न आयरलैण्ड तथा संयुक्त राज्य अमेरीका सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य होंगे। महासभा संयुक्त राष्ट्र के दस अन्य सदस्यों का चुनाव सुरक्षा परिषद् की अस्थायी सदस्यता के लिए करेगी और ऐसा करते समय विशेष रूप से ध्यान, सर्वप्रथम, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखने तथा संघ के अन्य प्रयोजनों की पूर्ति में संयुक्त राष्ट्र को सदस्यों के योगदान पर दिया जाएगा और साथ ही समान भौगोलिक वितरण का भी ध्यान रखा जाएगा।
  • 2. सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्य दो वर्षों की अवधि के लिए चुने जाएंगे। सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या छः से बढ़कर दस हो जाने पर सदस्यों के प्रथम निर्वाचन के अवसर पर चार अतिरिक्त सदस्यों में से दो सदस्य एक वर्ष की अवधि के लिए चुने जाएंगे। निवर्तमान सदस्य राष्ट्र तुरन्त पुनः चुनाव के लिए खड़े नहीं हो सकेंगे।
  • 3. सुरक्षा परिषद् के प्रत्येक सदस्य राष्ट्र का एक प्रतिनिधि होगा।
अनुच्छेद 24

कार्य और षक्तियां

  • 1. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने का प्राथमिक उत्तरदायित्व सुरक्षा परिषद् को सौंपते हैं जिससे यह निश्चित हो जाए कि संयुक्त राष्ट्र तत्काल प्रभावी कार्रवाई कर सकेगा और इस विषय पर सहमति प्रदान करते हैं कि इस उत्तरदायित्व के अधीन अपने कर्तव्यों का पालन करते समय सुरक्षा परिषद् उनकी ओर से ही कार्य करती है।
  • 2. इन कत्तर्व्यों के पालन में सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगी। इन कत्तर्व्यों का पालन करने के लिए सुरक्षा परिषद् को जो विशिष्ट अधिकार प्रदान किए गये हैं वे छठे, सातवें आठवें और बारहवें अध्यायों में निर्दिष्ट किए गये हैं।
  • 3. सुरक्षा परिषद् महासभा के विचारार्थ वार्षिक और आवश्यकतानुसार विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत किया करेगी।
अनुच्छेद 25

संयुक्त राष्ट्र के सदस्य प्रस्तुत घोषणा पत्रके अनुसार सुरक्षा परिषद् के निर्णयों को स्वीकार करने और उनका पालन करने के लिए सहमत हैं।

अनुच्छेद 26

इस उद्देश्य के लिए अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा स्थापना करने और उसको बनाये रखने के कार्य को बढ़ावा मिले, परन्तु इसके लिए शस्त्रों के निर्माण पर मानव शक्ति का और आर्थिक साधनों का कम से कम प्रयोग किया जाए, सुरक्षा परिषद् का यह उत्तरदायित्व होगा कि वह शस्त्रों के नियन्त्रण की दृष्टि से एक तंत्र की स्थापना करने की योजनाओं की रूपरेखा संयुक्त राष्ट्र के सामने पेश करे। यह कार्य सुरक्षा परिषद् अनुच्छेद 47 में निर्दिष्ट सैन्य स्टाफ समिति की सहायता से करेगी।

मतदान :

अनुच्छेद 27
  • 1. सुरक्षा परिषद् के प्रत्येक सदस्य का एक मत होगा।
  • 2. क्रियाविधि सम्बन्धी मामलों पर सुरक्षा परिषद् के निर्णय नौ सदस्यों के स्वीकारात्मक मत से किए जायेंगे।
  • 3. अन्य सभी मामलों में सुरक्षा परिषद् के निर्णय स्थायी सदस्यों के समर्थक मत सहित नौ सदस्यों के स्वीकारात्मक मत से किए जाएंगे; किन्तु ष्षर्त यह होगी कि छठे अध्याय और अनुच्छेद 52 के पैरा 3 के अधीन विवाद में सम्मिलित कोई भी पक्ष मतदान नहीं करेगा।

क्रियाविधियाँ :

अनुच्छेद 28
  • 1. सुरक्षा परिषद् का गठन इस प्रकार किया जाएगा कि वह निरन्तर कार्य करती रह सके। इस प्रयोजन के लिए सुरक्षा परिषद् के प्रत्येक सदस्य का प्रतिनिधि हर समय संघ-स्थान पर उपस्थित रहेगा।
  • 2. सुरक्षा परिषद् की बैठकें समय-समय पर हुआ करेंगी, जिनमें किसी भी सदस्य राष्ट्र का प्रतिनिधित्व यदि वह राष्ट्र चाहे तो,उसकी सरकार के किसी सदस्य द्वारा अथवा विशेष रूप से मनोनीत किसी अन्य प्रतिनिधि द्वारा किया जा सकता है।
  • 3. सुरक्षा परिषद् संघ-स्थान के अतिरिक्त अन्य ऐसे स्थानों पर अपनी बैठकें कर सकती है, जहाँ उसके विचार में कार्य में सबसे अधिक सुविधा होगी।
अनुच्छेद 29

सुरक्षा परिषद् ऐसे सहायक अंगों की स्थापना कर सकती है जिन्हें वह अपने कार्यां के निष्पादन के लिए आवश्यक समझती हो।

अनुच्छेद 30

सुरक्षा परिषद् अपनी क्रियाविधि के नियम और अपने अध्यक्ष के चुनाव की पद्धति स्वयं निश्चित करेगी।

अनुच्छेद 31

संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य, जो सुरक्षा परिषद् का सदस्य न हो, सुरक्षा परिषद् के सामने उठाये गये किसी भी प्रश्न पर होने वाली बहस में उस समय बिना मतदान के अधिकार के भाग ले सकता है, जब सुरक्षा परिषद् के विचार में उस सदस्य राष्ट्र के हित विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हों।

अनुच्छेद 32

जब सुरक्षा परिषद् के सामने कोई विवाद विचारार्थ प्रस्तुत हो तो उस विवाद में यदि एक पक्ष संयुक्त राष्ट्र का कोई ऐसा सदस्य हो जो सुरक्षा परिषद् का राष्ट्र सदस्य नहीं है, या कोई ऐसा राज्य हो, जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्यनहीं है तो उसे विवाद से सम्बन्धित बहस में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया जाएगा, परन्तु उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा। सुरक्षा परिषद् ऐसे राज्य के द्वारा, जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य न हो, बहस में भाग लेने पर ऐसी शर्तें लगा सकती है जिन्हें वह न्यायोचित समझती है।

अध्याय छः

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विवादों का शान्तिपूर्ण निपटारा
अनुच्छेद 33
  • 1. किसी ऐसे विवाद से, जिसके बने रहने से विश्व की शान्ति और सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होने की सम्भावना हो, तो सम्बन्धित सभी पक्ष उस विवाद को सबसे पहले बातचीत, पूछताछ, मध्यस्थता, समझौता, विवाचन, न्यायिक समझौते या क्षेत्रीय अभिकरणों या व्यवस्थाओं याअपनी पसन्द के अन्य शान्तिपूर्ण साधनों के माध्यम से सुलझाने की कोशिश करेंगे।
  • 2. सुरक्षा परिषद् जब आवश्यक समझेगी विवाद से सम्बन्धित पक्षों को अपने विवाद ऐसे साधनों से निपटाने के लिए कहेगी।
अनुच्छेद 34

सुरक्षा परिषद् किसी ऐसे विवाद या परिस्थिति की जांच-पड़ताल कर सकती है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय वैमनस्य या विवाद उत्पन्न होने की सम्भावना हो। जांच-पड़ताल का उद्देश्य यह पता लगाना होगा कि यदि वह विवाद या परिस्थिति जारी है तो क्या उससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को खतरा पैदा होने की सम्भावना है।

अनुच्छेद 35
  • 1. अनुच्छेद 34 में जिस प्रकार के विवादों और परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, उस प्रकार के किसी भी विवाद या परिस्थिति की ओर संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य सुरक्षा परिषद् का ध्यान आकर्षित कर सकता है।
  • 2. कोई भी राष्ट्र जो संयुक्त राष्ट्र का सदस्य न हो, सुरक्षा परिषद् या महासभा का ध्यान ऐसे विवाद की ओर आकर्षित कर सकता है, जिससे कि उसका सम्बन्ध हो, परन्तु इसके लिए उस विवाद के समाधान के लिए पहले उन सभी दायित्वों को स्वीकार कर लेना होगा जो शान्तिपूर्ण समझौते के लिए प्रस्तुत घोषणा पत्र में निर्दिष्ट किये गये हैं।
  • 3. इस अनुच्छेद के अधीन जिन मामलों की ओर महासभा का ध्यान आकर्षित कराया जायेगा, उनके सम्बन्ध में उनकी कार्यवाही अनुच्छेद 11 और 12 के अधीन की जायेगी।
अनुच्छेद 36
  • 1. जिस प्रकार के विवाद का उल्लेख अनुच्छेद 33 में किया गया है उस प्रकार के विवाद या उसी प्रकार की किसी परिस्थिति के उत्पन्न होने पर विवाद की किसी भी अवस्था में, सुरक्षा परिषद् उपयुक्तकार्यवाही या समझौते के उपायों की सिफाशि करेगी।
  • 2. सुरक्षा परिषद् ऐसी किसी कार्यवाही को भी ध्यान में रखेगी जिसे विवाद से सम्बन्धित पक्ष विवाद को सुलझाने केलिए अपना चुके हों।
  • 3. इस अनुच्छेद के अधीन सिफारिशें करते समय सुरक्षा परिषद् इस बात को भी ध्यान में रखेगी कि सामान्यतः न्यायिकविवादों के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के उपबन्धों के अनुसार उसी न्यायालय में भेज दिया जाएगा।
अनुच्छेद 37
  • 1. अनुच्छेद 33 में जिस प्रकार के विवादों का उल्लेख किया गया है यदि उस प्रकार के किसी विवाद से सम्बन्धित पक्ष अपने विवाद को उस अनुच्छेद में निर्दिष्ट साधनों के द्वारा नहीं सुलझा पाते तो वे उसे सुरक्षा परिषद् में भेज देंगे।
  • 2. यदि सुरक्षा परिषद् के विचारों में विवाद केजारी रहने से वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न होने की सम्भावना हो तो वह यह निश्चित करेगी कि अनुच्छेद 36 के अधीन कोई कार्यवाही कीजाये या समझौते केलिए ऐसी शर्तों की सिफारिश की जाये जो उसके विचार में उचित हों।
अनुच्छेद 38

यदि किसी विवाद से सम्बन्धित सभी पक्ष सुरक्षा परिषद् से अनुरोध करें तो वह शान्तिपूर्ण ढंग से विवाद को सुलझाने की इस दृष्टि से सिफारिशें कर सकती है बशर्तें अनुच्छेद 33 से 37 तक के उपबन्धों पर उनका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

अध्याय सात

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शान्ति को खतरे में डालने वाले मामलों, शान्ति भंग और आक्रामक कार्यों के सम्बध में कार्रवाई
अनुच्छेद 39

सुरक्षा परिषद् ष्षान्ति के लिए खतरे, शान्तिभंग की स्थिति अथवा आक्रामक कार्य के अस्तित्व के सम्बन्ध में निर्णयकरेगी और अन्तर्राष्ट्रीय शान्तिऔर सुरक्षा को बनाये रखने या पुनः स्थापित करने के लिए सिफारिशें करेगी अथवा वह निश्चित करेगी कि अनुच्छेद 41 या 42 के अनुसार क्या कार्रवाइयाँ की जाएं।

अनुच्छेद 40

किसी स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए सुरक्षा परिषद् सिफारिशें करने या अनुच्छेद 39 में की गई व्यवस्था के अनुसार कार्रवाई करने के पूर्व, सभी सम्बन्धित पक्षों से ऐसी अस्थायी कार्रवाइयां करने के लिए कहेगी जो उसके विचार में आवश्यक या वांछनीय हों। ऐसी जो भी अन्तःकालीन कार्रवाई की जायेगी, उससे सम्बन्धित पक्षों से अधिकारों, दावों या स्थिति पर कोई ऐसा प्रभाव नहीं पड़ेगा जो उनके हितों के प्रतिकूल हो। समय-समय पर इस बात का ध्यान रखेगी कि इस प्रकार की अन्तःकालीन कार्रवाइयों के अमल में किसी प्रकार की चूक तो नहीं हुई।

अनुच्छेद 41

सुरक्षा परिषद् अपने निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए ऐसे उपायों के सम्बन्ध में निर्णय कर सकती है जिसमें सशस्त्र, शक्ति का प्रयोग सम्मिलित नहीं होगा और इन उपायों को कार्यान्वित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों से अनुरोध कर सकती है। इन उपायों में आर्थिक संबंधों और रेल, समुद्र, वायु, डाक,तार, रेडियो तथा अन्य संचार साधनों का पूर्ण अथवा आंशिक अवरोध तथा राजनयिक सम्बन्धों का विच्छेद आदि भी हो सकता है।

अनुच्छेद 42

यदि सुरक्षा परिषद् यह विचार करती है किअनुच्छेद 41 में जिन उपायों की व्यवस्था की गई है वे अपर्याप्त होंगे अथवा अपर्याप्त प्रमाणित हुए हैं तो अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाये रखने के लिए वायु, समुद्र, अथवा थल सेनाओं के माध्यम से वह आवश्यकतानुसार कार्यवाही कर सकती है। इन कार्यवाहियों में संयुक्त राष्ट्र सदस्यों द्वारा वायु, समुद्र या थल सेनाओं के माध्यम से प्रदर्शन, नाकेबंदी, तथा अन्य कार्यवाहियां ष्शामिल हैं।

अनुच्छेद 43
  • 1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य यह विश्वास दिलाते हैं कि सुरक्षा परिषद् के अनुरोध पर और विशेष समझौते अथवा समझौतों के अनुसार वे सुरक्षा परिषद् को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखने के विचार से आवश्यक सशस्त्र सेनायें, सहायता और सुविधायें मार्गाधिकारों सहित उपलब्ध कराएंगे।
  • 2. इस प्रकार के समझौते अथवा समझौतों सेसेनाओं की संख्या और प्रकार, उनकी तैयारी की अवस्था और सामान्य अवस्थिति और प्रदान की जाने वाली सुविधाओं तथा सहायता की प्रकृति नियंत्रित होगी।
  • 3. सुरक्षा परिषद् द्वारा सूत्रपात किये जाने पर समझौते अथवा समझौतों पर बातचीत यथाशीघ्र होगी। इनपर सुरक्षा परिषद् और सदस्यों के बीच निश्चय किया जायेगा बशर्तें कि अपनी-अपनी संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुसार हस्ताक्षर करने वाले राज्य इनका अनुसमर्थन कर दें।
अनुच्छेद 44

जब सुरक्षा परिषद् शक्ति के प्रयोग का निर्णय कर लेगी तो वह एक ऐसे सदस्य से जो कि परिषद् में स्थान नहीं रखता है, अनुच्छेद 43 में अंगीकार किये गये दायित्वों की पूर्ति के लिए सशस्त्र सेनायें प्रदान करने के लिए निवेदन करने के पूर्व यदि वह सदस्य चाहे तो उस सदस्य को सुरक्षा परिषद् में सदस्य की सशस्त्र सेनाओं के सैन्यदलों को कार में लाने के सम्बन्ध के निर्णयों में भाग लेने के लिए आमन्त्रित कर सकती है।

अनुच्छेद 45

संयुक्त राष्ट्र को तात्कालिक सैनिक कार्यवाहीकरने के सम्बन्ध में समर्थ बनाने के लिए सदस्यगण संयुक्त अन्तर्राष्ट्रीय कार्यवाही लागू करने के हेतु राष्ट्रीय वायु सेना के सैन्यदलों को तत्काल सुलभ करने का आयोजन करेंगे। इन सैन्य दलों की शक्ति और तैयारी की अवस्था तथा उनके द्वारा की जाने वाली संयुक्त कार्यवाही की योजनाओं का निर्धारण अनुच्छेद 43 में उल्लिखित विशेष समझौते अथवा समझौतों में निश्चित परिसीमाओं के अन्तर्गत सुरक्षा परिषद् द्वारा सैन्य स्टाफ समिति की सहायता से किया जायेगा।

अनुच्छेद 46

सशस्त्र सेनाओं का उपयोग करने की आयोजनाएं सैन्य रक्षक समिति की सहायता से सुरक्षा परिषद् द्वारा बनायी जाएंगी।

अनुच्छेद 47
  • 1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाये रखने के लिए, सुरक्षा परिषद् द्वारा उपयोग में लाने के लिए निर्धारित सेनाओं के प्रयोग और उसकी कमान के सम्बन्ध में, शस्त्रों के नियमन के हेतु और संभावित निरस्त्रीकरण के विषय में सुरक्षा परिषद् की सैन्य आवश्यकताओं से संबद्ध सभी प्रश्नों के संबंध में सुरक्षा परिषद् को परामर्श और सहायता प्रदान करने के लिए एक सैन्य स्टाफ समिति की नियुक्ति की जायेगी।
  • 2. सैन्य स्टाफ समिति के अन्तर्गत सुरक्षा परिषद् के स्वायी सदस्यों के चीफ आफ स्टाफ उनके प्रतिनिधि होंगे। संयुक्त राष्ट्र किसी भी ऐसे सदस्य को जिसे समिति में स्थायी रूप से प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, समिति अपने से उस स्थिति में सम्बद्ध करेगी जब समिति को अपने दायित्व को योग्यतापूर्वक पूर्ण करने के लिए समिति के कार्य में योग देने के हेतु उस सदस्य की आवश्यकता होगी।
  • 3. सुरक्षा परिषद् के अधिकार में जो भी सशस्त्र सेना रखी जाएगी उसके सामयिक निर्देशन का दायित्व सुरक्षा परिषद् केअधीन, सैन्य स्टाफ समिति पर होगा।
  • 4. सुरक्षा परिषद् की अनुमति से और उपयुक्तप्रादेशिक अभिकरणों से परामर्श करने के बाद सैन्य स्टाफ समिति प्रादेशिक उपसमितियाँ स्थापित कर सकती है।
अनुच्छेद 48
  • 1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा के संबंध में सुरक्षा परिषद् द्वारा किये गये निर्णयों के कार्यान्वयन के हेतु संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों अथवा उनमें से कुछ के द्वारा, जैसा भी सुरक्षा परिषद् निर्धारित करेगी, अपेक्षित कार्यवाही की जायेगी।
  • 2. ऐसे निर्णयों का अनुपालन संयुक्त राष्ट्र केसदस्यगण प्रत्यक्ष रूप में करेंगे और अपने कार्यकलाप के माध्यम से उन अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के द्वारा करेंगे जिनके वे सदस्य हैं।
अनुच्छेद 49

सुरक्षा परिषद् द्वारा निश्चित उपायों को कार्यान्वित करने के हेतु संयुक्त राष्ट्र के सदस्यगण मिलजुल कर सहायता प्रदान करने में योग देंगे।

अनुच्छेद 50

यदि सुरक्षा परिषद् द्वारा किसी राज्य के विरुद्ध निवारक अथवा प्रवर्तन सम्बन्धी कार्यवाही की जाती है तो किसी भी अन्य ऐसे राज्य को जो सुरक्षा परिषद् का सदस्य हो अथवा न हो उल्लिखित कार्यवाही के कार्यान्वयन के फलस्वरूप उत्पन्न विशेष आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो उसे इन समस्याओं के समाधान के लिए सुरक्षा परिषद् से परामर्श करने का अधिकार होगा।

अनुच्छेद 51

संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के विरुद्ध सशस्त्र आक्रमण होने की स्थिति में प्रस्तुत घोषणा पत्र से वैयक्तिक अथवा सामूहिक आत्मरक्षा के सहज अधिकार को तब तक कोई क्षति नहीं पहुंचेगी जब तक सुरक्षा परिषद् अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक कार्यवाही नहीं करती। आत्मरक्षा के इस अधिकार का प्रयोग करते हुए सदस्य जो उपाय अपनायें उनकी तुरन्त रिपोर्ट सुरक्षा परिषद् को की जाएगी और इससे इस घोषणा पत्र के अधीन सुरक्षा परिषद् के इसी अधिकार और उत्तरदायित्व पर किसी प्रकार का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा कि वह किसी भी समय अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने या उसके पुनः स्थापना के लिए आवश्यक कार्यवाही न करे।

अध्याय आठ

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प्रादेशिक प्रबन्ध
अनुच्छेद 52
  • 1. वर्तमान घोषणा पत्र की किसी भी व्यवस्था से, अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने से संबद्ध क्षेत्रीय कार्यवाही के लिए उपयुक्त मामलों के सम्बन्ध में कार्यवाही करने के लिए क्षेत्रीय प्रबन्धों या अभिकरणों की स्थिति में बाधा नहीं आएगी किन्तु शर्त यह होगी कि इस प्रकार के प्रबन्ध अथवा अभिकरण और उनके कार्यकलाप संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धान्तों के अनुरूप हों।
  • 2. इस प्रकार के प्रबन्धों में शामिल होने अथवा इस प्रका र के अभिकरणों की स्थापना करने वाले संयुक्त राष्ट्र के सदस्य स्थानीय विवादों को सुरक्षा परिषद् में ले जाने से पहले इन प्रादेशिक प्रबन्धों अथवा प्रादेशिक अभिकरणों द्वारा उनके शान्ति निपटान का हर संभव प्रयत्न करेंगे।
  • 3. सुरक्षा परिषद् इस बात को प्रोत्साहन देगी कि या तो संबद्ध राज्यों की प्रेरणा पर अथवा सुरक्षा परिषद् से सूचना प्राप्त होने पर स्थानीय विवादों का इस प्रकार के प्रादेशिक प्रबन्धों अथवा प्रादेशिक अभिकरणों के माध्यम से शान्तिपूर्ण ढंग से निपटान किया जाए।
  • 4. इस अनुच्छेद से अनुच्छेद 34 और 35 के लागू होने के मार्ग में कोई बाधा नहीं पडे़गी।
अनुच्छेद 53
  • 1. सुरक्षा परिषद् अपने अधिकार के अन्तर्गत प्रवर्तनकारी कार्यवाही करने के लिए, जहाँ कहीं उपयुक्त होगा, इन प्रादेशिक प्रबन्धों और संस्थाओं को उपयोग में लायेगी। किन्तु इस अनुच्छेद के पैरा 2 में निर्दिष्ट किसीभी शत्रु राज्य के विरुद्ध अपनाए गए अपादस्वरूप उपायों को छोड़कर, प्रादेशिक प्रबंधों के अधीन अथवा प्रादेशिक अभिकरणों द्वारा कोई भी प्रवर्तनकारी कार्यवाही सुरक्षा परिषद् द्वाराप्राधिकृत किए बिना नहीं की जाएगी। इन अपवादस्वरूप उपायों की व्यवस्था अनुच्छेद 107 के अनुसरण अथवा प्रादेशिक प्रबन्धों में होगी जो कि किसी भी ऐसे शत्रु राज्य द्वारा फिर से आक्रमण नीति अपनाए जाने पर उस समय तक काम में लाए जायेंगे जब तक कि सम्बद्ध सरकारों के अनुरोध पर, संयुक्त राष्ट्र पर ऐसे राज्य को आगे की आक्रामक कार्यवाही को रोकने का उत्तरदायित्व न डाल दिया जाए।
  • 2. इस अनुच्छेद के पैरा 1 में प्रयुक्त शत्रु राज्य शब्द किसी भी ऐसे राज्य पर लागू होता है जो कि इस घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करनेवालों में से किसी का भी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान शत्रु रहा हो।
अनुच्छेद 54

सुरक्षा परिषद् को सभी अवसरों पर उन कार्यकलाप की पूरी सूचना दी जाएगी जो अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए प्रादेशिक प्रबन्धों के अधीन अथवा प्रादेशिक अभिकरणों द्वारा किए गए अथवा किए जाने वाले हों।

अध्याय नौ

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अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक सहयोग
अनुच्छेद 55

व्यक्तियों के समान अधिकारों और आत्मनिर्णय के सिद्धान्त के सम्मान पर आधारित राष्ट्रों के बीच शान्तिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के लिए आवश्यक स्थायित्व और कल्याणकारी स्थितियों की स्थापना के विचार से संयुक्त राष्ट्र निम्नलिखित का संवर्धन करेगा :

(क) रहन-सहन के उच्च स्तर, पूर्ण रोजगार और आर्थिक और सामाजिक प्रगति तथा विकास की परिस्थिति,

(ख) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य संबन्धी और सम्बद्ध समस्याओं का समाधान और अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक और शैक्षिक सहयोग, तथा

(ग) मानवाधिकारों तथा मूल-स्वतंत्रताओं के लिए जाति, लिंग, भाषा अथवा धर्म के भेदभाव को छोड़कर सामान्य सम्मान और उनका अनुपालन।

अनुच्छेद 56

सभी सदस्य इस बात के लिए वचन देते हैं किवे अनुच्छेद 55 में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए संघ के सहयोग से संयुक्त रूपसे अथवा पृथक रूप से कार्यवाही करेंगे।

अनुच्छेद 57
  • 1. अन्तर्राज्यीय समिति द्वारा स्थापित विभिन्न विशिष्ट अभिकरण जिनका व्यापक अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व है और जिनका उल्लेख उनके मूल संलेख में है - उनका आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी एवं अन्य सम्बद्ध क्षेत्रों में अनुच्छेद 63 के उपबन्धों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र से सम्बन्ध स्थापित किया जाएगा।
  • 2. संयुक्त राष्ट्र के साथ सम्बद्ध किये गए ऐसे अभिकरणों के द्वारा उल्लेख किया जाएगा।
अनुच्छेद 58

संघ विशिष्ट अभिकरणों की नीतियों औरक्रियाकलाप के समन्वयन के लिए सिफारिशें करेगा।

अनुच्छेद 59

अनुच्छेद 55 में निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपेक्षित नए विशिष्ट अभिकरणों की स्थापना के लिए सम्बद्ध राज्यों के बीच संघ, जहां कहीं उपयुक्त समझेगा, बातचीत प्रारम्भ करवाएगा।

अनुच्छेद 60

इस अध्याय में संघ के लिए निर्धारित कार्यों के पालन का उत्तरदायित्व महासभा का होगा तथा महासभा के अधिकाराधीन आर्थिक और सामाजिक परिषद् का होगा जिसे इस प्रयोजन के लिए, दसवें अध्याय में निर्धारित शक्तियाँ प्राप्त होंगी।

अध्याय दस

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आर्थिक और सामाजिक परिषद्

गठन :

अनुच्छेद 61
  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद् में संयुक्तराष्ट्र के 54 सदस्य होंगे जिनका निर्वाचन महासभा द्वारा किया जाएगा।
  • 2. पैरा 3 के उपबन्धों के अधीन, आर्थिक और सामाजिक परिषद् के 18 सदस्य प्रतिवर्ष तीन वर्षों की अवधि के लिए चुने जाएंगे। निवर्तमान सदस्य तुरन्त ही फिर से चुने जाने के लिए पात्र होगा।
  • 3. आर्थिक और सामाजिक परिषद् में सदस्यों की वृद्धि 27 से 54 तक हो जाने के बाद पहले चुनाव में उस वर्ष के अन्त तक जिन नौ सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होता है उनके स्थान पर चुने जाने वाले सदस्यों के अतिरिक्त 27 और सदस्यों का चुनाव किया जायेगा। महासभा द्वारा की गई व्यवस्था के अनुसार इन 27 अतिरिक्त सदस्यों में से इस तरह निर्वाचित नौ सदस्यों का कार्यकाल एक वर्ष के अन्त में तथा दूसरे नौ सदस्यों का कार्यकाल दो वर्षां के अन्त में समाप्त हो जायेगा।
  • 4. आर्थिक और सामाजिक परिषद् के प्रत्येक सदस्य का एक प्रतिनिधि होगा।
अनुच्छेद 62

कार्य और षक्तियां

  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद् : अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, संस्कृति शैक्षिक, स्वास्थ्य संबंधी तथा अन्य सम्बद्ध मामलों के सम्बन्ध में अध्ययन और रिपोर्ट तैयार कर सकती है अथवा अध्ययन करने और रिपोर्ट बनाने का काम प्रारम्भ करवा सकती है और इस प्रकार के किसी भी मामले के लिए महासभा, संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों और सम्बद्ध विशिष्ट अभिकरणों को सुझाव दे सकती है।
  • 2. यह मानवाधिकारों और सभी के लिए आधारभूत स्वतन्त्रताओं के प्रति सम्मान बढ़ाने तथा उनके अनुपालन के लिए सिफारिशें कर सकती है।
  • 3. यह अपने अधिकार क्ष्ेत्र में आने वाले मामलों के सम्बन्ध में महासभा के समक्ष प्रस्तुत किये जाने के लिए औपचारिक प्रारूप तैयार कर सकती है।
  • 4. यह अपने अधिकार क्षेत्र में आनेवाले मामलों के सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र द्वारा विहित नियमों के अधीन अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुला सकती है।
अनुच्छेद 63
  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद्, अनुच्छेद 57 में उल्लिखित किसी भी विशिष्ट अभिकरण के साथ उस अभिकरण को संयुक्त राष्ट्र से सम्बद्ध करने के विषय में शर्तों की व्याख्या करते हुए करार कर सकती है। किन्तु शर्त यह होगी कि इस प्रकार के करार महासभा द्वारा अनुमोदन प्रदान किया जाए।
  • 2. यह विशिष्ट अभिकरणों के कार्यकलाप का उन अभिकरणों से परामर्श करके और उन अभिकरणों को सुझाव देकर और महासभा तथा संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को सिफारिशें प्रस्तुत करके समन्वय भी कर सकती है।
अनुच्छेद - 64
  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद् विशिष्ट अभिकरणों में नियमित रिपोर्टें प्राप्त करने के लिए उचित कार्यवाही कर सकती है। यह अपनी सिफारिशों तथा अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामलों के बारे में महासभा की सिफारिशों को कार्यान्वित करने के लिए की गई कार्यवाही के संबन्ध में रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों तथा विशिष्ट अभिकरणों के साथ उचित कार्यवाही कर सकती है।
  • 2. इन रिपोर्टों पर अपने विचार वह महासभा को सूचित करेगी।
अनुच्छेद 65

आर्थिक और सामाजिक परिषद् सुरक्षा परिषद् को इनकी सूचना देगी और सुरक्षा परिषद् के अनुरोध पर वह उसे सहायता प्रदान करेगी।

अनुच्छेद 66
  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद् ऐसे कार्य करेगी जो सुरक्षा परिषद् की सिफारिशों का पालन करने के सम्बन्ध में उसके अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत है।
  • 2. वह संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के तथा विशिष्ट अभिकरणों के अनुरोध पर महासभा का अनुमोदन प्राप्त करके उनकी सहायता कर सकती है।
  • 3. वह ऐसे अन्य कार्य भी करेगी जो प्रस्तुत घोषणा पत्र में अन्यत्र निर्दिष्ट हैं, या जो महासभा द्वारा उसे सौंपे जाएं।

मतदान :

अनुच्छेद 67
  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद् के प्रत्येक सदस्य का एक-एक मत होगा।
  • 2. आर्थिक और सामाजिक परिषद् के सारे निर्णय तत्काल उपस्थित और मतदाता सदस्यों के बहुमत से किए जाएंगे।

क्रियाविधि :

अनुच्छेद 68

आर्थिक और सामाजिक परिषद् और सामाजिक क्षेत्र में मानवाधिकारों को बढ़ावा देने के लिए आयोग का गठन करेगी। इसके साथ ही वह ऐसे अन्य आयोगों की भी स्थापना करेगी जो उसके कार्यों को सम्पन्न करने के लिए अपेक्षित हों।

अनुच्छेद - 69

आर्थिक और सामाजिक परिषद् किसी मामले पर विचार करते समय संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य को जो उस मामले से सम्बन्धित हो, विचार-विमर्श में भाग लेने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं, परन्तुउस सदस्य को मतदान करने का अधिकार नहीं होगा।

अनुच्छेद 70

आर्थिक और सामाजिक परिषद् यह प्रबन्ध कर सकती है कि विशिष्ट अभिकरणों के प्रतिनिधि उसके तथा उसके द्वारा स्थापित आयोगों के द्वारा किये जाने वाले विचार-विमर्श में, मताधिकार के बिना, भाग ले सकें। और उसके प्रतिनिधि विशिष्ट अभिकरणों द्वारा किये जाने वाले विचार-विमर्श में भाग ले सकें।

अनुच्छेद 71

आर्थिक और सामाजिक परिषद् उन गैरसरकारी संगठनों से परामर्श करने की उचित व्यवस्था कर सकती है, जो उसके अधिकारक्षेत्र में आने वाले मामलों से सम्बन्धित हों। संयुक्त राष्ट्र के सम्बन्धित सदस्य से परामर्श करके अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, और जहाँ उचित हो, राष्ट्रीय संगठनों के साथ ऐसी व्यवस्था की जा सकती है।

अनुच्छेद 72
  • 1. आर्थिक और सामाजिक परिषद् क्रियाविधि सम्बन्धी नियमों को स्वयं बनाएगी और अपने अध्यक्ष को स्वयं चुनेगी।
  • 2. आर्थिक और सामाजिक परिषद् की बैठकें यथावश्यक उसकेअपने नियमों के अनुसार ही होंगी। इन नियमों में उसके अधिसंख्यक सदस्यों के अनुरोध परबैठकें बुलाने के उपलबन्ध भी शामिल हैं।

अध्याय ग्यारह

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अस्वशासी भू-भाग के सम्बन्ध में घोषणा
अनुच्छेद 73

संयुक्त राष्ट्र के वे सदस्य, जो उन भू-भागों के प्रशासन का उत्तरदायित्व रखें या ग्रहण करें जहां के लोगों को उस समय तक पूर्ण स्वशासन प्राप्त न हुआ हो, यह सिद्धान्त स्वीकार करते हैं कि इन क्षेत्रों के निवासियों के हित परमोच्च हैं, और वे, प्रस्तुत घोषणा पत्र के द्वारा स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा तन्त्र के अधीन, इन भू-भागों के निवासियों का यथासम्भव अधिक से अधिक कल्याण करना, पवित्र न्याय के रूप में अपना कत्तर्व्य मानते हैं, तथा उपर्युक्त उद्देश्य के लिए वे यह भी अपना दायित्व मानते हैं कि -

(क) सम्बन्धित भू-भाग के लोगों की संस्कृति के प्रति यथोचित आदर की भावना रखते हुए उनकी राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक उन्नति के अतिरिक्त इस ओर भी पूरा ध्यान दिया जाए कि उनके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो, और उन्हें दुर्व्यवहार से बचने की पूरी व्यवस्था हो;

(ख) प्रत्येक भू-भाग और उसके लोगों की अपनी-अपनी विशेष परिस्थितियों के तथा उनके विकास के विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार उनमें स्वशासन का विकास किया जाए, वहां के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाओं की ओर उचित ध्यान दिया जाए और उन्हें अपनी स्वतन्त्र राजनीतिक संस्थाओं के उत्तरोतर विकास में सहायता दी जाए;

(ग) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति औरसुरक्षा में वृद्धि की जाए ;

(घ) इस अनुच्छेद में बताए गएसामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक उद्देश्यों की व्यावहारिक पूर्ति की दृष्टि से विकास के रचनात्मक उपायों को बढ़ावा दिया जाए, अनुसन्धान कार्य को प्रोत्साहन दिया जाए और एक-दूसरे के साथ, तथा जब और जहां उचित हो विशेष क्षेत्रों में कार्य करने वाली संस्थाओं के साथ सहयोग किया जाए; और

(ङ) जिन भू-भागों पर बारहवें और तेरहवें अध्याय लागू होते हैं उनके अतिरिक्त अन्य भू-भागों की सुरक्षा जिनके लिए वे सदस्य अलग-अलग उत्तरदायी हैं, सुरक्षा और संवैधानिक बातों को ध्यान में रखकर लगाई गई सीमाओं के अधीन आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक परिस्थितियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय औरतकनीकी सूचनाएँ महासचिव को नियमित रूप से दी जाएँ।

अनुच्छेद 74

संयुक्त राष्ट्र के सदस्य इस बात पर भी सहमत हैं कि जिन क्षेत्रों पर इस अध्याय के उपबंध लागू होते हैं, उनके सम्बन्ध में उनकी नीति अच्छे पड़ोसियों के पारस्परिक सहयोग के सामान्य सिद्धान्त पर ठीक वैसी ही होनी चाहिए और उससे किसी प्रकार कम नहीं जैसी वे अपने महानगरीय क्षेत्रों के सम्बन्ध में रखते हैं, और ऐसी नीति, अपनाते समय सामाजिक आर्थिक और वाणिज्यिक मामलों में शेष विश्व के हितों और कल्याण का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।

अध्याय बारह

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अन्तर्राष्ट्रीय न्यासधारिता तंत्र
अनुच्छेद 75

संयुक्त राष्ट्र अपने अधिकार के अधीन ऐसे भू-भागों में प्रशासन और पर्यवेक्षण के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय न्यासधारिता तन्त्र की स्थापना करेगा जो बाद में व्यक्तिगत समझौते के आधार पर उसकी अधीनता में रखेजा सकते हैं। इसके आगे इनका उल्लेख न्यास भू-भागों के रूप में किया जायेगा।

अनुच्छेद 76

प्रस्तुत घोषणापत्र के अनुच्छेद 1 में बताए गए प्रयोजनों के अनुसार न्यासधारिता तन्त्र के आधारभूत उद्देश्य निम्नलिखित होंगे -

(क) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को बढ़ाना ;

(ख) न्यास भूभागों के लोगों को राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक और शैक्षिक विकास में योग देना, और प्रत्येक क्षेत्र की तथा वहाँ के लोगों की परिस्थितियों के अनुसार और सम्बन्धित लोगों की स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त इच्छाओं के अनुसार और प्रत्येक न्यासधारिता करार की शर्तां में की गई व्यवस्थाओं केअनुसार जैसा भी उपयुक्त हो, स्वशासन अथवा स्वाधीनता की दिशा में उनकेक्रमिक विकास में सहायता देना ;

(ग) जाति, लिंग, भाषा या धर्म का भेद किए बिना, सबके लिए मानव अधिकारों और मूल स्वतन्त्रताओं के प्रति आदर कीभावना को बढ़ावा देना और इस बात को प्रोत्साहन देना कि विश्व के लोगों में पारस्परिक निर्भरता के सिद्धान्त को मान्यता मिले ;

(घ) सामाजिक, आर्थिक और वाणिज्यिक मामलों में संयुक्त राष्ट्र के समस्त सदस्यों और राष्ट्रिकों के लिए समानता के व्यवहार को सुनिश्चित करना, साथ ही इन राष्ट्रिकों के लिए इस बात की सुनिश्चित व्यवस्था करना कि न्याय प्रदान करने में उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाएगा और यह कार्यपूर्वोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति में बिना कोई बाधा पैदा किये और अनुच्छेद 80 के उपबन्धों के अधीन किया जाएगा।

अनुच्छेद 77
  • 1. यह न्यासधारिता पद्धति निम्नलिखित श्रेणियों के उन्हीं क्षेत्रों पर लागू होगी जो न्यासधारिता समझौते के द्वारा उसकी अधीनता में रखे गए है;

(क) वे भूभाग जो इस अधिदेश के अधीन रखे गए है ;

(ख) वे भूभाग, जो द्वितीय महायुद्ध के परिणामस्वरूप शत्रु देशों से अलग कर दिए गए हैं ; और

(ग) वे भूभाग, जो उन राष्ट्रों द्वारा जिनपर उनके प्रशासन का उत्तरदायित्व है स्वेच्छा से इस तंत्र के अधीन रख दिए गए हैं।

  • 2. उपर्युक्त श्रेणियों के कौन से क्षेत्र किन शर्तां पर न्यासधारिता तंत्र के अधीन रखे जाएंगे, यह बात बाद में किए जाने वाले करारों का विषय होगी।
अनुच्छेद 78

न्यासधारिता तन्त्र उन क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य बन गए हैं, और जिनके बीच पारस्परिक सम्बन्ध ‘‘प्रभुसत्ता’’ की समता के सिद्धान्त के प्रति आदर की भावना पर आधारित होंगे।

अनुच्छेद 79

जो क्षेत्र न्यासधारिता तंत्र की अधीनता में रखे जाएंगे उनमें से प्रत्येक की न्यासिता की शर्तें, उनमें किए जाने वाले परिवर्तनों और संशोधनों सहित, उन राष्ट्रों की सहमति से निश्चित की जायेंगी जिनका उन क्षेत्रों के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध है। जो क्षेत्र अधिदेश के अधीन संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के अधीन होंगे उनके सम्बन्ध में दी जाने वाली अधिदेशात्मक शक्ति का निश्चयन और उक्त शर्तां का अनुमोदन भी, जैसी कि अनुच्छेद 83 तथा 85 में व्यवस्था की गई है, उन राष्ट्रों की सहमति से ही होगा।

अनुच्छेद 80
  • 1. इस अध्याय की किसी बात से अथवा स्वतःउससे यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि किन्हीं लोगों के किसी प्रकार के अधिकारों में या उन वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय लेखपत्रों की शर्तों में जिन्हें संयुक्त राष्ट्र के सम्बन्धित सदस्यों ने स्वीकार किया हो किसी भी प्रकार से परिवर्तन हो सकता है। हां, भिन्न-भिन्न भूभागों के न्यासधारिता तंत्र के अधीन रखने के लिए अनुच्छेद 77, 79 और 81 के अनुसार अलग-अलग किए गए न्यासिता सम्बन्धी करारों में इस सम्बन्ध में सहमति होने पर तथा जब ये समझौते पूरी तौर से सम्पन्न हो चुके हों, उक्त अधिकारों में परिवर्तन हो सकता है।
  • 2. इस अनुच्छेद के पैरा 1 की ऐसी व्याख्यानहीं की जाएगी जिससेअनुच्छेद 77 में की गई व्यवस्थाओं के अनुसार अधिदेशाधीन तथा अन्य भूभागों को न्यासधारिता तंत्र के अधीन रखने के लिए की जाने वाली बातचीत में और करारों को सम्पन्न करने के कार्य में देर करने या उन्हें स्थगित करने का आधार मिलता हो।
अनुच्छेद 81

प्रत्येक मामले में न्यासधारिता तंत्र में वे शर्तें शामिल होंगी जिनके अधीन न्यास भूभाग को प्रशासित किया जाएगा और उसमें उस प्राधिकार का नामोद्दिष्ट किया जाएगा जो न्यास भूभाग का प्रशासन चलाएगा। अब यह प्राधिकरणजिसे आगे प्रशासी प्राधिकरण कहा जाएगा एक या कई राज्य या स्वयं संयुक्त राष्ट्र हो सकता है।

अनुच्छेद 82

किसी भी न्यासधारिता करार में सामरिक महत्वके भू भाग या भू भागों को निर्दिष्ट किया जा सकता है। इन भू भागों में न्यास का कोई ऐसा भाग या सम्पूर्ण न्यास भू भाग शामिल हो सकता है जिसपर यहकरार लागू होता हो, परन्तुयह अनुच्छेद 43 के अधीन किए गए किसी विशेष करार या करारों के विरुद्ध नहीं होगा।

अनुच्छेद 83
  • 1. सामरिक महत्व के क्षेत्रों से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र के सभी कार्य सुरक्षा परिषद् करेगी। इनमें न्यासधारिता करारों की शर्तों का अनुमोदन और उनमें किए जाने वाले परिवर्तन और संशोधन भी शामिल हैं।
  • 2. अनुच्छेद 76 में बनाए गए मूल उद्देश्य प्रत्येक सामरिक महत्व के क्षेत्र के लोगों पर लागू होंगे।
  • 3. सुरक्षा परिषद् को न्यासधारिता तंत्र केअन्तर्गत आने वाले संयुक्त राष्ट्र के उन कार्यों को करने के लिए जिनका सम्बन्ध सामरिक महत्व के क्षेत्रों के राजनीतिक, आर्थिक, सामजिक और शैक्षिक मामलों से है, न्यासधारिता तन्त्र के उपबन्धों के अधीन न्यासधारिता परिषद् की सहायता प्राप्त होगी बशर्ते कि सुरक्षा सम्बन्धी विचारों पर उसका प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
अनुच्छेद 84

प्रशासी प्राधिकरण का कत्तर्व्य होगा किवह यह ध्यान रखे कि न्यास भूभाग अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने में निश्चित रूप से अपनी भूमिका निभाए। इस उद्देश्य से प्रशासी प्राधिकरण ने सुरक्षा परिषद् केप्रति इस सम्बन्ध में जो दायित्व ले रखे हैं उन्हें पूरा करने के हेतु तथा न्यास भूभाग में आंतरिक सुरक्षा एवं कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासी प्राधिकरण न्यास भूभाग सेस्वयंसेवक सेनाओं, सुविधाओं और सहायता का उपयोग कर सकता है।

अनुच्छेद 85
  • 1. जो क्षेत्र सामरिक महत्व के क्षेत्र के रूप में निर्दिष्ट नहीं किए गए हैं उन सब क्षेत्रों के लिए न्यासधारिता समझौतों सम्बन्धी संयुक्त राष्ट्र के कार्य महासभा द्वारा किए जाएंगे। इन कार्यां में न्यासधारिता समझौतों की शर्तों का अनुमोदन और उनमें किए जाने वाले परिवर्तन और संशोधन भी शामिल होंगे।
  • 2. महासभा के प्राधिकार में कार्य करते हुए न्यासधारिता परिषद् महासभा को इन कार्यों को करने में सहायता प्रदान करेगी।

अध्याय तेरह

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न्यासधारिता परिषद्

गठन :

अनुच्छेद 86
  • 1. न्यासधारिता परिषद् में संयुक्त राष्ट्र के निम्नलिखित सदस्य होंगे :-

(क) न्यास क्षेत्रों का प्रशासन करने वाले सदस्य;

(ख) ऐसे सदस्य जिनके नाम अनुच्छेद 23 में निर्दिष्ट किए गए हैं परन्तु जो न्यास क्षेत्रों का प्रशासन नहीं कर रहे हैं; और

(ग) महासभा द्वारा तीन वर्ष की अवधि के लिए निर्वाचित अन्य सदस्य। इन सदस्यों की संख्या इतनी होनी चाहिए कि न्यासधारिता परिषद् में न्यास क्षेत्रों का प्रशासन करने वाले सदस्य राष्ट्र की संख्या निश्चित रूप से प्रशासन नहीं करने वाले सदस्य राष्ट्र की संख्या के बराबर रहे।

  • 2. न्यासधारिता परिषद् का प्रत्येक सदस्य राष्ट्र उसमें अपने प्रतिनिधि स्वरूप एक विशेष योग्यता प्राप्त व्यक्ति को मनोनीत करेगा।

कार्य और शक्तियाँ :

अनुच्छेद 87

अपने कत्तर्व्यों का पालन करने की दृष्टि से महासभा और उसके प्राधिकार के अन्तर्गत न्यासधारिता परिषद् निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं -

(क) प्रशासन प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुतकी गई रिपोर्टों पर विचार करना;

(ख) याचिकाएँ स्वीकार करना और प्रशासक प्राधिकरण के साथ परामर्श करके उनकी जाँच करना ;

(ग) प्रशासक प्राधिकरणों की सहमति से निश्चित करके समय-समय पर उनके प्राधिकार के अन्तर्गत आने वाले भिन्न-भिन्न न्यासक्षेत्रों का दौरा करना ;

(घ) न्यासधारिता समझौतों की शर्तों केअनुसार उपर्युक्त तथा अन्य कार्य करना।

अनुच्छेद 88

न्यासधारिता परिषद् प्रत्येक न्यास क्षेत्र के निवासियों की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक प्रगति के सम्बन्ध में एकप्रश्नावली की रूपरेखा तैयार करेगी, और महासभा के अधिकारक्षेत्र के अन्तर्गत प्रत्येक न्यास क्षेत्र के लिए नियुक्त प्रशासक प्राधिकरण इस प्रश्नावली के आधार पर महासभा केसमक्ष वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

मतदान
अनुच्छेद 89
  • 1. न्यासधारिता परिषद् के प्रत्येक सदस्य का एक मत होगा।
  • 2. न्यासधारिता परिषद् के निर्णय उस समय उपस्थित सदस्यों के बहुमत से किए जायेंगे।
क्रियाविधि
अनुच्छेद 90
  • 1. न्यासधारिता परिषद् अपनीक्रियाविधि के और अध्यक्ष को चुनने के नियम स्वयं बनाएगी।
  • 2. न्यासधारिता परिषद् की बैठकें यथावश्यक नियमों के अनुसार हुआ करेंगी। इन नियमों में उसके अधिसंख्य सदस्य के अनुरोध पर बैठक बुलाने का प्रावधान भी शामिल है।
अनुच्छेद 91

न्यासधारिता परिषद्, आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् और विशेष अभिकरणों का जिन-जिन मामलों से सम्बन्ध है उनके सम्बन्ध में न्यासधारिता परिषद् जब उचित होगा तो आर्थिक और सामाजिक परिषद् की ओर विशेष अभिकरणों की सहायता प्राप्त करेगी।

अध्याय चौदह

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अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय
अनुच्छेद 92

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग होगा। वह संलग्न संविधि के अनुसार, जो कि स्थायी अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि पर आधारित है और प्रस्तुत घोषणा पत्र का एक अभिन्नभाग है, कार्य करेगा।

अनुच्छेद 93
  • 1. यह माना जाता है कि संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य यथातथ्यतः अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि को स्वीकार करते हैं।
  • 2. जो राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं है वह भी अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि को स्वीकार करने वालों में शामिल हो सकता है, परन्तु यह उन शर्तों के आधार पर किया जा सकेगा जो प्रत्येक मामले में सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा द्वारा निश्चित की जाएगी।
अनुच्छेद 94
  • 1. संयुक्त राष्ट्र का प्रत्येक सदस्य प्रत्येक ऐसे मामले में जिसमें वह एक पक्ष है, अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय कापालन करने का वचन देता है।
  • 2. यदि कोई पक्ष न्यायालय द्वारा दिए गए किसी ऐसे निर्णय के अधीन जिसका पालन करना उसके लिए आवश्यक हो, अपने दायित्व का पालन नहीं करता है तो दूसरा पक्ष सुरक्षा परिषद् का आश्रय ले सकता है। सुरक्षा परिषद् यदि आवश्यक समझे तो ऐसे उपायों की सिफारिश कर सकती है या उन्हें निश्चित कर सकती है जो निर्णय का पालन कराने के लिए किए जाएंगे।
अनुच्छेद 95

प्रस्तुत घोषणापत्र की कोई भी बात संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को इस बात से नहीं रोकेगी कि वे उन समझौतों के आधार पर, जो उस समय लागू हों या जो भविष्य में सम्पन्न किए जाएं, अपने मतभेदों को सुलझाने केलिए अन्य अधिकरणों को सौंप दें।

अनुच्छेद 96
  • 1. महासभा या सुरक्षा परिषद् किसी विधिक प्रश्न पर परामर्शरूप में अपनी राय देने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से अनुरोध कर सकती है।
  • 2. संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंग और विशेष अभिकरण भी जिन्हें महासभा ने किसी समय इस संबंध में प्राधिकृत किया हो, ऐसे विधिक प्रश्नों पर जो कि उनके कार्यकलाप के क्षेत्र में आते हों, न्यायालय से परामर्श रूप में अपनी राय देने का अनुरोध कर सकते हैं।

अध्याय सोलह

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विविध व्यवस्थायें
अनुच्छेद 102
  • 1. प्रस्तुत घोषणापत्र के लागू होने के बाद संयुक्त राष्ट्र के किसी सदस्य के द्वारा की गई प्रत्येक संधि और प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय समझौते का पंजीयन सचिवालय में यथाशीघ्र किया जाएगा और सचिवालय उसे प्रकाशित करेगा।
  • 2. किसी ऐसी संधि या अन्तर्राष्ट्रीय समझौते से सम्बन्धित कोई पक्ष जिसका पंजीयन इस अनुच्छेद के पैरा 1 के उपबन्धों के अनुसार नहीं किया गया है। उस संधि या अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के आधार पर संयुक्तराष्ट्र के किसी अंग के समक्ष अपनी शिकायत नहीं रख सकेगा।
अनुच्छेद 103

प्रस्तुत घोषणापत्र के अधीन संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के दायित्वों और किसी अन्य अन्तर्राष्ट्रीय समझौते के अधीन उनके दायित्वों में संघर्ष उत्पन्न होने की स्थिति में प्रस्तुत घोषणा पत्र के दायित्वों को ही अधिक महत्व दिया जाएगा।

अनुच्छेद 104

संघ को अपने प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के क्षेत्र में अपने कार्यां को करने या अपने प्रयोजनों की पूर्ति के लिए आवश्यक विधिक अधिकार प्राप्त होंगे।

अनुच्छेद 105
  • 1. संघ को अपने प्रत्येक सदस्य-राष्ट्र के क्षेत्र में अपने प्रयोजनों की पूर्ति के लिए यथावश्यक विशेषाधिकार औरनिरापदता प्राप्त होगी।
  • 2. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों और संघके अधिकारियों को भी इसी प्रकार संघ से सम्बन्धित कार्यों को स्वतन्त्र रूप से करने के लिए आवश्यक विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां प्राप्त होंगी।
  • 3. इस अनुच्छेद के पैरा 1 और 2 को लागू करने के ब्यौरों को निश्चित करने की दृष्टि से महासभा सिफारिशें कर सकती है या इसप्रयोजन के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के सम्मुख अभिसमयों का प्रस्ताव रख सकती है।

अध्याय सत्रह

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संक्रमणकालीन सुरक्षा
अनुच्छेद 106

अनुच्छेद 43 में उल्लिखित वे विशेष समझौते सुरक्षा परिषद् की रा य में जिनके आधार पर उसको अनुच्छेद 42 के अधीन अपने दायित्वों को पूरा करने का अधिकार प्राप्त होता है, जब तक लागू नहीं किए जाते तब तक ‘‘चतुर्राष्ट्र घोषणा’’ को स्वीकार करने वाले और मास्को में 30 अक्टूबर, 1943 को उस पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्र तथा फ्रांस इस घोषणा के पैरा 5 के उपबन्धों के अधीन एक दूसरे के साथ और जब आवश्यक हो तब संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के साथ इस दृष्टि से परामर्श नहीं कर लेते कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा बनाए रखने, के प्रयोजन से यथावश्यक संयुक्त कार्यवाही की जा सके।

अनुच्छेद 107

प्रस्तुत घोषणा पत्र में ऐसी कोई बात नहींहै जिसके आधार पर ऐसे किसी राष्ट्र के विरुद्ध, जो कि द्वितीय महायुद्ध के दौरान प्रस्तुतघोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले किसी राष्ट्र का शत्रु रहा हो, किसी ऐसी सरकार द्वारा की गई कार्यवाही को अमान्य ठहराया जाए, या उसे प्राधिकृत कार्यवाही को करने से रोका जाए, जिसपर यथोचित कार्यवाही करने का उत्तरदायित्व हो।

अध्याय अठारह

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संशोधन
अनुच्छेद 108

महासभा के सदस्यों के दो-तिहाई मतों का समर्थन प्राप्त होने पर और संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के दो तिहाई का, जिसमें सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य सम्मिलित होंगे, अनुसमर्थन प्राप्त हो जाने पर ही प्रस्तुत घोषणापत्र में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों के हेतु संशोधन प्रभावी हो सकेंगे।

अनुच्छेद 109
  • 1. प्रस्तुत महासभा के सदस्यों के दो-तिहाई मतों और सुरक्षा परिषद् के किन्हीं भी नौ सदस्यों के मतों द्वारा तारीख और स्थान का निर्धारण होने पर ही घोषणापत्र का पुनरीक्षण करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों का साधारण सम्मेलन नियत तारीख और स्थान पर आयोजित किया जा सकेगा।
  • 2. प्रस्तुत घोषणा पत्र में कोई भी परिवर्तन तभी प्रभावी होगा जब उसके समर्थन में सम्मेलन के दो-तिहाई मतों के आधार पर सिफारिश की जाएगी और संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार सुरक्षा परिषद् के सभी स्थायी सदस्यों सहित संयुक्त राष्ट्र के दो-तिहाई सदस्य उसका अनुसमर्थन करें।
  • 3. यदि ऐसा सम्मेलन प्रस्तुत घोषणापत्र के लागू होने के बाद महासभा के दसवें वार्षिक अधिवेशन के पूर्व आयोजित नहीं किया जाता है तो यह सम्मेलन करने का प्रस्ताव महासभा के उस अधिवेशन की कार्यसूची में रखा जा सकता है और महासभा के सदस्यों के अधिकांश मतों और सुरक्षा परिषद् के सात सदस्यों के मतों के समर्थन पर यह सम्मेलन आयोजित किया जा सकता है।

अध्याय उन्नीस

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अनुसमर्थन और हस्ताक्षर
अनुच्छेद 110
  • 1. अपनी संवैधानिक प्रक्रिया केअनुसार हस्ताक्षर करने वाले राज्य प्रस्तुत घोषणा पत्र का अनुसमर्थन कर सकते हैं
  • 2. अनुसमर्थन संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार को सौंपे जायेंगे जो कि प्रत्येक अनुसमर्थन की पावती की हस्ताक्षर करने वाले सभी राज्यों को और जब संघ के महामंत्री की नियुक्ति हो जाएगी तो उसको भी सूचना देगी।
  • 3. प्रस्तुत घोषणापत्र तभी लागू होगा जब चीन गणराज्य, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य हस्ताक्षरकर्ता राज्यों में से अधिकांश अपना अनुसमर्थन देंगे। दिए गए अनुसमर्थन का संलेख संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार द्वारा निकलवाया जाएगा और उसकी प्रतियां सभी हस्ताक्षरकर्ता राज्यों को भेज दी जाएंगी।
  • 4. वर्तमान चार्टर के हस्ताक्षरकर्ता राज्य इसके लागू होने के बाद इसका अनुसमर्थन करेंगे और जिस तारीख से वे अपने-अपने अनुसमर्थनों को जमा करेंगे उसी तारीख से संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रारम्भिक सदस्य बन जायेंगे।
अनुच्छेद 111

प्रस्तुत घोषणापत्र जिसके चीनी, फ्रांसीसी, रूसी, अंग्रेजी और स्पेनी मूल पाठ भी समान रूप से प्रामाणिक हैं, संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के अभिलेखागार में जमा रहेंगे। इसकी प्रमाणीकृत प्रतियां उस सरकार द्वारा अन्य हस्ताक्षरकर्ता राज्यों को भेज दी जायेंगी। इसी विश्वास के साथ संयुक्त राष्ट्र की सरकारों के प्रतिनिधियों द्वारा वर्तमान चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

सैन फ्रैंसिस्को नगर में 26 जून, 1945 को हस्ताक्षरित।

यह भी देखें

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स्रोत

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