संसाधन एवं विकास/भूमि,मृदा,जल,प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन संसाधन

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विश्व की 90% जनसंख्या 30% भाग पर रहती है।शेष 70% भूमि पर या तो विरल जनसंख्या है या वह निर्जन है। ऑस्ट्रिया में साल्ज़बर्ग

देश भूमि उपयोगों के अनुसार क्षेत्रफल का प्रतिशत
देश फसल भूमि चारागाह वन अन्य उपयोग
भारत 57 4 उदाहरण उदाहरण
फ्रांस 35 21 27 17
यूनाइटेड किंगडम 29 46 10 16
संयुक्त राज्य अमेरिका 21 26 32 21
जापान 12 2 67 19

चारा,फलों नट या औषधीय बूटियों को एकत्रित करने के लिए सामुदायिक भूमि का उपयोग किया जाता है,जिसे साझा संपत्ति संसाधन भी कहते हैं। भूमि संसाधन का संरक्षण

  • वनरोपण
  • भूमि उद्धार,
  • रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों के विनियमित उपयोग
  • तथा अतिचारण पार रोक

भूस्खलन[सम्पादन]

शैल,मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है।ये प्राय:भूकंप,बाढ़ और ज्वालामुखी के साथ घटित होते हैं।लंबे समय तक भारी वर्षा होने से भी भूूस्खलन होता है। यह नदी के प्रवाह को कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर देता है।जिसके अचानक फूट पड़ने से निचली घाटियों के आवासों में विध्वंस आ जाता है।पहाड़ी भू-भाग में ,भूस्खलन एक मुख्य और विस्तृत रूप से फैली प्राकृतिक आपदा है। न्यूनीकरण क्रियाविधि

  • भूस्खलन प्रभावी क्षेत्रों का मानचित्र बनाकर इसमें प्रभावित होने वाले स्थानों को इंगित करना।इसप्रकार इन क्षेत्रों को आवास बनाने के लिए छोड़ा जा सकता है।
  • भूमि को खिसकने से बचाने के लिए प्रतिधारी दीवार का निर्माण।
  • वनस्पति आवरण में वृद्धि करना
  • सतही अपवाह तथा झरना प्रवाहों के साथ-साथ भूस्खलन की गतिशीलता को नियंत्रित करने के लिए पृष्ठीय अपवाह नियंत्रण उपाय कार्यान्वित किए गए हैं।

मृदा[सम्पादन]

पृथ्वी के पृष्ठ पर दानेदार कणों के आवरण की पतली परत।स्थल रूप मृदा के प्रकार को निर्धारित करते हैं।इसका निर्माण अपक्षय की प्रक्रिया चट्टानों से प्राप्त खनिजों और जैव पदार्ध तथा भूमि पर पाए जानेवाले खनिजों से होता है। मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक

  • जनक शैल,रंग,गठन,रासायनिक गुणधर्म,खनिज,मात्रा,पारगम्यता को निर्धारित करती हैं।
  • उच्चावच तुंगता और ढाल मृदा के संचय को निर्धारित करती है।
  • वनस्पतिजात,प्राणिजात और सूक्ष्मज जीव ह्यूमस निर्माण की दर को प्रभावित करते हैं।
  • समय,मृदा परिच्छेदिका की मोटाई को निश्चत करता है।
  • जलवायु,तापमान,वर्षा अपक्षय और ह्यूमस निर्माण की दर को प्रभावित करते हैं।

अपक्षय:-तापमान परिवर्तन,तुषार क्रिया,पौधों,प्राणियों और मनुष्य के क्रियाकलाप द्वारा अनावरित शैलों का टूटना और क्षय होना। केवल एक सेंटीमीटर मृदा को बनने में सैकडों वर्ष,लग जाते हैं। चित्र:- मृदा परिच्छेदिका ह्यूमस और वनस्पति के साथ ऊपरी मृदा-बालू,गाद,क्ले के साथ उपमृदा-अपक्षयित चट्टानी पदार्थ-जनक चट्टानें मृदा का निम्नीकरण और संरक्षण के उपाय

  • मल्च बनाना:-पौधों के बीच अनावरित भूमि जैव पदार्ध जैसे प्रवाल से ढ़क दी जाती है।इससे मृदा की आर्द्रता रुक जाती है।
  • वेदिका फार्म:-चौड़े,समतल सोपान अथवा वेदिका तीव्र ढ़ालों पर बनाये जाते हैं ताकि सपाट सतह फसल उगाने के लिए उपलब्ध हो जाए।
  • इनसे पृष्ठीय प्रवाह और मृदा अपरदन कम होता है।
  • समोच्चरेखीय जुताई:-पहाड़ी ढाल पर इसप्रकार की जुताई ढ़ाल से नीचे बहते जल के लिए प्राकृतिक अवरोध का निर्माण करती है।
  • रक्षक मेखलाएँ:-तटीय प्रदेशों और शुष्क प्रदेशों में पवन गति रोकने के लिए वृक्ष कतारों में लगाए जाते हैं ताकि मृदा आवरण को बचाया जा सके।
  • समोच्चरेखीय रोधिकएँ:-इसके लिए पत्थर,घास,मृदा का उपयोग किया जाता है।रोधिकाओं के सामने जल एकत्र करने के लिए खाइयाँ बनाई जाती हैं।
  • चट्टान बाँध:-जल के प्रवाह को कम करने के लिए निर्मित।यह नालियों की रक्षा कर मृदा क्षति को रोकते हैं।
  • बीच की फसल उगाना:-वर्षा दोहन से मृदा को सुरक्षित रखने के लिए अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न फसलें एकांतर कतारों में उगाई जाती हैं।

भारत की मृदा से सम्बंधित 60 महत्वपूर्ण प्रश्न

  • कपास के लिए उपयोगी मिट्टी कौन-सी है-काली मिट्टी
  • फसलों का आवर्तन अनिवार्य है क्यूंकि-मृदा की उर्वरता बढ़ाने के लिए
  • अपक्षयण क्या है-किसी चट्टान के स्व-स्थान पर तोड़ देना
  • आग्नेय शैल से अधिकांश बनी होती है-भूपर्पटी

जल[सम्पादन]

नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन है,भूपृष्ठ का तीन-चौथाई भाग जल से ढ़का होने के कारण इसे 'जलग्रह'कहते हैं।3.5 अरब वर्ष पहले जीवन महासागरों में हीं प्रारंभ हुआ।आज भी महासागर पृथ्वी की सतह के 2/3 भाग को ढ़के हैं। अलवण जल केवल2.7 % ही है,जिसका 70 % भाग बर्फ की चादरों और हिमानियों के रूप में अंटार्कटिका ,ग्रीनलैंड और पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है।

  • मात्र 1% अलवण जल हीं मानव उपभोग के लिए उपयुक्त है।जो भौम जल,नदियों और झीलों में पृष्ठीय जल के रूप में तथा वायुमंडल में जलवाष्प के रूप में पाया जाता है।इसलिए अलवणीय जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान पदार्ध है। पृथ्वी पर जल न बढाया जा सकता है और न घटाया जा सकता है।इसकी कुल मात्रा स्थिर रहती है।

जल स्रोत के सूखने अथवा जल प्रदूषण के कारण अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी के मुख्य कारक बढ़ती जनसंख्या,भोजन और नकदी फसलों की बढ़ती माँग,बढ़ता नगरीकरण और बेहतर होता जीवन स्तर है। अधिकांश अफ्रीका,पश्चिमी एशिया,दक्षिणी एशिया,पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका,उ.प.मैकस्किो,द. अमेरिका के भाग और संपूर्ण आस्ट्रेलिया अलवणीय जल की आपूर्ति की कमी का सामना कर रहा है।यहाँ अक्सर सूखा पड़ता है। मौसमी अथवा वार्षिक वर्षण में विविधता,अति उपयोग और जल स्रोतों के संदूषण के कारण भी जल का अभाव हो सकता है।

  • अशोधित या आंशिक रूप से शोधित वाहित मल,कृषि रसायनों का विसर्जन और जल निकायों में औद्दोगिक बहि:स्राव जल के प्रमुख संदूषक है।इनमें शामिल नाइट्रेट धातुएँ और पीड़कनाशी,जल को प्रदूषित कर देते हैं।इनमें से अधिकांश रसायन अजैव निम्नीकरण होने के कारण जल द्वारा मानव शरीर में पहुँच जाते हैं।अत:इन्हें शोधित कर जल निकायों में गिराकर जल प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • वन और अन्य वनस्पति आवरण धरातलीय प्रवाह को मंद कर भूमिगत जल को पुन:पूरित करते हैं।
  • जल रिसाव को कम करने के लिए खेतों को सिंचित करने वाली नहरों को ठीक से पक्का करना चाहिए।
महत्वपूर्ण तथ्य
वर्ष1975 में मानव उपयोग के लिए जल की खपत 3850घन किमी/वर्ष थी जो वर्ष 2000में बढ़कर6000 घन किमी/वर्ष से अधिक हो गई है।

एक टपकता नल एक वर्ष में 1200 लीटर जल व्यर्ध करता है। सौराष्ट्र प्रदेश का अमरेली अपने जल बाजार के लिए प्रसिद्ध है,यहाँ की 1.25 लाख जनसंख्या अमरेली शहर के पास के तालुकों से पानी खरीदने के लिए पूर्णत:निर्भर है।