संस्कृत साहित्य मे विलास-संज्ञक काव्यों की परम्परा : एक अध्ययन

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संस्कृत साहित्य मे विलास-संज्ञक काव्यों की परम्परा : एक अध्ययन हरेन्द्र नरियाल


कवि के कर्म को काव्य कहते है। लोकोत्तर आनंद की प्राप्ति कराने वाली कवि की भाषिक अभिव्यक्ति ही काव्य है।[1] काव्यशास्त्र के प्राचीन एवं आधुनिक आचार्यों ने काव्य के स्वरुप आदि के विवेचन के साथ उसके विविध भेदों का वर्गीकरण भी किया है। आचार्य भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में मुख्यतया दृश्यकाव्य (रूपकों) को ही वर्गीकृत किया है। भरत के पश्चात भामह, दंडी, वामन, आनंदवर्धन आदि आचार्यो के ग्रन्थों में काव्यभेद का विशद विवेचन मिलता है। तदन्तर आचार्य विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में काव्य की विभिन्न विधाओं का सुन्दर वर्गीकरण किया है। साहित्यदर्पणकार ने संरचना की दृष्टि से काव्य के दो भेद माने हैं। [2]

1. दृश्यकाव्य 2. श्रव्यकाव्य

दृश्यकाव्य : जिसका अभिनय किया जा सके वह दृश्यकाव्य कहलाता है। रूप का आरोप होने कारण इस दृश्यकाव्य को रूपक भी कहते है।[3] रूपक के दस भेद है।[4]

श्रव्यकाव्य : जो केवल श्रोतगोचर हो अर्थात् जिसका अभिनय ना हो सके वह श्रव्यकाव्य कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है।[5]

1. पद्य 2. गद्य

पद्य : छन्दोमय रचना पद्यकाव्य कहलाती है।[6] इसके दो प्रकार है।

1. महाकाव्य 2. खण्डकाव्य

महाकाव्य : जो सर्गबन्धात्मक काव्यप्रकार है। उसे महाकाव्य कहते है।[7]

खण्डकाव्य : काव्य के एक अंश का अनुसरण करने वाला खण्डकाव्य कहलाता है।[8] दृश्यकाव्य एवं श्रव्यकाव्य दोनों ही प्रकार की विधाओं में विलास काव्यों की रचना हुई है। विलास काव्यों के विषय में जानने से पहले यह सर्वप्रथम जानना परमावश्यक है कि विलास शब्द का क्या अर्थ है।

विलास शब्द का अर्थ : 'वि' उपसर्गपूर्वक 'लस्' धातु(शोभा) से 'घञ्' प्रत्यय लगने से 'विलास' शब्द बनता है। जिसका अर्थ है 'सौन्दर्य से सम्पन्न क्रिया' अर्थात् सौन्दर्ययुक्त क्रिया के भाव को विलास कहते है। सौन्दर्य काव्य का अपरिहार्य भाव है। सौन्दर्य के बिना काव्य की कल्पना करना संभव नहीं। वैसे तो काव्य सौन्दर्यसम्पन्न होता है, परन्तु विलास काव्यों में कवि विशेष रूप से प्रकृति के अत्यंत सूक्ष्म भावों को अपनी भावयित्री एवं कारयित्री प्रतिभा के संयोग से रमणीय बना देता है। कवि की लेखनी का संसर्ग पाकर लोक में अत्यन्त गर्हित जुगुप्सा भय आदि से युक्त पदार्थ भी सौन्दर्यसंपन्न बन जाते है। अतः बिलास काव्यों के अंतर्गत कवि के मानसिक विचारों तथा प्रकृति दोनों सौन्दर्य का अद्भुत सम्मिश्रण दृष्टिगत होता है।

संस्कृतसाहित्य की परंपरा अतीव समृद्ध रही है। विलास काव्यों का सृजन प्राचीन आचार्यों ने भी किया और उसी परम्परा का निर्वाह करते हुए आधुनिक आचार्य भी विलास काव्यों की रचना कर रहे है। संस्कृतसाहित्य में विलास संज्ञक काव्यों का कालक्रमानुसार अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है।

पुष्पबाण विलास : पुष्पबाण विलास काव्य संस्कृत साहित्य का प्रथम विलास-संज्ञक काव्य है। इसका प्रणयन कालिदास ने किया है।यह एक गीति काव्य है जिसमे 26 पद्य है।[9]

मत्तविलास प्रहसन : यह महेंद्र विक्रम की रचना है। मत्तविलास प्रहसन की प्रस्तावना से ज्ञात होता है कि ये पल्लव नरेश सिंह विष्णुवर्मा के पुत्र थे। नरेश सिंह विष्णु का समय 557 ईसवी. से 600 ईसवी. प्राप्त होता है। इस राजा के विषय में अनेक शिलालेख मिलते है जिसमे उनकी संज्ञाए गुणभार, मत्तविलास, अवनिभाजन, शत्रुमुतल आदि उपलब्ध होती है। मत्तविलास प्रहसन के पद्यों में भी उक्त संज्ञारा निर्देशित की गयी है। यह संस्कृत का प्राचीनतम प्रहसन है। यह प्रहसन छोटा होने पर भी बड़ा रोचक है। इसमें मदिरा के नशे में धूत कपालिक के मनोदशा का वर्णन है।[10]

हरिविलास महाकाव्य : यह राजशेखर विरचित है। यह महाकाव्य भगवान शंकर के चरित से सम्बद्ध है जो वर्तमान समय में उपलब्ध नहीं है।[11]

कलाविलासमहाकाव्य : यह क्षेमेन्द्र की कृति है। इसमे 10 सर्ग है जिनको क्रमशः नाम दम्भाख्यान, लोभवर्णन, कामवर्णन, वेश्यावृत्ति, कायस्थचरित, मदनबर्णन, गायनबर्णन, सवर्णकारोत्पत्ति, मानाधूर्तवर्णन, सकलकलानिरुपण संज्ञाओ से निरुपित किया गया है। इस काव्य में 551 पद्य है। इसका नायक मूलदेवनामक पुरुष है। आचार्य क्षेमेंद्र ने प्रस्तुत काव्य में हास्य व्यंग्य के माध्यम से समाज में व्याप्त अनेक बुराईओं पर कठोर प्रहार किया है।[12]

हरिविलासमहाकाव्य : इस महाकाव्य की रचना ११वीं शताब्दी के लोलिम्बराजने की है।इसके पांच सर्गों में श्रीमदभागवत के दशम स्कन्ध में वर्णित श्रीकृष्ण की लीलाओ का प्रस्तुतिकरण है।[13]

सोमपालविलासचरित महाकाव्य : इस महाकाव्य की रचना १२वी शताब्दी के पूर्वार्ध मे जल्हण ने की थी। इस महाकाव्य मे कश्मीर के निकटवर्ती राजपुरी के राजा सोमपाल का जीवन वर्णित है। इसीलिए यह एक प्रशस्ति परक महाकाव्य है।[14]

नलविलासनाटकम् : यह रामचन्द्र सूरी विरचित है।जिनका समय १२वी शताब्दी का मध्यभाग है। इस नाटक में सात अंक है। जिसमे निषध नरेश नल और दमयंती की प्रेम कथा का वर्णन प्रस्तुत किया गया है।[15]

वसंतविलासमहाकाव्य : इस महाकाव्य के रचयिता बालचंद्र सूरी है जिनका समय १३वी शताब्दी का पूर्वार्ध है। यह महाकाव्य १४ सर्गों में विभक्त है जिसमे १५१६पद्य है।[16]

शिवविलासमहाकाव्य: इस महाकाव्य के रचयिता दमोदर है जिनका समय १४वी शताब्दी है। यह महाकाव्य आठ सर्गों में विभक्त है।[17]

कृष्णविलासमहाकाव्य : इस महाकाव्य के रचयिता सुकुमार कवि है। जिनका समय १४५० ई है। इस महाकाव्य में कृष्ण के पराक्रम का वर्णन मनोरम एवं सरल शैली में किया गया है।[18]

भावविलास : इस काव्य की रचना न्यायवाचस्पति रुद्रकवि ने सत्रहवी शताब्दी के पूर्वार्ध में की है। रूद्रकवि ने इसकी रचना अपने समय के राजा भाव सिंह की आज्ञा से किया। इस काव्य में १३६ पद्य है। यह काव्य नितांत प्रौढ़ तथा इसका भाव उदात है।[19]

श्रीनिवासविलासचम्पू: इस चम्पूकाव्य की रचना वेकंटाध्वरि ने की है। जिनका समय १६५० ई. के आसपास माना जाता है। यह पूर्वविलास एवं उत्तरविलास नामक दो भागों में विभक्त है, पूर्व एवं उत्तर विलास। दोनों में पांच उच्छवास है। इस चम्पू विलास काव्य में तिरुपति बाला जी की प्रशस्ति है।[20]

भामिनीविलास : इसके रचयिता पंडितराज जगन्नाथ है। इनका समय १५९० ई. से १६७० ई. तक माना जाता है। यह एक गीतिकाव्य है। यह काव्य प्रास्ताविक, श्रृंगार, करुण एवं शान्त विलासों में विभक्त है। इस काव्य में ३७७ पद्यों में कवि ने अपनी प्रियतमा भामिनी के मनोभावों की अभिव्यञ्जना की है।[21]

आसफ विलास : इस विलास काव्य के रचयिता भी पंडितराज जगन्नाथ है। इस काव्य के प्रारंभ में पांच पद्य है। तथा आसफ खाँ की प्रशस्तिपरक थोड़ा सा गद्य है।[22]

विष्णुविलासमहाकाव्य : इस महाकाव्य की रचना कवि रामपाणि ने की है जिनका समय १८वी शताब्दी माना जाता है। इस महाकाव्य में आठ सर्ग तथा ५६१ पद्य है। जिसमे भगवान् विष्णु का वर्णन प्रस्तुत किया गया है।[23]

लीलाविलास प्रहसन : इस काव्य के रचयिता पंडित के.एल.बी.शास्त्री हैं। यह काव्य १९३५ ई. में प्रकाशित हुआ। इसमें सात अंक है जिसमे गौतम की पुत्री लीला का वेदान्त भट्ट नामक मूर्ख के साथ विवाह का वर्णन है। [24]

प्रकृतिविलास : प्रस्तुत काव्य की रचना के.एस. कृष्णमूर्ति ने सन् १९५० ई. में की। यह एक गीतिकाव्य है और यह आठ विलासों में विभक्त है जिसके अंतर्गत प्रकृति के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। [25]

शबरीविलास : इस काव्य की रचना श्री के.एस. नागराजन ने सन् १९५२ में की। यह एक गीतिकाव्य है।[26]

कमलेश विलास : यह एक गीतिकाव्य है। इसकी रचना १९३५ ई. में कमलेश मिश्र ने की।[27]

यात्राविलासम् : यह एक गद्यकाव्य है। जिसकी रचना पं नवलकिशोर ने १९७३ई. में की है। इस गद्यकाव्य में गंगोत्री की यात्रा का बड़ा ही मनोरम वर्णन प्रस्तुत किया गया है।[28]

गंगादासप्रताप विलासम्: यह एक ऐतिहासिक काव्य है। इसके रचयिता कर्नाटक प्रदेश के कवि गंगाधर है। इस नाटक में नौ अंक है जिसके अन्तर्गत अहमदाबाद के राजा मुहम्मद द्वितीय और कम्पनरेश के राजा गंगादास के बीच युद्ध का वर्णन है। इसका प्रकाशन १९७३ई. में हुआ है।[29]

थाईदेशविलासम्: इस मुक्तक काव्य की रचना डा सत्यव्रत शास्त्री ने १९७९ई.में की। इस काव्य में १२१ पद्य है जिसमे थाईदेश के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।[30]

इंदु विलास : इस विलास काव्य की रचना जगदीश प्रसाद सेमवाल ने की है। इस काव्य के अंतर्गत १०२ पद्यों में चन्द्रमा के सौन्दर्य का विभिन्न रूपों में वर्णन किया है। इस काव्य में वियोगिनी छन्द प्रयुक्त किया गया है। इसका प्रकाशन 'विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में दिसम्बर १९८४ में हुआ है।[31]

मेघ विलास : मेघ विलास की रचना जगदीश प्रसाद सेमवाल ने की है। इसमें १०२ पद्य है। इसके अंतर्गत मेघ का विभिन्न रूपों में दिग्दर्शन प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रकाशन 'विश्वसंस्कृतं (पत्रिका) में दिसम्बर १९८४ में हुआ है।[32]

वसन्त विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद सेमवाल है।इसमें १०१ पद्यों के माध्यम से वसन्त ऋतु का विभिन्न उद्धरणों से प्रस्तुतीकरण किया गया है। इसका प्रकाशन 'विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में दिसम्बर १९८४ में हुआ। है।[33]

हिमगिरि विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद सेमवाल है। इसमें १०३ पद्यों के माध्यम से हिमालय का। अत्यंत सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रकाशन। ‘विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में सितम्बर१९८५ में हुआ है।[34]

विडम्बना विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद। सेमवाल है। इसमें १०२ पद्यों में उपजाति छन्द के माध्यम। से लोक में प्रसिद्ध भावका नवीन रूपों में प्रस्तुतिकरण किया गया है। इसका प्रकाशन ‘विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में। सितम्बर १९८५ में हुआ है।[35]

भानूदय विलास : इस काव्य की रचना जगदीश प्रसाद। सेमवाल ने की है।इसमें १०२ पद्यों में प्रत्यक्षदेव सूर्यनारायण की महिमा वर्णित है। इसका प्रकाशन 'विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में अगस्त १९८६ में हुआ है।[36]

जयपुर विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद सेमवाल है। इस काव्य में १०१ पद्यों में उपजाति छन्द के माध्यम से जयपुर शहर का सुन्दर दिग्दर्शन प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रकाशन विश्वसंस्कृतं (पत्रिका) में सन् १९८९ में हुआ है।[37]

शैलपुत्री विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद सेमवाल है। इस काव्य में १०१ पद्यों में शैलपुत्री की महिमा का वर्णन विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रकाशन विश्वसंस्कृतं (पत्रिका) में सन् १९९६ में हुआ है।[38]

भारती विलास : इस काव्य की रचना श्रीराम दूबे ने की है। इस मुक्तक काब्य में १९१ पद्य है। इसका प्रकाशन सन् २००२ में हुआ है।[39]

प्रभा विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद सेमवाल है। इस काव्य में वंशस्थ वृत्त के माध्यम से प्रभा के सौन्दर्य का अत्यंत सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रकाशन 'विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में सन् २००५ में हुआ है।[40]

स्वतन्त्र भारत विलास : इस काव्य के रचयिता जगदीश प्रसाद सेमवाल है।इस विलास काव्य में १०१ पद्यों में अनुष्टुप छन्द के माध्यम से स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत की दशा का वर्णन विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया गया है। इसका प्रकाशन 'विश्वसंस्कृतं' (पत्रिका) में सन् २००८ में हुआ है।[41]

उपसंहार : संस्कृत साहित्य में विलास-संज्ञक काव्यों की परम्पराका परिशीलन करने पर हमें ज्ञात होता है कि विलास-संज्ञक काव्यों की रचनाकाव्य की सभी विधाओं अर्थात् रूपक,गद्य, महाकाव्य, खंडकाव्य,चम्पू आदि में हुई है। विलास-संज्ञक काव्यों की रचना संस्कृत साहित्य में प्राचीन समय से ही होती चली आ रही है। संस्कृत साहित्य का सर्वप्रथम विलास काव्य के रूप में हमें कालिदासकृत पुष्पबाणविलास एवं महेंद्रविक्रम का मत्तविलास प्रहसन मिलता है।विलास-संज्ञक काव्यों के अवलोकन से कहा जा सकता है कि प्राचीन काल में भी विलास काव्य अत्यधिक लोकप्रिय थे।विलास-संज्ञक काव्यों की रचना न केवल साधारण कवियों ने किया अपितु कालिदास, क्षेमेन्द्र तथा पंडितराज जगन्नाथ सदृश सुप्रसिद्धकवियों ने भी किया है।अतः कहा जा सकता है कि विलास-संज्ञक काव्य प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक निरन्तर रचे जा रहे है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

1. लोकोत्तर वर्णनानिपुण कवि कर्म काव्यम्। काव्यप्रकाश, २ वृत्ति;

2. दृश्यश्रब्यत्वभेदेन पुनः काव्यं द्विधा मतम्। साहित्यदर्पण, 6.1;

3. दृश्यं तत्राभिनेयं तदूपारोपातु रूपकम्।वहीं -6.2;।

4. नाटकमथ प्रकरणं भाणव्यायोगसमवकारडिमाः। ईहामृगांकवीथ्यः प्रहसनमिति रूपकाणि दश ॥ वहीं, 6.3;

5. श्रव्यं श्रोतव्यमात्रं तत्पद्यगद्यमयं द्विधा।वहीं, 6.313;

6. छन्दोंबद्धपदं पद्मम्। वहीं 6.314;

7. सर्गबन्धोमहाकाव्यम्। वहीं 6.315;।

8. खण्डकाव्यं भवेत्काव्यैकदेशानुसारि च। वहीं , 6.318;

9. पुष्पबाणविलास, चौ. संस्कृत सीरिज आफिस वाराणसी, संस्कृतसाहित्येतिहासः लोकमणिदहाल द्वितीय संस्करण, 1999 पृ. 305;

10. संस्कृत साहित्य का इतिहास, आचार्य बलदेव उपाध्याय,दशम संस्करण, 2001 पृ.580;

11. वहीं पृ.560;

12. औ.विचार चर्चा, रमाशंकरत्रिपाठी, प्रथम संस्करण, १९९२,पृ.९

13. संस्कृत साहित्य का बृहद इतिहास,चतुर्थखण्ड,संस्करण १९९७ पृ.२२९

14. राजतरंगिणी, 8; १४६.

15. नल विलास नाटकम : सेन्ट्रल लाइब्रेरी बरोदारा,१९२६

16. रमा शंकर दीक्षित- १३वी शताब्दी के जैनमहाकाव्य,मलिक एंड कंपनी जयपुर,सन् १९६९ पृ.१४५.

17. शिवविलास महाकाव्य-शूरनाड़ कुंचन पित्तल, पौरस्प्य ग्रन्थ १९५६, भू.पृ. 1.

18. संस्कृत साहित्य का बृहद इतिहास, चतुर्थ खण्ड,। पृ.५५९.

19. संस्कृत साहित्य का इतिहास, बलदेव उपाध्याय, संस्करण-2001, पृ.३० ०.

20. श्रीनिवासविलासचम्पू, संपादक-महामहोपाध्याय पं दुर्गा प्रसाद,

21. भामिनीविलास - चौखम्बा संस्कृत सीरीज,२००६

22. संस्कृत साहित्य का वृहद इतिहास, चतुर्थ खण्ड, पृ.५६५.

23. विष्णुविलासमहाकाव्य, ए.बी.जी.प्रेस त्रिवेंद्रम, १९५१.

24. लीलाविलास प्रहसन, आर. सुन्मान्यविद्या, पलघट, १९३५.

25. प्रकृतिविलास , कल्याण प्रेस,चिचुरपल्ली, १९५०.

26. संस्कृत वाड्मय का वृहद इतिहास, बलदेव उपाध्याय,। पृ.३६७.

27. वही, पृ. २५८.

28. यात्राविलास, विधा वैभव भवन, रामगंज, जयपुर,

29. गंगाप्रतापविलास नाटकं, ओरियंटल इंस्टिट्यूट, बरोदरा, १९७३।

30. थाईदेश विलासम , ईस्टर्न बुक लिंकर्स, डेल्ही, १९७९.

31. इंदू विलास, जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, दिसम्बर, १९८४.

32. मेघ विलासः जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधु भारत भारती शोध संस्थान, दिसम्बर, १९८४.

33. वसन्त विलास : जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, दिसम्बर, १९८४.

34. हिमगिरि विलासः जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, सितम्बर, १९८५.

35. बिडम्बना विलासः जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, सितम्बर, १९८५.

36. भानूदय विलास : जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, अगस्त, १९८६।

37. जयपुर विलास : जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान,१९८९.

38. शैलपुत्री विलासः जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधु भारत भारती शोध संस्थान, १९९६.

39. भारती विलास : राजस्थानी ग्रन्थगार, जोधपुर, २००२

40. प्रभा विलास : जगदीश प्रसाद सेमवाल , विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, २००५

41. तन्त्र भारत विलास : जगदीश प्रसाद सेमवाल, विश्वेश्वरानन्द विश्वबंधू भारत भारती शोध संस्थान, २००८

स्रोत[सम्पादन]