सदस्य:Aditya Anand Keshav
कविता- सिर्फ़ तुम • केशव
सिर्फ़ तुम • केशव
जब मेरी उससे अंतिम भेंट हुई थी, उसने बड़ी चतुराई से मुझसे कहा था।
केशव! तुम मुझे भूल जाओ। और इसके बदले में जो चाहिए तुम्हें, मैं वह सब देने को तैयार हूँ तुम्हें।
मैं कुछ क्षण मौन रहकर उसकी ओर देखता रहा, फिर एक गहरी सांस ली और कहा, छोड़ो, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए।
केशव! वह अत्यंत चतुर थी। काश! वह मेरी आँखों में झांक पाती, तो शायद समझ पाती कि मेरी आँखें तो जोर-जोर से कह रही थीं। केशव! मुझे केवल तुम चाहिए। मतलब! सिर्फ़ तुम।
/केशव
कविता के भाव इस कविता के भाव गहरे प्रेम, असहायता और त्याग के इर्द-गिर्द घूमते हैं। कविता में केशव की मानसिक स्थिति और भावनाओं का स्पष्ट चित्रण हुआ है, जो प्रेम में अपनी प्रिय को खोने के दर्द को सह रहा है। 1. अंतिम भेंट की स्थिति: कविता की शुरुआत एक ऐसी मुलाकात से होती है, जो अंतिम है। यह मुलाकात एक निर्णायक मोड़ है, जहां नायक (केशव) और नायिका के बीच भावनात्मक द्वंद्व चल रहा है। 2. प्रेमिका की चतुराई: प्रेमिका अपने शब्दों में बड़ी होशियारी दिखाती है। वह केशव से कहती है कि वह उसे भूल जाए और इसके बदले में कोई भी चीज़ मांग सकता है। यह एक तरह से उसकी दूरी और असंवेदनशीलता को दर्शाता है। 3. केशव का मौन और त्याग: केशव इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है। वह समझता है कि प्रेम में किसी चीज़ की कीमत नहीं लगाई जा सकती। उसका “छोड़ो, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए” कहना त्याग और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। 4. अंतर्द्वंद्व और अप्रकट भावनाएँ: केशव की आँखों में जो भाव छिपे हैं, वे असल में उसके दिल की सच्चाई हैं। वह कह नहीं पाता कि उसे कुछ भी नहीं चाहिए, सिवाय उसकी प्रिय के। यह विरोधाभास एक गहरी असहायता और प्रेम की तीव्रता को दर्शाता है। 5. सिर्फ़ प्रेम की चाहत: कविता के अंत में, केशव की आँखों का संदेश स्पष्ट है—उसे संसार की किसी भी चीज़ से संतोष नहीं होगा। उसे बस अपनी प्रिय चाहिए। यह प्रेम की शुद्धता और सच्चाई को दर्शाता है।
निष्कर्ष:
कविता प्रेम की उन जटिलताओं को उकेरती है, जहां शब्दों और हकीकत के बीच का फासला गहरा होता है। यह त्याग, दर्द और प्रेम की अमरता को बखूबी दर्शाती है। केशव का पात्र सच्चे प्रेम की मिसाल है, जो बिना किसी स्वार्थ के केवल अपने प्रिय की चाहत रखता है।