सबके लिए सुन्दर आवाजें

विकिपुस्तक से

सबके लिए सुन्दर आवाजें कवि नरेश अग्रवाल द्वारा रचित एक काव्य पुस्तक हैं। यह सन २००६ में प्रकाशन संस्थान, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ था।


विडम्बना

यह विडम्बना थी कि
इन सुंदर दृश्यों को छोडक़र
वापस मुझे आना होता था
मेरे ठहराव में उतनी गहराई नहीं थी
कि स्थापित कर लेता मैं वहीं, अपने आपको
केवल उनके रंगों से रंगता अपने आपको
और धीरे-धीरे वापस लौटने पर
चढ़ जाते थे इन पर, दूसरे ही रंग।
फिर भी मैंने कभी सोचा नहीं
एक जगह चुपचाप रहना ही अच्छा होगा
बल्कि फिर से तलाशी दूसरी धरती
और पाया ये भी वैसे ही हैं
पृथ्वी के रंगीन टुकड़े।
जीवन सभी जगह पर रह सकता था
क्या तो कठोरता में या क्या तो तरलता में
और जहां दोनों थे
वहीं अद्भुत दृश्य बन सके
और हमें दोनों से तादात्म्य बैठाना था।


चिनार के पेड़

वे चिनार के पेड़, एक साथ चार की संख्या में
जैसे एक परिवार और उन पर ढलते हुए सूर्य की रोशनी
अभी दूर थे हम उनसे
लेकिन कितना अधिक था
उनके पास जाने का मोह
वे काले-काले तने विशाल कद में
लदे हुए हरे-हरे पत्तों से
जैसे कई शक्तिशाली पुरुष खड़े हों एक साथ
कहीं भी देखो
आंखें फिर उनकी तरफ खिंच जाती
उनकी जड़ें बड़े गोलाकार चबूतरे सी
एक-दूसरे से मिली हुई
झील का पानी उनके समतल बहता हुआ
और सामने बादल सघन
कुहासे से सारा आकाश ढक़े हुए
हम जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहते थे इन पेड़ों तक
बैठना चाहते थे कुछ देर उनके पास
और अचानक बारिश इतनी तेज
पहुंच गयी नाव वापस दूसरे किनारे पर
सारा मोह भंग हो गया एकाएक
हम भी भींग रहे थे और साथ-साथ वे पेड़ भी
जो लग रहे थे पहले से अधिक खूबसूरत।