समसामयिकी जून 2019/विज्ञान और प्रौद्दोगिकी

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नासा द्वारा शनि के उपग्रह टाइटन पर‘ड्रैगनफ्लाई ड्रोन’भेजने की योजना[सम्पादन]

  • जीवन के निर्माणकारी घटकों की खोज़ के लिये नासा द्वारा इस मिशन को वर्ष 2026 में लॉन्च किया जाएगा जो वर्ष 2034 में पृथ्वी पर वापस आएगा।
  • यह अतीत के जीवन की संभावनाओं का भी अध्ययन करेगा।
  • नासा द्वारा पहली बार किसी अन्य ग्रह पर एक बहु-रोटर व्हीकल (Multi-Rotor Vehicle) उड़ाया जाएगा।
  • मल्टी-रोटर वाहन में आठ रोटर होंगे जो एक बड़े ड्रोन जैसे होंगे।
  • पाँच मील (8 किलोमीटर) की लंबी उड़ान के दौरान इसे भूमध्यरेखीय "शांगरी-ला" टीले पर उतारा जाएगा।
  • यह टाइटन के वायुमंडलीय और सतह के गुणों की जाँच करेगा साथ ही उप-महासागर सतहों तथा जलाशयों में अतीत के रासायनिक साक्ष्यों की भी जाँच करेगा।
  1. टाइटन शनि का सबसे बड़ा तथा सौरमंडल का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह है।
  2. इसकी सतह पर नदियाँ, झीलें और समुद्र हैं (हालाँकि इनमें मीथेन और एथेन जैसे हाइड्रोकार्बन होते हैं, पानी नहीं)।
  3. टाइटन का वातावरण पृथ्वी की तरह नाइट्रोजन से बना है, लेकिन इसका घनत्व पृथ्वी के घनत्व से चार गुना अधिक है।
  4. पृथ्वी के विपरीत यहाँ पर बादल भी उपस्थित है एवं मेथेन की बारिश होती है।
  5. यह सूर्य से लगभग 886 मिलियन मील (1.4 बिलियन किलोमीटर) दूर है।
  6. सूर्य से दूर होने के कारण टाइटन की सतह का तापमान -179 डिग्री सेल्सियस होता है।
  7. इसकी सतह का दबाव भी पृथ्वी से 50% अधिक होता है।

क्वांटम ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक[सम्पादन]

  • IIT मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने द्विविमीय फिल्म पर गोल्ड के नैनोकणों की ड्राप-कास्टिंग करके टंगस्टन डाईसेलेनाइड (Tungsten Diselenide- WSe2) के ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक गुणों (ऑप्टिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स का संयोजन) में लगभग 30 गुना तक वृद्धि करने के उपाय की खोज की है।एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स नामक विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित इस शोध का सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू कमरे के तापमान पर 100 केल्विन तक इन पदार्थों का नियंत्रित फोटोलुमिनेसेंस (Photoluminescence) माप करना था।
  • ड्रॉप कास्टिंग:-एक सरल प्रक्रिया में एक अधःस्तर (substrate) पर किसी विलयन को बूंद-बूंद करके गिराया जाता है।
  • टंगस्टन डाईसेलेनाइड (WSe2) और मोलिब्डेनम डाईसेलेनाइड (MoSe2) जैसे पदार्थों का उनके ऑप्टो-इलेक्ट्रॉनिक गुणों (Opto-Electronic Properties) के विश्लेषण के लिये गहन अध्ययन जारि।
  • इन पदार्थों का एक प्रमुख गुण प्रकाश संदीप्ति/फोटोलुमिनेसेंस (Photoluminescence-PL) है, जिसमें पदार्थ प्रकाश को अवशोषित करता है और इसे स्पेक्ट्रम के रूप में फिर से उत्सर्जित करता है।
  • फोटोलुमिनेसेंस गुणों का उपयोग विभिन्न उपकरणों जैसे कि क्वांटम LED तथा उपयोग संचार और अभिकलन (Computation) में किया जा सकता है।
  • अर्द्धचालकों में इलेक्ट्रॉन ऊर्जा बैंड के रूप में जुड़े रहते हैं जिसे संयोजकता बैंड (Valance Band) कहा जाता है और ये इलेक्ट्रॉन के चालन में योगदान करते हैं। परंतु, जैसे ही इनमें बाहर से कुछ ऊर्जा संचालित/अपवाहित की जाती है जिसे चालन बैंड (Conduction Band) कहा जाता है, तो ये अर्द्धचालक अस्थाई हो सकते हैं और चारों तरफ से चालन में योगदान कर सकते हैं।

एक्साइटॉन (Exciton)

  • जब एक इलेक्ट्रॉन चालन/संवहन बैंड के तहत संयोजकता से निकलता है, तो यह पीछे एक प्रतिछाया छोड़ जाता है जिसे ‘होल’ (Hole) कहते हैं। चालन बैंड के इलेक्ट्रॉन और संयोजकता बैंड के होल एक साथ मिलकर एक बैंड बना सकते हैं, जिससे एक संघटित वस्तु (Composite Object) या छद्मकण (Pseudoparticle) का निर्माण होता है जिसे एक्साइटॉन के रूप में जाना जाता है। टंगस्टन सेलेनाइड में फोटोलुमिनेसेंस ऐसे ही एक्साइटॉन्स का एक परिणाम है।
  • एक्साइटॉन का निर्माण दो तरीकों से हो सकता है। पहला जब किसी घटक में इलेक्ट्रॉन और होल का चक्रण (Spin) एक-दूसरे के विपरीत दिशा में हो और दूसरा जब वे एक ही दिशा में संरेखित हों। पहली स्थिति में बनने वाले एक्साइटॉन ब्राइट एक्साइटॉन (Bright Exciton) और दूसरी स्थिति में बनने वाले एक्साइटॉन को डार्क एक्साइटॉन (Dark Exciton) कहा जाता है।
  • चूँकि ब्राइट एक्साइटॉन बनाने वाले इलेक्ट्रॉन और होल एक दूसरे-की विपरीत दिशा में चक्रण करते हैं, अतः ये पुनः संयोजित होकर काफी मात्रा में प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। लेकिन पुनर्संयोजन का यह तरीका डार्क एक्साइटॉन के लिये उपलब्ध नहीं है।
  • चूँकि इलेक्ट्रॉन और होल के चक्रण एक-दूसरे समानांतर होते हैं, उनके पुनर्संयोजन को कोणीय संवेग संरक्षण के नियम से हतोत्साहित किया जाता है।इसलिये डार्क एक्साइटॉन,ब्राइट एक्साइटॉन की तुलना में लंबे समय तक बने रहते हैं।
  • डार्क एक्साइटॉन को पुनर्संयोजन में मदद करने के लिये बाह्य प्रभाव की आवश्यकता होती है। IIT मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने इन्ही बाह्य प्रभावों का पता लगाने का प्रयास किया है।

गोल्ड की क्षमता

  1. शोधकर्त्ताओं के अनुसार जब गोल्ड के नैनोकणों को एकल स्तरीय टंगस्टन डाईसेलेनाइड की सतह पर ड्राप कास्ट किया जाता है तो सतह पर पर डार्क एक्साइटॉन्स के युग्म की उत्पत्ति होती है जो प्रकाश उत्सर्जित करने के लिये पुनर्संयोजित होते हैं। इस प्रकार गोल्ड के नैनोकणों की मदद से डार्क एक्साइटॉन्स,ब्राइट एक्साइटॉन्स में बदल जाते हैं।
  2. गोल्ड के नैनोकणों के कारण उत्पन्न प्लास्मोनिक प्रभाव (Plasmonic effect) एक प्रसिद्ध अवधारणा है। लेकिन, द्विविमीय प्रणाली के लिये इसका उपयोग अभी नया है।
  3. वैज्ञानिकों के अनुसार यदि एकल स्तरीय (Monolayer) टंगस्टन डाईसेलेनाइड पर गोल्ड के नैनोकणों को ड्राप-कास्ट किया जाएगा तो यह प्लास्मोनिक प्रभाव के कारण समतलीय विदुतीय क्षेत्र उत्पन्न करेगा जो चालन बैंड के इलेक्ट्रॉनों के चक्रण को उसी स्थिति में बनाए रखने में मदद कर सकता है, इससे डार्क एक्साइटॉन, ब्राइट एक्साइटॉन में परिवर्तित हो जाते हैं।

प्रयोगशाला में विकसित चूज़े/चिकन की कोशिकाओं में बर्ड फ्लू को रोकने के लिये जीन-एडिटिंग तकनीक का उपयोग[सम्पादन]

  • एवियन इन्फ्लूएंजा एक विषाणु जनित रोग है,जिसे इन्फ्लूएंजा ए या टाइप ए (Type- A) विषाणु कहते है।‘H5N1’ बर्ड फ्लू का सामान्य रूप है।
  • महामारी का प्रकोप:-वर्ष 2009-10 में H1N1 वायरस के कारण होने वाली फ्लू महामारी में दुनिया भर से लगभग आधे मिलियन लोगों की मृत्यु हुई थी।
  • वर्ष 1918 में स्पेनिश फ्लू में लगभग 50 मिलियन लोग मारे गए।
  • स्वाइन फ्लू इन्फ्लूएंजा टाइप A वायरस का ही दूसरा नाम है जो सूअरों (स्वाइन) को प्रभावित करता है। यह आमतौर पर मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता है,लेकिन वर्ष 2009-2010 में इसने एक वैश्विक प्रकोप (महामारी) का रूप धारण कर लिया था, तब 40 वर्षों से अधिक समय के बाद फ्लू के रूप में कोई महामारी पूरी दुनिया में फैली थी।
  • यह H1N1 नामक संक्रामक फ्लू वायरस के कारण होता है,यह सूअर,पक्षी और मानव जीन का एक संयोजन है,जो सूअरों में एक साथ मिश्रित होते हैं और मनुष्यों तक फैल जाते हैं।
  • H1N1 एक प्रकार से श्वसन संबंधी बीमारी का कारण बनता है जो कि बहुत संक्रामक होता है।
  • H1N1 संक्रमण को स्वाइन फ्लू के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि अतीत में यह उन्हीं लोगों को होता था जो सूअरों के सीधे संपर्क में आते थे।
  • H1N1 की तीन श्रेणियाँ हैं - A, B और C।A और B श्रेणियों को घरेलू देखभाल की आवश्यकता होती है,जबकि श्रेणी C में तत्काल अस्पताल में भर्ती कराने और चिकित्सा की आवश्यकता होती है क्योंकि इसके लक्षण और परिणाम बेहद गंभीर होते हैं और इससे मृत्यु भी हो सकती है।

जीन एडिटिंग और अंतर्राष्ट्रीय विवाद[सम्पादन]

  • चीन के एक शोधकर्त्ता ने जीन एडिटिंग उपकरण CRISPR-CAS9 का प्रयोग एचआईवी (HIV) से संक्रमित एक गर्भवती महिला के भ्रूण के जीन को संशोधित/परिवर्तित करने के लिये किया।यह गर्भवती महिला अगस्त में जुड़वाँ बच्चियों को जन्म देने वाली है। जीन एडिटिंग प्रक्रिया द्वारा बच्चियों के जन्म लेने की घोषणा ने चिकित्सकीय शोध के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय विवाद को जन्म दे दिया है।
  • आम सहमति व्याप्त है कि जीन एडिटिंग तकनीक का प्रयोग केवल गंभीर बिमारियों के निदान के लिये किया जाना चाहिये। हालाँकि एचआईवी एक गंभीर और लाईलाज बीमारी है लेकिन औषधियों के प्रयोग द्वारा इसके वायरस को नियंत्रण में रखा जा सकता है। ऐसे में यह मुद्दा विवाद का विषय बना गया है।
  • जीन एडिटिंग द्वारा जीन को निष्क्रिय कर एचआईवी संक्रमण को पूरे तरीके से खत्म किया जा सकता है। ऐसे किसी कार्य का परीक्षण करने के लिये विश्व भर में क्लिनिकल ट्रायल की कोई सुविधा मौजूद नहीं है।
  • इस प्रकार के जीन एडिटिंग के निश्चित तौर पर कुछ साइड-इफेक्ट भी होंगे, उनसे निपटने के लिये हमारे पास किसी भी प्रकार की सुविधा मौजूद नहीं है।
  • एचआईवी संक्रमण से बचाव के लिये किये जाने वाले इस एडिटिंग की प्रक्रिया को बगैर किसी क्लिनिकल ट्रायल डाटा और सहमति के प्रयोग में लाना एवं किसी बच्चे/भ्रूण पर इसका प्रयोग अनैतिकता के दायरे में आता है।
  • जिन माता-पिता ने इस प्रयोग में भाग लिया था, उन्हें जीन को निष्क्रिय करने की समस्याओं के बारे में नहीं बताया गया था। जिस दिन इस खबर को प्रेस में छपा गया उसी दिन चीनी राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग ने ग्वांगग्डोंग स्वास्थ्य आयोग ( Guangdong Health Commission) जाँच के आदेश जारी कर दिये थे।
  • जाँच वैज्ञानिकों के अनुसार, डॉ. हे द्वारा किया गया यह अनुप्रयोग वर्ष 2003 के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है जो स्पष्ट रूप से, प्रजनन उद्देश्य को पूरा करने के लिये भ्रूण के जीन से छेड़-छाड़ को प्रतिबंधित करता है।
  • 26 फरवरी को चीन ने एक मसौदा पेश किया, जिसमें शोधकर्त्ताओं को क्लिनिकल ट्रायल करने से पूर्व सरकार से अनुमति लेने को आवश्यक बनाया गया। कथित नियमों के उल्लंघन में लिप्त पाए जाने वाले व्यक्ति को दंडित किया जाएगा और संबंधित शोध को आजीवन प्रतिबंधित किये जाने का भी प्रावधान है।
  • चिकित्सक शोधकर्त्ता ने जुड़वाँ बहनों में उपस्थित CCR5 नामक जीन को निष्क्रिय करने हेतु CRISPR CAS-9 जीन एडिटिंग का प्रयोग किया। इस जीन एडिटिंग में एक प्रोटीन को एनकोड कराया जाता है ताकि एचआईवी कोशिका में प्रवेश कर उसे संक्रमित कर सके।

CCR5 जीन और HIV

  • एचआईवी के कुछ अन्य उपभेद कोशिकाओं को संक्रमित करने के लिये एक और प्रोटीन (CXCR4) का उपयोग करते हैं।
  • जो लोग CCR5 जीन की दो प्रतियों के साथ पैदा होते हैं लेकिन इनकी CCR5 जीन की दोनों प्रतियाँ क्रियाशील नहीं होती है वे एचआईवी संक्रमण के खिलाफ पूरी तरह से संरक्षित या प्रतिरोधी नहीं होते हैं।
  • यह भी संभावना है कि जीन एडिटिंग टूल के प्रयोग द्वारा जीनोम के अन्य भागों में अनपेक्षित रूप से म्युटेशन हो सकता है जिससे संबंधित व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुँच सकता है।
  • दवाओं, ऑपरेशन के माध्यम से बच्चे के जन्म और बिना माँ के दूध के सेवन से भ्रूण में माँ से होने वाले वर्टीकल वायरल संचरण (Vertical Viral Transmission) को रोका जा सकता है। एचआईवी से पीड़ित महिलाओं से भ्रूण के संक्रमित होने संभावना अधिक होती है, कथित घटना में माँ एचआईवी-मुक्त थी, जबकि पिता एचआईवी संक्रमित थे।

CCR5 जीन के फायदे

  1. वेस्ट नील वायरस के खिलाफ लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।फेफड़े,गुर्दे, और दिमाग में होने वाले गंभीर किस्म के संक्रमण एवं बिमारियों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है।
  2. फेफड़ों में होने वाले इन्फ्लुएंजा के संक्रमण से लड़ने के लिये प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है।इसकी अनुपस्थिति में हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली कार्य करना बंद कर देगी तथा मल्टीपल स्केलेरोसिस नामक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों की जल्द मृत्यु होने की संभावना दोगुनी हो जाएगी।

मलेरिया के उपचार हेतु नई खोज[सम्पादन]

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, संपूर्ण विश्व में मलेरिया से सालाना 400,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो जाती है। परंतु हाल ही में पश्चिम अफ्रीका (West Africa) में किये गए एक परीक्षण में यह पाया गया है कि आनुवांशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified,GM) कवक एक-डेढ़ महीने में मलेरिया (Malaria) को खत्म कर सकता है।

  • शोधकर्त्ताओं ने इस परीक्षण हेतु कवक का आनुवंशिक रूप से संशोधित प्रारूप मेथेरिज़म पिंग्सशेंस (Metarhizum Pingshaense) का उपयोग किया।
  • मेथेरिज़म पिंग्सशेंस स्वभाव से लचीला (Flexible) होता है इसलिये इसे आसानी से आनुवांशिक रूप संशोधित किया जा सकता है।
  • जब इस कवक को यह ज्ञात हो जाता है कि वह किसी मच्छर के ऊपर बैठा हो तो यह बहुत तेज़ी से प्रतिक्रिया करता है।
  • GM कवक स्पाइडर नामक विष (Spider Toxin) का निर्माण करता है,जिसके कारण 45 दिन के अंदर 99% मच्छरों का सफाया हो जाता है।
  • संशोधित कवक में आनुवंशिक निर्देश प्राप्त करने की क्षमता विकसित की गई है ताकि यह मच्छर के अंदर प्रवेश कर विष बनाना शुरू कर दे।
  • मच्छरों में टॉक्सिन का प्रवेश कराये जाने हेतु ऑस्ट्रेलियन ब्लू माउंटेन फ़नल-वेब मकड़ी के जहर का प्रयोग किया जाता है।
  • GM कवक स्वाभाविक रूप से उन एनोफिलिस मच्छरों को संक्रमित करते हैं जो मलेरिया फैलाते हैं।
  • GM कवक केवल मच्छरों को पैदा करने वाले कीट एवं छल्ली (Mosquito’s Cuticle) में प्रवेश करते हैं,इसलिए यह कीटों के लाभदायक प्रजातियों जैसे कि मधुमक्खियाँ, ततैया इत्यादि के लिये किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न नहीं करते।
  • मेथेरिज़म पिंग्सशेंस का परीक्षण प्रयोगशाला के अंदर प्रयोग में लाए जा रहे चादरों पर किया गया।
  • इस शोध का परीक्षण एक गाँव में किया गया जहाँ मक्खियों के लिये प्रयुक्त 6,550 वर्ग फीट के जाल (Fly Net) का प्रयोग किया जाता था।
  • इस शोध की सत्यता जाँचने हेतु आनुवांशिक रूप से संशोधित कवक को जंगल में छोड़ा गया जो कि सफल रहा।
  • पूर्व में मलेरिया की रोकथाम हेतु कीटनाशकों के प्रयोग से मच्छरों में कीटनाशक-प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण हुआ है।
  • इस अनुसंधान ने मलेरिया की रोकथाम हेतु ट्रांसजेनिक अप्रोच (Transgenic Approach) में नया मार्ग प्रशस्त किया है।