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समसामयिकी नवंबर 2019/अर्थव्यवस्था

विकिपुस्तक से

भारत दुनिया में सोने की सबसे अधिक तस्करी करने वाले देश

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अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन IMPACT की रिपोर्ट के अनुसार अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के जिन क्षेत्रों में भ्रष्टाचार और मानव अधिकारों का हनन हो रहा है, वहाँ से आने वाला स्वर्ण भारत के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रवेश कर रहा है।

भारत प्रतिवर्ष लगभग 1,000 टन सोने का आयात करता है जो आधिकारिक आँकड़ों से एक-चौथाई अधिक है।

संसद में चिट फंड (संशोधन) विधेयक,2019 पारित(वित्तीय समावेशन)

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चिट फंड अधिनियम,1982 में महत्त्वपूर्ण बदलाव किये गए।

  • इस विधेयक में चिट फंड के लिये अनेक वैकल्पिक नामों के सुझाव दिये गए हैं जिससे इसके प्रति लोगों में एक नया भाव तथा विश्वास पैदा हो सके। जैसे- बंधुत्त्व कोष (Fraternity Fund),आवृत्ति बचत तथा ऋण संस्थान (Rotating Savings and Credit Institutions)आदि।
  • इस विधेयक में चिट फंड अधिनियम,1982 में परिभाषित कुछ शब्दावलियों को बदला गया है। जो इस प्रकार हैं।
  1. चिट राशि (chit amount) - वह राशि जो चिट फंड के सभी भागीदारों को जमा करनी होती है।
  2. लाभांश (Dividend) - चिट फंड के संचालन के लिये अलग रखी गई राशि में भागीदारों का हिस्सा।
  3. पुरस्कार राशि (Prize Amount) - चिट राशि तथा लाभांश का अंतर।

इस विधेयक के तहत इन तीनों को क्रमशः सकल चिट राशि (Gross Chit Amount), छूट की हिस्सेदारी (Share of Discount), निवल चिट राशि (Net Chit Amount) नाम दिया गया है।

  • चिट निकालते समय कम-से-कम दो सदस्यों का मौजूद होना अनिवार्य।इसके सदस्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा भी जुड़ सकते हैं।
  • फोरमैन के लिये कमीशन की राशि को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है।सबस्क्राइबर्स के क्रेडिट बैलेंस पर फोरमैन के वैध अधिकार की अनुमति देता है।
  • चिट फंड अधिनियम, 1982 द्वारा यह प्रावधान किया गया था कि एक व्यक्ति या चार व्यक्तियों के सहयोग से चलने वाले चिट फंड में जमा करने की अधिकतम राशि 1 लाख रुपए होगी इसे बढ़ाकर अब 3 लाख रुपए कर दिया गया है।
  • चार व्यक्तियों से अधिक या किसी फर्म द्वारा चलाए जा रहे चिट फंड में जमा करने की अधिकतम सीमा 6 लाख रुपए थी जिसे बढ़ाकर अब 18 लाख रुपए कर दिया गया है।
  • यह अधिनियम निम्नलिखित चिट फंड पर नहीं लागू होगा:
  1. वे चिट फंड जिन्हें अधिनियम लागू होने से पहले शुरू किया गया है।
  2. वे चिट फंड (या एक ही फोरमैन द्वारा चलाए जाने वाले कई चिट्स) जिनकी राशि 100 रुपए से कम है।
  • चिट फंड के लिये 100 रुपए की धनराशि की सीमा को समाप्त करता है तथा राज्य सरकारों को आधार राशि तय करने की अनुमति देता है जिससे अधिक की रकम होने पर एक्ट के प्रावधान लागू होंगे।

अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल

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  • NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार,चालू वित्त वर्ष(2019-20) की दूसरी तिमाही (Q2)में देश की GDP का कुल मूल्य लगभग 35.99 लाख करोड़ है,जो कि इसी वर्ष की पहली तिमाही (Q1)में 34.43 लाख करोड़ था।यह दर्शाता है कि भारत की GDP वृद्धि दर तकरीबन 4.5 प्रतिशत है।
  • निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में भी कमी।पिछले वित्तीय वर्ष (2018-19) की इसी तिमाही में यह PFCE 9.8% से गिरकार'5.1 प्रतिशत पर जा पहुँचा है। यह गिरावट देश में आम नागरिकों के मध्य आत्मविश्वास के संकट को स्पष्ट रूप से उजागर करती है।
  • सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) भी बीते वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (11.8 प्रतिशत) से गिरकर 1.0 प्रतिशत पर आ गया है।
  1. विदित हो कि GFCF का आशय सरकारी और निजी क्षेत्र में स्थायी पूंजी पर किये जाने वाले शुद्ध पूंजी व्यय के आकलन से है। माना जाता है कि यदि किसी देश के GFCF में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है तो उस देश के आर्थिक विकास में भी तेज़ी से वृद्धि होगी।
  2. बीते कुछ वर्षों से भारत के GFCF में गिरावट की प्रवृत्ति ही देखा जा रही है जो कि भारत की आर्थिक वृद्धि के लिये बिल्कुल भी संतोषजनक खबर नहीं है।

विनिर्माण क्षेत्र का सबसे खराब प्रदर्शन पिछले दो वर्षों के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। Q2 में विनिर्माण क्षेत्र ने (-) 1 प्रतिशत की दर से वृद्धि की है,वहीं पिछले वर्ष (2018-19) की दूसरी तिमाही (Q2) में यह दर 6.9 प्रतिशत थी। चालू वर्ष की पहली तिमाही में यह आँकड़ा 0.6 प्रतिशत रहा था।

  1. उपभोक्ता मांग में आई कमी को भी इसकी वजह माना जा रहा है

इसी वजह से बीते 2-3 वर्षों में इसकी क्षमता के इस्तेमाल में भी कमी आई है।

  1. NSO के हालिया आँकड़े औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) की ही कहानी को दोहरा रहे हैं। IIP में सामने आया था कि सितंबर माह में विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 3.9 फीसदी पर सिकुड़ गया था।
  • SBI ने दूसरी तिमाही में GDP वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत तथा कई अर्थशास्त्रियों ने जुलाई-सितंबर की तिमाही के लिये GDP विकास दर 4.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।
  • आर्थिक वृद्धि के सभी चार प्रमुख कारक - निजी उपभोग, निजी निवेश, सार्वजनिक निवेश और निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

वर्तमान आर्थिक स्थिति के कारण

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  1. विमुद्रीकरण का प्रभाव

विमुद्रीकरण या नोटबंदी के प्रभाव ने देश के निजी उपभोग को लगभग धराशायी कर दिया है। अब उपभोक्ता वस्तुओं पर खर्च करने के बजाय नकद जमा करना या बैंक में रखना पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में भी मांग काफी कम हो गई है, क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अधिकांशतः नकदी पर ही निर्भर करती है।बंगलूरू स्थित शोधकर्त्ताओं के अनुसारनोटबंदी के बाद वर्ष 2016 और वर्ष 2018 के बीच तकरीबन पाँच मिलियन लोग बेरोज़गार हो गए थे। इसने देश की निजी खपत को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इसके अलावा नोटबंदी ने छोटे और मध्यम व्यवसायों को भी प्रभावित किया है,क्योंकि वे भी अधिकांशतः नकदी के आधार पर ही कार्य करते हैं। दरअसल यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी ने देश की वर्तमान स्थिति को काफी प्रभावित किया गया है,क्योंकि एक ओर जहाँ इससे देश में मांग काफी कम हो गई तो दूसरी ओर वस्तुओं की आपूर्ति में भी अड़चनें पैदा हुईं।

  1. बैंकों का NPA

उच्च NPA की समस्या से त्रस्त अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के समक्ष और अधिक ऋण देने में समस्या उत्पन्न हो रही है।देश के बैंकिंग और नॉन बैंकिंग सेक्टर की स्थिति भी काफी अच्छी नहीं है, हालाँकि सरकार द्वारा इसे सुधारने के काफी प्रयास किये जा रहे हैं और संभवतः इन प्रयासों के परिणाम जल्द ही हमें देखने को मिलेंगे।

  1. वस्तु एवं सेवा कर (GST)

एक देश एक कर के रूप में GST को भारत में आर्थिक क्षेत्र के सबसे बड़े सुधारों में से एक माना जाता है किंतु इसके ढाँचे तथा क्रियान्वयन को लेकर उत्पन्न समस्याओं ने उद्यमों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। कुछ जानकार यह भी मान रहे हैं कि छोटे व्यवसायों पर नोटबंदी से अधिक GST का प्रभाव देखने को मिला है। GST के संबंध में जारी आँकड़ों से यह जानकारी मिलती है कि अगस्त माह के लिये GST संग्रहण घटकर एक लाख करोड़ रुपए से भी कम हो गया था।

  1. वैश्विक कारक

अमेरिका तथा चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध और उससे जनित वैश्विक मंदी को भी भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति का बड़ा कारण माना जा सकता है। वैश्विक स्तर पर लगातार निर्यात में गिरावट देखी जा रही है और वस्तुओं का निर्यातक होने के कारण भारत पर इसका काफी प्रभाव पड़ा है।

  1. रोज़गार में कमी

विमुद्रीकरण तथा GST के कारण असंगठित क्षेत्र में रोज़गार की कमी देखी गई है तथा विदेशी निवेश के सीमित होने से भी नए रोज़गारों का सृजन नहीं हो सका है। कुछ समय पूर्व NSO के आँकड़ों में यह रेखांकित किया गया था कि बेरोज़गारी पिछले 45 वर्षों में सर्वाधिक बढ़ी है। उपरोक्त कारकों से जहाँ रोज़गार में कमी आई,वहीं गुणवत्तापरक रोज़गार का सृजन नहीं हो सका,परिणामस्वरूप मांग में कमी आई।

  1. कठोर मौद्रिक नीति

भारत में वर्ष 2013-14 में खुदरा मुद्रास्फीति दर 9.4 प्रतिशत थी।जिसको कम करने के लिए पिछले कुछ वर्षों से कठोर मौद्रिक नीति पर बल दिया गया और इसके तहत रेपो दरों को ऊँचा रखा गया जिससे बाज़ार में उधार लेने की क्षमता कम हो गई क्योंकि ऋण महँगे हो गए। परिणामस्वरूप मुद्रास्फीति में कमी आई, वर्ष 2018-19 के लिये 3.4 प्रतिशत रही लेकिन इसने मौद्रिक नीति बाज़ार को भी कमज़ोर कर दिया। RBI पुन:लगातार रेपो दरों को कम कर स्थिति में सुधार लाने का प्रयास कर रहा है। तीसरी तिमाही में हो सकता है सुधार

  1. केंद्र सरकार ने अगस्त महीने में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सहायता करने के उद्देश्य से 70 हज़ार करोड़ रुपए की राशि की घोषणा की।
  2. सरकार ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों पर लगने वाले अधिभार को भी वापस ले लिया था।
  3. सभी स्टार्टअप्स और उनके निवेशकों पर लागू होने वाले एंजेल टैक्स को समाप्त करने की भी बात कही गई थी।
  4. सरकार ने GST परिषद की बैठक में आर्थिक विकास,निवेश और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कॉरपोरेट कर की दर में कटौती की घोषणा भी की थी।

दूसरी ओर RBI भी लगातार अपनी ओर से रेपो रेट में कटौती कर मांग को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। आगे की राह

  1. सर्वप्रथम सरकार को यह सोचना बंद करना होगा कि सब कुछ नियंत्रण में।
  2. देश की आर्थिक स्थिति के लिये मात्र वैश्विक कारकों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो चीन और बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था क्रमशः 6 और 7 फीसदी की दर से विकास नहीं करती।
  3. जानकारों का मानना है कि क्षेत्र विशेष में हस्तक्षेप का दृष्टिकोण कुछ हद तक देश की आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकता है, परंतु स्थिर और टिकाऊ विकास के लिये अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने वाले गहन संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है।

मणिपुर में लोकटक अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजना

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वर्गाकार
वर्गाकार
  • केंद्रीय शिपिंग मंत्रालय ने केंद्रीय क्षेत्र की योजना के तहत के विकास को मंज़ूरी दी।
  • इस परियोजना पर 25.58 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है।
  • पूर्वोतर अत्यंत आकर्षक भू-परिदृश्य वाला एक मनोरम क्षेत्र है और यहाँ पर्यटन के लिये अपार अवसर हैं। इस परियोजना के तहत पूर्वोतर राज्यों में अंतर्देशीय जल परिवहन कनेक्टिविटी को विकसित किया जाएगा और इससे पर्यटन क्षेत्र को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • लोकटक झील की भौगोलिक स्थिति:
  • लोकटक झील पूर्वोत्तर में ताज़े पानी की सबसे बड़ी झील है।
  • यह मणिपुर के मोइरंग (Moirang) शहर में स्थित है। तैरते हुए द्वीप इस झील की मुख्य विशेषता है।
  • विश्व का एकमात्र तैरता हुआ कीबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान (Keibul Lamjao National Park) इसी झील में स्थित है।
  • यह आर्द्र्भूमियों की रामसर सूची में भी शामिल है।
  • इस झील को ‘लाइफलाइन ऑफ मणिपुर’ (Life Line Of Manipur) भी कहा जाता है।

दिल्ली में कृषि सांख्यिकी पर 8वाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन ICAS-VIII)का आयोजन 18-21नवंबर=

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  • आयोजन केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय,अंतर्राष्ट्रीय सांख्यिकी संस्थान,कृषि सांख्यिकी समिति,खाद्य और कृषि संगठन,विश्व बैंक तथा विभिन्न अन्य संगठनों के सहयोग से किया गया।
  • थीम-‘सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु कृषि परिवर्तन के आँकड़े’
  • यह देश में कृषि सांख्यिकी से संबंधित इस तरह का पहला सम्मेलन है।
  • उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों और विभिन्न अग्रणी अनुसंधानों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये डेटा के उत्पादन में आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने तथा कृषि सांख्यिकी के क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रथाओं को चुनकर उन्हें अंतिम रूप देना है।
  • यह भारत में सांख्यिकीविदों,युवा वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को कृषि में आधुनिक प्रथाओं जैसे- बिग डेटा विश्लेषण,भावनात्मक बुद्धिमत्ता आदि को अपनाने का अवसर प्रदान करेगा।

ICAS दुनिया भर में कृषि सांख्यिकी से संबंधित सम्मेलनों की एक शृंखला है जिसे वर्ष 1998 में शुरू किया गया था। यह सम्मेलन प्रत्येक तीन साल में आयोजित किया जाता है,इससे पहले इस सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2016 में रोम में किया गया था। इसके एजेंडे में खाद्य और कृषि सांख्यिकी से संबंधित कार्यप्रणाली,प्रौद्योगिकी तथा प्रक्रियाओं के क्षेत्र शामिल हैं।

किसान (फार्मर्स) क्लब

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  • केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार 31 अक्तूबर,2019 तक विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लगभग 24,321 सक्रिय किसान क्लब (Farmers Clubs) मौजूद थे।
  • यह नाबार्ड का एक अनौपचारिक मंच है।
  • 5 नवंबर,1982 को नाबार्ड को राष्ट्र को समर्पित करते हुए भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ‘क्रेडिट के माध्यम से विकास’ के पाँच सिद्धांतों’ को प्रचारित करने के लिये ‘विकास स्वयंसेवक वाहिनी’ (Vikas Volunteer Vahini-VVV) कार्यक्रम शुरू किया।
  • वर्ष 2005 में VVV कार्यक्रम को किसान क्लब कार्यक्रम (FCP) के रूप में नामांकित किया गया।
  • उद्देश्य:-इन्हें बैंकों और किसानों के आपसी लाभ के लिये कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य किसानों के लिये तकनीकी के हस्तांतरण,साख (क्रेडिट) के माध्यम से विकास,जागरूकता और क्षमता निर्माण करना है।

हरित इस्पात मिशन

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  • पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्रालय ने इस्पात उद्योग से इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में काम करने का आह्वान किया है।
  • हरित इस्पात,इस्पात निर्माण की ऐसी प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो हरितगृह गैसों के उत्सर्जन को कम करने और कम लागत के साथ-साथ इस्पात की गुणवत्ता में सुधार करता है।
  • यह कार्य कोयले के स्थान पर गैस का प्रयोग तथा इस्पात के पुनर्चक्रण से ही संभव है।
  • इसी संदर्भ में भारत के पूर्वी हिस्से में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री ऊर्जा गंगा परियोजना की शुरुआत की गई है।
  • यह परियोजना इस क्षेत्र में स्थित सभी इस्पात संयंत्रों को गैस की आपूर्ति करेगी।
  • इसके अलावा इस्पात निर्माण की प्रक्रिया में कोयले की जगह लेने में मदद करेगी क्योंकि कोयले के उपयोग से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का अधिक उत्सर्जन होता है।

केंद्रीय सड़क और बुनियादी ढाँचा निधि,CRIF

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  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र-2019 के दौरान लोकसभा में इसके बारे में चर्चा की गई।
  • वर्ष 2000 में केंद्रीय सड़क निधि अधिनियम,2000 के तहत स्थापित केंद्रीय सड़क निधि का नाम बदलकर CRIF।
  • इस निधि में पेट्रोल और डीज़ल पर लगाए गए उत्पाद शुल्क के साथ उपकर भी शामिल है।
  • प्रशासनिक नियंत्रण वित्त मंत्रालय के अंतर्गत है।पूर्व में CRIF, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अधीन था।
  • केंद्रीय सड़क निधि अधिनियम (संशोधन),2018
  1. केंद्रीय सड़क निधि का नाम बदलकर केंद्रीय सड़क और बुनियादी ढाँचा निधि कर दिया गया।
  2. सड़क उपकर से प्राप्त आय के उपयोग की अनुमति अन्य अवसंरचना परियोजनाओं जैसे-जलमार्ग, रेलवे बुनियादी ढाँचे का कुछ हिस्सा और यहाँ तक कि कुछ सामाजिक बुनियादी संबंधी ढाँचे की परियोजनाओं जैसे- शिक्षा संस्थान, मेडिकल कॉलेज आदि के वित्तपोषण के लिये दी गई।