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समसामयिकी 2020/अंतरराष्ट्रीय संबंध

विकिपुस्तक से

सऊदी अरब के नेतृत्त्व में G-20 समूह के राष्ट्रीय नेताओं द्वारा COVID-19 महामारी से निपटने की दिशा में एक वीडियो सम्मेलन आयोजित

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इस आभासी सम्मेलन (Virtual Summit) का नेतृत्त्व सऊदी अरब, जो वर्तमान में (वर्ष 2020 के लिये) इस आर्थिक समूह के अध्यक्ष हैं, कर रहा है । किसी एक देश को प्रतिवर्ष इसके अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है, जिसे 'G- 20 प्रेसीडेंसी' के रूप में जाना जाता है। अर्जेंटीना द्वारा वर्ष 2018 में तथा जापान द्वारा वर्ष 2019 में G- 20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता की गई थी। वर्ष 2020 के सम्मेलन में स्पेन, जॉर्डन सिंगापुर एवं स्विट्ज़रलैंड आमंत्रित देश के रूप में शामिल हो रहे हैं।

शामिल होने वाले प्रमुख समूह व देश:- इस G- 20 सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों के अलावा आमंत्रित देश-स्पेन, जॉर्डन, सिंगापुर एवं स्विट्जरलैंड, के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय संगठन- संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations), विश्व बैंक समूह (World Bank Group), विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation), विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation), खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development) के नेता शामिल होंगे।

वियतनाम दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ का, दक्षिण अफ्रीका अफ्रीकी संघ का, संयुक्त अरब अमीरात खाड़ी सहयोग परिषद तथा रवांडा अफ्रीका के विकास के लिये नई साझेदारी (New Partnership for Africa’s Development) का प्रतिनिधित्व करेगा। भारत सरकार द्वारा नेतृत्त्व:-भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा प्रारंभ, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) वीडियो शिखर सम्मेलन के बाद यह दूसरा आभासी नेतृत्त्व शिखर सम्मेलन (Virtual Leadership Summit) होगा। 15 मार्च 2020 को ‘सार्क आभासी शिखर सम्मेलन’ का आयोजन ‘सार्क COVID-19 आपातकालीन फंड’ के निर्माण हेतु किया गया था। G- 20 आभासी शिखर सम्मेलन का आयोजन COVID-19 का सामना करने के लिये विस्तृत योजना बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है। G- 20 समूह:-वर्ष 1997 के वित्तीय संकट के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर एकत्रित होना चाहिये। G-20 समूह की स्थापना वर्ष 1999 में 7 देशों-अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्राँस और इटली के विदेश मंत्रियों द्वारा की गई थी। G-20 का उद्देश्य वैश्विक वित्त को प्रबंधित करना है। शामिल देश:-इस फोरम में भारत समेत 19 देश तथा यूरोपीय संघ भी शामिल है। जिनमें अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। G- 20 एक मंच के रूप में कार्य करता है न कि एक संगठन के रूप में, अत: इसका कोई स्थायी सचिवालय और प्रशासनिक संरचना नहीं है।

ईरान का परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) से पीछे हटने पर विचार

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ईरान ने यह वक्तव्य दिया है कि यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष उसके परमाणु कार्यक्रमों को लेकर विवाद उत्पन्न होता है तो वह परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) से पीछे हटने पर विचार करेगा। ब्रिटेन, फ्राँस और जर्मनी ने ईरान पर वर्ष 2015 में हुए परमाणु समझौते के नियमों का पालन करने में विफल रहने के कारण एक संकल्प प्रस्तावित किया है, जिसे ईरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के आरोपण की आशंका के रूप में देख रहा है।

वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस समझौते से अपना नाम वापस लेने के बाद इस समझौते के प्रावधानों को लेकर ईरान ने यूरोपीय संघ के तीन सदस्य देशों पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है।

वर्ष 2015 में ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा जर्मनी (P5+1 ) ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था। इस समझौते में ईरान द्वारा अपने परमाणु कार्यक्रमों पर नियंत्रण तथा उन्हें अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के नियमों के आधार पर संचालित करने की सहमति देने की बात की गई।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण एक स्वायत्त संस्था है, जिसका उद्देश्य विश्व में परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है। इसका गठन 29 जुलाई, 1957 को हुआ था। इसका मुख्यालय वियना (आस्ट्रिया) में है।

यह संयुक्त राष्ट्र का अंग नही है परंतु संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा सुरक्षा परिषद को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। वर्तमान में इसके महानिदेशक राफेल मारिआनो ग्रॉसी (Rafael Mariano Grossi) हैं। इसके बदले में P5+1 देशों द्वारा ईरान पर लगे प्रतिबंधों को हटाने के लिये समझौता किया गया। वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा इस समझौते से हटने के बाद ईरान भी समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से क्रमशः पीछे हट रहा है। ईरान द्वारा अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के कारण तीनों यूरोपीय देशों ने भी इस समझौते के प्रति निष्क्रियता दिखाई है। हालाँकि ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि यदि यूरोपीय देश अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हैं तो ईरान भी अपनी प्रतिबद्धताएँ पूर्ण करेगा।

परमाणु अप्रसार संधि एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, इसके तीन प्रमुख लक्ष्य हैं: परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना तथा परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण उपयोग के अधिकार को सुनिश्चित करना।

इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए, जो वर्ष 1970 से प्रभावी है। वर्तमान में इस संधि में 191 देश शामिल हैं। भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। भारत का विचार है कि NPT संधि भेदभावपूर्ण है अतः इसमें शामिल होना उचित नहीं है। भारत का तर्क है कि यह संधि सिर्फ पाँच शक्तियों (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्राँस) को परमाणु क्षमता का एकाधिकार प्रदान करती है तथा अन्य देश जो परमाणु शक्ति संपन्न नहीं हैं सिर्फ उन्हीं पर लागू होती है। प्रभाव: ईरान के इस समझौते से बाहर निकलने से मध्य पूर्व में शक्ति का संतुलन समाप्त हो जाएगा और ईरान द्वारा परमाणु कार्यक्रम के प्रसार से सऊदी अरब, इज़रायल तथा ईरान के मध्य युद्ध की स्थिति निर्मित हो सकती है। खाड़ी क्षेत्र में उत्पन्न तनाव क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से खतरनाक तो है ही, ऊर्जा सुरक्षा को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से भारत के बजट और चालू खाता घाटे पर नकारात्मक असर पडे़गा। इसके साथ ही अफगानिस्तान तक पहुँचने के लिये भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में अशांति का माहौल भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।

अमेरिकी वाणिज्य मामलों की एजेंसी यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेन्टेटिव(United States Trade Representative-USTR)द्वारा विकासशील एवं अल्प विकसित देशों की नई सूची जारी

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  • इस सूची के अंतर्गत शामिल देशों को ‘काउंटर वेलिंग ड्यूटी’ इन्वेस्टीगेशन के संदर्भ में रियायत दी जाती है।
  • वर्ष 2018 में अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार (कुल निर्यात का तक़रीबन 16.0%) था। तथाकथित नियमों में बदलाव के कारण भारतीय निर्यात प्रभावित होगा।
  • अमेरिका पर प्रभाव:-USTR के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत और अमेरिका के बीच 142.6 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ इसमें अमेरिकी निर्यात 58.7 बिलियन डॉलर का तथा भारतीय आयात 83.9 बिलियन डॉलर मूल्य का था जिसके कारण अमेरिका का भारत से व्यापार घाटा वर्ष 2018 में 25.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
  • अमेरिका के द्वारा व्यापारिक नियमों में बदलाव कर व्यापार घाटे को कम करने की कोशिश की जा रही है।
काउंटर वेलिंग ड्यूटी (CVD)
  1. आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला एक कर,जिसका प्रयोग आयातित वस्तुओं पर दी जाने वाली सब्सिडी के प्रभाव को न्यून करने के लिये होता है।
  2. इस कर का उद्देश्य आयातित वस्तु के संदर्भ में किसी समान प्रकृति के घरेलू उत्पाद को मूल्य प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ने से बचाना है।
  3. यह एक प्रकार का एंटी-डंपिंग टैक्स होता है। डंपिंग अर्थात् जब कोई वस्तु/उत्पाद किसी देश द्वारा दूसरे देश को उसके सामान्य मूल्य से कम कीमत पर निर्यात किया जाता है। यह एक अनुचित व्यापार अभ्यास है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर एक विकृत प्रभाव डाल सकता है।

पृष्ठभूमि:

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  • USTR ने वर्ष 1998 में विश्व व्यापार संगठन के सब्सिडी व काउंटर वेलिंग ड्यूटी से संबंधित अनुबंधों के आलोक में विभिन्न देशों को उनके विकास स्तर के अनुसार सूचीबद्ध किया था।
  • आयात बहुत कम होने या आयात पर मिलने वाली सब्सिडी अति-न्यून होने की स्थिति में CVD को समाप्त किया जा सकता है।
  • 10 फरवरी, 2020 तक भारत USTR के विकासशील देशों की सूची में शामिल था जिसकी वजह से उसे आयात पर नियत सीमा से अधिक छूट प्राप्त थी किंतु सूची से बाहर होने के कारण अब भारतीय उत्पादों को आयात और सब्सिडी से संबंधित रियायतें नहीं दी जाएंगी।
  • नई सूची में 36 विकासशील और 44 अल्पविकसित देश शामिल किये गए हैं।
  • यदि कोई देश किसी वस्तु का 3% से कम आयात (अमेरिका में उस वस्तु के कुल आयात का) करता है तो इसे उस वस्तु का नगण्य आयात माना जाएगा। विशेष परिस्थितियों में यह सीमा 4% है।
  • किसी वस्तु का अमेरिका में विभिन्न देशों का कुल आयात 7% होने पर उसे नगण्य आयात की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
  • कोई देश कम आय वाले देशों की श्रेणी में रखा जाएगा या नहीं इसका निर्धारण USTR निम्नलिखित बिंदुओं के आलोक में करता है ।
  • प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय या GNI
  • विश्व व्यापार में हिस्सेदारी
  • अन्य कारक जैसे आर्गेनाईजेशन फॉर इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (OECD) की सदस्यता या सदस्यता के लिये आवेदन, यूरोपियन यूनियन की सदस्यता या G20 की सदस्यता।
  • भारत, ब्राज़ील, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और वियतनाम को इस सूची से बाहर कर दिया गया है। जहाँ इन सभी देशों की विश्व व्यापार में हिस्सेदारी कम-से-कम 0.5% है, वहीं सकल राष्ट्रीय आय 12,375 डॉलर (विश्व बैंक के द्वारा उच्च आय वाले देशों की सीमा) से कम है।
  • USTR के अनुसार, G20 का सदस्य होने के कारण भारत को विकासशील देशों की सूची में स्थान नहीं दिया गया है।
  • USTR के अनुसार, G20 का आर्थिक प्रभाव और विश्व व्यापार में हिस्सेदारी सदस्य देशों का विकसित होना सुनिश्चित करती है।

13 फरवरी को मादक द्रव्यों की तस्करी रोकने के उद्देश्य सेनई दिल्ली में दो दिवसीय बिम्सटेक(बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल)सम्मेलन का आयोजन

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केंद्रीय गृह मंत्री ने बताया कि सरकार ने मादक पदार्थों की तस्करी एवं व्यापार को नियंत्रित करने के लिये जो नीति बनाई है उससे भारत में न तो मादक पदार्थों को प्रवेश करने दिया जाएगा और न ही भारत की ज़मीन का प्रयोग मादक पदार्थों की तस्करी में होने दिया जाएगा।

सरकार नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिये भोपाल में केंद्रीय अकादमी की स्थापना कर रही है।
भारत में इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से होने वाले मादक पदार्थों की तस्करी के बारे में जागरुकता बढ़ाने की पहल की गई है।
भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय स्थापित कर पिछले 5 वर्षों में बांग्लादेश, श्रीलंका, इंडोनेशिया, म्‍याँमार, सिंगापुर आदि देशों से मादक पदार्थों की तस्करी के मुद्दे पर चर्चा की है।
भारत सरकार ने ‘ड्रग फ्री इंडिया (Drug Free India)’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये मज़बूती से अपने कदम बढ़ाएं हैं।
  1. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की स्थापना स्वापक औषधियाँ और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act), 1985 द्वारा मार्च 1986 में की गई।
  2. यह गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।मुख्यालय नई दिल्ली में तथा क्षेत्रीय कार्यालय मुंबई, इंदौर, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, लखनऊ, जोधपुर, चंडीगढ़, जम्मू, अहमदाबाद, बंगलूरु, गुवाहाटी और पटना में स्थित हैं।
  3. उद्देश्य:-मादक पदार्थों की तस्करी पर रोक लगाना है।
  4. देश के सीमांत क्षेत्रों पर नज़र रखना ताकि विदेशी तस्करों की गतिविधियों को सीमा पर ही नियंत्रित किया जा सके।
  5. यह मादक पदार्थ प्रवर्तन एजेंसियों के कर्मियों को संसाधन और प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर श्रीलंकाई प्रधानमंत्री महिंद्रा राजपक्षे ने 8-11 फरवरी,2020 तक भारत का दौरा किया

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इस दौरान उन्होंने वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर,बिहार के बोधगया में महाबोधि मंदिर और आंध्र प्रदेश में तिरुपति मंदिर भी गए।

भारत - श्रीलंका संबंध: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में
  1. भारत श्रीलंका का निकटतम पड़ोसी है। दोनों देशों के बीच संबंध 2,500 साल से अधिक पुराना है और दोनों पक्षों ने बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषायी सहयोग की विरासत का निर्माण किया है।
  2. श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान भारत ने विद्रोही ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये श्रीलंकाई सरकार का समर्थन किया था।
  3. भारतीय आवास परियोजना (Indian Housing Project) भारत सरकार द्वारा श्रीलंका को विकासात्मक सहायता देने के लिये प्रमुख परियोजना है।इस परियोजना के तहत गृहयुद्ध से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों तथा चाय बागान क्षेत्रों के श्रमिकों के लिये 50,000 घरों का निर्माण करना है।
  4. भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य अभ्यास (मित्र शक्ति- Mitra Shakti) और नौसेना अभ्यास (स्लीनेक्स- SLINEX) का आयोजन करते हैं।
  5. हाल ही में 41 वर्षों के अंतराल के बाद भारत के चेन्नई शहर से श्रीलंका के जाफना के लिये उड़ान सेवा फिर से शुरू हुई जिसे श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान बंद कर दिया गया था।
  • तमिल मुद्दा:-श्रीलंका में तमिल मुद्दों के समाधान की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिये भारत ने श्रीलंका पर भरोसा जताया है।
  • भारत ने श्रीलंका में समानता, न्याय, शांति और सम्मान हेतु तमिलों की आकांक्षाओं को पूरा करने का भी अनुरोध किया है।
  • युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में विकास:
  • श्रीलंका ने भारत से उत्तर और पूर्व में अधिक घर बनाने का अनुरोध किया है।जबकि भारत ने अब तक युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में 46,000 घरों का निर्माण करने में मदद की है।
  • श्रीलंका ने गहरे समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने की तकनीक के लिये सहायता प्रदान करने का भी अनुरोध किया है जिससे श्रीलंकाई लोगों के लिये रोज़गार सृजित करने में मदद मिलेगी।
  • संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन प्राधिकरण(Joint Marine Resources Management Authority):
  • दोनों देशों ने अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले मछुआरों के कारण उत्पन्न विवाद के समाधान के लिये कुछ व्यावहारिक व्यवस्थाओं पर सहमति व्यक्त की है।
  • श्रीलंका ने दो देशों के बीच एक संयुक्त समुद्री संसाधन प्रबंधन प्राधिकरण स्थापित करने का भी प्रस्ताव दिया है।
  • इस प्राधिकरण में दोनों देशों के सात सदस्य होंगे जिनमें नौकरशाह,शोधकर्त्ता,मछुआरों के संघ के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
  • प्रस्तावित प्राधिकरण से पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) क्षेत्र में मछली पकड़ने को लेकर होने वाले मत्स्य संघर्ष का स्थायी समाधान खोजने में मदद मिलेगी।
  • पाक जलडमरूमध्य, भारत के तमिलनाडु राज्य और श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के जाफना ज़िले के बीच स्थित है।
  • ऋण जाल (Debt Trap):-भारत ने चीन की ऋण जाल कूटनीति में फँसे श्रीलंका से इस ऋण जाल के संबंध में चर्चा की।
  • ऋण जाल कूटनीति का तात्पर्य चीन द्वारा विकासशील या अविकसित देशों जैसे- अफ्रीकी देश जो अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के लिये धन उधार लेते हैं, को लुभाने या फँसाने की रणनीति है।
  • हिंद महासागरीय क्षेत्र:-दोनों देशों ने हिंद महासागरीय क्षेत्र और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति एवं समृद्धि के लिये आपस में सहयोग करने पर सहमति जताई।
  • भारत ने अपनी पड़ोसी पहले (Neighbourhood First) की नीति और सागर- क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा एवं संवृद्धि (SAGAR- Security and Growth for all in the Region) के तहत हिंद महासागर की सुरक्षा को भी सुदृढ़ किया।
  • सागर(SAGAR)कार्यक्रम को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मॉरीशस यात्रा के दौरान वर्ष 2015 में नीली अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने हेतु शुरू किया गया था।
  • इस कार्यक्रम के माध्यम से भारत हिंद महासागर क्षेत्र में शांति,स्थिरता और समृद्धि भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।
  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सभी देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री नियमों और मानदंडों का सम्मान,एक-दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशीलता,समुद्री मुद्दों का शांतिपूर्ण समाधान तथा समुद्री सहयोग में वृद्धि करना इत्यादि है।
  • आतंकवाद:-दोनों देशों ने अपनी आतंकवाद विरोधी एजेंसियों के बीच संपर्क एवं सहयोग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)द्वारा प्रारंभ किये गए ‘स्टेप विद रिफ्यूजी’ (Step with Refugee)अभियान

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  • इसमें कई भारतीय तथा गैर भारतीय शरणार्थी समस्या को समझने के संदर्भ में इस अभियान में भाग ले रहे हैं।
  • पूरे विश्व में कई ऐसे परिवार हैं जिन्हें पलायन के लिये मज़बूर किया गया है तथा वे जीवित रहने के लिये असाधारण प्रयास करते हैं।
  • ऐसे समय में जब अधिक-से-अधिक परिवार विभिन्न वैश्विक संकटों के कारण अपने घरों से पलायन के लिये मज़बूर हो रहे हैं, UNHCR द्वारा उनके परिवारों को सुरक्षित रखने के लिये तथा उनके जुझारूपन और दृढ़ संकल्प का सम्मान करने के लिये इस अभियान की शुरुआत की गई है।
  • इस सामूहिक प्रयास के माध्यम से वैश्विक एकजुटता स्थापित करने,शरणार्थियों के संबंध में बेहतर समझ बनाने और शरणार्थियों की रक्षा के लिये धन जुटाने के साथ-साथ उनके जीवन के पुनर्निर्माण में सहायता की जाएगी।
शरणार्थियों की बेहतर समझ का निर्माण
  • UNHCR ने शरणार्थियों को लेकर फैली कई तरह की भ्रांतियों को निम्नलिखित तथ्यों के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया है-
  • शरणार्थी हमेशा युद्ध या उत्पीड़न के कारण दूसरे देशों में जाने के लिये मजबूर होते हैं। उन्हें "शरणार्थी" के रूप में मान्यता इसलिये दी जाती है, क्योंकि उनके लिये प्रवासियों के समान घर वापस आना बहुत जोखिमपूर्ण होता है।
  • अधिकांश शरणार्थी घर के निकट रहने के लिये पड़ोसी देशों में सर्वाधिक पलायन करते हैं, इनमें से केवल 1% अन्य देशों में जाकर बसते हैं।
  • दुनिया भर में, एक तिहाई से भी कम लोग शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं। अधिकांश शरणार्थी जीवन-यापन के लिये शहरों और कस्बों में जीवित रहने के लिये संघर्ष कर रहे हैं।

शरणार्थी एवं प्रवासी के मध्य अंतर:

  1. शरणार्थी अपने देश में उत्पीड़न अथवा उत्पीड़ित होने के भय से पलायन को मज़बूर होते हैं। जबकि प्रवासी का अपने देश से पलायन विभिन्न कारणों जैसे-रोज़गार, परिवार, शिक्षा आदि के कारण भी हो सकता है किंतु इसमें उत्पीड़न शामिल नहीं है।
  2. इसके अतिरिक्त प्रवासी को (चाहे अपने देश में हो अथवा अन्य देश में) को स्वयं के देश द्वारा विभिन्न प्रकार के संरक्षण का लाभ प्राप्त होता रहता है।

भारत में शरणार्थियों की समस्या:

चकमा और हाजोंग शरणार्थी
  1. मूलतः पूर्वी पाकिस्तान के चटगांव हिल ट्रैक्ट्स (Chittagong Hill Tracts) के निवासी थे।परन्तु कर्नाफुली नदी पर बनाए गए कैपटाई बांध के कारण जब वर्ष 1960 में उनका क्षेत्र जलमग्न हो गया तो उन्होंने अपने मूल स्थान को छोड़कर भारत में प्रवेश किया।
  2. दरअसल,चकमा बौद्ध हैं,जबकि हाजोंग हिन्दू हैं।इन दोनों जनजातियों ने बांग्लादेश में कथित तौर पर धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया तथा असम की लुशाई पहाड़ी (जिसे अब मिज़ोरम कहा जाता है) के माध्यम से भारत में प्रवेश किया।
  3. इसके पश्चात् भारत सरकार द्वारा अधिकांश शरणार्थियों को उत्तर-पूर्व सीमान्त एजेंसी(जिसे अब अरुणाचल प्रदेश कहा जाता है) में बनाए गए राहत शिविरों में भेज दिया गया।
  4. वर्ष 1964-69 में इनकी संख्या मात्र 5,000 थी, जबकि वर्तमान में इनकी संख्या एक लाख हो चुकी है। इसके अतिरिक्त, वर्तमान में उनके पास न ही भारत की नागरिकता है और न ही भूमि संबंधी अधिकार, परन्तु उन्हें राज्य सरकार द्वारा मूलभूत सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं।
  5. भारत में निवास कर रहे चकमा और हाजोंग शरणार्थी भारतीय नागरिक हैं। इनमें से अधिकांश मिज़ोरम से हैं जोकि मिज़ो जनजातीय संघर्ष के कारण दक्षिणी त्रिपुरा के राहत शिविरों में रहते हैं।
  6. त्रिपुरा में रह रहे इन भारतीय चकमा लोगों ने मिज़ोरम के चुनावों में भी मतदान किया था। इसके लिये चुनाव आयोग ने राहत शिविरों में ही मतदान केंद्र बनाए थे।

भारत भी पड़ोसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत और म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों की समस्या से जूझ रहा है। वर्तमान में रोहिंग्या, चकमा-हाजोंग, तिब्बती और बांग्लादेशी शरणार्थियों के कारण भारत मानवीय, आंतरिक सुरक्षा आदि समस्याओं का सामना कर रहा है। ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि भारत भी शरणार्थियों के संबंध में एक ऐसी घरेलू नीति तैयार करे, जो धर्म, रंग और जातीयता की दृष्टि से तटस्थ हो तथा भेदभाव, हिंसा और रक्तपात की विकराल स्थिति से उबारने में कारगर हो। वैश्विक शरणार्थी संकट तथा आगे की राह: शरणार्थी संकट विश्व के समक्ष पिछली एक शताब्दी का सबसे ज्वलंत मुद्दा रहा है। विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवीय आपदाएँ जैसे-भूकंप,बाढ़,युद्ध,जलवायु परिवर्तन आदि के कारण पिछली एक शताब्दी में लोगों के विस्थापन की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। इनसे निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रयास किये जाते रहे हैं। शरणार्थी संकटों ने विभिन्न देशों को प्रभावित किया है जिसमें भारत भी शामिल है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र इसी प्रकार की समस्या से जूझ रहा है। ‘स्टेप विद रिफ्यूजी’ अभियान वैश्विक स्तर पर शरणार्थियों के संबंध में बेहतर समझ बनाने और शरणार्थियों की रक्षा के लिये धन जुटाने में सहायता करेगा।

भारत और मध्य-पूर्व एशिया

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हार्मुज जलडमरूमध्य
  • होर्मुज़ पीस इनिशिएटिव (Hormuz Peace Initiative):-

अमेरिका-ईरान के बीच उत्पन्न तनाव के मद्देनज़र तेहरान में आयोजित इस इनिशिएटिव में भारत द्वारा भागीदारी दर्ज की गई। अमेरिका-ईरान तनाव को देखते हुए दुनिया की सबसे व्यस्त और रणनीतिक शिपिंग लेन में से एक ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़’ (Strait of Hormuz) पर शांति व्यवस्था बनाये रखने के उद्देश्य से यह पहल की गई । होर्मुज़ पीस इनिशिएटिव की शुरुआत ईरान ने ओमान,चीन,भारत और अफगानिस्तान के साथ की थी।

  • यह वार्ता भारत के लिये महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि भारत अपनी तेल की आपूर्ति का दो-तिहाई हिस्सा और प्राकृतिक गैस की आधी आपूर्ति ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़’ के माध्यम से ही पूरी करता है।
  • कुल वैश्विक तेल व्यापार में से 18 मिलियन बैरल तेल हर दिन ‘स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़’ से होकर ले जाया जाता है।
  • दुनिया का एक- तिहाई एलपीजी (Liquefied petroleum gas-LPG) व्यापार भी इस जलडमरूमध्य के माध्यम से होता है।
  • भागीदार देशों ने तेहरान द्वारा प्रस्तावित होर्मुज़ पीस एंडेवर (HOPE) के तहत क्षेत्रीय सहयोग योजनाओं का भी मूल्यांकन किया ।
  • इसकी पहल ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने सितंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में भाषण देते हुए की थी जिसमे सभी क्षेत्रीय देशों को इसमें भाग लेने के लिये आमंत्रित किया गया ।
  • आपरेशन संकल्प (Operation Sankalp):-अमेरिका द्वारा ईरान की कुद्स फोर्स के प्रमुख और ईरानी सेना के शीर्ष अधिकारी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद खाड़ी क्षेत्र में स्थिति काफी तनावपूर्ण है।

खाड़ी क्षेत्र की हालिया स्थिति के मद्देनज़र भारतीय नौसेना आपरेशन संकल्प (Operation Sankalp) के तहत लगातार निगरानी कर रही है।

ओमान की खाड़ी में जून 2019 में व्यापारिक जहाज़ों पर हमले के बाद अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और समुद्री सुरक्षा से संबंधित घटनाओं को देखते हुए भारतीय नौसेना ने 19 जून, 2019 को खाड़ी क्षेत्र में ऑपरेशन संकल्प की शुरुआत की थी।

इसका उद्देश्य हार्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) से होकर जाने वाले भारतीय जहाज़ों की सुरक्षा सुनिश्चित करना था। आपरेशन संकल्प के तहत भारतीय नौसेना का एक युद्ध पोत अभी भी खाड़ी क्षेत्र में मौजूद है।