समसामयिकी 2020/औद्योगिक क्षेत्रक का विकास
- प्रधानमंत्री मोदी ने दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड (Insolvency and Bankruptcy Code-IBC) को प्रमुख विधायी सुधारों में से एक के रूप में उल्लिखित किया है, जो उच्च विकास प्रक्षेपवक्र में भारत को आत्मनिर्भरता के मार्ग में लाने के लिये अनुकूल माहौल प्रदान करेगा। वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Service Tax) जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण सुधारों के साथ दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड भारत में व्यापार करने की प्रक्रिया को सुगम बनाकर इसे ‘मेक फॉर वर्ल्ड’ प्लेटफ़ॉर्म के रूप में विकसित कर रहा है।
वर्ष 2019-20 में भारत को प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में लगभग 74.5 बिलियन डॉलर की वृद्धि में इन सुधारों का महत्त्वपूर्ण योगदान था। दिवाला एवं दिवालियापन संहिता, 1909 के 'प्रेसीडेंसी टाउन इन्सॉल्वेन्सी एक्ट’ और 'प्रोवेंशियल इन्सॉल्वेन्सी एक्ट 1920’ को रद्द करती है तथा कंपनी एक्ट, लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट और 'सेक्यूटाईज़ेशन एक्ट' समेत कई कानूनों में संशोधन करती है। IBC के अनुसार, किसी ऋणी के दिवालिया होने पर एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद उसकी परिसंपत्तियों को अधिकार में लिया जा सकता है। IBC के हिसाब से, यदि 75 प्रतिशत कर्ज़दाता सहमत हों तो ऐसी किसी कंपनी पर 180 दिनों (90 दिन के अतिरिक्त रियायती काल के साथ) के भीतर कार्रवाई की जा सकती है, जो अपना कर्ज़ नहीं चुका पा रही। IBC के लागू होने से ऋणों की वसूली में अनावश्यक देरी और उससे होने वाले नुकसानों से बचा जा सकेगा। कर्ज़ न चुका पाने की स्थिति में कंपनी को अवसर दिया जाएगा कि वह एक निश्चित समयावधि में कर्ज़ चुकता कर दे या स्वयं को दिवालिया घोषित करे। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के प्रवर्तकों को अपनी कंपनियों के लिये बोली लगाने की अनुमति तब तक दी जाती है जब तक वे विलफुल डिफॉल्टर्स नहीं होते हैं और किसी अन्य संबंधित अयोग्यता को प्रदर्शित नहीं करते हैं। इसने मौजूदा एक्ट की धारा 29 (ए) में विसंगति को ठीक किया है जिसने संपत्ति को डिफॉल्ट करने वाले प्रमोटर्स को अपनी एसेट्स के लिये बोली लगाने से रोक दिया था। दिवालिया और शोधन अक्षमता कोड ने व्यापार करने के लिये अनुकूल माहौल का सृजन किया है, निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को सहायता प्रदान करते हुए उद्यमिता को प्रोत्साहित करने में सहायता प्रदान की है। निर्णय जिनसे प्रभावोत्पादकता में वृद्धि हुई IBC खराब ऋणों को वसूलने के लिये बनाए गए पूर्व के दो अधिनियमों पर बहुत बड़ा सुधार है- रुग्ण औद्योगिक कंपनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1985 (Sick Industrial Companies (Special Provision-SICA) और बैंकों और वित्तीय संस्थानों के ऋणों की वसूली संबंधी अधिनियम, 1993 (Recovery of Debts Due to Banks and Financial Institutions Act- RDDB)। IBC से पूर्व रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस में औसतन 4-6 वर्ष लगते थे, IBC के अधिनियमित होने के बाद रिज़ॉल्यूशन प्रोसेस औसतन 317 दिनों तक आ गए। IBC के बाद ऋणों की वसूली भी पूर्व की अपेक्षा ( 22 प्रतिशत के सापेक्ष 43 प्रतिशत ) अधिक रही है। IBC के बाद यह देखा गया कि कई व्यापारिक संस्थाएँ दिवालिया होने की घोषणा करने से पहले भुगतान कर रही हैं। अधिनियम की सफलता इस तथ्य में निहित है कि नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को भेजे जाने से पहले ही कई मामलों को सुलझा लिया गया है।
- लेखा परीक्षा नियामक ‘राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण’ (National Financial Reporting Authority- NFRA) ने भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु के प्रोफेसर आर. नारायण स्वामी (R Narayanaswamy) की अध्यक्षता में एक तकनीकी सलाहकार समिति (Technical Advisory Committee- TAC) का गठन किया है।
तकनीकी सलाहकार समिति (Technical Advisory Committee- TAC) जिसमें अध्यक्ष सहित कुल सात सदस्य शामिल हैं, लेखांकन मानकों एवं ऑडिटिंग मानकों के ड्राफ्ट से संबंधित मुद्दों पर NFRA के कार्यकारी निकाय को सहायता एवं सलाह देगी। यह समिति वित्तीय विवरणों के उपयोगकर्त्ताओं, तैयारीकर्त्ताओं एवं लेखा परीक्षकों को इनपुट भी प्रदान करेगी। तकनीकी सलाहकार समिति (TAC) निम्नलिखित कार्य करेगी। लेखा परीक्षा गुणवत्ता के उपायों के विकास पर सलाह देना। जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये उपयुक्त तरीकों पर सलाह देना शामिल है। जिनमें निम्नलिखित को शामिल किया गया है। लेखांकन एवं लेखा परीक्षा मानकों के अनुपालन से संबंधित। स्वतंत्र ऑडिटर विनियमन के माध्यम से निवेशकों की सुरक्षा में NFRA की भूमिका से संबंधित। राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण(National Financial Reporting Authority- NFRA): राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 (Companies Act, 2013) की धारा 132 के उप खंड (1) के तहत भारत सरकार द्वारा 01 अक्तूबर, 2018 को किया गया था। NFRA के प्रमुख कार्य: केंद्रीय सरकार द्वारा अऩुमोदन के लिये लेखांकन एवं लेखा परीक्षा नीतियाँ तथा कंपनियों द्वारा अपनाये जाने वाले मानकों की सिफारिश करना। लेखा मानकों एवं ऑडिटिंग मानकों के अनुपालन की निगरानी करना एवं उन्हें लागू करना।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd- OVL) द्वारा म्यांमार में श्वे तेल एवं गैस परियोजना के ब्लाक A-1 एवं A-3 में 121.27 मिलियन डॉलर (लगभग 909 करोड़ रुपए) के अतिरिक्त निवेश को मंज़ूरी दी।
ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd- OVL) दक्षिण कोरिया, भारत एवं म्यांमार की तेल एवं गैस क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के एक संकाय के रूप में वर्ष 2002 से ही म्यांमार में श्वे तेल एवं गैस परियोजना के उत्खनन एवं विकास से जुड़ी हुई है।
- श्वे गैस क्षेत्र अंडमान सागर (Andaman Sea) में एक प्राकृतिक गैस क्षेत्र है। इसे वर्ष 2004 में दाईवू (Daewoo) जो दक्षिण कोरियाई कंपनी है, द्वारा खोजा एवं विकसित किया गया था।
श्वे तेल एवं गैस परियोजना म्यांमार में बंगाल की खाड़ी के रखाइन अपतटीय क्षेत्र के ब्लॉक A-1 एवं A-3 में अवस्थित है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम ‘गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ (GAIL) भी इस परियोजना में एक निवेशक के तौर पर शामिल है। OVL ने 31 मार्च, 2019 तक इस परियोजना में 722 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। श्वे तेल एवं गैस परियोजना से पहली बार गैस की प्राप्ति जुलाई 2013 में हुई थी। यह परियोजना वित्त वर्ष 2014-15 से ही सकारात्मक नकदी प्रवाह सृजित कर रही है। गौरतलब है कि पूर्वी एशियाई देशों की तेल एवं गैस उत्खनन तथा विकास परियोजनाओं में भारतीय पीएसयू की भागीदारी भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी/एक्ट ईस्ट पॉलिसी का एक हिस्सा है।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संशोधित इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (Electronics Manufacturing Clusters- EMC 2.0) योजना के लिये वित्तीय सहायता को मंज़ूरी दी। इस योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC) के माध्यम से सामान्य ज़रूरतों एवं सुविधाओं के साथ विश्व स्तर के बुनियादी ढाँचे का विकास करना है।
यह योजना इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स (EMCs) और सामान्य सुविधा केंद्र (Common Facility Centers- CFCs) दोनों की स्थापना का समर्थन करेगी। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर (EMC) को उन भौगोलिक क्षेत्रों में स्थापित किया जाएगा जहाँ इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एवं विनिर्माण (Electronics System Design and Manufacturing- ESDM) क्षेत्र की इकाइयों के लिये बुनियादी ढाँचे, सुविधाएँ और अन्य सामान्य ज़रूरतों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- सामान्य सुविधा केंद्र (CFCs) की स्थापना उन्ही क्षेत्र में की जाएगी जहाँ मौजूद ESDM इकाइयों की एक महत्वपूर्ण संख्या के साथ-साथ ESDM इकाइयों के लिये सामान्य तकनीकी बुनियादी ढाँचे के उन्नयन एवं सामान्य सुविधाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
लाभ:-यह योजना ESDM क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने और अधिक-से-अधिक रोज़गार सृजन करने हेतु भारत में इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के लिये एक मज़बूत बुनियादी ढाँचा आधार तैयार करेगी।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive)योजना को मंज़ूरी दी।
इस योजना के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और मोबाइल फोन के विनिर्माण तथा एसेम्बली (Assembly), परीक्षण (Testing), मार्किंग (Marking) एवं पैकेजिंग (Packaging) इकाइयों सहित विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक्स कलपुर्जों के क्षेत्र में व्यापक निवेश आकर्षित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। मुख्य बिंदु: इस योजना के तहत भारत में निर्मित तथा लक्षित खंडों के दायरे में आने वाली वस्तुओं की वृद्धिशील बिक्री (आधार वर्ष पर) पर पात्र कंपनियों को आधार वर्ष के बाद पाँच वर्षों की अवधि के दौरान 4-6% की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। इस योजना से मोबाइल विनिर्माण एवं विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक्स कलपुर्जों के क्षेत्र में कार्यरत 5-6 प्रमुख वैश्विक कंपनियों एवं कुछ घरेलू कंपनियों के लाभान्वित होने तथा भारत में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण होने की संभावना है। योजना लागत: इस योजना की कुल लागत लगभग 40,995 करोड़ रुपए है जिसमें लगभग 40,951 करोड़ रुपए का प्रोत्साहन परिव्यय और 44 करोड़ रुपए का प्रशासनिक व्यय शामिल हैं। लाभ: इस योजना में अगले पाँच वर्षों में 2,00,000 से अधिक प्रत्यक्ष तथा इसके तीन गुना अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित करने की क्षमता है। इस प्रकार इस योजना में कुल रोज़गार सृजन क्षमता लगभग 8,00,000 है। गौरतलब है कि भारत में मोबाइल उत्पादन मूल्य वित्त वर्ष 2014-15 के लगभग 18,900 करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 में लगभग 1,70,000 करोड़ रुपए हो गया और मोबाइल फोन की घरेलू मांग की आपूर्ति घरेलू उत्पादन से ही की जा रही है। इस प्रकार विश्व के लिये ‘असेम्बल इन इंडिया’ को ‘मेक इन इंडिया’ से एकीकृत कर भारत इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण क्षेत्र में व्यापक वृद्धि कर सकता है।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक घटक और सेमीकंडक्टर (Semiconductor) विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 48,000 करोड़ रुपए से अधिक राशि की तीन नई योजनाओं को मंज़ूरी दी है।
पहली योजना- सर्वप्रथम केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये ‘उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (production-linked incentive-PLI)’ योजना को स्वीकृति दी है। इस योजना में उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन देने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा दिया जा सके और मोबाइल फोन के विनिर्माण तथा एसेंबली, परीक्षण, मार्किंग एवं पैकेजिंग सहित विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक्स कलपुर्जों के क्षेत्र में व्यापक निवेश आकर्षित किया जा सके। इस योजना के तहत भारत में निर्मित वस्तुओं की वृद्धिशील बिक्री (Incremental Sales) पर पात्र कंपनियों को आधार वर्ष के बाद के पाँच वर्षों की अवधि के दौरान 4 से 6 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। प्रस्तावित योजना से मोबाइल फोन के विनिर्माण और विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक्स कलपुर्जों के क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों को काफी लाभ प्राप्त होगा जिससे देश में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन संभव हो सकेगा। सरकार ने इस योजना पर लगभग 41000 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव किया है। दूसरी योजना- केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंज़ूर की गई दूसरी योजना देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टरों को प्रोत्साहन देने से संबंधित है। इसका योजना का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टरों के माध्यम से विश्वस्तरीय अवसंरचना के साथ-साथ साझा सुविधाओं को विकसित करना है। इस योजना के तहत मैदानी इलाकों में न्यूनतम 200 एकड़ क्षेत्र में फैले हुए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स और पहाड़ियों एवं पूर्वोत्तर क्षेत्रों में न्यूनतम 100 एकड़ में फैले हुए इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्लस्टर्स को 70 करोड़ रुपए प्रति 100 एकड़ की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। इस योजना में साझा सुविधा केंद्र (Common Facility Centre) के लिये उनकी परियोजना लागत का 75 प्रतिशत तक वित्त पोषण करने का प्रावधान है, जो कि 75 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होगा। इस योजना का कुल परिव्यय 8 वर्ष की अवधि के दौरान 3762.25 करोड़ रुपए है।
- पीएमजी पोर्टल (PMG Portal) के माध्यम से केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की समीक्षा की।
परियोजना निगरानी समूह (PMG) उद्योग संवर्द्धन एवं आतंरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) की संस्थागत व्यवस्था है। इसका उद्देश्य भारत में पाँच सौ करोड़ रुपए से अधिक लागत की परियोजनाओं की समस्याओं का समाधान करना और नियामक बाधाओं को दूर करना है।
- पीएमजी सभी सार्वजनिक, निजी और सार्वजनिक-निजी साझेदारी (पीपीपी) परियोजनाओं के अनसुलझे विषयों को देखता है और यह परियोजनाओं को मिलने वाली स्वीकृति में तेजी,क्षेत्रीय नीतिगत मुद्दों एवं बाधाओं को दूर करने का काम करता है।
इन्वेस्ट इंडिया (Invest India) राज्यों के साथ मुद्दों की पहचान करने तथा उनका अनुसरण करने में पीएमजी को कार्यान्वयन संबंधी सहायता प्रदान करती है। मूल्यांकन: अब तक पीएमजी पोर्टल ने 809 परियोजनाओं की 3500 से अधिक समस्याओं का समाधान किया है और 32 लाख करोड़ रुपए से अधिक के प्रत्याशित वित्तीय निवेश का मार्ग प्रशस्त किया है।
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में निवेश और विकास पर कैबिनेट समिति (Cabinet Committee on Investment and Growth) ने गैर-योजना व्यय में 20% की कटौती करने का निर्णय लिया है।
समिति ने वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग से खर्च कटौती के संबंध में आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है तथा सभी मंत्रालयों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा, भोजन, वाहनों की खरीद, प्रदर्शनियों, मेलों, सेमिनारों और सम्मेलनों पर होने वाले फ़िजूल खर्च को 20% तक कम करने का निर्देश दिया है। यह पहली बार नहीं है कि जब सरकार ने खर्च को युक्तिसंगत बनाने का प्रयास किया है। इससे पहले अक्तूबर 2014 में व्यय विभाग ने अन्य विभागों से गैर-योजना व्यय में 10% की कटौती करने के लिये कहा था।
- ‘कंपनी को इलेक्ट्रॉनिक रूप से निगमित करने के लिये सरलीकृत प्रोफार्मा’ (Simplified Proforma for Incorporating a Company Electronically Plus- SPICe+)
कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने कंपनियों के निगमन के लिये नामक एक नया वेब फॉर्म लॉन्च किया है। एसपीआईसीई+ का पूर्णरूप है। एसपीआईसीई+ कंपनी के निगमन से संबंधित कई सेवाएँ जैसे- पैन की अनिवार्यता, बैंक खाता खोलना, जीएसटीआईएन (GSTIN) का आवंटन आदि प्रदान करने वाला एक एकीकृत वेब फॉर्म है। यह केंद्रीय सरकार के तीन मंत्रालयों एवं विभागों (कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय, श्रम मंत्रालय और वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग) तथा एक राज्य सरकार (महाराष्ट्र) को सेवाएँ प्रदान करेगा। इसे ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) पहल के तहत लॉन्च किया गया है।
- वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में स्थापित कुल औद्योगिक पार्कों की संख्या के बारे में जानकारी साझा की गई है।
वर्ष 2014 के बाद देश में बनाए गए औद्योगिक पार्कों की संख्या राज्य / संघ राज्य क्षेत्रों के स्तर पर सही ढंग से व्यवस्थित नहीं है। हालाँकि उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा औद्योगिक पार्कों की सूचना से संबंधित एक केंद्रीकृत सिस्टम विकसित किया गया है जो औद्योगिक सूचना प्रणाली (Industrial Information System- IIS) पर उपलब्ध है और इस विवरण को संबंधित राज्यों द्वारा नियमित अंतराल पर अपडेट किया जाता है।
- मई 2017 में DIPP द्वारा प्रारंभ औद्योगिक सूचना प्रणाली (Industrial Information System- IIS) संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने और विनिर्माण क्षेत्र की दक्षता बढ़ाने के लियेलॉन्च की थी, जो देश भर में फैले औद्योगिक क्षेत्रों और कलस्टरों के लिये GIS आधारित डेटाबेस है।
यह पोर्टल कच्चे माल यथा- कृषि,बागवानी,खनिजों एवं प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता, महत्त्वपूर्ण लॉजिस्टिक्स केंद्रों से दूरी, भू-भाग की परतों और शहरी बुनियादी अवसंरचना सहित समस्त औद्योगिक सूचनाओं की नि:शुल्क एवं आसान पहुँच प्रदान करने वाला एकल स्थल केंद्र है।
- औद्योगिक पार्क योजना-2002(Industrial Park Scheme-2002) ऐसे किसी भी उपक्रम पर लागू होती है जिसने 1 अप्रैल,1997 से 31 मार्च,2006 की अवधि तक औद्योगिक पार्क का विकास,संचालन तथा रखरखाव किया।
कुछ अन्य मामलों में जहाँ एक उपक्रम 1 अप्रैल,1999 को या उसके बाद एक औद्योगिक पार्क विकसित करता है और ऐसे औद्योगिक पार्क के संचालन एवं रखरखाव को किसी अन्य उपक्रम को स्थानांतरित कर देता है, इस तरह के स्थानांतरित उपक्रम को लगातार दस वर्षों तक शेष अवधि के लिये लाभ लेने की अनुमति दी जाएगी जबकि ऑपरेशन और रखरखाव का काम स्थानांतरित उपक्रम को नहीं दिया गया था। भारत में कुछ प्रमुख औद्योगिक पार्क:-महाराष्ट्र (447), कर्नाटक (370), राजस्थान (364), गुजरात (351), उत्तर प्रदेश (342), आंध्र प्रदेश (330)