समसामयिकी 2020/खाद्य प्रसंस्करण उद्योग

विकिपुस्तक से

केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के कार्य[सम्पादन]

मिज़ोरम के ज़ोरम मेगा फूड पार्क (Zoram Mega Food Park) का उद्घाटन जुलाई में वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से किया गया। यह पार्क 5000 लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोज़गार देगा और कोर प्रसंस्करण केंद्र एवं प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र के जलग्रहण क्षेत्रों के लगभग 25000 किसानों को लाभान्वित करेगा। यह मिज़ोरम में अवस्थित लगभग 30 खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में तकरीबन 250 करोड़ रुपए के अतिरिक्त निवेश का लाभ उठाएगा और अंतत: वार्षिक तौर पर लगभग 450-500 करोड़ रुपये का कारोबार करेगा।

मिज़ोरम के कोलासिब (Kolasib) ज़िले के खमरंग (Khamrang) गाँव में मेगा फूड पार्क को ‘ज़ोरम मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड’ (M/s Zoram Mega Food Park Pvt. Ltd.) द्वारा बढ़ावा दिया गया है।

यह मिज़ोरम राज्य में संचालित होने वाला पहला मेगा फूड पार्क है। पूर्वोत्तर क्षेत्र में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय से सहायता प्राप्‍त कुल 88 परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है जिनमें 41 परियोजनाएँ कार्यान्वित की जा चुकी हैं। भारत को एक सुदृढ़ खाद्य अर्थव्यवस्था और विश्व की खाद्य फैक्‍टरी बनाने के लिये भारत सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को ‘मेक इन इंडिया’ का एक प्रमुख क्षेत्र बनाया है। ज़ोरम मेगा फूड पार्क (Zoram Mega Food Park): 55.00 एकड़ भूमि में स्थापित मिज़ोरम की ‘ज़ोरम मेगा फूड पार्क प्राइवेट लिमिटेड’ की परियोजना लागत 75.20 करोड़ रुपए है। इस मेगा फूड पार्क के कोर प्रसंस्करण केंद्र में स्‍थापित की गई इकाइयों में अत्‍याधुनिक अवसंरचना के अलावा कोल्ड स्टोरेज- 1000 मीट्रिक टन, सुखाने का गोदाम (ड्राईवेयरहाउस)- 3000 मीट्रिक टन, डिब्‍बाबंदी के साथ कीटाणुनाशक पल्प लाइन, कीटाणुनाशक एवं टेट्रा पैकिंग-2 मीट्रिक टन/प्रति घंटा, राइपनिंग (पकने में सहायक) चैम्बर्स-40 मीट्रिक टन/प्रति घंटा, मसाले सुखाने की सुविधा-2 मीट्रिक टन/प्रति घंटा, खाद्य परीक्षण प्रयोगशाला शामिल हैं।

मेगा फूड पार्क योजना के तहत भारत सरकार प्रत्‍येक मेगा फूड पार्क परियोजना के लिये 50 करोड़ तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

वर्तमान में विभिन्न राज्यों में 18 मेगा फूड पार्क परियोजनाएँ कार्यान्वित की जा रही हैं और विभिन्न राज्यों में 19 मेगा फूड पार्कों में पहले ही परिचालन शुरू हो चुका है। इनमें से 6 पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में स्थित हैं। पूर्वोत्‍तर क्षेत्र में 2 मेगा फूड पार्क असम एवं मिज़ोरम में शुरू किये गए हैं।

बाज़ार बुद्धिमत्ता और पूर्व चेतावनी प्रणाली (Market Intelligence and Early Warning System- MIEWS) पोर्टल की शुरुआत की।[सम्पादन]

यह पोर्टल केंद्रीय खाद्य प्रंसस्करण उद्योग मंत्रालय (Ministry of Food Processing Industry-MoFPI) की पहल है। टमाटर, प्याज़ और आलू (Tomato,Onion,Poteto- TOP) के मूल्यों की वास्तविक निगरानी करने और साथ ही ऑपरेशन ग्रीन्स (Operation Greens) योजना की शर्तों के तहत हस्तक्षेप करने संबंधी चेतावनी जारी करने के लिये MIEWS डैशबोर्ड और पोर्टल अपने तरह का पहला प्लेटफॉर्म है। यह पोर्टल TOP फसलों से संबंधित प्रासंगिक जानकारी जैसे- मूल्य और आगमन, क्षेत्र, उपज एवं उत्पादन, आयात और निर्यात, फसल कैलेंडर, फसल कृषि विज्ञान आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी का दृश्य फ़ॉर्मेट (Visual Format) में प्रसार करेगा। MIEWS पोर्टल के कार्य

यह प्रणाली किसानों को परामर्श देने के लिये तैयार की गई है ताकि आधिक्य की स्थिति में पूर्व चेतावनी मिलने के साथ-साथ चक्रीय उत्पादन से बचा जा सके।

बाज़ार हस्तक्षेप के लिये आपूर्ति स्थिति की निगरानी करना। आधिक्य की स्थिति में त्वरित प्रक्रिया द्वारा सहायता करना ताकि जल्द-से-जल्द आधिक्य वाले क्षेत्रों से उत्पादों को उन क्षेत्रों तक ले जाया जा सके जहाँ इनकी कमी है। निर्यात/आयात से संबंधित निर्णय लेने के लिये जानकारी प्रदान करना। MIEWS पोर्टल की विशेषताएँ

यह एक ऐसा डैशबोर्ड है जो कम कीमत और अधिक कीमत की चेतावनी का संकेत देने के साथ-साथ आने वाले तीन महीनों के लिये मूल्यों की जानकारी देगा। इस पोर्टल में देश में TOP फसलों के मूल्य और फसलों के आगमन से संबंधित जानकारियाँ उपलब्ध हैं, साथ ही इसमें चार्ट के माध्यम से पिछले मौसम से तुलना और परस्पर प्रभाव का आकलन किया जाता है। यह पोर्टल TOP फसलों के क्षेत्र, उपज और उत्पादन से संबंधित जानकारियाँ भी उपलब्ध कराता है। इस पोर्टल के माध्यम से TOP फसलों की बाज़ार स्थिति के बारे में नियमित और विशेष रिपोर्ट प्रदान की जाएगी। इस पोर्टल में सार्वजनिक और निजी दो वर्ग होंगे जिनके मध्य उपरोक्त विशेषता को विभाजित किया जाएगा। मूल्य एवं आगमन, उपज और उत्पादन, फसल कृषि वैज्ञानिक तथा व्यापार संबंधी रूपरेखा जैसे वर्ग तक लोगों की आसान पहुँच होगी किंतु नियमित एवं विशेष बाज़ार बुद्धिमत्ता रिपोर्ट और मूल्यों की भविष्यवाणी तक केवल नीति निर्धारकों की पहुँच होगी।

ऑपरेशन ग्रीन्स योजना

(Operation Green Scheme)

2018-19 के बजट में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की तर्ज़ पर किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organizations- FPOs), कृषि-रसद, प्रसंस्करण सुविधाओं और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये 500 करोड़ रुपए के व्यय के साथ एक नई योजना ‘ऑपरेशन ग्रीन्स’ की घोषणा की गई थी। ऑपरेशन ग्रीन्स योजना की शुरुआत देश भर में पूरे वर्ष मूल्‍यों में बिना उतार-चढ़ाव के टमाटर, प्‍याज़ और आलू की आपूर्ति व उपलब्‍धता सुनिश्चित करने के उद्देश्‍य से की गई थी। उद्देश्य:

TOP (Tomato,Onion,Poteto) उत्पादन समूहों और उनके FPO को मज़बूत कर तथा उन्हें बाजार से जोड़कर TOP किसानों की आय को बढ़ाना। TOP समूहों में उचित उत्पादन योजना और दोहरे उपयोग जैसी किस्मों की शुरुआत द्वारा उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिये मूल्य स्थिरीकरण सुनिश्चित करना। फार्म गेट इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, उपयुक्त कृषि-लॉजिस्टिक्स के विकास और उपभोग केंद्रों को जोड़ने वाली उचित भंडारण क्षमता को विकसित कर कटाई के बाद फसल के नुकसान में कमी करना। उत्पादन समूहों का फर्म के साथ संपर्क बढ़ाने के साथ खाद्य प्रसंस्करण क्षमताओं में वृद्धि और टमाटर,आलू और प्याज़ (TOP) की मूल्य शृंखला में मूल्यवर्धन करना। TOP फसलों की मांग एवं आपूर्ति तथा कीमतों का रियल टाइम डेटा एकत्र करने और तुलना करने के लिये एक बाज़ार बुद्धिमत्ता नेटवर्क की स्थापना करना। पोर्टल से संभावित लाभ

इस पोर्टल की सहायता से ऑपरेशन ग्रीन्स के उद्देश्यों को पूरा किया जा सकता है, साथ ही रियल टाइम डेटा के आधार पर बेहतर नीति निर्माण में सहायता प्राप्त होगी। इससे सरकार को किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायता मिलेगी, साथ ही बेहतर आपूर्ति व्यवस्था के माध्यम से TOP फसलों के नुकसान को काम किया जा सकेगा।

PM फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज(PM Formalization of Micro Food Processing Enterprises-PM FME)[सम्पादन]

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय'(MoFPI) ने 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के एक भाग के रूप में योजना की शुरुआत की है। इसके तहत कुल 35,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। जिससे 9 लाख कुशल और अर्द्ध-कुशल रोज़गारों के सृजित होने की संभावना है। असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की लगभग 25 लाख इकाइयों में लगभग 74% खाद्य प्रसंस्करण श्रमिक कार्यरत हैं।

इस योजना का उद्येश्य मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के उन्नयन के लिये वित्तीय,तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करना। सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के क्षमता निर्माण और अनुसंधान पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना।

इस केंद्र प्रायोजित योजना के तहत 10,000 करोड़ रुपए का परिव्यय किया जाएगा। इस परिव्यय को निम्नलिखित तरीके से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा साझा किया जाएगा।

  1. केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में;
  2. पूर्वोत्‍तर और हिमालयी राज्यों के बीच 90:10 के अनुपात में;
  3. विधानमंडल युक्त केंद्र शासित प्रदेशों में 60:40 के अनुपात में;
  4. अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में 100% व्यय केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।

योजना को वर्ष 2020-21 से वर्ष 2024-25 तक पाँच वर्षों की अवधि में लागू किया जाएगा।

‘एक ज़िला एक उत्पाद’ (One District One Product-ODDP) का दृष्टिकोण:-निवेश प्रबंधन,आम सेवाओं का लाभ उठाने और उत्पादों के विपणन को बढ़ाने के लिये योजना के तहत अपनाये गए इस दृष्टिकोण के तहत राज्यों द्वारा कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए एक ज़िले के लिये एक खाद्य उत्पाद की पहचान की जाएगी। ODOP में जल्दी खराब होने वाला उत्‍पाद या अनाज आधारित उत्पाद हो सकता है जिसका ज़िले और उनके संबद्ध क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता है।

ऐसे उत्पादों की सूची में आम, आलू, लीची, टमाटर, साबूदाना, कीनू, भुजिया, पेठा, पापड़, अचार, मत्स्यन, मुर्गी पालन आदि शामिल हैं।

योजना के तहत ODOP उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों का उत्पादन करने वाली इकाइयों को भी सहायता दी जाएगी।

ODOP उत्पादों के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ ही ब्रांडिंग और विपणन हेतु भी सहायता दी जाएगी।योजना के तहत ‘वेस्ट टू वेल्थ’उत्पादों,लघु वन उत्पादों को प्रोसाहित किया जाएगा। ‘आकांक्षी ज़िलों’ पर विशेष ध्यान केन्‍द्रित किया जाएगा।

योजना के तहत वित्तीय सहायता:- मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ,जो अपनी इकाइयों के उन्नयन की इच्छुक हैं, वे पात्र इकाइयाँ परियोजना लागत का 35% तक ऋण-आधारित पूंजीगत सब्सिडी का लाभ उठा सकती हैं, जिसकी अधिकतम सीमा 10 लाख रुपए प्रति इकाई है।

कृषक उत्पादक संगठनों (FPOs)/स्वयं सहायता समूहों (SHGs)/सहकारी समितियों या राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियों या निजी उद्यमों को सामान्य प्रसंस्करण सुविधा, प्रयोगशाला, गोदाम सहित बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 35% की दर से क्रेडिट-लिंक्ड अनुदान के माध्यम से सहायता प्रदान की जाएगी।

सीड कैपिटल (आरंभिक वित्त पोषण) के रूप में प्रति स्वयं सहायता समूह सदस्य को कार्यशील पूंजी और छोटे उपकरण खरीदने के लिये 40,000 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना(PMKSY)के तहत 32 नवीन परियोजनाओं को स्वीकृति[सम्पादन]

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की अध्यक्षता में गठित अंतर-मंत्रालयी अनुमोदन समिति(IMAC)द्वारा स्वीकृत इन परियोजनाओं के तहत 17 राज्यों में लगभग 406 करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा।

परियोजनाओं का उद्देश्य:-परियोजनाओं के तहत 15 हज़ार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गारों के सृजन, ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसरों में वृद्धि,कृषि उपज की शेल्फ-लाइफ (Shelf-Life) में वृद्धि के लिये आधुनिक प्रसंस्करण तकनीकों की शुरुआत, किसानों की आय में स्थिरता आदि की परिकल्पना की गई है।

खाद्यान प्रसंस्करण का महत्त्व:-

  1. भारतीय किसानों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के उपभोक्ताओं से जोड़ने में खाद्य प्रसंस्करण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  2. चीन के बाद भारत खाद्य पदार्थों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है,साथ ही विशाल जनसंख्या तथा बढ़ती आर्थिक समृद्धि के कारण भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिये बड़ा बाज़ार उपलब्ध है।
  3. सस्ते श्रम बल की उपस्थिति के कारण भी भारत में खाद्य प्रसंस्करण अपेक्षाकृत कम लागत पर किया जा सकता है।इससे वैश्विक व्यापार में भारत को लाभ प्राप्त हो सकता है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:-
  1. खाद्य उत्पादों के विनिर्माण में स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
  2. खाद्य प्रसंस्करण परियोजनाओं / इकाइयों को सस्ता ऋण प्रदान करने के लिये ‘राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक’(NABARD)ने 2000 करोड़ रुपए का एक विशेष कोष बनाया गया है।
  3. खाद्य और कृषि आधारित प्रसंस्करण इकाइयाँ और कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर को ‘प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों के ऋण’ (Priority Sector Lending-PSL) के लिये कृषि गतिविधि के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  4. नई खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लाभ पर आयकर में 100% छूट जैसे राजकोषीय उपाय।
  5. 500 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ टमाटर, प्याज़ और आलू (TOP)की फसलों की मूल्य शृंखला के एकीकृत विकास के लिये केंद्रीय क्षेत्र योजना "ऑपरेशन ग्रीन्स" का प्रारंभ।

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना’[सम्पादन]

PMKSY का मुख्य उद्देश्य खाद्य प्रसंस्करण एवं संरक्षण क्षमताओं का निर्माण,मूल्य संवर्द्धन,खाद्यान अपव्यय में कमी के लिये प्रसंस्करण के स्तर को बढ़ाना तथा मौजूदा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण एवं विस्तार करना है। व्यक्तिगत प्रसंस्करण इकाइयों की गतिविधियों में फसल कटाई के बाद की विभिन्न प्रक्रियाओं (Post-harvest Processes) यथा- मूल्य संवर्द्धन, उत्पाद की शेल्फ लाइफ बढ़ाने जैसी सुविधाएँ, संरक्षण कार्य आदि शामिल हैं। MoFPI मंत्रालय द्वारा लागू PMKSY योजना के कार्यान्वयन की अवधि वर्ष 2016-20 है तथा कुल परिव्यय राशि 6,000 करोड़ रुपए है। इस योजना की सात घटक योजनाएँ हैं-

  1. मेगा फूड पार्क
  2. एकीकृत कोल्ड चेन और मूल्य संवर्द्धन अवसंरचना
  3. कृषि-प्रसंस्करण समूहों ( Agro-Processing Clusters) के लिये बुनियादी ढाँचा
  4. बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज का निर्माण
  5. खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण क्षमता का निर्माण / विस्तार
  6. खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता आश्वासन अवसंरचना
  7. मानव संसाधन और संस्थान

वर्ष 2008 में मेगा फूड पार्क योजना की शुरुआत[सम्पादन]

इसके तहत पूरे देश में ‘क्लस्टर’ आधारित दृष्टिकोण पर 42 मेगा फूड पार्क स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एक मेगा फूड पार्क में कलेक्शन सेंटर,प्राइमरी प्रोसेसिंग सेंटर,और केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र (Central Processing Centre-CPC) शामिल होते हैं। प्राइमरी प्रोसेसिंग सेंटर का कार्य उत्पादकों एवं प्रसंस्करणकर्त्ताओं के बीच संपर्क स्थापित करना होता है ताकि केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र को कच्चे माल की आपूर्ति निर्बाध रूप से होती रहे।

मेगा फूड पार्क में कलेक्शन सेंटर, केंद्रीय प्रसंस्करण केंद्र तथा प्राइमरी प्रोसेसिंग सेंटर, कोल्ड चैन के अलावा उद्यमियों द्वारा खाद्य प्रसंस्करण यूनिटों की स्थापना के लिये 25 - 30 पूर्ण विकसित भूखंडों समेत आपूर्ति श्रंखला अवसंरचना शामिल होती है। इसके लिए आवश्यक शर्त है।
  1. सरकार द्वारा अधिकतम 50 करोड़ रूपए की अनुदान राशि उपलब्ध कराई जाती है।
  2. पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तर-पूर्वी राज्यों में (भूमि लागत को छोड़कर)कुल लागत राशि का 75 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है।
  3. 50 एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है जो अलग-थलग न होकर एक ही स्थान पर उपलब्ध हो।
  4. मेगा फूड पार्क परियोजना का कार्यान्वयन एक विशेष प्रयोजन उपाय (Special Purpose Vehicle) द्वारा किया जाता है।

मेगा फूड पार्क के उद्देश्य फूड पार्क का उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ताओं/प्रोसिसिंग इंडस्ट्री तथा खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाना है ताकि कृषि उत्पादों को एक तंत्र के माध्यम से जोड़ा जा सके। मेगा फूड पार्कों के तहत मुख्यतः कृषि उत्पादों की कीमतों में वृद्धि करने, खाद्य पदार्थों की बर्बादी रोकने, किसानों की आय बढ़ाने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर उपलब्ध करने पर ज़ोर दिया जाता है। इन फूड पार्कों का उद्देश्य खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण को 6 से 20 प्रतिशत तक बढ़ाना है तथा खाद्य पदार्थ उद्योग में भारत की हिस्सेदारी को बढ़ाकर 1.5 से 3 प्रतिशत तक करना है। मेगा फ़ूड पार्क के समक्ष चुनौतियाँ/मुद्दे:

हलाँकि मेगा फ़ूड पार्क परियोजना का उद्देश्य किसानों, खुदरा विक्रताओं और प्रोसेसर के माध्यम से कृषि उपज को बाज़ार से जोड़ना है, बावजूद इसके कुछ मुद्दे/चुनौतियाँ विद्यमान हैं, जो वांछित परिणाम प्राप्ति में बाधक बने हुये हैं। अत:इस चुनौतियों का समाधान किया जाना आवश्यक है, इन चुनौतियों में शामिल हैं-

किसी भी मेगा फूड पार्क की स्थापना के लिये एक ही जगह पर 50 एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है। छोटे एवं पहाड़ी राज्यों में 50 एकड़ भूमि एक ही स्थान पर प्राप्त करना कठिन होता है, अत: भूमि अधिग्रहण एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। देश में अधिकतर क्षेत्रों में कृषि व्यवसाय सहकारी समितियों के माध्यम से होता है, अत: फूड पार्कों के साथ उनका एकीकरण करना महत्त्वपूर्ण है। मेगा फूड पार्क योजना के तहत स्थापित फूड पार्क वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने में सफल नहीं रहे हैं, क्योंकि कुछ वैश्विक कंपनियाँ विकाशील देशों की उन योजनाओं में निवेश नहीं करती हैं, जिन योजनाओं की लागत राशि में अनुदान राशि भी शामिल होती है।

अनुबंध कृषि[सम्पादन]

  • अनुबंध कृषि के अंतर्गत खरीदारों (खाद्य प्रसंस्करण इकाई व निर्यातक) तथा उत्पादकों के मध्य फसल-पूर्व समझौते या अनुबंध किये जाते हैं जिसके आधार पर कृषि उत्पादन (पशुधन व मुर्गीपालन) किया जाता है। अनुबंध कृषि को समवर्ती सूची के तहत शामिल किया गया है, जबकि कृषि राज्य सूची का विषय है। सरकार ने अनुबंध कृषि में संलग्न फर्मों को आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 के अंतर्गत खाद्य फसलों की भडारण सीमा एवं आवाजाही पर मौजूदा लाइसेंसिंग और प्रतिबंध से छूट दे रखी है।
  • तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित कृषि उपज एवं पशुधन अनुबंध कृषि व सेवा (संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त।

केंद्र सरकार की मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018 (Model Contract Farming Act, 2018) की तर्ज पर अनुबंध कृषि पर कानून बनाने वाला तमिलनाडु देश का पहला राज्य बना।

यह अधिनियम अत्यधिक फसल उपज या बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव के दौरान किसानों के हितों की रक्षा करने वाले पंजीकृत समझौतों के अनुसार किसानों को पूर्व निर्धारित मूल्य पर भुगतान किया जाना सुनिश्चित करता है।

इस कानून के अनुसार,किसानों को उत्पादन एवं उत्पादकता में सुधार हेतु निवेश,खाद,चारा,प्रौद्योगिकी आदि के लिये खरीदारों का समर्थन प्राप्त होगा।

इस अधिनियम में कृषि,बागवानी,मधुमक्खी पालन,रेशम उत्पादन, पशुपालन या वन संबंधी गतिविधियों के आउटपुट सम्मिलित हैं लेकिन कानून द्वारा प्रतिबंधित या निषिद्ध उत्पादों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

छह सदस्यीय,तमिलनाडु राज्य अनुबंध कृषि एवं सेवा(संवर्द्धन व सुविधा) प्राधिकरण के गठन का प्रावधान। भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित कानून: कृषि मंत्रालय ने मॉडल कृषि विपणन समिति अधिनियम, 2003 का मसौदा तैयार किया था जिसमें प्रायोजकों के पंजीकरण, समझौते की रिकॉर्डिंग, विवाद निपटान तंत्र आदि के प्रावधान हैं। फलस्वरूप कुछ राज्यों ने इस प्रावधान के अनुसरण में अपने APMC अधिनियमों में संशोधन किया परंतु पंजाब में अनुबंध कृषि पर अलग कानून है।

  1. केंद्र सरकार मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम 2018 के माध्यम से राज्य सरकारों को इस मॉडल अधिनियम के अनुरूप स्पष्ट अनुबंध कृषि कानून अधिनियमित करने हेतु प्रोत्साहित कर रही है।

इसे एक संवर्द्धनात्मक एवं सुविधाजनक अधिनियम के रूप में तैयार किया गया है तथा यह विनियामक प्रकृति का नहीं है।

अनुबंध कृषि के लाभ:-
  1. किसानों के हितों की रक्षा: यह किसानों को उनकी उपज के लिये एक आश्वासन वाला बाज़ार मुहैया कराती है तथा बाज़ार की कीमतों में उतार-चढ़ाव से उन्हें सुरक्षित करके उनके जोखिम को कम करती हैं।

पूर्व निर्धारित कीमतें, फसल कटाई के बाद होने वाली क्षति के मामले में प्रतिपूर्ति करने का अवसर प्रदान करती है।

  1. कृषि में निजी भागीदारी: जैसा कि राष्ट्रीय कृषि नीति द्वारा परिकल्पित है, यह कृषि में निजी क्षेत्रक के निवेश को प्रोत्साहित करती है ताकि नई प्रौद्योगिकी, विकासशील बुनियादी ढाँचे आदि को बढ़ावा दिया जा सके।
  2. किसानों की उत्पादकता में सुधार: यह बेहतर आय, वैज्ञानिक पद्धति एवं क्रेडिट सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाकर कृषि क्षेत्र की उत्पादकता व दक्षता को बढ़ाती है जिससे किसान की आय में वृद्धि के साथ-साथ रोज़गार के नए अवसर एवं खाद्य सुरक्षा प्राप्त होती है।
  3. बेहतर मूल्य की खोज: यह APMC के एकाधिकार को कम करती है एवं कृषि को एक संगठित गतिविधि बनाती है जिससे गुणवत्ता व उत्पादन की मात्रा में सुधार होता है।
  4. निर्यात में वृद्धि: यह किसानों को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग द्वारा आवश्यक फसलों को उगाने एवं भारतीय किसानों को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं से विशेष रूप से उच्च मूल्य वाले बागवानी उत्पादन से जोड़ने के लिये प्रोत्साहित करती है तथा खाद्यान्न की बर्बादी को काफी कम करती है।
  5. उपभोक्ताओं को लाभ: विपणन दक्षता में वृद्धि, बिचौलियों का उन्मूलन, विनियामक अनुपालन में कमी आदि से उत्पाद के कृत्रिम अभाव को कम किया जा सकता है तथा खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।
अनुबंध कृषि की चुनौतियाँ:-

अनुबंध कृषि के मामले में आवश्यक उपजों के प्रकार, स्थितियों आदि के संदर्भ में राज्यों के कानून के मध्य एकरूपता या समरूपता का अभाव है। राजस्व की हानि की आशंका के चलते राज्य सुधारों को आगे बढ़ाने के प्रति अनिच्छुक रहे हैं। क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा: वर्तमान में यह कृषि विकसित राज्यों (पंजाब, तमिलनाडु आदि) में प्रचलित है, जबकि लघु एवं सीमांत किसानों की उच्चतम सघनता वाले राज्य इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। भू-जोतों का आकार: उच्च लेन-देन एवं विपणन लागत के कारण खरीदार लघु एवं सीमांत किसानों के साथ अनुबंध कृषि को वरीयता नहीं देते हैं। साथ ही इस हेतु उन्हें कोई विशेष प्रोत्साहन नहीं मिलता है। इससे सामाजिक-आर्थिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है एवं बड़े किसानों के लिये वरीयता की स्थिति पैदा होती है। वर्ष 2015-16 की कृषि संगणना के अनुसार, 86 प्रतिशत भू-जोतों का स्वामित्व लघु एवं सीमांत किसानों के पास था तथा भारत में भू-जोतों का औसत आकार 1.08 हेक्टेयर था। यह निवेश के लिये कॉर्पोरेट जगत पर किसानों की निर्भरता को बढ़ाता है जिससे वे कमज़ोर होते हैं। पूर्व निर्धारित मूल्य, किसानों को उपज के लिये बाज़ार में उच्च मूल्यों के लाभ से वंचित कर सकते हैं। कृषि के लिये पूंजी गहन एवं कम संधारणीय पैटर्न: यह उर्वरकों एवं पीड़कनाशियों के बढ़ते उपयोग को बढ़ावा देता है जो प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण, मनुष्यों व जानवरों पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। एकल कृषि को प्रोत्साहन: यह न केवल मृदा की सेहत को प्रभावित करता है अपितु खाद्य सुरक्षा के लिये भी खतरा उत्पन्न करता है एवं खाद्यान्नों के आयात को बढ़ावा देता है। जून 2019 अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी पेप्सिको ने गुजरात के साबरकांठा ज़िले में कुछ आलू किसानों के विरुद्ध पेटेंट कानून (Patent Law) का उल्लंघन करने के आरोप में मुकदमा दायर किया था। कंपनी ने किसानों पर FC5 किस्म के उस आलू की खेती करने का आरोप लगाया था, जिसका पेटेंट पेप्सिको के पास है। पेप्सिको का कहना था कि आलू की इस किस्म के बीजों की आपूर्ति करने का अधिकार केवल उसी के पास है और इन बीजों का प्रयोग भी कंपनी के साथ जुड़े हुए किसान ही कर सकते है। अन्य कोई भी व्यक्ति आलू की खेती के लिये इन बीजों का प्रयोग नहीं कर सकता। कंपनी ने 9 किसानों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर 4.2 करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा था। इसके बाद पेप्सिको की चहुँमुखी सार्वजनिक आलोचना हुई, जिसके बाद कुछ शर्तें तय करते हुए कंपनी ने मुकदमा वापस ले लिया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने बीज संप्रभुता (Seed Sovereignty) और अनुबंध कृषि (Contract Farming) पर कई प्रश्नचिह्न लगा दिये हैं।

पेप्सिको ने FC5 नाम के आलू की किस्म प्लांट वैरायटी प्रोटेक्शन अधिकार नियम के तहत रजिस्टर्ड करा रखी है।

यह रजिस्ट्रेशन वर्ष 2031 तक वैध है और तब तक बिना अनुबंध किये किसान इस आलू की फसल नहीं ले सकते। भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार

  1. बीज अधिनियम (Seeds Act), 1968 के अनुसार बीज बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था के तहत नहीं आते और इस पर पूर्ण रूप से किसानों का अधिकार होता है।
  2. पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार संरक्षण अधिनियम (Protection of Plant Varieties and Farmers' Rights Act-PPVFR Act) 2001 की धारा 39 किसानों को संरक्षित बीजों सहित सभी प्रकार के बीजों को बचाकर रखने, प्रयोग करने, बुआई करने, विनिमय करने, साझा करने और यहाँ तक कि उन्हें बेचने की भी अनुमति देता है।