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समसामयिकी 2020/बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मुद्दे

विकिपुस्तक से

तमिलनाडु में थूथुकुडी ज़िले के उदंगुड़ी (Udangudi) शहर से उत्पादित ताड़ गुड़ (Palm Jaggery) के लिये भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग हेतु हालिया आवेदन ने इस प्राचीन, प्राकृतिक मिठास से युक्त उत्पाद पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है जो कभी मलेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका एवं ब्रिटेन को निर्यात किया जाता था। सामान्य तौर पर ताड़ गुड़ (Palm Jaggery) का उपयोग दक्षिणी भारत में रसोई की सामग्री एवं आयुर्वेदिक दवाओं के एक घटक के रूप में किया जाता है। उदंगुड़ी (Udangudi) शहर का यह ताड़ गुड़ जिसे स्थानीय रूप से उदंगुड़ी पनानगारूपट्टी (Udangudi Panangarupatti) के नाम से भी जाना जाता है, अपनी अनूठी आकृति का एक उत्पाद है। उदंगुड़ी (Udangudi) की भौगोलिक विशेषता और ताड़ गुड़: कम वर्षा होने के कारण इस क्षेत्र में लाल-टिब्बा रेत (Red-Dune Sand) में नमी कम होती है इसलिये पाल्मीरा वृक्षों (Palmyra Trees) का रस अधिक चिपचिपा होता है। अन्य क्षेत्रों के विपरीत जहाँ किण्वन से बचाने के लिये मिट्टी के बर्तन में वृक्ष के रस को इकट्ठा करके औद्योगिक चूने का लेप किया जाता है वहीँ इस क्षेत्र में जल में घुलित सीशेल्स (Seashells) को लाइम एजेंट के रूप में उपयोग किया जाता है। इससे गुड़ को नमकीन स्वाद मिलता है। थूथुकुडी (Thoothukudi) ज़िले में एक प्रमुख पेशे के रूप में पाल्मीरा (Palmyra) के जंगलों में ताड़ी एवं गैर-मादक ताड़ रस (पडनीर-Padaneer) बनाया जाता है। उदंगुड़ी (Udangudi):

उदंगुड़ी (Udangudi) दो शब्दों ‘उडाई’ (Udai) जिसका अर्थ है कांटेदार जलाने वाला वृक्ष (प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा-Prosopis Juliflora) जो इस क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं तथा ‘कुड़ी’ (Kudi) जो एक गांव या एक मानव बस्ती को संदर्भित करता है, से मिलकर बना है। तमिलनाडु का यह क्षेत्र कभी वेट्रिलाई (Vetrilai-सुपारी) और करुप्पत्ति (Karuppatti-ताड़ गुड़) के सर्वाधिक उत्पादन के लिये जाना जाता था।


  • जब कोई आविष्कार होता है तब आविष्कारकर्त्ता को उसके लिये दिया जाने वाला अनन्य अधिकार पेटेंट कहलाता है। एक बार पेटेंट अधिकार मिलने पर इसकी अवधि पेटेंट दर्ज़ की तिथि से 20 वर्षों के लिये होती है।

आविष्कार पूरे विश्व में कहीं भी सार्वजनिक न हुआ हो, आविष्कार ऐसा हो जो पहले से ही उपलब्ध किसी उत्पाद या प्रक्रिया में प्रगति को इंगित न कर रहा हो तथा वह आविष्कार व्यावहारिक अनुप्रयोग के योग्य होना चाहिये, ये सभी मानदंड पेटेंट करवाने हेतु आवश्यक हैं। ऐसे आविष्कार (जो आक्रामक, अनैतिक या असामाजिक छवि को उकसाते हों तथा ऐसे आविष्कार जो मानव या जीव-जंतुओं में रोगों के लक्षण जानने के लिये प्रयुक्त होते हों) को पेटेंट का दर्जा नहीं मिलेगा।

बौद्धिक संपदा के संरक्षण हेतु किये गए सरकार के प्रयास

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बौद्धिक अधिकार के संरक्षण में भारत की स्थिति

वैश्विक बौद्धिक संपदा सूचकांक-2020 में भारत 38.46% के स्कोर के साथ 53 देशों की सूची में 40वें स्थान पर रहा, जबकि वर्ष 2019 में 36.04% के स्कोर के साथ भारत 50 देशों की सूची में 36वें स्थान पर था। सूचकांक में शामिल दो नए देशों, ग्रीस और डोमिनिकन गणराज्य का स्कोर भारत से अच्छा है। गौरतलब है कि फिलीपीन्स और उक्रेन जैसे देश भी भारत से आगे हैं। हालाँकि धीमी गति से ही सही भारत द्वारा किसी भी देश की तुलना में अपनी रैंकिंग में समग्र वृद्धि दर्ज की गई है।

  • बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड (आईपीएबी) की स्थापना 15 सितंबर 2003 को भारत सरकार के राजपत्रित आदेश के द्वारा वाणिज्य और उद्योग मंत्राय के अधिन किया गया। इसका मुख्यालय चेन्नई है। []

वर्ष 2005 से भारत ने दवाओं पर भी पेटेंट देना शुरू कर दिया। भारत में पेटेंट प्रणाली का प्रशासन, ‘पेटेंट, डिज़ाइन, ट्रेडमार्क्स और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक’ के अधीन होता है। भारतीय पेटेंट कार्यालय का मुख्यालय कोलकाता में है। भारत में अनुसन्धान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी बहुत ही कम है और इसका प्रमुख कारण भारत की कमजोर बौद्धिक सम्पदा अधिकार व्यवस्था है। वर्ष 2005 में जब भारतीय पेटेंट अधिनियम में विश्व व्यापार संगठन की आशाओं के अनुरूप संशोधन किये गए तो पेटेंट, डिज़ाइन, ट्रेडमार्क्स और भौगोलिक संकेतक महानियंत्रक के समक्ष पेटेंट के लिये 56,000 से भी अधिक आवेदन पड़े हुए थे।

  1. पेटेंट अधिनियम 1970 और पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005:- भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1911 में भारतीय पेटेंट और डिज़ाइन अधिनियम बनाया गया था। पुनः स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1970 में पेटेंट अधिनियम बना और इसे वर्ष 1972 से लागू किया गया। इस अधिनियम में पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2002 और पेटेंट (संशोधन) अधिनियम, 2005 द्वारा संशोधन किये गए। इस संशोधन के अनुसार, ‘प्रोडक्ट पेटेंट’ का विस्तार तकनीक के सभी क्षेत्रों तक किया गया। उदाहरणस्वरुप- खाद्य पदार्थ, दवा निर्माण सामग्री आदि के क्षेत्र में इसे विस्तृत किया गया।
  2. ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 में शब्द,चिन्ह,ध्वनि,रंग,वस्तु का आकार इत्यादि शामिल किया जाता है।
  3. कॉपीराइट अधिनियम, 1957 बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिये इस कानून को देशभर में लागू किया गया।
  4. वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 सुनिश्चित करता है कि पंजीकृत उपयोगकर्त्ता के अतिरिक्त अन्य कोई भी उस प्रचलित उत्पाद के नाम का उपयोग न कर सके।
  5. डिज़ाइन अधिनियम, 2000 सभी प्रकार की औद्योगिक डिज़ाइन को संरक्षण प्रदान करता है।
  6. राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति, 2016: 12 मई, 2016 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति को मंज़ूरी दी थी। इस अधिकार नीति के जरिये भारत में बौद्धिक संपदा को संरक्षण और प्रोत्साहन दिया जाता है। इस नीति के तहत सात लक्ष्य निर्धारित किये गए हैं-

समाज के सभी वर्गों में बौद्धिक संपदा अधिकारों के आर्थिक-सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के प्रति जागरूकता पैदा करना। बौद्धिक संपदा अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना। मज़बूत और प्रभावशाली बौद्धिक संपदा अधिकार नियमों को अपनाना ताकि बौद्धिक संपदा के हकदार और लोकहित के बीच संतुलन कायम हो सके। सेवा आधारित बौद्धिक संपदा अधिकार प्रशासन को आधुनिक और मज़बूत बनाना। व्यवसायीकरण के जरिये बौद्धिक संपदा अधिकारों का मूल्य निर्धारण। बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघनों का मुकाबला करने के लिये प्रवर्तन और न्यायिक व्यवस्था को मज़बूत बनाना। मानव संसाधनों संस्थानों की शिक्षण, प्रशिक्षण, अनुसंधान क्षमताओं को मजबूत बनाना और बौद्धिक संपदा अधिकारों में कौशल निर्माण करना।

बौद्धिक संपदा के संरक्षण में अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय

औद्योगिक संपदा के संरक्षण जुड़ा पेरिस कंवेन्शन (1883): इसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल हैं। साहित्यिक और कलात्मक कामों के संरक्षण के लिये बर्न कंवेन्शन (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प शामिल हैं। मराकेश संधि (2013) के मुताबिक किसी किताब को ब्रेल लिपि में छापे जाने पर इसे बौद्धिक संपदा का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। इस संधि को अपनाने वाला भारत पहला देश है।

  • भारतीय पेटेंट अधिनियम,1970 की धारा 3(d) पेटेंट की ‘एवरग्रीनिंग’ को रोकता है। इसका अर्थ है कि ऐसे नवाचार जिनके परिणामस्वरूप न कोई नया पदार्थ बना है या न ही किसी पदार्थ की प्रभावकारिता में कोई वृद्धि हुई है, उनका पेटेंट प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त किसी पदार्थ के नए गुणधर्म की खोज,पहले से ज्ञात पदार्थ के नए उपयोग,किसी ज्ञात प्रक्रिया,मशीन या उपकरण के नए उपयोग के लिये भी पेटेंट प्राप्त नहीं किया जा सकता जब तक कि इनके परिणामस्वरूप एक नया उत्पाद नहीं बनता।

अनिवार्य लाइसेंसिंग (CL) सरकारों को पेटेंट मालिकों की सहमति के बिना पेटेंट उत्पाद या प्रक्रिया का उत्पादन और विपणन करने के लिये तीसरे पक्ष (यानी पेटेंट धारकों के अलावा अन्य पक्षों) को लाइसेंस देने की अनुमति देता है। अनिवार्य लाइसेंस हेतू आवश्यक शर्तों को अधिनियम की धारा 84 और 92 के तहत निर्धारित किया गया है।

वैश्विक मुद्दे

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  • फ्राँस के प्रतिस्पर्द्धा नियामक (Competition Regulator) ने नेबरिंग राइट्स लॉ (Neighbouring Rights Law) के तहत कहा है कि गूगल (Google) कंपनी को अपनी कंटेंट सामग्री प्रदर्शित करने के लिये मीडिया समूहों को भुगतान करना शुरू करना चाहिये, जिससे यूरोप के नए डिजिटल कॉपीराइट कानून के अनुपालन के लिये महीनों तक मना करने के बाद बातचीत शुरू करने का आदेश दिया जा सके।

गूगल कंपनी ने यह कहते हुए अनुपालन करने से इनकार कर दिया कि सर्च परिणामों में लेख, चित्र एवं वीडियो तभी दिखाए जाएंगे जब मीडिया समूह तकनीकी दिग्गजों को बिना किसी शुल्क के उनका उपयोग करने की सहमति दें। यदि वे मना करते है तो एक शीर्षक एवं सामग्री के लिये केवल एक अनावृत लिंक दिखाई देगा। गूगल की प्रमुख स्थिति इंटरनेट वेबसाइटों पर महत्वपूर्ण ट्रैफिक लाने की है जो प्रकाशकों एवं समाचार एजेंसियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण एवं निर्णायक होता है क्योंकि वे अपनी आर्थिक कठिनाइयों के कारण अपने डिजिटल पाठकों को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं। नेबरिंग राइट्स लॉ (Neighbouring Rights Law): ‘नेबरिंग राइट्स लॉ’ यूरोप के नए डिजिटल कॉपीराइट कानून में उल्लिखित है। यह समाचार प्रकाशकों को यह सुनिश्चित करने के लिये बनाया गया है कि जब वेबसाइटों, सर्च इंजन एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उनके काम को दिखाया जाए तो उन्हें मुआवजा दिया जायेगा। ‘नेबरिंग राइट्स लॉ’ 24 जुलाई, 2019 को लागू हुआ था जिसका उद्देश्य प्रेस प्रकाशकों एवं समाचार एजेंसियों के पक्ष में पुनर्भुगतान हेतु मूल्य के बँटवारे को फिर से परिभाषित करने के लिये प्रकाशकों, समाचार एजेंसियों एवं डिजिटल प्लेटफार्मों के बीच संतुलित वार्ता हेतु शर्तों को निर्धारित करना है। गौरतलब है कि नवंबर, 2019 में फ्राँस में कई प्रेस प्रकाशक यूनियनों एवं समाचार एजेंसी एगेंस फ्राँस-प्रेस (Agence France-Presse) द्वारा गूगल के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन मामले में शिकायत दर्ज कराई गई थी।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के अनुसार,वर्ष 2019 में अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट हेतु आवेदन करने में चीन प्रथम स्थान पर था।

  1. चीन-58,990 आवेदन
  2. अमेरिका- 57,840
  3. जापान
  4. जर्मनी
  5. दक्षिण कोरिया

केवल 20 वर्षों में चीन के आँकड़ों में 200 गुना की वृद्धि हुई है। एशिया से लगभग 52.4% पेटेंट हेतु आवेदन किये गए हैं। वर्ष 1970 में पेटेंट सहयोग संधि प्रणाली (Patent Cooperation Treaty system) की स्थापना के बाद से अमेरिका प्रत्येक वर्ष सबसे अधिक आवेदन करने वाला देश था।

पेटेंट सहयोग संधि(Patent Cooperation Treaty-PCT) वर्ष 1970 में संपन्न एक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट कानून संधि है, जिसमें 150 से अधिक देश शामिल हैं। यह प्रत्येक अनुबंधित देशों में आविष्कारों की रक्षा के लिये पेटेंट आवेदनों को दाखिल करने हेतु एक एकीकृत प्रक्रिया प्रदान करती है। PCT के तहत दायर पेटेंट आवेदन को अंतर्राष्ट्रीय आवेदन या PCT आवेदन कहा जाता है।

पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग: विश्व के प्रमुख निगमों, शोध संस्थानों और विश्वविद्यालयों द्वारा की गई खोजों पर एकाधिकार हेतु पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग किया जाता है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम तथा व्यक्तिगत आविष्कार के संरक्षण हेतु पेटेंट सहयोग संधि का उपयोग किया जाता है।

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (World Intellectual Property Organization- WIPO)संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुराने अभिकरणों में से एक है। इसका गठन वर्ष 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।

इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है। वर्तमान में 193 देश इस संगठन के सदस्य हैं। भारत वर्ष 1975 में इस संगठन का सदस्य बना था।

  1. https://www.ipab.gov.in/about.php