समसामयिकी 2020/महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्ति एवं घटनाएँ
07 मई, 2020 को देशभर में रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की 159वीं जयंती मनाई गई।
[सम्पादन]रवींद्रनाथ टैगोर (रोबिंद्रोनाथ ठाकुर) का जन्म ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रेसिडेंसी के कलकत्ता (अब कोलकाता) में 07 मई, 1861 को हुआ था। ब्रह्म समाज के एक प्रमुख नेता देवेंद्रनाथ टैगोर के पुत्र थे। ब्रह्म समाज 19वीं शताब्दी के बंगाल में एक नया धार्मिक संप्रदाय था जिसने हिंदू धर्म के अंतिम अद्वैतवादी दर्शन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया था। यह हिंदू धर्म का पहला सुधार आंदोलन था। रवींद्रनाथ टैगोर के सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ (Dwijendranath) एक दार्शनिक एवं कवि थे जबकि एक अन्य भाई सत्येंद्रनाथ पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें आल यूरोपियन-इंडियन सिविल सर्विस के लिये नियुक्त किया गया था। रवींद्रनाथ टैगोर को अन्य नामों भानु सिंह ठाकुर (भोनिता), गुरुदेव, कबीगुरू और बिस्वाकाबी के नाम से भी जाना जाता था। रवींद्रनाथ टैगोर एक नीतिज्ञ, कवि, संगीतकार, कलाकार एवं आयुर्वेद-शोधकर्त्ता भी थे। उन्होंने बंगाली साहित्य एवं संगीत के साथ-साथ 19वीं सदी के अंत एवं 20वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रासंगिक आधुनिकतावाद के साथ भारतीय कला का पुनरुत्थान किया। उनके गीत हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ‘ठुमरी शैली’ से प्रभावित थे।
- उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये वर्ष 1913 में साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिया गया यह पुरस्कार जीतने वाले वह पहले गैर-यूरोपीय थे। उनकी संवेदनशील एवं बेहतरीन कविता के लिये यह पुरस्कार दिया गया था।
गीतांजलि की लोकप्रियता के कारण इसका अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, रूसी आदि भाषाओँ में अनुवाद किया गया। रवींद्रनाथ टैगोर की अन्य कृतियों में काबुलीवाला, मास्टर साहब और पोस्ट मास्टर आज भी लोकप्रिय कहानियाँ हैं। उन्होंने भारत (जन गण मन) और बांग्लादेश (आमार सोनार बांग्ला) का राष्ट्रगान लिखा है। वह ऐसा करने वाले एकमात्र कवि हैं।
- रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने गैर-भावुक और दूरदर्शी तरीके से समय-समय पर भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन में हिस्सा लिया और वे आधुनिक भारत के राजनीतिक पिता महात्मा गांधी के मित्र थे। महात्मा गांधी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्त्व देते थे। रवींद्रनाथ टैगोर ने महात्मा गांधी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी।
16 अक्तूबर,1905 को कोलकाता में रवींद्रनाथ टैगोर के नेतृत्त्व में रक्षा बंधन उत्सव मनाया गया जिसने ‘बंग-भंग आंदोलन’ का मार्ग प्रशस्त किया। इसी आंदोलन ने भारत में स्वदेशी आंदोलन का सूत्रपात किया। वर्ष 1915 में ब्रिटिश सरकार ने रवींद्रनाथ टैगोर को 'नाइट हुड' की उपाधि दी थी किंतु 13 अप्रैल, 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के कारण उन्होंने ब्रिटिश सरकार का विरोध करते हुए अपनी ‘नाइट हुड’ की उपाधि लौटा दी। ‘नाइट हुड’ की उपाधि मिलने के बाद नाम के साथ ‘सर’ लगाया जाता है। 7 अगस्त 1947 को कलकत्ता में रवींद्रनाथ टैगोर का देहांत हो गया। एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार के रूप में तथा भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में रवींद्रनाथ टैगोर की अहम भूमिका रही है।
129वीं अंबेडकर जयंती
[सम्पादन]भारतीय प्रधानमंत्री ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर (Dr. B. R. Ambedkar) को उनकी 129वीं जयंती (14 अप्रैल) पर श्रद्धांजलि दी। डॉ. बी. आर. अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को ब्रिटिश कालीन मध्य प्रांत (वर्तमान मध्य प्रदेश में) के महू में हुआ था। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय (Columbia University) और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स दोनों से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और कानून, अर्थशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान में अपने शोध के लिये ख्याति प्राप्त की। वह स्वतंत्र भारत के पहले कानून एवं न्याय मंत्री तथा भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे। ‘बाबा साहब’ के नाम से लोकप्रिय डॉ. बी. आर. अंबेडकर विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। जिन्होंने भारत में दलित बौद्ध (Dalit Buddhist) आंदोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के प्रति सामाजिक भेदभाव के खिलाफ अभियान चलाया। भारत सरकार अधिनियम, 1919 का प्रस्ताव तैयार कर रही साउथबोरो समिति (Southborough Committee) के समक्ष अंबेडकर ने अछूतों एवं अन्य धार्मिक समुदायों के लिये अलग निर्वाचक मंडल एवं उनको आरक्षण देने का तर्क दिया था। वर्ष 1920 में उन्होंने साप्ताहिक पत्र मूकनायक का प्रकाशन शुरू किया जिसने भारत में एक मुखर एवं संगठित दलित राजनीति की नींव रखी। इस समाचार पत्र का प्रकाशन मराठी भाषा में किया जाता था। वर्ष 1921 तक जब तक वह एक राजनेता नहीं बने थे तब तक अंबेडकर ने एक अर्थशास्त्री के रूप में काम किया। अंबेडकर द्वारा हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत किये गए विचारों पर ही भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का गठन किया गया। उन्होंने अर्थशास्त्र पर तीन किताबें लिखीं: ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन एवं वित्त (Administration and Finance of the East India Company) ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास (The Evolution of Provincial Finance in British India) रुपए की समस्या: इसका मूल और इसका समाधान (The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution) उन्होंने अपने पहले संगठित प्रयास के तौर पर वर्ष 1924 में एक केंद्रीय संस्था बहिष्कृत हितकारिणी सभा (Bahishkrit Hitakarini Sabha) की स्थापना थी जिसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देना था। उन्हें वर्ष 1925 में आल-यूरोपियन साइमन कमीशन के साथ काम करने के लिये बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति में नियुक्त किया गया था। वर्ष 1927 में अंबेडकर ने अस्पृश्यता के खिलाफ सक्रिय आंदोलन शुरू किया। जिसमें उन्होंने दलितों के लिये सार्वजनिक पेयजल संसाधनों की उपलब्धता तथा हिंदू मंदिरों में प्रवेश के अधिकारों के लिये संघर्ष किया। वर्ष 1930 में अंबेडकर ने कालाराम मंदिर (Kalaram Temple) सत्याग्रह चलाया। जिसमें लगभग 15000 स्वयंसेवकों ने भाग लिया जो नासिक (महाराष्ट्र) के सबसे बड़े जुलूसों में से एक है। वर्ष 1932 में ब्रिटिश सरकार ने सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) में ‘शोषित वर्ग’ के लिये एक अलग निर्वाचक मंडल के गठन की घोषणा की। जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया। परिणामस्वरूप 24 सितंबर 1932 को अंबेडकर (हिंदुओं में शोषित वर्गों की ओर से) और मदन मोहन मालवीय (शेष हिंदुओं की ओर से) के बीच पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किये गए। वर्ष 1936 में अंबेडकर द्वारा इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP) की स्थापना की गई जिसने केंद्रीय विधान सभा के लिये वर्ष 1937 के बॉम्बे प्रांतीय चुनाव में हिस्सा लिया। 29 अगस्त, 1947 को अंबेडकर को भारत के संविधान का गठन करने के लिये संविधान प्रारूप समिति (Constitution Drafting Committee) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। वर्ष 1956 में उन्होंने दलितों के सामूहिक धर्मांतरण की शुरुआत करते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया। वर्ष 1956 में अंबेडकर द्वारा लिखी गई आखिरी किताब बौद्ध धर्म से संबंधित थी इस किताब का नाम था 'द बुद्ध एंड हिज़ धम्म' (The Buddha and His Dhamma)। उल्लेखनीय है कि यह किताब उनकी मृत्यु के बाद वर्ष 1957 में प्रकाशित हुई थी। मुंबई के दादर में स्थित चैत्य भूमि बी.आर अंबेडकर की समाधि स्थली है। वर्ष 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
बाबू जगजीवन राम की 113वीं जयंती 05 अप्रैल को मनायी गई।
[सम्पादन]गरीबों के अधिकारों के लिये संघर्ष करने वाले इस स्वतंत्रता सेनानी का जन्म 5 अप्रैल 1908 को ब्रिटिश भारत के भोजपुर (बिहार) में हुआ था। जगजीवन राम जिन्हें ‘बाबूजी’ के नाम से जाना जाता है भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के प्रमुख कार्यकर्त्ता एवं राजनीतिज्ञ थे। वर्ष 1928 में कलकत्ता (अब कोलकाता) के वेलिंगटन स्क्वायर में एक मज़दूर रैली के दौरान इनकी मुलाकात नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। वर्ष 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.एस.सी की डिग्री हासिल की जहाँ उन्होंने अपने साथ होने वाले भेदभाव के मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिये सम्मेलनों का आयोजन किया तथा महात्मा गांधी द्वारा शुरू किये गए अस्पृश्यता विरोधी आंदोलन में भी भाग लिया। उन्होंने वर्ष 1935 में अखिल भारतीय शोषित वर्ग लीग (All India Depressed Classes League) की नींव रखने में अहम योगदान दिया था जो अछूतों के लिये समानता के अधिकारों को प्राप्त करने हेतु एक समर्पित संगठन था। वे वर्ष 1937 के चुनाव में बिहार विधानसभा के लिये चुने गए जिसके बाद उन्होंने ग्रामीण मजदूर आंदोलन (Rural Labour Movement) की शुरुआत की। मंत्रित्वकाल की प्रमुख घटनाएँ: बाबू जगजीवन राम वर्ष 1946 में जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में सबसे युवा मंत्री बने जिन्हें श्रम मंत्री की ज़िम्मेदारी दी गई और उन्होंने भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की वकालत की। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री थे जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में भारत में हरित क्रांति को सफल बनाने एवं भारतीय कृषि के आधुनिकीकरण के लिये उन्हें याद किया जाता है। हालाँकि उन्होंने आपातकाल के दौरान (1975-77) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का समर्थन किया किंतु वर्ष 1977 में कांग्रेस छोड़ दी और जनता पार्टी में शामिल हो गए। और बाद में उन्होंने जनता पार्टी सरकार में भारत के उप प्रधानमंत्री (1977-79) के रूप में कार्य किया। कांग्रेस (J) का गठन: जनता पार्टी से निराश होकर उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस (J) बनाई। वर्ष 1986 में अपनी मृत्यु तक वह संसद सदस्य बने रहे। वह बिहार राज्य के सासाराम संसदीय क्षेत्र से चुने गए थे। वर्ष 1936-1986 तक संसद में उनका निर्बाध प्रतिनिधित्व एक विश्व रिकॉर्ड है। विरासत: उनके दाह संस्कार स्थान को समता स्थल (Samata Sthal) का नाम दिया गया और उनकी जयंती को समरस दिवस (समानता दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
- 9 फरवरी, 2020 को देशभर में गुरु रविदास जयंती मनाई गई।
हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, माघ महीने में पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। गुरु रविदास 14वीं सदी के संत तथा उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन (Bhakti Movement) से संबंधित प्रमुख सुधारकों में से एक थे। भक्ति आंदोलन: भक्ति आंदोलन का विकास तमिलनाडु में सातवीं एवं नौवीं शताब्दी के बीच हुआ। यह आंदोलन नयनार (शिव के उपासक) और अलवार (विष्णु के उपासक) संतों की भावनात्मक कविताओं से परिलक्षित हुआ। इन संतों ने धर्म को एक मात्र औपचारिक पूजा के रूप में नहीं बल्कि पूज्य और उपासक के बीच प्रेम पर आधारित एक प्रेम बंधन के रूप में स्वीकार किया। समय के साथ दक्षिण भारत में पनपे इन विचारों का उत्तर भारत में भी प्रसार हुआ। भक्ति विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिये स्थानीय भाषाओं का उपयोग किया गया था। भक्ति संतों ने स्थानीय भाषाओं में ही अपने छंदों की रचना की। भक्ति आंदोलन के दौरान धार्मिक विचारधारा के बारे में लोगों को समझाने के लिये संस्कृत में लिखे ग्रंथों का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया जैसे- सूरदास, कबीरदास और तुलसीदास ने हिंदी में, ज्ञानदेव ने मराठी में, शंकरदेव ने असमिया में, चैतन्य और चंडीदास ने बंगाली में, मीराबाई ने हिंदी एवं राजस्थानी भाषा में। माना जाता है कि उनका जन्म वाराणसी में एक मोची परिवार में हुआ था। एक ईश्वर के प्रति उनकी आस्था और निष्पक्ष धार्मिक कविताओं के कारण उन्हें प्रमुखता मिली। उन्होंने अपना पूरा जीवन जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिये समर्पित कर दिया और खुले तौर पर ब्राह्मणवादी समाज की धारणा को समाप्त किया। उनके भक्ति गीतों ने भक्ति आंदोलन पर त्वरित प्रभाव डाला और उनकी लगभग 41 कविताओं को सिखों के धार्मिक ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल किया गया।
- मूक नायक 31 मार्च, 1990 को भारत के संविधान के निर्माता डॉ. बी.आर. अंबेडकर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था जिन्होंने वर्ष 1920 में समाचार पत्र मूक नायक (Mooknayak) की स्थापना की थी।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर द्वारा मूक नायक समाचार पत्र का प्रकाशन 31 जनवरी, 1920 में की गई थी जिसने भारत में एक मुखर एवं संगठित दलित राजनीति की नींव रखी। इस समाचार पत्र का प्रकाशन मराठी भाषा में किया जाता था। इस समाचार पत्र की मदद से जाति-विरोधी राजनीति की एक नई शुरुआत की घोषणा की गई जिसने क्षेत्र, भाषा एवं राजनीतिक सीमाओं को तोड़ कर राष्ट्रवादी परिदृश्य में विकास प्रक्रिया के साथ समागम किया। वर्ष 1920 में मूक नायक के प्रकाशन ने भारत में जाति एवं अस्पृश्यता पर सामाजिक-राजनीतिक विमर्श में विशिष्ट बदलाव को प्रेरित किया। मूक नायक को प्रत्येक शनिवार को बंबई (वर्तमान मुंबई) से प्रकाशित किया जाता था। इस अखबार का शीर्षक संभवतः मराठी भक्ति कवि तुकाराम द्वारा लिखित उद्धरण से प्रेरित था। मूकनायक के पहले आधिकारिक संपादक पांडुरंग नंदराम भटकर (Pandhurang Nandram Bhatkar) थे।
- जम्मू नगर निगम (Jammu Municipal Corporation- JMC) ने जम्मू हवाई अड्डे को हिंदू डोगरा सम्राट महाराजा हरि सिंह और जम्मू विश्वविद्यालय को महाराजा गुलाब सिंह के नाम पर रखने का प्रस्ताव पारित किया है।
डोगरा वंश (Dogra Dynasty): महाराजा गुलाब सिंह ने डोगरा वंश की स्थापना की और वर्ष 1846 में जम्मू-कश्मीर के पहले सम्राट बने। डोगरा वंश के महाराजा गुलाब सिंह ने वर्ष 1846 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ 'अमृतसर की संधि' पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के तहत वर्ष 1846 में उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को कश्मीर और कुछ अन्य क्षेत्रों के बदले 75 लाख रुपए दिये। वर्ष 1846 में जम्मू और कश्मीर को एक एकल इकाई के रूप में एकीकृत किया गया था। वर्ष 1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के समय तक जम्मू और कश्मीर (J & K) एक रियासत थी। महाराजा हरि सिंह अंतिम डोगरा सम्राट थे जिन्होंने वर्ष 1947 में भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के विलय को लेकर विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये।
भारतीय प्रधानमंत्री ने वीडियो काॅन्फ्रेंस के माध्यम से बांग्लादेश में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की 100वीं जयंती समारोह में भाग लिया।
[सम्पादन]शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेता एवं प्रथम राष्ट्रपति थे। उन्हें बांग्लादेश में राष्ट्रपिता कहा जाता है। वह बांग्लादेश के लोगों के बीच ‘बंगबंधु’ के रूप में लोकप्रिय थे। वह अवामी लीग के नेता थे जिसकी स्थापना वर्ष 1949 में पूर्वी पाकिस्तान की एक प्रमुख राजनीतिक पार्टी के रूप में हुई थी। शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान को राजनीतिक स्वायत्तता दिलाने और बाद में बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन तथा वर्ष 1971 में बांग्लादेश लिबरेशन युद्ध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्ष 1947 में जब भारत और पाकिस्तान ने आज़ादी प्राप्त की तो बंगाल का मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान का हिस्सा बन गया और उसे ‘पूर्वी पाकिस्तान’ कहा जाने लगा। पूर्वी पाकिस्तान अपनी विषम परिस्थितियों के कारण न केवल भौगोलिक रूप से समकालीन पाकिस्तान से अलग था बल्कि जातीयता और भाषा के आधार पर भी पाकिस्तान से काफी अलग था। इस विषमता के कारण जल्द ही पूर्वी पाकिस्तान में संघर्ष शुरू हो गया। 21 मार्च, 1948 को जब मोहम्मद अली जिन्ना ने घोषणा की कि पूर्वी बंगाल के लोगों को राजभाषा के रूप में उर्दू भाषा को अपनाना होगा तो वहाँ के लोगों ने इसका विरोध किया। तब शेख मुजीबुर रहमान ने मुस्लिम लीग के इस पूर्व नियोजित फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। 1958 से 1962 के बीच तथा 1969 से 1971 के बीच पूर्वी पाकिस्तान मार्शल लॉ के अधीन रहा। 1970-71 के संसदीय चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान के अलगाववादी दल अवामी लीग ने उस क्षेत्र को आवंटित सभी सीटें जीत लीं। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान के मध्य वार्ता की विफलता के पश्चात् 27 मार्च, 1971 को शेख मुजीबुर रहमान ने पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान ने अलगाव को रोकने के पूरे प्रयास किये और इसके विरुद्ध जंग शुरु कर दिया। साथ ही परंतु भारत ने बांग्लादेशियों का समर्थन करने के लिये वहाँ अपनी शांति सेना भेज दी। 11 जनवरी, 1972 को लंबे संघर्ष के पश्चात् बांग्लादेश एक स्वतंत्र संसदीय लोकतंत्र बन गया। हाल ही में बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने फैसला लिया है कि बांग्लादेश का राष्ट्रीय नारा अब ‘जॉय बांग्ला’ होगा। यह नारा वर्ष 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की स्वतंत्रता के दौरान प्रमुख नारा था। बांग्लादेश के प्रथम राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान ने भी 7 मार्च, 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता के उद्घोष के बाद ‘जॉय बांग्ला’ के नारे का प्रयोग किया था।