समसामयिकी 2020/महिलाओं से संबंधित मुद्दे
अक्टूबर में उत्तर प्रदेश हाथरस दुष्कर्म मामले की जाँच के तहत इस मामले में शामिल पुलिस अधिकारियों के अलावा सभी अभियुक्तों और पीड़ित पक्ष के सभी लोगों का पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण किया जाएगा।
पॉलीग्राफ परीक्षण इस धारणा पर आधारित है कि जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उस स्थिति में उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएँ किसी सामान्य स्थिति में उत्पन्न होने वाली शारीरिक प्रतिक्रियाओं से अलग होती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान कार्डियो-कफ (Cardio-Cuffs) या सेंसिटिव इलेक्ट्रोड (Sensitive Electrodes) जैसे अत्याधुनिक उपकरण व्यक्ति के शरीर से जोड़े जाते हैं और इनके माध्यम से रक्तचाप, स्पंदन, श्वसन, पसीने की ग्रंथि में परिवर्तन और रक्त प्रवाह आदि को मापा जाता है। साथ ही इस दौरान उनसे प्रश्न भी पूछे जाते हैं।
इस प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति की प्रत्येक शारीरिक प्रतिक्रिया को कुछ संख्यात्मक मूल्य दिया जाता है, ताकि आकलन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि वह व्यक्ति सच कह रहा है अथवा झूठ बोल रहा है।
- पॉलीग्राफ परीक्षण- इतिहास:- इस प्रकार का पहला परीक्षण 19वीं सदी में इतालवी क्रिमिनोलॉजिस्ट सेसारे लोंब्रोसो द्वारा किया गया था, जिन्होंने पूछताछ के दौरान आपराधिक संदिग्धों के रक्तचाप (Blood Pressure) में बदलाव को मापने के लिये एक मशीन का इस्तेमाल किया था।
इसी प्रकार के उपकरण बाद में वर्ष 1914 में अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम मार्स्ट्रन और वर्ष 1921 में कैलिफोर्निया के पुलिस अधिकारी जॉन लार्सन द्वारा भी बनाए गए थे। नार्को परीक्षण में व्यक्ति को सोडियम पेंटोथल (Sodium Pentothal) जैसी दवाओं का इंजेक्शन दिया जाता है, जिससे वह व्यक्ति कृत्रिम निद्रावस्था या बेहोश अवस्था में पहुँच जाता है। इस दौरान जिस व्यक्ति पर यह परीक्षण किया जाता है उसकी कल्पनाशक्ति तटस्थ अथवा बेअसर हो जाती है और उससे सही सूचना प्राप्त करने या जानकारी के सही होने की उम्मीद की जाती है। हाल के कुछ वर्षों में जाँच एजेंसियों द्वारा जाँच के दौरान नार्को परीक्षण किया जाता रहा है और अधिकांश लोग इसे संदिग्ध अपराधियों से सही सूचना प्राप्त करने के लिये यातना और ‘थर्ड डिग्री’ के विकल्प के रूप में देखते हैं। हालाँकि इन दोनों ही विधियों में वैज्ञानिक रूप से 100 प्रतिशत सफलता दर प्राप्त नहीं हुई है और चिकित्सा क्षेत्र में भी ये विधियाँ विवादास्पद बनी हुई हैं।
- नार्को परीक्षण- इतिहास:- नार्को शब्द, ग्रीक शब्द 'नार्के ’(जिसका अर्थ बेहोशी अथवा उदासीनता होता है) से लिया गया है और इसका उपयोग एक नैदानिक और मनोचिकित्सा तकनीक का वर्णन करने के लिये किया जाता है। इस प्रकार के परीक्षण की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1922 में हुई थी, जब टेक्सास (अमेरिका) के एक प्रसूति रोग विशेषज्ञ (Obstetrician) रॉबर्ट हाउस ने दो कैदियों के परीक्षण हेतु नशीली दवाओं का प्रयोग किया था।
संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के अनुसार, किसी अपराध के लिये संदिग्ध किसी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाह बनने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के मुख्यतः तीन घटक हैं: यह किसी अभियुक्त से संबंधित अधिकार है। यह गवाह बनने की विवशता के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। यह ऐसी विवशता के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ सबूत पेश करने पड़ सकते हैं।
- वर्ष 2010 के ‘सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य’ वाद में सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने निर्णय में कहा था कि अभियुक्त की सहमति के बिना किसी भी प्रकार का ‘लाई डिटेक्टर टेस्ट’ (Lie Detector Test) नहीं किया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जो लोग स्वैच्छिक रूप से इस प्रकार के परीक्षण का विकल्प चुनते हैं, उन्हें उनके वकील से मिलने की इजाज़त होनी चाहिये और वकील तथा पुलिस प्रशासन द्वारा उस व्यक्ति को इस प्रकार के परीक्षण के सभी शारीरिक, भावनात्मक और कानूनी निहितार्थ के बारे समझाया जाना चाहिये। सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने वर्ष 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा प्रकाशित ‘लाई डिटेक्टर टेस्ट के प्रशासन संबंधी दिशा-निर्देशों’ का सख्ती से पालन करने को कहा था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित ‘लाई डिटेक्टर टेस्ट के प्रशासन संबंधी दिशा-निर्देशों’ के अनुसार,
- अभियुक्तों की सहमति के बिना कोई लाई डिटेक्टर टेस्ट नहीं कराया जाना चाहिये। साथ ही अभियुक्त को यह विकल्प दिया जाना चाहिये कि वह परीक्षण करवाना चाहता है अथवा नहीं।
- यदि अभियुक्त अथवा आरोपी स्वैच्छिक रूप से परीक्षण का चुनाव करता है तो उसे उसके वकील तक पहुँच प्रदान की जानी चाहिये और पुलिस तथा वकील का दायित्त्व है कि वे अभियुक्त को इस तरह के परीक्षण के शारीरिक, भावनात्मक और कानूनी निहितार्थ के बारे में बताएँ।
- परीक्षण के संबंध में अभियुक्तों की सहमति न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज की जानी चाहिये। साथ ही मजिस्ट्रेट के समक्ष सुनवाई के दौरान अभियुक्त का प्रतिनिधित्व विधिवत रूप से एक वकील द्वारा किया जाना चाहिये।
- परीक्षण के दौरान अभियुक्त द्वारा दिये गए बयान को ‘इकबालिया बयान’ नहीं माना जाएगा और लाई डिटेक्टर टेस्ट को किसी एक स्वतंत्र एजेंसी (जैसे अस्पताल) द्वारा अभियुक्त के वकील की उपस्थिति में किया जाएगा।
- अभियुक्त के अतिरिक्त अन्य लोगों का परीक्षण
‘सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य’ वाद में ही सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि किसी भी व्यक्ति को जबरन इस प्रकार के परीक्षण के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है, चाहे वह आपराधिक मामले की जाँच के संदर्भ में हो अथवा किसी अन्य स्थिति में। इस प्रकार न्यायालय ने अपने निर्णय में परीक्षण के लिये सहमति की आवश्यकता के सिद्धांत के दायरे को अभियुक्त के अतिरिक्त अन्य लोगों जैसे- गवाहों, पीड़ितों और परिवार वालों आदि तक विस्तृत कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना उसे इस प्रकार के परीक्षण के लिये मजबूर करना उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में दखल देने जैसा है। तीन सदस्यीय पीठ के मुताबिक, यद्यपि महिलाओं के साथ दुष्कर्म संबंधी अपराधों के मामलों में जाँच में तेज़ी लाने की आवश्यकता है, किंतु इसके बावजूद पीड़िता को जबरन परीक्षण का सामना करने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह मानसिक गोपनीयता (Mental Privacy) में अनुचित हस्तक्षेप होगा। पॉलीग्राफ और नार्को परीक्षण के हालिया उपयोग अधिकांश मामलों में जाँच एजेंसियाँ आरोपी या संदिग्धों पर किये जाने वाले ऐसे परीक्षणों की अनुमति लेती हैं, किंतु पीड़ितों या गवाहों पर यह परीक्षण शायद ही कभी किया गया हो। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि जाँच एजेंसियाँ इस तरह की मांग कर सकती हैं कि ये परीक्षण उनकी जाँच में मदद करने के लिये हैं, किंतु इस संबंध में किसी व्यक्ति द्वारा परीक्षणों के लिये दी गई सहमति अथवा इनकार करना उसके निर्दोष होने अथवा अपराधी होने को प्रतिबिंबित नहीं करता है। बीते वर्ष जुलाई माह में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने उत्तर प्रदेश के उन्नाव में दुष्कर्म पीड़िता को मारने वाले ट्रक के ड्राइवर और हेल्पर का इस प्रकार के परीक्षण कराए जाने की मांग की थी। CBI ने ही पंजाब नेशनल बैंक (PNB) के कथित धोखाधड़ी मामले में एक आरोपी के परीक्षण की भी मांग की थी, लेकिन न्यायालय ने अभियुक्त की सहमति न होने की स्थिति में याचिका खारिज कर दी थी।
हाल ही में केरल के तिरुवनंतपुरम की एक महिला नवप्रर्वतक डी वासिनी बाई (D Vasini Bai) ने ‘क्रॉस-पॉलिनेशन’ (Cross-Pollination) के ज़रिये अत्यधिक बाज़ार मूल्य वाले फूल एंथुरियम (Anthurium) की दस किस्मों को विकसित किया है।
Anthurium
मुख्य बिंदु:
एंथुरियम (Anthurium) रंगों की एक व्यापक श्रृंखला में उपलब्ध सुंदर दिखने वाले पौधों का एक विशाल समूह है। इसका उपयोग घरों के भीतर सजावटी पौधों के रूप में किया जाता है जिसके कारण इसकी विभिन्न किस्मों की माँग अधिक है। देश में समान कृषि जलवायु क्षेत्रों में इसके उत्पादन के लिये ‘नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन’ (National Innovation Foundation) ने बंगलूरु के भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Horticultural Research- IIHR) में टिशू कल्चर तकनीक (Tissue Culture Technique) के माध्यम से इसकी विभिन्न किस्मों को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। एंथुरियम घरेलू उपयोग में लाये जाने वाले विश्व के प्रमुख फूलों में से एक है। ये दिखने में सुंदर होने के साथ-साथ आस-पास की हवा को भी शुद्ध करते हैं और फॉर्मेल्डिहाइड, अमोनिया, टाल्यूईन (Toluene), जाइलीन और एलर्जी जैसे हानिकारक वायुजन्य रसायनों को हटाते हैं। हवा से ज़हरीले पदार्थों को हटाने की विशेषता के कारण नासा (NASA) ने इसे ‘हवा शुद्ध करने वाले पौधों’ की सूची में रखा है। डी वासिनी बाई का योगदान:
डी वासिनी बाई द्वारा विकसित की गई इन किस्मों की विशिष्टता बड़े एवं मध्यम आकार के फूल हैं जिनमें असामान्य रंग संयोजनों के साथ स्पैथ (Spathe) और स्पैडिक्स (Spadix) (हल्के एवं गहरे नारंगी, मैजेंटा, हरे एवं गुलाबी रंग का संयोजन, गहरे लाल एवं सफेद रंग) हैं। उन्होंने नालीदार एस्बेस्टस शीट का उपयोग करके सीमित स्थान पर छोटे पौधे उगाने के लिये एक नई विधि भी विकसित की है। उन्होंने उगाए गए छोटे पौधों को रोपने के लिये मिट्टी के गमलों के बजाय कंक्रीट के गमलों का उपयोग किया। इस विधि ने उन्हें सीमित स्थान पर अधिक पौधे उगाने में मदद की। एंथुरियम किस्मों को विकसित करने के लिये डी वासिनी बाई को मार्च 2017 में राष्ट्रपति भवन में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया द्वारा आयोजित नौवीं राष्ट्रीय द्विवार्षिक प्रतियोगिता में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया ने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर में किस्म संबंधी परीक्षण कार्यक्रम के तहत छह मूल किस्मों के साथ डी वासिनी बाई की किस्मों के लिये वैधता परीक्षण की सुविधा प्रदान की। जिसके तहत विकसित किस्में विभिन्न रंगों तथा इनके चमकदार पत्ते माध्यम एवं बड़े दिल के आकार के रूप में विशिष्ट होते हैं। उल्लेखनीय है कि नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया ने बंगलूरु के भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान और देश के समान कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों में टिशू कल्चर तकनीक के जरिये डोरा (Dora), जॉर्ज (George), जे.वी. पिंक (JV Pink) और जे.वी. रेड (JV Red) जैसी अत्यधिक बाज़ार मूल्य वाली किस्मों का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की सुविधा भी प्रदान की है।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री (Union HRD Minister) ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समारोह के एक हिस्से के रूप में चिपको आंदोलन की प्रमुख कार्यकर्त्ता गौरा देवी की याद में एक पौधा लगाया।
मुख्य बिंदु: केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) 1-8 मार्च, 2020 तक महिला सप्ताह मना रहा है। इसी क्रम में केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस समारोह के हिस्से के रूप में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया। गौरा देवी: खेजड़ली (जोधपुर) राजस्थान में वर्ष 1730 के आस-पास अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में लोगों ने राजा के आदेश के विपरीत पेड़ों से चिपककर उनको बचाने के लिये आंदोलन चलाया था। इसी आंदोलन ने आज़ादी के बाद 1970 के दशक में हुए चिपको आंदोलन को प्रेरित किया, जिसमें चमोली, उत्तराखंड में गौरा देवी सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था।
- केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा 21-23 फरवरी,2020 के बीच नई दिल्ली में आयोजित होने वाले पहले राष्ट्रीय जैविक खाद्य महोत्सव की मेज़बानी की जाएगी।
इसका उद्देश्य जैविक बाज़ार को मज़बूत करना और जैविक उत्पादों के उत्पादन एवं प्रसंस्करण के क्षेत्र में महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना है। थीम:-भारत की जैविक बाज़ार क्षमता को उन्मुक्त करना (Unleashing India’s Organic Market Potential) इस अवसर पर देश भर में विभिन्न क्षेत्रों की महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों (Self Help groups- SHGs) द्वारा निर्मित जैविक खाद्य उत्पादों जैसे- फल एवं सब्ज़ियाँ, रेडी-टू-इट उत्पाद, मसाले, शहद, अनाज, सूखे मेवे आदि का प्रदर्शन किया जाएगा। इस अवसर पर पहले से व्यवस्थित बी2बी (Business to Business- B2B) और बी2जी (Business to Government- B2G) बैठकों के माध्यम से व्यावसायिक संपर्कों को सुविधाजनक बनाने एवं महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। जैविक कृषि भूमि मामले में भारत विश्व में 9वें स्थान पर है और यहाँ जैविक उत्पादकों की सबसे बड़ी संख्या है। भारत में सिक्किम राज्य विश्व का पहला जैविक राज्य है। गौरतलब है कि भारत सरकार महिला उद्यमियों को मुद्रा (Micro Units Development and Refinance Agency- MUDRA) और स्टार्टअप इंडिया जैसी वित्तीय योजनाओं से जोड़ने का प्रयास कर रही है।
- महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिये आंध्र प्रदेश के राजामहेंद्रवरम् शहर में पहले दिशा पुलिस स्टेशन की स्थापना की गई। आंध्र प्रदेश आपराधिक कानून (संशोधन) बिल 2019 के तहत स्धापित। इसे ‘दिशा एक्ट’ के रूप में भी जाना जाता है। इस मसौदा कानून पर अभी राष्ट्रपति की सहमति मिलनी शेष है।
इस एक्ट की धारा 354 F के अनुसार, बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों में 10-14 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है। इसके अंतर्गत अपराध से संबंधित पूरी जाँच को 7 दिनों के भीतर और अदालती ट्रायल को 14 दिनों के भीतर पूरा किया जाएगा। ‘दिशा’ नाम 26 वर्षीय महिला पशुचिकित्सक को दिया गया एक प्रतीकात्मक नाम है जिसकी 27 नवंबर को हैदराबाद में बलात्कार करने के बाद हत्या कर दी गई थी। महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराधों से संबंधित मामलों से निपटने के लिये प्रत्येक ज़िले में एक विशेष अदालत के अलावा कुल 18 दिशा पुलिस स्टेशन स्थापित किये जाएंगे। दिशा एप (Disha App) भी लॉन्च किया गया। जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति यदि वह फोन को ऑपरेट नहीं कर सकता है तो संकट की स्थिति में सिर्फ अपने फोन को हिलाकर चेतावनी दे सकता है।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा 21-23 फरवरी,2020 के बीच नई दिल्ली में आयोजित होने वाले पहले राष्ट्रीय जैविक खाद्य महोत्सव का उद्देश्य जैविक बाज़ार को मज़बूत करना और जैविक उत्पादों के उत्पादन एवं प्रसंस्करण के क्षेत्र में महिला उद्यमियों को सशक्त बनाना है।
- थीम:-भारत की जैविक बाज़ार क्षमता को उन्मुक्त करना
- मुख्य बिंदु:-इस अवसर पर देश भर में विभिन्न क्षेत्रों की महिला उद्यमियों और स्वयं सहायता समूहों द्वारा निर्मित जैविक खाद्य उत्पादों जैसे-फल एवं सब्ज़ियाँ, रेडी-टू-इट उत्पाद, मसाले, शहद, अनाज, सूखे मेवे आदि का प्रदर्शन किया जाएगा।
- इस अवसर पर पहले से व्यवस्थित बी2बी (Business to Business- B2B) और बी2जी (Business to Government- B2G) बैठकों के माध्यम से व्यावसायिक संपर्कों को सुविधाजनक बनाने एवं महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- जैविक कृषि भूमि मामले में भारत विश्व में 9वें स्थान पर है और यहाँ जैविक उत्पादकों की सबसे बड़ी संख्या है। भारत में सिक्किम राज्य विश्व का पहला जैविक राज्य है।
भारत सरकार महिला उद्यमियों को मुद्रा (Micro Units Development and Refinance Agency- MUDRA) और स्टार्टअप इंडिया जैसी वित्तीय योजनाओं से जोड़ने का प्रयास कर रही है।
13 फरवरी को राष्ट्रीय महिला दिवस भारत में (आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत) पहली महिला राज्यपाल सरोजनी नायडू के जन्दिवास को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में महिलाओं के विकास के लिये सरोजनी नायडू द्वारा किये गए योगदान को मान्यता देने के लिये उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। इस दिवस को मनाने का प्रस्ताव भारतीय महिला संघ और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन के सदस्यों द्वारा किया गया था। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय महिला दिवस 13 फरवरी को जबकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है।
- भारत की गीता सेन ने प्रतिष्ठित डैन डेविड पुरस्कार जीता। गीता सेन पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की निदेशक हैं। गीता सेन को ‘वर्तमान– लैंगिक समानता’ श्रेणी में ब्राज़ील की देबोरा दिनीज़ के साथ संयुक्त रूप से यह पुरस्कार दिया गया है।
- तेल अवीव विश्वविद्यालय में स्थित डैन डेविड फाउंडेशन द्वारा प्रदत इस पुरस्कार का नामकरण प्रसिद्ध परोपकारी तथा बिजनेसमैन डैन डेविड के नाम पर रखा गया है। यह पुरस्कार प्रतिवर्ष तीन श्रेणियों:-वर्तमान, भूतकाल तथा भविष्य, में प्रदान किया जाता है।
- ‘भूतकाल:-सांस्कृतिक संरक्षण व जीर्णोधार’ श्रेणी में यह पुरस्कार अमेरिका के लोनी जी. बंच III तथा बारबरा किर्शेनब्लाट-गिम्ब्लेट को पुरस्कार प्रदान किया गया जबकि ‘भविष्य– आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ श्रेणी में यह पुरस्कार यूनाइटेड किंगडम के देमिस हैसाबिस और प्रोफेसर अमनोन शाशुआ को प्रदान किया गया।
प्रतिवर्ष 11 फरवरी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की पहुँच से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है
[सम्पादन]- इसका प्रारंभ संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 22 दिसम्बर 2015 को एक संकल्प पारित कर।
- उद्देश्य:-विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की समान पहुँच एवं भागीदारी सुनिश्चित कर लैंगिक अंतराल को कम करने तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी कार्य करने के उद्देश्य से।
- यह विज्ञान और प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की भूमिका का मूल्यांकन करेगा।
- इसका क्रियान्वयन यूनेस्को और यूएन वुमेन के सहयोग से कई अन्य अंतर-सरकारी संगठनों और संस्थाओं के द्वारा सामूहिक रूप से किया जा रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व के महान वैज्ञानिक और गणितज्ञों की सूची में कुछ महिलाओं का नाम प्रमुखता से लिया जाता है परंतु उन्हें विज्ञान से जुड़े उच्च अध्ययन क्षेत्रों में शीर्ष वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल करने वाले अपने पुरुष समकक्षों के सापेक्ष कम प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है।
- यूनेस्को द्वारा वैश्विक रूप से विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी पर तैयार की गई वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार,शोधकर्त्ताओं में सिर्फ 28.8% महिलाएँ हैं।यह शोधकर्त्ताओं को"नए ज्ञान की अवधारणा या निर्माण में लगे पेशेवरों" के रूप में परिभाषित करता है।
- भारत के संदर्भ में शोध के क्षेत्र में महिलाओं और बालिकाओं की भागीदारी गिरकर 13.9% पर पहुँच गई है।
- वर्ष 1901 से 2019 के बीच भौतिकी,रसायन और चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में 616 विजेताओं को 334 नोबेल पुरस्कार दिये गए हैं,जिनमें से 20 नोबेल पुरस्कार सिर्फ 19 महिलाओं को प्राप्त हुए हैं।
- वर्ष 2019 तक भौतिकी के क्षेत्र में 3 महिलाओं,रसायन के क्षेत्र में 5 महिलाओं तथा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में 12 महिलाओं को नोबेल पुरस्कार प्रदान किये गए हैं,जिनमें मैडम क्यूरी को भौतिकी व रसायन विज्ञान दोनों ही क्षेत्रों में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
- वर्ष 2019 में अमेरिकी गणितज्ञ केरेन उहलेनबेक गणित के क्षेत्र का प्रतिष्ठित ‘एबेल पुरस्कार (Abel Prize)’प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं।
- वर्ष 1936 से 2019 के बीच 59 पुरुष समकक्षों के सापेक्ष वर्ष 2014 में फील्ड्स मेडल प्राप्त करने वाली ईरान की एकमात्र महिला गणितज्ञ मरयम मिर्जाखानी थी।
विज्ञान के पाठ्यक्रम में महिलाओं का प्रतिनिधित्व
- यूनेस्को के अनुसार,वर्ष 2014 से 2016 के बीच केवल 30% छात्राओं ने उच्च शिक्षा में STEM (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स)से संबंधित क्षेत्रों का चयन किया है।
- छात्राओं की नामांकन दर सूचना प्रोद्योगिकी(3%),प्राकृतिक विज्ञान, गणित, सांख्यिकी (5%) तथा इंजीनियरिंग व संबंधित क्षेत्रों (8%) में अपेक्षाकृत रूप से कम है।
- भारत में वर्ष 2016-17 की नीति आयोग की रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2015-16 तक पिछले पांँच वर्षों में विभिन्न विषयों में महिला नामांकन की तुलना की गई है।
- वर्ष 2015-16 में स्नातक के इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में 15.6% नामांकन दर के सापेक्ष छात्राओं की भागीदारी 9.3% रही। वहीं चिकित्सा विज्ञान में नामांकन दर 4.3% रही।
- रिपोर्ट के अनुसार कला के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी प्राथमिकता प्रदर्शित की परंतु वित्तीय वर्ष 2010-11 से 2015-16 के बीच विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार बढ़ा है।
- रिपोर्ट में ये तथ्य प्रकाश में आए हैं कि 620 से अधिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों (IIT, NIT, ISRO और DRDO समेत) में महिलाओं की उपस्थिति वैज्ञानिक और प्रशासनिक कर्मचारियों के बीच 20.0%, पोस्ट-डॉक्टोरल फैलोशिप में 28.7% और पीएचडी विद्वानों के बीच 33% है।
केंद्र सरकार की पहल
[सम्पादन]- राष्ट्रीय विज्ञान दिवस(28 फरवरी) के अवसर पर भारत सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रख्यात भारतीय महिला वैज्ञानिकों के नाम पर 11 पीठों की घोषणा की।
यह कार्यक्रम महिलाओं को प्रोत्साहित करने, उन्हें सशक्त बनाने और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली युवा महिला शोधकर्त्ताओं को उचित पहचान दिलाने के लिये है। 11 पीठों को कृषि, जैव प्रौद्योगिकी, इम्यूनोलॉजी, फाइटोमेडिसिन, जैव रसायन, चिकित्सा, सामाजिक विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान एवं मौसम विज्ञान, इंजीनियरिंग, गणित, भौतिकी सहित अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित किया गया है। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development- MWCD) ने संयुक्त रूप से प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों द्वारा महिलाओं को उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहित करने और उनके द्वारा चुने हुए क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिये विभिन्न विश्वविद्यालयों में 10 पीठों की स्थापना की जा चुकी है।
महिलाओं के मुद्दे से संबंधित विधेयक
[सम्पादन]राज्यसभा सांसद भूपेंद्र यादव की अध्यक्षता में गठित प्रवर समिति ने‘सरोगेसी विनियमन विधेयक,2019’ पर अपनी रिपोर्ट पेश की
[सम्पादन]- विधेयक के ‘करीबी रिश्तेदारों’वाले खंड को हटा दिया जाना चाहिये और किसी भी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट माँ बनने की अनुमति दी जानी चाहिये। साथ ही यदि उपयुक्त प्राधिकारी ने सरोगेसी को मंज़ूरी दे दी है तो अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिये।
- वाणिज्यिक सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
- 35-45 वर्ष आयु-वर्ग की तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को ‘सिंगल कमीशनिंग पैरेंट’होने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- निःसंतान विवाहित जोड़ों के लिये पाँच वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को उस स्थिति में हटा देना चाहिये यदि चिकित्सा प्रमाण-पत्र यह प्रमाणित करता है कि वे गर्भधारण करने में असमर्थ हैं।
- भारतीय मूल के व्यक्तियों को सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति दी जानी चाहिये।
- समिति ने सिंगल कमीशन पैरेंट की परिभाषा में एकल पुरुष या महिलाओं को शामिल नहीं करने की सिफारिश है। इसका मतलब है कि तुषार कपूर, करण जौहर और एकता कपूर जैसे लोग बच्चों के लिये सरोगेसी मार्ग का उपयोग करने के पात्र नहीं होंगे।
- प्रवर समिति द्वारा यह भी सिफारिश की गई है कि सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक को सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 से पहले लाया जाना चाहिये।
सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) विधेयक(ART विधेयक) |
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