समसामयिकी 2020/राष्ट्रीय उद्दान वन्यजीव अभयारण्य

विकिपुस्तक से
  • केंद्रीय पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री’ (MoEFCC) द्वारा ‘अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस’ के अवसर पर ‘बाघ संगणना-2018’ की विस्तृत स्थिति रिपोर्ट जारी की गई। विस्तृत रिपोर्ट में, वर्ष 2018-19 सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी कि तुलना पूर्व के तीन सर्वेक्षणों (वर्ष 2006, वर्ष 2010 और वर्ष 2014) के साथ की गई है।

प्रतिवर्ष 29 जुलाई को बाघ संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये 'अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस’ आयोजित किया जाता है, इसकी : शुरुआत वर्ष 2010 में 'सेंट पीटर्सबर्ग टाइगर समिट' के समय की गई थी। इस दौरान बाघ संरक्षण पर ‘सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा' (Petersburg Declaration) पर हस्ताक्षर किये गए जिसमें सभी ‘टाइगर रेंज कंट्रीज़’ द्वारा 2022 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का संकल्प लिया गया था। वर्तमान में भारत, बांग्लादेश, भूटान, कंबोडिया, चीन, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, नेपाल, रूस, थाईलैंड और वियतनाम सहित कुल 13 देश 'टाइगर रेंज कंट्रीज़' में शामिल है। 2,967 बाघों की संख्या के साथ भारत ने चार वर्ष पूर्व ही ‘सेंट पीटर्सबर्ग घोषणा' के लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य है कि वर्ष 2006 में भारत में बाघों की संख्या 1,400 के आसपास थी।

विस्तृत रिपोर्ट की अद्वितीयता: बाघ के अलावा अन्य सह-शिकारियों और प्रजातियों के लिये ‘बहुतायत सूचकांक’ (Abundance Index) तैयार किये गए हैं।‘बहुतायत सूचकांक’ किसी क्षेत्र में सह-शिकारियों और प्रजातियों के सापेक्षिक वितरण को दर्शाता है। पहली बार 'सभी कैमरा ट्रैप साइट्स' पर बाघों का लिंगानुपात दर्ज़ किया गया है। रिपोर्ट में पहली बार बाघों की आबादी पर मानव-जनित प्रभाव के संबंध में विस्तृत वर्णन दिया गया है। किसी टाइगर रिज़र्व के विशेष हिस्से में (Pockets ) में बाघ की बहुतायतता को पहली बार दर्शाया गया है। बाघ संगणना-2018 को दुनिया के सबसे बड़े 'कैमरा ट्रैप सर्वे ऑफ वाइल्डलाइफ' के रूप में 'गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड' के रूप में दर्ज किया गया है। बाघ संगणना के लिये 'मॉनिटरिंग सिस्‍टम फॉर टाइगर्स इंटेंसिव प्रोटेक्‍शन एंड इकोलॉजिकल स्‍टेट्स (Monitoring system for Tigers’ Intensive Protection and Ecological Status) अर्थात M-STrIPES का इस्‍तेमाल किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2006-2018 के बीच भारत में बाघों की संख्या में प्रतिवर्ष 6 प्रतिशत की वृद्धि दर हुई है। वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2018 में बाघों की संख्या में लगभग 33% की वृद्धि दर्ज की गई है। वैश्विक बाघों की आबादी की लगभग 70 प्रतिशत भारत में है। पश्चिमी घाट, लगभग 724 बाघों की संख्या के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सतत् बाघ आबादी वाला क्षेत्र है। इसमें सतत् क्षेत्र नागरहोल-बांदीपुर-वायनाड-मुदुमलाई- सत्यमंगलम-बीआरटी ब्लॉक शामिल हैं। बाघों की सबसे अधिक संख्‍या मध्‍य प्रदेश में (526) पाई गई, इसके बाद कर्नाटक (524) और उत्‍तराखंड का स्थान (442) है। पूर्वोत्तर भारत के अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में बाघों की स्थिति में लगातार गिरावट आई है, जो चिंता का विषय है। इस नई रिपोर्ट में तीन टाइगर रिज़र्व बुक्सा (पश्चिम बंगाल), डंपा (मिज़ोरम) और पलामू (झारखंड) में बाघों की कोई उपस्थिति दर्ज नहीं की गई है। भारत में बाघ जनगणना प्रत्येक 4 वर्ष में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा पूरे भारत में बाघों की जनगणना की जाती है। इस प्रकार का आयोजन सर्वप्रथम वर्ष 2006 में किया गया था।

  • 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस (World Wildlife Day):- 20 दिसंबर, 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा प्रारंभ इस दिवस का प्रमुख उद्येश्य है-वन्यजीवों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना।वर्ष 2019 की थीम ‘लाइफ बिलो वाटर : फॉर पीपल एंड प्लैनेट’ (Life below Water: for People and Planet) है।
  • 2 जुलाई को पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (Central Zoo Authority-CZA) का पुनर्गठन करते हुए, इसमें स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (दिल्ली) के एक विशेषज्ञ और एक आणविक जीवविज्ञानी को शामिल किया है।

पुनर्गठन के बाद स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (दिल्ली) के निदेशक पी. एस. एन. राव (P.S.N. Rao) तथा कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र (The Centre for Cellular & Molecular Biology-CCMB) के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक कार्तिकेयन वासुदेवन को ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (CZA) के नए सदस्यों के रूप में शामिल किया गया है। स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर की शुरुआत वर्ष 1941 में दिल्ली पॉलिटेक्निक (Delhi Polytechnic) के आर्किटेक्चर विभाग के रूप में की गई थी। इसे वर्ष 1955 में स्थापित स्कूल ऑफ टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से एकीकृत कर दिया गया और वर्ष 1955 में इसका नाम बदलकर स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर कर दिया गया। इसके अंतर्गत मानव आवास और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं में विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।

01 जून से ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (CZA) ने चिड़ियाघर को आगंतुकों के लिये खोलने की अनुमति दे दी थी। मई माह में दुनिया भर के कई जानवरों के कोरोना वायरस (COVID-19) से संक्रमित होने के बाद से जानवरों खासकर चिड़ियाघर घर में रहने वाले जानवरों में संक्रमण को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही थी। ‘सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी’ (CZA) ने भी निगरानी बढ़ाने और जानवरों की सुरक्षा का ध्यान रखने समेत कई अन्य परामर्श जारी किये थे। CZA द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, चिड़ियाघर के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने का कार्य भी किया जा रहा है, ताकि वे मौजूदा महामारी के दौरान जानवरों को सुरक्षित करने के लिये सही कदम उठा सकें।

सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA), एक सांविधिक निकाय (statutory body) है जिसका मुख्य उद्देश्य भारत में जानवरों के रख-रखाव और स्वास्थ्य देखभाल के लिये न्यूनतम मानकों तथा मानदंडों को लागू करना है। इसकी स्थापना वर्ष 1992 में की गई थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में इस निकाय की स्थापना के लिये वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम को संशोधित किया गया था।

इस प्राधिकरण का मुख्य लक्ष्य देश की समृद्ध जैव विविधता के संरक्षण में राष्ट्रीय प्रयास को और मज़बूत करना है, विशेष रूप से पशुओं के संबंध में। ध्यातव्य है कि भारत में चिड़ियाघरों को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार विनियमित तथा राष्ट्रीय चिड़ियाघर नीति, 1992 द्वारा निर्देशित किया जाता हैं। गौरतलब है कि भारतीय और विदेशी चिड़ियाघरों के बीच जानवरों के आदान-प्रदान के लिये भी सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी (CZA) के अनुमोदन की आवश्यकता होती है। सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी के अंतर्गत एक अध्यक्ष के अतिरिक्त 10 सदस्य और एक सदस्य-सचिव शामिल होता है। इसमें से कुछ सदस्य पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में कार्यरत अधिकारी होते हैं, जबकि शेष गैर-सरकारी सदस्य वन्यजीव संरक्षणवादी या सेवानिवृत्त वन अधिकारी होते हैं। इस प्राधिकरण की अध्यक्षता पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा की जाती है।

  • तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में ट्रॉपिकल बटरफ्लाई कंज़र्वेटरी (Tropical Butterfly Conservatory- TBC) का विकास

तितली एवं उसके पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से किया गया है। अपर अनाइकट रिज़र्व फॉरेस्ट (Upper Anaicut Reserve Forest) में स्थित है जो तिरुचिरापल्ली में कावेरी और कोल्लीडम (Kollidam) नदियों के बीच स्थित है। कोल्लीडम (Kollidam) नदी: कोल्लीडम दक्षिण-पूर्वी भारत की एक नदी है। यह श्रीरंगम (Srirangam) द्वीप पर कावेरी नदी की मुख्य शाखा से अलग होकर पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। क्षेत्रफल: यह 27 एकड़ में फैला है और इसे एशिया का सबसे बड़ा तितली पार्क माना जाता है। मुख्य बिंदु: इसकी शुरुआत नवंबर 2015 में की गई थी। इसका मुख्य लक्ष्य तिरुचिरापल्ली ज़िले में तितलियों के महत्ता का प्रचार-प्रसार करना तथा पर्यावरणीय शिक्षा के माध्यम से क्षेत्र की जैव विविधता के संरक्षण के प्रयास करना है। यहाँ एक बाहरी कंज़र्वेटरी ‘नक्षत्र वनम’ (Nakshatra Vanam) और भीतरी कंज़र्वेटरी ‘रासी वनम’ (Rasi Vanam) के साथ-साथ गैर अनुसूचित तितली प्रजातियों के लिये एक प्रजनन प्रयोगशाला भी है। इस क्षेत्र में अब तक लगभग 109 तितली प्रजातियाँ दर्ज की जा चुकी हैं। तितलियों का महत्व: चूँकि तितलियाँ प्रकृति में खाद्य वेब (Food Web) का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं इसलिये पारिस्थितिक संतुलन के लिये इन प्रजातियों की रक्षा करना बहुत आवश्यक है। वे परागण की प्रक्रिया के द्वारा वैश्विक खाद्य श्रृंखला में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विभिन्न खतरे: तितलियों की विविधता के लिये प्रमुख खतरे निम्नलिखित हैं- आवासीय क्षेत्र का कम होना, अत्यधिक चराई, जंगलों में आग एवं खेतों में कीटनाशकों के प्रयोग तथा कृषि एवं शहरी पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश, क्षरण एवं विखंडन।

  • तमिलनाडु राज्य के चेन्नई शहर की तीन झीलों (अडंबक्कम, पेरुंबक्कम और वेंगाइवासल) को इको-पार्क में बदला जाएगा।

झीलों को गहरा करने और इनको सुंदर बनाने के लिये 12 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। इस परियोजना के प्रमुख घटक हैं- बच्चों के खेलने का क्षेत्र,इको-पार्क,जल निकायों के आसपास लॉन और फुटपाथ। इस परियोजना का उद्देश्य जल संग्रहण क्षमता में सुधार और आसपास के भूजल स्तर को समृद्ध करना है। 560 एकड़ में फैली पेरुंबक्कम झील को पहले से ही चेन्नई मेट्रो वाटर द्वारा पेयजल स्रोत के रूप में विकसित किया जा रहा है।

  • वर्ष 2010 में ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस और यूरोपियन यूनियन द्वारा लाया गया अंटार्कटिक महासागर अभयारण्य योजना का प्रस्ताव पुनः चर्चा का विषय बना हुआ है। इस प्रस्ताव के अंतर्गत समुद्री जीवों के लिये दुनिया का सबसे बड़ा महासागर अभयारण्य बनाने की योजना है। लेकिन कमीशन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ अंटार्कटिक मरीन लिविंग रिसोर्सेज़ (Commission for Conservation of Antarctic Marine living Resources- CCAMLR) की बैठक में सभी सदस्य देशों के बीच आपसी सहमति न होने से यह प्रस्ताव अब तक लंबित है। क्योंकि समुद्री पार्क के निर्माण के लिये CCAMLR के सभी 26 सदस्यों की सहमति आवश्यक है। इससे पूर्व CCAMLR द्वारा विश्व का अब तक का सबसे विशाल समुद्री अभयारण्य रोस सागर में बनाया गया है। इसके अलावा दो अन्य अभयारण्य, वेडेल सागर और अंटार्कटिक उपद्वीप में प्रस्तावित हैं।

महत्त्व :-लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर का प्रस्तावित यह पार्क, पेंगुइन, सील, व्हेल और अन्य समुद्री जीवों के लिये आवश्यक खाद्य स्रोतों की रक्षा करेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी इसकी अहम भूमिका होगी, क्योंकि अंटार्कटिक के आसपास के समुद्री वातावरण से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को सोख लेता है। आवश्यकता अत्यधिक नौकायन और मत्स्य व्यवसाय ने समुद्र की कुछ प्रजातियों जैसे सील, व्हेल और अन्य मछलियों को विलुप्ति के कगार पर ला दिया है। इस योजना के तहत समुद्री स्तनधारियों के लिये विशिष्ट गहरे पानी की भित्तियों और खाद्य क्षेत्रो को संरक्षित किया जाएगा।

इस प्रस्ताव के मुख्य विरोधी चीन और रूस हैं। क्योंकि प्रस्तावित क्षेत्र से इन देशों के मत्स्य पालन के हित से जुड़ा हैं। इस अभयारण्य के संवेदनशील हिस्सों में जलीय जीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।

अंटार्कटिक समुद्री जीव संसाधन के संरक्षण के लिये आयोग (CCAMLR) की स्थापना अंटार्कटिक समुद्री जीवों के संरक्षण के लिये 1982 में की गई। इस संगठन में कुल 26 सदस्य हैं। इसका सचिवालय होबार्ट, तस्मानिया (ऑस्ट्रेलिया) में हैं।

नवंबर 1998 के 17वें सम्मेलन के दौरान भारत ने 2 वर्षों तक इसकी अध्यक्षता की।

अंटार्कटिक महासागर की भौगोलिक अवस्थिति दक्षिण ध्रुवीय महासागर अथवा 'अंटार्कटिक महासागर' अंटार्कटिक क्षेत्र के चारों ओर फैला हुआ है। यह अंध महासागर' (अटलांटिक), प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर का दक्षिणी विस्तार माना जाता है।

आर्द्रभूमि[सम्पादन]

निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 1- रामसर कन्वेंशन के तहत, भारत के क्षेत्र में सभी आर्द्रभूमियों की रक्षा और संरक्षण भारत सरकार हेतु अनिवार्य है। 2- आर्द्र भूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2010 रामसर कन्वेंशन की सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार द्वारा तैयार किये गए थे। 3- आर्द्र भूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2010 आर्द्र भूमियों के अपवाह क्षेत्र या जलग्रहण क्षेत्रों को भी सम्मिलित करते हैं, जैसा प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?:-(b) केवल 2 और 3

  • पुणे स्थित ‘आगरकर अनुसंधान संस्थान’ (Agharkar Research Institute) द्वारा की गई जाँच में पाया गया है कि महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले में लोनार झील (Lonar Lake) के पानी का रंग हालोआर्चिआ (Haloarchaea) नामक सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति के कारण गुलाबी हो गया है।

‘हालोआर्चिया’ या ‘हालोफिलिक आर्चिया’ एक ऐसा जीवाणु होता है जो गुलाबी रंग पैदा करता है और खारे पानी में पाया जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि वर्षा की अनुपस्थिति, कम मानवीय हस्तक्षेप और उच्च तापमान के परिणामस्वरूप जल का वाष्पीकरण हुआ जिससे लोनार झील (Lonar Lake) की लवणता एवं पीएच (PH) में वृद्धि हुई। लवणता एवं पीएच (PH) की वृद्धि ने हेलोफिलिक जीवाणुओं के विकास के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न की। वैज्ञानिकों का कहना है कि झील का रंग अपने मूल रूप में वापस आने लगा है क्योंकि वर्षा ऋतु ने अतिरिक्त जल की मात्रा को बढ़ा दिया है। जिससे लवणता एवं पीएच (PH) के स्तर में भी कमी आई है और झील में हरी शैवाल भी बढ़ने लगी है। लोनार झील (Lonar Lake): लोनार झील महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले के लोनार में स्थित एक क्रेटर झील (Crater-Lake) है और इसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल (Pleistocene Epoch) में उल्कापिंड के गिरने से हुआ था जो 1.85 किमी. के व्यास एवं 500 फीट की गहराई के साथ बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है। यह एक अधिसूचित राष्ट्रीय भू-विरासत स्मारक (National Geo-heritage Monument) भी है। यह एक लोकप्रिय पर्यटक केंद्र भी है। इस झील का पानी खारा एवं क्षारीय दोनों है। इस झील में गैर-सहजीवी नाइट्रोजन-फिक्सिंग सूक्ष्म जीवाणुओं (Non-Symbiotic Nitrogen-Fixing Microbes) जैसे- स्लैकिया एसपी (Slackia SP), एक्टिनोपॉलीस्पोरा एसपी (Actinopolyspora SP) और प्रवासी पक्षी जैसे- शेल्डक, ग्रेब, रूडी शेल्डक के रूप में समृद्ध जैविक विविधता पाई जाती है।

  • 2 फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस के रूप में मनाया गया। वर्ष 1971 में ईरान के शहर रामसर में इसी दिन कैस्पियन सागर के तट पर आर्द्रभूमि पर एक अभिसमय (Convention on Wetlands) को अपनाया गया था। विश्व आर्द्रभूमि दिवस पहली बार 2 फरवरी,1997 को रामसर सम्मलेन के 16 वर्ष पूरे होने पर मनाया गया था।
वर्ष 2020 के लिये थीम है-आर्द्रभूमि और जैव-विविधता (Wetlands and Biodiversity) वर्ष 2019 के लिए थीम थी-‘आर्द्रभूमि और जलवायु परिवर्तन’(Wetlands and Climate Change)। 2021-आर्द्रभूमि और जल (Wetlands and Water)।

रामसर कन्वेंशन के तहत आर्द्रभूमि की परिभाषा में दलदली भूमि,बाढ़ के मैदान,नदियाँ और झीलें, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियाँ और अन्य समुद्री क्षेत्र शामिल हैं जो कम ज्वार पर 6 मीटर से अधिक गहरे नहीं हैं,साथ ही मानव निर्मित आर्द्रभूमियों जैसे अपशिष्ट-जल उपचार वाले तालाब और जलाशय भी इसमें शामिल हैं।

IPBES (Intergovernmental Science-Policy Platform on Biodiversity and Ecosystem Services),वैश्विक मूल्यांकन ने आर्द्रभूमि को सबसे अधिक खतरे वाले पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में चिह्नित किया है।

आर्द्रभूमियों को आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम (Wetlands (Conservation and Management) Rules,) , 2017 के तहत विनियमित किया जाता है। सेंट्रल वेटलैंड रेगुलेटरी अथॉरिटी (Central Wetland Regulatory Authority) के लिये प्रदत्त नियमों का 2010 संस्करण; 2017 के नियमों ने इसे राज्य-स्तरीय निकायों के साथ परिवर्तित कर एक राष्ट्रीय आर्द्रभूमि समिति (National Wetland Committee) बनाई, जो एक सलाहकारी निकाय के रूप में कार्य करती है। नए नियमों ने ‘आर्द्रभूमि’ की परिभाषा से कुछ वस्तुओं को हटा दिया, जिनमें बैकवाटर, लैगून, क्रीक और एश्च्युरी शामिल हैं। वेटलैंड्स को बायोलॉजिकल सुपर-मार्केट कहा जाता है,क्योंकि ये विस्तृत भोज्य-जाल (Food-Webs) का निर्माण करते हैं। आर्द्रभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाती है। वेटलैंड्स को ‘किडनीज़ ऑफ द लैंडस्केप’ (Kidneys of the Landscape) यानी ‘भू-दृश्य के गुर्दे’ भी कहा जाता है। ♦ जिस प्रकार से हमारे शरीर में जल को शुद्ध करने का कार्य किडनी द्वारा किया जाता है,ठीक उसी प्रकार वेटलैंड तंत्र जल-चक्र द्वारा जल को शुद्ध करता है और प्रदूषणकारी अवयवों को निकाल देता है। ♦ जल एक ऐसा पदार्थ है जिसकी अवस्था में बदलाव लाना अपेक्षाकृत आसान है।

  • भारत के 10 नए स्थलों को रामसर कन्वेंशन के तहत आर्द्रभूमि के रूप में मान्यता प्राप्त करने के साथ हीं भारत में कुल आर्द्रभूमियों की संख्या अब 37 हो गई है जो 1,067,939 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हैं। घोषित नए स्थलों में महाराष्ट्र में पहली बार किसी स्थान को आर्द्रभूमि घोषित किया गया है। अन्य 27 रामसर स्थल राजस्थान, केरल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, गुजरात, तमिलनाडु और त्रिपुरा में स्थित हैं।

रामसर कन्वेंशन 2 फरवरी, 1971 में ईरान के शहर रामसर में अस्तित्व में आया।भारत 1 फरवरी, 1982 को इस कन्वेंशन में शामिल हुआ।

  • नए 10 आर्द्रभूमि स्थलों में महाराष्ट्र का 1,पंजाब के 3 तथा उत्तर प्रदेश के 6 स्थल शामिल हैं, जो इस प्रकार हैं -
  1. नंदुर मदमहेश्वर (Nandur Madhameshwar),
  2. महाराष्ट्र केशोपुर-मियाँ (Keshopur-Mian),
  3. पंजाब ब्यास कंज़र्वेशन रिज़र्व (Beas Conservation Reserve),
  4. पंजाब नांगल (Nangal),
  5. पंजाब नवाबगंज (Nawabganj),
  6. उत्तर प्रदेश पार्वती आगरा (Parvati Agara),
  7. उत्तर प्रदेश समन (Saman),
  8. उत्तर प्रदेश समसपुर (Samaspur),
  9. उत्तर प्रदेश सांडी (Sandi) आर्द्रभूमि,
  10. उत्तर प्रदेश सरसई नवार (Sarsai Nawar),
  • सुखना झील (Sukhna Lake) को एक कानूनी इकाई (Legal Entity) के रूप में मान्यता देते हुए पंजाब एवं हरियाणा के उच्च न्यायालय ने तीन महीने के भीतर इसके आसपास के जलग्रहण क्षेत्र में सभी अनधिकृत संरचनाओं को ध्वस्त करने का आदेश दिया था और दोनों राज्यों पर जुर्माना लगाया था।
चंडीगढ़ शहर में स्थित यह झील हिमालय की तलहटी (शिवालिक पहाड़ियों) में स्थित एक जलाशय है।

इसका क्षेत्रफल 3 वर्ग किमी. है। इसे वर्ष 1958 में शिवालिक पहाड़ियों से निकलने वाली एक मौसमी जलधारा सुखना चो (Sukhna Choe) पर बाँध बनाकर निर्मित किया गया था। मौसमी जलधारा सुखना चो (Sukhna Choe) के सीधे झील में प्रवेश करने के कारण इसमें गाद की समस्या बनी रहती है। वर्ष 1974 में सुखना चो को मोड़ दिया गया था जिससे झील में गाद की मात्रा में कमी आई।

सुखना झील का निर्माण ली कोर्बुसीयर (Le Corbusier) एवं मुख्य अभियंता पी. एल. वर्मा द्वारा किया गया था। ली कोर्बुसीयर (Le Corbusier) एक स्विस-फ्राँसीसी वास्तुकार, डिज़ाइनर, चित्रकार, शहरी योजनाकार एवं लेखक थे। इन्हें आधुनिक वास्तुकला के अग्रदूत के रूप में पहचान मिली।

इस झील के दक्षिण में एक गोल्फ कोर्स और पश्चिम में चंडीगढ़ का प्रसिद्ध रॉक गार्डन स्थित है। सुखना झील: प्रवासी पक्षियों के लिये एक अभयारण्य सुखना झील सर्दियों के मौसम में साइबेरियाई बत्तख, स्टोर्क्स (Storks) एवं क्रेन (Cranes) जैसे कई विदेशी प्रवासी पक्षियों के लिये एक अभयारण्य है। भारत सरकार द्वारा झील को संरक्षित राष्ट्रीय आर्द्रभूमि घोषित किया गया है। सुखना झील: एक समारोह स्थल सुखना झील कई उत्सव व समारोहों का भी स्थल है। इनमें सबसे लोकप्रिय मैंगो फेस्टिवल है जो मानसून के आगमन के दौरान आयोजित किया जाता है।

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण की दक्षिणी पीठ ने बंगलूरू की उल्सूर झील (Ulsoor Lake) और आसपास क्षेत्रों से पानी के नमूने इकट्ठा करने एवं उसकी जाँच करने के लिये एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है।
इस समिति में बंगलूरू शहर के डिप्टी कमिश्नर, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय एवं कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, ब्रुहट (Bruhat) बंगलूरू महानगर पालिका के कमिश्नर इत्यादि लोग शामिल होंगे।

इस समिति को उल्सूर झील एवं इसके आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण करने,प्रदूषण के स्रोतों का पता लगाने एवं प्रदूषण के लिये ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही समिति को उपचारात्मक उपायों का सुझाव देने के लिये भी कहा गया है। उल्सूर झील के जल में न केवल बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) एवं केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) की जाँच की जाएगी अपितु आर्सेनिक एवं फॉस्फोरस जैसे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तत्वों की भी जाँच की जाएगी।

उल्सूर झील (Ulsoor Lake)बंगलूरू (कर्नाटक) की बड़ी झीलों में से एक,यह झील बंगलूरू शहर के पूर्वी हिस्से में अवस्थित है। 50 हेक्टेयर (123.6 एकड़) क्षेत्र में फैले इस झील में कई द्वीप भी हैं।

बंगलूरू के हलासुरु क्षेत्र में स्थित होने के कारण इसे हलासुरु झील (Halasuru Lake) भी कहा जाता है। विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) के एक सामंत केंपे गौड़ा (Kempe Gowda) ने इस झील का निर्माण करवाया। भारतीय राज्य कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू शहर की स्थापना केंपे गौड़ा ने वर्ष 1537 में की थी। वर्ष 2016 में इस झील में ऑक्सीजन के स्तर में कमी के कारण हजारों मछलियों के मरने की घटना सामने आई थी।

9-10 जनवरी,2020 को काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में दूसरी आर्द्रभूमि पक्षी गणना संपन्न हुई[सम्पादन]

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 96 प्रजातियों तथा 80 परिवारों से संबंधित पक्षियों की कुल संख्या 19,225 दर्ज की गई। वर्ष 2018 की प्रथम आर्द्रभूमि पक्षी गणना में पक्षियों की संख्या 10,412 दर्ज की गई थी। पक्षी गणना के दौरान उद्यान को चार श्रेणियों में बाँटा गया:

  1. अगोराटोली(Agoratoli):-85 प्रजातियाँ अगोराटोली क्षेत्र में
  2. बागोरी(Bagori),
  3. कोहोरा(Kohora),
  4. बुरपहर(Burapahar)
  • बार-हेडेड हंस की 6181 प्रजाति,कॉमन टी (Common Tea) की 1557 और नोर्दन पिंटेल की 1359 प्रजातियाँ गणना में पाई गई।
  • पक्षियों की अन्य प्रजातियों में बड़ी संख्या में गडवाल (Gadwall), कामन कूट, लेस व्हिस्लिंग डक, इंडियन स्पॉट-बिल्ड डक , टफटेड डक (Tufted Duck), यूरेशियन कबूतर (Eurasian Pigeon), एशियन ओपनबिल (Asian Openbill), नोर्थन लैपविंग (Northern Lapwing) रूडी शेल्ड (Ruddy Shelduck)और स्पॉट-बिल पेडलिकन (Spot-Billed Pelican) शामिल थे।
  • प्रथम आर्द्रभूमि पक्षी गणना-2018
  • वर्ष 1985 में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल होने के बाद वर्ष 2018 में यहाँ पहलीआर्द्रभूमि पक्षी गणना का आयोजन किया गया ।
  • वर्ष 2018 में,की गई गणना में पक्षियों के विचरण वाले क्षेत्रों को ब्लॉकों में विभाजित किया गया था ताकि गणना में कम से कम त्रुटियाँ हों।
  • उद्यान में लगभग 250 से अधिक मौसमी जल निकाय (Water Bodies)हैं, इसके अलावा डिपहोलू नदी (Dipholu River ) इसके मध्य से बहती है।
  • विश्व के दो-तिहाई एक सींग वाले गैंडे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं ।
  • काजीरंगा में संरक्षण प्रयासों का अधिकांश ध्यान 'बड़ी चार' प्रजातियों- राइनो (Rhino), हाथी (Elephant), रॉयल बंगाल टाइगर (Royal Bengal Tiger) और एशियाई जल भैंस (Asiatic Water Buffalo)पर केंद्रित है।
  • उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और कर्नाटक में बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान के बाद भारत में धारीदार बिल्लियों की तीसरी सबसे ज़्यादा जनसंख्या काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है ।
  • वायनाड आर्द्रभूमि पक्षी गणना :-11-12 जनवरी, 2020 को सामाजिक वानिकी वायनाड, ह्यूम सेंटर फॉर इकोलॉजी,वाइल्ड लाइफ बायोलॉजी (Wildlife Biology) और कॉलेज ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज,पूकोड द्वारा संयुक्त रूप से केरल के वायनाड ज़िले में संपन्न हुई। इस गणना का आयोजन,एशियाई वॉटर-बर्ड जनगणना के तहत सिटिजन साइंस वेंचर (Citizen Science Venture- CSV) द्वारा किया गया।
कबीना नदी के तट पर स्थित पमामराना आर्द्रभूमि क्षेत्र,मनंथवादी के पास स्थित अरतुथारा धान के खेत,राज्य की दूसरी सबसे बड़ी मीठे पानी की झील-पूकोड झील,वायनाड वन्यजीव अभयारण्य में स्थित अमावयाल और गोलूर तथा बाणासुर सागर एवं करपुझा जलाशयों के जल क्षेत्र को शामिल किया गया है।
  • एशियाई जलपक्षी गणना (Asian WaterBirds Census-AWC) एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम है जो जल पक्षियों और आर्द्रभूमि की स्थिति की निगरानी पर केंद्रित है।
  • इसका उद्देश्य जल पक्षियों के संरक्षण और आर्द्रभूमि से संबंधित मुद्दों पर जन जागरूकता में वृद्धि करना है।
  • भारत में, AWC को बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) और वेटलैंड्स इंटरनेशनल द्वारा वार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है।
  • यह पक्षी गणना वैश्विक परियोजना ‘द इंटरनेशनल वॉटर बर्ड सेंसस प्रोग्राम’ का एक अभिन्न अंग है।
  • इसका आयोजन हर साल जनवरी में किया जाता है। इसके तहत एशिया और ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों स्वयंसेवक अपने देश की आर्द्रभूमि का भ्रमण कर जलपक्षियों/वाटरबर्ड्स की गणना करते हैं।
  • एशियन वॉटर बर्ड सेंसस को अफ्रीका, एशिया, पश्चिम एशिया, नियोट्रोपिक और कैरेबियन में अंतर्राष्ट्रीय वॉटर बर्ड जनगणना के अन्य क्षेत्रीय कार्यक्रमों के समानांतर आयोजित किया जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में AWC की शुरुआत वर्ष 1987 में की गई थी।

राष्ट्रीय उद्यान[सम्पादन]

  • 6 अगस्त, 2020 को केरल के इडुक्की ज़िले में नायमक्कड़ टी एस्टेट (Nayamakkad Tea Estate) में हुए भूस्खलन में कई लोगों की मौत हो गई। नायमक्कड़ टी एस्टेट, मुन्नार (केरल) से लगभग 30 किमी. दूर स्थित है जो एराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान से सटा हुआ है। यह उद्यान केरल के इडुक्की ज़िले के देवीकुलम तालुका में दक्षिणी पश्चिमी घाटों के हाई रेंज (कन्नन देवन हिल्स- Kannan Devan Hills) में अवस्थित है। यह 97 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है और अपने दक्षिणी क्षेत्र में दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) से संबद्ध है। इस उद्यान का राजामलाईक्षेत्र पर्यटन के लिये प्रसिद्ध है। केरल सरकार ने कन्नन देवन हिल प्रोड्यूस (Resumption of Lands) अधिनियम, 1971 के तहत ‘कन्नन देवन हिल्स प्रोड्यूस कंपनी’ से इस क्षेत्र का अधिग्रहण किया था।

इसे वर्ष 1975 में ‘एराविकुलम राजमाला वन्यजीव अभयारण्य’के रूप में घोषित किया गया था और वर्ष 1978 में एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया था। इस उद्यान में पाए जाने वाले तीन प्रमुख प्रकार के पादप समुदाय हैं-

  1. घास के मैदान या ग्रासलैंड्स (Grasslands)
  2. क्षुप भूमि या चारागाह (Shrub Land)
  3. शोला वन (Shola Forests)

यह उद्यान पश्चिमी घाट में अद्वितीय मोंटेन शोला-ग्रासलैंड वनस्पति (Montane Shola-Grassland vegetation) का प्रतिनिधित्त्व करता है। इस उद्यान में नीलाकुरिंजी (Neelakurinji) नामक विशेष फूल पाए जाते हैं जो प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार खिलते हैं। दुर्लभ स्थलीय एवं एपिफाइटिक (Epiphytic) ऑर्किड, जंगली बालसम आदि वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। एक एपिफाइट (Epiphyte) सूक्ष्म जीव होता है जो पौधे की सतह पर बढ़ता है और हवा, बारिश या इसके आसपास जमा होने वाले मलबे से नमी एवं पोषक तत्वों को प्राप्त करता है। यह उद्यान लुप्तप्राय ‘नीलगिरि तहर’ की सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र है।

  • गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य गुजरात राज्य के जूनागढ़ ज़िले में स्थित हैं। एशियाई शेरों का एकमात्र प्राकृतिक आवास है। इसे वर्ष 1965 में अभयारण्य और वर्ष 1975 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
एशियाई शेर [En-IUCN]का वैज्ञानिक नाम पैंथेरा लियो पर्सिका (Panthera leo Persica) है।

CITES के परिशिष्ट I (Appendix I) में, जबकि भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अनुसूची I में रखा गया है। भारत के अर्द्ध-शुष्क पश्चिमी भाग में गिर वन शुष्क पर्णपाती वन हैं। गिर को अक्सर ‘मल्धारिस’ (Maldharis) के साथ जोड़ा जाता है जो शेरों के साथ सहजीवी संबंध होने से युगों तक जीवित रहे हैं।

मल्धारिस गिर क्षेत्र में रहने वाले धार्मिक ग्रामीण समुदाय हैं। उनकी बस्तियों को ‘नेस्सेस’ (Nesses) कहा जाता है।

गुजरात में अन्य राष्ट्रीय उद्यान काला हिरन राष्ट्रीय उद्यान,वंसदा नेशनल पार्क और समुद्री राष्ट्रीय उद्यान हैं।

  • काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का विस्तार पूर्वोत्तर भारत में असम राज्य के गोलाघाट,कार्बी आंगलोंग और नागाँव ज़िलों में है।

इस राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 250 से अधिक मौसमी जल निकाय (Water Bodies) हैं,इसके अलावा डिपहोलू नदी (Dipholu River ) इसके मध्य से होकर बहती है। मैरी कर्ज़न ने अपने पति लॉर्ड कर्ज़न के साथ इस क्षेत्र को संरक्षित घोषित करने की पहल की थी। वर्ष 1905 में काज़ीरंगा प्रस्तावित रिज़र्व फाॅरेस्ट की स्थापना की गई थी।

वर्ष 1950 में इसे काज़ीरंगा वन्यजीव अभयारण्य के रूप में, 1974 में इसे राष्ट्रीय उद्यान तथा 2006 में टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया। यह विश्व में सर्वाधिक टाइगर घनत्व वाला क्षेत्र है।

इस राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 1985 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया था। इस राष्ट्रीय उद्यान का प्रशासन असम सरकार के वन विभाग के अंतर्गत आता है। विश्व के दो-तिहाई एक सींग वाले गैंडे काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग-37 इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुज़रता है। काज़ीरंगा में जीव-जंतुओं के संरक्षण प्रयासों के तहत चार मुख्य प्रजातियों- राइनो (Rhino), हाथी (Elephant), रॉयल बंगाल टाइगर और एशियाई जल भैंस पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और कर्नाटक के बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान के बाद भारत में धारीदार बिल्लियों की तीसरी सबसे ज़्यादा जनसंख्या काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाती है ।

इस राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की कई प्रजातियाँ पाई जाती हैं, इस स्थान को बर्डलाइफ इंटरनेशनल (BirdLife International) द्वारा एक 'महत्त्वपूर्ण बर्ड एरिया' (Important Bird Area) के रूप में नामित किया गया है।

  • मध्य प्रदेश के माधव राष्ट्रीय उद्यान में भूमि अतिक्रमण के मामले सामने आए हैं।
माधव राष्ट्रीय उद्यान
  1. मध्य प्रदेश में शिवपुरी शहर के पास ऊपरी विंध्यन पहाड़ियों के एक हिस्से के रूप में स्थित,वर्ष 1958 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त।
  2. यह राष्ट्रीय उद्यान मुगल सम्राटों और ग्वालियर के महाराजा का शिकार-स्थल था।
  3. इस उद्यान में पारिस्थितिकी तंत्र के विविध आयाम जैसे-झीलें,जंगल और घास के मैदान शामिल हैं।
  4. इस उद्यान में नीलगाय,चिंकारा और चौसिंगा जैसे एंटीलोप (Antelope)तथा चीतल,सांभर और बार्किंग डीयर जैसे मृग पाए जाते हैं।

इस उद्दान के दावे के अनुसार बाघ गलियारे के निर्माण हेतु ज़मीन अधिग्रहण किये जाने के कारण 20 वर्ष पहले विस्थापित हुए 39 आदिवासी परिवारों को आवंटित करने के लिये भूमि उपलब्ध नहीं है। इस उद्यान के मुख्य वन संरक्षक ने अपने एक पत्र में बताया कि कई लोगों ने मुआवज़ा प्राप्त करने के बाद भी गलियारे की ज़मीन खाली नहीं की और कई अतिक्रमण जारी रखा है जबकि कई विस्थापितों ने इस ज़मीन पर फिर से खेती करना प्रारंभ कर दिया है।

77 परिवारों ने मुआवज़ा लेने से इनकार कर दिया तथा इस ज़मीन पर पुनः कृषि कार्य प्रारंभ कर दिया।

पृष्ठभूमि

  • इस राष्ट्रीय उद्यान के बाघ गलियारे के अंतर्गत 15 गाँव आते हैं जहाँ बाघों को आखिरी बार 1970 के दशक में देखा गया था।
  • इन गाँवों में से 10 गाँवों को वर्ष 2000 में दूसरी जगह विस्थापित कर दिया गया था।
  • जबकि बचे हुए 468 परिवारों में से 391 ने मुआवज़ा स्वीकार कर लिया और कई व्यक्तियों ने अपनी भूमि को छोड़ने से इनकार कर दिया।
पुनर्वास पैकेज के रूप में प्रत्येक परिवार के लिये दो हेक्टेयर भूमि और पुनर्वास का वायदा किया गया था।
  • जब बालापुर नामक गाँव के ग्रामीणों को स्थानांतरित किया जा रहा था,तब अधिकारियों ने 61 परिवारों को गलती से राजस्व भूमि के बदले वन भूमि आवंटित कर दी थी।
  • अतः सरकार ने 39 स्थानांतरित परिवारों के लिये भूमि आवंटन की प्रक्रिया रोक दी, जो अभी भी दो हेक्टेयर भूमि के आवंटन की प्रतीक्षा में हैं।
  • राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से लंबित जमीन की अधिसूचना वापस लेने की मांग की है।
  • जनजातीय संवेदनशीलता:-विस्थापित 39 सहरिया जनजाति के परिवारों के पुरुष, विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूह जो कि पारंपरिक रूप से वन उपज और खेती पर निर्भर हैं,ने अवैध रूप से संचालित पत्थर की खदानों में काम करना प्रारंभ कर दिया,जिसके कारण वे तपेदिक रोग से पीड़ित हो गए तथा कई की मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरुप लगभग 15 महिलाएँ विधवा हो गईं।
इस स्थिति को देखकर मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने सभी ज़िला प्राधिकरणों को उनके परिवारों को मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।
विधवाओं का गाँव:-इस क्षेत्र में उपस्थित बुरी बड़ोद गाँव जिसे विधवाओं के गाँव की संज्ञा दी जाती है,के निवासियों ने लंबित कृषि भूमि के आवंटन की मांग करते हुए यह भी कहा है कि आवंटित भूमि पूरी तरह से बारिश पर निर्भर होने के कारण कृषि योग्य नहीं है।

इन विस्थापितों ने उपजाऊ और खेती योग्य भूमि की मांग करते हुए तर्क दिया है कि ये लोग जंगल में तेंदू पत्ते,महुआ और गोंद से अपनी आजीविका चला लेते थे परंतु अब ये लोग कृषि मज़दूरों के रूप में काम करने के लिये पलायन को बाध्य हैं।

  • तमिलनाडु वन विभाग ने मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान के एक हिस्से में 20 किलोमीटर लंबी फायर लाइन का निर्माण कार्य शुरू किया।

फायर लाइन वनों में लगने वाली आग को रोकने के लिये वन क्षेत्र में उपलब्ध वनस्पतियाँ जिनमें आग लगने की संभावना अधिक होती है,की मात्रा को सीमित करके कृत्रिम रूप से निर्मित दीवार है। इसे फायर ब्रेक(Fire Break) भी कहा जाता है। पिछले वर्ष गर्मियों में मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान के कई इलाकों में आग लग गई थी।

मुकुर्थी राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी घाट में तमिलनाडु के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित 78.46 वर्ग किमी.क्षेत्र में फैला एक संरक्षित क्षेत्र है।पहले नीलगिरि तहर राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता था। इस उद्यान को की-स्टोन प्रजातियों जैसे-नीलगिरि तहर की रक्षा के लिये बनाया गया था। इस उद्यान की मुख्य विशेषताएँ मॉन्टेन (Montane) घास के मैदान और ऊँचाई पर स्थित उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में शोला झाड़ियाँ,ठंडी एवं तेज़ हवाएँ हैं। यह रायल बंगाल टाइगर और एशियाई हाथी सहित संकटग्रस्त वन्यजीवों का निवास है,किंतु यहाँ मुख्य रुप से स्तनपायी नीलगिरी तहर पाई जाती है।

यह नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के साथ-साथ मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य,बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान,नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य एवं साइलेंट वैली का हिस्सा है।

टाइगर रिजर्व[सम्पादन]

  • पश्चिम बंगाल वन विभाग ने बताया कि सुंदरबन क्षेत्र में बाघों की संख्या वर्ष 2018-19 में 88 से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 96 तक पहुँच गई है। सुंदरबन मैंग्रोव वन 2,585 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है और इसमें ‘सुंदरवन टाइगर रिज़र्व’ और दक्षिण 24 परगना डिविज़न शामिल हैं। 24 परगना (दक्षिण) डिविज़न में 23 बाघ जबकि ‘सुंदरबन टाइगर रिज़र्व’ के चार डिविज़नों में 73 बाघों की उपस्थिति को दर्ज किया गया। भारतीय क्षेत्र में स्थित सुंदरबन को वर्ष 1987 में यूनेस्को (UNESCO) का विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
  • जनवरी 2020 में अंतर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व में ‘कार्बन संचय’ (Carbon Storage) संबंधी अध्ययन में पाया गया कि सदाबहार वनों में सर्वाधिक कार्बन संचय होता है। सदाबहार वन लगभग 300 टन प्रति हेक्टेयर कार्बन का भंडारण करते हैं।
सदाबहार वनों की तुलना में सागौन और यूकेलिप्टस के वृक्षों द्वारा कार्बन भंडारण क्रमशः 43% और 55% कम पाया गया। रोपित वृक्षों की तुलना में प्राकृतिक वनों द्वारा वर्ष-दर-वर्ष अधिक कार्बन अवशोषण किया गया।

एन्वायरनमेंटल रिसर्च लैटर्स’ नामक जर्नल में छपे एक लेख के अनुसार,हालिया वृक्षारोपण की तुलना में प्राकृतिक वनों में वर्षों से कार्बन अवशोषण की दर अधिक थी। सदाबहार, पर्णपाती वनों और सागौन और यूकेलिप्टस (Eucalyptus) के वृक्षों के संदर्भ में किये गए अध्ययन में अन्य वृक्षों की तुलना में यूकेलिप्टस के वृक्ष द्वारा कम कार्बन भंडारण पाया गया। सागौन के वृक्षों द्वारा भी पर्णपाती जंगलों के बराबर कार्बन संग्रहीत किया जाता है। वृक्षों के तने की परिधि तथा ऊँचाई को माप कर विभिन्न वनों एवं वृक्षों द्वारा कार्बन भंडारण का अनुमान लगाया गया। अध्ययनकर्त्ताओं ने वर्ष 2000 से 2018 के दौरान कार्बन अवशोषण की दर और उसमें आई भिन्नता का आकलन करने के लिये अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व के साथ परम्बिकुलम टाइगर रिज़र्व, राजीव गांधी टाइगर रिज़र्व, वायनाड वन्यजीव अभयारण्य और भद्रा टाइगर रिज़र्व (Bhadra Tiger Reserve) से संबंधित उपग्रह आधारित आँकड़ों का उपयोग किया।

  • मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व (Mukundara Hills Tiger Reserve) राजस्थान के हड़ौती क्षेत्र में स्थित है। यह राजस्थान के चार ज़िलों- कोटा,बूंदी,चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ में फैला हुआ है।

इसे वर्ष 1955 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था। यहाँ के वन में पेड़ बहुत मोटे और घने हैं। यह टाइगर रिज़र्व चार नदियों रमज़ान, आहू, काली और चंबल से घिरा हुआ है और यह दो समानांतर पहाड़ों मुकुंदरा एवं गगरोला के बीच स्थित है। यह चंबल नदी की सहायक नदियों के अपवाह क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

रणथंभौर और सरिस्का टाइगर रिज़र्व के बाद मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व राजस्थान का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है।
राजस्थान सरकार ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के सहयोग से वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 के तहत वर्ष 2013 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया था।
  • कवाल टाइगर रिज़र्व (Kawal Tiger Reserve) भारत के तेलंगाना राज्य में मनचेरियल ज़िला (पुराना नाम आदिलाबाद ज़िला) के जन्नाराम मंडल में स्थित है।

यह सह्याद्रि पहाड़ियों से लेकर महाराष्ट्र के ताडोबा वन तक 893 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। गोदावरी और कदम नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में है जो अभयारण्य के दक्षिण में बहती हैं।

वर्ष 1965 स्थापित और इसे वर्ष 1999 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत ‘संरक्षित क्षेत्र’ घोषित किया गया था। भारत सरकार ने वर्ष 2012 में कवाल वन्यजीव अभयारण्य को टाइगर रिज़र्व घोषित किया था।

यह अभयारण्य सागौन वनों के लिये प्रसिद्ध है। शुष्क पर्णपाती सागौन वनों के अलावा यहाँ बाँस, टर्मिनलिया (Terminalia), पेरोकार्पस (Pterocarpus), एनोगाइसिस (Anogeisus) और कैसियास (Cassias) के भी वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ पाए जाने वाली स्तनधारी प्रजातियों में बाघ, तेंदुआ, गौर, चीतल, सांभर, नीलगाय, बार्किंग डियर और स्लॉथ बियर आदि शामिल हैं।

मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व, वर्ष 1986 में घोषित भारत के पहले बायोस्फीयर रिज़र्व (नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व) का हिस्सा
  • कायाकल्प शिविर का शुभारंभ तमिलनाडु राज्य के मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व (Mudumalai Tiger Reserve) में बंदी हाथियों के लिये किया गया। यहकर्नाटक,केरल और तमिलनाडु के त्रि-जंक्शन पर स्थित है।

इसका क्षेत्रफल 321 वर्ग किमी. है। इसकी सीमा पश्चिम में वायनाड वन्यजीव अभयारण्य (केरल)उत्तर में बांदीपुर टाइगर रिज़र्व (कर्नाटक) और दक्षिण-पूर्व में नीलगिरि उत्तर प्रभाग और दक्षिण-पश्चिम में गुडालुर (Gudalur) वन प्रभाग से मिलकर टाइगर और एशियाई हाथी जैसी प्रमुख प्रजातियों के लिये एक बड़े संरक्षण परिदृश्य का निर्माण करती है। मोयार (Moyar) नदी मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व से होकर बहती है और मुदुमलाई तथा बांदीपुर अभयारण्य के बीच प्राकृतिक विभाजन रेखा का निर्माण करती है।

तमिलनाडु राज्य सरकार ने अप्रैल 2007 में मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व में बाघों की घटती आबादी के कारण इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम- 1972 के तहत टाइगर रिज़र्व घोषित किया था।मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व में लंबी घास पाई जाती है, जिसे आमतौर पर ‘एलीफेंट ग्रास’ कहा जाता है। यहाँ बाँस, सागौन, रोज़वुड जैसी मूल्यवान वृक्षों की प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं।

जीव-जंतु: इस क्षेत्र में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं में बाघ, हाथी, इंडियन गौर, पैंथर, बार्किंग डियर, मालाबार विशालकाय गिलहरी और हाइना आदि हैं।

  • तेलंगाना के महबूबनगर और नलगोंडा ज़िलों में स्थित अमराबाद टाइगर रिज़र्व (Amrabad Tiger Reserve) में आग लग गई।

अमराबाद टाइगर रिज़र्व के बारे में 2,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित है। यह नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है। अमराबाद टाइगर रिज़र्व पहले नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व का हिस्सा था, लेकिन आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व के उत्तरी भाग को तेलंगाना राज्य में अमराबाद टाइगर रिज़र्व के नाम से सम्मिलित कर दिया गया। दक्षिणी भाग आंध्र प्रदेश के साथ नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व के रुप में अभी भी स्थापित है।

नागार्जुनसागर-श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व और अमराबाद टाइगर रिज़र्व में भारत के सबसे बड़े संरक्षित सूखे वन (Dry Forest) पाए जाते हैं।
  • भारतीय अभिनेता अक्षय कुमार और रजनीकांत ने कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिज़र्व में एक डिस्कवरी चैनल कार्यक्रम 'इन टू द वाइल्ड विद बीयर ग्रिल्स (Into the Wild with Bear Grylls)' को फिल्माया है।

बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान प्रोजेक्ट टाइगर-1973 (Project Tiger-1973) के तहत वर्ष 1974 में इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया था। उत्तर में काबिनी नदी और दक्षिण में मोयार नदी से घिरा हुआ है। नुगु नदी पार्क से होकर बहती है। यह निकटवर्ती नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुदुमलाई राष्ट्रीय उद्यान और वायनाड वन्यजीव अभयारण्य के साथ मिलकर यह नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है जो इसे दक्षिण भारत में सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र और दक्षिण एशिया में जंगली हाथियों का सबसे बड़ा निवास स्थान है। बांदीपुर टाइगर रिज़र्व देश के सबसे धनी जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है जो ‘5 बी पश्चिमी घाट पर्वत जीव विज्ञान क्षेत्र (5 B Western Ghats Mountains Biogeography Zone)’ का प्रतिनिधित्व करता है। पेंच टाइगर रिजर्व (मध्य प्रदेश) के बाद भारत में इस स्थान पर बाघों की सबसे अधिक आबादी पाई जाती है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजमार्ग-766 बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरता है जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में वन्यजीवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रात्रि के समय यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।


  • मेलघाट टाइगर रिज़र्व,महाराष्ट्र राज्य के अमरावती ज़िले में 1677 वर्ग किमी.क्षेत्रफल में फैला है। यह वर्ष 1974 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत घोषित किये गए पहले नौ टाइगर रिज़र्व में से एक है।ताप्ती नदी और सतपुड़ा रेंज की गवलीगढ़ रिज़ से घिरे इस रिजर्व के निकटवर्ती क्षेत्रों में कोरकू जनजाति( मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र )पाई जाती है।

'कोरकू शब्द की उत्पति दो शब्द'[कोरो=‘व्यक्ति’और 'कू' =जीवित]से मिलकर हुई है। कोरकू भाषी इन जनजातियाँ का संबंध मुंडा भाषायी समूह से है और इसकी लिपि देवनागरी है। इसको अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

  • घास और लकड़ी से बनी झोपड़ियों में रहती है। प्रत्येक घर की संरचना में सामने वाला हिस्सा एलिवेटेड स्टेज की तरह होता है,इस एलिवेटेड स्टेज का उपयोग कृषि उपज के भंडारण हेतु किया जाता है।
  • वे स्थानीय रूप से तैयार की गई महुआ के फूलों से बनी शराब का सेवन करते हैं। इनकी अधिकांश आबादी कृषक है।
  • इस जनजाति के पारंपरिक त्योहार हरि एवं जिटोरी हैं जिनमें एक महीने तक पौधा रोपण अभियान चलाया जाता है। इस तरह ये लोग कुपोषण एवं पर्यावरण क्षरण का मुकाबला करते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को भारत में उपयुक्त निवास स्थान पर अफ्रीकी चीतों (African Cheetahs) के पुनर्स्थापन (Reintroduction) की अनुमति दी।

मई 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश में कूनों पालपुर वन्यजीव अभयारण्य में विदेशी चीतों को लाने की योजना पर रोक लगा दी थी। किसी प्रजाति के पुनर्स्थापन का मतलब है कि इसे उस क्षेत्र में रखना जहाँ यह जीवित रहने में सक्षम है। सर्वोच्च न्यायालय ने अफ्रीकी चीतों को बसाने की यह अनुमति राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान दी। एशियाई चीता (Asiatic Cheetah): एशियाई चीता को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की लाल सूची में ‘अति संकटग्रस्त’ (Critically Endangered) श्रेणी में रखा गया है और माना जाता है कि यह केवल ईरान में ही पाया जाता है। यह अफ्रीकी चीता की तुलना में छोटा और मटमैला होता है इसका सिर छोटा और गर्दन लंबी होती है। भारत सरकार ने वर्ष 1951-52 में आधिकारिक रुप से एशियाई चीता को भारत से विलुप्त घोषित कर दिया। अफ्रीकी चीता (African Cheetah): इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) की लाल सूची में ‘सुभेद्य’ (Vulnerable) श्रेणी में रखा गया है। इसका आकार एशियाई चीता की तुलना में बड़ा होता है। वर्तमान में लगभग 6,500-7,000 अफ्रीकी चीते मौजूद हैं। भारत सरकार ने अफ्रीकी प्रजाति के चीतों को भारत में लाने के लिये प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) परियोजना की शुरुआत की है। प्रोजेक्ट चीता के तहत मध्य प्रदेश के कूनों पालपुर वन्यजीव अभयारण्य और नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के अलावा राजस्थान के जैसलमेर ज़िले में शाहगढ़ का चयन किया गया है। इन अभयारण्यों में नामीबिया से अफ्रीकी प्रजाति के चीते लाए जाएंगे।

  • ताडोबा-अंधारी टाइगर रिज़र्व महाराष्ट्र राज्य के चंद्रपुर ज़िले में स्थित है। इसे वर्ष 1955 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था, जिसका क्षेत्रफल 116.54 वर्ग किमी. है और अंधारी वन्यजीव अभयारण्य को वर्ष 1986 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।

इन दोनों अभयारण्य को संयुक्त रूप से वर्ष 1995 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिज़र्व का दर्जा दिया गया। इस टाइगर रिज़र्व का क्षेत्रफल लगभग 625.40 वर्ग किमी. है। यह महाराष्ट्र का सबसे पुराना और सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है। यहाँ उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इनमें मुख्य रुप से सागौन,ऐन,बीजा,धौड़ा,हल्दू,सलाई,सेमल और तेंदू आदि शामिल हैं। यहाँ उगने वाली एनोगेयसुस लैटीफोलिया (Anogeissus latifolia) अग्नि प्रतिरोधी पौधे की प्रजाति है। यहाँ पलाश (इसका वैज्ञानिक नाम ब्यूटा मोनोसपर्मा (Butea Monosperma) है) के वृक्ष भी पाए जाते हैं। इसे ‘जंगल की आग’ भी कहते हैं।

पक्षी अभयारण्य[सम्पादन]

  • नलबाना पक्षी अभयारण्य(Nalabana Bird Sanctuary) या नलबाना द्वीप पर इस वर्ष प्रवासी पक्षियों की 102 प्रजातियों के लगभग 406,368 पक्षी पहुँचे हैं(प्रवासी पक्षियों की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार)। ओडिशा की चिल्का झील के बीच में स्थित है। ओड़िया भाषा में नलबाना का अर्थ ‘घास से ढका द्वीप’ होता है।

मानसून ऋतु में झील में जल की अधिकता के कारण यह द्वीप डूब जाता है। यह पक्षी अभयारण्य 15.53 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है। नलबाना पक्षी अभयारण्य शीत ऋतु में आर्कटिक और उप-आर्कटिक क्षेत्रों से आए प्रवासी पक्षियों के रुकने का एक उपयुक्त स्थान है। इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत वर्ष 1987 में पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था। यहाँ देखे जाने वाले कुछ महत्त्वपूर्ण प्रवासी पक्षी हैं:-बार-हेडेड गीज़ (Bar-headed geese),ग्रेटर फ्लेमिंगोस (Greater Flamingos),बगुले (Herons), ब्लैक टेल्ड गाॅडविट्स (Black-tailed Godwits) और ग्रेट नॉट (Great Knot)। ग्रेट नॉट पक्षी को पांच साल बाद देखा गया।

ग्रेट नॉट (Great Knot)[(Endangered-IUCN)] एक अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी पक्षी है जो प्रजनन के लिये उत्तरी गोलार्द्ध से और दक्षिणी गोलार्द्ध के मध्य लंबी दूरी तय करता है।

यह सुदूर पूर्वोत्तर रूस, तटीय ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और पूर्वी अरब प्रायद्वीप में दिखाई देता है।

वन्यजीव अभयारण्य[सम्पादन]

  • नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (National Board for Wild Life- NBWL) ने असम में देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य [E.R] के एक हिस्से सालेकी (Saleki) में कोयला खनन की सिफारिश की।

NBWL ने जुलाई 2019 में खनन क्षेत्र का आकलन करने के लिये एक समिति बनाई थी। NBWL भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अंतर्गत कार्य करता है। सालेकी में कोयला खनन कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited) की एक इकाई नार्थ-ईस्टर कोल फील्ड (North-Easter Coal Field- NECF) द्वारा किया जायेगा। सालेकी, देहिंग पटकाई एलीफेंट रिज़र्व का एक हिस्सा है जिसमें देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य के 111.19 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले वर्षा वन और शिवसागर, डिब्रूगढ़ एवं तिनसुकिया ज़िलों में कई आरक्षित वन शामिल हैं। देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य(Dehing Patkai Wildlife Sanctuary) असम के डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया ज़िलों में स्थित है और 111.19 वर्ग किमी (42.93 वर्ग मील) वर्षा वन क्षेत्र को कवर करता है। यह असम घाटी के उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वन का एक हिस्सा है और इसमें तीन भाग- जेयपोर (Jeypore), ऊपरी देहिंग नदी (Upper Dehing River) और डिरोक वर्षावन (Dirok Rainforest) शामिल हैं। इसे जून, 2004 को एक अभयारण्य घोषित किया गया था। यह अभयारण्य देहिंग पटकाई एलीफेंट रिज़र्व का भी हिस्सा है। असम में वर्षा वन डिब्रूगढ़, तिनसुकिया और शिवसागर ज़िलों में 575 वर्ग किमी (222 वर्ग मील) से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं। इन वनों के एक हिस्से को असम सरकार द्वारा वन्यजीव अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया था जबकि एक अन्य हिस्सा डिब्रू डोमाली एलीफेंट रिज़र्व (Dibru Deomali Elephant Reserve) के अंतर्गत आता है। इन वर्षा वनों का विस्तार अरुणाचल प्रदेश के तिरप एवं चांगलांग ज़िलों में भी है। विस्तृत क्षेत्र और घने जंगलों के कारण इन वनों को अक्सर ‘पूर्व का अमेज़न’ कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि देहिंग पटकाई भारत में उष्णकटिबंधीय तराई वर्षा वनों का सबसे बड़ा क्षेत्र है।

  • केरल वन विभाग, COVID-19 के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान व्यावसायिक प्रतिष्ठानों एवं विभिन्न समूहों को वनोत्पाद बेचने के लिये अगस्त्यावनम बायोलॉजिकल पार्क एवं इसके आसपास के क्षेत्रों से आदिवासियों द्वारा एकत्र वनोत्पादों की खरीद कर रहा है। वर्ष 1997 में स्थापित तिरुवनंतपुरम (त्रिवेंद्रम) के पास स्थित यह पार्क केरल में एक वन्यजीव अभ्यारण्य है। यह नेय्यर वन्यजीव अभ्यारण्य और पेप्पारा वन्यजीव अभ्यारण्य से जुड़ा हुआ है।

इस पार्क का नाम अगस्त्यामलाई अगस्त्याकूडम (Agasthyamalai Agasthyakoodam) पर्वत शिखर के नाम पर रखा गया है जो पार्क से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

अगस्त्यमाला बायोस्फीयर रिज़र्व(Agasthyamala Biosphere Reserve):

अगस्त्यमाला बायोस्फीयर रिज़र्व भारत के पश्चिमी घाट के सबसे दक्षिणी छोर में स्थित है और इसमें समुद्र तल से 1,868 मीटर ऊँची चोटियाँ शामिल हैं। यह 3,500 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में फैला हुआ है और इसके अंतर्गत तमिलनाडु के तिरुनेलवेली एवं कन्याकुमारी ज़िले तथा केरल के तिरुवनंतपुरम एवं कोल्लम ज़िले आते हैं जो एक उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी वन तंत्र का निर्माण करते हैं। अगस्त्यावनम बायोलॉजिकल पार्क 23 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला हुआ है जिसमें 17.5 वर्ग किमी. के क्षेत्र में घने जंगल विकसित करने हेतु प्राकृतिक पुनुरुत्थान के लिये आरक्षित किया गया है। तथा पार्क के शेष क्षेत्र को व्यवस्थित संरक्षण कार्यक्रमों के लिये छोड़ दिया गया है। अगस्त्यावनम बायोलॉजिकल पार्क स्थानिक औषधीय पौधे एवं समृद्ध जैव विविधता के लिये प्रसिद्ध है। केरल राज्य की दूसरी सबसे ऊँची चोटी अगस्त्याकूडम (Agasthyakoodam) है वहीं पश्चिमी घाट और दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी अनई मुड़ी (Anai Mudi) है जिसकी ऊँचाई 2,695 मीटर है।

  • 13 अप्रैल, 2020 को केरल के वायनाड वन्यजीव अभयारण्य में एक नर बाघ मृत पाया गया। लगभग 344 वर्ग किमी.क्षेत्रफलवाले इस अभ्यारण्य में चार वन रेंज सुल्तान बथेरी (Sulthan Bathery),मुथांगा (Muthanga), कुरिचिअट (Kurichiat) और थोलपेट्टी (Tholpetty) शामिल हैं। इसकी स्थापना वर्ष 1973 में की गई थी।

वायनाड वन्यजीव अभयारण्य की भौगोलिक अवस्थिति इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह कर्नाटक के उत्तर-पूर्वी भाग में बांदीपुर टाइगर रिज़र्व और नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु के मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व को पारिस्थितिक और भौगोलिक निरंतरता (Ecological And Geographic Continuity) प्रदान करता है। वायनाड वन्यजीव अभयारण्य मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्ती राष्ट्रीय उद्यान और शांत घाटी के साथ नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।

इस अभयारण्य में विश्व की एशियाई हाथियों (Asiatic Elephant) की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है। यह केरल का दूसरा सबसे बड़ा वन्यजीव अभयारण्य है।

यह अभयारण्य दक्कन के पठार का हिस्सा है और यहाँ की वनस्पति में मुख्य रूप से पर्णपाती वन तथा अर्द्ध-सदाबहार वृक्षों के चरागाह हैं। केरल के वायनाड ज़िले में काबिनी और उसकी तीन सहायक नदियाँ (पनामारम, मनंथावादि और कालिंदी) प्रवाहित होती हैं। केरल के पूर्वी भाग में प्रवाहित होने वाली काबिनी कावेरी नदी की महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है।

  • मलई महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य (या माले महादेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य) को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण टाइगर रिज़र्व घोषित कर सकता है। भारत के कर्नाटक राज्य में पूर्वी घाट का एक संरक्षित वन्यजीव अभयारण्य है।

प्रसिद्ध मलई महादेश्वरा हिल्स मंदिर के प्रमुख देवता ‘भगवान माले महादेश्वर’ के नाम पर इसका नामकरण किया गया।इस अभयारण्य को वर्ष 2013 में स्थापित किया गया था। इस अभयारण्य के उत्तर-पूर्व में कावेरी वन्यजीव अभयारण्य (कर्नाटक), दक्षिण में सत्यमंगलम टाइगर रिज़र्व (तमिलनाडु) और पश्चिम में बिलिगिरिरंगास्वामी मंदिर टाइगर रिज़र्व (कर्नाटक) स्थित है। यह अभयारण्य बाघों का निवास स्थान है जो कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु राज्यों के त्रि-जंक्शन के बहुत करीब स्थित है।

  • 09 अप्रैल,2020 को आंध्रप्रदेश के गंगावरम मंडल में स्थित कौंडिन्य वन्यजीव अभयारण्य में एक जंगली हाथी को बचाया गया। यह एक हाथी अभयारण्य भी है। यह एशियाई हाथियों की आबादी वाला आंध्र प्रदेश का एकमात्र अभयारण्य है। हाथियों को पुनर्स्थापित करने के लिये इस अभयारण्य को वर्ष 1990 में स्थापित किया गया था जो प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण 200 वर्ष पहले इस स्थान से पलायन कर गए थे।

इस अभयारण्य में पलार नदी की दो सहायक नदियाँ कैंडिन्या (Kaindinya) और कैगल (Kaigal) बहती हैं। पलार नदी (Palar River) का उद्गम कर्नाटक राज्य के चिक्काबल्लापुरा (Chikkaballapura) ज़िले में नंदी पहाड़ियों से होता है। बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले यह नदी दक्षिण भारत के तीन राज्यों कर्नाटक,आंध्रप्रदेश,तमिलनाडु से होकर प्रवाहित होती है। कल्याण रेवु जलप्रपात (जिसे कल्याण ड्राइव जलप्रपात भी कहा जाता है) और कैगल जलप्रपात भी यहाँ स्थित हैं। इस अभयारण्य में कटीली झाड़ियों के साथ उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Dry Deciduous Forests) पाये जाते हैं। इन वनों में कुछ महत्त्वपूर्ण वनस्पतियों के अंतर्गत अल्बिजिया अमारा (Albizia Amara), अकेसिया (Acacia), लगेरस्ट्रोमिया (Lagerstroemia), फिकस (Ficus), बाँस एवं संतालुम एल्बम (Santalum album) आते हैं। यहाँ पाए जाने वाले कुछ जीव-जंतुओं में एशियाई हाथी, यलो थ्रोटेड बुलबुल (Yellow-throated Bulbul), स्लोथ बियर, पैंथर, चीतल, सांभर, जंगली बिल्ली, सियार, लोरिस आदि पाए जाते हैं।

  • रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले (अरावली और विंध्य पर्वत शृंखलाओं के जंक्शन पर) में स्थित है।

अरावली पहाड़ियों और विंध्य पठार के आसपास के क्षेत्र में स्थित, रणथम्भौर वन 1334 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला है, जिसमें 392 वर्ग किमी. क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में घोषित किया गया है। रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण में चंबल नदी और उत्तर में बनास नदी से घिरा हुआ है।

चंबल नदी का उद्गम विंध्याचल शृंखला के जानापाओ पहाड़ियों से होता है।

यह मालवा पठार से होकर बहती है और उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले में यमुना में मिलती है। चंबल नदी पर निर्मित बांध: इस नदी पर गांधी सागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध, कोटा बैराज बनाए गए हैं बनास नदी: बनास, चंबल की एक सहायक नदी है। इसका उद्गम अरावली पर्वत शृंखला के दक्षिणी भाग से होता है। यह सवाई माधोपुर के पास राजस्थान-मध्य प्रदेश की सीमा पर चंबल से मिलती है। वनस्पति: रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान की वनस्पतियाँ उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती एवं कंटीली होती हैं। यहाँ ढाक (इसके अन्य नाम पलाश, छूल, परसा, टेसू, किंशुक, केसू हैं।) नामक वृक्ष पाया जाता है, जो सूखे की लंबी अवधि के अनुकूल होता है। इसका वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा (Butea Monosperma) है। इस वृक्ष में ग्रीष्मकाल में लाल फूल आते हैं इन आकर्षक फूलों के कारण इसे ‘जंगल की आग’ भी कहा जाता है। ऐतिहासिक घटनाक्रम: इस उद्यान को वर्ष 1955 में ‘वन्यजीव अभयारण्य’ घोषित किया गया और वर्ष 1973 में इसे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत बाघ संरक्षण का दर्जा दिया गया तथा वर्ष 1980 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला। इसमें अभयारण्य शामिल हैं? रणथम्भौर के निकटवर्ती जंगलों को वर्ष 1984 में सवाई मानसिंह अभयारण्य (Sawai Mansingh Sanctuary) और केलादेवी अभयारण्य (Keladevi Sanctuary) घोषित किया गया था। वर्ष 1991 में रणथम्भौर टाइगर रिज़र्व का विस्तार सवाई मानसिंह और केलादेवी अभयारण्यों तक किया गया। इस उद्यान में तीन बड़ी झीलें- पदम तालाब (Padam Talab), मलिक तालाब (Malik Talab) और राज बाग तालाब (Raj Bagh Talab) हैं।

  • गोवा के कार्यकर्त्ताओं और राजनेताओं ने राज्य के महादेई (Mahadei),नेत्रावली (Netravali) और कोटिगाओ (Cotigao) वन्यजीव अभयारण्यों के लगभग 500 वर्ग किमी. क्षेत्र तथा भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य (Bhagwan Mahavir Wildlife Sanctuary) के कुछ हिस्से को 'टाइगर रिजर्व’ (Tiger Reserve) के रूप में अधिसूचित करने की मांग की है।

पिछले कुछ दिनों में उत्तरी गोवा ज़िले के सत्तारी तालुका के महादेई वन्यजीव अभयारण्य में चार बाघों की मौत हो गई। गोवा सरकार ने वर्ष 2017 में तटीय रिज़र्व के कुछ क्षेत्रों को बाघ आरक्षित के रूप में अधिसूचित करने के लिये केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था।

गोवा में छ:वन्यजीव अभयारण्य तथा 1 राष्ट्रीय उद्यान है।
  • नेत्रावली वन्यजीव अभयारण्य पूर्वी गोवा के सुंगुम तालुका में काली नदी के बेसिन में स्थित है। इसके उत्तर में भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य और दक्षिण में कोटिगाओ वन्यजीव अभयारण्य स्थित है। पहलीबार यहाँ काला तेंदुआ(Black Panther)देखा गया। तेंदुआ बिग कैट प्रजाति में सबसे छोटा होता है।
Melanism तेंदुआ में पाई जानेवाली सामान्य घटना है। इसमें धब्बों सहित जानवर की पुरी त्वचा काली हो जाती है।

melanistic Leopard को हीं काला तेेंदुआ कहा जाता है जो कि भारतीय तेंदुए का हीं एक प्रकार है। अब तक तेंदुए कि नौ प्रजातियों का पता लगा है जो एशिया और अफ्रीका में फैले हैं। इस वन्यजीव अभयारण्य के प्रमुख आकर्षण में ब्लैक पैंथर (Black Panther), विशालकाय गिलहरी (Giant Squirrel),स्लेंडर लोरिस (Slender Loris),ग्रेट पाइड हॉर्नबिल्स (Great Pied Hornbills) आदि शामिल हैं।

कोटिगाओ वन्यजीव अभयारण्य दक्षिणी गोवा के कैनाकोना तालुका (Canacona Taluka) में स्थित है। वर्ष 1968 मेंस्थापित इस वन्यजीव अभयारण्य के प्रमुख आकर्षण में उड़ने वाली गिलहरी, स्लेंडर लोरिस (Slender Loris), इंडियन पैंगोलिन (Indian Pangolin), चार सींग वाला मृग (Four-horned Antelope), मालाबार पिट वाइपर (Malabar Pit Viper) आदि शामिल हैं।
भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य [ राष्ट्रीय उद्यान ] पश्चिमी घाट में जैव विविधता की रक्षा के लिये बनाया गया था। इसे मूल रूप से मोलेम गेम अभयारण्य (Mollem Game Sanctuary) के रूप में जाना जाता है किंतु वर्ष 1969 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किये जाने के बाद इसे भगवान महावीर वन्यजीव अभयारण्य नाम दिया गया।

इस अभयारण्य के मुख्य क्षेत्र की लगभग 107 वर्ग किमी. भूमि को वर्ष 1978 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था और इसे मोलेम नेशनल पार्क (Mollem National Park) के रूप में जाना जाता है। यहाँ का मुख्य आकर्षण दूधसागर जलप्रपात मांडवी नदी पर स्थित है।

  • महादेई वन्यजीव अभयारण्य गोवा राज्य के उत्तरी गोवा ज़िले में स्थित है। यह अभयारण्य 208 वर्ग किमी. के विशाल क्षेत्र फैला हुआ है।

इसे अंतर्राष्ट्रीय पक्षी क्षेत्र (International Bird Area) घोषित किया गया है। यहाँ पक्षी प्रजातियों में नीलगिरी वुड-कबूतर (Nilgiri wood-Pigeon), मालाबार पाराकीट (Malabar Parakeet), मालाबार ग्रे हार्नबिल (Malabar Grey Hornbill), ग्रे हेडेड बुलबुल (Grey-Headed Bulbul), रूफस बबलर (Rufous Babbler) आदि पाई जाती हैं। इस अभयारण्य की आधिकारिक घोषणा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम-1972 के तहत वर्ष 1999 में की गई थी। यहाँ बंगाल टाइगर की उपस्थिति के कारण इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत ‘टाइगर रिज़र्व’ बनाने का प्रस्ताव है। महादेई नदी (Mhadei River) जिसे मांडवी नदी के रूप में जाना जाता है, गोवा राज्य की जीवन रेखा है। इसका उद्गम कर्नाटक में होता है और महादेई वन्यजीव अभयारण्य से होती हुई गोवा की राजधानी पणजी के पास अरब सागर से मिलती है।

गोवा के अन्य अभ्यारण्य:-डॉ.सलीम अली पक्षी अभ्यारण्य तथा बोंदला वन्यजीव अभ्यारण्य
  • सोमेश्वरा वन्यजीव अभयारण्य कर्नाटक के उडुपी ज़िले मेंस्थित है। वर्ष 1974 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित इस अभयारण्य के दो अलग-अलग भाग हैं और छोटा भाग,मुख्य भाग के दक्षिण-पश्चिम में

कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान इस अभयारण्य के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।

कुद्रेमुख राष्ट्रीय उद्यान
इसे वर्ष 1987 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया,इसका क्षेत्रफल 600 वर्ग किलोमीटर है।

मोंटेन घास के मैदान और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की प्रचुरता से परिपूर्ण यह राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी घाट के भीतर सबसे बड़ा संरक्षित ब्लॉक है।

कुद्रेमुख,कर्नाटक के चिक्कमगलुरु में स्थित एक पर्वत श्रृंखला और एक चोटी का नाम है। कुद्रेमुख कर्नाटक में मुल्लायनगिरि और बाबा बुदानगिरि के बाद तीसरी सबसे ऊँची चोटी है।

उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया द्वारा गंगा डॉल्फिन[En-IUCN,CITES के परिशिष्ट 1 में] की वार्षिक जनगणना शुरू की गई[सम्पादन]

इस गणना को ऊपरी गंगा के लगभग 250 किलोमीटर तक के क्षेत्र यानी हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य और नारायण रामसर साइट के बीच बिजनौर से शुरू किया गया। डॉल्फिन की गणना के लिये प्रत्येक वर्ष जहाँ प्रत्यक्ष गणना पद्धति (Direct Counting Method) का उपयोग किया जाता था, वहीं इस वर्ष अग्रानुक्रम नाव सर्वेक्षण (Tandem Boat Survey) पद्धति का उपयोग किया जा रहा है। इस पद्धति से लुप्तप्राय प्रजातियों की अधिक सटीक गणना हो सकेगी।

गंगा डॉल्फिन गंगा-ब्रह्मपुत्र-सिंधु-मेघना नदी अपवाह तंत्र जिसमे भारत, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं में पाई जाती है।

भारत में ये असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल राज्यों में पाई जाती है। गंगा, चम्बल, घाघरा, गण्डक, सोन, कोसी, ब्रह्मपुत्र इनकी पसंदीदा अधिवास नदियाँ हैं। अलग-अलग स्थानों पर सामान्यतः इसे गंगा नदी डॉल्फ़िन, ब्लाइंड डॉल्फ़िन, गंगा ससु, हिहु, साइड-स्विमिंग डॉल्फिन, दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फिन, आदि नामों से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम प्लैटनिस्टा गैंगेटिका (Platanista gangetica) है। भारत सरकार ने इसे भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया है।

गुवाहाटी शहरी प्रशासन द्वारा इसे शहर पशु घोषित किया गया है। बिहार के भागलपुर ज़िले में स्थित विक्रमशिला गंगेटिक डॉल्फिन अभयारण्य को लुप्तप्राय गंगेटिक डॉल्फ़िन के लिये संरक्षित क्षेत्र के रूप में नामित किया गया था।

वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड (World WildLife Fund) द्वारा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में डॉल्फिन संरक्षण एवं उनके आवास में उन्हे फिर से प्रतिस्थापित करने का कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड फॉर नेचर एक अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1961 में स्विट्ज़रलैंड में एक धर्मार्थ ट्रस्ट के रूप में हुई थी। यह विश्व का सबसे बड़ा स्वतंत्र संगठन है जो पर्यावरण के संरक्षण शोध एवं पुनर्स्थापना के लिये कार्य करता है। भारत में भी वर्ल्ड वाइल्डलाईफ फंड इंडिया (World WildLife Fund india) कार्यरत है।