समसामयिकी 2020/विज्ञान और प्रौद्दोगिकी
चीन के शोधकर्त्ताओं द्वारा COVID-19 से प्रभावित रोगियों के उपचार के लिये एक विशेष प्लाज़्मा तैयार किया गया[सम्पादन]
COVID-19 से पीड़ित रोगियों के उपचार के लिये किसी भी निवारक वैक्सीन या विशिष्ट एंटीवायरल की अनुपस्थिति में नोबल कोरोनावायरस SARS-CoV-2 से संक्रमित रोगियों के उपचार के लिये यह प्लाज़्मा उन लोगों से लिया गया है जो कोरोना वायरस से ग्रस्त थे और अब स्वस्थ हो चुके हैं। COVID-19 से बचाव के लिये प्लाज़्मा:
- चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग द्वारा इस प्लाज़्मा को एक चिकित्सीय विधि (Therapeutic Method) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर में कोरोनावायरस के लिये बहुत से एंटीबॉडी उत्पन्न हो जाते हैं।
- इस पद्धति में स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर से इस प्लाज़्मा को प्राप्त किया जाता है तथा रोगी के शरीर में इन्हें प्रविष्ट कराकर उसका उपचार किया जाता है।
- गंभीर रूप से बीमार रोगियों के उपचार के लिये इन एंटीबॉडी का उपयोग करने से उनके बचने की उम्मीद जगी है।
उपचार:
- चीन की एक दवा कंपनी ने चिकित्सीय उत्पादों जैसे-प्लाज़्मा और प्रतिरक्षा ग्लोब्युलिन (Globulin) को तैयार करने के लिये कुछ स्वस्थ हो चुके COVID-19 के रोगियों के शरीर से प्लाज़्मा एकत्र किया।
- 20 जनवरी 2020 से वुहान में COVID-19 के रोगियों के शरीर से लिये गए प्लाज़्मा से एक दर्जन से अधिक रोगियों का उपचार किया जा रहा है।
- जिन रोगियों का उपचार प्लाज़्मा थेरेपी द्वारा किया गया, उनमें थेरेपी दिये जाने के 12-24 घंटे बाद नैदानिक लक्षणों में सुधार दिखाई दिया।
- उपचार के बाद ही रक्त में ऑक्सीजन के संचार में सुधार हुआ और बीमारी बढ़ाने वाले वायरस की संख्या में कमी पाई गई।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे प्रयोग:
- वर्ष 2014 में जब इबोला वायरस से गिनी,सिएरा लियोन और लाइबेरिया प्रभावित हुए थे तब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वायरस से उबरने वाले रोगियों से प्राप्त होने वाले प्लाज़्मा से उपचार किये जाने प्राथमिकता दी थी।
- प्रारंभिक परीक्षण:
- वर्ष 2015 में फरवरी के मध्य और अगस्त की शुरुआत में गिनी में इबोला के रोगियों में किये गए एक परीक्षण में वायरस से उबरने वाले रोगियों से प्राप्त प्लाज़्मा से उपचारित 84 रोगियों में बहुत कम लाभ देखने को मिला।
- इस प्लाज़्मा से रोगी का उपचार किया जाना एक पुरानी विधि है,इसका उपयोग खसरा,चेचक और रेबीज़ के खिलाफ किया जा चुका है।
- रेबीज़ के मामले में इस पद्धति को कुत्ते के काटने के बाद और रोग विकसित होने से पहले निष्क्रिय टीकाकरण के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- अन्य तथ्य:
- एंटीबॉडी युक्त प्लाज़्मा द्वारा उपचार करने का सबसे अच्छा समय बीमारी विकसित होने से पहले का होता है। यही कारण है कि स्वस्थ हो चुके रोगियों के प्लाज़्मा का उपयोग करने वाली यह पद्धति अन्य वायरल रोगों के लिये लोकप्रिय नहीं है
- COVID-19 के मामले में जब तक निमोनिया का पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन(NASA)ने घोषणा की है कि उसने नए संभावित मिशनों की अवधारणा संबंधी अध्ययन के लिये चार अनुसंधान कार्यक्रमों का चयन किया है।[सम्पादन]
- NASA ने चार आगामी मिशनों का प्रस्ताव रखा है जिनमें से दो मिशनों को शुक्र ग्रह और एक-एक मिशन का प्रस्ताव बृहस्पति के उपग्रह आयो(Io)और वरुण के उपग्रह ट्राइटन (Triton) के परीक्षण के लिये रखा है।
- NASA के प्रस्तावित अंतरिक्ष अनुसंधान मिशन:-
- डेविंसी प्लस (DAVINCI+):-NASA द्वारा प्रस्तावित इस मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह पर उपस्थित नोबल गैसों,इसके रासायनिक संगठन,इमेजिंग प्लस(दृश्यों के माध्यम से शुक्र की आतंरिक सतह का परीक्षण) तथा वायुमंडलीय सर्वेक्षण करना है।
- इस मिशन के माध्यम से शुक्र के वायुमंडल तथा इसके गठन और विकास का विश्लेषण किया जाएगा तथा इस ग्रह पर पूर्व में महासागर की उपस्थिति की जाँच की जाएगी।
- यह मिशन स्थलीय ग्रहों के गठन की समझ को विकसित करने में सहायता करेगा।
- आयो वॉल्केनो ऑब्ज़र्वर (Io Volcano Observer-IVO):-उद्देश्य बृहस्पति के उपग्रह आयो का परीक्षण करना,जिस पर कई सक्रिय ज्वालामुखी उपस्थित हैं।
- इस मिशन के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश भी की जाएगी कि ज्वारीय बल ग्रहों की आकृति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
- इस मिशन द्वारा प्राप्त निष्कर्षों से सौरमंडल में चट्टानों,स्थलीय निकायों और बर्फीले महासागरों के गठन और विकास के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त की जा सकेगी।
- ट्राईडेंट (TRIDENT):-वरुण ग्रह के बर्फीले उपग्रह ट्राइटन (Triton)के अवलोकन ताकि वैज्ञानिक सौरमंडल में रहने योग्य ग्रहों के विकास को समझ सकें।
- वेरिटस (VERITAS):-इस मिशन का विस्तृत नाम ‘वीनस एमिसिविटी,रेडियो साइंस,इनसार,टोपोग्राफी एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी’(Venus Emissivity, Radio Science, InSAR,Topography, and Spectroscopy) है।
- इस मिशन का उद्देश्य शुक्र ग्रह की सतह का अध्ययन करके यह पता लगाना है कि शुक्र ग्रह की विशेषताएँ पृथ्वी से अलग क्यों हैं।
- इन मिशनों का अंतिम चयन वर्ष 2021 में किया जाएगा।
संभावित लाभ:
- इन अभियानों से सौरमंडल के कुछ सबसे सक्रिय और जटिल तथ्यों के बारे में मानव समझ को बढ़ाने में सहायता मिलेगी।
- नासा ने चार मिशनों में से प्रत्येक मिशन के लिये $ 3 मिलियन का प्रावधान किया है जो सौरमंडल के अनुसंधान संबंधी मानवीय स्वप्नों को वास्तविकता प्रदान करेंगे।
भारत की स्थिति:-भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अनुसंधान की शुरुआत से लेकर अब तक के छोटे से काल और सीमित संसाधनों में कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। वर्तमान भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो कम लागत में जटिल कार्यक्रमों को सफल बनाने के लिये विश्व भर में प्रसिद्ध है। भारत की यह विरासत भविष्य में अंतरिक्ष के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत को योग्य बनाती है। ऐसे में भारत अपने सीमित संसाधनों का कुशल उपयोग और सही तकनीकों का निर्माण करके आने वाली चुनौतियों से निपट सकता है तथा NASA की तरह अन्य ग्रहों संबंधी मिशनों को भी संचालित कर सकता है।
भारत का लिथियम-आयन बैटरी आयात बिल वर्ष 2016-2018 के दौरान बढ़कर चार गुना हो गया जबकि संबंधित उत्पादों का आयात बिल लगभग तीन गुना से अधिक हो गया[सम्पादन]
मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2016 में 175 मिलियन,2017 में 313 मिलियन,2018 में 712 मिलियन और 1 जनवरी 2019 से 30 नवंबर 2019 तक 450 मिलियन बैटरियों का आयात किया गया। इन आयातों की लागत वर्ष 2016 की 383 मिलियन डाॅलर ( 2,600 करोड़ रूपए लगभग ) से बढ़कर वर्ष 2017 में 727.24 मिलियन डाॅलर (5,000 करोड़ रूपये लगभग),2018 में 1254.94 मिलियन डाॅलर (8,700 करोड़ रूपये लगभग)और 2019 में बढ़कर 929 मिलियन डाॅलर (6,500 करोड़ रूपये लगभग)हो गयी। भारतीय विनिर्माता दुनिया के सबसे बड़े आयातकों में से एक हैं और वे मुख्यतया चीन,जापान और दक्षिण कोरिया से आयात करते है।
'लीथियम त्रिकोण' |
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भारत में लिथियम-आयन बैटरी विनिर्माण
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ऐसी बैटरियों का विनिर्माण करता है लेकिन इसकी मात्रा सीमित हैं और वे अंतरिक्ष अनुप्रयोग के लिये प्रतिबंधित हैं।
- जून 2018 मे केंद्रीय विद्युत रासायनिक अनुसंधान संस्थान जो वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ है तथा RAASI सोलर पावर प्राइवेट लिमिटेड ने भारत की पहली लिथियम-आयन (Li-ion) बैटरी परियोजना के लिये प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये एक समझौता ज्ञापन (Memorandum of Agreement-MoA) पर हस्ताक्षर किये।
- ऐसी बैटरियों के स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक कार्यक्रम को मंज़ूरी दी,जिसे ‘परिवर्तनकारी गतिशीलता एवं बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन’कहा जाता है।
- इसका उद्देश्य स्वच्छता,साझेदारी को बढ़ावा देनी वाली और सतत् और समग्र गतिशीलता संबंधी पहलों को बढ़ावा देना है।
- भारत में मांग का पैटर्न:
- भारत में लिथियम-आयन बैटरी की मांग वृद्धि में इलेक्ट्रिक वाहनों की महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी की होने की उम्मीद है लेकिन वर्ष 2025 तक इलेक्ट्रिक कारों की उच्च कीमत के कारण ऐसा होने की उम्मीद नहीं है।
- दहन-इंजन आधारित (Combustion-Engine) कारों की तुलना में इलेक्ट्रिक कारों काफी महंगी हैं।
- सरकार ने इस माँग को पूरा करने और 2040 तक भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के सबसे बड़े विनिर्माण केंद्रों में से एक बनाने के लिए $ 1.4 बिलियन के निवेश की घोषणा की है।
आगे की राह
- इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन एक पूंजी गहन क्षेत्र है जहाँ सरकारी नीतियों में अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है अतः दीर्घकालिक स्थिर नीति बनाने की आवश्यकता है।
- चार्जिंग स्टेशनों, ग्रिड़ स्थिरता जैसी अवसंरचनात्मक समस्याओं का समाधान शीघ्र करना चाहिये।
- भारत में लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है जबकि ये तत्त्व बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है, अतः इनका आयात सुनिश्चित करना चाहिये।