समसामयिकी 2020/संसाधनों का संग्रहण

विकिपुस्तक से


कोल इंडिया की प्रमुख सहायक कंपनी नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL) ने सरस (SARAS) नाम से एक केंद्र स्थापित किया है। सरस (SARAS) का पूर्ण रूप ‘साइंस एंड एप्लाइड रिसर्च एलायंस एंड सपोर्ट’ (Science and Applied Research Alliance and Support) है। उद्देश्य: इसका उद्देश्य कंपनी की परिचालन दक्षता में सुधार करना तथा इष्टतम स्तर पर संसाधनों का उपयोग करने के साथ-साथ नवाचार, R&D एवं कौशल विकास को बढ़ावा देना है। सरस खानों में कोयला उत्पादन, उत्पादकता और सुरक्षा बढ़ाने के लिये नवाचार एवं अनुसंधान के एकीकरण में कंपनी को मदद करेगा। इसके अलावा सरस कंपनी के परिचालन क्षेत्र में एवं उसके आसपास स्थानीय युवाओं को गुणवत्तापूर्ण कौशल विकास तथा रोज़गार पर ज़ोर देने के साथ-साथ अनुसंधान और विकास हेतु तकनीकी सहायता सुनिश्चित करने के लिये उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने में भी मदद करेगा। नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL) भारत के कोयला उत्पादन में नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL) का योगदान 15% का है तथा देश के लगभग 10% तापीय विद्युत उत्पादन में भारत सरकार की यह मिनीरत्न कंपनी एक अहम भूमिका निभाती है। यह कंपनी प्रत्येक वर्ष 100 मिलियन टन से अधिक कोयले का उत्पादन करती है तथा इसने चालू वित्त वर्ष में 107 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करने का लक्ष्य तय किया है।

  • ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) की भूमिगत तेल पाइपलाइन से रिसाव होने के कारण असम के डिब्रूगढ़ ज़िले में नाहरकटिया के पास बूढ़ी दिहिंग नदी (Burhi Dihing River) में आग लग गई।

बूढ़ी दिहिंग नदी, पूर्वोत्तर भारत के ऊपरी असम में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी है। इसे दिहिंग नदी भी कहा जाता है। उद्गम: यह नदी अरुणाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय (पटकाई पहाड़ियों) से निकलती है और असम में तिनसुकिया एवं डिब्रूगढ़ ज़िलों से होकर बहती है। इसकी लंबाई लगभग 380 किलोमीटर है।

बूढ़ी दिहिंग पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई जगहों पर गोखुर (Oxbow) झीलों का निर्माण करती है।

इसके अपवाह क्षेत्र में जेपोर-दिहिंग वर्षावन (Jeypore-Dihing Rainforest), पेट्रोलियम क्षेत्र, धान के खेत, बाँस और चाय के बागान जैसे कई अद्वितीय परिदृश्य हैं। बूढ़ी दिहिंग नदी घाटी में शहरीकरण: इसकी घाटी में कई छोटे शहर जैसे- लेडो, मार्घेरिटा, डिगबोई, दुलियाजन और नाहरकटिया हैं।

इसके मैदानी इलाकों में बेटेल नट (सुपारी) का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है।

सुपारी, अरेका कटेचु (Areca Catechu) नामक पौधे के फल का बीज है जो दक्षिणी एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा अफ्रीका के अनेक भागों पाई जाती है। ऑयल इंडिया लिमिटेड एक प्रमुख भारतीय राष्ट्रीय तेल कंपनी है जो कच्चे तेल एवं प्राकृतिक गैस के अन्वेषण, विकास और उत्पादन के साथ-साथ कच्चे तेल के परिवहन एवं एलपीजी के उत्पादन के व्यवसाय में लगी हुई है। हाल ही में क्रिसिल-इंडिया टुडे के एक सर्वेक्षण में ऑयल इंडिया लिमिटेड को देश के पाँच सबसे बड़े सार्वजनिक उपक्रमों में तथा तीन सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में से एक के रूप में चुना गया था।

  • बजट सत्र के दौरान सरकार द्वारा संसद में प्रत्यक्ष कर विवाद से विश्वास विधेयक,2020 पेश

वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण के दौरान प्रत्यक्ष कर के विवादों के निपटारे हेतु ‘विवाद से विश्वास योजना’ की शुरुआत की है।

पिछले वर्ष बजट में अप्रत्यक्ष करों से संबंधित विवादों को कम करने के लिये ‘सबका विश्वास योजना’ लाई गई थी और सरकार के अनुसार, इस योजना के परिणामस्वरूप 1,89,000 से अधिक मामलों का निपटारा किया गया है।

वर्तमान में विभिन्न अपीलीय मंचों यानी आयुक्त (अपील), आयकर अपीलीय अधिकरण, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में लगभग 4,83,000 प्रत्यक्ष कर से संबंधित मामले लंबित हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्यक्ष कर क्षेत्र में मुकदमेबाज़ी को कम करना है। इस विधेयक में लगभग 9.32 लाख करोड़ रुपए से जुड़े कर विवाद के मामलों के समाधान का प्रावधान है। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से विवादित कर का एक बड़ा हिस्सा तेज़ी से और सरल तरीके से वसूला जा सकेगा।

खनिज संसाधन[सम्पादन]

  • केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री ने 16 जनवरी, 2020 को पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ (Petroleum Conservation Research Association-PCRA) के वार्षिक जन केंद्रित ईंधन संरक्षण मेगा अभियान ‘सक्षम 2020’ (SAKSHAM 2020)[संरक्षण क्षमता महोत्सव (Sanrakshan Kshamata Mahotsav- SAKSHAM)] का शुभारंभ किया।

इस अभियान का उद्देश्य जन केंद्रित गतिविधियों के माध्यम से ईंधन संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना है।

  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) ने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में लगभग 160 किलोग्राम स्वर्ण भंडार की खोज की है।
विश्व स्वर्ण परिषद के अनुसार भारत में 600 टन से अधिक का स्वर्ण भंडार है, जो दुनिया में 10वाँ सबसे बड़ा भंडार है।

सोने का वज़न ट्रॉय औंस (Troy Ounces) में मापा जाता है (1 ट्रॉय औंस = 31.1034768 ग्राम), हालाँकि इसकी शुद्धता को कैरेट (Carats) में मापा जाता है। 24 कैरेट सोने को शुद्ध सोना कहा जाता है जिसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं होती है।

जल संसाधन[सम्पादन]

  • कर्नाटक के मांड्या ज़िले में स्थित कृष्णराजा सागर जलाशय में पारे के स्तर में वृद्धि के साथ-साथ वाष्पीकरण की दर में वृद्धि और अंतर्वाह जल में कमी के कारण जल स्तर में तेज़ी से कमी आ रही है।

कृष्णराजा सागर बाँध वर्ष 1924 में कावेरी नदी पर बनाया गया था। कर्नाटक के मैसूर एवं मांड्या ज़िलों में सिंचाई के अलावा यह जलाशय मैसूर एवं बंगलूरू शहर के लिये पेयजल का मुख्य स्रोत है। इस प्रोजेक्ट की संकल्पना भारत रत्न से सम्मानित मैसूर के मुख्य अभियंता एम. विश्वेश्वरैया ने की थी। यह एक प्रकार का गुरुत्व बाँध है। इस बाँध से छोड़ा गया पानी तमिलनाडु राज्य के सलेम ज़िले में स्थित मेट्टूर बाँध में इकठ्ठा होता है। बृंदावन गार्डन (Brindavan Garden) इस बाँध के पास स्थित है।

  • वर्ष 2009 से आंध्रप्रदेश तथा ओडिशा राज्य के मध्य उत्पन्न ‘वंशधारा जल विवाद’ (Vamsadhara Water Dispute) के समाधान को लेकर शीघ्र ही आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा ओडिशा सरकार से वार्ता की बात की गई है।

वर्तमान आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा शीघ्र ही वंशधारा और नागावल्ली नदी की इंटर-लिंकिंग को भी पूरा किया जाना तथा ‘मड्डुवालासा परियोजना’ (Madduvalasa Project) का भी विस्तार किये जाने की योजना बनायी जा रही है। मड्डुवालासा परियोजना आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम ज़िले में एक मध्यम सिंचाई परियोजना है। इस परियोजना का जलग्रहण क्षेत्र श्रीकाकुलम और विजयनगरम दो ज़िलों में फैला हुआ है। इस परियोजना के जलाशय के लिये पानी का मुख्य स्रोत सुवर्णमुखी नदी की सहायक नदी नागवल्ली नदी में एक इंटरलिंक बनाकर की जा रही है। विवाद की पृष्ठभूमि:-ओडिशा राज्‍य सरकार द्वारा फरवरी, 2009 में ‘अंतरराज्‍यीय नदी जल विवाद’ (ISRWD) अधिनियम,1956 की धारा 3 के अंतर्गत वंशधारा नदी जल विवाद के समाधान के लिये अतंर्राज्यीय जल विवाद अधिकरण के गठन के लिये केंद्र सरकार को एक शिकायत दर्ज़ की गई थी। ओडिशा सरकार का पक्ष था कि आंध्र प्रदेश के कटरागार में वंशधारा नदी पर निर्मित तेज़ बहाव वाली नहर के निर्माण के कारण नदी का विद्यमान तल सूख जाएगा जिसके परिणामस्‍वरूप भूजल और नदी का बहाव प्रभावित होगा। दोनों राज्यों के मध्य उत्पन्न इस विवाद को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2009 में केंद्र सरकार को जल विवाद अधिकरण को गठित करने के निर्देश दिया अतः सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2010 में एक ‘जल विवाद अधिकरण’ का गठन किया गया। अधिकरण द्वारा दिया गया निर्णय के विरुद्ध वर्ष 2013 ओडिशा सरकार द्वारा सर्वोच्च न्‍यायालय में याचिका दायर की गई जो अभी लंबित है। नदी जल विवाद संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

सविधान का अनुच्छेद- 262 अंतर्राज्यीय जल विवादों के न्यायनिर्णयन से संबंधित है। इस अनुच्छेद के अंतर्गत संसद द्वारा दो कानून पारित किये गए हैं- नदी बोर्ड अधिनयम (1956) तथा अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनयम(1956) अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनयम, केंद्र सरकार को अंतर्राज्यीय नदियों और नदी घाटियों के जल के प्रयोग, बँटवारे तथा नियंत्रण से संबंधित दो अथवा दो से अधिक राज्यों के मध्य किसी विवाद के न्यायनिर्णय हेतु एक अस्थायी न्यायाधिकरण के गठन की शक्ति प्रदान करता है। गठित न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम होगा जो सभी पक्षों के लिये मान्य होगा। वंशधारा नदी:

यह नदी ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच प्रवाहित होती है। नदी का उद्गम ओडिशा के कालाहांडी ज़िले के थुआमुल रामपुर से होता है। लगभग 254 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यह आंध्र प्रदेश के कालापटनम ज़िले से बंगाल की खाड़ी में प्रवेश कर जाती है। इस नदी के बेसिन का कुल जलग्रहण क्षेत्र लगभग 10,830 वर्ग किलोमीटर है।

  • महाराष्ट्र के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (Anti Corruption Bureau- ACB) ने वैनगंगा नदी (Wainganga River) पर गोसेखुर्ध सिंचाई परियोजना (Gosekhurdh Irrigation Project) हेतु निविदाओं में अनियमितता के लिये विदर्भ सिंचाई विकास निगम (Vidarbha Irrigation Development Corporation- VIDC) के 12 वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की।
वैनगंगा नदी (Wainganga River) का उद्गम मध्य प्रदेश के सिवनी (Seoni) ज़िले में स्थित महादेव पहाड़ियों से होता है।

यह गोदावरी की एक प्रमुख सहायक नदी है। महादेव पहाड़ियों से निकलने के बाद यह नदी दक्षिण की ओर बहती है और वर्धा नदी (Wardha River) से मिलने के बाद इन दोनों नदियों की संयुक्त धारा प्राणहिता नदी (Pranahita River) कहलाती है और आगे चलकर यह नदी तेलंगाना के कालेश्वरम में गोदावरी नदी से मिल जाती है।

  • घाटप्रभा (Ghataprabha) कर्नाटक में प्रवाहित कृष्णा नदी की सहायक नदी है। कर्नाटक में घाटप्रभा नदी पर हिडकल परियोजना का निर्माण किया गया है।

Ghataprabha-River हिडकल परियोजना कर्नाटक में बेलगावी ज़िले में स्थित है। यह परियोजना वर्ष 1977 में बनकर तैयार हुई थी। इस बांध पर एक जलाशय का निर्माण करके इसे बहुउद्देशीय परियोजना में परिवर्तित किया गया।

  • गोदावरी-कावेरी लिंक परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report-DPR) तैयार करने का कार्य पूरा किया गया ताकि परियोजना से संबंधित राज्य अपना पक्ष रख सकें।

मुख्य बिंदु:

DPR का कार्य राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency- NWDA) द्वारा पूरा किया गया है। राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी:

NWDA जल शक्ति मंत्रालय में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है। इसकी स्थापना वर्ष 1982 में की गई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य केंद्रीय जल आयोग द्वारा तैयार राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National perspective plan) के प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को ठोस आकार देना है । यह प्रायद्वीपीय घटक के संबंध में विस्तृत अध्ययन, सर्वेक्षण और जाँच करता। यह अंतर-बेसिन जल अंतरण अर्थात नदी जोड़ो योजना को व्यावहारिक बनता है। परियोजना से संबंधित मुख्य बिंदु:

गोदावरी (इनचम्पल्ली / जनमपेट) - कावेरी (ग्रैंड एनीकट) लिंक परियोजना में 3 लिंक शामिल हैं: गोदावरी (इंचमपल्ली/जनमपेट) - कृष्णा (नागार्जुनसागर) कृष्णा (नागार्जुनसागर) - पेन्नार (सोमाशिला Somasila) पेनार (सोमाशिला) - कावेरी प्रारूप के अनुसार, लगभग 247 TMC (Thousand Million Cubic Feet) पानी को गोदावरी नदी से नागार्जुनसागर बाँध (लिफ्टिंग के माध्यम से) और आगे दक्षिण में भेजा जाएगा जो कृष्णा, पेन्नार और कावेरी बेसिनों की जल आवश्यकताओं को पूरा करेगा। यह परियोजना आंध्र प्रदेश के प्रकाशम, नेल्लोर, कृष्णा, गुंटूर और चित्तूर ज़िलों के 3.45 से 5.04 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी। परियोजना की अनुमानित लागत वर्ष 2018-19 में 6361 करोड़ रुपए थी। संबंधित राज्यों की सर्वसम्मति से DPR तैयार कर आवश्यक वैधानिक मंज़ूरी प्राप्त होने के बाद ही इस परियोजना के कार्यान्वयन का चरण पूरा हो पाएगा।

  • कलसा-बंडूरी नाला प्रोजेक्ट-महादयी नदी बेसिन पर स्थित इस प्रोजेक्ट के अंतर-राज्य नदी जल विवाद के कारण इसकी लागत लगभग 94 करोड़ रुपए (2000 में) से बढ़कर 1,677.30 करोड़ रुपए (2020 में) हो गई है।

इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य कर्नाटक के तीन ज़िलों (बेलगावी,धारवाड़ और गडग) में पेयजल आपूर्ति में सुधार करना है। 1990 के दशक में कर्नाटक सरकार ने राज्य की सीमा के अंदर महादयी नदी से नहरों और बाँधों की शृंखला द्वारा 7.56 TMC (Thousand Million Cubic Feet) पानी मलप्रभा बाँध में लाने के लिये कलसा-बंडूरी नाला प्रोजेक्ट प्रारंभ किया था।

मलप्रभा नदी कृष्णा की सहायक नदी है। कलसा और बंडूरी इस परियोजना में प्रस्तावित दो नहरों के नाम हैं। मलप्रभा नदी धारवाड़, बेलगाम और गडग ज़िलों को पेयजल की आपूर्ति करती है।

वर्ष 1989 में जब कलसा-बंडूरी नाला प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी तब गोवा राज्य ने इस पर आपत्ति जताई थी। वर्ष 2010 में स्थापित महादयी जल विवाद न्यायाधिकरण में गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्रपक्षकार हैं

  • सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के तहत भारत ने अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए उझ बहुउद्देशीय परियोजना (Ujh Multipurpose Project) की समीक्षा की।

5850 करोड़ रुपए की लागत वाली इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन क्यूबिक मीटर जल का भंडारण किया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली बनाने में होगा। स्थिति: इस परियोजना का निर्माण जम्मू और कश्मीर के कठुआ ज़िले में उझ नदी पर करने की योजना है। गौरतलब है कि उझ नदी, रावी की सहायक नदी है। इस परियोजना को तकनीकी मंज़ूरी जुलाई 2017 में ही दी जा चुकी है। यह एक राष्ट्रीय परियोजना है, जिसका वित्तपोषित केंद्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। इस परियोजना से उझ नदी पर 781 मिलियन क्यूबिक मीटर जल का भंडारण किया जा सकेगा, जिसका इस्तेमाल सिंचाई और बिजली उत्पादन में होगा। इस जल से जम्मू-कश्मीर के कठुआ, हीरानगर और सांभा ज़िलों में 31 हज़ार 380 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी और वहाँ के लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी।

  • केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय जल नीति का मसौदा तैयार करने के लिये मिहिर शाह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। मिहिर शाह योजना आयोग के पूर्व सदस्य तथा जल संरक्षण क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। इस समिति में 10 मुख्य सदस्य होंगे।

स्वतंत्रता के बाद देश में तीन राष्ट्रीय जल नीतियों का निर्माण हुआ है। पहली, दूसरी तथा तीसरी राष्ट्रीय जल नीति का निर्माण क्रमशः वर्ष 1987, 2002 और 2012 में हुआ था।