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समसामयिकी 2020/सीमावर्ती सुरक्षा

विकिपुस्तक से


  • जुलाई 2020 में संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime-UNODC) द्वारा जारी वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2020 में अवैध मादक द्रव्यों के उत्पादन, आपूर्ति तथा उसके उपभोग पर वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक कठिनाइयों के कारण लोग अपनी आजीविका को बनाए रखने के लिये दवाओं से संबंधित अवैध गतिविधियों का सहारा ले सकते हैं । वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण सरकारें दवाओं से संबंधित चिकित्सीय परीक्षणों के लिये अपने बजट पूर्वानुमान में कटौती कर सकती हैं। जिससे सस्ती व हानिकारक दवाओं का उपयोग करने के चलन में वृद्धि हो सकती है। रणनीति में परिवर्तन :- इटली, नाइजर और मध्य एशिया के देशों में ड्रग तस्करी में भारी गिरावट दर्ज की गई है। ऐसा इसलिये है क्योंकि मादक पदार्थों के तस्करों ने रणनीति में परिवर्तन करते हुए अपना ध्यान अन्य अवैध गतिविधियों जैसे साइबर अपराध और नकली दवाओं के निर्माण में लगाया है। हालाँकि मोरक्को और ईरान जैसे देशों में ड्रग तस्करी की घटनाओं में वृद्धि हुई है। आपूर्ति श्रृंखला पर COVID-19 का प्रभाव COVID-19 और इसके बाद लागू किया गया लॉकडाउन दुनिया में प्रमुख उत्पादकों के बीच उत्पादन और बिक्री में बाधा के रूप में उभरा है। लॉकडाउन के कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में गिरावट एसिटिक एनहाइड्राइड (Acetic Anhydride) की आपूर्ति में कमी का कारण बन सकती है, जो हेरोइन (Heroin) के निर्माण के लिये उपयोगी होती है। लॉकडाउन के दौरान मादक पदार्थ भांग (Cannabis) की मांग में वृद्धि देखी गई है। हवाई यात्रा पर प्रतिबंध से वायु मार्ग द्वारा मादक पदार्थों की तस्करी पूरी तरह से बाधित होने की संभावना है। मादक पदार्थों की तस्करी हेतु अब समुद्री मार्गों के बढ़ते उपयोग के संकेत हैं। समुद्री मार्ग का उपयोग हाल ही में हिंद महासागर क्षेत्र से मादक पदार्थ हेरोइन ज़ब्त की गई है जो इंगित करता है कि यूरोप महाद्वीप के देशों में मादक पदार्थ हेरोइन की तस्करी के लिये समुद्री मार्गों का उपयोग किया गया है। हालाँकि सीमापारीय आवागमन बाधित होने से मादक पदार्थ अफीम (Opiam) की तस्करी में गिरावट हुई है परंतु मादक पदार्थ कोकीन की तस्करी समुद्री मार्गों के द्वारा की जा रही है। भारत और अवैध ड्रग व्यापार संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत अवैध ड्रग व्यापार के प्रमुख केंद्रों में से एक है। यहाँ ट्रामाडोल (Tramadol) और मेथाफेटामाइन (Methamphetamine) जैसे आधुनिक और भांग जैसे पुराने मादक पदार्थ मिल जाते हैं। भारत दुनिया में दो प्रमुख अवैध अफीम उत्पादन क्षेत्रों के मध्य में स्थित है, पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और पूर्व में स्वर्णिम त्रिभुज (दक्षिण-पूर्व एशिया)।

स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र म्यांमार, लाओस और थाईलैंड के पहाड़ों का एक संयुक्त क्षेत्र है। यह यूरोप और उत्तरी अमेरिका में मादक पदार्थों की आपूर्ति करने के लिये तस्करों द्वारा उपयोग किये जाने वाले सबसे पुराने मार्गों में से एक है। यह दक्षिण पूर्व एशिया का मुख्य अफीम उत्पादक क्षेत्र है। स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित है।

स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र में अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं। यह अफीम के उत्पादन और उसके वितरण के लिये प्रमुख वैश्विक स्थलों में से एक है। स्वर्णिम अर्द्धचंद्र क्षेत्र भारत के पश्चिम में स्थित है।

  • दो साल पूर्व सेवा से मुक्त हुए विमान-वाहक पोत ‘विराट’ (Aircraft Carrier Viraat) को कबाड़ (Scrapped) में परिवर्तित किया जाएगा। वर्ष 2018 में महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक- निजी भागीदारी (Public-Private Partnership - PPP) के माध्यम से इस विमान- वाहक पोत को संग्रहालय में परिवर्तित करने का प्रस्ताव मंज़ूर किया था।

परंतु इसे संग्रहालय का रूप देने के लिये अब तक अनेक प्रयास असफल रहे हैं और इसीलिये इसे कबाड़ में परिवर्तित करने का निर्णय लिया गया है।भारतीय नौसेना पहले ही यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह और अधिक समय के लिये इसे नहीं रख सकती है, क्योंकि यह बहुत अधिक भीड़ वाले मुंबई डॉकयार्ड में बहुत जगह घेर रहा है। विमान-वाहक पोत ‘विराट’ विराट एक सेंतौर श्रेणी (Centaur class) का विमान वाहक पोत है जिसे नवंबर 1959 में ब्रिटिश नौसेना में तैनात किया गया था। ब्रिटिश नौसेना में इसका नाम एच.एम.एस. हर्मस (HMS Hermes) था। यह लगभग 25 सालों तक ब्रिटिश नौसेना में कार्यरत रहा और फिर अप्रैल 1984 में इसे सेवा से मुक्त कर दिया गया, जिसके पश्चात् मई 1987 में इसका आधुनिकीकरण किया गया और इसे भारतीय नौसेना में शामिल कर लिया गया। इस विमान-वाहक पोत का कुल वज़न 27,800 टन है। वर्ष 2017 में नौसेना ने भी इसे सेवानिवृत्त कर दिया था। इस पोत की खासियतों की बात करें तो इसमें एक साथ 26 विमान खड़े हो सकते थे और एक साथ 750 कर्मचारी भी रह सकते थे।

  • रक्षा व्यय प्रत्येक वर्ष निरपेक्ष रूप से बढ़ रहा है जो उच्च व्यय को दर्शाता है। हालाँकि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रक्षा बजट जीडीपी में वृद्धि के कारण घटता हुआ दिखाई दे सकता है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक विशिष्ट समय अवधि में देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है।
वर्ष 2019-20 के बजट व्यय में कुल रक्षा बजट (विविध खर्च एवं पेंशन सहित) केंद्र सरकार के कुल व्यय का 15.47% है।

वर्ष 2019-20 के बजट व्यय में रक्षा मंत्रालय का पूंजीगत बजट केंद्र सरकार के कुल पूंजीगत व्यय का लगभग 31.97% है। पूंजीगत व्यय भूमि, भवन, मशीनरी, उपकरण साथ ही शेयरों में निवेश जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर खर्च किया गया धन है।संचालन एवं रखरखाव तथा रक्षा क्षेत्र के आधारभूत ढाँचे पर खर्च का प्रबंधन बेहतर तरीके से किया गया है।

  • भारतीय नौसेना ने मौसम विज्ञान और समुद्र विज्ञान के क्षेत्र में नौसेना के अनुप्रयोग के लिये समुद्री तलछट डेटा, उत्पादों और विशेषज्ञता को साझा करने के उद्देश्य से भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। GIS के समुद्री और तटीय सर्वेक्षण प्रभाग ने भारत के अधिकांश विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone) का मानचित्रण किया है जिससे इनके पास अपतटीय डेटा का विशाल भंडार है।

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने अत्याधुनिक समुद्री अनुसंधान जहाज़ों जैसे- समुद्र मंथन, समुद्र कौस्तुभ, समुद्र शौधिकामा और समुद्र रत्नाकर का उपयोग कर इस डेटा को एकत्र किया है। इस डेटा की मदद से भारतीय नौसेना को हिंद महासागर क्षेत्र में विश्वसनीय एवं सटीक महासागरीय मॉडलिंग तैयार करने में मदद मिलेगी। इससे इस क्षेत्र में नौसेना के जहाज़ों का आवागमन सुगम हो सकेगा।

  • भारतीय सेना दिवस (Indian Army Day)-15 जनवरी को प्रतिवर्ष जवानों और भारतीय सेना के सम्मान में सेना दिवस मनाया जाता है। वर्ष 1949 में 72वाँ सेना दिवस के अवसर पर इसकी शुरुआत की गई। इस समय भारत के अंतिम ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ जनरल फ्रांसिस बुचर द्वारा लेफ्टिनेंट जनरल के.एम. करियप्पा को भारतीय सेना का कमांडर-इन-चीफ नामित करने की याद में सेना दिवस मनाया जाता है।

भारतीय सेना की स्थापना 1 अप्रैल, 1895 में की गई थी। भारतीय सेना का आदर्श वाक्य है ‘स्वयं से पहले सेवा’ (Service Before Self)। 72वें सेना दिवस में क्या खास है? इस बार नई दिल्ली में आयोजित सेना दिवस परेड में पहली बार एक महिला कैप्टन तानिया शेरगिल ने पुरुष जवानों की टुकड़ी का नेतृत्व किया। इस परेड में भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत भी शामिल हुए। असल उत्तर की लड़ाई (Battle of Asal Uttar) वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान असल उत्तर की लड़ाई 8-10 सितंबर के मध्य लड़ी गई जिससे भारत की जीत का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस लड़ाई को इतिहासकारों द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे प्रमुख लड़ाई बताया जाता है जिसमें टैंकों का उपयोग किया गया था। असल उत्तर, पंजाब के तरनतारन ज़िले में भारत-पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सीमा से 12 किमी. दूर स्थित एक गाँव है। एमक्यू -9 बी स्काई गार्जियन यह अगली पीढ़ी का रिमोटली पायलेटेड एयरक्रॉफ्ट सिस्टम (RPAS) है। यह एक उच्च मॉड्यूलर एयरक्रॉफ्ट है और विभिन्न प्रकार के पेलोड एवं हथियारों के साथ तेज़ी से लक्ष्य को निशाना बनाता है।

सीमावर्ती सुरक्षा से संबंधित कानून

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दिल्ली पुलिस ने रणनीतिक मामलों के एक विश्लेषक को चीनी सीमा पर भारतीय सैनिकों की तैनाती जैसी सूचना उजागर करने के लिये आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act), 1923 के तहत गिरफ्तार किया है। आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (OSA) दो पहलुओं से संबंधित है - जासूसी और सरकार की गुप्त जानकारी का खुलासा। हालाँकि OSA गुप्त जानकारी को परिभाषित नहीं करता है किंतु सरकार दस्तावेज़ को गुप्त दस्तावेज़ की श्रेणी में वर्गीकृत करने के लिये विभागीय सुरक्षा निर्देशों, 1994 के मैनुअल का पालन करती है। गुप्त सूचना में कोई आधिकारिक कोड, पासवर्ड, स्केच, योजना, मॉडल, लेख, नोट, दस्तावेज़ या जानकारी शामिल होती है। यदि कोई व्यक्ति दोषी पाया जाता है तो उसे 14 वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों ही सज़ा सकती है।

पृष्ठभूमि:-आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (अधिनियम XIV), वर्ष 1889 में लाया गया था, जिसका उद्देश्य कई भाषाओं में बड़ी संख्या में प्रकाशित अखबारों की आवाज़ को दबाना था जो ब्रिटिश नीतियों का विरोध कर रहे थे। लॉर्ड कर्जन के समय अधिनियम XIV में संशोधन कर इसे द इंडियन ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1904 के रूप में इसे और अधिक कठोर बनाया गया था। वर्ष 1923 में इसका एक नया संस्करण आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम (1923 का अधिनियम XIX) अधिसूचित किया गया।

सूचना के अधिकार अधिनियम के साथ संघर्ष: अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि OSA सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 के साथ सीधे विरोध की स्थिति में है। RTI की धारा 22, OSA सहित अन्य कानूनों के संदर्भ में विज़-ए-विज़ प्रावधानों के अंतर्गत प्रधानता प्रदान करती है। इसलिये यदि सूचना प्रस्तुत करने के संबंध में OSA में कोई असंगतता है, तो यह आरटीआई अधिनियम द्वारा दी जाएगी। हालाँकि आरटीआई अधिनियम की धारा 8 और 9 के तहत सरकार जानकारी देने से मना कर सकती है। प्रभावी रूप से यदि सरकार OSA के तहत किसी दस्तावेज़ को गुप्त रूप में वर्गीकृत करती है, तो उस दस्तावेज़ को RTI अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जा सकता है और सरकार धारा 8 या 9 को लागू कर सकती है।

OSA की धारा-5 जो कि राष्ट्रीय सुरक्षा के संभावित उल्लंघनों से संबंधित है,की प्रायः गलत व्याख्या की जाती है। यह अनुभाग शत्रु राज्य की मदद हेतु जानकारी साझा करने को एक दंडनीय अपराध बनाता है।

जब पत्रकारों द्वारा ऐसी सूचनाओं को प्रचारित किया जाता है जो सरकार या सशस्त्र बलों के लिये शर्मिंदगी का कारण बन सकती हैं, तो ऐसी स्थिति में इस अधिनियम द्वारा उनके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है। सुझाव:

  1. विधि आयोग 1971 में इस कानून का अवलोकन करने वाला पहला आधिकारिक संस्थान था। आयोग ने कहा, “केवल इसलिये कि कोई परिपत्र गुप्त या गोपनीय है, उसे इस कानून के प्रावधानों के तहत नहीं लाना चाहिये।" हालाँकि विधि आयोग ने इस कानून में किसी भी बदलाव की सिफारिश नहीं की।
  2. वर्ष 2006 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने सिफारिश की कि सरकारी गोपनीयता कानून को निरस्त किया जाए और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के उस अध्याय में बदलाव किया जाए जिसमें सरकारी गोपनीयता से संबंधित प्रावधान हैं। आयोग ने इस कानून को लोकतांत्रिक समाज में पारदर्शी शासन की राह में बाधा बताया।
  3. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के परिप्रेक्ष्य में सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 की समीक्षा करने के लिये केंद्र सरकार ने 2015 में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। इस समिति में गृह मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग तथा कानून मंत्रालय के सचिव शामिल थे। इसने 16 जून, 2017 को कैबिनेट सचिवालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि सरकारी गोपनीयता कानून को अधिक पारदर्शी और RTI अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।
  4. सरकार ने वर्ष 2015 में आरटीआई अधिनियम के प्रकाश में OSA के प्रावधानों को देखने के लिये एक समिति का गठन किया था जिसने जून 2017 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, इसमें सिफारिश की गई थी कि OSA को अधिक पारदर्शी और आरटीआई अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।

आगे की राह:-"गुप्त" की परिभाषा को OSA में स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है, ताकि गलत व्याख्या की गुंजाइश न हो। इसके अलावा OSA को आरटीआई अधिनियम के अनुरूप लाने की आवश्यकता है।

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक

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नीति आयोग (Niti Aayog) ने अपनी एक रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया के ‘इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक एंड पीस’ (Institute for Economics and Peace-IEP) द्वारा जारी ‘वैश्विक आतंकवाद सूचकांक’ (Global Terrorism Index-GTI) 2019 की कार्यप्रणाली (Methodology) पर प्रश्नचिह्न लगाए हैं। इस सूचकांक में भारत को 7वाँ स्थान मिला है। इस सूचकांक में भारत को विश्व के संघर्षग्रस्त देशों जैसे- डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, दक्षिण सूडान, सूडान, बुर्किना फासो, फिलिस्तीन और लेबनान आदि से भी ऊपर रखा गया है। नीति आयोग की रिपोर्ट में IEP की अपारदर्शी फंडिंग पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार के चैरिटीज़ एंड नॉट-फॉर-प्रॉफिट कमीशन (Charities and Not-for-profits Commission) ने IEP के फंडिंग स्रोतों के बारे में भी कोई डेटा उपलब्ध नहीं किया है। नीति आयोग के अनुसार, IEP द्वारा इस सूचकांक को तैयार करने हेतु आतंकवाद से संबंधित जिस डेटाबेस का प्रयोग किया जाता है वह पूर्ण रूप से अवर्गीकृत मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार होता है।आयोग के मुताबिक, IEP द्वारा जारी वर्ष 2019 का सूचकांक बताता है कि संगठन में 24 कर्मचारी और 6 वॉलंटियर है, जिसके कारण यह काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि किस प्रकार संगठन 163 देशों से आँकड़े एकत्रित करता है और फिर उनका विश्लेषण करता है।

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 2019 के अनुसार, वर्ष 2014 के बाद से अब तक आतंकवाद के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 52 प्रतिशत की कमी आई है, जो कि 33,555 से घटकर 15,952 हो गई हैं।

GTI के अनुसार, आतंकवाद से होने वाली मौतों में गिरावट के कारण आतंकवाद के वैश्विक आर्थिक प्रभाव में भी कमी आई है, जो कि वर्ष 2018 में 38 प्रतिशत घटकर 33 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया है। इस सूचकांक में पहला स्थान अफगानिस्तान को मिला है, जिसका अर्थ है कि अफगानिस्तान विश्व में आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देश है। वहीं इस सूचकांक में अंतिम स्थान बेलारूस (Belarus) को मिला है, इस प्रकार बेलारूस आतंकवाद की दृष्टि से काफी सुरक्षित देश है। भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान को 5वाँ, चीन को 42वाँ, बांग्लादेश को 31वाँ, नेपाल को 34वाँ, श्रीलंका को 55वाँ, भूटान को 137वाँ और म्याँमार को 26वाँ स्थान प्राप्त हुआ है।

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक (GTI) ऑस्ट्रेलिया स्थित ‘इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक एंड पीस’ (Institute for Economics and Peace-IEP) द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी किया जाता है, जिसमें वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से संबंधित आँकड़ों के साथ-साथ विभिन्न देशों को आतंकवाद की स्थिति के आधार पर रैंकिंग भी दी जाती है। IEP द्वारा जारी किये जाने वाले सूचकांक में प्रमुख रूप से मैरीलैंड विश्वविद्यालय के ग्लोबल टेररिज़्म डेटाबेस (GTD) का प्रयोग किया जाता है।

यह सूचकांक किसी एक देश में आतंकवाद की स्थिति को दर्शाता है, जो कि देश के अन्य विभिन्न क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है, इसलिये इस सूचकांक का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। वैश्विक आतंकवाद सूचकांक के स्कोर को प्रत्यक्ष रूप से ‘ग्लोबल पीस इंडेक्स’ (Global Peace Index) और वैश्विक दासता रिपोर्ट (Global Slavery Report) में प्रयोग किया जाता है। वहीं यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्द्धी सूचकांक (travel and tourism competitiveness index), वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सूचकांक (Global Competitiveness Index) और सेफ सिटीज़ इंडेक्स (Safe Cities Index) में GTI का स्कोर अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग किया जाता है।

सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO)

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  • BRO ने अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सुबनसिरी ज़िले में सुबनसिरी नदी के ऊपर दापोरीजो (Daporijo) में 430 फीट लंबे बेली/बैली पुल का उन्नयन किया। अभी तक इस पुल का वज़न 24 टन था जिसे अपग्रेड करके 40 टन किया गया है, जिससे भारी वाहनों की आवाजाही सुनिश्चित हो सकेगी।

सीमा सड़क संगठन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में निर्मित इस रणनीतिक पुल के माध्यम से भारत- चीन के मध्य वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात लगभग 3,000 सैनिकों को पर्याप्त मात्रा में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति हो सकेगी और विवादित क्षेत्रों में आकस्मिकता के दौरान त्वरित सैन्य मदद सुनिश्चित कराई जा सकेगी। यह पुल आसपास के लगभग 451 गाँवों में वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति की उपलब्धता को भी सुनिश्चित करने में मदद करेगा और ऊपरी सुबनसिरी ज़िले में बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायक होगा। यह पुल भारी तोपों का भार सहन करने में सक्षम है जिन्हें वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है। इस पुल का निर्माण सीमा सड़क संगठन, रक्षा मंत्रालय और अरुणाचल प्रदेश सरकार के बीच समन्वय एवं सहयोग से पूरा किया गया है। रणनीतिक महत्त्व:-यह पुल सुबनसिरी नदी पर बने दो पुलों में से एक है जो अरुणाचल प्रदेश के दापोरीजो (Daporijo) क्षेत्र को शेष राज्य से जोड़ता है। यह पुल और अरुणाचल प्रदेश के तामिन (Tamin) के पास निर्मित अन्य पुल इस क्षेत्र के 600 से अधिक गाँवों तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के आसपास के 3000 सैन्य कर्मियों को मदद पहुँचाने में सक्षम है जिसमें असफिला (Asaphila) और माज़ा (Maza) विवादित क्षेत्र भी शामिल हैं। भारत-चीन के मध्य वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद ने इस क्षेत्र में भी संवेदनशीलता बढ़ा दी थी। भारत और चीन के मध्य वास्तविक नियंत्रण रेखा की लंबाई 3488 किलोमीटर है जिसमें 1126 किलोमीटर अकेले अरुणाचल प्रदेश के साथ संबद्ध है।

सुबनसिरी नदी का उद्गम तिब्बत के हिमालयी क्षेत्र से होता है। यह भारत में अरुणाचल प्रदेश से होती हुई दक्षिण में असम घाटी तक बहती है जहाँ यह लखीमपुर ज़िले में ब्रह्मपुत्र नदी में मिलती है। इसे ‘स्वर्ण नदी’ भी कहा जाता है और यह अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र की सबसे बड़ी सहायक नदी है। सुबनसिरी नदी को ‘व्हाइट वॉटर राफ्टिंग’ (White Water Rafting) के लिये भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदियों में से एक माना जाता है।

इसकी सहायक नदियाँ सिए (Sie) और कमला (Kamla) हैं।

  • BRO ने देश के बाकी हिस्सों से पंजाब के कासोवाल एन्क्लेव को जोड़ने के लिये रावी नदी पर 484 मीटर लंबे एक नए स्थायी पुल का निर्माण किया है। 484 मीटर लंबे इस पुल का निर्माण प्रोजेक्ट चेतक (Project Chetak) के तहत 49 सीमा सड़क कार्यबल (Border Roads Task Force- BRTF) द्वारा किया गया है।

इस पुल की निर्माण लागत 17.89 करोड़ रुपए (आवागमन मार्ग को छोड़कर) है। इस पुल के निर्माण से पहले लगभग 35 वर्ग किलोमीटर का यह क्षेत्र (कासोवाल एन्क्लेव) सीमित भार क्षमता के पंटून पुल के माध्यम से जुड़ा था। प्रत्येक वर्ष यह पंटून पुल मानसून से पहले ही ध्वस्त हो जाता था या रावी नदी की तेज़ धाराओं में बह जाता था। जिसके कारण मानसून के दौरान नदी के पार हजारों एकड़ उपजाऊ भूमि का उपयोग किसान नहीं कर पाते थे।

  • सिक्किम राज्य में तीस्ता नदी पर इस संगठन द्वारा निर्मित पुल को यातायात के लिये खोला दिया गया। स्वास्तिक परियोजनाके तहत अक्तूबर 2019 में उत्तरी सिक्किम में तीस्ता नदी पर इस पुल का निर्माण शुरु किया गया और इसे जनवरी 2020 में पूरा कर लिया गया था।
जून 2019 में इसी स्थान पर बना 180 फुट लंबा पुल बादल फटने के कारण क्षतिग्रस्त हो गया था जिससे सिक्किम के उत्तरी ज़िले में संचार व्यवस्था बाधित हो गई थी।

सीमा सड़क संगठन की स्वास्तिक परियोजना के तहत पूर्वी एवं उत्तरी सिक्किम क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सड़क नेटवर्क को अंतर्राष्ट्रीय सीमा तक विस्तारित किया जा रहा है और इस परियोजना के अंतर्गत इस क्षेत्र में कई पर्यटक स्थलों का निर्माण भी किया गया है।

नाथुला (Nathula) दर्रे से चीन के साथ व्यापार और कैलाश मानसरोवर यात्रा का संचालन एक कुशल एवं विश्वसनीय सड़क नेटवर्क पर निर्भर करता है।

इस पुल का निर्माण सिक्किम के चुंगथांग (Chungthang) शहर के पास मुंशीथांग (Munshithang) में तीस्ता नदी पर किया गया है। इससे उत्तरी सिक्किम के लाचेन क्षेत्र के निवासियों को आने-जाने में आसानी होगी। इसके अतिरिक्त सीमा सड़क संगठन (BRO) ने पुल से जुड़े संपर्क मार्गों का निर्माण भी किया है। जिससे उत्तरी सिक्किम क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और दुर्गम इलाकों में तैनात सैन्य बलों के लिये माल ढुलाई आसान हो जाएगी।

तीस्ता नदी का उद्गम भारत के सिक्किम राज्य में कांगसे ग्लेशियर (Kangse Glacier) के पास चारामु झील (Charamu Lake) से होता है।

यह भारत से निकलने के बाद बांग्लादेश में ब्रहमपुत्र नदी से मिलती है और संयुक्त होकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी लंबाई लगभग 315 किलोमीटर है। और इसका अधिकांश जल ग्रहण क्षेत्र भारत के हिस्से में आता है। ब्रह्मपुत्र, गंगा एवं मेघना के बाद तीस्ता नदी बांग्लादेश की चौथी सबसे बड़ी नदी है। ब्रह्मपुत्र नदी को बांग्लादेश में जमुना (Jamuna) नदी कहा जाता है। रंगित (Rangeet) जो सिक्किम की सबसे बड़ी नदी है तीस्ता की प्रमुख सहायक नदी है। रंगित नदी जिस स्थान पर तीस्ता से मिलती है उसे त्रिबेनी (Tribeni) के नाम से जाना जाता है। इसके बाएँ तट से मिलने वाली सहायक नदियाँ दिक् छू (Dik Chhu), रान्ग्पो (Rangpo), लाचुंग (Lachung), रानी खोला (Rani Khola) हैं तथा दाँये तट से मिलने वाली सहायक नदियाँ रंग्घाप छू (Ranghap Chhu), रंगित (Rangeet), रिंगयोंग छू (Ringyong Chhu) हैं।

तटीय सुरक्षा

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  • ‘यार्ड 45006 वज्र’ (Yard 45006 VAJRA) नामक 6वें तटरक्षक अपतटीय गश्ती पोत (Offshore Patrol Vessel- OPV-6) को 27 फरवरी,2020 को चेन्नई में को पहली बार समुद्र में उतारा गया।

इस पोत द्वारा लगभग 7500 किमी. विशाल भारतीय तटरेखा और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के लगभग 20 लाख वर्ग किमी. के विशाल क्षेत्र को सुरक्षित करने की कोशिश की जाएगी।

‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत लार्सन एंड टुब्रो शिप बिल्डिंग द्वारा डिज़ाइन एवं विकसित की जा रही सात अपतटीय गश्ती पोत प्रोजेक्ट की शृंखला में 6वाँ है।

विशेष रूप से अनन्य आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone-EEZ) में आतंकवाद विरोधी एवं तस्करी विरोधी अभियानों के साथ-साथ इसका इस्तेमाल दिन व रात के समय गश्त के लिये किया जाएगा।

यह वैश्विक व्यापार हेतु प्रत्येक वर्ष भारतीय जल क्षेत्र से पारगमन करने वाले लगभग एक लाख व्यापारी जहाज़ों के लिये सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करेगा।

थल सेना

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  • भारतीय सेना की अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘प्रज्ञान कॉन्क्लेव 2020’ (Pragyan Conclave 2020) का आयोजन नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में किया गया।


मुख्य बिंदु: इस कॉन्क्लेव का आयोजन सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज़ (Centre for Land Warfare Studies) द्वारा किया जा रहा है। सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज़ (Centre for Land Warfare Studies- CLAWS) नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज़ (CLAWS) भारतीय संदर्भ में रणनीतिक अध्ययन एवं ज़मीनी युद्ध पर एक स्वायत्त थिंक टैंक है। CLAWS सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत है और यह सदस्यता आधारित संगठन है। इसका संचालन बोर्ड ऑफ गवर्नर और एक कार्यकारी परिषद द्वारा किया जाता है। इस कॉन्क्लेव में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ ज़मीनी युद्ध के बदलते तरीकों और सेना पर इसके प्रभाव के बारे में विचार-विमर्श करेंगे। इस कॉन्क्लेव में बदलती सुरक्षा परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया गया। भारतीय सेना के लिये चीफ-ऑफ-डिफेंस स्टाफ (Chief of Defence Staff) की नियुक्ति तथा सैन्य मामलों के विभाग (Department of Military Affairs) की स्थापना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। इसमें ‘प्रौद्योगिकी क्रांति- एक मौलिक चुनौती’ (The Technological Revolution– A Seminal Challenge) विषय के तहत बहुपक्षीय इन्फॉरमेशन वारफेयर, साइबर एवं स्पेस वारफेयर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता तथा रोबोटिक्स के प्रभाव पर चर्चा की गई।

वर्ष 1835 में असम राइफल्स का गठन हुआ। असम राइफल्स का मुख्यालय शिलांग में स्थित है। असम राइफल्स के ITBP के साथ विलय के बाद, यह गृह मंत्रालय के नियंत्रण में आ जाएगा।

स्वदेश निर्मित हथियार

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  • 5 अक्तूबर, 2020 को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा तट से दूर व्हीलर द्वीप (एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप) से एंटी सबमरीन वारफेयर (ASW) ‘सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड रिलीज़ ऑफ टॉरपीडो’ (Supersonic Missile Assisted Release of Torpedo- SMART) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

SMART पनडुब्बी-रोधी युद्ध क्षमता (Anti-Submarine Warfare- ASW) स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण तकनीक है। इसमें मिसाइल की उड़ान हेतु रेंज एवं ऊँचाई, शंक्वाकार नुकीले भाग का पृथक्करण, टॉरपीडो का अलग होना और वेग न्यूनीकरण तंत्र (Velocity Reduction Mechanism) की तैनाती सहित सभी प्रक्रियाओं का पूरी तरह से पालन किया गया है। SMART टॉरपीडो रेंज से कहीं आगे एंटी-सबमरीन वारफेयर (ASW) ऑपरेशंस के लिये हल्के एंटी-सबमरीन टॉरपीडो प्रणाली की मिसाइल असिस्टेड रिलीज़ है। इस परीक्षण में हाइब्रिड तकनीक को शामिल किया गया है जो वर्तमान प्रणाली को अपग्रेड करने में मदद करती है और मारक क्षमता को भी बढ़ाती है। SMART जिसे युद्धपोत या ट्रक-आधारित तटीय बैटरी (Truck-based Coastal Battery) से लॉन्च किया जाता है, एक नियमित सुपरसोनिक मिसाइल की तरह ही कार्य करता है। रणनीतिक महत्त्व: स्वदेशी रूप से विकसित स्मार्ट टॉरपीडो प्रणाली देश की समुद्री रणनीतिक क्षमताओं को मज़बूत करने में एक अहम कदम है। यह प्रक्षेपण एवं प्रदर्शन पनडुब्बी-रोधी युद्ध क्षमता स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण है।

  • 03 अक्तूबर, 2020 को भारत द्वारा परमाणु सक्षम शौर्य मिसाइल (Shaurya Missile) का सफल परीक्षण किया गया। शौर्य मिसाइल के-मिसाइल समूह (K-Missile Group) से संबंधित है।

इस मिसाइल को अरिहंत वर्ग (Arihant Class) की परमाणु पनडुब्बी से लॉन्च किया गया है। शौर्य मिसाइल लघु श्रेणी एसएलबीएम के-15 सागरिका (Short Range SLBM K-15 Sagarika) का भूमि संस्करण (Land Variant) है जिसकी रेंज कम-से-कम 750 किलोमीटर है। के-मिसाइल समूह मुख्य रूप से पनडुब्बी द्वारा लॉन्च की गई बैलिस्टिक मिसाइलें (Submarine Launched Ballistic Missiles- SLBM) हैं जिन्हें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा स्वदेशी तरीके से विकसित किया गया है। इस मिसाइल समूह से संबंधित मिसाइलों का नाम डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है जो भारत के मिसाइल एवं अंतरिक्ष कार्यक्रमों के नेतृत्त्वकर्त्ता थे, जिन्होंने भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया है। के-मिसाइल समूह की शुरुआत: नौसैनिक प्लेटफॉर्म द्वारा लॉन्च की जाने वाली मिसाइलों का विकास 1990 के दशक के अंत में भारत के परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को पूरा करने की दिशा में शुरू हुआ था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य भूमि, समुद्र एवं वायु आधारित प्लेटफॉर्म से परमाणु हथियार लॉन्च करने की क्षमता हासिल करना है। चूँकि इन मिसाइलों को पनडुब्बियों से प्रक्षेपित किया जाता है इसलिये ये भूमि से प्रक्षेपित की जाने वाली मिसाइलों की तुलना में हल्की, छोटी एवं प्रच्छन्न होती हैं। अग्नि मिसाइलें मध्यम एवं अंतरमहाद्वीपीय श्रेणी की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइलें हैं। जबकि के-मिसाइल समूह से संबंधित ये मिसाइलें मुख्य रूप से पनडुब्बी से प्रक्षेपित की जाने वाली मिसाइलें हैं जिन्हें भारत की अरिहंत श्रेणी के परमाणु संचालित प्लेटफार्मों से प्रक्षेपित किया जा सकता है। साथ ही इसके कुछ भूमि एवं हवाई संस्करण भी DRDO द्वारा विकसित किये गए हैं। भारत ने 3500 किमी. की रेंज वाली कई K-4 मिसाइलों का विकास एवं सफल परीक्षण किया है। के-मिसाइल समूह की अधिकांश मिसाइलों को K-5 और K-6 नाम दिया गया है जिनकी रेंज 5000 से 6000 किमी. के मध्य है। K-15 और K-4 मिसाइलों का विकास एवं परीक्षण वर्ष 2010 की शुरुआत में हुआ था।

  • नंबर-18- फ्लाइंग बुलेट्स(Number-18– Flying Bullets)

भारतीय वायुसेना कोयंबटूर के निकट सुलूर बेस पर ‘लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ (LCA) के बेड़े जिसमें LCA तेज़स जैसे लड़ाकू विमान शामिल हैं, के साथ अपने स्क्वाड्रन को संचालित करने के लिये तैयार है जिसे ‘नंबर-18 फ्लाइंग बुलेट्स’ (Number-18– Flying Bullets) कहा जाता है। इसे वायु सेना प्रमुख ‘एयर चीफ मार्शल’ द्वारा लॉन्च किया गया। इस स्क्वाड्रन का आदर्श वाक्य ‘तीव्र और निर्भय’ है। यह आधुनिक बहु-भूमिका वाले हल्के लड़ाकू विमान के साथ संचालन करने वाला दूसरा भारतीय वायु सेना स्क्वाड्रन होगा। वर्ष 1965 में नंबर-18-स्क्वाड्रन का गठन किया गया था। LCA तेज़स 4 पीढ़ी का एक टेललेस (Tailless), कंपाउंड डेल्टा-विंग एयरक्राफ्ट है जिसे ‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड’ द्वारा विकसित किया गया है। इस सुपरसोनिक लड़ाकू विमान को सबसे हल्का और अपनी तरह का सबसे छोटा विमान माना जाता है।

  • भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) की अधिग्रहण विंग ने टी-90 टैंकों के लिये 1512 माइन प्लाउ (Mine Ploughs) की खरीद हेतु ‘भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड’ (Bharat Earth Movers Limited- BEML) के साथ 557 करोड़ रुपए के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।

इन माइन प्लाउ (Mine Ploughs) को भारतीय बख्तरबंद कोर के टी-90 टैंकों पर फिट किया जाएगा जिससे यदि किसी इलाके में शत्रु सेना माइंस बिछा दे तो उन्हें टैंक के ऊपर रहकर ही खोदकर बाहर निकाला जा सकता है। ‘माइन प्लाउ’ (Mine Ploughs) एक ऐसा यंत्र है जिससे भूमि की खुदाई की जाती है। इसकी मदद से विस्फोटक या माइंस को सावधानीपूर्वक बाहर निकाला जा सकता है। इससे टैंक बेड़े की गतिशीलता कई गुना बढ़ जाएगी। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, अनुबंध के तहत माइन प्लाउ 50% स्वदेशी सामग्री के साथ खरीदे एवं निर्मित किये जाएंगे। सभी माइन प्लाउ वर्ष 2027 तक भारत को मिल जाएंगे। भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (Bharat Earth Movers Limited- BEML): यह एक भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जिसका मुख्यालय बेंगलुरु (कर्नाटक) में है। यह विभिन्न प्रकार के भारी उपकरणों का निर्माण करता है जैसे- परिवहन एवं खनन में उपयोग की जाने वाली भारी मशीनरी आदि।

  • ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड (Ordnance Factory Board) ने भारतीय सेना को पहली अपग्रेडेड आर्टिलरी गन शारंग (155एमएम/45 कैलिबर) सौंपी। 130 एमएम वाली एम-46 आर्टिलरी गन को अपग्रेड करके 155 एमएम तक किया गया।

अपग्रेड होने के बाद इस आर्टिलरी गन की रेंज 27 किलोमीटर से बढ़कर 36 किलोमीटर हो गई। अनुबंध के तौर पर ऑर्डनेंस फैक्ट्री बोर्ड अगले चार वर्षों में 130 एमएम वाली 300 आर्टिलरी गनों को 155 एमएम तक अपग्रेड करेगा। गौरतलब है कि भारत ने 130 एमएम आर्टिलरी गन को रूस से आयात किया था। इस आर्टिलरी गन में 130 एमएम बैरल लगी थी। इस आर्टिलरी गन की मारक क्षमता 27 किलोमीटर थी।

  • रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित सामरिक एवं टैक्टिकल हथियार प्रणाली, रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी की एक विस्तृत शृंखला का डेफएक्सपो 2020 (DefExpo 2020) में प्रदर्शन होगा।

डेफएक्सपो 2020 का 11वाँ द्विवार्षिक संस्करण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 5 से 8 फरवरी, 2020 तक चलेगा। यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) का एक प्रमुख द्विवार्षिक कार्यक्रम है। थीम: इसकी थीम ‘इंडिया: द इमर्जिंग डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग हब’ (India: The Emerging Defence Manufacturing Hub) है। इस एक्सपो में मुख्य फोकस ‘रक्षा क्षेत्र में डिजिटल परिवर्तन’ (Digital Transformation of Defence) पर किया जाएगा। इसके पिछले दो संस्करण चेन्नई और गोवा में आयोजित किये गए थे। यह एक्सपो प्रमुख विदेशी ‘मूल उपकरण निर्माताओं’ को भारतीय रक्षा उद्योग के साथ सहयोग करने और मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करेगा।

  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) के शोधकर्त्ताओं ने चावल के दाने से भी छोटा थ्रू द वाल रडार (Through-The-Wall Radar) विकसित किया है।

इस रडार को संपूरक धातु ऑक्साइड सेमीकंडक्टर (Complementary Metal Oxide Semiconductor-CMOS) तकनीक का उपयोग करके विकसित किया गया है। एक संपूरक धातु ऑक्साइड सेमीकंडक्टर में द्वितीयक वोल्टेज से जुड़े अर्द्धचालकों का एक समूह होता है,ये अर्द्धचालक विपरीत व्यवहार में काम करते हैं। इस रडार में एकल ट्रांसमीटर,तीन रिसीवर और एक उन्नत आवृत्ति का सिंथेसाइज़र, जो रडार संकेतों को उत्पन्न करने में सक्षम है, का प्रयोग किया गया है। इन सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को एक ही चिप पर व्यवस्थित किया गया है। कुछ ही देशों के पास एक ही चिप पर रडार से संबंधित सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को इंस्टाल करने की क्षमता है। इस रडार का उपयोग रक्षा क्षेत्र, स्वास्थ्य क्षेत्र, परिवहन और कृषि क्षेत्रों में किया जाएगा। विशेषता: पारंपरिक रडार की तुलना में ‘थ्रू द वाल रडार’ न केवल दीवार के पीछे व्यक्तियों की उपस्थिति का पता लगा सकता है बल्कि उनके कार्यों एवं शारीरिक मुद्राओं की जानकारी भी प्राप्त कर सकता है। यह रडार जटिल संकेतों का भी उपयोग करता है जिसे चिर्प (Chirp) के रूप में जाना जाता है। इसके लिये निम्नलिखित इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की आवश्यकता होती है- माइक्रोवेव ट्रांसमीटर एक रिसीवर एक आवृत्ति सिंथेसाइज़र हालाँकि यह रडार चिप मूल रूप से हवाई अड्डे के सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिये विकसित की गई है।

इस रडार चिप के विकास के लिये किया गया अनुसंधान भारत सरकार के इंप्रिंट (IMPRINT) कार्यक्रम के तहत वित्तपोषित था। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड इस परियोजना में एक सक्रिय भागीदार है।
  • भारत ने K-4 परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परीक्षण किया है जिसकी मारक क्षमता 3,500 किलोमीटर है।

इसका परीक्षण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम तट पर एक जलमग्न पोन्टून (एक चपटी नाव) से किया गया। एक पोन्टून (Pontoon) से किया गया प्रक्षेपण पनडुब्बी से किये गये प्रक्षेपण जैसा ही होता है। इसे अरिहंत श्रेणी की परमाणु पनडुब्बी में तैनात किया जाएगा जिससे भारत को समुद्र के अंदर से परमाणु हथियारों को लॉन्च करने की क्षमता प्राप्त होगी। भारतीय नौसेना के पास आईएनएस अरिहंत ही एकमात्र ऐसी पनडुब्बी है, जो परमाणु क्षमता से लैस है, इसमें पहले से ही K-15 सागरिका (K-15 Sagarika) या बीओ-5 (BO-5) मिसाइलें लैस हैं जिनकी मारक क्षमता 750 किमी. है। K-4 की अन्य विशेषताएँ हैं- इसे एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम ट्रैक नहीं कर सकता है। यह 200 किलोग्राम वज़नी परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। इस मिसाइल की चक्रीय त्रुटि प्रायिकता (Circular Error Probability-CEP) चीन की मिसाइलों की तुलना में बहुत कम है। चक्रीय त्रुटि प्रायिकता मिसाइल की सटीकता निर्धारित करती है, अर्थात् चक्रीय त्रुटि प्रायिकता जितनी कम होगी मिसाइल की लक्ष्य भेदन क्षमता उतनी ही सटीक होगी।

  • के9 वज्र-टी(K9 VAJRA-T):-भारत के रक्षा मंत्री ने गुजरात के हज़ीरा में लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के बख्‍तरबंद प्रणाली परिसर से के9 वज्र-टी (K9 VAJRA-T) टैंक की 51वें यूनिट को हरी झंडी दिखाई।

यह 155 मिमी./52-कैलिबर की एक स्वचालित होवित्जर (कम वेग के साथ उच्च प्रक्षेपण पथ पर गोले दागने के लिए एक छोटी बंदूक) टैंक है। यह दक्षिण कोरिया के K9 थंडर (K9 Thunder) की तरह है। यह लक्ष्य पर तेज़ गति से निशाना लगाता है और यह भारतीय एवं उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के गोला-बारूद मानकों के अनुकूल है।

रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure- DPP) के 'बाय ग्लोबल’ (Buy Globa)' कार्यक्रम के तहत विकसित किया गया है, जहां विदेशी कंपनियों को भाग लेने की अनुमति है।

दक्षिण कोरिया की हन्व्हा टेकविन (Hanwha Techwin) की लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के साथ प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भागीदारी से विकसित किया गया है। पहले दस के9 वज्र-टी को दक्षिण कोरिया से आयात किया गया है शेष 90 बंदूकें देश में निर्मित की जायेंगी। L&T डिफेंस वर्तमान में के9 वज्र-टी ट्रैक्ड,सेल्फ-प्रोपेल्ड होवित्जर गन्स प्रोग्राम को अमल में ला रहा है। इसका अनुबंध वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा बोली (Global Competitive Bidding) के तहत रक्षा मंत्रालय द्वारा L&T कंपनी के साथ किया गया है।

  • तेजस एलसीए का नौसेना संस्करण(Naval Variant of Tejas LCA):-

स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान एमके1 तेजस (MK1 Tejas) को विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य पर उतारा गया। एमके1 तेजस के विमान वाहक पोत की 200 मीटर लंबी हवाई पट्टी पर उतरने एवं उड़ान भरने के साथ ही भारत,संयुक्त राज्य अमेरिका,यूनाइटेड किंगडम, रूस और चीन के समूह में शामिल हो गया है जिनके पास पहले से ही ऐसी क्षमता है। एमके1 तेजस ने अप्रैल 2012 में पहली बार उड़ान भरी थी और वर्तमान में इसके दो प्रोटोटाइप कार्य कर रहे हैं। एमके1 तेजस एक स्वदेशी लड़ाकू विमान है इसे एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। यह सबसे छोटे-हल्के वज़न का एकल इंजन युक्त ‘बहु-भूमिका निभाने वाला एक सामरिक लड़ाकू विमान’ (Multirole tactical fighter aircraft) है। इसे भारतीय वायु सेना और भारतीय नौसेना के लिये सिंगल-सीट फाइटर एवं दो सीट वाला ट्रेनर वेरिएंट के रुप में विकसित किया जा रहा है।

विदेशी रक्षा उपकरण

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भारतीय सेना केंद्र सरकार द्वारा दी गई आपातकालीन वित्तीय शक्तियों के तहत इज़रायल से हेरॉन निगरानी ड्रोन और स्पाइक-एलआर एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों (Spike-LR Anti-Tank Guided Missiles) प्राप्त करने के लिये तैयार है जिससे सेना की निगरानी एवं मारक क्षमताओं में वृद्धि की जा सके। हेरॉन मानव रहित हवाई वाहन पहले से ही वायु सेना, नौसेना एवं थल सेना में विद्यमान है और लद्दाख क्षेत्र में निगरानी के लिये सेना द्वारा बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जा रहा है। यह 10 किलोमीटर से अधिक की ऊँचाई से टोह लेने वाले एक स्ट्रेच पर दो दिनों से अधिक समय तक लगातार उड़ान भर सकता है। यह इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के मालट यूएवी (Malat-UAV) डिविज़न द्वारा विकसित एक मध्यम-ऊँचाई पर लंबे समय तक उड़ने वाला मानव रहित हवाई वाहन (UAV) है। यह ‘मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस’ (Medium Altitude Long Endurance- MALE) के संचालन में 10.5 किमी. (35000 फीट) ऊँचाई तक की 52 घंटे की अवधि के संचालन में सक्षम है।

स्पाइक, चौथी पीढ़ी की एक इज़रायली ‘फायर एंड फॉरगेट एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल’है।

इसे इज़रायली कंपनी ‘राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम’ द्वारा डिज़ाइन एवं विकसित किया गया है। इसे भूमि से या सेना के विशेष वाहन एवं हेलीकॉप्टर से लॉन्च किया जा सकता है। स्पाइक समूह में निम्नलिखित मिसाइलें शामिल हैं:

  1. 800 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-एसआर (Spike-SR)
  2. 2500 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-एमआर (Spike-MR)
  3. 4000 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-एलआर (Spike-LR)
  4. 8000 मीटर की रेंज वाली स्पाइक-ईआर (Spike-ER)

आतंकवाद

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चीन की अध्यक्षता में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force-FATF) की पूर्ण बैठक आयोजित

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इससे पूर्व FATF के तत्त्वावधान में धन शोधन और आतंकी वित्तपोषण पर गठित यूरेशियन समूह (Eurasian Group on Combating Money Laundering and Financing of Terrorism-EAG) के 32वें पूर्ण अधिवेशन का भी आयोजन किया गया था। इस अधिवेशन में राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) और प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) के अधिकारियों ने आतंकी वित्त-पोषण के रोकथाम हेतु एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। FATF ने COVID-19 से संबंधित अपराधों में वृद्धि देखी, जिनमें धोखाधड़ी, साइबर-अपराध, सरकारी धन या अंतर्राष्ट्रीय वित्त सहायता का दुरुपयोग आदि शामिल है।

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल की स्थापना वर्ष 1989 में G-7 देशों की पहल से एक अंतर-सरकारी निकाय के रूप में हुई थी। मुख्यालय पेरिस में है तथा इसका उद्देश्य मनी लॉड्रिंग,आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये अन्य कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।

FATF की सिफारिशों को वर्ष 1990 में पहली बार लागू किया गया था। उसके बाद 1996, 2001, 2003 और 2012 में FATF की सिफारिशों को संशोधित किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे प्रासंगिक और अद्यतन रहें, तथा उनका उद्देश्य सार्वभौमिक बना रहे। किसी भी देश का FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ होता है कि वह देश आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगाने में विफल रहा है। किसी भी देश का FATF की ‘ब्लैक’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ होता है कि उस देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी।

वर्तमान में FATF में भारत समेत 37 सदस्य देश और 2 क्षेत्रीय संगठन शामिल हैं। भारत FATF का 2010 से सदस्य है।

लश्कर-ए- तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के वित्त के स्रोत को बंद करने में विफल रहने के कारण पाकिस्तान पूर्व की भांति FATF की ‘ग्रे लिस्ट’ में बना हुआ है। पाकिस्तान को पहले आतंकी फंडिंग नेटवर्क और मनी लॉन्ड्रिंग सिंडिकेट्स के खिलाफ 27-पॉइंट एक्शन प्लान का अनुपालन सुनिश्चित करने या "ब्लैक लिस्टिंग" का सामना करने के लिये जून 2020 तक की समय सीमा दी गई थी। हालाँकि वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण यह समयसीमा बढ़ाकर अक्तूबर, 2020 कर दी है।

राष्ट्रपति की मंज़ूरी के साथ गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण (Gujarat Control of Terrorism and Organised Crime- GCTOC) अधिनियम 1 दिसंबर, 2019 से प्रवर्तित हो गया है।

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MCOCA से अधिक व्यापक है यह अधिनियम यह आतंकवाद निरोधक अधिनियम, जिसे तीन राष्ट्रपतियों ने राज्य को वापस भेज दिया था, दो उल्लेखनीय अंतरों के साथ महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (Maharashtra Control of Organised Crime Act- MCOCA) से अत्यधिक प्रेरित है। GCTOC तथा MCOCA के बीच ये दो प्रमुख अंतर हैं: महाराष्ट्र के अधिनियम में शामिल संचार के अवरोधन पर नियंत्रण (Checks on Interception of Communication), गुजरात के अधिनियम में शामिल नहीं है। GCTOCA में ‘आतंकवादी कृत्य’ की परिभाषा में ‘सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने की मंशा’ (Intention to Disturb Public Order) को भी शामिल किया गया है। ये दो अंतर GCTOCA को MCOCA की तुलना में अधिक कठोर और व्यापक बनाते हैं। MCOCA में अवरोधन (Interception in MCOCA) MCOCA की पाँच धाराएँ (13, 14, 15, 16 और 27) संचार के अवरोधन से संबंधित हैं। अधिनियम में कहा गया है कि सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदन किये जाने पर यह अवरोधन 60 दिनों से अधिक अवधि तक जारी नहीं रह सकता है और अवधि के विस्तार के लिये अनुमति की आवश्यकता होगी।

GCTOCA अधिक शक्तिशाली :-गुजरात का अधिनियम केवल अवरोधन के माध्यम से एकत्र किये गए सबूतों की स्वीकार्यता को संबोधित करता है और संचार अवरोधन की प्रक्रिया का उल्लेख नहीं करता है।

इसकी धारा 14 MCOCA की संबंधित धारा की अनुकृति है और इसमें जोड़ा गया है कि: " CrPC, 1973 या उस समय प्रवर्तित किसी अन्य कानून में निहित किसी भी प्रावधान के बावजूद जुटाए गए साक्ष्य मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय में अभियुक्त के विरुद्ध साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होंगे।" “किसी अन्य कानून" को परिभाषित नहीं किया गया है। GCTOCA में MCOCA के अनिवार्य वार्षिक रिपोर्ट के समान भी कोई प्रावधान नहीं है।