समसामयिकी 2020/सूक्ष्म,लघु एवं मध्यम उद्यम
- 6 अक्तूबर, 2020 को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कारों के पहले संस्करण के परिणाम जारी करेंगे। भारत सरकार के उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) ने उत्कृष्ट स्टार्टअप्स एवं पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम बनाने वालों की पहचान करने और उन्हें पुरस्कृत करने के लिये राष्ट्रीय स्टार्टअप पुरस्कारों की शुरुआत की है।
इन पुरस्कारों के पहले संस्करण के लिये 12 क्षेत्रों से आवेदन आमंत्रित किये गए थे। इन्हें कुल 35 श्रेणियों में उप-वर्गीकृत किया गया है। ये 12 क्षेत्र हैं- कृषि, शिक्षा, उद्यम प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, वित्त, खाद्य, स्वास्थ्य, उद्योग 4.0, अंतरिक्ष, सुरक्षा, पर्यटन एवं शहरी सेवाएँ। इनके अलावा स्टार्टअप उन क्षेत्रों से भी चुने जाने हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव पैदा कर रहे हैं और महिला नेतृत्व वाले हैं तथा शैक्षणिक परिसरों में स्थापित हैं। पुरस्कार धनराशि: पुरस्कार जीतने वाले स्टार्टअप को 5 लाख रुपए के नकद पुरस्कार के अलावा संभावित पायलट परियोजनाओं और कार्य आदेशों के लिये संबंधित जन अधिकारियों और कॉरपोरेट के सामने अपने समाधान पेश करने का अवसर भी प्रदान किया जाएगा। मज़बूत स्टार्टअप इको-सिस्टम, इनक्यूबेटर एवं एक्सीलरेटर (Accelerator) को 15-15 लाख रुपए का नकद पुरस्कार दिया जाएगा।
केंद्र सरकार के कार्यक्रम
[सम्पादन]- ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’(MSMEs) की परिभाषा बदलने के बाद भारत सरकार ने ‘मध्यम इकाइयों’ (Medium Units) के लिये निवेश एवं टर्नओवर सीमा को बढ़ाकर क्रमश: 50 करोड़ रुपए और 200 करोड़ रुपए तक बढ़ाने का फैसला किया है। संशोधित परिभाषा के अनुसार, 1 करोड़ रुपए तक के निवेश और 5 करोड़ रुपए से कम के कारोबार करने वाली किसी भी फर्म को ‘सूक्ष्म’(Micro) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा। जबकि 10 करोड़ रुपए तक के निवेश और 50 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली कंपनी को ‘छोटे’ (Small) के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।
- 6 जुलाई को ‘एमएसएमई आपातकालीन उपाय कार्यक्रम’ (MSME Emergency Response Programme) के लिये 750 मिलियन डॉलर के समझौते पर भारत सरकार द्वारा ‘विश्व बैंक’ के साथ हस्ताक्षर किये गए हैं। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्येश्य COVID-19 महामारी के चलते बुरी तरह प्रभावित MSMEs में वित्त का प्रवाह बढ़ाने में आवश्यक सहयोग प्रदान करना है। इसके माध्यम से लगभग 1.5 मिलियन MSMEs की नकदी एवं ऋण संबंधी तात्कालिक आवश्यकताओं को पूरा किया जाएगा ताकि मौजूदा प्रभावों को कम करने के साथ-साथ लाखों नौकरियों को सुरक्षित किया जा सके।
- विश्व बैंक की ऋण प्रदान करने वाली शाखा ‘अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक'(IBRD) से मिलने वाले 750 मिलियन डॉलर के इस ऋण की परिपक्वता अवधि 19 वर्ष है, जिसमें 5 वर्ष की छूट अवधि भी शामिल है।
भारत सरकार का प्रयास यह सुनिश्चित करने पर है कि वित्तीय क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तरलता का प्रवाह ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (NBFCs) की तरफ बना रहे। इसके लिये बैंकिंग क्षेत्र जो जोखिम लेने के डर से बच रहा है वह NBFCs को ऋण देकर अर्थव्यवस्था में निरंतर धनराशि का प्रवाह बनाए रखेगा[१]
- विश्व बैंक समूह अपनी ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम’ (International Finance Corporation-IFC) शाखा के माध्यम से MSMEs क्षेत्र में तरलता को बनाए रखने के लिये भारत सरकार को निम्नलिखित प्रकार से सहयोग प्रदान करेगा-
- तरलता को उन्मुक्त करके (Unlocking liquidity):- इसके तहत बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs)की ओर से MSMEs को दिये जाने वाले ऋणों में अंतर्निहित जोखिम को ऋण गारंटी सहित विभिन्न प्रपत्रों की एक श्रृंखला के माध्यम से समाप्त करने की कोशिश की जाएगी।
- NBFCs तथाऔर MSMEs को मज़बूत करना (Strengthening NBFCs and SFBs):-NBFCs तथा ‘स्मॉल फाइनेंस बैंक’ की वित्त पोषण (फंडिंग) क्षमता बढ़ाने से उन्हें MSMEs की तात्कालिक एवं विविध आवश्यकताओं का पूरा करने में मदद मिलेगी।
इसमें MSMEs के लिये सरकार की पुनर्वित्त सुविधा द्वारा आवश्यक सहयोग देना भी शामिल होगा।
- वित्तीय नवाचारों को मज़बूत करना (Enabling financial innovations):- इसके माध्यम से MSMEs को ऋण देने और भुगतान में फिनटेक एवं डिजिटल वित्तीय सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जाना है।
- 25 जून को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'प्रधानमंत्री मुद्रा योजना' के तहत सभी शिशु ऋण खातों पर 12 माह की अवधि के लिये 2% की ‘ब्याज सब्सिडी योजना’ को मंज़ूरी प्रदान की है। COVID- 19 महामारी के कारण सूक्ष्म तथा लघु उद्यमों की आर्थिक मदद करना है।
- योजना उन ऋणों पर लागू की जाएगी जो निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करते हैं:
- जिन ऋणों का भुगतान 31 मार्च, 2020 तक बकाया था।
- 31 मार्च,2020 को तथा योजना की परिचालन अवधि के दौरान ऋण को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया हो।
- इसमें वे ऋण भी शामिल किये जाएंगे जिन्हे पूर्व में ‘गैर-निष्पादन परिसंपत्ति’(NPA) के रूप में वर्गीकृत किया गया था परंतु बाद में उन्हे निष्पादित परिसंपत्ति के रूप शामिल किया गया हो।
योजना की अनुमानित लागत लगभग 1,542 करोड़ रुपए होगी जिसे भारत सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
- प्रधान मंत्री मुद्रा योजना की शुरुआत 8 अप्रैल, 2015 को गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु / सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख तक का ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से की गई है।
इसके तहत ऋणों को MUDRA ऋण के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ये ऋण वाणिज्यिक बैंक,क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक,लघु वित्त बैंक,सूक्ष्म वित्त संस्थाओं तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा प्रदान किये जाते हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत तीन प्रकार के ऋणों की व्यवस्था की गई:
- शिशु (Shishu) - 50,000 रुपए तक के ऋण,
- किशोर (Kishor) - 50,001 से 5 लाख रुपए तक के ऋण,
- तरुण (Tarun) - 500,001 से 10 लाख रुपए तक के ऋण।
मुद्रा कंपनी को 100% पूंजी का योगदान के साथ ‘भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक’(SIDBI) के पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया है। वर्तमान में मुद्रा कंपनी की अधिकृत पूंजी 1000 करोड़ है और भुगतान की गई पूंजी (Paid Up Capital)750 करोड़ है।
- योजना का क्रियान्वयन SIDBI के माध्यम से किया जाएगा जिसकी परिचालन अवधि 12 माह होगी।
जिन ऋणों को RBI के ‘COVID-19 विनियामक पैकेज’ के तहत प्रदान किया गया है, उनके लिये योजना की परिचालन अवधि 01 सितंबर, 2020 से 31 अगस्त, 2021 तक होगी। जबकि अन्य उधारकर्त्ताओं के लिये योजना की परिचालन अवधि 01 जून, 2020 से 31 मई, 2021 तक होगी।
- केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत घोषित आर्थिक राहत पैकेज के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को दिये जाने वाले ऋण पर ‘जोखिम-भार’ (Risk Weight) लागू करने की अनिवार्यता से छूट देने का अनुरोध किया है।
COVID-19 और देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण औद्योगिक क्षेत्र को हुई क्षति को देखते हुए सरकार द्वारा MSME क्षेत्र के लिये 3 लाख करोड़ रुपए के ऋण की घोषणा की गई थी। MSME क्षेत्र को दिये जाने वाले इस ऋण पर ‘गारंटी युक्त आपातकालीन क्रेडिट लाइन’ (Guaranteed Emergency Credit Line- GECL) के रूप में ‘राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड (National Credit Guarantee Trustee Company Limited-NCGTC) द्वारा 100% गारंटी दी जाएगी। NCGTC द्वारा इस गारंटी के लिये कोई भी शुल्क नहीं लिया जाएगा। केंद्र सरकार के अनुसार, इस योजना के लिये 41,600 करोड़ रुपए के कोष का प्रबंध किया गया है। यह योजना 31 अक्तूबर, 2020 तक या योजना के तहत प्रस्तावित राशि के खत्म होने (जो भी पहले हो) तक लागू रहेगी। इस योजना के तहत दिये गए ऋण की अवधि 4 वर्ष की होगी साथ ही मूलधन पर एक वर्ष के अधिस्थगन प्रदान किया जाएगा। इस योजना के तहत बैंकों द्वारा जारी किये गए ऋण पर 9.25% ब्याज और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) द्वारा जारी ऋण पर 14% ब्याज लागू होगा।
- राष्ट्रीय ऋण गारंटी ट्रस्टी कंपनी लिमिटेड(National Credit Guarantee Trustee Company Limited-NCGTC)की स्थापना 28 मार्च, 2014 को ‘कंपनी अधिनियम, 1956’ के तहत केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसके तहत 5 क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट का संचालन किया जाता है।
शिक्षा ऋण हेतु क्रेडिट गारंटी फंड योजना (Credit Guarantee Fund Scheme for Education Loans- CGFSEL) कौशल विकास हेतु क्रेडिट गारंटी फंड योजना (Credit Guarantee Fund Scheme for Skill Development- CGFSD)
- क्रेडिट गारंटी फंड स्कीम फॉर फैक्टरिंग (Credit Guarantee Fund Scheme for Factoring-CGFF)
- सूक्ष्म इकाइयों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड (Credit Guarantee Fund for Micro Units-CGFMU)
- स्टैंड अप इंडिया हेतु क्रेडिट गारंटी फंड (Credit Guarantee Fund for Stand Up India- CGFSI)
योजना का लाभ: -यह योजना मूलरूप से MSME श्रेणी के उद्यमों के लिये शुरू किया गया है, परंतु अन्य छोटे कारोबारी और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ भी इस योजना का लाभ उठा सकेंगी। अतः इस योजना के माध्यम से COVID-19 के कारण बाज़ार में उत्पन्न हुई तरलता को तात्कालिक रूप से कुछ सीमा तक दूर किया जा सकेगा। ‘शून्य’ जोखिम-भार का अर्थ है कि बैंकों को इस योजना के तहत दिये गए ऋण पर अतिरिक्त पूंजी अलग नहीं रखनी होगी। इससे बैंकों पर गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA) का दबाव कम होगा और बैंकों को अधिक-से-अधिक ऋण उपलब्ध करने के लिये प्रेरित किया जा सकेगा। पिछले सप्ताह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुख अधिकारियों की एक बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री ने बैंकों को बिना तीन ‘C’ {केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI), केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission- CVC) और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India- CAG) के भय के पात्र लोगों को योजना के तहत ऋण उपलब्ध कराने को कहा है। चुनौतियाँ:-इस प्रकार के ऋण पर न्यूनतम 20% जोखिम भार लागू होगा क्योंकि यह ऋण प्रत्यक्ष रूप से सरकार की गारंटी के तहत नहीं जारी किये गए हैं।
- COVID-19 की महामारी से उत्पन्न हुई चुनौतियों के कारण देश के ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (Micro- Small and Medium Enterprises- MSMEs) सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। देश में अधिकांश MSME पहले से ही तरलता की कमी से जूझ रहे थे परंतु लॉकडाउन के कारण व्यापार प्रभावित होने से इनकी समस्या और अधिक बढ़ गई है। MSME क्षेत्र के लगभग 99.5% उद्यम ‘सूक्ष्म’ (Micro) श्रेणी में आते हैं। वर्तमान में भारत के विभिन्न भागों में स्थित अनेक MSME लगभग 11 करोड़ लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराते हैं।
सरकार के विभिन्न प्रयासों के बावज़ूद भी MSMEs का प्रत्यक्ष बैंकिंग क्षेत्र की पहुँच से दूर रहना इस क्षेत्र के संकट का एक बड़ा कारण है।
- MSMEs का विनियमन ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम (Micro, Small and Medium Enterprises Development Act), 2006 के तहत किया जाता है।
सरकार द्वारा प्रस्तावित नई परिभाषा के अनुसार, 5 करोड़ रुपए से कम वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘सूक्ष्म’ उद्यम की श्रेणी में, 5-75 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘लघु’ उद्यम की श्रेणी में और 75-250 करोड़ रुपए के वार्षिक कारोबार वाले MSME को ‘मध्यम’ उद्यम की श्रेणी में रखा गया है।
- आर्थिक चुनौतियाँ:
MSME क्षेत्र में वित्तपोषण की कमी इस क्षेत्र के लिये सबसे सबसे बड़ी चुनौती है, वर्ष 2018 में जारी ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम’ (IFC) की एक रिपोर्ट के अनुसार, MSME क्षेत्र को औपचारिक बैंकिग प्रणाली द्वारा MSMEs की कुल आवश्यकता का एक-तिहाई (लगभग 11 लाख करोड़ रुपए) से कम ही ऋण उपलब्ध कराया जाता है। अर्थात् MSMEs को अधिकांश ऋण अनौपचारिक स्रोतों से प्राप्त होता है, यही कारण है कि भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) द्वारा MSME क्षेत्र में तरलता बढ़ाने के प्रयासों के परिणाम बहुत ही सीमित होते हैं। भुगतान में बिलंब होना MSMEs के लिये दूसरी बड़ी चुनौती है चाहे वह खरीदारों से हो (जिसमें सरकारी संस्थान भी शामिल हैं) या GST रिफंड आदि के तहत मिलने वाली राशि।
समाज के विभिन्न वर्गों तक MSMEs की पहुँच:-वर्तमान में देश में MSME क्षेत्र के 66% उद्यम समाज के निचले वर्ग से जुड़े लोगों द्वारा संचालित किये जाते हैं। इनमें से 12.5% अनुसूचित जाति, 4.1% अनुसूचित जनजाति और 49.7% अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं। सभी श्रेणियों के MSMEs के कर्मचारियों में लगभग 80% पुरुष और मात्र 20% ही महिलाएँ हैं। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो देश के केवल 7 राज्यों में ही लगभग 50% MSMEs स्थित हैं। इनमें उत्तर प्रदेश (14%), पश्चिम बंगाल (14%), तमिलनाडु (8%), महाराष्ट्र (8%), कर्नाटक (6%), बिहार (5%) और आंध्र प्रदेश (5%) हैं।
- दिल्ली में अपिअरी आन व्हील्स (APIARY ON WHEELS) को केंद्रीय सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्यम मंत्री (Union Minister of MSME)द्वारा हरी झंडी दिखाकर की गई।
यह मधुमक्खियों को पालने एवं उनके बक्सों को आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिये खादी और ग्रामोद्योग आयोग की एक अनूठी पहल है।
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने वर्ष 2017 में ‘शहद मिशन’की शुरुआत की थी ताकि इसके तहत मधुमक्खी पालकों को प्रशिक्षित किया जा सके, इस मिशन को पूरा करने के लिये ग्रामीणों को मधुमक्खी पालन करने वाले बक्से वितरित किये जा रहे हैं और शिक्षित किंतु बेरोज़गार युवाओं को मधुमक्खी पालन गतिविधियों के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित करने में मदद की जा रही है।
- अपिअरी ऑन व्हील्स एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो मधुमक्खियों के 20 बॉक्सों को बिना किसी परेशानी के एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकता है।
- इसे देश में मधुमक्खियों के बक्सों का रखरखाव तथा रखरखाव में आने वाली लागत को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- अपिअरी ऑन व्हील्स में एक सौर पैनल प्रणाली है जो बक्सों का तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेड या उससे ऊपर पहुँचते ही स्वचालित तरीके से बक्सों के अंदर लगे पंखों को चालू कर देता है। इसके साथ ही इसमें गर्मियों में मधुमक्खियों को खिलाने के लिये शुगर ड्रिप प्रणाली भी है।
COVID-19 के कारण प्रभावित प्रवासी मज़दूरों,शहरी गरीबों, छोटे व्यापारियों और छोटे किसानों आदि के समक्ष मौजूद कठिनाइयों को दूर करने के लिये आर्थिक पैकेज के दूसरे भाग की घोषणा
[सम्पादन]मई में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज के दूसरे भाग में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं। प्रवासियों को 2 महीने के लिये मुफ्त खाद्यान्न की आपूर्ति:-
- प्रवासी कामगारों के लिये सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को प्रति कामगार दो महीनों अर्थात् मई और जून, 2020 के लिये प्रति महीने प्रति कामगार 5 किलोग्राम की दर से खाद्यान्न और प्रति परिवार 1 किलोग्राम चना का मुफ्त आवंटन किया जाएगा।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में नहीं आने वाले अथवा राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों में बिना राशन कार्ड वाले ऐसे प्रवासी कामगार भी इस योजना के पात्र होंगे, जो वर्तमान में किसी क्षेत्र में फंसे हुए हैं।
- राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को इस योजना के तहत लक्षित वितरण के लिये एक तंत्र विकसित करने का परामर्श दिया जाएगा।
- इसके लिये 8 लाख मीट्रिक टन (Lakh Metric Tonnes-LMT) खाद्यान्न और 50,000 मीट्रिक टन (MT) चने का आवंटन किया जाएगा। इस योजना पर होने वाला कुल 3,500 करोड़ रुपए के व्यय का वहन भारत सरकार द्वारा किया जाएगा।
‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना का विस्तार
- राशन कार्डों की पोर्टेबिलिटी की पायलट योजना (‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ योजना) का 23 राज्यों तक विस्तार किया जाएगा।
- इसके माध्यम से अगस्त, 2020 तक राशन कार्डों की राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टेबिलिटी के द्वारा लगभग 67 करोड़ लाभार्थियों यानी PDS के तहत आने वाली 83 प्रतिशत आबादी को इसके दायरे में लाया जाएगा।
- 100 प्रतिशत राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी के लक्ष्य को मार्च, 2021 तक प्राप्त कर लिया जाएगा।
- इस योजना से एक प्रवासी कामगार और उनके परिवार के सदस्य देश की किसी भी ‘फेयर प्राइस शॉप’ (Fair Price Shops) से PDS का लाभ प्राप्त करने में सक्षम हो जाएंगे। इससे स्थान परिवर्तन करने वाले प्रवासी कामगार देश के किसी भी हिस्से में PDS लाभ लेने में सक्षम हो जाएंगे।
सस्ते किराए के आवास परिसरों की योजना
- केंद्र सरकार प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिये सस्ते किराए पर रहने की सुविधा प्रदान करने हेतु एक योजना शुरू करेगी। सस्ते किराए के ये आवासीय परिसर प्रवासी श्रमिकों, शहरी गरीबों और छात्रों आदि को सामाजिक सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करेंगे।
- वित्त मंत्री के अनुसार, यह कार्य शहरों में सरकारी वित्त पोषित मकानों को रियायती माध्यम से सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत सस्ते किराए के आवासीय परिसरों के रूप में परिवर्तित करके किया जाएगा।
शिशु मुद्रा ऋण के तहत ब्याज की छूट
- भारत सरकार 50,000 रुपए से कम शिशु मुद्रा ऋण लेने वालों में शीघ्र भुगतान करने वाले लोगों को 12 महीने की अवधि के लिये 2 प्रतिशत की ब्याज छूट प्रदान करेगी।
शिशु मुद्रा ऋण लेने वाले लोगों को इस शोषण के तहत लगभग 1,500 करोड़ रुपए की राहत मिलेगी। स्ट्रीट वेंडरों के लिये 5,000 करोड़ रुपए की ऋण सुविधा
- स्ट्रीट वेंडरों पर मौजूदा स्थिति का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, उनको ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करने के लिये एक महीने के भीतर एक विशेष योजना शुरू की जाएगी ताकि उन्हें अपने व्यवसायों को फिर से शुरू करने में सक्षम बनाया जा सके।
- इस योजना के तहत प्रत्येक उद्यम के लिये 10,000 रुपए की प्रारंभिक कार्यशील पूंजी की बैंक ऋण सुविधा दी जाएगी। ज्ञात हो कि यह योजना शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के विक्रेताओं को भी कवर करेगी जो आसपास के शहरी इलाकों में व्यवसाय करते हैं। अनुमान के अनुसार, 50 लाख स्ट्रीट वेंडर इस योजना के तहत लाभान्वित होंगे और उन तक 5,000 करोड़ रुपए का ऋण प्रवाहित होगा।
क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme) का विस्तार
- मध्यम आय समूह के लिये (6 से 18 लाख रुपए के मध्य वार्षिक आय) क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme) का मार्च 2021 तक विस्तार किया जाएगा।
- क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (CLSS) प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) का एक घटक है जिसके तहत ऋण सब्सिडी प्रदान की जाती हैं। केंद्र सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत मुख्य रूप से मध्यम आय समूह वाले लोगों के लिये वर्ष 2017 में की गई थी। इस योजना का उद्देश्य आम लोगों को होम लोन (Home Loan) के लिये प्रोत्साहन देना था, ताकि लोग अपना घर खरीद सकें और आवासन क्षेत्र में अधिकाधिक निवेश हो सके।
- इससे वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 2.5 लाख मध्यम आय वाले परिवारों को लाभ होगा और आवासन क्षेत्र (Housing Sector) में 70,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश होगा।
- आवास क्षेत्र को बढ़ावा देकर ये बड़ी संख्या में नौकरियाँ पैदा करेगा और इस्पात, सीमेंट, परिवहन व अन्य निर्माण सामग्री की मांग को प्रोत्साहित करेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने में मदद मिलेगी।
रोज़गार सृजन के लिये कैम्पा फंड (CAMPA Funds) का उपयोग:-क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (CAMPA) के अंतर्गत लगभग 6000 करोड़ रुपए की राशि का प्रयोग शहरी क्षेत्रों सहित वनीकरण एवं वृक्षारोपण कार्यों, वन प्रबंधन, मृदा एवं आर्द्रता संरक्षण कार्यों, वन सरंक्षण, वन एवं वन्यजीव संबंधी बुनियादी सुविधाओं के विकास, वन्यजीव संरक्षण एवं प्रबंधन आदि में किया जाएगा।
- किसानों के लिये 30,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त आपातकालीन कार्यशील पूंजी
ग्रामीण सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की फसल ऋण संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) द्वारा 30,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त पुनर्वित्तीयन सहायता प्रदान की जाएगी। देश भर में इससे लगभग 3 करोड़ किसानों को फायदा होगा, जिनमें अधिकांश छोटे और सीमांत किसान शामिल हैं, इससे किसानों की रबी की फसल कटाई के बाद और खरीफ फसल की मौजूदा ज़रूरते पूरी होंगी।
राज्य सरकार के कार्यक्रम
[सम्पादन]- रीस्टार्ट’ (ReSTART )कार्यक्रम की शुरुआत आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण प्रभावित राज्य के MSMEs क्षेत्र को सहारा देने के लिये किया है।
इस कार्यक्रम से MSMEs की 98,000 इकाइयों को लाभ होने की उम्मीद जताई गई है जो 10 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करती हैं।
- इसके अंतर्गत MSMEs सेक्टर के पुनरुद्धार के लिये आंध्रप्रदेश सरकार 1100 करोड़ रुपए खर्च करेगी। मुख्यमंत्री ने 450 करोड़ रुपए की पहली किस्त जारी करते हुए कहा कि MSMEs सेक्टर की फर्मों को कम ब्याज दरों पर इनपुट पूंजी ऋण प्रदान करने के लिये 200 करोड़ रुपए का एक विशेष कोष बनाया जाएगा।[२]
इसके अंतर्गत राज्य सरकार ने MSMEs से खरीदे जाने वाले लगभग 360 उत्पादों की पहचान की है जिनकी सरकारी खरीद पर 45 दिनों के अंदर पैसों का भुगतान किया जाएगा। कुल खरीद में से लगभग 25% सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों से, 4% SC/ST सामुदायिक उद्यमों से और 3% महिला उद्यमियों से खरीदा जाएगा। इस पहल से 72531 से अधिक सूक्ष्म (Micro), 24252 लघु (Small) और 645 मध्यम (Medium) उद्योगों को लाभ होगा।