समसामयिकी 2020/COVID-19 से भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारने के उपाय
COVID-19 के कारण प्रभावित हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था को फिर से सुचारु रूप से गति देने के लिये ‘हेलिकाॅप्टर मनी’ (Helicopter Money) जैसी अवधारणा चर्चा के केंद्र बिंदु में है। यह (हेलिकाॅप्टर मनी) एक अपरंपरागत मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका उद्देश्य किसी संघर्षरत अर्थव्यवस्था को फिर से गति देना होता है। इसमें बड़ी धनराशि का मुद्रण किया जाता है और फिर इसे जनता में वितरित किया जाता है। जिससे अर्थव्यवस्था में माँग-आपूर्ति के मध्य एक संतुलन कायम होता है परिणामतः अर्थव्यवस्था पुनः पटरी पर आ जाती है। ‘हेलिकाॅप्टर मनी’ की अवधारणा अमेरिकी अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन (Milton Friedman) द्वारा दी गई है। यह मूल रूप से ‘एक हेलीकॉप्टर द्वारा आसमान से पैसा गिराने’ को दर्शाता है। मिल्टन फ्रीडमैन ने इस शब्द (हेलिकाप्टर मनी) का इस्तेमाल ‘एक संघर्षरत अर्थव्यवस्था को पुनः ट्रैक पर लाने के लिये अप्रत्याशित रूप से धन की डंपिंग’ करने के लिये किया था। इस तरह की नीति के तहत केंद्रीय बैंक ‘सरकार के माध्यम से धन की आपूर्ति को प्रत्यक्ष रूप से बढ़ाता है और माँग एवं मुद्रास्फीति को बढ़ाने के उद्देश्य से जनसंख्या में नई नकदी वितरित करता है।’
राज्य सरकारों की पहल
[सम्पादन]गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने एक ‘आत्मनिर्भर गुजरात सहाय योजना’ (Aatmanirbhar Gujarat Sahay Yojana) की घोषणा की है जो छोटे उद्यमियों और स्वरोज़गारों जैसे इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर एवं बढ़ई को तीन वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करती है। इस योजना का लक्ष्य COVID-19 के कारण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में दैनिक/मासिक आमदनी से प्रभावित सब्जी विक्रेता, निर्माण श्रमिक आदि को भी शामिल करना है। इस योजना के आवेदकों को क्रेडिट सोसाइटियों और शहरी एवं ज़िला सहकारी बैंकों जो 5,000 करोड़ रुपए के संपार्श्विक-मुक्त ऋण सौंपेंगे, के साथ अपने मामले को आगे बढ़ाने में मदद करने के लिये गारंटरों की आवश्यकता होगी।
- गुजरात सहकारी समिति अधिनियम,1961 के तहत पंजीकृत कुल 260 शहरी सहकारी बैंक, 18 ज़िला सहकारी बैंक और 6,500 क्रेडिट सहकारी समितियाँ सफल आवेदकों को 2% की ब्याज दर पर संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करेंगी।
यह योजना 21 मई से शुरू होगी और ऋण देने वाली एजेंसियाँ 31 अगस्त तक आवेदन स्वीकार करेंगी।
आत्मनिर्भर भारत अभियान तथा आर्थिक प्रोत्साहन
[सम्पादन]मिशन को दो चरणों में लागू किया जाएगा:
- प्रथम चरण: -इसमें चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि स्थानीय विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।
- द्वितीय चरण:-इस चरण में रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
आत्मनिर्भर भारत पाँच स्तंभों पर खड़ा होगा:
- अर्थव्यवस्था (Economy):-जो वृद्धिशील परिवर्तन (Incremental Change) के स्थान पर बड़ी उछाल (Quantum Jump) पर आधारित हो;
- अवसंरचना (Infrastructure):-ऐसी अवसंरचना जो आधुनिक भारत की पहचान बने;
- प्रौद्योगिकी (Technolog): -21 वीं सदी प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्था पर आधारित प्रणाली;
- गतिशील जनसांख्यिकी (Vibrant Demography):-जो आत्मनिर्भर भारत के लिये ऊर्जा का स्रोत है;
- मांग (Demand):-भारत की मांग और आपूर्ति श्रृंखला की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिये।
आत्मनिर्भर भारत के लिये आर्थिक प्रोत्साहन:-प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत निर्माण की दिशा में विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। यह पैकेज COVID-19 महामारी की दिशा में सरकार द्वारा की गई पूर्व घोषणाओं तथा RBI द्वारा लिये गए निर्णयों को मिलाकर 20 लाख करोड़ रुपये का है, जो भारत की ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (Gross domestic product- GDP) के लगभग 10% के बराबर है। पैकेज में भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों (Land, Labour, Liquidity and Laws- 4Is) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के तहत घोषित राहत पैकेज की पाँचवीं और अंतिम किश्त में निजी क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विशेष ध्यान
[सम्पादन]- केंद्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की बढ़ती मांग को देखते हुए इस किश्त में मनरेगा के बजट परिव्यय में 65% की वृद्धि की गई है।
- साथ ही राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद’ पर राज्यों की ऋण लेने की सीमा को 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
- केंद्र सरकार की नई नीति के तहत निजी कंपनियों को सभी क्षेत्रों में अनुमति दी गई है जबकि सार्वजनिक कंपनियों/उद्यमों को रणनीतिक क्षेत्रों के लिये सीमित रखा गया है।
- इसके अतिरिक्त कॉर्पोरेट उद्यमों को ‘भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता कोड’ (IBC) और कंपनी अधिनियम (Company Act) में भी कुछ परिवर्तनों के माध्यम से राहत दी गई है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार:-COVID-19 और इसके नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन से औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने के कारण पिछले कुछ दिनों में देश में शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ बड़ी संख्या में मज़दूरों का पलायन देखने को मिला है।
ऐसे में आने वाले दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की बढती मांग को पूरा करने के लिये केंद्र सरकार ने मनरेगा योजना के तहत 40,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि जारी करने की घोषणा की है। वर्ष 2006 में 200 ज़िलों से शुरू किये गए मनरेगा कार्यक्रम के तहत हाल के वर्षों में वर्ष 2010-11 (5.5 करोड़ परिवार) के बाद पुनः रोज़गार की मांग में काफी वृद्धि देखने को मिली है। (2018-19 में 5.27 करोड़ और 2019-20 में 5.47 करोड़) केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में मई, 2020 में मनरेगा के तहत पंजीकृत श्रमिकों की संख्या में 40-50% की वृद्धि देखी गई है। हाल ही में केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत औसत दैनिक मज़दूरी को 182 बढ़ाकर 202 रुपए कर दिया था।
- संशोधित ऋण सीमा: -केंद्र सरकार ने वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए राज्यों को उनके राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product- GSDP) पर ऋण लेने की सीमा को 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया है।
सरकार के इस फैसले के परिणामस्वरूप राज्य सरकारों को 4.28 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आर्थिक मदद दी जा सकेगी। हालाँकि राज्यों को बढ़ी हुई ऋण सीमा का लाभ लेने के लिये केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कुछ शर्तों का पालन करना पड़ेगा। संशोधित ऋण सीमा की शर्तें: केंद्र सरकार द्वारा संशोधित ऋण सीमा में से मात्र 0.5% ही बिना किसी शर्त के जारी किया जा सकता है, जबकि बाकी 1.5% के लिये राज्यों को कुछ अनिवार्य शर्तों का पालन करना होगा। इस संशोधित सीमा के तहत GSDP पर मिलने वाले 1% ऋण को कुछ शर्तों के आधार पर 0.25% की चार किश्तों में जारी किया जाएगा। ये चार किश्तें राज्य सरकारों को राशन वितरण प्रणाली में सुधार (एक देश, एक राशन कार्ड), स्थानीय निकायों में सुधार, विद्युत वितरण प्रणाली और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) की दिशा में आवश्यक सुधारों के लिये दी जाएंगी। शेष 0.5% ऋण की अनुमति के लिये उपरोक्त चार लक्ष्यों में से तीन लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक होगा।
- निजी क्षेत्र को बढ़ावा:-सरकार द्वारा प्रस्तावित नई नीति के तहत रणनीतिक क्षेत्रों के साथ ही सभी औद्योगिक क्षेत्रों को निजी क्षेत्र के लिये खोल दिया जाएगा।
इस नई नीति के तहत ऐसे रणनीतिक क्षेत्रों की सूची जारी की जाएगी जहाँ निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ कम-से-कम एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी/उपक्रम (Public Sector Undertakings- PSUs) की उपस्थिति आवश्यक होगी। सरकार की योजना के तहत अन्य सभी क्षेत्रों में व्यवहारिकता के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। प्रस्तावित योजना के तहत सामान्यतः रणनीतिक क्षेत्रों में PSUs की अधिकतम संख्या चार ही होगी बाकी अन्य कंपनियों के लिये निजीकरण, विलय आदि के विकल्प खुले होंगे। वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में भी केंद्रीय वित्तमंत्री ने गैर-वित्तीय सार्वजनिक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी को 51% से कम करने की बात कही थी।
- अन्य आर्थिक सुधार:-सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को विदेशी शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध करने के नियमों में ढील देने का प्रस्ताव किया है।
केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार, COVID-19 से जुड़े ऋण को इनसॉल्वेंसी कार्यवाही शुरू करने का आधार नहीं माना जाएगा और साथ ही केंद्र सरकार द्वारा अगले एक वर्ष के लिये दिवालियापन से जुड़ी कोई कार्रवाई नहीं शुरू की जाएगी। ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों’ (Micro, Small & Medium Enterprises- MSME) की इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया शुरू करने की न्यूनतम सीमा बढ़ा कर 1 करोड़ रुपए कर दी गई है।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रस्तावित सुधार:-केंद्रीय वित्तमंत्री ने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधारों हेतु ‘स्वास्थ्य और देखभाल केंद्रों’ के सरकारी खर्च में वृद्धि और हर ज़िले में संक्रामक रोगों के लिये विशेष अस्पताल तथा ब्लॉक स्तर पर प्रयोगशालाओं की स्थापना की बात कही।
हालाँकि स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रस्तावित सुधारों के संदर्भ में किसी वित्तीय परिव्यय की जानकारी नहीं दी गई है।
- शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी योजनाएँ:-COVID-19 और लॉकडाउन के कारण हो रहे अकादमिक नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार द्वारा ‘पीएम ई-विद्या' (PM e-Vidya) योजना की घोषणा की जाएगी।
इस योजना के तहत छात्रों को विभिन्न माध्यमों के जरिये शैक्षिक सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी, साथ ही कक्षा 1 से 12 के लिये अलग-अलग टीवी चैनलों की शुरुआत भी की जाएगी। इससे पहले केंद्र सरकार ने इस माह के अंत तक देश में शीर्ष के 100 विश्वविद्यालयों के द्वारा ऑनलाइन कक्षाओं को चालू किये जाने की योजना की घोषणा की थी।
COVID-19: आर्थिक संकट
[सम्पादन]COVID-19 लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में अभूतपूर्व गिरावट आई है। इसका अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों पर वर्ष 2008 के आर्थिक संकट (लेहमन संकट) से भी बुरा प्रभाव देखने को मिलता है। असमानताएँ:-वर्ष 2008 का आर्थिक संकट का प्रभाव धीमी गति से लंबी अवधि के पश्चात् प्रकट हुए, जबकि वर्तमान संकट के समय 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के पश्चात् आर्थिक गतिविधियों में अचानक गिरावट आई है। बिजली उत्पादन और यात्री वाहनों की बिक्री पर इसका तत्काल प्रभाव पड़ा है। नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर के आँकड़ों के अनुसार, 24 मार्च के पश्चात् बिजली उत्पादन में 26 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसके विपरीत सितंबर और अक्तूबर 2008 में आर्थिक संकट के चरम पर होने के बावजूद बिजली उत्पादन स्थिर था, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों में कोई रुकावट नहीं थी। दिसंबर 2008 की तिमाही में कारों की बिक्री में गिरावट आई, लेकिन बाद में इसमें तीव्र गति से सुधार भी हो गया। मार्च 2020 में यात्री कारों की बिक्री वार्षिक आधार पर 51%और मासिक आधार पर 47% कम रही। यह अब तक की सबसे तीव्र गिरावट है। COVID-19 संकट उत्पन्न होने के मूल कारणों में स्वास्थ्य और स्वच्छता संबंधी कारक हैं। वर्तमान संकट से पहले चीन तथा बाद में अन्य देशों में उत्पादन की आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई। इसके विपरीत वर्ष 2008 की मंदी ने पहले अमेरिकी वित्तीय प्रणाली को प्रभावित किया, जिससे अमेरिका में आवास की कीमतों और उत्पादन में गिरावट आई। बाद में इसने अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग क्षेत्र और वित्तीय बाज़ारों के साथ वैश्विक आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया। वर्तमान लॉकडाउन में एक स्वैच्छिक और अस्थायी प्रावधान के साथ अर्थव्यवस्था पर रोक लगाई गई है ताकि संक्रमण फैलने की दर को कम किया जा सके। 2008-09 में सभी कार्यों का उद्देश्य वित्त को पुनर्जीवित करना था ताकि अर्थव्यवस्था को बढ़ती सुस्ती से बाहर निकाला जा सके। इस समय वित्तीय संस्थानों में धन की कमी प्रमुख समस्या थी।
समानताएँ दोनों ही संकटों के उद्भव और प्रसार में अनिश्चितता की विद्यमानता रही है। वर्तमान संकट में कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता। वर्ष 2008 के संकट के समय बिना नौकरी और संपत्ति वाले अमेरिकियों को ऋण दिया गया तथा उसके बुरे प्रभावों को छुपाए जाने के कारण अनिश्चितता में वृद्धि हुई। वर्तमान में चीन पर भी COVID-19 के जोखिमों को भी छुपाए जाने का आरोप लगाया जा रहा है। प्रमुख देशों के स्टॉक एक्सचेंजों में उनके मूल्य के एक-चौथाई भाग तक शुरुआती गिरावट दोनों संकटों के बीच समानता है। वर्ष 2008 के आर्थिक संकट द्वारा ‘ग्लोबल सिस्टमिक’ रूप से महत्त्वपूर्ण बैकों को तथा COVID-19 द्वारा वैश्विक आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करने के कारण दोनों समय सार्वजनिक प्राधिकरणों की भूमिका में वापसी हुई, क्योंकि सरकारों द्वारा मौद्रिक और राजकोषीय सहायता करनी पड़ी।