सामान्य अध्ययन २०१९/मुद्रा,बैंकिंग,वित्त और बीमा

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सामान्य अध्ययन २०१९
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  • द इकोनॉमिक इंटेलिजेंस यूनिट के वित्तीय समावेशन रिपोर्ट के अनुसार,वित्तीय समावेशन के लिये अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने में भारत 5वें स्थान पर है। इस अध्ययन में 11 लिंग-आधारित संकेतक शामिल किये जाते हैं।
  • फेडरल रिज़र्व के पूर्व अध्यक्ष पॉल वोल्कर,जिन्होंने 1980 के दशक में अमेरिका की मुद्रास्फीति से निपटने में मदद की तथा वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान वॉल स्ट्रीट सुधारों को प्रेरित किया था,का निधन हो गया। वर्ष 2008 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था को आर्थिक संकट से उबारने के लिये, उन्होंने ‘वोल्कर नियम’ का प्रस्ताव दिया था।

वोल्कर नियम में बैंकों को जमाकर्त्ताओं की नकदी के साथ उच्च जोखिम वाले निवेश करने से प्रतिबंधित किया गया था। वोल्कर नियम बैंकिंग संस्थाओं को प्रतिबंधित करता है-

  1. बैंकों को प्रतिभूतियों,डेरिवेटिव्स और कमोडिटी फ्यूचर्स के अल्पकालिक स्वामित्व व्यापार के लिये अपने स्वयं के खातों का उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाता है।
  2. बैंकों या बीमित डिपॉजिटरी संस्थाओं को हेजफंड या निजी इक्विटी फंड में स्वामित्व हितों को प्राप्त करने के लिये कुछ छूट प्रदान करते हुए प्रतिबंध लगाता है।

स्वामित्व व्यापार (Proprietary Trading) तब होता है जब कोई बैंक या फर्म प्रत्यक्ष लाभ के उद्देश्य से अपने स्वयं के धन का निवेश करता है। इस तरह बैंक या फर्म अपने ग्राहकों के पैसे का उपयोग करने के बजाय अपने स्वयं के खाते से संबंधित स्टॉक (Stock),डेरिवेटिव्स (Derivatives),बॉण्डस (Bonds),कमोडिटीज़ या अन्य वित्तीय साधनों का इस्तेमाल करता है।

  • व्यापार नीति पर सुरजीत एस.भल्ला की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय सलाहकार समूह(HLAG) ने सरकार को एलिफेंट बाॅण्ड जारी करने का सुझाव दिया है। यह किसी राष्ट्र द्वारा जारी 25 वर्षीय सॉवरेन बाॅण्ड होते हैं। ये बाॅण्ड उन लोगों को जारी किये जाते हैं जो अपनी पहले से अघोषित आय को घोषित करते हैं।

बाॅण्ड ग्राहक अपनी अघोषित आय का 40% एलिफेंट बाॅण्ड में निवेश करेंगे तथा उन्हें एक निश्चित कूपन प्रतिभूति (Fixed Coupon Security) जारी की जाएगी।

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत स्थापित इस उच्च-स्तरीय सलाहकार समूह का अनुमान है कि इससे भारत के विदेशों में जमा काले धन का लगभग 500 बिलियन डॉलर तक प्राप्त किया जा सकता है। इससे वास्तविक ब्याज दर में भारी कमी आएगी तथा रुपए को मज़बूती प्रदान करने में भी सहायता मिलेगी। इन बाॅण्ड से प्राप्त राशि का उपयोग बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये किया जा सकेगा। बाॅण्ड से प्राप्त राशि का 45% जमाकर्त्ता के पास जमा की जाएगी तथा शेष 15% राशि सरकार द्वारा कर के रूप में वसूली जाएगी।
आय घोषित करने वालों को “विदेशी मुद्रा,काले धन कानूनों (Foreign Exchange, Black Money Laws) और कराधान कानूनों सहित सभी कानूनों से प्रतिरक्षा प्राप्त होगी। अघोषित संपत्ति वाले लोग केवल 15 प्रतिशत कर का भुगतान करेंगे और एलिफेंट बाॅण्ड के प्रावधानों के तहत उनके लिये कोई दंड नहीं होगा।

इंडोनेशिया, पाकिस्तान, अर्जेंटीना और फिलीपींस जैसे देशों ने भी बिना किसी दंड के जोखिम के अघोषित आय का खुलासा करने वाले व्यक्तियों के लिये कर माफी योजनाएँ शुरू की हैं।

  • ऋण मेलों के आयोजन का मुख्य उद्देश्य बाज़ार में तरलता को बढ़ाना है।

वित्त मंत्रालय का यह कदम बैंकों को मजबूर करेगा की वे गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों,जो कि देश में छोटे व्यवसायों को ऋण प्रदान करने के लिये प्रमुख स्रोत हैं,को आवश्यक धन की पूर्ति करें ताकि वह धन अंतिम ग्राहकों तक पहुँच सके। ग्राहकों को ऋण वितरण हेतु बैंक तथा NBFC एक-दूसरे के साथ भागीदारी करेंगे।

  • इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (India Post Payment Bank-IPPB) की पहली वर्षगाँठ के अवसर पर आधार सक्षम भुगतान सेवाएँ (Aadhaar Enabled Payment System-AEPS) शुरू करने की घोषणा की गई है।
1 सितंबर, 2018 को संचार मंत्रालय में डाक विभाग के अंतर्गत स्थापित इस बैंक की 100 फीसदी हिस्सेदारी पर भारत सरकार का स्वामित्व है।
  • अर्थव्यवस्था की गति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के 10 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का 4 संस्थाओं में विलय की घोषणा की है। इससे बैंकों की संख्या घटकर 18 से घटकर 12 हो जाएगी।
विलय में शामिल बैंक हैं:-
  1. ओरियन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स (Oriental Bank of Commerce) तथा यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (United Bank of India) का विलय पंजाब नेशनल बैंक (Punjab National Bank) में।
  2. सिंडिकेट बैंक (Syndicate Bank) का विलय केनरा बैंक (Canara Bank) में।
  3. आन्ध्रा बैंक (Andhra Bank) तथा कॉर्पोरेशन बैंक (Corporation Bank) का विलय यूनियन बैंक ऑफ इंडिया (Union Bank of India) में।
  4. इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank) का विलय इंडियन बैंक (Indian Bank) में।
  • नई दिल्ली स्थित कांस्टीट्यूशनल क्लब में हुए एक कार्यक्रम के दौरान दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (DAY-NULM) हेतु सस्ता कर्ज़ एवं ब्याज अनुदान पहुँच यानी PAiSA [Portal for Affordable Credit and Interest Subvention Access] पोर्टल को गवर्नेंस गोल्ड अवॉर्ड SKOCHपुरस्कार दिया गया है।
नवंबर 2018 में प्रारंभ PAiSA एक केंद्रीकृत आईटी प्लेटफॉर्म है। इसके तहत ब्याज अनुदान जारी करने को यह सरल एवं सुव्यवस्थित बनाता है।

यह बैंकों द्वारा प्रक्रिया शुरू होने यानी प्रोसेसिंग,भुगतान,निगरानी और ब्याज अनुदान के दावों की ट्रैकिंग के लिये मासिक आधार पर शुरू से अंत तक ऑनलाइन समाधान उपलब्ध कराता है। स्वरोज़गार कार्यक्रम के लाभार्थियों से संबंधित अनुदान के दावों को बैंकों द्वारा कोर बैंकिंग समाधान के ज़रिये अपलोड किया जाता है, जो संबंधित ULB और राज्यों द्वारा सत्यापित और मंज़ूर किये जाते हैं। स्वीकृत दावे की राशि DBT के माध्यम से सीधे लाभार्थी के कर्ज़ खाते में चली जाती है। अनुदान राशि के खाते में पहुँचने की सूचना लाभार्थी को उसके मोबाइल नंबर पर एसएमएस भेजकर भी दी जाती है। इलाहाबाद बैंक द्वारा इस पोर्टल को डिज़ाइन और विकसित किया गया है। अभी तक 28 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश और 21 सरकारी बैंक, 18 प्राइवेट बैंक तथा 35 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों समेत 74 बैंक इस पोर्टल में शामिल किये जा चुके हैं। PAiSA के ज़रिये अब तक लगभग 1.50 लाख लाभार्थियों को लगभग 27 करोड़ रुपए के ब्याज अनुदान का भुगतान किया गया है।

  • बियर मार्केट(Bear Market)

भारतीय शेयर मार्केट लगभग 20 महीने से बियर मार्केट (Bear Market) की तरह कार्य कर रहा है। इस समयावधि में भारतीय शेयर मार्केट में बियर (Bear) अर्थात् मंदी की स्थिति बनी हुई है। बियर मार्केट के दौरान शेयर की कीमतें लगातार गिरती हैं, जिसके परिणामस्वरूप निवेशकों का शेयर मार्केट में निवेश कम कर दिया जाता है। बियर मार्केट के दौरान अर्थव्यवस्था में विकास दर धीमी हो जाती है और बेरोज़गारी बढ़ जाती है क्योंकि कंपनियाँ श्रमिकों को काम देना बंद कर देती हैं। इस समय लोग खरीदने की तुलना में बेचना पसंद करते हैं इसलिये आपूर्ति की तुलना में मांग काफी कम होती है और परिणामस्वरूप कीमतों में गिरावट आ जाती है। इस समय शेयर मार्केट नकारात्मकता की स्थिति में रहता है क्योंकि निवेशक अपने पैसे को इक्विटी से निकालकर निश्चित-आय प्रतिभूतियों (Fixed-income Securities) में स्थानांतरित कर देते हैं। बियर मार्केट के दौरान अधिकांश व्यवसाय भारी मुनाफे को दर्ज करने में असमर्थ होते हैं क्योंकि उपभोक्ता पर्याप्त खर्च नहीं कर रहे होते हैं।

  • भारत की तत्काल भुगतान सेवा(India’s Immediate Payment Service-IMPS)

भारत की तत्काल भुगतान सेवा (India’s Immediate Payment Service-IMPS) को उन 54 देशों के विश्लेषण में दुनिया की सबसे अच्छी वास्तविक समय भुगतान सेवा का दर्जा दिया गया है, जहाँ इस प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। IMPS पूरे भारत में प्रयोग होने वाली वास्तविक समय में धन हस्तांतरण सेवा है जिसके अंतर्गत इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा से धन का किसी अन्य खाते में हस्तांतरण किया जा सकता है। इसका प्रयोग निजी या वाणिज्यिक दोनों प्रकार से किया जा सकता है। IMPS का इस्तेमाल 24*7 तथा बैंक अवकाश के दौरान भी किया जा सकता है। इसके प्रयोग से जुड़ी सबसे मुख्य बात यह है कि इसे भारत के किसी भी बैंक तथा किसी भी प्लेटफॉर्म - मोबाइल, इंटरनेट और एटीएम (ATM) से किया जा सकता है। IMPS के लाभ:

  1. तत्काल फंड हस्तांतरण
  2. कभी भी प्रयोग किया जा सकता है
  3. सुरक्षित हस्तांतरण
  4. आसानी से उपलब्ध
  5. लागत
  6. लागत प्रभावी

भारतीय स्टेट बैंक ने तरलता संबंधी सुधारों का हवाला देते हुए अपनी जमा दरों को कम कर दिया है। लघु बचत योजनाओं की प्रतिस्पर्द्धात्मक उच्च ब्याज दर तथा सार्वजनिक भविष्य निधि एवं राष्ट्रीय बचत प्रमाण-पत्र की उच्च ब्याज जमा दर के कारण वाणिज्यिक बैंकों को जमा दरें उच्च रखनी पड़ रही है। बैंक में जमाकर्त्ताओं के जमा पर उच्च ब्याज दिये जाने के चलते वाणिज्यिक बैंकों की लागत बढ़ जाती है अर्थात् उन्हें उच्च लागत वहन करना पड़ता है। RBI द्वारा ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) के माध्यम से पिछले दो महीनों में तरलता की स्थिति में सुधार के प्रयास किये गए हैं। ओपन मार्केट ऑपरेशन का सहारा लेना सरकारी प्रतिभूतियों के प्रति कम रुझान को प्रदर्शित करता है।

  • रिज़र्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्रक बैंकों (Public Sector Bank-PSB) में निर्वाचित निदेशकों की नियुक्ति के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये है।

प्रमुख बिंदु: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्रक बैंकों (PSB) के निर्वाचित निदेशकों को संबंधित बैंकों के बोर्ड की नामांकन और पारिश्रमिक समिति (Nomination and Remuneration Committee) द्वारा नियुक्त किया जाएगा। रिज़र्व बैंक ने निर्वाचित निदेशकों के लिये ‘उपयुक्त और योग्य’ (Fit and Proper) मानदंड के आधार पर दिशा-निर्देश जारी किये हैं और साथ ही सभी PSB के लिये नामांकन और पारिश्रमिक समिति के गठन को भी अनिवार्य किया है। इस समिति में कम-से-कम 3 सदस्य बोर्ड के गैर-कार्यकारी निदेशक होने चाहिये जिनमें से स्वतंत्र निदेशकों की संख्या आधे से कम नहीं होनी चाहिये। साथ ही कम-से-कम एक सदस्य बोर्ड की जोख़िम प्रबंधन समिति से भी शामिल किया जाना चाहिये। बैंक के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष (Non-Executive Chairperson) को समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है परंतु वह ऐसी समिति की अध्यक्षता नहीं करेगा। दिशा-निर्देशों के अनुसार निर्वाचित निदेशक का कार्यकाल 3 वर्ष का होगा और उसे पुनः निर्वाचित किया जा सकता है परंतु वह 6 वर्ष से अधिक समय तक पद पर नहीं रह सकता है। कोई संसद सदस्य, विधान मंडल सदस्य, नगरपालिका परिषद् या किसी स्थानीय निकाय का कोई सदस्य निदेशक पद का उम्मीदवार नहीं होना चाहिये। स्टॉक ब्रोकिंग या किसी अन्य बैंक अथवा वित्तीय संस्थान के बोर्ड का कोई सदस्य किराया क्रय (Hire Purchase), साहूकारी (Money Lending), निवेश, लीजिंग व अन्य सह-बैंकिंग (Para Banking) गतिविधियों से संबंधित व्यक्ति नियुक्ति का पात्र नहीं हो सकता है। RBI के दिशा-निर्देशों के अनुसार, उम्मीदवार किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट की फर्म में भागीदार के रूप में कार्यरत नहीं होना चाहिये, जो वर्तमान में किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक या भारतीय स्टेट बैंक के वैधानिक केंद्रीय लेखा परीक्षक (Statutory Central Auditor) के रूप में संलिप्त है

  • बायबैक टैक्स(Buyback Tax)

वित्त मंत्रालय के अनुसार बजट 2018-19 में शेयर बायबैक पर प्रस्तावित 20 फीसद के कर को लागू करने की व्यावहारिता पर गौर किया जाएगा।

जब कोई कंपनी अपने ही शेयर की निवेशकों से खरीद करती है तो इसे बायबैक कहा जाता है। बायबैक की प्रक्रिया पूरी होने के बाद इन शेयरों का अस्तित्व खत्म हो जाता है। बायबैक के लिये मुख्यत: टेंडर ऑफर या ओपन मार्केट का इस्तेमाल किया जाता है।

कंपनी द्वारा कई कारणों से बायबैक का फैसला लिया जाता है। सबसे बड़ा कारण है कंपनी की बैलेंसशीट में अतिरिक्त नकदी का होना। कंपनी के पास बहुत अधिक नकदी का होना अच्छा संकेत नहीं माना जाता है। इससे यह माना जाता है कि कंपनी अपनी नकदी का इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। शेयर बायबैक के माध्यम से कंपनी अपनी अतिरिक्त नकदी का प्रयोग करती है। भारत के आयकर अधिनियम के अनुच्छेद 115-O के तहत घरेलू कंपनी द्वारा लाभांश के रूप में घोषित, वितरित या भुगतान की गई कोई भी राशि लाभांश वितरण कर (Dividend distribution tax-DDT) के लिये कर की पात्र होगी। ये नियम केवल घरेलू कंपनी (विदेशी कंपनी नहीं) पर ही लागू है।

  • उत्कर्ष 2022भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपने विभिन्न कार्यों के मध्य विनियमन और पर्यवेक्षण को बढ़ाने के उद्देश्य से ‘उत्कर्ष 2022’ नामक तीन वर्षीय रोडमैप तैयार किया है।

विनियमन और पर्यवेक्षण तंत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से बनाई यह नीति, एक मध्यम अवधि की नीति है। इसमें विशेष रूप से भविष्य में किसी भी अन्य IL&FS ऋण संकट से बचाने के लिये केंद्रीय बैंक की सक्रिय भूमिका शामिल है। इससे पहले, RBI ने पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की अध्यक्षता में एक आंतरिक समिति का गठन किया था, जिसका कार्य उन विषयों का चयन करना था जिन पर अगले तीन वर्षों में ध्यान दिया जाना आवश्यक है। RBI बोर्ड ने जुलाई 2019 से जून 2020 की अवधि के लिये RBI के बजट को भी मंज़ूरी दी है।

  • इंटरनेशनल सनफ्लॉवर ऑयल एसोसिएशन (International Sunflower Oil Association-ISOA) की स्थापना रोम में वर्ष 2015 में चीन, यूक्रेन, रूस, हंगरी, स्पेन और अर्जेंटीना के राष्ट्रीय संघों और कंपनियों द्वारा की गई थी।

इसका उद्देश्य सूरजमुखी तेल उत्पादकों, उद्योग समूहों, अकादमिक शोधकर्त्ताओं और स्थानीय सरकारों के बीच बेहतर संवाद को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना।

  • कोर निवेश कंपनियाँ एक प्रकार की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी होती है।इसका मुख्य कार्य अंशों (Shares) और प्रतिभूतियों के अधिग्रहण से लाभ कमाना होता है। इस प्रकार की कंपनियाँ अपनी कुल संपत्ति का कम-से-कम 90 प्रतिशत हिस्सा समता अंशों, पूर्वाधिकार अंशों, बॉण्ड्स या ऋणपत्रों में निवेश के रूप में रखती हैं।

इस प्रकार की कंपनियों में समता अंशों पर किया गया निवेश कुल संपत्ति के 60 प्रतिशत से कम नहीं होता है।

  • ‘सह-स्थान’ (Co-location) शेयर बाज़ार के ब्रोकर्स को अतिरिक्त शुल्क के भुगतान पर अपने सर्वर के पास संचालित करने की अनुमति देता है। यह एक्सचेंज सर्वर से निकटता के कारण इसमें शामिल ब्रोकर्स को अन्य ब्रोकर्स की तुलना में अधिक लाभ देता है क्योंकि डेटा ट्रांसमिशन में कम समय लगता है।

फ्रंट-रनिंग तब होता है जब एक ब्रोकर या कोई अन्य संस्था किसी व्यापार (ट्रेड) में प्रवेश करती है क्योंकि उनके पास एक बड़े अप्रसारित लेन-देन की जानकारी पहले से होती है जो परिसंपत्ति की कीमत को प्रभावित करेगा, जिसके परिणामस्वरूप ब्रोकर को संभावित वित्तीय लाभ होगा। यह तब भी होता है जब कोई ब्रोकर या विश्लेषक अपने फर्म के ग्राहकों को शेयर खरीदने या बेचने की सलाह देने से पहले अपने खाते पर शेयर खरीदता या बेचता है।


बेसल-III मानक बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।ये मानक बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों की एक शृंखला प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा बैंकों के विनियमों को सुधारने, जोखिम प्रबंधन और बैंकों का पर्यवेक्षण किया जाता है। बेसल-III मानक वर्ष 2008 की मंदी के बाद लाए गए थे। बेसल- III मानक तीन स्तंभों पर आधारित हैं: स्तंभ 1: वित्तीय और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले उतार-चढ़ाव को अवशोषित करने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता में सुधार। स्तंभ 2: बैंकिंग क्षेत्र की जोखिम प्रबंधन क्षमता और शासन में सुधार। स्तंभ 3: बैंकों की पारदर्शिता और प्रकटीकरण को मज़बूत करना।

Ind As [Indian Accounting standards (भारतीय लेखा मानक), लेखांकन मानकों का एक समूह है जो वित्तीय लेन-देन के लेखांकन और अभिलेखों के साथ ही लाभ-हानि खाते एवं कंपनी के तुलन-पत्र (Balamic Sheets) जैसे विवरणों की प्रस्तुति को नियंत्रित करते हैं। वर्ष 1977 में एक निकाय के रूप में गठित लेखा मानक बोर्ड (Accounting Standards Board-ASB) द्वारा तैयार किया गया था। ASB, ICAI (Institute of Chartered Accountants of India) के अंतर्गत गठित एक समिति है जिसमें सरकारी विभागोें, शिक्षाविदों, अन्य पेशेवर निकायों जैसे ASSOCHAM, CII, FiCCi आदि के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।

कर-मुक्त बॉण्ड में अर्जित ब्याज को कर से मुक्त रखा जाता है। ऐसे बॉण्ड की अवधि आमतौर पर 10, 15 या 20 वर्ष की होती है। ये बॉण्ड निवेशकों को एग्जिट रूट की पेशकश करने के लिये स्टॉक एक्सचेंजों में भी सूचीबद्ध किये जाते हैं। ये बॉण्ड प्रकृति में कर-मुक्त, सुरक्षित, प्रतिदेय और अपरिवर्तनीय हैं। इस तरह के बॉण्ड को स्टॉक एक्सचेंजों में भी सूचीबद्ध किया जाता है और केवल डीमैट खातों के माध्यम से इनका कारोबार किया जाता है। प्रकटीकरण और निवेशक सुरक्षा दिशा-निर्देशों के तहत सेबी द्वारा परिभाषित योग्य संस्थागत निवेशक इन बॉण्डों में निवेश कर सकते हैं। ट्रस्ट, सहकारी और क्षेत्रीय बैंक तथा कॉर्पोरेट कंपनियों जैसी संस्थाएँ भी कर-मुक्त बॉण्ड में नियमित रूप से निवेश करती हैं।[१]

  • पीयर-टू-पीयर (Peer-to-peer- P2P) लेंडिंग क्राउड फंडिंग का एक तरीका है जिसका इस्तेमाल ऋण लेने के लिये किया जाता है। इसके तहत एक व्यक्ति दूसरे से ऋण लेता है। इस तरह यह वित्तीय संस्थानों की मध्यस्थता के बगैर लोगों की ऋण ज़रूरतों को पूरा करता है।इसकी मदद से उन लोगों के लिये ऋण की उपलब्धता आसानी से सुनिश्चित हो जाती है जो बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों की शर्तों को पूरा न कर पाने की वज़ह से ऋण का लाभ नहीं उठा पाते हैं।

पीयर-टू-पीयर लेंडिंग फर्म-‘एग्रीगेटर फर्मों’ (Aggregator Firms) के विपरीत पीयर-टू-पीयर लेंडिंग फर्में ऋण लेने वालों (Borrower) को ऋण देने से पूर्व ऋणदाता से धन प्राप्त करती हैं।यह उन क्षेत्रों में वित्त के वैकल्पिक रूपों को बढ़ावा देती हैं, जहाँ औपचारिक तौर पर वित्तीय व्यवस्था करना संभव नहीं होता है। कम परिचालन लागत तथा परंपरागत ऋणदाता चैनलों के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के कारण इनमें लेंडिंग दरों को कम करने की भी क्षमता होती है।

अप्रैल 2016 को जारी किये गए परामर्श पत्र में पीयर-टू-पीयर लेंडिंग ऋणदाताओं के लिये आर.बी.आई द्वारा सुझाए गए विनियामक ढाँचे के महत्त्वपूर्ण बिंदु-
पीयर-टू-पीयर लेंडिंग प्लेटफॉर्म को एक कंपनी की तरह स्थापित किया जाना चाहिये।

इनके पास 2 करोड़ रुपए की न्यूनतम पूंजी होनी चाहिये। धन-शोधन के खतरे से बचने के लिये फंड को ऋणदाता के बैंक खाते से सीधे ऋण लेने वाले के खाते में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। इन्हें ‘कारोबार सातत्य योजना’ (Business Continuity Plan) की आवश्यकता होगी। ग्राहकों के डाटा की विश्वसनीयता को बनाए रखना पी-2-पी फर्मों का दायित्व होगा। इन्हें उचित शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना करनी होगी। इनके ऋण वसूली के अनुभवों को मौजूदा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से संबद्ध किया जा सकता है।

  • वायदा अनुबंधभारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड द्वारा कमोडिटी सूचकांकों पर वायदा अनुबंध करने की अनुमति प्रदान की गई है।
  • इससे पूर्व सेेबी ने कमोडि़टी डेरिवेटिव बाजारों में कमोडिटी ऑप्शंस की अनुमति प्रदान की थी।
  • डेरिवेटिव:-दो या दो से अधिक पक्षों के मध्य का अनुबंध है जिसका मूल्य एक अनुबंधित अंतर्निहित वित्तीय परिसंपत्ति(जैसे-एक प्रतिभूति)अथवा परिसंपत्तियों(जैसे एक सूचकांक) पर आधारित होता है।
  1. इससे संबंधित सामान्य उपकरणोों में बॉण्ड,कमोडिटीज,मुद्राएं,बाजार सूचकांक,स्टॉक इत्यादि शामिल हैं।
  2. इसमें फ्यूचर्स,ऑप्शन,स्वैप शामिल हैं।
  3. इसके स्वामित्व का तात्पर्य संपत्ति के स्वामित्व से नहीं है।
  • वायदा अनुबंध(फ्यूचर्स)-भावी तिथि पर अंतर्निहित प्रतिभूति के क्रय अथवा विक्रय का एक कानूनी रुप से बाध्यकारी समझौता है।जब इसमें अंतर्निहित परिसंपत्ति एक कमोडिटी होती है तो इसे कमोडिटी फ्यूचर्स कहा जाता है। विशिष्ट अंतर्निहित परिसंपत्तियों में कच्चा तेल,गेहूं,मक्का,सोना,चांदी और प्राकृतिक गैस है।
  • ऑप्शंस :-एक प्रकार का डेरिवेटिव अनुबंध,जो खरीददार/अनुबंध के धारक को एक निर्दिष्ट अवधि के अँत में अथवा इसके दौरान पूर्व निर्धारित मूल्य पर अतर्निहित परिसंपत्ति के क्रय/विक्रय का अधिकार प्रदान करता है।प्रीमियम का भुगतान कर क्रेता प्राप्त कर सकता है।
  • भारत में प्रमुख कमोडिटी ट्रेडिंग एक्सचेंजों में शामिल हैं-मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज(MCX),नेशनल कमोडि़टी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचंज,नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज।

वित्तीय बेंचमार्क प्रशासकों के लिए RBIके नये मानदंडके अनुसार एक निगमित कंपनी होने के कारण इसे प्रत्येक समय एक करोड़ रुपये की न्यूनतम निवल संपत्ति बनाए रखना आवश्यक है।

  • यह एक संगठन अथवा विधिक व्यक्ति है जो महत्वपूर्ण बेंचमार्क प्रक्रिया के निर्माण और संचालन को नियंत्रित करता है।चाहे वह बेंचमार्क से संबंधित बैद्धिक संपदा के स्वामी हो अथवा न हो।
  • इसमें कीमत,दर,सूचकांक,मूल्य अथवा संयोजन शामिल होते हैं।
  • भारत में प्रमुख मान्यता प्राप्त FBA हैं-
  1. फिक्स्ड इनकम मनी मार्केट एंड डेरिवेटिव एसोसिएशन ऑफ इंडिया(FIMMDA)-भारतीय रुपये की ब्याज दर के बेंचमार्कके लिए
  2. भारत का विदेशी विनिमय वितरक संगठन (FEDAI)-विदेशी मुद्रा बेंचमार्क के लिए
  3. वितिय बेंचमार्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड(FBIL)-RBIद्वारा स्वतंत्र बेंचमार्क प्रशासक के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।


बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority- IRDAI) ने माइक्रोइंश्योरेंस पर नियामक फ्रेमवर्क की समीक्षा के लिये एक समिति का गठन किया है। माइक्रोइंश्योरेंस कम आय वाले परिवारों या उन व्यक्तियों को कवरेज प्रदान करता है जिनकी बचत बहुत कम होती है। इसे विशेष रूप से कम मूल्य की संपत्तियों और बीमारी, चोट या मृत्यु के मुआवजे के लिये तैयार किया गया है। 13 सदस्यीय इस पैनल का उद्देश्य वितरण संरचना में बदलाव का सुझाव देना है,जिसमें मोबाइल-आधारित और प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान शामिल होंगे।

म्युनिसिपल बॉण्ड भारतीय रिज़र्व बैंक ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिये निर्धारित सीमा में म्युनिसिपल बॉण्ड (मुनि बॉण्ड) में निवेश करने की अनुमति दी है। मुनि बॉण्ड में निवेश की सीमा राज्य विकास ऋण (एसडीएल) में एफपीआई निवेश के समान है।शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जारी किये जाने वाले इस बॉण्ड की सहायता से शहरी स्थानीय निकाय विशिष्ट परियोजनाओं, विशेष रूप से बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये धन जुटाती है। वर्ष 2015 में सेबी ने शहरी स्थानीय निकायों को पैसा जुटाने में सक्षम बनाने के लिये म्युनिसिपल बॉण्ड हेतु नए दिशा-निर्देश जारी किया था।

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली (National Payment Corporation of India- NPCI) देश में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के संचालन के लिये एक अम्ब्रेला संगठन है। इसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और भारतीय बैंक संघ (IBA) द्वारा भारत में भुगतान और निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 (The Payment and Settlement Systems Act, 2007) के प्रावधानों के तहत एक मज़बूत भुगतान और निपटान अधोसंरचना बनाने के लिये स्थापित किया गया है।इसे कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 25 के प्रावधानों के तहत "नॉट फॉर प्रॉफिट" कंपनी के रूप में शामिल किया गया है।

  • अर्थोपाय अग्रिम (Ways and Means Advances-WMA)अप्रैल में रिज़र्व बैंक ने इसकी सीमा बढ़ाकर 75,000 करोड़ रुपए कर दी है।

यह प्रावधान रिज़र्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019-20 की पहली छमाही (अप्रैल 2019 से सितंबर 2019 तक) के लिये किया है। भारतीय रिज़र्व बैंक,केंद्र और राज्य सरकारों को सरकार के बैंकर के रूप में अस्थायी ऋण सुविधाएँ देता है, इस अस्थायी ऋण सुविधा को अर्थोपाय अग्रिम (WMA) कहा जाता है। WMA की व्यवस्था सरकार की प्राप्तियों और भुगतान में अस्थायी अंतर को पूरा करने के लिए 1 अप्रैल, 1997 में की गई थी। WMA पर ब्याज दर वर्तमान में रेपो दर पर ली जाती है। WMA की सीमाएँ भारतीय रिज़र्व बैंक और भारत सरकार द्वारा पारस्परिक रूप से तय की जाती हैं।

RBI ने डिज़िटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये गठित नंदन नीलेकणि समिति की रिपोर्ट जारी की[सम्पादन]

  • इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि की अध्यक्षता में जनवरी, 2019में गठित पाँच सदस्यीय समिति ने कारोबारियों, धारकों और ग्राहकों हेतु लागत घटाने एवं इसकी स्वीकार्यता से जुड़े बुनियादी ढाँचे का विस्तार करने की सिफारिश की है ताकि देश के डिजिटल वित्तीय समावेशन में सुधार किया जा सके।
  • सिफारिशें:-मर्चेंट डिस्काउंट रेट को कम किया जाना चाहिये।मुद्रा एवं बैंकिंग
  • ‘डिजिटल लेन-देन’ पर वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) को कम करना।
  • डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये सरकार को किये गए किसी भी डिजिटल भुगतान पर लगने वाले शुल्क को हटाना चाहिये।
  • राज्य द्वारा संचालित संस्थाओं और केंद्रीय विभागों को किये गए डिजिटल भुगतान के लिये उपभोक्ताओं पर कोई सुविधा शुल्क नहीं होना चाहिये।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक और सरकार को मिलकर डिजिटल भुगतान व्यवस्था की निगरानी के लिये एक उचित व्यवस्था स्थापित करनी चाहिये।
  • डिजिटल फाइनेंशियल इनक्लूज़न इंड़ेक्स भी तैयार किया जा सकता है,जिससे कि सामान्य पैमाने के साथ-साथ किसी क्षेत्र विशेष में होने वाली प्रगति के बारे में भी जानकारी हासिल की जा सके और असंतुलन की स्थिति में सुधार के लिये उचित कदम उठाए जा सकें।

आर्बिट्रेज फंड (Arbitrage Fund) एक प्रकार का म्यूचुअल फंड (Mutual Fund)[सम्पादन]

  • यह उन निवेशकों के लिये है जो अस्थिर बाज़ारों (शेयर) से जोखिम उठाए बिना लाभ प्राप्त करना चाहते हैं।
  • यह नकद (Cash Market) और वायदा बाज़ार (Futures Market) में शेयरों के बीच मूल्य के अंतर का फायदा उठाकर काम करते हैं।
  • नकद बाज़ार में शेयर की कीमत क्रेता द्वारा चुकाई गई ‘वर्तमान कीमत’ है। इसे स्पॉट प्राइस (Spot Price) भी कहा जाता है।
  • जबकि वायदा बाज़ार में शेयर की कीमत भविष्य में किसी बिंदु पर चुकाई जाने वाली प्रत्याशित कीमत है।

दो सरकारी बैंकों- विजया बैंक और देना बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय 1 अप्रैल से प्रभावी हो गया है।विलय के बाद विजया बैंक और देना बैंक की सभी शाखाएं बैंक ऑफ बड़ौदा की शाखाओं के रूप में काम करने लगी हैं।हाल में केंद्र सरकार ने अतिरिक्त खर्च की भरपाई के लिये बैंक ऑफ बड़ौदा को 5042 करोड़ रुपए देने का निर्णय लिया था। विलय के बाद बैंक ऑफ बड़ौदा का कारोबार 14.82 लाख करोड़ रुपए का होगा और यह भारतीय स्टेट बैंक और ICICI बैंक के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा बैंक बन जाएगा। इस विलय के बाद देश में सरकारी बैंकों की संख्या घटकर 18 रह गई है।

रुपया ब्‍याज दर डेरिवेटिव[सम्पादन]

  • रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने गैर-प्रवासियों (NRIs) को रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव (Rupee Interest Rate Derivatives) में भागीदारी की अनुमति दे दी है जिसका उद्देश्य रुपया ब्याज दर स्वैप (Interest Rate Swap-IRS) बाज़ार को और अधिक प्रभावी बनाना है।
  • गैर-प्रवासी भारतीय मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म और ओवर द काउंटर मार्केट्स में रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव में लेनदेन कर सकते हैं।
  • इस कदम से घरेलू बाज़ार में गैर-निवासियों की भागीदारी बढ़ने के साथ-साथ डॉलर के मुकाबले रुपए को स्थिरता भी मिलेगी।
  • ‘रुपया ब्‍याज दर डेरिवेटिव’ एक ऐसा वित्तीय साधन है, जो ब्याज दरों में परिवर्तन के साथ बढ़ता और घटता है।
  • ‘रुपया ब्‍याज दर डेरिवेटिव’ का उपयोग अक्सर संस्थागत निवेशकों, बैंकों, कंपनियों और लोगों द्वारा हेज के रूप में किया जाता है ताकि बाज़ार ब्याज दरों में बदलाव की स्थिति से बचा जा सके।


पिंक टैक्स (Pink Tax) महिलाओं द्वारा चुकाई जाने वाली एक इनविज़िबल कॉस्ट (अदृश्य लागत) है।[सम्पादन]

यह राशि उन्हें उन उत्पादों के लिये चुकानी पड़ती है जो विशेष तौर पर उनके लिये डिज़ाइन किये जाते हैं। न्यूयॉर्क में किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि महिलाओं के लिये बने उत्पादों की लागत पुरुषों के लिये बनाए गए समान उत्पादों की तुलना में 7% अधिक होती है। व्यक्तिगत देखभाल संबंधी उत्पादों (Personal Care Products) के मामले में यह अंतर 13% तक बढ़ जाता है। यह अंतर सिर्फ न्यूयॉर्क या विकसित देशों तक ही सीमित नहीं है बल्कि भारत में भी महिलाएँ विशेष रूप से उनके लिये उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पर पिंक टैक्स का भुगतान करती हैं। उदाहरण के तौर पर अधिकांश सैलून पुरुषों की तुलना में महिलाओं के बाल काटने पर अधिक शुल्क लेते हैं। यह रेज़र और डियोडरेंट जैसे व्यक्तिगत देखभाल संबंधी उत्पादों के लिये भी सही है। एक प्रसिद्ध ब्रांड के डिस्पोज़ेबल रेज़र की कीमत पुरुषों के लिये लगभग 20 रुपए के आसपास है और उसी कंपनी की महिलाओं के लिये सबसे सस्ती डिस्पोज़ेबल रेज़र की कीमत 55 रुपए के करीब है। जबकि ‘महिला संस्करण’ पैकेजिंग के अलावा सामान्य से शायद ही अलग हो।

लघु वित्त बैंकों (Small Financial Banks- SFBs)[सम्पादन]

  • इनवेस्टमेंट इन्फॉर्मेशन एंड क्रेडिट एजेंसी (Investment Information and Credit Agency- ICRA) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि अगर वित्तीय वर्ष 2023 तक 4000-6000 करोड़ की बाह्य पूंजी उपलब्ध हो तो इन बैंकों में 20-30% वार्षिक दर से वृद्धि की संभावना है।
  • इसकी स्थापना छोटी व्यावसायिक इकाइयों, छोटे और सीमांत किसानों, सूक्ष्म और लघु उद्योगों और असंगठित क्षेत्र की संस्थाओं जैसे अर्थव्यवस्था के कुछ अदम्य क्षेत्रों को वित्तीय समावेशन की सुविधा प्रदान करने के लिये की गई है।
  • वित्तीय समावेशन पर नचिकेत मोर समिति द्वारा इनकी स्थापना की सिफ़ारिश की गई थी।
  • यह वाणिज्यिक बैंकों (Commercial Banks) का एक छोटा और सीमित संस्करण है जो कि जमा ले सकते हैं और ऋण दे सकते हैं।
  • इसकी स्थापना के लिये न्यूनतम पूंजी 100 करोड़ रुपए होनी चाहिये।
  • यह बीमा, म्युचुअल फंड आदि बेच सकता हैं और एक पूर्ण वाणिज्यिक बैंक का आकार ले सकता है।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR)[सम्पादन]

नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFCs) के लिये CAR को मार्च 2022 तक चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 15% करने का प्रस्ताव किया है। हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के लिये वर्तमान अनुपात 12% है,जिसे अगले तीन वर्षों में प्रतिवर्ष 1 प्रतिशत की दर से बढ़ाया जायेगा। वित्तीय संस्थाएँ होने के नाते हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को किसी भी अन्य वित्तीय क्षेत्र में विफलताओं से उत्पन्न जोखिमों, तरलता और सॉल्वेंसी से संबंधित जोखिमों तथा अन्य धन संबंधी जोखिम से अवगत कराया जाता है। इसीलिये हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के नियामक ढाँचे की समीक्षा की गई।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio-CAR)-बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। पूंजी पर्याप्तता अनुपात को पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (capital-to-risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है। अतः कथन 1 सही है। बेसल-III मानदंडों के अंतर्गत बैंकों के लिये न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात 8% है

नेशनल हाउसिंग बैंक ने तरलता जोखिम के खिलाफ एहतियाती उपाय के रूप में हाउसिंग फाइनेंसिंग कंपनियों (HFC) की पूंजी पर्याप्तता अनुपात को 15% तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। CAR, बैंक की उपलब्ध पूंजी का एक माप है जिसे बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। पूंजी पर्याप्तता अनुपात को पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (capital-to-risk Weighted Assets Ratio-CRAR) के रूप में भी जाना जाता है। इसका उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता और दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है। नेशनल डिफेंस फंड के तहत शहीदों के परिवार के लड़कों को दी जाने वाली स्कॉलरशिप में 500 रुपए की बढ़ोतरी की गई तो लड़कियों को दी जाने वाली राशि में 750 रुपए बढ़ाए गए हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक[सम्पादन]

  • एम्प्लॉयी स्टॉक परचेज़ स्कीम (Employee Stock Purchase Scheme-ESPS) के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कर्मचारियों से लगभग 5,000 करोड़ रुपए जुटाने की प्रक्रिया शुरू की है। यह किसी कंपनी द्वारा संचालित एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें भाग लेने वाले कर्मचारी कंपनी के शेयरों को रियायती मूल्य पर खरीद सकते हैं। कर्मचारियों को स्टॉक से पुरस्कृत करती हैं।[२]
एम्प्लॉयी स्टॉक ऑप्शन प्लान ऐसे स्टॉक होते हैं जिन्हें कर्मचारियों को एक तय अवधि में दिया जाता है। इस ऑप्शन प्लान के तहत कर्मचारियों को पूर्व निर्धारित मूल्य पर कंपनी का शेयर खरीदने का अधिकार दिया जाता है।

यह स्कीम (ESPS) कर्मचारियों को कंपनी के स्टॉक खरीदने (आमतौर पर रियायती मूल्य पर) हेतु अपने वेतन का उपयोग करने की सुविधा प्रदान करती है।

एम्प्लॉयी स्टॉक ऑप्शन प्लान (ESOPs) के विपरीत, एम्प्लॉयी स्टॉक परचेज़ स्कीम (ESPS) धारकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है, उन्हें अपने वेतन से मासिक कटौती के माध्यम से कीमत का भुगतान करना अनिवार्य होता है।

RBI और उससे संबंधित तथ्य[सम्पादन]

  • रिज़र्व बैंक ने नॉन- बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनियों पर प्रभावी संपत्ति देयता प्रबंधन (Asset Liability Management) के मानकों को सुदृढ़ करने के लिये तरलता जोखिम प्रबंधन (Liquidity Risk Management) पर मौजूद दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है।
  1. तरलता अंतर के संदर्भ में नकारात्मक संपत्ति देयताओं (Negative Assets liabilities) की एक विशेष सीमा निर्धारित की है, साथ ही साथ तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio- LCR) बनाए रखने का निर्देश दिया है।
  2. संरचनात्मक तरलता (Structural Liquidity) को बनाए रखने के लिये देनदारियों हेतु 1 से 30 दिन के समय अंतराल (Time Bucket) को,1 से 7 दिन, 8 से 14 दिन और 15 से 30 दिन के समय अंतराल में बाँट दिया गया है।
  3. नए नियम के अनुसार उपर्युक्त समय अंतराल में शुद्ध संचयी अंतर (Net Commulative Mismatch) 1 से 7 दिन के समय अंतराल के लिये 10%, 8 से 14 दिन के लिये 10% और 15 से 30 दिन के समय अंतराल के लिये संचयी नकद बहिर्प्रवाह (Commulative Cash Outflow) के 20% से अधिक नहीं होना चाहिए।
  4. इन अवधियों के पीछे मूल विचार यह है कि लघु अवधि में बैंक में नकद का बहिर्प्रवाह (Outflow), नकद के अंतर्प्रवाह (Inflow) से अधिक नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिये पहले समय अंतराल में नकद बहिर्प्रवाह अपेक्षित अंतर्प्रवाह के 10% से अधिक नहीं होना चाहिये।

रिज़र्व बैंक के अनुसार, NBFCs को एक तरलता बफर, तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio) के रूप में बनाये रखना चाहिए, जिससे आवश्यकता पड़ने पर या जोखिम के समय ये सुनिश्चित किया जा सके कि बैंक के पास अगले 30 दिनों के लिये उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति (High Quality Liquidity Asset-HQLA) है । NBFCs के लिये 1 दिसंबर 2020 से LCR का 50% HQLA के रूप में और 1 दिसम्बर 2024 से इसे 100% बनाए रखने का प्रावधान है। LCR का प्रमुख उद्देश्य तरलता जोखिम (Liquidity Risk) की स्थिति से निपटने के लिये बैंकों के पास उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्तियों का होना सुनिश्चित करना है। इन प्रावधानों के अंतर्गत ऐसी नॉन बैंकिंग फाइनेंसियल कंपनीज आती हैं जिनका संपत्ति आकार 100 करोड़ रुपए से अधिक हो। टाइप I - NBFC-ND (Non Deposit Taking) इकाइयाँ LCR मानदंडों के अंतर्गत नहीं आती हैं। टाइप I - एनबीएफसी-एनडी इकाइयाँ वे इकाइयाँ होती हैं जो सार्वजनिक जमाओं को स्वीकार नहीं करतीं। संपत्ति देयता प्रबंधन- संपत्ति देयता प्रबंधन के अंतर्गत बैंकों द्वारा तरलता या ब्याज दरों में परिवर्तन के कारण संपत्ति और दायित्वों के बीच अंतर से उत्पन्न जोखिम का पता चलता है। उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति(High Quality Liquidity Asset-HQLA) उन संपत्तियों को उच्च गुणवत्ता वाली तरल संपत्ति माना जाता है जो आसानी से और संपत्ति के मूल्य में अपेक्षाकृत कम या बिना किसी ह्रास के नकदी में परिवर्तित हो सकती हैं। इसके अंतर्गत नकद, सरकारी प्रतिभूतियां और विदेशी वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रतिभूतियाँ शामिल हैं। ये संपत्तियाँ किसी भी वित्तीय देयता से मुक्त होनी चाहिये।

  • कोर इन्वेस्टमेंट कंपनियों (Core Investment Companies- CIC) के लिये कड़े कॉर्पोरेट प्रशासन दिशा-निर्देशों का प्रस्ताव RBI द्वारा स्थापित तपन रे की अध्यक्षता में कार्यरत एक समूह ने किया है।

RBI के अनुसार, मौजूदा ढाँचा कंपनियों के जटिल कॉर्पोरेट प्रशासन संरचना को संभालने में असमर्थ है जिसके कारण उसकी समीक्षा करने और उसमें महत्त्वपूर्ण बदलाव करने की आवश्यकता है।

कोर निवेश कंपनी (CIC) गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ(NBFC) हैं जिनकी संपत्ति 100 करोड़ रुपए से अधिक होती है और जो RBI की कुछ शर्तों के अधीन शेयरों एवं प्रतिभूतियों के अधिग्रहण का व्यवसाय करती हैं।

इक्विटी शेयरों,वरीयता शेयरों, बाॅण्ड,डिबेंचर, ऋण या ऋण में निवेश के रूप में CIC अपनी शुद्ध संपत्ति का 90% से कम नहीं रख सकती हैं। 100 करोड़ रुपए से कम की संपत्ति वाली CICs को RBI से पंजीकरण और विनियमन से छूट केवल तभी दी जाती जब वे वित्तीय क्षेत्र में विदेशी निवेश करना चाहती हैं।

  • RBI ने नियामक सैंडबॉक्स (Regulatory Sandbox) स्कीम के तहत खुदरा भुगतान प्रणाली हेतु नए उत्पादों और सेवाओं के परीक्षण के लिये आवेदन आमंत्रित किये हैं।
विनियामक सैंडबॉक्स,नियंत्रित परिस्थितियों में नए उत्पादों या सेवाओं के परीक्षण को संदर्भित करता है।
इस परीक्षण के सफल होने के बाद उन उत्पादों और सेवाओं को व्यापक स्तर पर लागू किया जाता है।
सैंडबॉक्स विनियामक परीक्षण के दौरान उत्पादों और सेवाओं पर कुछ छूट भी प्रदान की जा सकती है।

इसका उद्देश्य-

  1. वित्तीय सेवाओं में नवाचार और दक्षता को बढ़ावा देना है,जिससे उपभोक्ताओं को अधिक लाभ पहुंँच सके।
  2. फिनटेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना है,साथ ही इसके माध्यम से कंपनियों और उपभोक्ताओं को एक सहज वातावरण भी प्रदान करना है।

फिनटेक (FinTech) Financial Technology का संक्षिप्त रूप है। वित्तीय कार्यों में प्रौद्योगिकी के उपयोग को फिनटेक कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में यह पारंपरिक वित्तीय सेवाओं और विभिन्न कंपनियों तथा व्यापार में वित्तीय पहलुओं के प्रबंधन में आधुनिक तकनीक का कार्यान्वयन है।

  • RBI द्वारा जालान पैनल का गठन आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क (Economic Capital Framework- ECF) की समीक्षा के लिये किया था इस पैनल की सिफारिश पर ही RBI ने केंद्र सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए दिये हैं। केंद्र सरकार द्वारा अधिक धन की मांग के बाद इस पैनल का गठन किया गया था। RBI बोर्ड ने जालान पैनल की सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।
  • भारत बिल भुगतान प्रणाली(Bharat Bill Payment System(BBPS)के दायरे का विस्तार हाल हीं में भारतीय रिजर्व बैंक किया है। इसमें स्वैच्छिक आधार पर योग्य प्रतिभागियों के रूप में सभी श्रेणी के आवर्ती भुगतानों (प्रीपेड रिचार्ज को छोड़कर) को शामिल किया गया है।
यह एकीकृत बिल भुगतान प्रणाली के संचालन हेतु एक स्तरीयकृत संरचना है।

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India- NPCI) द्वारा अधिकृत भारत बिल भुगतान, केंद्रीय इकाई के रूप में कार्य करता है, जो सभी प्रतिभागियों के लिये तकनीकी एवं व्यावसायिक आवश्यकताओं, व्यावसायिक मानकों, नियमों तथा प्रक्रियाओं की स्थापना हेतु ​ज़िम्मेदार है। BBPS के तहत भारत बिल भुगतान परिचालन इकाइयाँ रोजमर्रा की उपयोगी सेवाओं जैसे- बिजली, पानी, गैस, टेलीफोन तथा डायरेक्ट-टू-होम (DTH) के लिये बार-बार किये जाने वाले भुगतानों की सुविधा प्रदान करने वाली संस्थाओं के रूप में कार्य करती हैं।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने 1 अक्तूबर, 2019 से सभी बैंकों के लिये नए फ्लोटिंग रेट (Floating Rate) लोन (व्यक्तिगत/खुदरा ऋण और MSME हेतु ऋण) को एक एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट (External Benchmark Rates) से जोड़ना अनिवार्य कर दिया है। इस प्रकार इस दर पर वाणिज्यिक बैंक अपने खुदरा ग्राहकों को लोन देंगे न कि RBI वाणिज्यिक बैंकों को।
वाणिज्यिक बैंक एक्सटर्नल बेंचमार्क रेट के मानक के रूप में रेपो रेट, तीन महीने का ट्रेजरी बिल यील्ड (Yield), छह महीने का ट्रेजरी बिल यील्ड (Yield) या फाइनेंशियल बेंचमार्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (Financial Benchmarks India Private Ltd) द्वारा जारी किसी एक बेंचमार्क को चुन सकते हैं। इस प्रकार इस दर का निर्धारण केवल फाइनेंशियल बेंचमार्क इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (Financial Benchmarks India Private Ltd) नही करेगा।
  • जून 2019 को प्रकाशित बैंकों के पर्यवेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Supervision-BCBS) की अर्द्ध वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रिज़र्व बैंक बेसल III मानकों को लागू करने में अपने लक्ष्य से पीछे है।

समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट दर्शाती है कि भारत के केंद्रीय बैंक ने अब तक कुल हानि-अवशोषण क्षमता (Total Loss-Absorbing Capacity-TLAC) ज़रूरतों पर प्रतिभूतिकरण रूपरेखा (Securitisation Framework) और नियमों को अब तक प्रकाशित नहीं किया है जबकि वैश्विक स्तर पर ये नियम 1 जनवरी 2018 से लागू हो गए थे। बेसल III (Basel III) बेसल III मानक बैंकिंग क्षेत्र से संबंधित एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है। ये मानक बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों की एक श्रंखला प्रस्तुत करते हैं जिसके द्वारा बैंकों के विनियमों को सुधारने, जोखिम प्रबंधन और बैंकों का पर्यवेक्षण किया जाता है। बेसल III मानक 2008 की मंदी के बाद लाए गए थे। बेसल 3 मानक तीन स्तंभों पर आधारित हैं।

स्तंभ 1: वित्तीय और आर्थिक अस्थिरता से उत्पन्न होने वाले उतार-चढ़ाव को अवशोषित करने की बैंकिंग क्षेत्र की क्षमता में सुधार।
स्तंभ 2: बैंकिंग क्षेत्र की जोखिम प्रबंधन क्षमता और शासन में सुधार।
स्तंभ 3: बैंकों की पारदर्शिता और प्रकटीकरण को मज़बूत करना।

बैंक सर्वेक्षण पर बेसल समिति (Basel Committee on Bank Survey- BCBS) अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (Bank For International Settlements-BIS) के अंतर्गत एक समिति है जो वैश्विक प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंकों (Global Systemically Important Banks: G-sibs) में बेसल III नियमों को लागू होने की स्थिति पर नज़र रखती है इस समिति का मुख्य कार्य बैंकों में पर्यवेक्षण की गुणवत्ता को वैश्विक स्तर पर सुधारना है।

वर्ष 1930 में स्थापित BIS 60 केंद्रीय बैंकों के स्वामित्व में है, जो दुनिया भर के देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा कुल वैश्विक GDP में इनकी हिस्सेदारी 95% है।

BIS मुख्यालय बासेल, स्विटज़रलैंड में है। समिति एक पद्धति जिसमें मात्रात्मक संकेतक और गुणात्मक तत्त्व दोनों शामिल होते हैं का उपयोग करते हुए वैश्विक प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण बैंकों (G-sibs) की पहचान करती है । G-sibs वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण बैंक (Global Systemically Important Banks: G-sibs) एक ऐसा बैंक है जिसका प्रणालीगत जोखिम प्रोफ़ाइल इस तरह के महत्त्ब के रूप में माना जाता है कि बैंक की विफलता एक व्यापक वित्तीय संकट को जन्म दे सकती है और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये संकट की स्थिति उत्त्पन्न हो सकती है।

  • RBI ने देश भर में 16,500 से अधिक एसबीआई एटीएम से कैशलेस निकासी के लिये 'योनो कैश' (YONO Cash) एप लॉन्च किया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के ग्राहक अब बिना कार्ड का इस्तेमाल किये एटीएम से कैश निकाल सकेंगे। देश में बिना कार्ड के रुपए निकालने की सुविधा देने वाला SBI पहला बैंक है।

डेबिट कार्ड द्वारा कैश निकालने में होने वाले फ्रॉड को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। ‘योनो कैश’ एप उपयोगकर्त्ताओं को डेबिट कार्ड के बिना नकदी निकालने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका उद्देश्य YONO कैश एप के माध्यम से अगले दो वर्षों में पूरे लेनदेन तंत्र को एक मंच के तहत एकीकृत करना है।

  • शिकायत प्रबंधन प्रणाली का शुभारंभ भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया गया।यह किसी भी विनियमित इकाई,जैसे -वाणिज्यिक बैंकों,शहरी सहकारी बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनोयों के विरूद्ध शिकायत दर्ज करने के लिए रिजर्व बैंक की वेबसाइट पर एक एकल खिड़की प्रणाली की सुविधा प्रदान करेगी।
  • RBI द्वारा 3-7 जून,2019 तक वित्तीय साक्षरता सप्ताह मनाए जाने की घोषणा।

वर्ष 2019 के लिये इसकी थीम है-‘किसान’ और‘औपचारिक बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा होने से उन्हें कैसे लाभ होता है’।

वर्ष 2016 से वित्तीय साक्षरता सप्ताह का आयोजन करता आ रहा है। इसके दौरान देश के किसानों को वित्तीय साक्षरता प्रदान की जाएगी तथा उन्हें विभिन्न वित्तीय पहलुओं से अवगत कराया जाएगा।
RBI ने बैंकों और अन्य हितधारकों के लिये 13 भाषाओं में साहित्य भी लॉन्च किया है।

यह आरबीआई का एक केंद्रित अभियान है जिसके माध्यम से हर साल प्रमुख विषयों पर जागरूकता को बढ़ावा दिया जाता है। इस पहल का उद्देश्य वित्तीय उत्पादों और सेवाओं,अच्छी वित्तीय प्रथाओं, डिजिटल तथा उपभोक्ता संरक्षण के बारे में जागरूकता पैदा करना है।

  • रिज़र्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के तीन बैंकों- बैंक ऑफ इंडिया,बैंक ऑफ महाराष्ट्र और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA) के दायरे से बाहर कर दिया है। इसके बाद इन बैंकों द्वारा कर्ज़ बाँटने पर लगा प्रतिबंध हट गया हैं।

तीसरी तिमाही के परिणामों में इन बैंकों का शुद्ध NPA 6% से कम रहा है। इसलिये इन्हें PCA के दायरे से बाहर करने का निर्णय लिया गया है।

  • मार्च 2019 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations-OMO) के माध्यम से अर्थव्यवस्था में पूंजी डालने का निर्णय लिया था। हाल ही में OMO के ज़रिये पूंजी डालने के बावजूद तरलता परिदृश्य में कमी होने की बात सामने आई है।

खुला बाज़ार परिचालन (OMO) धन की कुल मात्रा को विनियमित या नियंत्रित करने के लिये मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरणों में से एक है, जो केंद्रीय बैंक द्वारा अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिये नियोजित की गई है।RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री या खरीद के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के लिये खुले बाज़ार का संचालन किया जाता है। केंद्रीय बैंक, आर्थिक प्रणाली के अंतर्गत तरलता में कमी लाने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता है और इस प्रणाली को नियंत्रित रखने के लिये सरकारी प्रतिभूतियाँ खरीदता है। अक्सर ये परिचालन दिन-प्रतिदिन के आधार पर किये जाते हैं, जो बैंकों को उधार देने में मदद के साथ-साथ मुद्रास्फीति को संतुलित करते हैं। RBI द्वारा अर्थव्यवस्था में रुपए के मूल्य को समायोजित करने के लिये अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों जैसे रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात और वैधानिक तरलता अनुपात के साथ OMO का उपयोग किया जाता है। क्या है मामला?

CARE रेटिंग रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा खुले बाज़ार परिचालन (Open Market Operations-OMO) के माध्यम से बाज़ार में डाली गई मुद्रा (12,500 करोड़ रुपए) तथा वेतन और पेंशन के उच्च सरकारी खर्चों के बावजूद 34,266 करोड़ रुपए की कमी आई है। 15 फरवरी को समाप्त पखवाड़े के दौरान गैर-खाद्य ऋण या व्यक्तियों और कंपनियों के लिये ऋण 14.3 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ा, जो पिछले एक पखवाड़े में 14.4 प्रतिशत (पिछले वर्षों की तुलना में) धीमा था। इसने जमा वृद्धि को पार कर 10.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। बैंक विशेषज्ञों के अनुसार, उच्च ऋण वृद्धि के बीच कम जमा वृद्धि बैंकिंग प्रणाली में तरलता की कमी में योगदान करने वाला एक कारक रहा है।

त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) एक ऐसा ढाँचा है जिसके तहत कमज़ोर वित्तीय तंत्र वाले बैंकों को RBI की निगरानी में रखा जाता है।

RBI ने वर्ष 2002 में PCA फ्रेमवर्क को एक संरचित (Structured) त्वरित हस्तक्षेप तंत्र (Early-Intervention Mechanism) के रूप में उन बैंकों के लिये तैयार किया था जो परिसंपत्ति की ख़राब गुणवत्ता या लाभप्रदता के नुकसान के कारण ख़राब स्थिति में पहुँच चुके थे। इसके तहत भारतीय रिज़र्व बैंक कमज़ोर और संकटग्रस्त बैंकों पर आकलन, निगरानी, नियंत्रण और सुधारात्मक कार्रवाई के लिये कुछ सतर्कता बिंदु आरोपित करता है।

वित्तीय समावेशन[सम्पादन]

  • भारत में माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र के वित्तीय दबावों के बावजूद स्वयं-सहायता समूह महिलाओं के लिये लोकप्रिय मंच के रूप में उभरे हैं। केरल में कुदुम्बश्री (Kudumbashree) और गुजरात में सेल्फ एम्प्लॉइड वुमन एसोसिएशन (Self Employed Women’s Association- SEWA) जैसे स्वयं-सहायता समूह माइक्रोफाइनेंस के लिये बनाए गए थे।

इसी प्रकार 15 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में गठित एक महिला विकास परिषद नामक स्वयं-सहायता समूह के 49 ज़िलों में लगभग 1.5 मिलियन सदस्य हैं। स्वयं-सहायता समूहों का मुख्य उद्देश्य माइक्रोफाइनेंस,उद्यम प्रशिक्षण,मातृ स्वास्थ्य पर सूचना, पोषण शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना है। स्वयं-सहायता समूह, शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक संपर्क, मनोरंजन, सुरक्षा, समुदाय और राजनीतिक सशक्तीकरण जैसे कल्याण के विभिन्न आयामों को बढ़ावा देते हैं।

  • वित्तीय समावेशन कम आय वाले लोग और समाज के वंचित वर्ग को वहनीय कीमत पर भुगतान, बचत, ऋण आदि सहित वित्तीय सेवायें पहुँचाने का प्रयास है। इसे ‘समावेशी वित्तपोषण’ भी कहा जाता है।

वित्तीय समावेशन का मुख्य उद्देश्य उन प्रतिबंधों को दूर करना है जो वित्तीय क्षेत्र में भाग लेने से लोगों को बाहर रखते हैं और किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तीय सेवाओं को उपलब्ध कराना है।

  • विश्व बैंक की वैश्विक वित्तीय समावेशन डेटाबेस या ग्लोबल फाइंडेक्स रिपोर्ट-2017 के अनुसार, वर्ष 2014 में अनुमानित 53% भारतीय वयस्कों के अपेक्षा वर्तमान में 80% वयस्कों के पास एक बैंक खाता है।
  1. भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘वित्तीय साक्षरता’ नामक एक परियोजना शुरू की है।
  2. इस परियोजना का उद्देश्य केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के बारे में विभिन्न लक्षित समूहों जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे, महिलाएँ, ग्रामीण और शहरी गरीब, और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, को वित्तीय जानकारी उपलब्ध कराना है।
  3. भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट्स (National Institute of Securities Markets-NISM’s) ने ‘पॉकेट मनी’ नामक एक प्रमुख कार्यक्रम लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य स्कूली छात्रों में वित्तीय साक्षरता बढ़ाना है।

भारतीय रिज़र्व बैंक और नाबार्ड ने ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये पहल की है। इनमें प्रमुख हैं-

  1. दूरदराज के इलाकों में बैंक शाखाएँ खोलना
  2. किसान क्रेडिट कार्ड जारी करना।
  3. बैंकों के साथ स्व-सहायता समूहों का जुड़ाव।
  4. ऑटोमेटेड टेलर मशीनों (एटीएम) की संख्या बढ़ाना।
  5. बैंकिंग क्षेत्र में व्यावसायिक अभिकर्त्ता मॉडल।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. https://economictimes.indiatimes.com/hindi/wealth/nivesh/are-you-investing-in-tax-free-bonds-only-for-saving-tax/articleshow/69630744.cms
  2. https://www.investopedia.com/terms/e/espp.asp