सामान्य अध्ययन २०१९/2019 में भारतीय संसद एवं राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयक या कानून

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सामान्य अध्ययन २०१९
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अनुच्छेद 370 भारत के संविधान में 17 अक्तूबर, 1949 को शाम‍िल किया गया था। यह अनुच्छेद जम्‍मू-कश्मीर को भारत के संविधान से अलग करता है और राज्‍य को अपना संविधान खुद तैयार करने का अध‍िकार देता है। नवंबर 1956 में जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान बनाने का काम पूरा हुआ और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।

  • 2016 के विधेयक और 2019 के विधेयक में प्रमुख अंतर

प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जान और अवैध प्रवास के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाही बंद करने जैसे प्रावधान वर्ष 2019 के नागरिकता संशोधन विधेयक में नए हैं, जबकि ये वर्ष 2016 के नागरिकता संशोधन विधेयक में नहीं थे। साथ ही छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों के अपवाद का बिंदु भी 2019 के विधेयक में नया है। वर्ष 2016 के विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान किया गया था, जबकि हालिया विधेयक में इसे और कम (5 वर्ष) कर दिया गया है।

संसद ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 पारित किया[सम्पादन]

2019 के शीतकालीन सत्र में पारित यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिनियम बन गया है। नागरिकता अधिनियम, 1955 में किये गये संशोधन के अनुसार,31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत आए हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।

  1. इन प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये केंद्र सरकार को विदेशी अधिनियम,1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 में भी छूट प्रदान करनी होगी।
  2. 1946 और 1920 के अधिनियम केंद्र सरकार को भारत में विदेशियों के प्रवेश,निकास और निवास को नियंत्रित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
  • पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता:-
  1. अधिनियम किसी भी व्यक्ति को पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है लेकिन इसके लिये कुछ योग्यताओं को पूरा करना अनिवार्य है। जैसे-
  2. आवेदनकर्त्ता आवेदन करने के एक वर्ष पहले से भारत में रह रहा हो या उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक हो, तो वह पंजीकरण के बाद नागरिकता के लिये आवेदन कर सकता है।
  3. स्वाभाविक रूप से नागरिकता प्राप्त करने की योग्यता में से एक यह है कि व्यक्ति आवेदन करने से पहले एक निश्चित समयावधि से भारत में रह रहा हो या केंद्र सरकार में नौकरी कर रहा हो और कम-से-कम 11 वर्ष का समय उसने भारत में बिताया हो।
  4. इस योग्यता के संबंध में विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों एवं ईसाइयों के लिये एक प्रावधान है। व्यक्तियों के इन समूहों के लिये 11 साल की अवधि को घटाकर पाँच साल कर दिया जाएगा।
  • नागरिकता प्राप्त करने पर:- (i) ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और (ii) उनके खिलाफ अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में कानूनी कार्यवाही बंद कर दी जायेगी।

संशोधित अधिनियम की व्यावहारिकता

अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता का यह प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय,मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। इन आदिवासी क्षेत्रों में कार्बी आंगलोंग (असम), गारो हिल्स (मेघालय),चकमा जिला (मिज़ोरम) और त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र जिला शामिल हैं।
यह बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन,1873 के तहत ‘इनर लाइन’ में आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। इन क्षेत्रों में इनर लाइन परमिट के माध्यम से भारतीयों की यात्राओं को विनियमित किया जाता है।

वर्तमान में यह परमिट प्रणाली अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड पर लागू है। मणिपुर को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से इनर लाइन परमिट शासन के तहत लाया गया है और उसी दिन संसद में यह बिल पारित किया गया था।[१]

OCI के पंजीकरण को रद्द करना:- अधिनियम में यह प्रावधान है कि केंद्र सरकार कुछ आधारों पर OCI के पंजीकरण को रद्द कर सकती है।(i) यदि OCI ने धोखाधड़ी द्वारा पंजीकरण कराया हो या (ii) यदि पंजीकरण कराने कि तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई हो या (iii)यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के हित में आवश्यक हो। विधेयक पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ता है, इस नए आधार के अनुसार, OCI ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधानों का उल्लंघन किया है तो कार्डधारक को सुनवाई का अवसर दिये बिना OCI रद्द करने के आदेश नहीं दिया जाएगा।

संशोधन अधिनियम को लेकर चिंता
  1. यह 1985 के असम समझौते का उल्लंघन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासियों को धर्म की परवाह किये बिना देश से बाहर निकाल दिया जाएगा।
  2. नागरिकता संशोधन अधिनियम के आने से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizens-NRC) का प्रभाव खत्म हो जाएगा।
  3. असम में अनुमानित 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं और उनके कारण राज्य के संसाधनों एवं अर्थव्यवस्था पर बहुत अधिक दबाव पड़ने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी में भी भारी बदलाव आया है।
  4. यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है (जो नागरिक और विदेशी दोनों को समानता और अधिकार की गारंटी देता है) क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में निहित है।

भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका, तमिल और म्याँमार से आए हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं लेकिन उन्हें अधिनियम के तहत शामिल नहीं किया गया है।

असम समझौते (Assam Accord)15 अगस्त,1985 और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर[सम्पादन]

वर्ष 1971 के पूर्व तथा पश्चात बांग्लादेशी अवैध रूप से असम आते रहे,जिससे जनसंख्या परिवर्तन ने असम के मूल निवासियों में भाषायी,सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर दी और 1978 के आस-पास वहाँ एक आंदोलन शुरू हुआ।

अखिल असम छात्र संघ (All Assam Students Union-AASU) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। AASU के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।1983 की भीषण हिंसा के बाद के संपन्न इस समझौते के अनुसार
  1. 25 मार्च,1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहाँ से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।
  2. 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार।
  3. 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।

असम में इस विधेयक को लेकर विरोध की एक बड़ी वजह यही है कि हालिया नागरिक संशोधन विधेयक असम समझौते का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसके तहत उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो 1971 एवं 2014 से पहले भारत आए हैं।] वर्ष 2005 में सरकार ने 1951 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने का फैसला किया और तय किया कि असम समझौते के तहत 25 मार्च, 1971 से पहले असम में अवैध तरीके से प्रवेश करने वाले लोगों का नाम भी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीज़नशिप में जोड़ा जाएगा। वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर असम में नागरिकों के सत्यापन का कार्य शुरू किया गया। इसके लिये पूरे राज्य में कई NRC केंद्र खोले गए। नागरिकों के सत्यापन के लिये यह अनिवार्य किया गया कि केवल उन्हीं लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के NRC में या 24 मार्च 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों। इस तरह के दस्तावेज़ वाला यह देश का एकमात्र राज्य है, वर्तमान में असम अपने नागरिकों की पहचान करने के लिये NRC को अपडेट कर रहा है।

नागरिकता संशोधन विधेयक,2016 लोकसभा में पारित(अधिनियम 1955 में संशोधन)[सम्पादन]

  1. अवैध प्रवासियों की परिभाषा- नागरिकता अधिनियम, 1955 अवैध प्रवासियों के भारत की नागरिकता हासिल करने पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 इस अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव करता है ताकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए अवैध प्रवासियों (हिंदू,सिख,बौद्ध,जैन,पारसी और ईसाई) को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सके।
लेकिन इन अवैध प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने लिये केंद्र सरकार को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत भी छूट प्रदान करनी होगी।
  1. देशीयकरण द्वारा नागरिकता- 1955 का अधिनियम कुछ शर्तों को पूरा करने वाले किसी भी व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है। लेकिन इस प्रकार नागरिकता प्राप्ति हेतु आवेदन करने के लिये यह अनिवार्य है कि नागरिकता के लिये आवेदन करने वाला व्यक्ति आवेदन करने से पहले एक निश्चित समयावधि से भारत में रह रहा हो अथवा केंद्र सरकार की नौकरी कर रहा हो और-
    1. आवेदन करने वाला व्यक्ति आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले से भारत में रह रहा हो।
    2. 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष उसने भारत में बिताए हों।

लेकिन यह विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू,सिख,बौद्ध,जैन,पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को 6 वर्ष करने का प्रावधान करता है।

  1. भारत के विदेशी नागरिकता (Overseas Citizenship of India-OCI)कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द-

1955 के अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार निम्नलिखित आधारों पर OCI के पंजीकरण को रद्द कर सकती है-

    1. यदि OCI ने धोखाधड़ी के ज़रिये पंजीकरण कराया हो।
    2. यदि पंजीकरण कराने की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि के अंदर OCI कार्डधारक को 2 वर्ष अथवा उससे अधिक समय के लिये कारावास की सजा सुनाई गई हो।
  1. यह विधेयक पंजीकरण रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ने का प्रावधान करता है। इस नए आधार के अनुसार,यदि OCI ने देश के किसी कानून का उल्लंघन किया हो तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
इस विधेयक के अनुसार, सरकार अब किसी भी उल्लंघन की स्थिति में OCI पंजीकरण को रद्द कर सकती है। इसमें हत्या जैसे गंभीर अपराध और ट्रैफिक कानून के उल्लंघन (जैसे नो पार्किंग ज़ोन में वाहन खड़ा करना या लाल बत्ती पार करना आदि) जैसे मामूली अपराध भी शामिल होंगे।

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण हेतू 124वां संविधान संशोधन विधेयक,2019 संसद से पारित[सम्पादन]

हाल में लोकसभा में पारित इस विधेयक के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 15 व 16 में संशोधन करने का प्रस्ताव किया है।

पात्रता:- परिवार की आय आठ लाख रुपए सालाना से कम।यह OBC आरक्षण में लागू क्रीमीलेयर की सीमा है। जिनकी कृषि योग्य भूमि पाँच एकड़ से कम।आवासीय घर एक हजार वर्ग फीट से कम।अधिसूचित नगरपालिका में 100 गज़ से कम का प्लॉट।गैर अधिसूचित नगरपालिका इलाके में आवासीय प्लॉट की सीमा 200 गज़

ऐतिहासिकता:-इसके पूर्व 21 बार प्राइवेट मेंबर बिल लाकर अनारक्षित वर्ग के लिए आरक्षण संबंधी सुविधाएँ प्रदान करने की माँग हुईं। मंडल आयोग ने भी इसकी अनुशंसा की थी। नरसिंह राव सरकार ने 1992 में एक प्रावधान किया था पर संविधान संशोधन नहीं होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया।

  1. सिन्नो कमीशन (कमीशन टू एग्ज़ामिन सब-कैटेगोराइजेशन ऑफ ओबीसी) ने 2004 से 2010 तक इस बारे में काम किया और 2010 में तत्कालीन सरकार को प्रतिवेदन दिया.
  2. मोदी सरकार ने इसी कमिशन की सिफ़ारिश के आधार पर संविधान संशोधन बिल तैयार किया है।
  3. प्रस्तावित आरक्षण का कोटा वर्तमान कोटे से अलग होगा. अभी देश में कुल 49.5 फ़ीसदी आरक्षण है। अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फ़ीसदी, अनुसूचित जातियों को 15 फ़ीसदी और अनुसूचित जनजाति को 7.5 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है.
  4. संविधान के आर्टिकल 15 में 15.6 जोड़ा गया है जिसके अनुसार राज्य और भारत सरकार को इस संबंध में कानून बनाने से नहीं रोका जा सकेगा।
  5. इसके अनुसार आर्थिक रूप से दुर्बल सामान्य वर्ग को शैक्षणिक संस्थानों में 10 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव किया गया है।
  6. संविधान के 16 आर्टिकल में एक बिंदु जोड़ा जाएगा जिसके अनुसार राज्य सरकार और केंद्र सरकार 10 फ़ीसदी आरक्षण दे सकते हैं
  7. ग़रीब सवर्णों को प्रस्तावित 10 फ़ीसदी आरक्षण मौजूदा 50 फ़ीसदी की सीमा से अलग होगा.

मानवाधिकार संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2019[सम्पादन]

यह विधेयक मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के कुछ प्रावधानों को विस्थापित करेगा।

  1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का ढाँचा:-अब तक आयोग के अध्यक्ष के रूप में केवल उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही नियुक्त किया जा सकता था। किंतु संशोधन के पश्चात् अध्यक्ष पद के लिये उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी योग्य होंगे। इस अधिनियम में ऐसे दो सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान था जिन्हें मानवाधिकारों के क्षेत्र की व्यापक समझ एवं ज्ञान हो। संशोधन के बाद इस संख्या को बढ़ाकर तीन कर दिया गया है, इसमें कम-से-कम एक महिला सदस्य का होना आवश्यक है।
  2. इस अधिनियम के अंतर्गत पूर्व में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) तथा राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के अध्यक्ष ही मानवाधिकार आयोग के सदस्य होते थे लेकिन अब राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC), बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष तथा दिव्यांगों के लिये मुख्य आयुक्त को भी NHRC का सदस्य नियुक्त किया जाएगा।
  3. राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC): संशोधन से पूर्व SHRC का अध्यक्ष उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता था लेकिन अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी SHRC के अध्यक्ष बन सकेंगे।
  4. कार्यकाल: अधिनियम के अंतर्गत NHRC तथा SHRC के अध्यक्ष का कार्यकाल पाँच वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु (जो भी पहले पूर्ण हो) होती थी। संशोधन के बाद घटा कर 3 वर्षअथवा 70 वर्ष कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त 5 वर्ष की अवधि के लिये NHRC तथा SHRC के अध्यक्ष की पुनर्नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है।
  5. शक्तियाँ: अधिनियम के अंतर्गत NHRC के महासचिव तथा SHRC के सचिव उन्हीं शक्तियों का उपयोग करते थे जो उन्हें सौंपी जाती थी। संशोधन के पश्चात् उपर्युक्त अधिकारी अपने अध्यक्ष के अधीन सभी प्रशासनिक एवं वित्तीय शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे यद्यपि इसमें न्यायिक शक्तियाँ शामिल नहीं है।
  6. संघशासित क्षेत्र: संशोधन के बाद संघशासित क्षेत्र से संबंधित मामलों को केंद्र सरकार SHRC को प्रदान कर सकती है। किंतु दिल्ली से संबंधित मामले NHRC द्वारा निपटाए जाएँगे।

वर्ष 2018 में ही इस अधिनियम की 25वीं वर्षगाँठ मनाई गई। पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने इसे ‘India’s teasing illusion’ की संज्ञा दी है।

आयोग की संरचना (संशोधन के उपरांत)[सम्पादन]

NHRC एक बहु-सदस्यीय संस्था है। इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति (प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उप-सभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी नेता तथा केंद्रीय गृहमंत्री) की सिफारिशों के आधार पर की जाती है। अध्यक्ष और सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्षों या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, तक होता है। इन्हें इनके पद से केवल तभी हटाया जा सकता है जब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की जाँच में इन पर दुराचार या असमर्थता के आरोप सिद्ध हो जाएं। इसके अतिरिक्त आयोग में पाँच विशिष्ट विभाग (विधि विभाग, जाँच विभाग, नीति अनुसंधान एवं कार्यक्रम विभाग, प्रशिक्षण विभाग और प्रशासन विभाग) भी होते हैं। राज्य मानवाधिकार आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा राज्य के मुख्यमंत्री, राज्य के गृह मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष एवं नेता प्रतिपक्ष के परामर्श पर की जाती है।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019[सम्पादन]

लोकसभा ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक सशक्तीकरण के लिये एक विधेयक पारित किया। इस विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये एक कार्य प्रणाली उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है । इस विधेयक से हाशिये पर खड़े इस वर्ग के विरूद्ध लांछन, भेदभाव और दुर्व्यवहार कम होने तथा इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने से अनेक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लाभ पहुँचेगा। इससे समग्रता को बढ़ावा मिलेगा और ट्रांसजेंडर व्यक्ति समाज के उपयोगी सदस्य बन जाएंगे। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक बहिष्कार से लेकर भेदभाव, शिक्षा सुविधाओं की कमी, बेरोज़गारी, चिकित्सा सुविधाओं की कमी, जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक, 2019 एक प्रगतिशील विधेयक है क्योंकि यह ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाएगा। ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019[Transgender Persons (Protection of Rights) Bill 2019]

  1. ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करना।
  2. ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरुद्ध विभेद का प्रतिषेध करना।
  3. ऐसे व्यक्ति को उस रूप में मान्यता देने के लिये अधिकार प्रदत्त करने और स्वत: अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान का अधिकार प्रदत्त करना।
  4. पहचान-पत्र जारी करना।
  5. यह उपबंध करना कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति को किसी भी स्थापन में नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों के विषय में विभेद का सामना न करना पड़े।
  6. प्रत्येक स्थापन में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
  7. विधेयक के उपबंधों का उल्लंघन करने के संबंध में दंड का प्रावधान सुनिश्चित करना।

ट्रांसजेंडर वह व्यक्ति है, जो अपने जन्म से निर्धारित लिंग के विपरीत लिंगी की तरह जीवन बिताता है। जब किसी व्यक्ति के जननांगों और मस्तिष्क का विकास उसके जन्म से निर्धारित लिंग के अनुरूप नहीं होता है तब महिला यह महसूस करने लगती है कि वह पुरुष है और पुरुष यह महसूस करने लगता है कि वह महिला है।

भारत में ट्रांसजेंडर्स के समक्ष आने वाली परेशानियाँ ट्रांसजेंडर समुदाय की विभिन्न सामाजिक समस्याएँ जैसे- बहिष्कार, बेरोज़गारी, शैक्षिक तथा चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शादी व बच्चा गोद लेने की समस्या,आदि। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मताधिकार वर्ष 1994 में ही मिल गया था, परंतु इन्हें मतदाता पहचान-पत्र जारी करने का कार्य पुरुष और महिला के प्रश्न पर उलझ गया। इन्हें संपत्ति का अधिकार और बच्चा गोद लेने जैसे कुछ कानूनी अधिकार भी नहीं दिये जाते हैं। इन्हें समाज द्वारा अक्सर परित्यक्त कर दिया जाता है, जिससे ये मानव तस्करी का आसानी से शिकार बन जाते हैं। अस्पतालों और थानों में भी इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।

राज्यसभा में कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया।[सम्पादन]

राज्यसभा ने कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया। यह विधेयक कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility-CSR) के मानदंडों को कठोर बनाने और कंपनी कानून के नियमों का पालन न करने वालों के लिये सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करता है।लोकसभा ने इस विधेयक को 26 जुलाई, 2019 को ही पारित कर दिया था।

  1. इस विधेयक में वर्ष 2018 के अध्यादेश के सभी प्रावधानों के साथ ही नए संशोधन भी शामिल किये गए हैं।
  2. इस विधेयक में मुख्य परिवर्तन कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के व्यय से संबंधित प्रावधान में किया गया है जिसके अनुसार, कंपनी को CSR का बचा हुआ पैसा एक विशेष खाते में रखना अनिवार्य होगा।
  3. यह विधयेक कंपनी रजिस्ट्रार को अधिकार देता है कि वह कंपनियों के रजिस्टर से उस कंपनी का नाम हटाने के लिये कार्रवाई शुरू करे, जो कंपनी कानून के अनुसार किसी भी व्यवसाय या कार्य को नहीं कर रही है।
  4. यह विधेयक 16 छोटे अपराधों को फिर से सिविल डिफ़ॉल्ट की श्रेणी में रखने और केंद्र सरकार को वित्तीय वर्ष बदलने के लिये प्राप्त आवेदनों के निस्तारण हेतु कार्यों के हस्तांतरण का भी प्रावधान करता है।
  5. यह प्रावधान विदेशी कंपनियों की सहायक कंपनियों को एकाउंटिंग सुविधा के लिये अपने वित्तीय वर्ष को भारत के वित्तीय वर्ष के अतिरिक्त उक्त विदेशी कंपनी के अनुसार किसी अन्य देश के वित्तीय वर्ष को अपनाने की अनुमति प्रदान करेगा।
  6. यह विधेयक सार्वजनिक कंपनी को निजी कंपनी में परिवर्तित करने हेतु आवश्यक शक्तियों को NCLT से केंद्र सरकार को स्थानांतरित करने के साथ-साथ राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) की कुछ शक्तियों के संबंध में अधिक स्पष्टता प्रदान करता है।

लोकसभा ने कंपनी अधिनियम (Companies Act) संशोधन विधेयक पारित कर दिया है।[सम्पादन]

यदि कोई कंपनी अपने द्वारा निर्धारित कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (Corporate Social Responsibility-CSR) फंड की राशि एक निश्चित अवधि में खर्च नहीं करेगी तो वह राशि स्वयं ही एक विशेष खाते में जमा हो जाएगी। भारत ऐसा पहला देश है जिसने देश की सभी कंपनियों के लिये CSR की धनराशि को खर्च करना कानूनी रूप से अनिवार्य बना दिया है। सभी कंपनियों को एक साल में CSR को खर्च करने से संबंधित प्रस्ताव तैयार करना होगा और अगले तीन सालों में उस प्रस्ताव पर धनराशि खर्च करनी होगी। कंपनी अधिनियम की धारा 135 के अनुसार, निम्नलिखित कंपनियों को अपने तीन वर्षों के औसत शुद्ध लाभ का कम से कम 2 प्रतिशत हिस्सा CSR पर खर्च करना होगा :

  1. जिनका नेटवर्थ 500 करोड़ रुपए या उससे अधिक है।
  2. जिनका टर्नओवर 1000 करोड़ या उससे अधिक है।
  3. जिनका औसत लाभ 5 करोड़ या उससे अधिक है।

इसके अतिरिक्त NCLT के भार को कम करने के लिये यह तय किया गया है कि 25 लाख तक के विवादों का निपटारा क्षेत्रीय स्तर का अधिकारी करेगा। इस संशोधन से पूर्व कुल 81 प्रकार के कानून उल्लंघनों को आपराधिक श्रेणी में शामिल किया जाता था, परंतु संशोधन के पश्चात् इनमें से 16 को सिविल मामलों में शामिल कर दिया गया है।

कंपनी अधिनियम, 2013 भारत में 30 अगस्त 2013 को लागू हुआ था।

यह अधिनियम भारत में कंपनियों के निर्माण से लेकर उनके समापन तक सभी स्थितियों में मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। कंपनी अधिनियम के तहत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण की स्थापना हुई है। कंपनी अधिनियम, 2013 ने ही ‘एक व्यक्ति कंपनी’ की अवधारणा की शुरुआत की। राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (National Company Law Tribunal-NCLT) का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 18 के तहत किया गया था। कंपनियों के दिवालिया होने से संबंधित कानून पर जस्टिस इराडी कमेटी की सिफारिश के आधार पर 1 जून, 2016 से काम कर रहा है। NCLT एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो भारतीय कंपनियों से संबंधित मुद्दों पर निर्णय देता है। NCLT में कुल ग्यारह पीठ हैं, जिसमें नई दिल्ली में दो (एक प्रमुख) तथा अहमदाबाद, इलाहाबाद, बंगलूरू, चंडीगढ़, चेन्नई, गुवाहाटी, हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में एक-एक पीठ है।

राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (संशोधन) विधेयक,2019 (National Investigation Agency-NIA)संसद से पारित[सम्पादन]

इसके द्वारा NIA को भारत से बाहर अपराध के संबंध में मामले को दर्ज कर जाँच करने का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक से NIA की जाँच का दायरा बढ़ाया जा सकेगा और यह विदेशों में भी भारतीय तथा भारतीय परिसंपत्तियों से जुड़े मामलों की जाँच कर सकेगी, साथ ही NIA को मानव तस्करी और साइबर अपराध से जुड़े विषयों की जाँच का अधिकार देने का प्रावधान भी विधेयक में किया गया है।[२]

  • सूचीबद्ध अपराध (Scheduled Offences):-इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधों की एक सूची बनाई गई है जिन पर NIA जाँच कर सकती है और मुकदमा चला सकती है। इस सूची में परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (Atomic Energy Act) और गैर-कानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम, 1967 (Unlawful Activities Prevention Act) जैसे अधिनियमों के तहत सूचीबद्ध अपराध शामिल हैं।

यह अधिनियम NIA को निम्नलिखित अपराधों की जाँच करने की अनुमति देता है:

  1. मानव तस्करी
  2. जाली मुद्रा या बैंक नोटों से संबंधित अपराध
  3. प्रतिबंधित हथियारों का निर्माण या बिक्री
  4. साइबर आतंकवाद
  5. विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 (Explosive Substances Act) के तहत अपराध
  • NIA का क्षेत्राधिकार (Jurisdiction of the NIA):-NIA के अधिकारियों के पास पूरे देश में उपरोक्त अपराधों की जाँच करने के संबंध में अन्य पुलिस अधिकारियों के समान ही शक्तियाँ प्राप्त हैं।

NIA के पास भारत के बाहर घटित ऐसे सूचीबद्ध अपराधों की जाँच करने की शक्ति होगी, जो अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अन्य देशों के घरेलू कानूनों के अधीन है। केंद्र सरकार, NIA को भारत में घटित सूचीबद्ध अपराध के मामलों की जाँच के सीधे निर्देश दे सकेगी। सूचीबद्ध अपराधों के मामले नई दिल्ली की विशेष अदालत के अधिकार क्षेत्र में आ जाएंगे।

  1. विशेष न्यायालय (Special Courts):-यह अधिनियम सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई हेतु केंद्र सरकार को विशेष न्यायालयों का गठन करने की अनुमति देता है। साथ हीं केंद्र सरकार सूचीबद्ध अपराधों के संबंध में मुकदमा चलाने के लिये सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालयों के रूप में नामित कर सकती है। परंतु उससे पूर्व उसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लेना आवश्यक है, जिसके तहत सत्र न्यायालय कार्यरत होता है।

यदि किसी क्षेत्र के लिये एक से अधिक विशेष न्यायालय नामित किये जाते हैं, तो वरिष्ठतम न्यायाधीश इन न्यायालयों के मध्य मामलों का वितरण करेगा। इसके अलावा राज्य सरकारें भी सूचीबद्ध अपराधों की सुनवाई हेतु विशेष न्यायालयों के रूप में सत्र न्यायालयों को नामित कर सकती हैं।

NIA 31 दिसंबर, 2008 को संसद द्वारा पारित राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम, 2008 के लागू होने के साथ अस्तित्व में आई थी। वर्ष 2008 में मुंबई पर हुए भीषण आतंकी हमले के बाद आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये एक केंद्रीय एजेंसी की ज़रूरत महसूस की गई और NIA का गठन हुआ। आतंकी हमलों की घटनाओं, आतंकवाद के वित्तपोषण एवं आतंक संबंधित अन्य अपराधों का अन्वेषण करने के लिये गठित NIA के संस्थापक महानिदेशक राधा विनोद राजू थे।

अप्रैल 2002 में आतंकवादी गतिविधि रोकथाम कानून आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियाँ निरोधक कानून (Terrorist And Disruptive Act-TADA) 1985 से 1995 के बीच लागू था। इसे सर्वप्रथम अध्यादेश के ज़रिये लागू किया गया था। पंजाब में बढ़ते आतंकवाद के चलते सुरक्षा बलों को विशेषाधिकार देने के लिये इसे कानून बना दिया गया था।

लोकसभा में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,2019पारित[सम्पादन]

इस अधिनियम के द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 में संशोधन कर उपभोक्ताओं के अधिकारों को मज़बूत बनाने का प्रयास एवं उनके हितों की रक्षा करने का प्रयास किया गया है। यह विधेयक उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान की प्रक्रिया को भी आसान बनाएगा। इसके अतिरिक्त इस विधेयक के माध्यम से उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय भी दिलाया जा सकेगा।

  • यह विधेयक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव करता है। जिसके पास निम्नलिखित अधिकार होंगे।:- [३]
  1. उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और संस्थान द्वारा की गई शिकायतों की जाँच करना।
  2. असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेना एवं उचित कार्यवाही करना।
  3. भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना।
  4. भ्रामक विज्ञापनों के निर्माताओं और प्रसारकों पर ज़ुर्माना लगाना।
  • नए विधेयक में उपभोक्ताओं से संबंधित किसी भी विवाद के समाधान की प्रक्रिया को काफी सरल बनाने का प्रयास किया गया है। इसके तहत निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं:-
  1. उपभोक्ता आयोग के आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है;
    1. ज़िला आयोग- 1 करोड़ रुपए तक
    2. राज्य आयोग- 1 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए तक
    3. राष्ट्रीय आयोग -10 करोड़ रुपए से अधिक के मामलों तक
  2. शिकायत दाखिल करने के 21 दिनों के बाद शिकायत की स्वत:स्वीकार्यता।
  3. उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने आदेशों को लागू कराने का अधिकार।
  4. उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी।
  5. सुनवाई के लिये वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा।
  • यदि किसी उत्‍पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा। विधेयक के अनुसार, किसी उत्पाद में निम्नलिखित आधारों पर दोष हो सकता है:
  1. उत्पाद/सेवा के निर्माण में दोष।
  2. डिज़ाइन में दोष।
  3. उत्‍पाद की घोषित विशेषताओं से वास्‍तविक उत्‍पाद का अलग होना।
  4. प्रदान की जाने वाली सेवाओं का दोषपूर्ण होना।

वर्तमान में उपभोक्‍ता संबंधी मामलों में न्याय पाने के लिये उपभोक्‍ताओं के पास मात्र उपभोक्ता आयोग ही एक विकल्‍प है, जिसके कारण न्याय मिलने में काफी समय लगता है। CCPA के गठन से उपभोक्ताओं को त्वरित न्याय प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, 2019 राज्यसभा से पारित।[सम्पादन]

  1. यह विधेयक उपयोगकर्ताओं को बैंक खाते खोलने और मोबाइल फोन कनेक्शन प्राप्त करने के लिये पहचान के प्रमाण के रूप में आधार (Aadhaar) के स्वैच्छिक उपयोग की अनुमति देता है।
  2. इस संशोधन का प्रमुख उद्देश्य आधार के उपयोग के लिये निर्धारित मानदंडों के उल्लंघन पर सख्त जुर्माना लगाना है।संशोधन के तहत आधार नियमों का उल्लंघन करने वाली फर्मों पर 1 करोड़ रुपए का जुर्माना व जेल का प्रावधान है।
  3. यह संशोधन जनहित की सेवा करने और आधार के दुरुपयोग को रोकने के लिये एक मजबूत तंत्र के निर्माण में सक्षम होगा।
  4. इस संशोधन में निजी संस्थाओं द्वारा आधार के उपयोग से संबंधित आधार अधिनियम की धारा 57 को हटाने का भी प्रस्ताव है ।

राज्यसभा ने मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित[सम्पादन]

लोकसभा में पारित यह विधेयक राज्यसभा में भी पारित किया जा चुका है। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 में संशोधन करके इस विधेयक को पारित किया गया है। केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक को निम्नलिखित संशोधनों के साथ पारित किया गया है:-

  1. सड़क सुरक्षा के संबंध में नियमों का उल्लंघन करने वाले लोगोंं को दण्डित करने के लिये ज़ुर्माने में बढोत्तरी का प्रस्ताव किया गया है।नाबालिकों के वाहन चलाने, बिना लाइसेंस के, नशे में वाहन चलाने, गति-सीमा से अधिक गति से वाहन चलाने, सीमा से अधिक माल ले जाने के संबंध में कठोर प्रावधान किये गए हैं। हेलमेट के प्रयोग के संबंध में जारी किये गए नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिये भी कठोर प्रावधान किया गया है। मोटर वाहनोंं से संबंधित दंड शुल्क में प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी।
  2. वाहनोंं की फिटनेस :-विधेयक में वाहनोंं के लिये स्वचालित फिटनेस का प्रावधान किया गया है। इससे परिवहन विभाग में भष्ट्राचार कम करने के साथ-साथ वाहनों की सड़क पर चलने की क्षमता में बढोत्तरी होगी। विधेयक में दोषयुक्त वाहनों को अनिवार्य रूप से वापस मंगाने एवं वाहन कंपनियों की अनियमितता की जाँच करने संबंधी शक्तियों का भी प्रावधान किया गया है।
  3. वाहनों को वापस कंपनी द्वारा मंगाना:-इस विधेयक में वाहनों में किसी कमी के कारण पर्यावरण, चालक या सड़क का इस्तेमाल करने वाले अन्य लोगों को होने वाले नुकसान के चलते केंद्र सरकार द्वारा ऐसे वाहनोंं को कंपनी को वापस भेजने का आदेश देने की अनुमति दी गई है।
  4. राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड के गठन का प्राबधान किया गया है। यह बोर्ड केंद्र एवं राज्य सरकारों को सड़क सुरक्षा के सभी प्रावधानों और मोटर वाहनोंं के मानकों,वाहनों के पंजीकरण एवं लाइसेंस,सड़क सुरक्षा के मानकों तथा नई वाहन प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन देने के सतह-साथ यातायात प्रबंधन संबंधी विषयों पर सुझाव देगा।
  5. सड़क दुर्घटना में घायल लोगों की मदद करने के लिये विधेयक में दिशा-निर्देश शामिल किये गए हैं। विधेयक में दुर्घटना के बाद के संवेदनशील समय में नकदी रहित उपचार की योजना का प्रावधान किया गया है।
  6. तृतीय पक्षीय बीमा :-विधेयक में चालक के परिचालन को तृतीय पक्ष बीमा में शामिल किया गया है। बीमा राहत राशि में दस गुना बढोत्तरी कर इसे 50 हज़ार रुपए से बढ़ाकर 5 लाख रुपए किया गया है। दावा प्रकिया को सरल बनाया गया है। यदि पीड़ित का परिवार 5 लाख रुपए की राहत राशि स्वीकार करने को तैयार हो जाता है तो बीमा फर्म को 1 माह के भीतर दावे का भुगतान करना होगा।
  7. मोटर वाहन दुर्घटना निधि :- का गठन सभी लोगों के लिये अनिवार्य बीमा कवर सुनिश्चित करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा किया जाना चाहिये।
  8. ई-सुशासन द्वारा सेवाओं में सुधार :-
    1. विधेयक में फर्जी वाहन लाइसेंस से बचने के लिये ऑनलाइन लर्नर लाइसेंस केस के साथ आवश्यक ऑनलाइन पहचान चालक परीक्षण का प्रावधान किया गया है।
    2. नए वाहनों के पंजीकरण में सुधार करने के लिये डीलर द्वारा पंजीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा और अस्थायी पंजीकरण पर रोक लगाई जाएगी।

राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयक[सम्पादन]

राजस्थान विधानसभा द्वारा मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) और ऑनर किलिंग के विरुद्ध विधेयक पारित कर[सम्पादन]

पहलू खान हत्याकांड राजस्थान में मॉब लिंचिंग का एक बहुचर्चित उदाहरण है, जिसमे कुछ तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ द्वारा गौ तस्करी के झूठे आरोप में पहलू खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। नए कानून के तहत कई प्रावधान किए गए हैं:-

  1. मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग, संज्ञेय और गैर-ज़मानती अपराध बन गए हैं।
  2. अब आजीवन कारावास तथा 5 लाख रुपए तक के जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
  3. विधेयक में दोषी के लिये मौत की सज़ा का भी प्रावधान किया गया है।
  4. इस संदर्भ में दर्ज किये गए सभी मामलों की जाँच इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी।
  5. राज्य का DGP लिंचिंग को रोकने के लिये राज्य समन्वयक (State Coordinator) के रूप में एक IG या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी की नियुक्ति भी करेगा।
  6. यदि लिंचिंग का शिकार हुए पीड़ित व्यक्ति को ‘सामान्य चोटें’ या फिर ‘गंभीर चोटें’ आती हैं तो अभियुक्त को क्रमशः सात दिन या फिर दस साल तक की सज़ा हो सकती है।
  7. यदि इस हमले के कारण पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो अभियुक्त को उम्रकैद की सज़ा हो सकती है।
  8. यह विधेयक षड्यंत्रकारियों को भी जवाबदेह बनता है।

भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जान-बूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है। भीड़ द्वारा किसी की हत्या किये जाने पर IPC की धारा 302 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है और इसी तरह भीड़ द्वारा किसी की हत्या का प्रयास करने पर धारा 307 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है तथा इसी के तहत कार्यवाही की जाती है। IPC की धारा 223A में भी इस तरह के अपराध के लिये उपयुक्त क़ानून के इस्तेमाल की बात कही गई है, सीआरपीसी में भी स्पष्ट रूप से इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

सन्दर्भ[सम्पादन]

  1. https://www.prsindia.org/hi/billtrack/%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B6%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B2-2019
  2. https://navbharattimes.indiatimes.com/india/lok-sabha-passes-the-national-investigation-agency-amendment-bill-2019-know-all-about/articleshow/70229114.cms
  3. PRS LEGISLATIVE RESEARCH