साहित्य सिद्धान्त - 1/रस का स्वरूप, रस के अंग

विकिपुस्तक से

रस का स्वरूप[सम्पादन]

रस शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में प्रचलित है। ऋगवेद आदि वैदिक साहित्य में यह शब्द जल, द्रव, वीर्य, सार, स्वाद, विष, मधुर, सोमरस, सुरा,वाणी का रस, जीवन, परमात्मा आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ। दैनिक व्यवहार में रस शब्द का अर्थ विविध रूपों में व्यंजित है।

विभानुभावव्यभिचारीसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः सूत्र में भरतमुनि ने रस की परिभाषा नहीं दी है अपितु रस-निष्पत्ति की प्रक्रिया का विवेचन किया है। प्रकारांतर से उन्होंनें इसी सूत्र के माध्यम ने रस के स्वरूप पर भी प्रकाश डाला है। रस को रस इसलिए कहते है, क्योंकि वह आस्वाद्य होता है। अव प्रश्न उठता है, कि रस आस्वाद्य साम्रागी है या आस्वाद!