सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19

विकिपुस्तक से


आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में प्रयुक्त ‘लाइटहाउस इफेक्ट’ शब्द किसको संदर्भित करता है?-यह अनौपचारिक क्षेत्र में वेतन वृद्धि और न्यूनतम वेतन के बीच संबंध को दर्शाता है।

भारत में न्यूनतम वेतन सबसे कम वेतन प्राप्त करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा के लिये एक पारंपरिक फ्लोर वेज (Floor Wage) के रूप में कार्य नहीं करता है। लेकिन कई अनुमानों के मुताबिक न्यूनतम वेतन एक बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है जो कमज़ोर/असुरक्षित श्रमिकों की सौदेबाज़ी की क्षमता को बढ़ाकर कम-मज़दूरी और अनौपचारिक क्षेत्र में वेतन वृद्धि करता है। इसे लाइटहाउस प्रभाव कहते हैं। न्यूनतम वेतन एक संकेतक (लाइटहाउस) की तरह कार्य करता है। श्रमिकों के लिये न्यूनतम वेतन का निर्धारण छोटे उद्यमों और अनौपचारिक क्षेत्र में भी न्यूनतम मज़दूरी को निर्देशित करता है। यहाँ तक कि स्व-नियोजित श्रमिक भी अपने उत्पादों या सेवाओं के लिए भुगतान की जाने वाली मजदूरी निर्धारित करने हेतु न्यूनतम मज़दूरी का एक संदर्भ के रूप में उपयोग कर पाते है।

उच्चतम रोज़गार लोच वाले उप-क्षेत्रों का अवरोही क्रम निम्नलिखित हैं- रबर और प्लास्टिक उत्पाद> इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पाद> परिवहन उपकरण> बिजली, गैस और जल आपूर्ति> लकड़ी और लकड़ी के उत्पाद। रोज़गार पर आर्थिक विकास के प्रभाव को बढ़ाने के लिए, इस तरह के उच्च रोज़गार लोचदार क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना होगा। रोज़गार लोच आर्थिक विकास में प्रतिशत परिवर्तन के सापेक्ष रोज़गार में प्रतिशत परिवर्तन दर्शाता है। रोज़गार लोच किसी अर्थव्यवस्था की अपनी वृद्धि (विकास) प्रक्रिया के प्रतिशत के अनुसार अपनी अर्थव्यवस्था के लिये रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने की क्षमता को इंगित करता है।

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा मासिक रूप से IIP के अनुमान प्रकाशित किये जाते है। वर्ष 2011-12 की शृंखला के आधार पर संशोधन के बाद IIP के तीन क्षेत्र हैं: (i) खनन, (ii) विनिर्माण (iii) विद्युत। IIP के संदर्भ में वित्तीय वर्ष 2017-18 के दौरान औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर 4.4% थी, जो वित्तीय वर्ष 2018-19 में घटकर 3.6% रह गई। खनन, विनिर्माण और बिजली क्षेत्रों ने वर्ष 2018-19 में क्रमशः 2.9%, 3.6% और 5.2% की सकारात्मक वृद्धि दर दर्ज की। IIP के तहत विनिर्माण क्षेत्र का भारांश 77.63%, खनन क्षेत्र का 14.37% और विद्युत क्षेत्र का भारांश 7.99% है।

गिनी सूचकांक/गुणांक आय असमानता मापन हेतु सामान्य रूप से उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है, जो किसी देश के लिये 0 और 1 के मध्य एकल संख्या में संपूर्ण आय वितरण को दर्शाता है। जबकि आय या संपदा के वितरण का आलेखात्मक निरूपण लॉरेंज वक्र के माध्यम से किया जाता है। एक उच्च गिनी सूचकांक अधिक असमानता को इंगित करता है, जिसमें उच्च आय वाले व्यक्तियों को जनसंख्या की कुल आय का अधिक प्रतिशत प्राप्त होता है। वर्ष 1993 और वर्ष 2011 के मध्य भारत में औसत वास्तविक मज़दूरी में वृद्धि हुई है। सबसे तीव्र वृद्धि अनौपचारिक, महिलाओं और ग्रामीण/कृषि श्रम श्रमिकों (ILO 2018 के अनुसार) के लिये दर्ज की गई है। इस बढ़ोतरी के बावजूद, गिनी सूचकांक द्वारा मापी गई मौजूदा वेतन असमानता अंतर्राष्ट्रीय मानकों से बहुत अधिक है और यह देखा गया है कि यह असमानता नियमित श्रमिकों के बीच बढ़ी है, जबकि अनौपचारिक श्रमिकों के बीच घटी है।

काटोविस क्लाइमेट पैकेज जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के कार्यान्वयन दिशा-निर्देशों पर प्रकाश डालता है, जिसमें समझौते को संचालित करने वाले प्रक्रिया और तंत्र शामिल है।

यह राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (NDCs) के दूसरे दौर के लिये मार्गदर्शन प्रदान करता है जिन्हें राष्ट्रों द्वारा वर्ष 2025 तक प्रस्तुत किया जाएगा।

पेरिस समझौते के तहत अभीष्ट राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) में भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक कुल बिजली उत्पादन का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त करना है। सामान्य किंतु विभेदीकृत ज़िम्मेदारियाँ और संबंधित क्षमताएँ (Common but Differentiated Responsibilities and Respective Capabilities: CBDR-RC) संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के तहत एक सिद्धांत है।

राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो कृषि मंत्रालय के अधीन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों की शृंखला में से एक है।

भारत सरकार ने वर्ष 1956 में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान,नागपुर में (मुख्यालय) अखिल भारतीय मृदा सर्वेक्षण संगठन की स्थापना की।

वर्ष 1976 में यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का एक स्वायत्त संस्थान बन गया। इसे राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो नाम दिया गया।

इसके द्वारा भूमि जियो-पोर्टल (BHOOMI Geo-portal) को देश के प्रमुख प्राकृतिक भौगोलिक क्षेत्रों, उप-प्राकृतिक भौगोलिक क्षेत्रों, कृषि-पारिस्थितिकीय क्षेत्रों और उप-कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों पर विभिन्न विषयगत सूचनाओं तक पहुँच के लिये विकसित किया गया है।
इसने राष्ट्रीय संसाधन सूची (National Resource Inventory- NRI) भी तैयार की है।

राष्ट्रीय संसाधन सूची सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की स्थिति का एक डिजिटलीकृत मानचित्र है। यह स्थायी कृषि उत्पादकता को निरंतर बनाए रखने के लिये सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को स्थान विशेष के अनुरूप उपयोग करने के तरीके उपलब्ध कराने में सहायक होगी।

भारतीय राष्ट्रीय इंटरनेट एक्सचेंज (NIXI) कंपनी अधिनियम 2013 की धारा-8 के तहत स्थापित एक गैर-लाभकारी संगठन है। इसे 19 जून, 2003 में पंजीकृत किया गया था।

इंटरनेट एक्सचेंज प्वाइंट एक ऐसी सुविधा है, जो इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (Internet Service Providers- ISP) की पहुँच को बढ़ाने और ट्रैफिक के आदान-प्रदान की अनुमति देता है, जिसे पियरिंग (Peering) भी कहा जाता है। यह इंटरनेट सेवा प्रदाताओं को अंतर्राष्ट्रीय बैंडविड्थ पर व्यय की बचत करने में सहायता करता है और विलंबता को कम करके ग्राहकों के लिये कनेक्टिविटी में सुधार करता है।
NIXI को देश के भीतर घरेलू इंटरनेट ट्रैफिक को नियमित करने के उद्देश्य से इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिये स्थापित किया गया था, ताकि सेवा की बेहतर गुणवत्ता (कम विलंबता) को सुनिश्चित किया जा सके और ISP के लिये बैंडविड्थ शुल्क को कम किया जा सके।

बचत का महत्त्व उच्च निवेश प्रयासों को घरेलू बचत से अवश्य समर्थन दिया जाना चाहिये। इस परिघटना को फेल्डस्टीन-होरिओका पज़ल (Feldstein-Horioka Puzzle) कहा गया है। बचत एवं विकास सकारात्मक रूप से सहसंबंधित हैं लेकिन यह सकारात्मक सहसंबंध विकास और निवेश के बीच मौजूद सहसंबंध की तुलना में अधिक मज़बूत है। उद्यमी विशेष प्रकृति की व्यवसाय असफलता के प्रति निरावरणित हैं, ऐसा निवेश की जोखिम प्रकृति के कारण है जो निवेशित पूंजी में हानि की ओर ले जाता है। इसलिये पूर्वोपाय बचत के संचय के लिये निवेश की तुलना में बचत में अधिक बढ़ोतरी की जानी चाहिये। जनांकिकीय रुझान पिछले कुछ समय से जनसंख्या वृद्धि दर धीमी पड़ी है। यह 1971-81 में 2.5 प्रतिशत वार्षिक से घटकर 2011-16 में 1.3 प्रतिशत रह गई है। इस अवधि के दौरान सभी प्रमुख राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर में कमी आई है। यह कमी उन राज्यों में भी आई है जिनमें ऐतिहासिक दृष्टि से जनसंख्या वृद्धि दर काफी अधिक रही है जैसे कि बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा। दक्षिणी राज्यों के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, असम और हिमाचल प्रदेश में जनसंख्या 1 प्रतिशत की दर से भी कम पर बढ़ रही है | 1980 के दशक से भारत में कुल गर्भधारण दर (TFR) में लगातार गिरावट आई है। यह 1984 के 4.5 से आधी होकर वर्ष 2016 में 2.3 हो गई थी। दक्षिणी राज्य, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जनांकिकीय संक्रमण में पहले से इन स्थितियों में आगे है, (1) कुल गर्भधारण दर पहले ही प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है, जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण पूर्व गतिशीलता है, (2) 10 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या 60 वर्षीय या अधिक है, और (3) कुल एक-तिहाई जनसंख्या 20 वर्ष से कम आयु की है।

  • आर्थिक नीति अनिश्चितता(Economic Policy Uncertainty) नीति,उसका निर्माण करने वाले व्यक्ति के निर्णय पर निर्भर करती है, जिसमें उस व्यक्ति का विवेक भी शामिल होता है और इस तरह का विवेक अनिश्चितता उत्पन्न करता है जो आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। नीतिगत प्रभाव को समझने के लिये जोखिम और अनिश्चितता के बीच के अंतर को समझना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि दोनों आर्थिक गतिविधियों को मौलिक रूप से प्रभावित करते हैं।
जोखिम की मात्रा निर्धारित की जा सकती है जबकि अनिश्चितता को मापना कठिन है। हालाँकि, आंकड़ों के विश्लेषणात्मक अध्ययन में प्रगति ने अनिश्चितता की माप करना संभव बना दिया है।वैश्विक स्तर पर, आर्थिक नीति की अनिश्चितता को मापने के लिये एक EPU सूचकांक विकसित किया गया है। प्रमुख देशों में आर्थिक नीति की अनिश्चितता में वृद्धि के बावजूद भारत ने 2015 से आर्थिक नीति की अनिश्चितता में निरंतर कमी देखी है।
EPU आर्थिक वातावरण,व्यापार की स्थिति और निवेश को प्रभावित करने वाले अन्य आर्थिक चर के साथ दृढ़ता से संबंधित है। इसमें वृद्धि व्यवस्थित जोखिम को बढ़ाती है और इस प्रकार अर्थव्यवस्था में पूंजी की लागत में वृद्धि होती है। EPU में वृद्धि से निवेश भी प्रभावित होता है।

ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस का फिक्स्ड इन्वेस्टमेंट रेट(Fix Investment Rate) पर सीधा प्रभाव पड़ा।भारत का सकल घरेलू उत्पाद (सकल निवेश दर) के अनुपात के रूप में सकल स्थिर पूंजी निर्माण वर्ष 2007-08 में 37% से गिरकर वर्ष 2017 में 27% हो गया तथा हाल ही में इसमें 28% तक का सुधार हुआ। वेबस्टर के शब्दकोष में जोखिम की परिभाषा ‘‘हानि या चोट की संभावना_ आशंकाऔर स्पष्टता’’, ‘‘निश्चितकालीन, अनिर्धारित’’ और ‘‘संदेह से परे नहीं पता’’ के रूप में है। नाइट (1921) जिन्होंने जोखिम को अनिश्चितता से अलग अर्थ देने की दिशा में कार्य किया है, ने जोखिम और अनिश्चितता के बीच निम्नानुसार अंतर स्पष्ट किया हैः ‘‘जोखिम वहाँ होता है जब भविष्य की घटनाएँ मापने योग्य संभावना के साथ घटती हैं जबकि अनिश्चितता वहाँ होती है जहाँ भविष्य में होने वाली घटनाओं के अनिश्चित या बेहिसाबी होने की संभावना होती है।’’

वैश्विक व्यापार अनिश्चितता के समय में भी (जैसे-अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते व्यापार तनाव) पिछले एक वर्ष में भारत का निम्न आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता सूचकांक अर्थव्यवस्था के लचीलेपन को दर्शाता है।

भारत का आर्थिक नीति अनिश्चितता सूचकांक वर्ष 2011 एवं वर्ष 2012 के कुछ महीनों में शीर्ष पर था। जिसका मुख्य कारण उस समय का नीतिगत गतिहीनता था। इसके कारण उच्च घाटे और उच्च मुद्रास्फीति की समस्याएँ उत्पन्न हुई। वर्ष 2013 के उतरार्द्ध में भी सूचकांक उच्च था, जब टेपर टेंट्रम (Taper Tantrum) के कारण अर्थव्यवस्था को पूंजी के अस्थिर प्रवाह और रुपए के अवमूल्यन (डॉलर की तुलना में) का सामना करना पड़ा।
जीएसटी के दौरान आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता सूचकांक उच्च था लेकिन यह वर्ष 2011-12 के समान तीव्र नहीं था और शायद इसका कारण था कि जुलाई 2017 में इसके लागू होने से पहले ही जीएसटी नीति पर चर्चाएँ हो रही थीं।
  • टेपर टैंट्रम:- यह 2013 के सामूहिक प्रतिक्रियात्मक आतंक को संदर्भित करता है जिसने अमेरिकी ट्रेज़री पैदावार में स्पाइक को ट्रिगर किया था, निवेशकों ने सीखा कि फेडरल रिज़र्व धीरे-धीरे अपने मात्रात्मक सहजता (QI) कार्यक्रम पर ब्रेक लगा रहा था।

डेटा "लोगों का,लोगों द्वारा,लोगों के लिये"[सम्पादन]

वर्गाकार

डेटा को एकीकृत करने की पहल

स्थानीय सरकारी निर्देशिका(Local Government Directory) पंचायती राज मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया एक कंप्यूटर-प्रोग्राम (एप्लिकेशन) है। इस स्थानीय सरकारी निर्देशिका में सभी स्थानीय एककों स्थानीय सरकारी निकायों के भू-क्षेत्र के प्लेटफार्म मानचित्र (जैसे कि ग्राम और उनकी संबंधित ग्राम पंचायतें) को सम्मिलित करते हुए वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार लोकेशन कोड निर्धारित किये गए हैं।
समग्र वेदिका पहल (Samagra Vedika Initiative)तेलंगाना सरकार द्वारा विभिन्न सरकारी सेवाओं हेतु नागरिक विवरणों को ट्रैक करने के लिए विकसित अपना सॉफ्टवेयर है। 2017 में बनाई गई यह पहल राज्य को लगभग 25 विभागों से नागरिक डेटा को सत्यापित करने या जाँचने की अनुमति देता है।इससे डेटा सेटों को एकीकृत करने के संभाव्य लाभों को प्राप्त करने की शुरुआत हुई है। यह एक सामान्य आइडेंटीफायर का उपयोग करते हुए पच्चीस मौजूदा सरकारी डेटासेटों को जोड़ती है - किसी व्यक्ति का नाम और पता इत्यादि। प्रत्येक व्यक्ति के बारे में सात श्रेणियों की सूचना को इस समूहन कार्य से जोड़ा गया था जिनमें अपराध परिसंपत्तियाँ, उपयोगिताएँ, सब्सिडी, शिक्षा, कर एवं पहचान थे। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति के डाटा को पति-पत्नी, भाई-बहन, माता-पिता और अन्य सगे संबंधियों से जोड़ा गया था।
चित्त आदंगल-तमिलनाडु में भूमि से संबंधित रिकॉर्ड।

यह तालुक कार्यालय का एक दस्तावेज़ होता है जिसमें भूमि से संबंधित विवरण जैसे- सर्वेक्षण संख्या,वर्तमान मालिक,पट्टा नंबर आदि होते हैं। खरीदने से पहले, इस दस्तावेज़ को सत्यापित करने की आवश्यकता होती है और खरीदने के बाद दस्तावेज़ की एक प्रति नए मालिक को भेज दी जाती है। आदंगल - इसमें किसी विशेष गाँव के प्रत्येक भूखंड की सर्वेक्षण संख्या, किरायेदार, उगाई गई फसल और उसकी स्थिति का विवरण होता है। आदंगल रिकॉर्ड में सर्वेक्षण संख्या, स्वामित्व, क्षेत्र का विस्तार, किरायेदारी की अवधि आदि जानकारी होती है।

“नज़ सिद्धांत” के व्यवहारिक अर्थव्यवस्था से उत्थान[सम्पादन]

नज़ सिद्धांत' व्यावहारिक विज्ञान,राजनीतिक सिद्धांत तथा व्यावहारिक अर्थशास्त्र की एक अवधारणा है। यह समूहों या व्यक्तियों के व्यवहार और उनके निर्णय लेने के तौर-तरीकों में सकारात्मक परिवर्तन हेतु तरीकों की विवेचना करती है। नज़िग (Nudging) अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु शिक्षा,कानून या प्रवर्तन जैसे अन्य तरीकों से अलग है। ‘नज़ सिद्धांत’ के जनक रिचर्ड थेलर को वर्ष 2017 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

नज़ पॉलिसियाँ वे पॉलिसियाँ हैं जो लोगों की चुनने की स्वतंत्रता को संरक्षित करते हुए धीरे-धीरे उन्हें वांछित व्यवहार के रास्ते पर ले जाती हैं।
महत्त्वपूर्ण तथ्य और प्रवृत्तियाँ
  1. लैसेज फ़ैरे:-चीजों को बिना हस्तक्षेप स्वयं उनके तरीके पर छोड़ देना ।
  2. आर्थिक मानव:-व्यक्ति जो सदैव उत्कृष्ट चयन करते हैं चाहे उनके सामने विकल्प प्रस्तुत करने का तरीका कुछ भी क्यों न हो। वे विकल्प संरचना के प्रति प्रतिक्रिया नहीं करते, जबकि वास्तविक लोग ऐसा करते हैं।
  3. भारत में जन्म पर बाल लिंगानुपात दशकों से 21वीं शताब्दी के पहले दशक तक लगातार घटता रहा है। 2001 और 2011(जनगणना) के बीच 29 राज्यों में से 21 राज्यों में बाल लिंगानुपात में कमी दर्ज की गई।
  4. बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का उन बड़े राज्यों में अत्यधिक असर रहा जिनमें बाल लिंगानुपात की स्थिति अत्यधिक खराब थी।
  5. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’का नाम बदलकर‘बेटी आपकी धनलक्ष्मी और विजय लक्ष्मी’किया गया।
  6. अपेक्षाकृत छोटे राज्यों जैसे मिज़ोरम, नागालैंड और मणिपुर में बड़े राज्यों के मुक़ाबले सब्सिडी छोड़ने की दर अधिक थी।

कर अपवंचन से कर अनुपालन तक महान दार्शनिक प्लेटो ने सदियों पहले यह तर्क दिया थाः ‘‘देश में जो सम्माननीय होता है, वही अनुकरणीय भी होता है।’’ इसी तरह कर अनुपालन को बढ़ाने के लिये व्यवहरात्मक अंतर्दृष्टि को नियोजित किए जाने की आवश्यकता है ताकि ‘‘कर से बचना स्वीकार्य है’’ के सामाजिक मानदंड को बदलकर ‘‘ईमानदारी से करों का भुगतान करना सम्मानजनक है’’ को स्थापित किया जा सके। कर अपवंचन मुख्यतः कर संबंधी मनोदशा अर्थात् किसी देश में कर का भुगतान करने वाले करदाताओं की आंतरिक प्रेरणा द्वारा संचालित होता है। कर संबंधी मनोदशा स्वयं मुख्य रूप से दो धाारणात्मक कारकों द्वरा संचालित होती हैः (1) ऊर्ध्वाधार निष्पक्षता, अर्थात् मैं करों का जो भुगतान करता वह सरकार से सेवाओं के रूप में मुझे मिलने वाले लाभ के रूप में वापस प्राप्त हो जाता है और (2) क्षैतिज निष्पक्षता, अर्थात् समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा भुगतान किए गए करों में अंतर। यदि नागरिकों को ऐसा लगता है कि उनके द्वारा भुगतान किए गए करों को व्यर्थ सार्वजनिक व्यय में उड़ाया जा रहा है या भ्रष्टाचार द्वारा अपव्यय किया जा रहा है तो उनके लिये ऊर्ध्वाधर निष्पक्षता कम होगी। इसी तरह, क्षैतिज निष्पक्षता की धारणाएँ तब प्रभावित होती हैं जब कर्मचारी वर्ग को आयकर में अनुपातहीन अंशदान करने के लिये मज़बूर किया जाता है, जबकि स्व-नियोजित वर्ग न्यूनतम करों का भुगतान करके इनसे बच निकलता है। सात सामाजिक बुराइयों से बचने के लिये व्यवहारिक अर्थव्यवस्था का प्रयोग करना इंडिया @75 को नए भारत के रूप में देखा जाता है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी पूरी सामर्थ्य को प्रत्यक्ष करता है और अपने हक पर दावा करने के बजाय अपना योगदान करने के लिये अवसर खोजता है। यंग इंडिया में 22 अक्तूबर, 1925 को प्रकाशित महात्मा गांधी की सात सामाजिक बुराइयाँ मानव व्यवहार को आकार देने में सामाजिक और राजनीतिक दशाओं की भूमिका पर गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। इनमें से प्रत्येक सिद्धांत का एक कथन है जिसे व्यक्तियों को वांछित व्यवहार की तरफ ले जाने हेतु टहोका देने में प्रयुक्त या व्याख्यायित किया जा सकता है।

मुद्रास्फीति[सम्पादन]

मौद्रिक नीति समिति (MPC) वित्त अधिनियम,2016 के माध्यम से RBI अधिनियम, 1934 में संशोधन के बाद गठित 6 सदस्य समिति है। मौद्रिक नीति का प्राथमिक उद्देश्य वृद्धि के के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता को बनाए रखना है। मूल्य स्थिरता सतत् वृद्धि के लिये एक आवश्यक शर्त है। मई 2016 में, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अधिनियम, 1934 में लोचदार मुद्रास्फीति (flexible inflation) लक्ष्यीकरण ढाँचे के कार्यान्वयन के लिये एक वैधानिक आधार प्रदान करने हेतु संशोधन किया गया था

हेडलाइन मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति का कच्चा आँकड़ा है जो कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आधार पर तैयार की जाती है। हेडलाइन मुद्रास्फीति में खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को भी शामिल किया जाता है। कोर मुद्रास्फीति वह है जिसमें खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को शामिल नहीं किया जाता है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित हेडलाइन मुद्रास्फीति पिछले पाँच वर्षों से लगातार घट रही है। वर्ष 2018-19 में हेडलाइन CPI मुद्रास्फीति घटकर 3.4 प्रतिशत रही जो वर्ष 2017-18 के दौरान 3.6 प्रतिशत, वर्ष 2016-17 में 4.5 प्रतिशत, वर्ष 2015-16 में 4.9 प्रतिशत तथा वर्ष 2014-15 में 5.9 प्रतिशत थी।

सन्दर्भ[सम्पादन]