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सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/जैव विविधता

विकिपुस्तक से
  • 'भूमण्डलीय पर्यावरण सुविधा' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है/हैं? (2014)

यह 'जैव-विविधता पर अभिसमय' एवं 'जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र ढाँचा अभिसमय' के लिये वित्तीय क्रियाविधि के रूप में काम करता है।

  • 2018 में जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) द्वारा जारी किये गए एक प्रकाशन, ‘फौनल डाइवर्सिटी ऑफ़ बायोजिओग्राफिक ज़ोंस: आईलैंड्स ऑफ़ इंडिया’ नामक शीर्षक में पहली बार अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर पाए गए सभी जीवित प्रजातियों के डेटाबेस को एकत्र किया गया है, जिसमें समस्त प्रजातियों की संख्या 11,009 दर्ज की गई है।

भारत के भौगोलिक क्षेत्र का केवल 0.25% हिस्सा शामिल है, देश के जीवों की प्रजातियों के 10% से अधिक का आवास है।

नारकॉन्डम हॉर्नबिल, इसका आवास एक अकेले द्वीप तक ही सीमित है; निकोबार मेगापोड, एक पक्षी जो ज़मीन पर घोंसला बनाता है; निकोबार ट्रेशू, छछूंदर जैसा एक छोटा स्तनपायी; लांग-टेल निकोबार मकाक और अंडमान डे गेको, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर पाए गए उन 1,067 स्थानिक प्रजातियों में से हैं जो कहीं और नहीं पाए जाते।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का कुल क्षेत्रफल लगभग 8,249 वर्ग किमी. है, जिसमें 572 द्वीप, छोटे टापू और चट्टानी उभार शामिल हैं। इस द्वीप समूह की कुल आबादी 4 लाख से अधिक नहीं हैं, जिसमें विशेष रूप से छह कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG)- ग्रेट अंडमानी, ओंग, जारवा, सेंटिनेलिस, निकोबारी और शोम्पेन्स शामिल हैं।
गोरगोनियन (सी फैन्स)और कैल्सरस स्पंज की सभी प्रजातियाँ WPA के विभिन्न अनुसूचियों के तहत सूचीबद्ध हैं।
  • विश्व में जैव विविधता के ह्रास के प्रमुख कारण हैं-
  1. वैश्विक तापन
  2. जनसंख्या वृद्धि
  3. किसी पारितंत्र में विदेशज प्रजाति का संक्रमण
  4. प्राकृतिक आपदाएँ
  5. कीटनाशक और अन्य प्रदूषक (हाइड्रोकार्बन और अन्य विषैली गैसें आदि)
  • कृषि वानिकी में कार्बन भंडारण, वनों की कटाई को रोकने, जैव-विविधता संरक्षण, मिट्टी और जल संरक्षण के माध्यम से पारिस्थितिकी तंत्र की सेवाओं को बढ़ाने की क्षमता है।
  • पौधों और जंतुओं के वितरण को प्रभावित करने वाले जैविक कारक परभक्षण (Predation),मानव (Human) और रोग (Disease) हैं। मृदा और तापमान अजैविक कारक हैं।
  • समुदाय के एक ही प्रजाति के जीवों के जीन की विविधता ही, आनुवंशिक जैव-विविधता कहलाती है। पर्यावरण में वनस्पति, जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियों में परिवर्तन के साथ अपने आप को अनुकूलित करने की प्रक्रिया में जीवों के जीन में परिवर्तन होता है।

समान भौतिक लक्षणों वाले जीवों के समूह को प्रजाति कहते हैं। तीसरा कथन असत्य है। किसी विशेष क्षेत्र में जीव-जंतुओं के प्रजातियों की विविधता को प्रजातीय जैव-विविधता कहते हैं,जबकि एक समुदाय के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों एवं दूसरे समुदाय के जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के बीच पाई जाने वाली विविधता पारितंत्रीय जैव-विविधता कहलाती है।


जैव विविधता उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक होती है। जैसे-जैसे हम ध्रुवीय क्षेत्रों की तरफ बढ़ते हैं, प्रजातियों की विविधता कम होती जाती है,पर जीवधारियों की संख्या अधिक होती जाती है।

  • प्राकृतिक संसाधनों व पर्यावरण संरक्षण की अंतर्राष्ट्रीय संस्था (IUCN) ने संकटापन्न पौधों व जीवों की प्रजातियों को उनके संरक्षण के उद्देश्य से तीन वर्गों में विभाजित किया है।

1. संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered Species) 2. सुभेद्य प्रजातियाँ (Vulnerable Species) 3. दुर्लभ प्रजातियाँ (Rare Species) सुभेद्य प्रजातियों में वे प्रजातियाँ सम्मिलित हैं, जिन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया या उनके विलुप्त होने में सहयोगी कारक जारी रहे तो निकट भविष्य में उनके विलुप्त होने का खतरा है।

  • “महा-विविधता केंद्र” (Mega diversity centers) के संबंध में नीचे दिये गए कथनों पर विचार कीजिये:

1. ये उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से संबंधित हैं। 2. ये वन्य जीवों की विविधता द्वारा परिभाषित किये जाते हैं। उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?

व्याख्याः पहला कथन सत्य एवं दूसरा असत्य है। वे देश, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं, उनमें संसार की सर्वाधिक प्रजातीय (पेड़-पौधे एवं जीव-जंतु) विविधता पाई जाती है। उन्हें "महा-विविधता केंद्र" (Mega diversity centers) कहा जाता है। इन देशों की संख्या 12 है और उनके नाम हैं: मैक्सिको, कोलंबिया, इक्वेडोर, पेरू, ब्राज़ील, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, मेडागास्कर, चीन, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया।
  • पौधों और जंतुओं के वितरण को प्रभावित करने वाले जैविक कारक परभक्षण (Predation), मानव (Human) और रोग (Disease) हैं। मृदा और तापमान अजैविक कारक हैं।
  • ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (Global Forest Watch-GFW) वैश्विक वनों की निगरानी हेतु एक ओपन-सोर्स वेब एप्लीकेशन है जो अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए वनों में होने वाले परिवर्तन से संबंधित रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच द्वारा उपग्रह इमेजिंग और रिमोट सेंसिंग जैसी तकनीक का उपयोग किया जाता है।

यह विश्व संसाधन संस्थान (World Resources Institute-WRI) की एक पहल है जिसमें Google, USAID, यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड (UMD) सहित कई अन्य शैक्षणिक, गैर-लाभकारी, सार्वजनिक और निजी संगठन शामिल हैं। विश्व संसाधन संस्थान एक वैश्विक अनुसंधान संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1982 में हुई थी। इसका मुख्यालय वाशिंगटन, अमेरिका में है। यह पर्यावरण एवं विकास के संबंध में छह महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर केंद्रित है जिसमें जलवायु, ऊर्जा,भोजन,वन, जल, शहर एवं परिवहन शामिल हैं।

प्लीस्टोसीन युगांतर के दौरान हिमयुग और अंतर-हिमयुग अवधियाँ रही हैं।

  • आई.यू.सी.एन. (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस) द्वारा पृथ्वी पर उपस्थित जातियों की गणना की जाती है।
  • जैव विविधता शब्द सामाजिक जीव-वैज्ञानिक एडवर्ड विलसन द्वारा दिया गया है। विलसन ने जैविक संगठन के प्रत्येक स्तर पर उपस्थित विविधता को दर्शाने के लिये आनुवंशिक विविधता, जातीय विविधता और पारिस्थितिकीय विविधता को प्रचलित किया।

आनुवंशिक विविधताः इस विविधता के अंतर्गत एक जाति आनुवंशिक स्तर पर अपने वितरण क्षेत्र में बहुत विविधता दर्शा सकती है। भारत में 50 हज़ार से अधिक आनुवंशिक रूप से भिन्न धान की तथा 1,000 से अधिक आम की जातियाँ हैं। जातीय (स्पीशीज़) विविधता : यह भिन्नता जाति के स्तर से संबंधित है। जैसे भारत में पश्चिमी घाट की उभयचर जातियों की विविधता पूर्वी घाट से अधिक है। पारिस्थितिकीय विविधता : यह विविधता पारितंत्र स्तर पर होती है, जैसे भारत में स्थित रेगिस्तान, वर्षा वन, मैंग्रोव, प्रवाल भित्ति तथा एल्पाइन वन आदि।

  • भारत में जैव विविधता के 3 ‘हॉट-स्पॉट’ हैं- पश्चिमी घाट, भारत-श्रीलंका के बीच सुंडालैंड तथा इंडो-वर्मा हिमालयी क्षेत्र। इन क्षेत्रों में आवासित जातियों की संख्या अत्यधिक है।
  • आई.यू.सी.एन. द्वारा लुप्त जातियों (स्पीशीज़) को लाल सूची (Red list) के अंतर्गत रखा जाता है। आई.यू.सी.एन. की लाल सूची (2004) के साक्ष्यों के अनुसार पिछले 500 वर्षों में 784 जातियाँ (338 कशेरुकी, 359 अकशेरुकी तथा 87 पादप) लुप्त हो चुकी हैं।
  • पृथ्वी पर आकलित जातियों में से 70 प्रतिशत से अधिक जंतु हैं, जबकि शैवाल, कवक, ब्रायोफाइट, आवृत्तबीजी तथा अनावृत्तबीजियों जैसे पादप 22 प्रतिशत से अधिक नहीं हैं। जंतुओं में कीट सबसे अधिक समृद्ध जातीय वर्ग समूह है, जो संपूर्ण जातियों के 70 प्रतिशत से अधिक है। इसका अर्थ यह है कि इस ग्रह में प्रत्येक 10 जंतुओं में 7 कीट हैं।
  • कवक, पादप जगत के अंतर्गत पाई जाने वाली सभी जातियों में सर्वाधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
  • जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर जिसका विश्व सामना कर रहा है, वह मुख्य रूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। इसके चार मुख्य कारण हैं-

आवासीय क्षति तथा विखंडन अतिदोहन विदेशीय जातियों का आक्रमण सहविलुप्तता

  • लाइकेन या लाइकेन युक्त कवक वास्तव में एक एकल, स्थिर इकाई के रूप में कार्य करने वाले दो जीव हैं। लाइकेन एक शैवाल या सायनो बैक्टीरिया (या कुछ में दोनों) के साथ सहजीवी संबंध में रहने वाला एक कवक होता है। दुनिया भर में लाइकेन की लगभग 17,000 प्रजातियाँ हैं।

हालाँकि देश में हर जगह लाइकेन पाए जाते हैं लेकिन पूर्वी हिमालय, पूर्वोत्तर भारत, पश्चिमी घाट, पश्चिमी हिमालय तथा अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में इनकी अधिक विविधता पाई जाती है। यह समुद्री स्तर से 5,000 मीटर की ऊँचाई तक उगते/पनपते हैं और उष्णकटिबंधीय तथा समशीतोष्ण क्षेत्र इनके लिये अधिक अनुकूल होते हैं। विविध संस्कृतियों के लोगों के लिये लाइकेन बहुत उपयोगी होते हैं, विशेष रूप से रंजक, अपरिष्कृत दवाओं, इत्र, कृषि-रसायनों और अन्य उपयोगी यौगिकों के स्रोत के रूप में। लाइकेन वायु प्रदूषण के संवेदनशील संकेतक होते हैं, विशेष रूप से सल्फर डाइऑक्साइड के। वायु प्रदूषक न केवल इनके विकास, प्रजनन क्षमता और आकारिकी पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं बल्कि प्रदूषकों के कारण इनमें कई तरह की भौतिक प्रक्रियाएँ भी होती हैं, जो कि इनके संरचनात्मक परिवर्तनों में भी परिलक्षित होती हैं।

  • पेंगुइन स्तनधारी होते हैं, हालाँकि ये पक्षियों का आभास देते हैं लेकिन उड़ नहीं सकते हैं और हम इन्हें पानी में तैरते हुए या ज़मीन पर दौड़ते हुए देखते हैं।

पेंगुइन केवल दक्षिणी गोलार्द्ध में पाए जाते हैं। पेंगुइन लैंगिक रूप से द्विरूपी (Dimorphic) नहीं होते हैं, जिसका तात्पर्य यह है कि नर और मादा पेंगुइन एक जैसे ही दिखते हैं। पेंगुइन गर्म-रक्त वाले (warm-blooded) होते हैं क्योंकि उनकी त्वचा के नीचे वसा (Fat) का एक मोटा आवरण होता है जिसे ब्लबर (Blubber) कहा जाता है, यह पेंगुइन को गर्म रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जलवायु और स्थान के अनुसार पेंगुइन अपने तापमान को बनाए रखने और बदलने में बहुत अच्छे होते हैं। जब वे पानी या बर्फीली ज़मीन पर होते हैं तो तापमान परिवर्तन को समेकित तरीके से नियंत्रित करते हैं।

  • प्रवाल एक प्रकार का छोटा समुद्री जीव है जो लाखों करोड़ों की संख्या में एक समूह में रहते हैं।

इसके शरीर के ऊपर तंतुओं का एक प्रकार का पादप शैवाल रहता है जिसे ज़ूज़ैंथिली शैवाल (Zooxznthellae Algae) कहा जाता है। प्रवाल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय महासागरों में 25 डिग्री उत्तरी से 25 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाए जाते है। प्रवालों के लिये 20 से 21 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अनुकूलित तापमान है। इनके विकास के लिये 27-30% लवणता सर्वोत्तम होती है। प्रवालों के संरक्षण की स्थिति: प्रवालों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-1 में सूचीबद्ध किया गया है। प्रवालों के संरक्षण का प्रयास: प्रवालों के संरक्षण के लिये भारतीय जूलाॅजिकल सर्वे (Indian Zoological Survey- IZS) द्वारा पोर्ट ब्लेयर में नेशनल कोरल रीफ रिसर्च इंस्टीट्यूट (National Coral Reef Research Institute) खोला गया है। ग्लोबल कोरल रीफ माॅनीटरिंग नेटवर्क (Global Coral Reef Monitoring Network- CGRMN) विभिन्न वैज्ञानिक खोज एवं समन्वय द्वारा इंटरनेशनल कोरल रीफ इनिशियेटिव (International Coral Reef Initiative- ICRI) को कोरल परितंत्र की सूचना साझा करता है और संरक्षण एवं प्रबंधन में सहायता प्रदान करवाता है।


  • रेड पांडा- उत्तरी अरुणाचल, सिक्किम व असम में पाया जाने वाला एक संकटापन्न जीव है।

जेनकेरिया सेबसटिनी- यह एक अत्यंत संकटापन्न घास की प्रजाति है जो पश्चिमी घाट के अगस्थियामलाई शिखर में पाई जाती है। हमबोशिया डेकरेंस बेड- दक्षिणी पश्चिमी घाट में पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति है। ग्रेट इंडियन बस्टर्ड-राजस्थान, गुजरात, मध्य भारत, पूर्वी पाकिस्तान में पाई जाने वाली गंभीर संकटग्रस्त (Critically Endangered) पक्षी की प्रजाति है।