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सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/पर्यावरण संबंधित मुद्दे

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  • बैलिंग मशीन प्लास्टिक,कागज़,कार्डबोर्ड और एल्युमीनियम सहित विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों के आकार को संकुचित करती है। संकुचित होने के बाद इन अपशिष्टों को पुनर्चक्रण हेतु ले जाने में आसानी होती है।

इस मशीन के माध्यम से अपशिष्टों का त्वरित और कुशल उपयोग किया जाता है।

इंसीनरेटर (Incinerator) एक अपशिष्ट उपचार प्रणाली है जिसमें अपशिष्ट पदार्थों में निहित कार्बनिक पदार्थों का दहन किया जाता है।
  • पेरिस समझौते के ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (NDC) के संदर्भ में भारत के पहले NDCs में निम्नलिखित में से कौन-सा/से शामिल है/हैं?
  1. सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33% से 35% तक की कमी लाना।
  2. वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत् स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
  3. वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वनों और वृक्षों के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:-सभी सही है।

  • भारत की राष्ट्रीय वन नीति,1988 के तहत सिफारिश की गई कि मैदानी इलाकों में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र तथा पर्वतीय क्षेत्रों में 67 प्रतिशत जंगल क्षेत्र होना चाहिये।
  1. जल प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम - 1974
  2. वायु प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम - 1981
  3. पर्यावरण (संरक्षा) अधिनियम - 1986
  • ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल के अनुसार सही आरोही क्रम है - कार्बन डाइऑक्साइड <मीथेन <नाइट्रस ऑक्साइड <क्लोरोफ्लोरोकार्बन
  • मीथेन (CH4) ‘हरितगृह प्रभाव’ (Greenhouse effect) में योगदान देने वाली एक प्रमुख गैस है।

हरितगृह प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी ग्रह या उपग्रह के वातावरण में मौजूद कुछ गैसें वातावरण के तापमान को अपेक्षाकृत अधिक करने में सहायक होती हैं। इन ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाईआक्साइड, जल-वाष्प, मिथेन आदि शामिल हैं। वायुमंडलीय मीथेन के छह प्रमुख स्रोत हैं-

  1. प्राकृतिक आर्द्रभूमि
  2. धान के खेत
  3. मवेशियों का मलोत्सर्जन
  4. कृषि अवशेषों का दहन
  5. लैंडफिल में कार्बनिक अपशिष्ट का अवायवीय अपघटन
  6. जीवाश्म ईंधनों के अन्वेक्षण एवं अपवाहन के दौरान जीवाश्म मीथेन का उत्सर्जन।
  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन-11 (Chloroflurocarbon-11) CFC-11, जिसे ट्राइक्लोरोफ्लोरोमीथेन के रूप में भी जाना जाता है, कई क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) रसायनों में से एक है, जिन्हें 1930 के दशक के दौरान शुरू में शीतलक के रूप में विकसित किया गया था।

जब वायुमंडल में CFC के अणु टूट जाते हैं, तो वे क्लोरीन परमाणुओं को छोड़ते हैं जो ओज़ोन परत (जो हमें पराबैंगनी किरणों से बचाती है) को तेजी से नष्ट करने में सक्षम होते हैं। एक टन CFC-11 लगभग 5,000 टन कार्बनडाइ ऑक्साइड के बराबर होता है, जिससे न केवल ओज़ोन परत का ह्रास हुआ है, बल्कि पृथ्वी के समग्र तापमान में भी वृद्धि हुई है।

आद्रभूमि संरक्षण

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यह झील समुद्री, खारे और मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र का एक संयोजन है। यह अत्यधिक संकटग्रस्त इरावदी डॉल्फ़िन का निवास स्थान है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों के शीतकालीन प्रवास के लिये सबसे बड़ा मैदान है। इसकी समृद्ध जैव-विविधता के कारण, इसे ‘रामसर साइट’ के रूप में नामित किया गया था। झील में स्थित नलबन द्वीप को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत एक पक्षी अभ्यारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया है। उपरोक्त में किस झील का वर्णन किया गया है? चिल्का झील

ग्रीनहाउस प्रभाव तथा वैश्विक तापन

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  • CBG में 90% से अधिक मीथेन गैस होती है। ऊष्मीय मान एवं अन्य गुणधर्मों के संदर्भ में CBG, संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) के समान हैं इसलिये इसका उपयोग एक हरित नवीकरणीय स्वचालित ईंधन के रूप में किया जा सकता है। गोबर-धन योजना के अंतर्गत पशुओं के गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट पदार्थों को कम्पोस्ट, बायोगैस, बायो-CNG में परिवर्तित किया जाता है।
  • ब्लैक कार्बन जीवाश्म एवं अन्य जैव ईंधनों के अपूर्ण दहन,ऑटोमोबाइल तथा कोयला आधारित ऊर्जा सयंत्रों से निकलने वाला एक पार्टिकुलेट मैटर है। यह एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो उत्सर्जन के बाद कुछ दिनों से लेकर कई सप्ताह तक वायुमंडल में बना रहता है। वायुमंडल में इसके अल्प स्थायित्व के बावजूद यह जलवायु, हिमनदों, कृषि, मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव डालता है।
  • प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है, जिसके कारण पृथ्वी की सतह और वायुमंडल गर्म हो जाते हैं। यदि ग्रीनहाउस प्रभाव नहीं होता तो आज पृथ्वी का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड रहने के बजाय ठंडा होकर-18 डिग्री सेंटीग्रेड रहता।

ग्रीनहाउस गैस पृथ्वी द्वारा उत्सर्जित दीर्घ तरंग (अवरक्त) विकिरण को अवशोषित करती है और पुनः पृथ्वी की ओर भेज देती है। यह चक्र अनेकों बार होता रहता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह और निम्नतर वायुमंडल गर्म होता रहता है।

  • वे गैसें जो विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करती हैं, ग्रीनहाउस गैसें कहलाती हैं। वर्तमान में चिंता का कारण बनी मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाईऑक्साइड (CO2), क्लोरो-फ्लोरोकार्बन्स (CFCs), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और ओज़ोन (O3) हैं।

ग्रीनहाउस गैसों में सर्वाधिक योगदान कार्बन-डाइऑक्साइड (60%) का है। इसके बाद मीथेन (20%), क्लोरो- फ्लोरोकार्बन (14%) तथा नाइट्रस ऑक्साइड (6%) का है।

ओज़ोन परत क्षरण

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  • समतापमंडल में ओज़ोन परत का क्षय विस्तृत रूप से होता है। लेकिन यह क्षय अंटार्कटिका क्षेत्र में खासकर विशेषरूप से अधिक होता है। इसके फलस्वरूप यहाँ काफी बड़े क्षेत्र में ओज़ोन की परत काफी पतली हो गई है। जिसे सामान्यतः ओज़ोन छिद्र (ओज़ोन होल) कहा जाता है। पराबैंगनी-बी (यूवी-बी) की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य युक्त पराबैंगनी (यूवी) विकिरण पृथ्वी के वायुमंडल द्वारा लगभग पूरी अवशोषित हो जाती है। बशर्ते ओज़ोन स्तर ज्यों का त्यों रहे।

सजीवों के डीएनए और प्रोटीन खासकर पराबैंगनी (यूवी-बी) किरणों को अवशोषित करते हैं और इसकी उच्च ऊर्जा इन अणुओं के रासायनिक आबंध (केमिकल बॉण्डस) को भंग कर देती हैं जिसके कारण उत्परिवर्तन भी हो सकता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं, इसकी कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती है और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं।

  • हमारी आँख का स्वच्छमंडल (कॉर्निया) पराबैंगनी-बी (यूवी-बी) विकिरण का अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कार्निया का शोथ हो जाता है। जिसे हिम अंधता (Snow Blindness) मोतियाबिंद आदि कहा जाता है।

जलीय प्रदूषण

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  • * जल उपचार संयंत्र ऐसी तकनीक का उपयोग करते हैं जो रंग, गंध और स्वाद के संदर्भ में रासायनिक एवं जैविक रूप से सुरक्षित तथा आकर्षक दोनों हैं। जल शोधन और उपचार के लिये निम्नलिखित में से कौन-सी तकनीकें प्रचलित हैं?
  1. संधारित्रीय वि-आयनीकरण (CDI)
  2. ओज़ोनीकरण
  3. टेराफिल
  4. निस्यंदन
  • रासायनिक ऑक्सीजन मांग (Chemical Oxygen Demand) जल में ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो उपस्थित कुल कार्बनिक पदार्थो (घुलनशील अथवा अघुलनशील) के ऑक्सीकरण के लिये आवश्यक होती है।

रासायनिक ऑक्सीजन मांग (COD) ऑक्सीकरण की आवश्यकता वाले पानी के नमूने में घटते पदार्थों की मात्रा को मापने की एक रासायनिक विधि है।

हमारे घरों के साथ-साथ अस्पतालों के वाहित मल में बहुत से अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव हो सकते हैं और उचित उपचार के बिना इसको जल में विसर्जित करने से मानव को कठिन रोग जैसे- पेचिस (अतिसार), टाइफाइड, पीलिया (जांडिस), हैजा (कोलरा) आदि हो सकते हैं।

  • पिछली शताब्दी में पृथ्वी के कई भागों में झीलों का वाहित मल, कृषि और औद्योगिक अपशिष्ट के कारण तीव्र सुपोषण हुआ है। इसके मुख्य संदूषक नाइट्रेट और फॉस्फोरस हैं, जो पौधों के लिये पोषक का कार्य करते हैं। इन पोषकों के कारण शैवाल की वृद्धि अति उद्दीप्त होती है, जिसकी वज़ह से अरमणीक मलफेन (स्कम) बनते हैं तथा अरुचिकर गंध निकलती है। ऐसा होने से जल में विलीन ऑक्सीजन जो अन्य जल-जीवों के लिये अनिवार्य (वाइटल) है, समाप्त हो जाती है। साथ ही झील में बहकर आने वाले अन्य प्रदूषक संपूर्ण मत्स्य समष्टि को विषाक्त कर सकता है। जिनके अपघटन के अपशेष से जल में विलीन ऑक्सीजन की मात्रा और कम हो जाती है। इस प्रकार झील घुट-घुट कर मर जाती है।
  • महासागरीय अम्लीकरण का तात्पर्य महासागर के pH मान में कमी से है,जो मुख्य रूप से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) ग्रहण करने के कारण होती है। इसके साथ हीं समुद्र में निम्नलिखित बदलाव होते हैं।
  1. समुद्र में हाइड्रोजन आयनों की सांद्रता बढ़ती है।
  2. कार्बोनेट आयन की सांद्रता कम हो जाती है।
  3. महासागरों का pH मान कम हो जाता है और महासागर कम क्षारीय हो जाते हैं।

कार्बोनेट आयन समुद्री सीपी (Sea Shell) और कोरल जीवाश्म (Coral Skeletons) जैसी संरचनाओं के निर्माण का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। महासागरीय अम्लीकरण में समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को बदलने और समुद्र के संरक्षण से संबंधित कई लाभों जैसे- तटीय संरक्षण या भोजन और आय की उपलब्धता को प्रभावित करने की क्षमता है।

प्रदूषण से निपटने के लिए किए गए सरकारी प्रयास

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  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिये ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान (Graded Response Action Plan-GRP) नामक आपातकालीन कार्य योजना लागू की है। इसके तहत शहर की वायु गुणवत्ता के आधार पर कड़े कदम उठाए जाते हैं।

इस कार्य योजना के अंतर्गत मध्यम से खराब श्रेणी में वायु गुणवत्ता होने पर कचरा जलाने से रोक दिया जाएगा और ईंट-भट्ठा, उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण के मानक लागू किये जाएंगे।

  • SAFAR पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान प्रदान करने की सर्वाधिक उन्नत प्रणाली (System of Air Quality and Weather Forecasting And Research) है।

यह एक अनुसंधान आधारित प्रबंधन प्रणाली है जिसमें वायु प्रदूषण के शमन की रणनीतियों को लक्षित करते हुए राष्ट्र के आर्थिक विकास का काम किया जाता है। यह प्रणाली प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वायु गुणवत्ता और मौसम से प्रभावित होने वाले कृषि, विमानन, आधारभूत संरचना, आपदा प्रबंधन कौशल, पर्यटन और कई अन्य ऐसे क्षेत्रों को लागत प्रभावी सुविधा प्रदान करेगी।

वायु प्रदूषण

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डीज़ल या पेट्रोल की जगह संपीडित प्राकृतिक गैस (सीएनजी) प्रयोग करने के प्रमुख कारण हैं- वाहनों में सीएनजी सबसे अच्छी तरह से जलता है और बहुत ही कम मात्रा में जलने से बचता है, जबकि डीज़ल या पेट्रोल के मामले में ऐसा नहीं है। सीएनजी डीज़ल व पेट्रोल से सस्ता है। सीएनजी की चोरी नहीं की जा सकती है और डीज़ल या पेट्रोल की तरह इसे अपमिश्रित (मिलावट) नहीं किया जा सकता। इसका मुख्य संघटक मीथेन होती है। इसके अलावा इसमें ईथेन और प्रोपेन गैस भी होती हैं। सीएनजी चूँकि प्राकृतिक गैस का संपीडित रूप है। इसलिये संपीडन से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन काफी कम हो जाता है। इस कारण से यह एक पर्यावरण हितैषी ईंधन है।

  • स्थिर वैद्युत अवक्षेपित (इलैक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपेटेटर) ताप विद्युत संयंत्र के निर्वातक (Exhaust) में मौजूद 99 प्रतिशत कणिकीय पदार्थों को हटा देता है। स्थिर वैद्युत अवक्षेपित में एक इलैक्ट्रोड तार होता है,जिससे होकर हज़ारों वोल्ट गुजरता है तथा यह करोना उत्पन्न करता है और इससे इलेक्ट्रॉन निकलते हैं। ये इलेक्ट्रॉन धूल के कणों से सट जाते हैं और इन्हें ऋण आवेश प्रदान करते हैं। इससे संचायक पट्टिकाएँ नीचे की ओर आ जाती हैं और आवेशित धूल कणों को आकर्षित करती हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार 2.5 माइक्रोमीटर या कम व्यास के आकार (पीएम 2.5) के कणिकीय पदार्थ मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे अधिक नुकसानदेह हैं। जब मनुष्य साँस लेता है तो ये सूक्ष्म कणिकीय पदार्थ फेफड़ों के भीतर चले जाते हैं तथा ये फेफड़ों को क्षति पहुँचाते हैं।
  • धूल भरी आँधियाँ वायु की गुणवत्ता और वायुमंडलीय संतुलन को प्रभावित करती हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं।

इससे ग्रीनहाउस और ट्रेस गैसों की सांद्रता में भी परिवर्तन हो जाता है जो वायु की गुणवत्ता के लिये हानिकारक होता है। गंगा के मैदानों में चलने वाली अधिकतर धूल भरी आँधियाँ अरब प्रायद्वीप और थार मरुस्थल से उपन्न होती हैं। इनमें नाइट्रेट्स होते हैं जो रि-नॉक्सीफिकेशन की प्रक्रिया से नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स में परिवर्तित हो जाते हैं। यह कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड (ओजोन प्रसारक) की मात्रा में वृद्धि होती है, जो सतही ओज़ोन में वृद्धि की संभावना को बढ़ा देते हैं। इस तरह की प्रक्रियाओं से पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा तथा सतह पर हानिकारक ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा भी बढ़ जाती हैं जो मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। अतः सतही ओजोन में वृद्धि व धूल के मध्य महत्त्वपूर्ण संबंध है और यह धूल से संबंधित अन्य घटनाओं में भी देखा गया है। सतही स्तर पर परिवर्तनों के अलावा एयरोसोल लोडिंग, आकार के वितरण, तापमान और आर्द्रता में सतह से निचले क्षोभ मंडल तक स्पष्ट बदलाव होता है।

ओज़ोन प्रकाश-रसायनिक स्मॉग का प्रमुख घटक है जो प्रकाश की उपस्थिति में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तथा हाइड्रोकार्बन के बीच अभिक्रिया द्वारा बनता है।

सतही ओज़ोन एक प्राथमिक प्रदूषक नहीं है बल्कि यह सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में NOx (नाइट्रोजन ऑक्साइड), CO (कार्बन मोनोऑक्साइड) की रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण उत्पन्न होता है। “जब तापमान में वृद्धि होती है, तो ओज़ोन के उत्पादन की दर भी बढ़ जाती है। छह (वायु गुणवत्ता सूचकांक) AQI श्रेणियाँ हैं- अच्छी+संतोषजनक, मध्यम प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर। इनमें से प्रत्‍येक श्रेणी संभावित स्‍वास्‍थ्‍य प्रभावों से संबद्ध है। AQI आठ प्रदूषकों (PM10, PM2.5, NO2, SO2, CO, O3, NH3, and Pb) पर विचार करता है जिसके लिये (24 घंटे की औसत अवधि तक) राष्‍ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक अनुशंसित हैं।

वायु गुणवत्ता एवं मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली की शुरुआत जून 2015 में दिल्ली और मुंबई के लिये की गई थी।

यह प्रणाली लोगों को उनके पास के निगरानी स्टेशन पर हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्राप्त करने और उसके अनुसार उपाय अपनाने का फैसला लेने में मदद करती है। 'सफर' (SAFAR) के माध्यम से लोगों को वर्तमान हवा की गुणवत्ता, भविष्य में मौसम की स्थिति, खराब मौसम की सूचना और संबद्ध स्वास्थ्य परामर्श के लिये जानकारी तो मिलती ही है, साथ ही पराबैंगनी/अल्ट्रा वायलेट सूचकांक (Ultraviolet Index) के संबंध में हानिकारक सौर विकिरण (Solar Radiation) की तीव्रता की जानकारी भी मिलती है

  • बायोगैस को हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S),कार्बन डाइऑक्साइड (CO2),जल वाष्प को हटाने के लिये शुद्ध किया जाता है और संपीड़ित बायोगैस (CBG) में परिवर्तित किया जाता है,जिसमें 90% से अधिक मीथेन (CH4) होती है।

भारत सरकार ने जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018 जारी की है जो CBG सहित अन्य उन्नत जैव ईंधनों के प्रोत्साहन पर ज़ोर देती है। CBG का परिवहन सिलेंडर या पाइपलाइन के माध्यम से खुदरा विक्रय केंद्रों तक किया जा सकता है। ऊष्मीय मान एवं अन्य गुणधर्मों के मामले में CBG, CNG के समान है, इसलिये इसका उपयोग एक हरित नवीकरणीय स्वचालित ईंधन के रूप में किया जा सकता है। देश में बायोमास उपलब्धता की प्रचुरता को देखते हुए यह ऑटोमोटिव, औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में CNG की जगह ले सकता है। भारत सरकार द्वारा पशुओं के गोबर और खेतों के ठोस अपशिष्ट को बायो-CNG अर्थात् CBG और खाद में परिवर्तित करने के लिये गैल्वनाइज़िंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज़ धन (GOBAR-DHAN) योजना शुरू की गई थी। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने बायो-सीएनजी के लिये केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) अधिसूचित की है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने संपीडित बायोगैस को एक वैकल्पिक हरित परिवहन ईंधन के रूप में बढ़ावा देने के लिये किफायती परिवहन हेतु सतत् विकल्प (Sustainable Alternative Towards Affordable Transportation-SATAT) नामक पहल शुरू की है।

पर्यावरण संरक्षण

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उत्प्रेरक कन्वर्टर NO2 को N2 में बदल देता है।