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सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/पारिस्थितिकी

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  • तटीय नियमन ज़ोन (CRZ) को ‘पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986’ के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा फरवरी-1991 में अधिसूचित किया गया था।

इसका मुख्य उद्देश्य देश के संवेदनशील तटीय क्षेत्रों में गतिविधियों को नियमित करना है। तटीय क्षेत्र का हाई टाइड लाइन (HTL) से 500 मीटर तक का क्षेत्र तथा साथ ही खाड़ी,एस्चूरिज, बैकवॉटर और नदियों के किनारों को CRZ क्षेत्र माना गया है, लेकिन इसमें महासागर को शामिल नहीं किया गया है। इसके अंतर्गत तटीय क्षेत्रों को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा गया है-

  1. CRZ - 1 कम और उच्च ज्वार लाइन के बीच का पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं, जो तट के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखता है।
  2. CRZ - 2 क्षेत्र तट के किनारे तक फैला हुआ होता है।
  3. CRZ-3इसके अंतर्गत CRZ 1 और 2 के बाहरी ग्रामीण और शहरी क्षेत्र आते हैं। इस क्षेत्र में कृषि से संबंधित कुछ खास गतिविधियों को करने की अनुमति दी गई है।
  4. CRZ – 4 जलीय क्षेत्र में क्षेत्रीय सीमा (territorial limits) तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में मत्स्य पालन जैसी गतिविधियों की अनुमति है।
  • अंटार्कटिक महासागर अभयारण्य योजना का प्रस्ताव वर्ष 2010 में ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस और यूरोपियन यूनियन द्वारा लाया गया।

लेकिन कमीशन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ अंटार्कटिक मरीन लिविंग रिसोर्सेज़ (Commission for Conservation of Antarctic Marine living Resources- CCAMLR) की बैठक में सभी सदस्य देशों के बीच आपसी सहमति न होने से यह प्रस्ताव अब तक लंबित है। क्योंकि समुद्री पार्क के निर्माण के लिये CCAMLR के सभी 26 सदस्यों की सहमति आवश्यक है। इस प्रस्ताव के मुख्य विरोधी चीन और रूस हैं। क्योंकि प्रस्तावित क्षेत्र से इन देशों के मत्स्य पालन के हित से जुड़ा हैं। इस अभयारण्य के संवेदनशील हिस्सों में जलीय जीवों के शिकार पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है।

सूर्य के प्रकाश में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान जल अणुओं (H2O) के विघटन से ऑक्सीजन उत्पन्न होती है और पौधों की वाष्पोत्सर्जन प्रक्रिया के दौरान भी यह वायुमंडल में पहुँचती है।

  • वायु में स्वतंत्र रूप से पाई जाने वाली नाइट्रोजन को अधिकांश जीव प्रत्यक्ष रूप से ग्रहण करने में असमर्थ हैं केवल कुछ विशिष्ट प्रकार के जीव जैसे- कुछ मृदा जीवाणु व ब्लू ग्रीन एल्गी ही इसे प्रत्यक्ष गैसीय रूप में ग्रहण करने में सक्षम हैं। सामान्यतः नाइट्रोजन यौगिकीकरण (Fixation) द्वारा ही प्रयोग में लाई जाती है।
नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक है, अर्थात् जीव ही ग्रहण कर सकते हैं। स्वतंत्र नाइट्रोजन का प्रमुख स्रोत मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया व संबंधित पौधों की जड़ें व रंध्र वाली मृदा है, जहाँ से यह वायुमंडल में पहुँचती है।

तीसरा कथन भी सत्य है। वायुमंडल में भी बिजली चमकने (Lightening) व अंतरिक्ष रेडियेशन (Cosmic radiation) द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है।

  • कर्नाटक सरकार ने 22 अगस्त, 2017 को बंगलूरू में कृत्रिम वर्षा हेतु वर्षाधारी परियोजना की शुरुआत की थी। कर्नाटक में सूखे की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार कृत्रिम वर्षा के लिये पूर्व में चलाई गई ‘वर्षाधारी’ परियोजना को पुनः अपनाएगी।

क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) के लिये सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide) या ठोस कार्बन डाइऑक्साइड (Dry Ice) को विमानों का उपयोग कर आसमान में हवा की विपरीत दिशा में छिड़का जाता है। कृत्रिम वर्षा की इस प्रक्रिया में बादल के छोटे कण हवा से नमी सोखते हैं और संघनन से उनका द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे जल की बूँदें भारी हो जाती हैं और वर्षा होने लगती है।

  • क्षतिपूरक वनीकरण (CAF) अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा भारत के लोक लेखा निधि के तहत "राष्ट्रीय क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष" नामक एक विशेष कोष की स्थापना कर सकती है।

इस राशि का उपयोग जलग्रहण क्षेत्र का उपचार, वन्यजीव प्रबंधन, सहायता प्राप्त प्राकृतिक संपोषण, वनों में लगने वाली आग की रोकथाम और उस पर नियंत्रण पाने की कार्रवाइयों, वन प्रबंधन और वनों में मृदा एवं आर्द्रता संरक्षण कार्य, वन्‍यजीव पर्यावास में सुधार, जैव विविधता एवं जैव संसाधनों का प्रबंधन, वानिकी में अनुसंधान, और संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों को नई जगह बसाने के लिये, मानव-वन्यजीव संघर्ष का समाधान, प्रशिक्षण एवं जागरूकता प्रसार आदि गतिविधियों के लिये किया जा सकता है। इस अधिनियम के पहले इस कोष का प्रबंधन तदर्थ क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (CAMPA) द्वारा किया जाता था। नियम के अनुसार, CAF का 90% भाग राज्यों को आवंटित किया जाता है जबकि कोष का 10% केंद्र सरकार अपने पास रखती है।