सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/राजनीतिक प्रणाली

विकिपुस्तक से

भारतीय जेलों की खराब स्थिति और उसमें आवश्यकता से अधिक कैदी होने का मुख्य कारण न्यायालयों में लंबित मामलों की एक बड़ी संख्या है। वर्ष 2017 में सरकार ने सूचित किया था कि भारतीय न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या बढ़कर 2 करोड़ 60 लाख से अधिक हो गई है। जेल आधुनिकीकरण योजना: जेल आधुनिकीकरण योजना की शुरुआत वर्ष 2002-03 में जेलों, कैदियों और जेलकर्मियों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस योजना में नई जेलों का निर्माण, मौजूदा जेलों की मरम्मत और नवीनीकरण, स्वच्छता और जल आपूर्ति में सुधार आदि शामिल थे। ई-जेल परियोजना: ई-जेल परियोजना का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से जेल प्रबंधन की दक्षता को बढ़ाना है। ई-जेल परियोजना जेल प्रबंधन में कैदी सूचना प्रबंधन प्रणाली (Prisoner Information Management system-PIMS) को जोड़ती है।

राज्‍यों के मध्य और केंद्र एवं राज्‍यों के बीच मिलकर काम करने की संस्कृति विकसित करने के उद्देश्‍य से राज्‍य पुनर्गठन कानून (States Reorganisation Act), 1956 के अंतर्गत आंचलिक परिषदों का गठन किया गया था। आंचलिक परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वे आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में आपसी हित से जुड़े किसी भी मसले पर विचार-विमर्श करें और सिफारिशें दें। ये परिषदें आर्थिक और सामाजिक आयोजना, भाषायी अल्‍पसंख्‍यकों, अंतर्राज्‍यीय परिवहन जैसे साझा हित के मुद्दों के बारे में केंद्र और राज्‍य सरकारों को सलाह दे सकती हैं।

तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल एवं पुद्दुचेरी के बीच जल के बँटवारे संबंधी विवाद को निपटाने हेतु 1 जून, 2018 को केंद्र सरकार ने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) का गठन किया था। इस प्राधिकरण के गठन का निर्देश सर्वोच्च न्यायालय ने 16 फरवरी, 2018 को दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, केंद्र सरकार को 6 सप्ताह के भीतर इस प्राधिकरण का गठन करना था। इस प्राधिकरण में एक अध्यक्ष तथा 8 सदस्यों के अलावा एक सचिव शामिल है।अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।

इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (सबरीमला मंदिर प्रवेश मामला) मामले में केरल के सबरीमाला के अय्यप्पा मंदिर में महिलाओं को पूजा करने का अधिकार है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिये अनिवार्य प्रथाओं के सिद्धांत की प्रासंगिकता पर परस्पर विरोधी तर्क देखे गए। अनिवार्य प्रथाओं का सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विकसित एक कसौटी है, जो धर्म के लिये आवश्यक और अभिन्न धार्मिक प्रथाओं की रक्षा से संबंधित है। याचिकाकर्त्ताओं ने मासिक धर्म की उम्र (10 से 50 वर्ष के बीच) की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने से प्रतिबंधित करने वाले नियम की वैधता को चुनौती दी और तर्क दिया कि यह धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। याचिकाकर्त्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि निषेध का नियम (मासिक धर्म की महिलाओं को रोकना) निरर्थक और असंवैधानिक है क्योंकि इस तरह की प्रथाएँ न केवल एक महिला की बुनियादी गरिमा के लिये अपमानजनक हैं, बल्कि संविधान के तहत अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के अंतर्गत दिये गए गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं। ऐतिहासिक रूप से अनिवार्य प्रथाओं के सिद्धांत ने भारतीय उच्चतम न्यायालय को उन धार्मिक प्रथाओं से संबंधित मामलों के निर्णयन में सहायता प्रदान की है जो संवैधानिक संरक्षण के योग्य थीं।

उपराष्ट्रपति[सम्पादन]

  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 63 यह उपबंध करता है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 और 89 (1) में कहा गया है कि भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा और कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
  • संवैधानिक व्यवस्था में, उप-राष्ट्रपति पद का धारक कार्यपालिका का अंग होता है, लेकिन राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में वह संसद का अंग होता है। इस प्रकार उसकी दोहरी भूमिका होती है और दो अलग-अलग और पृथक पद धारण करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 66 (1) के अंतर्गत, उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की संयुक्त बैठक द्वारा किया जाता था। यह प्रक्रिया वर्ष 1961 के 11वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा हटा दी गई।
  • मूल संविधान में शामिल वाक्यांश "संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की एक समवेत संयुक्त बैठक" को "संसद के दोनों सदनों के सदस्यों वाले निर्वाचक मंडल के सदस्यों" द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
  • मंत्रालयों को वित्तीय संसाधन आवंटित करना मंत्रिमंडल सचिवालय का कार्य नहीं है। यह कार्य वित्त मंत्रालय द्वारा बजट आवंटन के माध्यम से किया जाता है।

भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु किसी भी प्रक्रिया का उल्लेख नहीं किया गया है। अनुच्छेद 239 के तहत विधायी व्यवस्था वाले संघराज्य क्षेत्रों में मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, उप-राज्यपाल द्वारा नहीं।

राष्ट्रपतिप्रणाली की विशेषताएँ[सम्पादन]

  1. एकल कार्यकारिणी।

राष्ट्रपति प्रणाली में एकल कार्यकारिणी होती है जिसमें सरकार और राज्य का प्रमुख एक ही होता है।

  1. राष्ट्रपति और विधायिका,एक निश्चित अवधि के लिये अलग-अलग चुने जाते हैं।
  2. उत्तरदायित्त्व का अभाव।
  3. राजनीतिक एकरूपता का अभाव।
  4. एकल सदस्यता।
  5. राष्ट्रपति की प्रभावी भूमिका।
  6. निम्न सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव) का विघटन नहीं होता।
  7. शक्तियों का पृथक्करण।
  8. विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका-सरकार के तीनों अंग एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं।
  9. विशेषज्ञ सरकार: राष्ट्रपति विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को संबंधित विभागों या मंत्रालयों का प्रमुख चुन सकता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सक्षम और विशेषज्ञ व्यक्ति ही सरकार का हिस्सा बने।
  10. स्पॉइल्स प्रणाली: राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार अधिकारियों का चयन कर सकता है। यह स्पॉइल्स प्रणाली को जन्म देता है जहाँ राष्ट्रपति के करीबी लोगों (संबंधी, व्यावसायिक सहयोगी आदि) को सरकार में भूमिकाएँ मिलती हैं।
  11. स्थिरता:-राष्ट्रपति का एक निश्चित कार्यकाल होता है,यह विधायिका में बहुमत के अधीन नहीं होता।

निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपति पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं होने के कारण सरकार के अचानक गिरने का कोई खतरा नहीं होता है।

  1. दलीय प्रणाली का कम प्रभाव:-कार्यकाल नियत होने से राजनीतिक दल सरकार को अस्थिर करने का प्रयास नहीं करते हैं।

सरकार की संघीय प्रणाली में शक्ति सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच विभाजित की जाती है।

संघीय विशेषताएँ एकात्मक विशेषताएँ
दोहरी सरकार (राष्ट्रीय सरकार और क्षेत्रीय सरकार) एकल सरकार,यानी राष्ट्रीय सरकार जो क्षेत्रीय सरकारें बना सकती है।
लिखित संविधान संविधान लिखित (फ्राँस) या अलिखित (ब्रिटेन) हो सकता है।
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन शक्तियों का कोई विभाजन नहीं। सभी शक्तियाँ राष्ट्रीय सरकार में निहित।
संविधान की सर्वोच्चता संविधान सर्वोच्च (जापान) हो सकता है या सर्वोच्च नहीं (ब्रिटेन) भी हो सकता है।
कठोर संविधान संविधान कठोर (फ्राँस) या लचीला (ब्रिटेन) हो सकता है।
स्वतंत्र न्यायपालिका न्यायपालिका स्वतंत्र हो सकती है या नहीं भी हो सकती है।
द्विसदनीय विधानमंडल विधानमंडल द्विसदनीय (ब्रिटेन) या एकात्मक (चीन) हो सकता है।

वैधानिक अनुदान

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-275 के तहत,वित्त आयोग की सिफारिश पर संसद को उन राज्यों को अनुदान देने का अधिकार है, जिन्हें वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, न कि प्रत्येक राज्य को। साथ ही अलग-अलग राज्यों के लिये अलग-अलग राशि तय की जा सकती है।
  • यह अनुदान सहायता प्रतिवर्ष भारत की संचित निधि पर भारित होती है।
केंद्र राज्य संबंध[सम्पादन]
  • सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) के तहत प्रविष्टि-17 में कहा गया है कि:
  • "जल, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकास और तटबंध, जल भंडारण और जल शक्ति सूची-I (संघ सूची) की प्रविष्टि-56 के प्रावधानों के अधीन है।”
  • सार्वजनिक हित में समीचीन होने पर केंद्र सरकार को संसद द्वारा निर्धारित वैधानिक सीमा के तहत सातवीं अनुसूची की सूची-I की प्रविष्टि 56 के तहत अंतर्राज्यीय नदियों के विनियमन और विकास की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
  • अनुच्छेद-249 के अनुसार, राज्यसभा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से राष्ट्र हित में राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने हेतु संसद को अधिकृत कर सकती है।

आपातकाल[सम्पादन]

  • संविधान में अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल के लिये ‘आपातकाल की घोषणा’ वाक्यांश का प्रयोग किया गया है।
  • राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण आपातकाल (अनुच्छेद 356) को राष्ट्रपति शासन के रूप में जाना जाता है।
  • इसे दो अन्य नामों- ‘राज्य आपातकाल’ या ‘संवैधानिक आपातकाल’ के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि संविधान इस स्थिति के लिये ‘आपातकाल’ शब्द का प्रयोग नहीं करता है।
  • अभी तक देश में तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया है। पहली बार 26 अक्तूबर, 1962 को चीन द्वारा देश की उत्तर-पूर्वी सीमा पर हमला करने के बाद आपातकाल घोषित किया गया था। इसे जनवरी 1968 में हटा लिया गया।
  • 3 दिसंबर, 1971 को दूसरे भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण दूसरा आपातकाल घोषित किया गया था जिसे 21 मार्च, 1977 को हटा लिया गया।
  • तीसरा राष्ट्रीय आपातकाल‘आंतरिक उपद्रव’के आधार पर (जिसे आंतरिक आपातकाल कहा जाता है)25 जून,1975 को लगाया गया था जिसे 21 मार्च, 1977 में हटा लिया गया था।

*राष्ट्रपति शासन के परिणाम

  • राष्ट्रपति राज्य सरकार के सभी या कोई कार्य अपने हाथ में ले लेता है या वह राज्यपाल या किसी अन्य कार्यकारी प्राधिकरण में उन सभी या किसी भी कार्य को निहित कर सकता है।
  • राष्ट्रपति राज्य विधानसभा को भंग कर सकता है या उसे निलंबित कर सकता है। विधानसभा का विघटन आवश्यक नहीं है। वह संसद को राज्य विधान मंडल की ओर से कानून बनाने के लिये अधिकृत कर सकता है।
  • मंत्रिपरिषद आवश्यक रूप से कार्यालय से त्यागपत्र दे देती है।
  • स्थानीय निकाय प्रभावित नहीं होते हैं।
  • जब राज्य विधायिका निलंबित या भंग कर दी जाती है तो संसद राज्य के लिये कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति या उसके द्वारा निर्दिष्ट किसी अन्य निकाय को सौंप सकती है।