सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/विजयनगर साम्राज्य(1336 से 1646)

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अमर-नायक प्रणाली इस साम्राज्य का एक प्रमुख राजनीतिक नवाचार था। संभवत: इस प्रणाली की कई विशेषताएँ दिल्ली सल्तनत की इक्ता प्रणाली से ली गई थीं। अमर-नायक सैन्य कमांडर थे जिन्हें राय द्वारा शासित क्षेत्र दिये जाते थे। विजयनगर के शासक स्वयं को राय कहा करते थे। अमर-नायकों के कार्य निम्नलिखित थे: ये उस क्षेत्र में किसानों, शिल्पकारों और व्यापारियों से कर एवं अन्य बकाया राशि एकत्र करते थे। राजस्व का एक भाग वे निजी उपयोग और घोड़ों एवं हाथियों की एक निर्धारित टुकड़ी को बनाए रखने के लिये अपने पास रखते थे। इससे विजयनगर को एक प्रभावी युद्ध बल मिला और वे पूरे दक्षिणी प्रायद्वीप को अपने नियंत्रण में लाने में सफल हो सके। राजस्व के कुछ भाग का उपयोग मंदिरों के रखरखाव और सिंचाई कार्यों के लिये भी किया जाता था। अमर-नायक राजा को वार्षिक रूप से भेंट भेजते थे और राजा के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने हेतु उपहारों के साथ दरबार में उपस्थित होते थे। राजा भी कभी-कभार उनका एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण करके उन पर अपने नियंत्रण का दावा करता था। हालाँकि सत्रहवीं शताब्दी के दौरान इनमें से कई नायकों ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किये। इसने साम्राज्य के केंद्रीय ढाँचे के पतन को तेज़ कर दिया।


02 मई, 2019 को श्री वेदांत देशिक की 750वीं जयंती के अवसर पर एक डाक टिकट जारी किया गया था।

श्री वेदांत देशिक का जन्म सन 1268 ई. में हुआ था और उनकी मृत्यु सन् 1369 ई. में हुई। वे विजयनगर साम्राज्य के कृष्णदेव राय के समकालीन नहीं थे, क्योंकि कृष्णदेव राय का शासनकाल 1509 ई. से 1529 ई. तक था। अत: कथन 1 सही नहीं है। वे श्रीवैष्णव परंपरा के सबसे प्रभावशाली संतों में से एक थे, न कि शैव परंपरा के। अत: कथन 2 सही नहीं है। उन्होंने रामानुज के विशिष्टाद्वैत के दर्शन का अनुसरण किया। एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ श्री वेदांत देशिक वैज्ञानिक, तर्कशास्त्री, गणितज्ञ, साहित्यिक प्रतिभा के धनी, भाषाविद्, सैन्य रणनीतिकार भी थे। उन्हें 'सर्व-तंत्र-स्वतंत्र' (सभी कलाओं और शिल्पों में दक्ष), ‘कवि-तारिका-केसरी’ (कवियों और तर्कवादियों के बीच सिंह), रामानुज-दया-पात्रम् (रामानुज के आशीर्वाद के प्राप्तकर्त्ता) आदि संज्ञाओं से गौरवान्वित किया गया था। उन्होंने संस्कृत, तमिल, प्राकृत और मणिप्रवालम (तमिल और संस्कृत का मिश्रण) में उत्कृष्ट कविताएँ, गद्य, नाटक, महाकाव्य, टीकाएँ, वैज्ञानिक ग्रंथ और दार्शनिक ग्रंथ लिखे थे। उन्होंने बीस वर्ष की आयु तक वेदों, वेदांगों, 4000 दिव्य प्रबंध (4,000 तमिल छंदों का संग्रह) और न्याय, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा, योग और सांख्य जैसे भारतीय दर्शनों में विशेषज्ञता प्राप्त कर ली थी। परमतभंग और रहस्यत्रयसार श्री वेदांत देशिक द्वारा तमिल भाषा में रचित मुख्य दार्शनिक ग्रंथ है। पांचरात्ररक्षा नामक कृति में श्री वेदांत देशिक ने पांचरात्र धर्म के सिद्धांतों की विवेचना की है तथा उन्होंने गीताभाष्य पर टीकाएँ भी लिखीं। पादुका सहस्रम श्री वेदांत देशिक द्वारा लिखा गया एक संस्कृत चित्रकाव्य है। उन्होंने कला और विज्ञान के क्षेत्र में रचनाएँ कीं, जैसे: आहार नियमम्: स्वस्थ मन और रोग मुक्त जीवन को बनाए रखने में खाद्य पदार्थों की भूमिका की विवेचना । सुभाषिता नीवी: यह प्रासंगिक और व्यावहारिक नैतिकतापरक उपदेशों का संग्रह है। सिलपार्थसारम्: मूर्तिकला पर एक ग्रंथ। भूगोल-निर्णयम्: भूगोल पर एक शोध ग्रंथ। उनका दर्शन समावेशन की विचारधारा पर आधारित था, जिसमें सभी जातियों और पंथों के लोग शामिल हो सकते थे।


10वीं शताब्दी का कन्नड़ साहित्य जैन साहित्य के त्रिरत्न ‘पम्पा, पोन्ना और रन्ना’ तथा कन्नड़ भाषा के वैयाकरण नागवर्मा प्रथम से प्रभावित था। पम्पा आदिकवि थे, जिन्होंने दो महाकाव्यों-‘विक्रमार्जुन विजय’ और ‘आदिपुराण’ की रचना की। ‘विक्रमार्जुन विजय’ महाभारत की पुनर्रचना है जिसके नायक अर्जुन की पहचान कवि के संरक्षक चालुक्य अरिकेसरी के रूप में की जाती है। पम्पा के ‘आदिपुराण’ में जैन नायक-संत पुरुदेव, उनके पिछले जीवन, जन्म और विवाह से लेकर मृत्यु, साथ ही उनके पुत्रों भरत और बाहुबली के जीवन की कहानी वर्णित है। पोन्ना और रन्ना ने क्रमशः ‘शांति पुराण’ और ‘अजित पुराण’ की रचना की। ये दोनों कवि राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय के दरबार से जुड़े थे।