सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहायिका/सामान्य विज्ञान

विकिपुस्तक से

प्रत्येक रेडियो-आवृत्ति पहचान (RFID) नाम-पत्र निम्नलिखित कार्य करते हैं: RFID नाम-पत्र सूक्ष्म इलैक्टॉनिक परिपथ (माइक्रोचिप) के भीतर संग्रहित डेटा को पढ़ते (रीड करते) है। नाम-पत्र एंटीना RFID रीडर के एंटीना से विद्युत चुंबकीय ऊर्जा प्राप्त करता है। RFID नाम-पत्रों में संलग्नित रीडर आंतरिक बैटरी या रीडर के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र से ऊर्जा ग्रहण कर नाम-पत्र रेडियो तरंगों को वापस रीडर के पास भेजते हैं। रीडर नाम-पत्रों की रेडियो तरंगों से संपर्क कर आवृत्तियों को सार्थक डेटा के रूप में व्याख्यायित करता है। सक्रिय, अर्ध-निष्क्रिय और निष्क्रिय RFID नाम-पत्र इस तकनीक को अधिक सुलभ और महत्त्वपूर्ण बना रहे हैं। इन नाम-पत्रों को कम कीमत में तैयार किया जा सकता हैं। इन्हें लगभग किसी भी उत्पाद के साथ संबंद्ध करने के लिये पर्याप्त छोटा आकार दिया जा सकता है। सक्रिय और अर्ध-निष्क्रिय RFID नाम-पत्र अपने सर्किट में ऊर्जा प्रवाहित करने के लिये आंतरिक बैटरी का प्रयोग करते हैं। एक सक्रिय नाम-पत्र रेडियो तरंगों को रीडर तक प्रसारित करने के लिये अपनी बैटरी का प्रयोग करता है, जबकि एक अर्ध-निष्क्रिय नाम-पत्र प्रसारण हेतु ऊर्जा की आपूर्ति के लिये रीडर पर निर्भर रहता है। इसका कारण यह है कि सक्रिय नाम-पत्रों में निष्क्रिय RFID नाम-पत्रों की तुलना में अधिक हार्डवेयर होते हैं, इसलिये ये अधिक महंगे होते हैं। इस प्रकार, सक्रिय RFID नाम-पत्र बाह्य स्रोतों पर निर्भर नहीं होते हैं। RFID नाम-पत्रों में तीन प्रकार के भंडारण होते हैं: पढने एवं लिखने (रीड एंड राइट) नाम-पत्रों में अतिरिक्त डेटा जोड़ने या अधिलेखन की क्षमता होती है। अत: कथन 1 सही है। केवल-पढ़ने (रीड-ओनली) वाले नाम-पत्रों में अतिरिक्त डेटा जोड़ा या अधिलेखित नहीं किया जा सकता हैं, उनमें केवल वही डेटा संग्रहित होता है जो उनके निर्माण के समय संचित किया जाता हैं। एक बार लिखें, कई बार पढ़ें (राइट वन्स, रीड मैनी-WORM) नाम-पत्रों में केवल एक बार अतिरिक्त डेटा जोड़ा जा सकता है, लेकिन उन्हें अधिलेखित नहीं किया जा सकता है।

  • पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) एक ऐसा ज़मीनी क्षेत्र जो कम-से-कम दो वर्षों तक पूरी तरह से जमा हुआ (0° C तापमान) या लगातार ठंडा रहता है।

स्थायी रूप से जमे हुए ऐसे मैदान उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवों के उच्च पहाड़ी क्षेत्रों और पृथ्वी के उच्च अक्षांशों में पाए जाते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में कम पर्माफ्रॉस्ट है क्योंकि इसमें भूमि क्षेत्र कम है जबकि महासागर अधिक है। आर्कटिक महासागर के अंतर्गत जो उत्तरी ध्रुव को कवर करता है, समुद्र के कुछ तल पूरी तरह से जमे हुए हैं। स्थायी रूप से जमे हुए समुद्री तल को सब-सी पर्माफ्रॉस्ट (Subsea Permafrost) कहा जाता है।

  • साबुन और अपमार्जक आर्द्रता एजेंट (रेशों को आर्द्र करने हेतु) और पायसीकारक (के रूप में (गंदगी को कपड़ों से अलग करने हेतु) का कार्य करते हैं।

साबुन मृदु जल में अच्छे झाग पैदा करते है क्योंकि मृदु जल में कैल्शियम और मैग्नीशियम आवेश नहीं होते है। कठोर जल में,घुलित कैल्शियम या मैग्नीशियम आयन सोडियम स्टीयरेट (साबुन) के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और एक सफेद या स्लेटी रंग का अवक्षेप बनाते हैं। इस कारण अपमार्जक (सोडियम एल्किल सल्फ़ेट) कठोर जल में साबुन से अधिक प्रभावी होते हैं क्योंकि मैग्नीशियम या कैल्शियम के लवण कठोर जल में घुलनशील होते हैं। साबुन क्षार, वसा और तेलों की प्रतिक्रिया से बनते हैं। ये वसा और तेलों के सोडियम लवण हैं। वसा और तेल को आसानी से अतिसूक्ष्म जीवों द्वारा सरल अणुओं में तोड़ा जा सकता है, इसलिये साबुन बायोडिग्रेडेबल अर्थात् जैव-निम्नीकरणीय होते हैं। अपमार्जक संश्लेषित यौगिक होते हैं जो आमतौर पर लंबी शृंखला युक्त कार्बोक्सिलिक अम्ल के अमोनियम या सल्फेट लवण होते हैं। इन संश्लेषित यौगिकों को सूक्ष्म जीवों द्वारा सरल अणुओं में नहीं तोड़ा जा सकता है। इसलिये अपमार्जक जैव-निम्नीकरणीय/बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं। प्राय: साबुन को बेहतर पर्यावरण विकल्प माना जाता हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि साबुन और अपमार्जक दोनों पर्यावरण को प्रभावित कर सकते हैं। वाणिज्यिक साबुन उत्पादन में वनस्पति तेल जैसे महंगे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। धोने के लिये साबुन को अधिक जल की आवश्यकता होती है। अपमार्जक जैव-निम्नीकरणीय नहीं होते हैं और एक मोटी फोम का निर्माण कर सकते हैं जो जलीय जंतुओं की मृत्यु का कारण बनती है।

  • लिम्फैटिक फाइलेरिया,जिसे एलिफेंटियासिस (Elephantiasis) के नाम से भी जाना जाता है,एक मानवीय बीमारी है जो परजीवी कृमि के कारण होती है जिसे फाइलेरिया कृमि के रूप में जाना जाता है।

यह विषाणु जिसे इन्फ्लूएंजा ए (Influenza- A) या टाइप ए (Type- A) विषाणु कहते है। सामान्यतः यह पक्षियों में पाया जाता है, लेकिन कभी-कभी यह मानव सहित अन्य कई स्तनधारिओं को भी संक्रमित कर सकता है। लेकिन मानव से मानव में संक्रमण होने की संभावना बहुत कम है। इसे बर्ड फ्लू/एवियन इन्फ्लूएंजा के नाम से जाना जाता है। एवियन इन्फ्लूएंजा (Avian Influenza) एक विषाणु जनित रोग है। ‘H5N1’ बर्ड फ्लू का सामान्य रूप है।

  • इट्रोजेनिक (latrogenics) वह स्थिति है जब किसी उपचार के कारण लाभ से अधिक नुकसान हो।ग्रीक में iatros शब्द का अर्थ होता है "उपचार जनित" या "चिकित्सक जनित"। इट्रोजेनेसिस (Iatrogenesis) स्वास्थ्य पेशेवरों के रूप में काम करने वाले अथवा स्वास्थ्य के लिये लाभकारी उत्पादों या सेवाओं को बढ़ावा देने वाले एक या एक से अधिक व्यक्तियों की गतिविधियों के कारण किसी व्यक्ति पर पड़ने वाला वह प्रभाव है जो उसके स्वास्थ्य संबंधी उद्देश्य को पूरा नहीं करता है।
  • एक्यूट(तीव्र) इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) एक व्यापक शब्द है जिसमें कई संक्रमण शामिल हैं और यह छोटे बच्चों को प्रभावित करता है। यह सिंड्रोम विषाणु (वायरस),जीवाणु (बैक्टीरिया) या कवक के कारण हो सकता है। भारत में इसका प्रमुख कारण जापानी इंसेफेलाइटिस नामक वायरस है।

एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम मच्छरों द्वारा संचारित मस्तिष्क शोथ (इंसेफेलाइटिस) की एक गंभीर स्थिति है तथा इसकी मुख्य विशेषता तेज़ बुखार और मस्तिष्क में सूजन आना है। AES के रोगियों में हाइपोग्लाइसीमिया अर्थात् रक्त में ग्लूकोज़ की कमी आमतौर पर देखा गया लक्षण है और यह वर्षों से शोध का विषय रहा है। छोटे बच्चों में कम रक्त शर्करा के साथ बुखार उनकी मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है।

कंप्यूटर[सम्पादन]

  • क्वांटम कंप्यूटर कम्प्यूटेशन के लिये एक उपकरण है जो विशिष्ट क्वांटम यांत्रिक घटनाओं जैसे- सुपरपोजिशन (Superposition) और एनटैगलमेंट (Entanglement) के प्रत्यक्ष प्रयोग पर आधारित है।

एक परंपरागत कंप्यूटर सूचनाओं को बिट में संग्रहीत करता है, जबकि क्वांटम कंप्यूटर में सूचना ‘क्वांटम बिट’ या ‘क्यूबिट’ में संग्रहीत की जाती है। वे क्वांटम यांत्रिकी के गुणधर्मों पर आधारित हैं जिसमें परमाण्विक स्तर पर पदार्थ के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रोसेसर 1 और 0 एक साथ हो सकते हैं, जिसे क्वांटम सुपरपोजिशन कहा जाता है।

अंतरिक्ष विज्ञान[सम्पादन]

  • क्षुद्रग्रहों का आकार ग्रहों की तुलना में बहुत छोटा होता है। क्षुद्रग्रह की परिक्रमण कक्षा अनियमित होती है इसलिये इनकी पृथ्वी से टकराने की संभावना बनी रहती है। क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं ना कि पृथ्वी की। सौरमंडल में ज़्यादातर क्षुद्रग्रह मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट (Main Asteroid Belt) में पाए जाते हैं। यह यह बेल्ट मंगल और बृहस्पति ग्रहों की कक्षाओं के बीच के क्षेत्र में स्थित है। अधिकांश क्षुद्रग्रह विभिन्न प्रकार की चट्टानों से बने होते हैं लेकिन कुछ क्षुद्रग्रह निकेल और लोहे जैसी धातुओं से बने हैं।
  • मित्रा चंद्रमा पर उपस्थित एक गड्ढा है जिसे चंद्रमा के उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में चंद्रयान-2 के टरेन मैपिंग कैमरे में कैद किया गया ‘मित्रा’ एक प्रहार या इम्पैक्ट क्रेटर है।

जिसका नामकरण वर्ष 1970 के दशक में प्रसिद्ध भारतीय भौतिकशास्त्री और रेडियो विज्ञानी प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्रा के नाम पर मित्रा क्रेटर के रूप में किया गया था।

  • चीन ने चंद्रमा के विमुख फलक (Far Side or Dark Side) की ओर अपने 'चांग ई-4' (chang e-4) अभियान की सॉफ्ट लैंडिंग कराई थी।(3 जनवरी, 2019 को चंद्रमा के फार साइड में सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला यह पहला अंतरिक्षयान बना)। लैंडर पर बीजों के सीलबंद डिब्बे (जो बीजों के विकास के लिये एक लघु जैवमंडल जैसा था) का एक प्रायोगिक मॉड्यूल भी मौजूद था। हालाँकि चंद्र रात्रि (Lunar Night) के अत्यंत निम्न हिम तापमान के कारण ये छोटे अंकुरित बीज बाद में नष्ट हो गए। चंद्रमा पर कपास के बीज अंकुरित कराए गए हैं और ये चंद्रमा पर उगने वाले पहले पौधे बन गए।
  • कैसिनी-हाइगेंस शनि और चंद्रमा का अध्ययन करने के लिये नासा (NASA),यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और इटैलियन अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा किया एक संयुक्त प्रयास था। यह डिस्कवरी कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था। यह सौर प्रणाली के जानकारी प्राप्त करने के लिये कम लागत (न्यू फ्रंटियर्स या फ्लैगशिप कार्यक्रमों की तुलना में) की एक शृंखला है।
सोफिया (SOFIA) या स्ट्रैटोस्फेयरिक ऑब्ज़र्वेटरी फॉर इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी, नासा और जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी की एक संयुक्त परियोजना है। यह एक हवाई वेधशाला है। सोफिया का 2.5 मीटर व्यास वाला टेलीस्कोप खगोलविदों को दृश्य,अवरक्त और सबमिलिमीटर वर्णक्रम/स्पेक्ट्रम तक पहुँचने में मदद करता है। दुनिया की सबसे बड़ी हवाई खगोलीय वेधशाला होने के कारण इस टेलीस्कोप से उच्च स्तर के चित्र लिये जा सकते हैं जो अन्य वेधशालाओं द्वारा लिये गए चित्रों की तुलना में तीन गुना बड़े होते हैं।
‘हबल’ (Hubble) नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी की एक संयुक्त परियोजना है। इसके कैमरों द्वारा अंतरिक्ष का अन्वेषण गहराई से किया जा सकता है क्योंकि यह अवरक्त से पराबैंगनी तक पूरे प्रकाशीय वर्णक्रम को देखने में सक्षम है।
केपलर स्पेस टेलीस्कोप को वर्ष 2009 में लॉन्च किया गया था। अब यह निष्क्रिय हो चुका है। यह नासा के डिस्कवरी कार्यक्रम का हिस्सा था। केप्लर ने हज़ारों बाह्य ग्रहों/ एक्सोप्लैनेट्स की खोज की।
  • ग्रेट रेड स्पॉट नासा के जूनो स्पेसक्राफ्ट द्वारा देखा गया था। 400 मील प्रति घंटे की हिंसक हवाओं के साथ यह एक चक्रवाती तूफान है जो बृहस्पति के भूमध्य रेखा से 22 डिग्री दक्षिण में पाया जाता है।

जूनो 2011 में लॉन्च नासा का एक अंतरिक्ष खोजी अभियान है,जो बृहस्पति ग्रह की परिक्रमा करता है। यह अंतरिक्षयान बृहस्पति के चारों ओर घूमता है तथा त्रि-आयामी कैट स्कैन की तरह यह बृहस्पति के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र,चुंबकीय क्षेत्र और आंतरिक क्षेत्र का अध्ययन करेगा।

  • वायुमंडलीय टोमोग्राफी मिशन (Atmospheric Tomography Mission-ATom) ग्रीनहाउस गैसों और वातावरण में रासायनिक रूप से प्रतिक्रियाशील गैसों पर मानवजनित वायु प्रदूषण के प्रभावों का अध्ययन करेगा। मीथेन (CH4), क्षोभमंडलीय ओजोन (O3) और ब्लैक कार्बन (BC) एयरोसोल्स की वायुमंडलीय सांद्रता में कमी करने, ग्लोबल वार्मिंग को कम करने और वायु की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये प्रभावी उपाय है।

वायुवाहित (Airborne) उपकरण पता लगाएंगे कि कैसे विभिन्न वायु प्रदूषकों द्वारा और CH4 एवं O3 पर प्रभाव द्वारा वायुमंडलीय गुणधर्मों में परिवर्तन होता है।

  • लूनर ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म-गेटवे नासा का एक प्रस्तावित कार्यक्रम है,जो चंद्र/लूनर अंतरिक्ष स्टेशन संचालित करने के लिये अंतरिक्ष यात्रियों को चाँद पर पहुँचाएगा।

इसका उद्देश्य सौर ऊर्जा से संचालित संचार केंद्र, विज्ञान प्रयोगशाला, अल्पकालिक हैबिटेशन मॉड्यूल और रोवर्स तथा अन्य रोबोटों के लिये होल्डिंग एरिया के रूप में कार्य करना है।

  • लुसी ट्रोजन क्षुद्रग्रह का अध्ययन करने वाला नासा का पहला अंतरिक्ष मिशन होगा । लुसी मिशन ग्रहों की उत्पत्ति और सौरमंडल के गठन संबंधी हमारे ज्ञान का संवर्द्धन करेगा।

ट्रोजन जिसे आमतौर पर ट्रोजन क्षुद्रग्रह कहा जाता है, क्षुद्रग्रहों का एक बड़ा समूह है जो सूर्य के चारों ओर बृहस्पति ग्रह की कक्षा को साझा करता है। ट्रोजन दो असंगठित समूहों में सूर्य की परिक्रमा करता हैं। एक समूह हमेशा अपने पथ में बृहस्पति से आगे रहता है, दूसरा हमेशा पीछे। इन दो लैगरेंज बिंदुओं पर सूर्य और बृहस्पति द्वारा गुरुत्वाकर्षण बल के संतुलन के कारण पिंड स्थिर है।

  • कैसिनी मिशन नासा,यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और इतालवी अंतरिक्ष एजेंसी (Agenzia spaziale Italiana-ASI) का शनि ग्रह हेतु एक संयुक्त प्रयास है। कैसिनी एक परिष्कृत रोबोटिक अंतरिक्षयान है जो इस वलयित ग्रह की परिक्रमा करता है और ग्रह का विस्तृत अध्ययन करता है।
इनसाइट (InSight) लैंडर लेबल उपकरण के साथ

इनसाइट (Interior Exploration using Seismic Investigations, Geodesy and Heat Transport-InSight), एक मंगल लैंडर है। यह मंगल ग्रह के आंतरिक वातावरण यानी इसके क्रस्ट,मेंटल और कोर का गहराई से अध्ययन करने वाला पहला आउटर स्पेस रोबोटिक एक्सप्लोरर है। इसका निर्माण लॉकहीड मार्टिन स्पेस सिस्टम्स द्वारा किया गया था, जिसे नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी द्वारा प्रबंधित किया गया है, और इसके अधिकांश वैज्ञानिक उपकरण यूरोपीय एजेंसियों द्वारा बनाए गए थे। मिशन 5 मई 2018 को 11:05 UTC पर एटलस V-401 रॉकेट पर सवार होकर सफलता पूर्वक भूमि पर उतारा गया।

Mars Atmosphere and Volatile Evolution (MAVEN) मिशन नासा द्वारा वित्तपोषित मार्स स्काउट प्रोग्राम का हिस्सा है। नवंबर 2013 में लॉन्च किया गया यह मिशन मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल, आयनमंडल तथा सूर्य एवं सौर पवन के साथ इसकी अन्योन्य क्रिया का पता लगाएगा।

ऑरिजिंस, स्पेक्ट्रल इंटरप्रिटेशन, रिसोर्स आइडेंटिफिकेशन, सिक्योरिटी-रेजोलिथ एक्सप्लोरर (OSIRIS-REx) अंतरिक्षयान पृथ्वी के करीब स्थित क्षुद्रग्रह बेन्नू की यात्रा करेगा और अध्ययन के लिये कम-से-कम 2.1 औंस पदार्थ को पृथ्वी पर वापस लाएगा। यह मिशन ग्रहों का निर्माण और जीवन की शुरुआत सहित पृथ्वी को प्रभावित कर सकने वाले क्षुद्रग्रहों संबंधी हमारी समझ को भी बेहतर करने में वैज्ञानिकों की सहायता करेगा।[१]

भौतिकी विज्ञान[सम्पादन]

  • अनुसंधानकर्त्ताओं ने पारंपरिक गौसियन किरणों (Gausean Beams) के स्थान पर प्रकाशिक संचार के लिये बेंडेबल प्रकाश किरण (Bendable Light Beam) की खोज की।

बेंडेबल प्रकाश किरणें सरल रेखीय मार्ग के स्थान पर वक्रीय पथ के अनुसरण में सक्षम होती हैं। ये किरणें गैर-विवर्तनकारी (Non-Diffracting) होती हैं।

  • ध्वनि बूम एक अविश्वसनीय रूप से जनित तेज ध्वनि होती है जो ध्वनि तरंगों की गति यानी पराध्वनिक गति से यात्रा करने वाली किसी वस्तु या विमान द्वारा उत्पन्न होती है। अवध्वनिक गति वह गति होती है जो ध्वनि की गति से कम है।

विमान चालक ध्वनि बूम को सुनने में असमर्थ होते हैं क्योंकि जब विमान पराध्वनिक गति से यात्रा करता है तो ध्वनि तरंगे विमान के पीछे छूट जाती हैं। आम तौर पर बड़े उल्का ध्वनि तरंगों की तुलना में तेज़ गति से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं। इससे उनके द्वारा ध्वनि बूम पैदा होता है।

  • हाल में समाचारों में रहा टोकामक (Tokamak) शब्द क्या संदर्भित करता है?
उत्तर-एक सेटअप जो परमाणु संलयन प्रतिक्रिया घटित करने की इच्छा रखता है।

मज़बूत सुपरकंडक्टिंग चुंबकीय कॉइल से घिरे एक डॉनट (doughnut) आकार के पात्र का उपयोग प्लाज़्मा को रखने के लिये किया जाता है ताकि यह पात्र की दीवारों से न टकराए। सर्वप्रथम रूस द्वारा विकसित इस प्रणाली को 'टोकामक' (tokamak) के रूप में जाना जाता है। हालाँकि टोकामक में संलयन प्रतिक्रिया (Fusion Reaction) शुरू तो की जा सकती है लेकिन प्लाज़्मा के रिसाव के कारण लंबे समय तक इस प्रतिक्रिया को जारी रखना संभव नहीं है। इसके अलावा प्रणाली से संलयन ऊर्जा का आउटपुट हमेशा इनपुट ऊर्जा से कम रहा है। इसके कई तकनीकी कारण हैं। चुंबकीय परिरोध (Magnetic Confinement) परम (Absolute) नहीं होता है। कणों के बीच टकराव चुंबकीय परिरोध से एक बहाव का कारण बनता है। प्लाज़्मा "मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक इनस्टेबिलिटी" के अधीन होता है जो चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) से इसकी अंतःक्रिया के कारण उत्पन्न होता है।

इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (ITER)1988 में संलयन अनुसंधान में लगे देशों ने इस क्षेत्र से संबंधित समस्याओं से निपटने और संलयन ऊर्जा का दोहन करने के लिये एक प्रक्रिया विकसित करने हेतु के तहत एक संयुक्त उद्यम कार्यक्रम का निर्माण किया। इसके सदस्य देश ( चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका) अब दक्षिणी फ्राँस के कैडारश (Cadarache) में प्लाज़्मा के चुंबकीय परिशोधन के सिद्धांत पर एक संलयन रिएक्टर के निर्माण और इसके संचालन के लिये 35 वर्षीय सहयोग की अवधारणा के साथ संलग्न हुए हैं।

एक लाख से अधिक घटकों के साथ निर्मित ITER को अब तक के सबसे जटिल मशीनों में से एक माना जाता है। ITER का मुख्य घटक डॉनट के आकार का टोकामक है जिसमें लगभग 23,000 टन वज़न का 840 घन मीटर प्लाज़्मा संग्रहीत है और यह अब तक का सबसे बड़ा संलयन रिएक्टर है। अतः कथन 3 सही है। सूर्य और तारों के विपरीत जहाँ हाइड्रोजन नाभिक (प्रोटॉन) संलयन प्रतिक्रिया से गुज़रती है, ITER के ईंधन में हाइड्रोजन के दो समस्थानिक शामिल हैं – ड्यूटेरियम (D) और ट्राइटियम (T)। संलयन प्रक्रिया शुरू करने के लिये गैसीय ईंधन को टोकामक निर्वात पात्र में प्रवेश कराया जाता है और इससे शक्तिशाली विद्युत का प्रवाह कराया जाता है। ओमिक हीटिंग (Ohmic Heating) के कारण गैसें आयनीकृत हो जाती हैं और प्लाज़्मा का निर्माण करती हैं जो शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र द्वारा परिरूद्ध रहती हैं। सहायक ताप विधियाँ प्लाज़्मा तापमान को 100 मिलियन डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ा देती हैं (सूर्य के कोर से दस गुना अधिक गर्म)। इस तरह के उच्च तापमान पर सक्रिय होने वाले प्लाज़्मा के कण अपने प्राकृतिक विद्युत चुंबकीय प्रतिकर्षण से बाहर निकल सकते हैं और हीलियम नाभिक एवं ऊर्जा के उत्पादन के लिये संलयन कर सकते हैं।

  • तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है।
  • निकट-दृष्टि दोष (Myopia or near-sightedness) आँखों का दोष होता है जिसमें निकट की वस्तुएँ तो साफ-साफ दिखती हैं किंतु दूर की वस्तुएँ दिखाई नहीं देती हैं।

आँखों में यह दोष उत्पन्न होने पर प्रकाश की समानांतर किरणपुंज आँख द्वारा अपवर्तन के बाद रेटिना के पहले प्रतिबिंब बनाता है, न कि रेटिना पर। इस कारण दूर की वस्तुओं का प्रतिबिंब स्पष्ट नहीं बन पाता है और चीज़ें धुँधली दिखाई देती हैं। निम्नलिखित के कारण यह दोष उत्पन्न हो सकता है: eye लेंस की अत्यधिक वक्रता (curvature)। आँख की पुतलियों का बढ़ता आकार। अवतल लेंस (concave lens) का उपयोग करके इस कमी को दूर किया जा सकता है।

  • ब्लैक होल शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले अमेरिकी भौतिकविद् जॉन व्हीलर ने 1960 के दशक के मध्य में किया था।

यह अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता। चूँकि इनसे प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता,अतः हमें ब्लैक होल दिखाई नहीं देते, वे अदृश्य होते हैं। हालाँकि विशेष उपकरणों से युक्त अंतरिक्ष टेलिस्कोप की मदद से ब्लैक होल की पहचान की जा सकती है। ये उपकरण यह बताने में भी सक्षम हैं कि ब्लैक होल के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं।

  • डॉप्लर प्रभाव-वह आवृत्ति जिस पर ध्वनि या प्रकाश तरंगें एक स्रोत को छोड़ती हैं तथा जिस पर वह एक पर्यवेक्षक तक पहुँचती हैं के बीच आभासी अंतराल का कारण पर्यवेक्षक तथा तरंग स्रोत की आपेक्षित गति है।

इस घटना/प्रवृत्ति का उपयोग रडार और आधुनिक नौपरिवहन में किया जाता है। यह पहली बार (वर्ष 1842 में) ऑस्ट्रियाई भौतिक विज्ञानी क्रिश्चियन डॉप्लर द्वारा प्रस्तावित किया गया था। उदाहरण:-डॉप्लर प्रभाव का उपयोग तारों की गति का अध्ययन करने तथा युग्म तारों की खोज के लिये किया जाता है तथा यह ब्रह्मांड के आधुनिक सिद्धांतों का एक अभिन्न अंग है।

यांत्रिक और विद्युत चुंबकीय तरंगों के बीच अंतर

विद्युत चुंबकीय तरंगे गैर-यांत्रिक तरंगों का मात्र एक प्रकार हैं। इन्हें गैर-यांत्रिक इसलिये माना जाता है क्योंकि इनके प्रसार के लिये माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। ये निर्वात में भी गति कर सकती हैं। उदाहरण के लिये: प्रकाश और रेडियो तरंगे। यांत्रिक तरंगें ऐसी तरंगें हैं जिन्हें प्रसार के लिये एक माध्यम की आवश्यकता होती है और ये पदार्थ के माध्यम से ही आगे बढ़ती हैं। यांत्रिक तरंगों के प्रसार के लिये जल, वायु या किसी भी वस्तु की आवश्यकता होती है। उदाहरण:-जल तरंगें और ध्वनि तरंगें। यांत्रिक तरंगों की उत्पत्ति तरंग आयाम द्वारा होती है, आवृत्ति द्वारा नहीं। विद्युत चुंबकीय तरंगें आवेशित कणों के कंपन से उत्पन्न होती हैं।

  • ब्रह्मांड का लगातार विस्तार हो रहा है। गुरुत्वाकर्षण के कारण इसके विस्तार की प्रक्रिया तेज़ी से बढ़ रहा है। आइंस्टीन द्वारा प्रस्तुत सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत (General Theory of Relativity) ब्रह्मांड की प्रकृति से संबंधित जानकारी प्रकट होनी शुरू हुई। सामान्य सापेक्षता का सिद्धांत वर्तमान समय में ब्रह्मांड के बारे की जाने वाली सभी बड़े पैमाने की गणनाओं का आधार है। ब्रह्मांडीय नियतांक या 'कॉस्मोलॉजिकल कॉन्स्टेंट' का सुझाव मूल रूप से आइंस्टीन द्वारा ही दिया गया था।

एडविन हबल ने स्पष्ट रूप से यह प्रमाणित किया है कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। इस तथ्य के बावजूद कि अब तक ब्रह्मांड के केवल 5% पदार्थ और ऊर्जा के बारे में जानकारी प्राप्त हई है, अधिकांश ब्रह्मांड विज्ञानी ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास से संबंधित बिग बैंग मॉडल पर सहमत हैं। ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है कि यह कभी बहुत अधिक सघन और गर्म था। प्रारंभिक ब्रह्मांड सूक्ष्म, गर्म और अपारदर्शी कणों के मिश्रण से भरा हुआ था, जिसके चारो ओर हल्के कण और फोटॉन टकराकर लौट जाते थे। बाद में यह ठंडा तथा संघनित होता गया और इतना पारदर्शी हो गया कि प्रकाश इसके माध्यम से गुजर सके। वर्तमान समय में भी ब्रह्मांड का विस्तार लगातार जारी है। आकाशगंगाओं के बीच उपस्थित रिक्त स्थानों का लगातार विस्तार हो रहा है।

डार्क मैटर और डार्क एनर्जी डार्क मैटर उन कणों से बना होता है जो कि प्रकाश को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं, साथ ही विद्युत चुंबकीय विकिरण से इसे पता कर पाना मुश्किल होता है, वहीं दूसरी तरफ इन्हें देखा जाना भी संभव नहीं है।

संभवतः ब्रह्मांड का लगभग 68% हिस्सा डार्क एनर्जी से जबकि लगभग 27% हिस्सा डार्क मैटर से बना है। इस प्रकार ब्रह्मांड का 95% हिस्सा डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से बना है। इसलिये इसके अलावा पृथ्वी पर मौजूद प्रत्येक वस्तु, हमारे उपकरणों द्वारा अवलोकन किये गये विभिन्न वस्तुएँ, सभी सामान्य पदार्थ ब्रह्मांड के 5% से कम हिस्से का निर्माण करते हैं। गुरुत्वाकर्षण बल हमारी आकाशगंगाओं में तारों को दूर जाने से रोकता है। 2019 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जेम्स पीबल्स (भौतिक ब्रह्माण्ड विज्ञान में सैद्धांतिक खोजों के लिये) मिशेल मेयर और डिडिएर क्वेलोज़ (सौर-प्रकार के तारे की परिक्रमा करने वाले एक एक्सोप्लैनेट 51 पेगासी बी की खोज के लिये संयुक्त रूप से)

  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (International Astronomical Union-IAU) की स्थापना 1919 में की गई। इसका मिशन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से अनुसंधान,संचार,शिक्षा और विकास सहित खगोल विज्ञान के सभी पहलुओं को प्रोत्साहन एवं संरक्षण देना है।

अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) खगोलीय पिंडों जैसे- तारों, ग्रहों और क्षुद्र ग्रहों तथा उनकी सतही विशेषताओं के नामकरण के लिये खगोल विज्ञान में आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त प्राधिकरण है।

  • विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (GMRT) टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च के नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स द्वारा संचालित है।

कैनरी द्वीप में स्थित Gran Telescopio Canarias दुनिया का सबसे बड़ा दूरबीन है। भारतीय खगोलविदों की एक टीम ने G351.71.2 नामक एक तारा-निर्माण क्षेत्र में एक सुपरनोवा विस्फोट के महत्त्वपूर्ण प्रमाण पाए हैं। GMRT, पुणे के पास स्थित है।

  • जनवरी 2017 में भारत “गॉड पार्टिकल” के कारण चर्चा में आए CERN का एसोसिएट सदस्य बन गया था। इससे दुनिया की सबसे बड़ी कण भौतिकी प्रयोगशाला में उत्पन्न डेटा तक भारत की पहुँच हो गई। भारतीय वैज्ञानिकों ने न केवल लार्ज हैड्रोन कोलाइडर (LHC) के निर्माण में मदद की , जो दुनिया का सबसे शक्तिशाली कण संघट्टक (कोलाइडर) है साथ ही भारत ने दो महत्त्वपूर्ण CERN प्रयोगों CMS और ALICE के निर्माण में भी मदद की है। संयोग से CMS उन दो प्रयोगों में से एक है, जिनमें हिग्स बोसोन (गॉड पार्टिकल) की खोज हुई और ALICE बिग बैंग के समय मौजूद दशाओं का सृजन करता है।

भारत, पदार्थ के मूलभूत संघटकों और ब्रह्मांड के विकास का अध्ययन करने के लिये जर्मनी के डार्मस्टाड (Darmstadt) में बन रहे अंतर्राष्ट्रीय फैसिलिटी फॉर एंटीप्रोटोन एंड आयन रिसर्च (FAIR) का हिस्सा है। यह परिष्कृत त्वरक परिसर (Accelerator Complex) तारों के केंद्र और ब्रह्मांड की शुरुआती अवस्था वाली स्थितियों की प्रतिकृति बनाने के लिये सटीक रूप से अनुकूलित उच्च ऊर्जा वाले आयन पुंज का उपयोग करेगा। भारतीय संस्थान NUSTAR (Nuclear Structure, Astrophysics and Reactions), CBM (Compressed Baryonic Matter) और PANDA (Antiproton Annihilation at Darmstadt) के निर्माण के अलावा FAIR त्वरक के केंद्र में प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों के निर्माण में संलग्न होंगे। इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर-प्रायोगिक-रिएक्टर (ITER) ने एक कृत्रिम सूर्य का निर्माण करने की महत्त्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत की है। जहाँ एक ओर पारंपरिक परमाणु रिएक्टर ऊर्जा एकत्रित करने के लिये प्लूटोनियम जैसे भारी परमाणु का विखंडन करता है, वही दूसरी ओर संलयन रिएक्टर ऊर्जा का दोहन करने के लिये हाइड्रोजन जैसे दो हल्के तत्त्वों का संलयन कर हीलियम का निर्माण करेगा। यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, चीन, रूस, दक्षिण कोरिया और भारत संयुक्त रूप से इस परीक्षण केंद्र का निर्माण और संचालन कर रहे हैं। इंस्टीट्यूट फॉर प्लाज़्मा रिसर्च, अहमदाबाद इस परियोजना में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। थर्टी मीटर टेलीस्कोप (TMT), विश्व का एक उन्नत भूमि आधारित दूरबीन है। 492 अलग-अलग खंडों से बने इस दूरबीन के दर्पण का परावर्तक व्यास 30 मीटर होगा और यह किसी भी अन्य दूरबीन की तुलना में 81 गुना अधिक शक्तिशाली होगा। यह कैलटेक, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, कनाडा, जापान, चीन और भारत की साझा परियोजना हैं। हालाँकि पहले हवाई को इसका स्थान चुना गया था, लेकिन लद्दाख में स्थित हानले के विकल्प पर भी विचार किया गया था।

  • गुरुत्वाकर्षण तरंगों की उत्पत्ति तब होती है, जब परिकरमा के दौरान विशाल द्रव्यमान वाले दो ब्लैक होल एक दूसरे से टकराते हैं। लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) द्वारा पहले ही ब्लैक होल्स की टक्कर के परिणामस्वरूप उत्पन्न ऐसी गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया जा चुका है। LIGO परियोजना तीन गुरुत्वाकर्षण-तरंग डिटेक्टरों का संचालन करती है। दो उत्तर-पश्चिमी अमेरिका में वाशिंगटन राज्य के हानफोर्ड में हैं और एक दक्षिण-पूर्वी अमेरिका में लुइसियाना राज्य के लिविंगस्टन में है।

LIGO भारत वैश्विक नेटवर्क के भाग के रूप में भारत में स्थित एक योजनाबद्ध उन्नत गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला है। यह LIGO प्रयोगशाला और LIGO- भारत संघ के तीन प्रमुख संस्थानों प्लाज़्मा अनुसंधान संस्थान, गांधीनगर; इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (IUCAA), पुणे; और राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी, इंदौर के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की भविष्यवाणी सर्वप्रथम 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपनी थ्योरी ऑफ़ जनरल रिलेटिविटी के आधार पर की थी।

  • 2018 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से ‘लेज़र भौतिकी के क्षेत्र में अभिनव आविष्कार’ (groundbreaking inventions in the field of laser physics) के लिये आर्थर अशकिन (Arthur Ashkin), ‘ऑप्टिकल ट्वीज़र्स एवं जैविक प्रणालियों के लिये इनके इस्तेमाल’ (the optical tweezers and their application to biological systems) के लिये गेरार्ड मोउरो (Gérard Mourou) तथा ‘उच्च तीव्रता, अल्ट्रा-शॉर्ट ऑप्टिकल पल्सेस को उत्पन्न करने की विधि’ (method of generating high-intensity, ultra-short optical pulses) विकसित करने के लिये डोना स्ट्रिकलैंड (Donna Strickland) को दिया गया।
  • तैराकों द्वारा स्विमिंग सूट पहनने के दो वैज्ञानिक कारण इस प्रकार हैं।
  1. जैविक प्रभाव- तैराकी सूट की सिलाई तैराक की माँसपेशियों को संपीडित करती है ताकि वे अधिक कुशलता से काम कर सकें और उन्हें थकान कम हो।
  2. शारीरिक प्रभाव- सूट की सतह पर मौजूद छोटे ‘वी’ आकार के संकरे ऊँचे भाग, छोटे-छोटे भँवर बनाकर घर्षण खिंचाव को कम करने में मदद करते हैं, इस प्रकार तैराक की त्वचा से होकर बहने वाले पानी में हलचल कम हो जाती है।

रसायन विज्ञान[सम्पादन]

  • डाइरेक धातु सामान्य धातुओं की तुलना में भिन्न होती हैं व इसमें ऊर्जा का स्थानांतरण रैखिक गति द्वारा होता है जो कि इनके अद्वितीय गुणों को प्रदर्शित करता है। अर्ध-डाइरेक धातु थर्मोइलेक्ट्रिक गुणों को प्रदर्शित कर सकती है।
  • कार्बन नैनोट्यूब (CNT) फुलरीन संरचनात्मक परिवार के छोटे हेक्सागोनल,बेलनाकार ट्यूब हैं,जिन्हें ग्रेफीन की चादरों को रोल करके बनाया जाता है। इनका साधारण गुणधर्म इन्हें नैनोटेक्नोलॉजी,इलेक्ट्रॉनिक्स,ऑप्टिक्स और पदार्थ विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में कई प्रकार के अनुप्रयोगों में संभावित रूप से उपयोगी बनाता है।

ये असाधारण शक्ति और अद्वितीय विद्युत गुण प्रदर्शित करते हैं और कुशल सुचालक हैं।

कार्बन नैनो ट्यूब के उपयोग
  1. समुद्र के जल को शुद्ध करने में सहायक है, दुनिया की बढ़ती स्वच्छ जल आवश्यकता की पूर्ति के संदर्भ में कार्बन नैनोट्यूब का उज्ज्वल भविष्य है। क्योंकि वर्ष 2025 तक वैश्विक आबादी का 14% समुद्र के पानी का उपयोग करने के लिये मज़बूर हो जाएगा।
  2. चिकित्सा क्षेत्र में
    1. कीमोथेरेपी और ड्रग डिलीवरी:-कार्बन नैनोट्यूब के बहुमुखी ढाँचे का प्रयोग कर शरीर के अंदर रक्त प्रवाह में दवा को पहुँचाया जा सकता है।
    2. इसके साथ सोने के नैनोकणों का उपयोग कर मुंह के कैंसर के संकेतकों का पता लगानेवाले सेंसर के निर्माण में किया जा रहा है। और एक घंटे से भी कम समय में परिणाम प्रदान करता है।
    3. स्तन कैंसर के ट्यूमर को नष्ट करने के लिये लक्षित हीट थेरेपी भी विकसित की जा रही है।
    4. जीन थेरेपी:-कोशिकाओं में प्रवेश करने में सक्षम होने के कारण इसका उपयोग जीन डिलीवरी के लिये किया जाता है।
    5. स्टेम सेल से संबंधित थैरेपी में।
CNT का महत्त्व
  1. इनके लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है और इन्हें न केवल लवण बल्कि सामान्य प्रदूषकों को हटाने के लिये डिज़ाइन किया जा सकता है।
  2. इनके छिद्रों के माध्यम से पानी का घर्षण रहित बहाव होता है,ये अधिकांश लवणों,आयनों और प्रदूषकों को हटा देते हैं, परिणामस्वरूप हमें शुद्ध जल मिलता है। संभवतः अपने सबसे अच्छे रूप में।
  3. इनमें स्वयं साफ हो जाने के गुण होते हैं।
  4. इनमें साइटोटोक्सिक गुण होते हैं जो स्वाभाविक रूप से वैक्टीरिया,वायरस और कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने का काम करते हैं।
कार्बन नैनोट्यूब और तेल रिसाव

कार्बन नैनोट्यूब के विकास के दौरान बोरान परमाणुओं को जोड़ने से नैनोट्यूब एक स्पंज जैसी सामग्री के रूप में विकसित हो जाता है,जो कई बार तेल को अवशोषित करने का कार्य कर सकता है। पदार्थ के यांत्रिक लचीलेपन,चुंबकीय गुणों और शक्ति के कारण तेल रिसाव की सफाई में सहायता करने के लिये यह एक संभावित प्रौद्योगिकी के रूप में कार्य कर सकता है।

  • निम्नलिखित युग्म सही सुमेलित है:-
खाद्य - मिलावट
  1. ब्रेड - सब-स्टैंडर्ड यीस्ट (Sub-Standard Yeast)
  2. सलाद - गामा-बीएचसी (लिंडेन) [Gamma-BHC (Lindane)]
  3. मांस - सिप्रोफ्लोक्सासिन (Ciprofloxacin) सल्फोनेमाइड (Sulfonamide)
  4. हल्दी पाउडर - लैड और क्रोमियम (Lead and Chromium)
  • धात्विक मरकरी (पारा) एक चाँदी जैसी चमकदार एवं गंधहीन तरल धातु है जो गर्म करने पर रंगहीन और गंधहीन गैस में परिवर्तित हो जाती है। इसका उपयोग दंत मिश्रण (Dental Amalgams), थर्मामीटर (Thermometers) और बैटरी बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग रसायनों, विद्युत उपकरण, मोटर वाहन, धातु-प्रसंस्करण और निर्माण उद्योगों में किया जाता है। पारा गैसीय रूप में भी पाया जाता है, इसलिये इसे श्वसन क्रिया के माध्यम से मनुष्य द्वारा ग्रहण किया जा सकता है।

कैडमियम धातु (Cadmium Metal) का ज़्यादातर उपयोग उद्योगों में पेंट, रंजक मिश्रधातु, कोटिंग एवं बैटरी के साथ-साथ प्लास्टिक के उत्पादन के लिये किया जाता है। लगभग तीन-चौथाई कैडमियम का उपयोग क्षारीय बैटरी के उत्पादन में इलेक्ट्रोड (Electrode) के रूप में किया जाता है। कैडमियम को औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं कैडमियम प्रगलकों द्वारा सीवेज कीचड़, उर्वरकों तथा भूजल में उत्सर्जित किया जाता है। यह कई दशकों तक मृदा और तलछट में रह सकता है और इसे पौधों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। सीसा (Lead ) शुष्क वातावरण में हल्का नीला एवं धात्विक चमक युक्त होता है। सीसा से संपर्क मुख्यत: पेयजल, भोजन, सिगरेट,औद्योगिक प्रक्रियाओं व घरेलू स्रोतों आदि के माध्यम से हो सकता है, इसके औद्योगिक स्रोतों में गैसोलीन, हाउस पेंट, प्लंबिंग पाइप, लेड बुलेट, स्टोरेज बैटरी, काँसे का बर्तन, खिलौने और पानी के नल आदि शामिल हैं। यह औद्योगिक प्रक्रियाओं के साथ-साथ वाहनों से निकलने वाले धुएँ से भी वायुमंडल में विमोचित होता है। आर्सेनिक (Arsenic) अपने आर्सेनाइट (Arsenite) और आर्सेनेट (Arsenate) जैसे अकार्बनिक यौगिक रूपों में मानव और पर्यावरण में पाए जाने वाले अन्य जीवों के लिये घातक होता है। मानव आर्सेनिक के संपर्क में औद्योगिक स्रोतों जैसे कि प्रगालन और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक उद्योग (Microelectronic Industries) आदि के माध्यम से आता है। आर्सेनिक का प्रयोग काष्ठ परिरक्षकों (Wood Preservatives), शाकनाशकों, कीटनाशकों, कवकनाशकों और पेंट्स आदि में किया जाता है जिससे पेयजल के संदूषित होने की संभावना रहती है।

  • रिवर्स ऑस्मोसिस सामान्य ऑस्मोसिस प्रक्रिया का उल्टा है। ऑस्मोसिस में एक झिल्ली के माध्यम से विलयन का प्रवाह निम्न विलेय सांद्रण से उच्च विलेय सांद्रण की ओर होता है,वहीं

रिवर्स ऑस्मोसिस में विलायक का प्रवाह उच्च सांद्रता से कम सांद्रता की ओर एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से होता है। रिवर्स ऑस्मोसिस का उपयोग अपशिष्ट जल के उपचार के लिये किया जाता है।यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ऑस्मोटिक दबाव (Osmotic Pressure) से अधिक हाइड्रोस्टेटिक दबाव (Hydrostatic Pressure) के अधीन विलायक एक छिद्रयुक्त झिल्ली के माध्यम से विपरीत दिशा में प्राकृतिक ऑस्मोसिस से गुज़रता है।

  • रेडियोन्यूक्लाइड एक अस्थिर नाभिक वाला परमाणु है,जो अधिक स्थिर होने के लिये किरणों या उच्च गति कणों के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।

अनुप्रयोग: आयोडीन-131 (I-131) जैसे रेडियोएक्टिव ट्रेसर किसी तत्त्व के उत्थान का अनुसरण करते हैं जैसे- थायरॉयड में आयोडीन। बिस्मथ-212 (एक अल्फा कण उत्सर्जक) का उपयोग कैंसर कोशिकाओं को समाप्त करने के लिये किया जाता है। टेक्नेटियम-99 शरीर के एक विशेष भाग पर प्रकाश डालता है ताकि प्रतिबिम्बन या इमेजिंग प्रक्रिया के दौरान उस भाग को अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सके। परमाणु रिएक्टर भाप का उत्पादन करने के लिये यूरेनियम (U-235) के रेडियोधर्मी क्षय के कारण उत्पन्न होने वाली गर्मी का उपयोग करते हैं, जो विद्युत शक्ति उत्पादन के लिये टर्बाइन को घुमाने का काम करता है। अमेरिसियम-241 का उपयोग धुआँ संसूचक या स्मोक डिटेक्टरों में किया जाता है तथा कोबाल्ट-60 एवं सीज़ियम-137, गामा (फोटॉन) स्रोत होते हैं जिनका उपयोग खाद्य पदार्थों में रोगजनकों तथा कीटों को मारने के लिये किया जाता है।

  • हीलियम गैस का उपयोग कई अनुप्रयोगों में किया जाता है, क्योंकि यह एक नोबल गैस है जिसमें कई अद्वितीय गुण होते हैं।

हीलियम के अनुप्रयोग हीलियम का उपयोग क्रायोजेनिक अनुप्रयोगों जैसे- मैग्नेट रेजोनेंस इमेजिंग (Magnet Resonance Imaging-MRI), न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस (Nuclear Magnetic Resonance-NMR) स्पेक्ट्रोस्कोपी, कण त्वरक के लिये सुपर कूलेंट (शीतलक) के रूप में किया जाता है। रिसाव का पता लगाने में हीलियम का उपयोग रिसाव का पता लगाने के लिये किया जाता है, क्योंकि हीलियम आणविक आकार में सबसे छोटा होता है और यह एकल-परमाणु अणु (Monatomic Molecule) होता है। इसलिये हीलियम छोटे-से-छोटे छिद्रों से भी आसानी से निकल सकता है। अर्धचालक विनिर्माण रासायनिक रूप से निष्क्रिय होने के कारण हीलियम का पसंदीदा सुरक्षात्मक गैस के रूप में प्रयोग किया जाता है। उच्च विशिष्ट ऊष्मा और तापीय चालकता होने के कारण लियम को अर्द्धचालक विनिर्माण में शीतलक गैस के रूप में उपयोग किया जाता है।

  • जैव ईंधन एक ऐसा ईंधन होता है जिसकी ऊर्जा जैविक कार्बन निर्धारण (Biological Carbon Fixation) की प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त की जाती है।

जैव ईंधन बनाने के लिये निम्नलिखित स्रोतों का उपयोग किया जा सकता है: सोयाबीन, मक्का, गन्ना, चुकंदर, स्विचग्रैस, जेट्रोफा, कैमेलिना, शैवाल, कसावा, ताड़ का तेल, कवक और पशु वसा। मेथनॉल का उत्पादन निम्न प्रकार से संभव है:- लकड़ी के भंजक आसवन (Destructive Distillation of Wood) से प्राप्त होने के कारण इसे काष्ठ अल्कोहल भी कहते हैं। कार्बन मोनोऑक्साइड का हाइड्रोजनीकरण। मेथनॉल अंतरिक्ष के उन क्षेत्रों में भी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है जहाँ तारों का निर्माण होता है और खगोल विज्ञान में ऐसे क्षेत्रों के लिये एक सूचक के रूप में उपयोग किया जाता है। मेथनॉल की वर्णक्रमीय उत्सर्जन रेखाओं (Spectral Emission Lines) के माध्यम से अंतरिक्ष में इसका पता चलता है। मेथनॉल इथेनॉल का पारंपरिक विकृतिकारक है,उत्पाद को 'विकृत अल्कोहल के रूप में जाना जाता है। मेथनॉल का उपयोग विलायक तथा पाइपलाइनों में एंटीफ्रीज़र के रूप में किया जाता है।

  • कोलोस्ट्रम, स्तन ग्रंथियों द्वारा गर्भावस्था के अंतिम दौर में और जन्म देने के कुछ दिनों बाद उत्पादित माँ के दूध का एक रूप होता है।मानव और गोजातीय कोलोस्ट्रम मोटे, चिपचिपे और पीले रंग के होते हैं।

सिनगैस कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन का एक मिश्रण है, जिसका उपयोग अन्य रसायनों को संश्लेषित करने के लिये किया जा सकता है,इसलिये इसे सिंथेसिस गैस(Synthesis Gas) के रूप में भी जाना जाता है। यह कार्बन युक्त ईंधन के गैसीकरण द्वारा निर्मित होती है। इसमें प्राकृतिक गैस का ऊर्जा घनत्व 50% है। इसे सीधे जलाया नहीं जा सकता है लेकिन इसका उपयोग ईंधन स्रोत के रूप में किया जाता है। यह सल्फ्यूरिक एसिड का एक प्राथमिक स्रोत है। यह स्नेहक या ईंधन के रूप में उपयोग हेतु सिंथेटिक पेट्रोलियम बनाने में एक मध्यवर्ती भूमिका निभाती है।

  • वर्ष 2018 के रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने विकास की शक्ति से प्रेरित होकर मानव जाति की रासायनिक समस्याओं को हल करने वाले प्रोटीन को विकसित करने के लिये आनुवंशिक परिवर्तन और चयन के सिद्धांतों का उपयोग किया।

इस वर्ष दो अमेरिकी वैज्ञानिकों फ्राँसेस अर्नोल्ड और जार्ज स्मिथ तथा एक ब्रिटिश अनुसंधानकर्त्ता ग्रेगरी विंटर को रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से समानित किया गया। फ्रांसेस अर्नोल्ड को एंज़ाइमों (enzymes) के निर्दिष्ट विकास के लिये और जॉर्ज स्मिथ तथा ग्रेगरी विंटर को पेप्टिडेस (peptides) और एंटीबॉडी (antibodies) के फेज डिस्प्ले (Phage Display) के लिये सम्मानित किया गया।

  • लेड (Lead) एक ऐसा तत्त्व है जो पर्यावरण को तो दूषित करता ही है, साथ ही मानव के शरीर में प्रवेश कर बीमारियों का कारण भी बनता है।

लेड के स्रोत: विभिन्न प्रयोजनों के लिये पीवीसी पाइप (PVC Pipes) का इस्तेमाल किया जाता है, पीवीसी पाइप में लेड का स्रोत टिन हो सकता है जिसे पीवीसी पाइप (PVC Pipes) में स्टेबलाइज़र के रूप में उपयोग किया जाता है। भोजन में लेड का एक अन्य स्रोत एल्युमीनियम या स्टील से बने डिब्बे के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला सोल्डर (Solder) है। सोल्डर से रिसकर लेड डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में मिश्रित हो सकता है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। लागत में कटौती करने के लिये पेंट्स में भी लेड का उपयोग किया जाता है, पेंट को तेज़ी से सुखाने, उसके स्थायित्व में वृद्धि करने, पेंट की ताज़गी को बनाए रखने और जंग का कारण बनने वाली नमी का प्रतिरोध करने के लिये पेंट में लेड का इस्तेमाल किया जाता है। लेड के प्रभाव: लेड के संपर्क में आने पर सिर दर्द, पेट दर्द, कब्ज, सुनने में समस्या, देरी से विकास, बौद्धिक क्षमता में कमी आने के साथ-साथ इससे मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को भी नुकसान पहुँच सकता है, चरम स्थितियों में व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है।

  • 'पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction-PCR)' में प्राइमरों के दो सेटों का उपयोग करके विट्रो (vitro) में विभिन्न प्रकार के जीनों (या DNA) को संश्लेषित किया जाता है।

प्राइमर्स (primers) छोटे रासायनिक रूप से संश्लेषित (synthesized) ओलिगोन्यूक्लियोटाइड (oligonucleotides) होते हैं जो DNA और एंजाइम DNA पोलीमरेज़ के क्षेत्रों के पूरक होते हैं। एंजाइम (enzyme) अभिक्रिया से प्राप्त किये गए न्यूक्लियोटाइड (nucleotides) का उपयोग करके प्राइमर को जीनोमिक DNA टेम्पलेट के रूप में विस्तारित करता है। यदि DNA प्रतिकृति की प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है, तो DNA का सेगमेंट लगभग अरब गुना बढ़ाया जा सकता है यानी इसकी 1 बिलियन प्रतियाँ बनाई जाती हैं। इस तरह के बार-बार विस्तारण को थर्मोस्टेबल डीएनए पोलीमरेज़ (thermostable DNA polymerase) के उपयोग से हासिल किया जाता है, जो डबल स्ट्रैंडेड डीएनए (double stranded DNA) के उच्च ताप प्रेरित विकृतिकरण (denaturation) के दौरान सक्रिय रहता है। PCR के अनुप्रयोग: ♦ संक्रामक एजेंटों की पहचान ♦ रोगी के नमूनों में सूक्ष्मजीवों का प्रत्यक्ष पता लगाना ♦ सूक्ष्मजीवों की वृद्धि की पहचान करना ♦ एंटीमाइक्रोबीयल प्रतिरोध (antimicrobial resistance) का पता लगाना ♦ रोगजनकों से संबंधित वृद्धि की जाँच करना ♦ जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग (फोरेंसिक एप्लीकेशन/पितृत्व परीक्षण)। ♦ उत्परिवर्तन का पता लगाना (आनुवांशिक बीमारियों की जाँच)। ♦ जीन की क्लोनिंग करना।

  • Spirulina एक प्रकार का साइनोबैक्टीरिया (cyanobacteria) है, जो एकल कोशिका वाले सूक्ष्म जीवों के एक कुल से संबंधित है जिसे नील-हरित शैवाल के रूप में जाना जाता है।साइनोबैक्टीरिया प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से सूर्य की रोशनी से ऊर्जा उत्पन्न करता है।

Spirulina के औषधीय गुण: ♦ यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant) है और इसमें एंटी-इन्फ्लैमेटरी (Anti-Inflammator) गुण भी पाए जाते हैं। ♦ Spirulina ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides) और "खराब" LDL कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकता है। साथ ही साथ "अच्छे" HDL कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा भी सकता है। ♦ Spirulina की खुराक राइनाइटिस (rhinitis) एलर्जी के संबंध में बहुत प्रभावी होती है।

  • रोटावायरस एक संक्रामक रोग है जो छोटे बच्चों में आसानी से फैलता है। रोटावायरस मुख के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।

रोटावायरस एक प्रकार का संक्रमण है जो अतिसार का बिगड़ा हुआ रूप होता है और ठंड में अधिकतर बच्चों में फैलता है। यदि एक बच्चे को इसका संक्रमण हो जाए तो उसके संपर्क में रहने से दूसरे बच्चे को भी हो सकता है। यह विशेषकर गंदगी के कारण होता है। इसका संक्रमण होने पर बच्चे को अतिसार तथा उल्टियाँ होने लगती हैं और यह सामान्य डायरिया से अधिक खतरनाक होता है। अतिसार और उल्टियों के कारण बच्चों में निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) तक हो जाता है। अतः कथन 2 सही है। रोटावायरस से होने वाला यह संक्रमण नवजात शिशु से लेकर पाँच साल तक के बच्चों में अधिक होता है। रोटावायरस युवा बच्चों के बीच गंभीर दस्त के कारण मौत के प्रमुख कारणों में से एक है। रोटावायरस छोटी आंत के अंकुर शीर्ष (villus tip) पर हमला करता है और पाचन एवं अवशोषण में बाधा उत्पन्न करता है। रोटावैक को भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) में शामिल किया गया है जिसमें निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (आईपीवी), खसरा, रूबेला (एमआर) वैक्सीन, वयस्क जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) टीका, तपेदिक, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, हेपेटाइटिस बी, निमोनिया और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप b (Hib) जनित मेनिनजाइटिस भी शामिल हैं।


संश्लेषित जीव विज्ञान (Synthetic Biology) एक नया अंतर्विषयी क्षेत्र है जो जीव विज्ञान के साथ अभियांत्रिकी के सिद्धांतों के अनुप्रयोगों को शामिल करता है। इसका उद्देश्य उन जैविक घटकों और प्रणालियों का पुनर्निर्देशन एवं निर्माण करना है जो प्रकृति में मौजूद नहीं हैं तथा उपलब्ध जीवन की आनुवंशिक संरचना को भी संपादित करना है। इसके द्वारा अब जीवन का नए सिरे से (De Novo) संपादन भी संभव है। अतः कथन 1 सही नहीं है। दुनिया भर के संश्लेषित जीव विज्ञान शोधकर्त्ता और कंपनियाँ दवा, विनिर्माण और कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिये प्रकृति की शक्ति का उपयोग कर रहे हैं। जीवों को एक नया स्वरूप देना ताकि वे एक पदार्थ का उत्पादन करें, जैसे कि दवा या ईंधन, या एक नई क्षमता प्राप्त करें, जैसे वातावरण में किसी अवांछित पदार्थ का संवेदन, संश्लेषित जीव विज्ञान परियोजनाओं के कुछ सामान्य लक्ष्य हैं। संश्लेषित जीव विज्ञान के कुछ प्रमुख अनुप्रयोग हैं: सूक्ष्मजीवों का प्रयोग करके जैवोपचार द्वारा पानी, मिट्टी और हवा से प्रदूषकों को साफ किया जा रहा है। बीटा-कैरोटीन युक्त चावल के उत्पादन में इसका प्रयोग होता है, जो विटामिन-A की कमी को पूरा करेगा। आमतौर पर गाजर में विटामिन A पाया जाता है। यीस्ट पर अभियांत्रिकी परिवर्तन से परफ्यूम में प्रयोग हेतु पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ विकल्प के रूप में गुलाब के तेल का उत्पादन।

संतृप्त वसा में अणुओं के बीच एकल बंधन होता है और हाइड्रोजन अणुओं के साथ ‘संतृप्त’ होती है। ये कमरे के तापमान पर ठोस रहते हैं। यह हमारे रक्त में एक प्रकार के कोलेस्ट्रॉल,जिसे लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन-कोलेस्ट्रॉल (Low Density Lipoproteins cholesterol) कहा जाता है,का स्तर बढ़ा सकती है। इस एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल को सामान्यतः ‘बैड कोलेस्ट्रॉल’ कहा जाता है, यह रक्त वाहिकाओं की दीवारों में मोटापे का कारक बनने वाले तत्त्वों का निर्माण कर उनका मार्ग संकीर्ण कर सकता है। इससे रक्त के थक्के बनने (Blood Clots) का खतरा बढ़ जाता है,जिससे दिल का दौरा पड़ना या स्ट्रोक की संभावना बढ़ जाती है।

माँस और पनीर,मक्खन,आईसक्रीम जैसे डेयरी उत्पाद,ताड़ का तेल और नारियल तेल आदि संतृप्त वसा के समृद्ध स्रोत हैं।

असंतृप्त वसा जो कमरे के तापमान पर तरल रहती है, लाभप्रद वसा मानी जाती है क्योंकि यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर में सुधार कर सकती है, सूजन को कम कर सकती है, हृदयगति को स्थिर कर सकती है और कई अन्य लाभप्रद भूमिकाएँ निभा सकती है।

यह वसा मुख्य रूप से पौधों से प्राप्त खाद्य पदार्थों जैसे- वनस्पति तेल,फली और बीज़ों में पाई जाती है। जैतून,मूँगफली,और कैनोला तेल,एवोकाडोस नट्स जैसे- बादाम व सूरजमुखी, मकई, सोयाबीन आदि असंतृप्त खाद्य पदार्थों के समृद्ध स्रोत हैं।

रिबोस:-एडेनोसाइन ट्राइफॉस्फेट को कोशिका की ऊर्जा मुद्रा के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह निर्धारित करता है कि हम थके हुए रहेंगे या ऊर्जावान। रिबोस एटीपी को मूलभूत आधार प्रदान करता है। कोशिका में रिबोस की उपस्थिति हमारे शरीर को इस महत्त्वपूर्ण यौगिक के निर्माण के लिये उपयोग किये जाने वाले चयापचय मार्ग को संतुलित करती है। यदि कोशिका में पर्याप्त रिबोस नहीं है, तो यह एटीपी का निर्माण नहीं कर सकता है। इसलिये, जब कोशिकाएँ और ऊतक, ऊर्जा के बिना भूखे मर रहे होते हैं, तो ऊर्जा की पुनर्प्राप्ति के लिये रिबोस की उपलब्धता महत्त्वपूर्ण होती है।

इसोटॉनिक का अर्थ है मानव रक्त सांद्रता (Blood Concentration) के समान। आइसोटॉनिक स्पोर्ट्स ड्रिंक्स में मानव शरीर में नमक और चीनी के समान सांद्रता होती है। यह लघु-आवधिक एवं अधिक गहनता वाले ऐसे व्यायाम के लिये उपयोगी हो सकता है, जहाँ निर्जलीकरण से बचने की अपेक्षा कार्बोहाइड्रेट प्राप्त करना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। अतः कथन 2 सही है। हालाँकि इसके कारण गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार हो सकते हैं - यानी पेट खराब होना, पेट में सूजन होना आदि। खेल आयोजनों में आइसोटॉनिक स्पोर्ट्स ड्रिंक की अनुमति तो है, लेकिन प्रदर्शन स्तर को बढ़ाने के लिये इसका उपयोग नहीं किया जाता है।

ग्रोथ हार्मोन (GH) एक सूक्ष्म प्रोटीन है,जो पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा निर्मित होता है और रक्त प्रवाह में स्रावित होता है। GH उत्पादन हार्मोनों की एक जटिल श्रृंखला द्वारा नियंत्रित होता है, जो मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस और आँत प्रणाली एवं अग्न्याशय (pancreas) में उत्पादित होते हैं। ग्रोथ हार्मोन का उपयोग एथलीटों द्वारा प्रदर्शन बढ़ाने के उपाय के रूप में किया जाता है क्योंकि यह माँसपेशियों के निर्माण, अधिक ऊर्जा और बेहतर क्षमता प्रदान करने में मदद करता है। हालाँकि इसे अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा प्रतिबंधित किया गया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी[सम्पादन]

  • क्वांटम कंप्यूटिंग में क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है। क्वांटम यांत्रिकी वह विज्ञान है जो परमाणु स्केल पर पदार्थ के व्यवहार को नियंत्रित करता है, के गुणों का उपयोग करते हैं।

पारंपरिक कंप्यूटिंग बिट्स अथवा 1 और 0, पर निर्भर होती है जबकि क्वांटम कंप्यूटिंग में क्वांटम बिट्स या क्यूबिट्स का उपयोग किया जाता है। इसमें 1 और 0 दोनों का प्रयोग एक साथ किया जा सकता है।

क्वांटम सुप्रीमेसी:-बहुत हद तक ऐसी अवस्था होती है, जहाँ क्वांटम कंप्यूटिंग पारंपरिक मशीनों की क्षमता से परे कार्य करने लगते हैं। सुपर-इम्पोज़ीशन नाम का यह गुण तेज़ी से कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि क्यूबिट एक दूसरे से उलझ जाते हैं। जितने अधिक-से-अधिक क्यूबिट्स टकराते हैं, क्वांटम कंप्यूटर उतना ही अधिक शक्तिशाली बन जाता है।

'क्वांटम सुप्रीमेसी' का तात्पर्य ऐसे क्वांटम कंप्यूटर से है, जो ऐसी गणनाओं को करने में सक्षम है जिसे एक पारंपरिक कंप्यूटर नहीं कर सकता। :संभावित उपयोग मशीन लर्निंग,पदार्थ विज्ञान और रसायन विज्ञान में। फिर भी वास्तविक दुनिया में इनके उपयोग के लिये अत्यधिक सटीकता की आवश्यकता होगी। क्रिप्टोग्राफी: बैंकों में ऑनलाइन पहुँच को सुरक्षित करने के लिये उपयोग किये गए कोड का पता लगाने में। क्वांटम कंप्यूटरों के निर्माण के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने एक कार्यक्रम तैयार किया है जिसे क्वेस्ट (QuEST) नाम दिया गया है। यह एक अखिल भारतीय पहल है जिसमें कई संस्थाएँ शामिल हैं। रेडियो कार्बन डेटिंग (Radio Carbon Dating) जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों की आयु निर्धारण करने की विधि है। इस कार्य के लिये कार्बन-14 का प्रयोग किया जाता है। यह तत्त्व सभी सजीवों में पाया जाता है। कार्बन-14, कार्बन का एक रेडियोधर्मी आइसोटोप है, जिसकी अर्द्ध-आयु लगभग 5,730 वर्ष मानी जाती है। आयु निर्धारण करने की इस तकनीक का आविष्कार वर्ष 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय (अमेरिका) के विलियर्ड लिबी ने किया था

  • डार्क नेट या डीप नेट-इंटरनेट पर मौजूद ऐसी वेबसाइटें जो आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउज़िंग के दायरे से परे होती हैं।

इस नेटवर्क तक लोगों के चुनिंदा समूहों की पहुँच होती है।और इस नेटवर्क तक विशिष्ट ऑथराइज़ेशन प्रक्रिया, सॉफ्टवेयर और कन्फिगरेशन के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 देश में सभी प्रकार के प्रचलित साइबर अपराधों को संबोधित करने के लिये वैधानिक रूपरेखा प्रदान करता है। ऐसे अपराधों के नोटिस में आने पर कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ इस कानून के अनुसार ही उचित कार्रवाई करती हैं।

  • M87 ब्लैक होल को आधिकारिक तौर पर M87* के रूप में नामित किया गया है लेकिन इसे पोवेही नाम भी दिया गया है, जिसका अर्थ है "अनंत सृजन का अंधकारमय स्रोत (Embellished Dark Source of Unending Creation)" जो कि देशज हवाई भाषा का वाक्यांश है। हालाँकि दुनिया भर के खगोलविदों द्वारा आधिकारिक रूप से नाम को मान्यता दिये जाने से पहले इसे अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) द्वारा अनुमोदित होना आवश्यक है।
  • मैगेलैनिक बादल दो अनियमित आकाशगंगाओं, वृहद् मैगेलैनिक बादल (Large Magellanic Cloud-LMC) और लघु मैगलैनिक बादल (Small Magellanic Cloud- SMC) से मिलकर बने होते हैं जो प्रत्येक 1,500 मिलियन वर्षों में एक बार मिल्की वे आकाशगंगा की और प्रत्येक 900 मिलियन वर्षों में एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं। हाल ही में सैजिटेरियस और कैनिस मेजर ड्वार्फ गैलेक्सी की खोज के पहले तक ये 200,000 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर स्थित मिल्की वे के सबसे निकट ज्ञात आकाशगंगा थी।

ध्यातव्य है कि फर्डिनेंड मैगलन और चालक दल ने दक्षिणी गोलार्ध में नग्न आँखों से दिखाई देने वाली दो आकाशगंगाओं का अवलोकन किया था। इसलिये तब से इन आकाशगंगाओं को मैगेलैनिक बादल (Magellanic Clouds) के रूप में जाना जाता है।

जल शोधन और उपचार विधि

  1. संधारित्रीय वि-आयनीकरण (Capacitive Deionization-CDI), एक तकनीक है जिसमें एक विभाजक चैनल होता है जिसके दोनों तरफ छिद्रयुक्त इलेक्ट्रोड होते हैं जो जल से आयनों को हटाते हैं।
  2. ओज़ोनीकरण-रासायनिक जल के उपचार के लिये पानी में ओज़ोन के प्रवेशन (Ozone Infusion) पर आधारित।
  3. पराबैंगनी प्रौद्योगिकी में पराबैंगनी प्रकाश का उपयोग पानी के सूक्ष्मजीवों को मारने के लिये किया जाता है।
  4. व्युत्क्रम परासरण (Reverse Osmosis-RO) तकनीक में एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से बड़ी संख्या में संदूषकों को पानी से हटाया जाता है।
  5. TERAFIL एक जली हुई लाल मिट्टी का छिद्रयुक्त माध्यम है जिसका प्रयोग अशुद्ध जल के निस्यंदन और साफ पीने के पानी के रूप में उपचारित करने के लिये किया जाता है। ध्यातव्य है कि यह तकनीक वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) द्वारा विकसित की गई है।
  6. OS-कम्युनिटी स्केल आर्सेनिक फ़िल्टर एक जैविक आर्सेनिक फिल्टर है जो IIT खड़गपुर द्वारा विकसित किया गया है।
  7. निस्यंदन विधियों में तीव्र/मंद रेत फिल्टर (Sand Filter) और सौर जल शोधन प्रणालियाँ शामिल होते हैं जो जल से जंग, गाद, धूल और अन्य कणों को हटाते हैं।
  1. https://www.nasa.gov/osiris-rex