सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/अतिसंवेदनशील जनसंख्या वर्ग
बच्चों के संरक्षण संबंधी अधिनियम
[सम्पादन]किशोर न्याय अधिनियम
- यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों को साक्षी के रूप में पूछताछ या साक्षात्कार से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान नहीं करता है।
- अधिनियम की प्रस्तावना के अनुसार बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए मामले के निपटान में ‘बाल-सुलभ दृष्टिकोण’ का पालन किया जाना चाहिये ।
- इसका मतलब है कि किशोर न्याय प्रणाली से संबंधित सामान्य दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। उदाहरण के लिये, बच्चों के साथ संवाद करते समय पुलिसकर्मी को पुलिस वेश-भूषा में नहीं होना चाहिये ।
- बच्चों के साथ संवाद पुलिस की विशेष इकाइयों द्वारा किया जाना चाहिये,जो उनके साथ संवेदनशील व्यवहार करने के लिये प्रशिक्षित हैं।
- राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले में पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में एक विशेष किशोर पुलिस इकाई का गठन किया जाना चाहिये।
- प्रत्येक ज़िले में एक बाल कल्याण समिति बनाए जाने का भी प्रावधान है। जिसका कार्य बच्चों के संरक्षण से संबंधित किसी नियम के उल्लंघन का तुरंत संज्ञान लेना है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हित और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए लाया गया है। यह अधिनियम बच्चों को यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था। इस अधिनियम में ‘बालक’/चाइल्ड को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम
- इसे पाॅक्सो एक्ट भी कहते(Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) है।
- POCSO अधिनियम,2012 को बच्चों के हितों और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए यौन अपराध, यौन उत्पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
- अधिनियम में बच्चों से साक्षी के रूप में संवाद करने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण निर्देश दिये गए हैं।
- अधिनियम में कहा गया है कि संवाद सुरक्षित, तटस्थ, बच्चों के अनुकूल वातावरण में आयोजित किये जाने चाहिये तथा बच्चों से एक ही प्रश्न को कई बार पूछकर उनका मानसिक शोषण नहीं करना चाहिये
बच्चों की सेहत का सवाल
[सम्पादन]क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत में आयात किए जाने वाले 67% खिलौने सुरक्षा मानकों की सभी जांच में खरे नहीं उतरे हैं। देश में बिकने वाला लगभग 50% खिलौने दूसरे देशों से आते हैं भारत में ही नहीं दुनिया भर में खिलौनों का बड़ा कारोबार है भारत का घरेलू खिलौना उद्योग करीब 5000 करोड रुपए का है। खिलौना बनाने में इस्तेमाल होने वाला रसायन हायलेट मासूम बच्चों की सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक है सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट के अनुसार हाय लेट से बच्चों की किडनी और लीवर पर बुरा असर पड़ने के साथ ही हड्डियों के विकास में कमी आती है। रिसाइकल प्लास्टिक से बने खिलौनों में सेहत के लिए बेहद हानिकारक रसायन डायवर्सन काफी मात्रा में पाया जाता है।जो बच्चों को गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकती है परंतु सस्ते सुंदर और टिकाऊ के फेर में रिसाइकल प्लास्टिक से बने खिलौने खरीदे जाते हैं अंतरराष्ट्रीय संगठन खिलौनों में जहर पर एक अध्ययन जारी किया था जिसमें पाया गया कि करीब 32% खिलौनों में और सैनिक लेड और पारा चिंताजनक स्तर से भी ज्यादा होते हैं इस अध्ययन के लिए नाइजीरिया दक्षिण अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे देशों से खिलौनों के नमूने लिए गए थे ऐसे में भारत में खिलौनों की गुणवत्ता समझना मुश्किल नहीं है। हमारे देश में लगभग 60% खिलौने चीन से आयात किए जाते हैं।