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सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/आपदा और आपदा प्रबंधन

विकिपुस्तक से

आपदाओं और आपात-स्थितियों, (प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित) के प्रबंध को संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची-III (समवर्ती सूची) में शामिल किया जा सकता है।

पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986, जो भूमि, जल और वायु के संरक्षण के लिये नियम निर्धारित करता है और खतरनाक रसायनों का विनिर्माण, भंडारण और ढुलाई नियमावली, 1989 और रासायनिक दुर्घटना (निवारण और तैयारी) नियमावली, 1996 के साथ सूचना साझाकरण के अधिकार को शामिल करता है। इसके अंतर्गत भोपाल त्रासदी के बाद फैक्टरी अधिनियम, 1948 संशोधित किया गया।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 जो परमाणु दुर्घटनाओं/आपदाओं के लिये कार्यस्थल और कार्यस्थल से भिन्न स्थलों के लिये आपातस्थिति प्रत्युत्तर योजनाओं की व्यवस्था करता है, के अधीन अधिसूचित नियमों के साथ परमाणु ऊर्जा अधिनियम की रूपरेखा तैयार करता है। राज्य अनिवार्य सेवा अनुरक्षण अधिनियम (एस्मा), जो अनिवार्य सार्वजनिक सेवाओं के क्रियान्वयन के मार्ग में आने वाली बाधाओं पर नियंत्रण करता है। आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित विभिन्न विनियम/संहिताएँ/नियम अर्थात् तटीय क्षेत्र विनियम, संहिता निर्माण, अग्नि सुरक्षा नियम आदि। राज्य जन स्वास्थ्य अधिनियम।

  • राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (NEC)

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 8 के तहत राष्ट्रीय प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता देने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यकारी समिति का गठन किया जाता है। केंद्रीय गृह सचिव इसका पदेन अध्यक्ष होता है। राष्ट्रीय कार्यकारी समिति को आपदा प्रबंधन हेतु समन्वयकारी और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करने, राष्ट्रीय योजना बनाने और राष्ट्रीय नीति का कार्यान्वयन करने का उत्तरदायित्व दिया गया है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM)

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के पास NDMA द्वारा सृजित व्यापक नीतियों और दिशा-निर्देशों के अधीन आपदा प्रबंधन के लिये मानव संसाधन विकास और क्षमता निर्माण का अधिदेश है। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF)

राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) आपदा मोचन हेतु एक विशेषीकृत बल है और यह NDMA के समग्र पर्यवेक्षण और नियंत्रण में कार्य करता है।

  • प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने 1 जून, 2016 को राष्‍ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (NDMP) जारी की थी। देश में पहली बार इस तरह की राष्‍ट्रीय योजना तैयार की गई है।

मुख्य विशेषताएं NDMP आपदा जोखिम घटाने के लिये प्रमुखतः सेंडाई फ्रेमवर्क में तय किये गए लक्ष्‍यों और प्राथमिकताओं के साथ तालमेल करता है।

योजना का विज़न भारत को आपदा मुक्‍त बनाना, आपदा जोखिमों में पर्याप्‍त रूप से कमी लाना, जन-धन, आजीविका और संपदाओं (आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक, सांस्‍कृतिक और पर्यावरणीय) के नुकसान को कम करना है। इसके लिये प्रशासन के सभी स्तरों और साथ ही समुदायों की आपदाओं से निपटने की क्षमता को बढ़ाया गया है। प्रत्‍येक खतरे के लिये, सेंडाई फ्रेमवर्क में घोषित चार प्राथमिकताओं को आपदा जोखिम में कमी करने के फ्रेमवर्क में शामिल किया गया है। इसके लिये पाँच कार्यक्षेत्र निम्‍न हैं: जोखिम को समझना एजेंसियों के बीच सहयोग आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction-DRR) में सहयोग– संरचनात्‍मक उपाय DRR में सहयोग– गैर-संरचनात्‍मक उपाय क्षमता विकास।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है। इसका ओपचारिक रूप से गठन 27 सितम्बर, 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ जिसमें प्रधानमंत्री अध्यक्ष और नौ अन्य सदस्य होंगे और इनमें से एक सदस्य को उपाध्यक्ष पद दिया जाएगा। अधिदेश: इसका प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान प्रतिक्रियाओं में समन्वय कायम करना और आपदा-प्रत्यास्थ (आपदाओं में लचीली रणनीति) व संकटकालीन प्रतिक्रिया हेतु क्षमता निर्माण करना है। आपदाओं के प्रति समय पर और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु यह एक शीर्ष निकाय है। विजन: एक समग्र, अग्रसक्रिय तकनीक संचालित और संवहनीय विकास रणनीति के द्वारा एक सुरक्षित और आपदा-प्रत्यास्थ भारत बनाना, जिसमें सभी हितधारकों की मौजूदगी हो तथा जो रोकथाम, तैयारी और शमन की संस्कृति का पालन करती हो।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का विकास आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को राष्ट्रीय प्राथमिकता का महत्त्व देते हुए भारत सरकार ने अगस्त 1999 में एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी और वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप के बाद एक राष्ट्रीय कमेटी का गठन आपदा प्रबंधन योजनाओं पर तैयारी की सिफ़ारिश करने और प्रभावी शमन सुझाने हेतु किया। दसवीं पंचवर्षीय योजना के अभिलेख में भी प्रथम बार आपदा प्रबंधन पर एक विस्तृत अध्याय है। बारहवें वित्त आयोग को भी आपदा प्रबंधन हेतु वित्तीय प्रबंध की समीक्षा हेतु अधिदेश दिया गया था। 23 दिसंबर, 2005 को भारत सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम बनाया जिसमें प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), और संबद्ध मुख्यमंत्रियों के नेतृत्व में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) की स्थापना की परिकल्पना भारत में आपदा प्रबंधन का नेतृत्व करने और उसके प्रति एक समग्र व एकीकृत दृष्टिकोण कार्यान्वित करने हेतु की गई।

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)

यह संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में SDMA राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये नीतियाँ और योजनाएँ तैयार करता है। यह राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय, आपदा के शमन के लिये तत्पर रहने के उपायों और राज्य के विभिन्न विभागों की योजनाओं की समीक्षा के लिये उत्तरदायी है ताकि रोकथाम, तैयारी और शमन उपायों का समेकन सुनिश्चित हो सके। राज्य कार्यकारी समिति (SEC)

इसका नेतृत्व राज्य का मुख्य सचिव करता है। SEC आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रावधानित राष्ट्रीय नीति, राष्ट्रीय योजना और राज्य योजना के कार्यान्वयन में समन्वय और निगरानी के लिये उत्तरदायी है। ज़िलास्तरीय संस्थाएँ

ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 25 राज्य के प्रत्येक जिले के लिये एक DDMA के गठन का प्रावधान करती है। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट/डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर/डिप्टी कमिश्नर अध्यक्ष के रूप में इसका प्रमुख होता है, इसके अलावा स्थानीय प्राधिकरण का निर्वाचित प्रतिनिधि सह-अध्यक्ष होता है, उन जनजातीय क्षेत्रों को छोड़कर जहां स्वायत्त ज़िले की ज़िला परिषद का मुख्य कार्यकारी सदस्य सह-अध्यक्ष नियुक्त हो। इसके अलावा उन ज़िलों में जहाँ ज़िला परिषद मौजूद है, में इसका अध्यक्ष DDMA का सह- अध्यक्षहोगा। ज़िला प्राधिकरण आपदा प्रबंधन के लिये योजना बनाने, समन्वय करने और कार्यान्वयन करने तथा आपदा प्रबंधन के लिये ऐसे उपाय अपनाने के लिये उत्तरदायी है जो दिशा-निर्देश में दिये गए हैं। ज़िला प्राधिकरण के पास ज़िले में किसी भी क्षेत्र में निर्माण की जाँच करने, सुरक्षा मानकों को लागू करने और राहत उपायों की व्यवस्था करने तथा ज़िला स्तर पर आपदा के प्रति प्रतिक्रिया करने का अधिकार है।

भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy): 2-3 दिसंबर, 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड (Union Carbide) [परिवर्तित नाम- डाउ केमिकल्स (Dow Chemicals)] कंपनी के प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनाइट (Methyl Isocyanate) गैस का रिसाव हुआ था। इस घटना में हज़ारों लोगों की मौत हो गई थीं और लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे। रिसाव की घटना पूरी तरह से कंपनी की लापरवाही के कारण हुई थी, पहले भी कई बार रिसाव की घटनाएँ हुई थीं लेकिन कंपनी ने सुरक्षा के समुचित उपाय नहीं किये थे।

अंतर्राष्ट्रीय पहल

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यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिज़ास्टर रिस्क डिडक्शन (UNISDR) और अन्य संगठनों ने उन सरकारी और स्वैच्छिक प्रयासों की सराहना की जिनसे विनाश के स्तर को न्यूनतम रखा जा सका।

इसी तरह वर्ष 2014 में हुदहुद चक्रवात के दौरान आंध्र प्रदेश ने भी लाखों लोगों के लिये समान रूप से इसी प्रकार की अस्थायी विस्थापन रणनीति पर अमल किया गया था।

प्राकृतिक आपदा को कम करने पर विश्व सम्मेलन, योकोहामा, 1994

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(World Conference on Natural Disaster Reduction YoKohama-1994) यह आपदा प्रबंधन की दिशा में पर्याप्त और सफल नीतियाँ और उपाय अपनाने के लिये अपेक्षित कदम है। आपदा निवारण और उसके लिये तैयारी आपदा राहत की आवश्यकता कम करने में प्राथमिक महत्त्व रखती है। आपदा निवारण और तैयारी की राष्ट्रीय, क्षेत्रीय, द्विपक्षीय, बहुपक्षीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर विकास की नीति और योजना का अभिन्न पहलू माना जाना चाहिये। आपदाओं के निवारण, कम करने और प्रशासन के लिये क्षमताओं का विकास और सुदृढ़ीकरण ध्यान देने का उच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र हैं ताकि आईडीएनडीआर के लिये अनुवर्ती कार्यकलापों हेतु सुदृढ़ आधार प्रदान किया जा सके। आसन्न आपदाओं की शीघ्र चेतावनी और उनका प्रभावी प्रचार सफल आपदा निवारण और तैयारी के लिये मुख्य कारक हैं। निवारक उपाय सर्वाधिक प्रभावी होते हैं जब उनमें राष्ट्रीय सरकार से क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक स्थानीय समुदाय के सभी स्तरों पर भागीदारी शामिल होती है। संपूर्ण समुदाय की उपयुक्त शिक्षा और प्रशिक्षण द्वारा लक्षित समूहों पर ध्यान केंद्रित उचित डिजाइन और विकास की पद्धतियों के प्रयोग द्वारा असुरक्षा कम की जा सकती है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय आपदा के निवारण, उसकी कमी और प्रशासन के लिये आवश्यक प्रौद्योगिकी की भागीदारी करने की आवश्यकता स्वीकार करता है। निर्धनता उन्मूलन के संगत सतत् विकास के संघटक के रूप में पर्यावरणीय संरक्षण प्राकृतिक आपदाओं के निवारण और प्रशासन में अनिवार्य है। प्रत्येक देश अपने लोगों, अवसंरचना और अन्य राष्ट्रीय परिसंपत्तियों का प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से संरक्षण के लिये प्राथमिक रूप से उत्तरदायी होता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को विकासशील देशों, विशेषकर कम विकसित देशों का आवश्यकताओं के ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक आपदा की कमी के क्षेत्र में वित्तीय, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय साधनों सहित मौजूदा संसधानों के सक्षम प्रयोग के लिये अपेक्षित सुदृढ़ राजनीतिक संकल्प प्रदर्शित करना चाहिये।