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सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/नागरिक चार्टर

विकिपुस्तक से
  • अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल (Transparency International) भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2019 (Corruption Perception Index-2019) जारी किया है।

मुख्य बिंदु: इस सूचकांक के अनुसार, भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति में वर्ष 2018 की तुलना में दो स्थान की गिरावट आई है।

सूचकांक में भारत की स्थिति: ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी इस सूचकांक के अनुसार, भारत भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों की सूची में 80वें स्थान पर है, जबकि वर्ष 2018 में भारत इस सूचकांक में 78वें स्‍थान पर था। वर्ष 2019 में भारत को इस सूचकांक के अंतर्गत 41 अंक प्राप्त हुए हैं, वर्ष 2018 में भी भारत को 41अंक प्राप्त हुए थे। वैश्विक परिदृश्य:

डेनमार्क 87 अंकों के साथ इस सूचकांक में पहले स्थान पर है, जबकि सोमालिया 9 अंकों के साथ दुनिया का सबसे भ्रष्ट देश है। इस वर्ष के CPI में दो-तिहाई से अधिक देशों का स्कोर 50 से कम है। भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतंत्रों में अनुचित और अपारदर्शी राजनीतिक वित्तपोषण (Unfair and Opaque Political Financing), निर्णय लेने में अनुचित प्रभाव (Undue Influence in Decision-Making) और शक्तिशाली कॉर्पोरेट हित समूहों की पैरवी करने के परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार के नियंत्रण में गिरावट आई है। वर्ष 2012 से 22 देशों ने अपने CPI स्कोर में काफी सुधार किया है, जिनमें एस्टोनिया (Estonia), ग्रीस (Greece) और गुयाना (Guyana) शामिल हैं। इस सूचकांक में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और निकारागुआ सहित 21 देशों की स्थिति में गिरावट आई है। G-7 की स्थिति: चार G-7 देशों (कनाडा, फ्राँस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका) के स्कोर में पिछले वर्ष की तुलना में कमी आई है। जर्मनी और जापान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है तथा इटली को एक स्थान का लाभ मिला है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति: इस सूचकांक के अनुसार, एशिया प्रशांत क्षेत्र का औसत स्कोर 45 है जो कि पिछले कई वर्षों से 44 पर स्थिर था। जिससे इस क्षेत्र में सामान्य रूप से ठहराव की स्थिति दिखाई देती है।

मार्च 2019 के मध्य में सरकार का कार्यकाल समाप्त होने से कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष का चयन देश के पहले लोकपाल के लिये किया, जिसे राष्ट्रपति ने विधिवत मंज़ूरी दे दी। लोकपाल में अध्यक्ष के अलावा चार न्यायिक और चार गैर-न्यायिक सदस्य भी नियुक्त किये गए हैं।

लोकपाल एवं लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक,2016 लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम,2013 को संशोधित करने के लिये यह विधेयक संसद ने जुलाई 2016 में पारित किया। इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता के अभाव में लोकसभा में सबसे बड़े एकल विरोधी दल का नेता चयन समिति का सदस्य होगा। इसके द्वारा वर्ष 2013 के अधिनियम की धारा 44 में भी संशोधन किया गया जिसमें प्रावधान है कि सरकारी सेवा में आने के 30 दिनों के भीतर लोकसेवक को अपनी सम्पत्तियों और दायित्वों का विवरण प्रस्तुत करना होगा। संशोधन विधेयं के द्वारा 30 दिन की समय-सीमा समाप्त कर दी गई, अब लोकसेवक अपनी सम्पत्तियों और दायित्वों की घोषणा सरकार द्वारा निर्धारित रूप में एवं तरीके से करेंगे। यह ट्रस्टियों और बोर्ड के सदस्यों को भी अपनी तथा पति/पत्नी की परिसंपत्तियों की घोषणा करने के लिये दिये गए समय में भी बढ़ोतरी करता है, उन मामलों में जहां वे एक करोड़ रुपये से अधिक सरकारी या 10 लाख रुपये से अधिक विदेशी धन प्राप्त करते हों।

लोकपाल की संरचना

लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसका गठन एक चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्यों से हुआ है। लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये, जिसके पास भ्रष्टाचार निरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून व प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव हो। आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा न्यूनतम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।

लोकपाल संस्था का न्यायिक सदस्य या तो सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का पूर्व मुख्य न्यायाधीश होना चाहिये। गैर-न्यायिक सदस्य असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति, जिसके पास भ्रष्टाचार निरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून व प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव हो। लोकपाल संस्था के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक है। सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। चयन समिति प्रधानमंत्री जो कि चेयरपर्सन होता है, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित कोई न्यायाधीश और एक प्रख्यात न्यायविद से मिलकर गठित होती है। लोकपाल तथा सदस्यों के चुनाव के लिये चयन समिति कम-से-कम आठ व्यक्तियों का एक सर्च पैनल (खोजबीन समिति) गठित करती है।