सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण

विकिपुस्तक से

वैश्विक तापन कम करने के उपाय[सम्पादन]

भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution-NDC) के तहत

  1. वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता को 2005 के मुकाबले 33-35 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
  2. भारत ने वृक्षारोपण और वन क्षेत्र में वृद्धि के माध्यम से 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 के बराबर कार्बन सिंक बनाने का वादा किया है।
  3. भारत कर्क और मकर रेखा के बीच अवस्थित सभी देशों के एक वैश्विक सौर गठबंधन के मुखिया (anchor of a global solar alliance) के तौर पर कार्य करेगा।
  • वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये हैं-
  1. जीवाश्म ईंधन की जगह अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल
  2. मीथेन गैस जैसे प्रदूषकों का उत्सर्जन रोकना
  3. पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा
  4. वनस्पति जन्य भोजन का इस्तेमाल और मांसाहार भोजन न करना
  5. कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था का विकास
  6. जनसंख्या को कम करना
  • राष्ट्रीय स्तर पर अभीष्ट निर्धारित योगदान (Intended Nationally Determined Contributions-INDCs) टर्म का इस्तेमाल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने हेतु संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के तहत किया जाता है, दिसंबर 2015 में पेरिस,फ्रांस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में UNFCCC के सभी सदस्य देशों को INDC पेश करने के लिये कहा गया।

INDCs, जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की समस्या से निपटने के लिये एक ब्लूप्रिंट प्रस्तुत करता हैं, इसके अंतर्गत निम्नलिखित आठ प्रमुख लक्ष्यों पर बल दिया जाता है- टिकाऊ जीवन शैली, आर्थिक विकास, उत्सर्जन तीव्रता को कम करना, गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित विद्युत हिस्सेदारी में वृद्धि करना , कार्बन सिंक, अनुकूलन और वित्तीय गतिशीलता को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण करना।

पर्यावरण प्रदूषण रोकने के उपाय[सम्पादन]

शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण से निपटने हेतु किए गए उपाय

  1. राष्ट्रीय एम्बिएंट/परिवेश वायु गुणवत्ता मानकों की अधिसूचना जारी करना; पर्यावरण कानूनों का निर्माण करना।
  2. एम्बिएंट/परिवेश वायु गुणवत्ता के आकलन के लिये निगरानी नेटवर्क की स्थापना करना।
  3. गैसीय ईंधन CNG, LPG इत्यादि जैसे वैकल्पिक ईंधन की शुरुआत करना।
  4. इथेनॉल (Ethanol) मिश्रण को इस्तेमाल में लाना।
  5. राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (National Air Quality Index) लॉन्च करना।
  6. 1 अप्रैल, 2020 तक BS-IV से BS-VI ईंधन मानकों तक का सफर तय करना।
  7. विभिन्न अपशिष्ट प्रबंधन (Waste Management) नियमों, निर्माण और विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों की अधिसूचना में व्यापक संशोधन करना।
  • भारत 5 जून, 2018 को आयोजित विश्व पर्यावरण दिवस 2018 का वैश्विक मेज़बान था।

इस वर्ष के संस्करण हेतु थीम "बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन" के साथ, दुनिया एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण का मुकाबला करने के लिये एक साथ आ रही है। माइक्रो प्लास्टिक चिंता के कारक बने हुए हैं और पर्यावरण को चुनौती देते हैं। आमतौर पर माइक्रो प्लास्टिक 0.33 मिमी से लेकर 5 मिमी तक के आकार वाले प्लास्टिक कणों कहते हैं। ❖ माइक्रो प्लास्टिक विभिन्न प्रकार के स्रोतों से उत्पन्न हो सकते हैं, जिनमें व्यक्तिगत देखभाल के उत्पादों से माइक्रो बीड्स, सिंथेटिक कपड़ों से रेशे, उत्पादन पूर्व छर्रे तथा पाउडर और बड़े प्लास्टिक उत्पादों से विकृत छोटे-छोटे टुकड़े शामिल हैं।

  • ज़िगज़ैग भट्ठियों में ईंटों को इस प्रकार से व्यवस्थित करके रखा जाता है कि गर्म वायु उस ज़िगज़ैग पथ से होकर गुज़रे।

ज़िगज़ैग वायु पथ की लंबाई सीधी रेखा की लंबाई के मुकाबले लगभग 3 गुनी होती है जिस वज़ह से फ्लू गैसों से ईंटों तक ऊष्मा स्थानांतरण में काफी सुधार हो जाता है तथा पूरा परिचालन और ज़्यादा दक्ष हो जाता है। इसके अलावा, वायु एवं ईंधन के बेहतर मिश्रण से इसका पूर्ण दहन हो जाता है, जिससे कोयले की खपत लगभग 20 प्रतिशत कम हो जाती है और इस प्रकार ईंट भट्टों से कार्बन उत्सर्जन कम हो जाता है। ज़िगज़ैग डिज़ाइन ऊष्मा के समान वितरण को भी सुनिश्चित करता है, जिससे श्रेणी 1 के ईंटों का हिस्सा बढ़कर लगभग 90 प्रतिशत हो जाता है। यह उत्सर्जन को भी बड़े पैमाने पर कम करता है। खासकर सर्दियों के मौसम के दौरान दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र गंभीर वायु प्रदूषण से त्रस्त हो जाता है। इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिये पर्यावरण प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) ने विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न प्रदूषण को कम करने के लिये एनसीआर राज्यों से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान पर काम करने के लिये कहा है और यह तकनीक विशेष रूप से सर्दियों के दौरान दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण को कम करने में बहुत प्रभावी साबित हो सकती है।


बासेल अभिसमय (Basel Convention)22 मार्च, 1989 का प्लेनिपोटेंटियरीज का सम्मेलन (Conference of Plenipotentiaries) जो बासेल (स्विट्ज़रलैंड) में आयोजित हुआ था, के अंतर्गत देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आदान-प्रदान को रोकना और इसके निराकरण के प्रयास करना था। 1992 में लागू इस अंतर्राष्ट्रीय संधि का लक्ष्य विभिन्न देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आदान-प्रदान को रोकना है और इसका मुख्य फोकस (केंद्र-बिंदु) विकसित देशों और विकासशील देशों के मध्य खतरनाक कचरे के आयात-निर्यात को बाधित करना है।यह संधि देशों के मध्य आपसी सहयोग एवं बासेल अभिसमय (Basel Convention) के निर्देशों के क्रियान्वयन संबंधी जानकारियों को साझा करने का भी आदेश देती है।


  • छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर के होलीक्रॉस स्कूल के विद्यार्थियों के सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर किए जा रहे प्रयास को प्रधानमंत्री ने सराहना की है।बच्चों ने साल भर पैक खाद्य पदार्थ सहित अन्य प्लास्टिक को एकत्र कर उसे साल के अंत में संबंधित कंपनियों को पार्सल के जरिए भेजा।
  • 1जनवरी 2020 छत्तीसगढ़ सरकार प्लास्टिक और कचरा सीमेंट कंपनियों को बेचकर प्रति टन 1200 रुपए कमाई करेगी सीमेंट कंपनियां निकायों से प्लास्टिक ज्वलनशील सामग्री जैसे पेपर कपड़े प्लास्टिक मल्टीलेयर प्लास्टिक पैकेजिंग मैटेरियल लेदर टायर थर्माकोल लकड़ी के अलावा अन्य तरह की खरीदेगी।
  • वाराणसी के श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में चढ़ाए जाने वाले माला,फूल और बेलपत्र से ऑर्गेनिक खाद बनाने का काम आर्ट ऑफ लिविंग के सहयोग से शुरू किया गया।

वन्यजीव[सम्पादन]

मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए उत्तराखंड वन अनुसंधान उन पारंपरिक जैविक तरीकों पर रिसर्च करेगा जिनके इस्तेमाल से वन्यजीवों को कोई नुकसान नहीं पहुंचता। इसके लिए हरिद्वार और लाल कुआं को ट्रायल के लिए चुना गया है।अब तक वन विभाग हाथियों की आबादी क्षेत्र में घुसने से रोकने के लिए हाथी दीवार,खाई खुदवाकर व फेंसिंग पर करंट छोड़ने के साथ पटाखे फोड़ने के तरीके अपनाता था फेंसिंग करंट पर अब प्रतिबंध लग चुका है।

चिपको आंदोलन के तर्ज पर कर्नाटक में भी एक ऐसा ही आंदोलन चला “अप्पिको” जिसका अर्थ होता है- बाहों में भरना। 8 सितंबर, 1983 को सिरसी जिले के सलकानी वन में वृक्ष काटे जा रहे थे। तब 160 स्त्री-पुरूष, और बच्चों ने पेड़ों को बाहों में भर लिया और लकड़ी काटने वालों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। वे अगले 6 सप्ताह तक वन की पहरेदारी करते रहे। इन स्वयंसेवकों ने वृक्षों को तभी छोड़ा, जब वन विभाग के अधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वृक्ष वैज्ञानिक आधार पर और जिले की वन संबंधी कार्य योजना के तहत काटे जाएँगे।

सन्दर्भ[सम्पादन]