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सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/भारतीय संस्कृति में वास्तुकला

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अमरावती कला शैली (Amaravati School of Art) भारत में लगभग 200-100 ईसा पूर्व से प्रारंभ होकर लगभग छह शताब्दियों तक अमरावती कला शैली बिना किसी बाहरी प्रभाव के विकसित हुई। इसे पहले सातवाहन वंश के शासकों तथा बाद में इक्ष्वाकुओं ने संरक्षण दिया था। इस कला में सामग्री के रूप में विशिष्ट सफेद संगमरमर का उपयोग किया जाता था। अमरावती की मूर्तियों में मानव, पशु और पुष्प चित्रों में गहराई तथा शांत प्रकृतिवाद के साथ उग्रता एवं ऊर्जा की भावना प्रदर्शित होती है। बौद्ध और जैन दोनों (मुख्य रूप से बौद्ध) चित्रों के साथ धर्मनिरपेक्ष चित्र भी इस शैली में उपस्थित हैं।



धौलावीरा शहर-कच्छ के रण में खादिर द्वीप (Khadir island) पर स्थित इस शहर का संबंध हड़प्पा सभ्यता के विकसित चरण से है। वर्तमान में कठोर शुष्क भूमि पर किलेबंद चतुर्भुज के रूप में स्थापित यह शहर 1200 वर्षों (3000-1800 ईसा पूर्व) तक एक शहरी केंद्र था। धोलावीरा का उत्खनन स्थल हड़प्पाई लोगों के समानुपातिक नगर नियोजन की उच्च संगठित प्रणाली, कार्यात्मक क्षेत्रों का अंतर्संबंध, सड़क-पैटर्न और एक कुशल जल संरक्षण प्रणाली विकसित करने के कौशल को दर्शाता है जिससे वे 1200 से भी अधिक वर्षों तक इस कठोर गर्म शुष्क जलवायु में अपनी उत्तरजीविता बनाए रख सके। यह स्थल भारत के गुजरात राज्य के कच्छ ज़िले में धौलावीरा गाँव के पास स्थित है, जिसके कारण इसे धौलावीरा नाम दिया गया। 250 एकड़ क्षेत्र में फैला धोलावीरा कच्छ के रण में खादिर द्वीप पर स्थित है। यह स्थल भारत में संरक्षित कच्छ वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है। कर्क रेखा धोलावीरा स्थल से होकर गुजरती है। अतः कथन 3 सही है। हाल ही में गुजरात के कच्छ के खटिया गाँव में एक खुदाई के दौरान प्रारंभिक हड़प्पा काल से संबंधित लगभग 5,000 वर्ष पुरानी कलाकृतियाँ मिलने के बाद ये स्थल चर्चा में रहे।


  • बाघ की गुफाएँ: मध्य प्रदेश में बाघ नदी के तट पर स्थित ये छठी शताब्दी के आसपास विकसित 9 बौद्ध गुफाओं का एक समूह है। यह वास्तुशिल्प की दृष्टि से अजंता की गुफाओं के ही समान है।
  • एलोरा की गुफाएँ: यह महाराष्ट्र की सह्याद्रि श्रेणी में स्थित हैं। यह 34 गुफाओं का एक समूह है, जिनमें से 17 ब्राह्मण, 12 बौद्ध और 5 जैन धर्म से संबंधित हैं।

इन गुफाओं का निर्माण 5वीं से 11वीं शताब्दी के बीच किया गया था। अतः कथन 3 सही नहीं है। इसमें दो मंज़िला और तीन मंज़िला दोनों प्रकार की गुफाएँ शामिल हैं। कुछ प्रमुख एलोरा गुफाएँ इस प्रकार हैं: रावण की खाई (गुफा संख्या: 14) दशावतार मंदिर (गुफा संख्या: 15) कैलाशनाथ मदिर (गुफा संख्या:16)

  • बराबर गुफाएँ: ये बिहार में गया से 24 किमी. उत्तर में बराबर की पहाड़ियों पर स्थित हैं। ये चट्टानों को काटकर बनाई गईं 4 गुफाओं का एक समूह है, जिसका काल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आस-पास का है।इनका निर्माण मौर्य सम्राट अशोक द्वारा अजीविक संप्रदाय हेतु करवाया गया था। सुदामा गुफा के अभिलेख से पता चलता है कि बराबर पहाड़ियों पर 4 गुफाओं को सम्राट अशोक द्वारा अजीविक भिक्षुओं को सौंपा गया था।

मंदिर वास्तुकला की द्रविड़ शैली

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पल्लवों के शासनकाल में शुरू होकर चोल शासकों के काल में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। तंजौर के चोल शासकों ने मंदिर स्थापत्य की द्रविड़ शैली को विकसित किया। द्रविड़ शैली या चोल शैली की विशेषताएँ हैं:

  • द्रविड़ वास्तुकला में केवल मुख्य मंदिर के शीर्ष पर विमान होता था। इसमें नागर शैली के विपरीत अन्य सहायक मंदिरों पर विमान नहीं होता था।
  • उदाहरणतः तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर (1011 ई0 में राजराजा द्वारा निर्मित), गंगईकोंडचोलपुरम के मंदिर (गंगा के डेल्टा में अपनी जीत की उपलक्ष्य में राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित), आदि।
  • नागर शैली के मंदिरों के विपरीत, द्रविड़ शैली के मंदिर ऊँची चारदीवारी से घिरे होते थे। सामने की दीवार में एक ऊँचा प्रवेश द्वार होता था जिसे गोपुरम के नाम से जाना जाता था।
  • मंदिर परिसर का निर्माण पंचायतन शैली में किया जाता था, जिसमें एक प्रधान मंदिर तथा चार सहायक मंदिर होते थे।
  • द्रविड़ शैली के मंदिर में पिरामिडनुमा शिखर होते थे जो घुमावदार होने के बजाय ऊपर की तरफ सीधे होते थे। इसे विमान के नाम से जाना जाता है।
  • सभाकक्ष गर्भगृह से एक गलियारे द्वारा जुड़ा होता था, जिसे अंतराल कहा जाता था।
  • गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल, मिथुन और यक्ष की मूर्तियाँ होती थीं।
  • मंदिर परिसर के अंदर एक जलाशय की उपस्थिति द्रविड़ शैली की एक अद्वितीय विशेषता थी।
  • उदाहरणतः तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर (1011 ई0 में राजराजा द्वारा निर्मित), गंगईकोंडचोलपुरम के मंदिर (गंगा के डेल्टा में अपनी जीत की उपलक्ष्य में राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित), आदि।
  • विमान के शीर्ष पर एक अष्टकोण आकार का शिखर होता है। यह नागर मंदिर के कलश के समान है लेकिन यह गोलाकार नहीं होता है। इस प्रकार गोपुरम, विमान और अंतराल चोल वास्तुकला शैली की विशेषताएँ हैं।