सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/भारतीय स्वतंत्रता संग्राम 1858 से 1908 तक
1857 की क्रांति के तात्कालिक व दूरगामी रूप में कई महत्त्वपूर्ण परिणाम हुए। इसका एक महत्त्वपूर्ण परिणाम था-महारानी विक्टोरिया का घोषणा-पत्र। इस घोषणा-पत्र में देशी रियासतों के बारे में कहा गया कि भविष्य में किसी भी राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में नहीं मिलाया जाएगा। भारतीय नरेशों को गोद लेने का अधिकार वापस दे दिया गया। 1858 के उद्घोषणा ने भारत पर ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को समाप्त कर दिया और भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया। उद्घोषणा में अंग्रेज़ी ईस्ट कंपनी के शासन को समाप्त करने और ब्रिटिश क्राउन (यानी, ब्रिटिश संसद) का प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित करने की बात कही गई थी। इसमें भारत के साथ कंपनी के व्यापार के नियमन की बात शामिल नहीं थी।
सेफ्टी वॉल्व’ एक सिद्धांत है जिसके अनुसार, ए. ओ. ह्यूम ने भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का गठन इस विचार के साथ किया था कि यह भारतीयों के बढ़ते असंतोष को दूर करने के लिये एक 'सुरक्षा वॉल्व' की तरह कार्य करेगी और इसीलिये ए. ओ. ह्यूम ने लार्ड डफरिन को कॉन्ग्रेस के गठन में बाधा न बनने के लिये सहमत किया। इस सिद्धांत की उत्पत्ति वर्ष 1913 में प्रकाशित विलियम वेडरबर्न द्वारा प्रकाशित ह्यूम की जीवनी से हुई। इसके अनुसार, ए. ओ. ह्यूम ने लॉर्ड डफरिन से बात कर शिक्षित भारतीयों के साथ एक संगठन बनाने का फैसला किया, जो शासकों और शासितों के बीच संवाद शुरू कर एक सुरक्षा वॉल्व के रूप में काम करते हुए जन क्रांति को रोकने का काम करे। लाला लाजपत राय जैसे गरमपंथी नेता भी ’सुरक्षा वॉल्व’ सिद्धांत में विश्वास करते थे। मार्क्सवादी इतिहासकारों का ‘षड्यंत्र सिद्धांत’ (Conspiracy Theory), ‘सुरक्षा वॉल्व अवधारणा’ का एक रूप माना जाता है। आर.पी. दत्त ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का जन्म भारत में एक जनवादी विद्रोह को खत्म करने की साजिश से हुआ था तथा बुर्जुआ नेता इस षड्यंत्र का हिस्सा थे। उन्होंने विश्लेषण किया कि ब्रिटिश वायसराय द्वारा कॉन्ग्रेस का गठन प्रचलित असंतोष के विरुद्ध सुरक्षा वॉल्व के रूप में किया गया था।
1892 से 1905 के बीच घटित निम्न राजनीतिक घटनाओं ने राष्ट्रवादियों को निराश किया और उन्हें उग्र राजनीति के बारे में सोचने को बाध्य किया-
- 1892 का इंडियन काउंसिल एक्ट (भारतीय परिषद अधिनियम) जिसमें केवल भारतीय विधानपरिषदों की शक्तियों,कार्यों एवं रचना का ही उल्लेख था। इस कानून से राष्ट्रवादी पूरी तरह से असंतुष्ट थे और उन्होंने इसे मज़ाक बताया। साथ ही 1898 में एक कानून बनाया गया जिसमें विदेशी शासन के प्रति असंतोष की भावना फैलाने को अपराध घोषित किया गया।
- 1899 में कलकत्ता नगर निगम में भारतीय सदस्यों की संख्या घटा दी गई।
- 1904 में इंडियन ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट बना जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया। लोकमान्य तिलक और दूसरे समाचार संपादकों को विदेशी सरकार के प्रति जनता को भड़काने के लिये लंबी-लंबी जेल सजाएँ दी गई।
नोटः लॉर्ड लिटन (1876-1880) के कार्यकाल में सिविल सेवा में सम्मिलित होने वाले भारतीयों की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19 वर्ष कर दी गई थी।
श्री अरविंद ने लिखा है कि स्वराज्य शब्द का पहला प्रयोग ‘देशेर कथा’ के लेखक सखाराम गणेश देउस्कर ने किया। देउस्कर की जिस एक रचना ने नवजागरण काल के प्रबुद्धवर्ग को सर्वाधिक प्रभावित किया, वह थी 1904 में प्रकाशित कृति 'देशेर कथा'। इसका हिंदी-अनुवाद 'देश की बात' (1910) नाम से हुआ।
क्रांतिकारी आंदोलन प्रथम चरण(1907-1917)
[सम्पादन]वी डी सावरकर द्वारा 5899 में स्थापित मित्र मेला ही वर्ष में सरकार ने एक गुप्त सभा अभिनव भारत में परिवर्तित हो अभिनव भारत की शाखाएं महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भी स्थापित की गई तथा सितंबर 1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी नागपुर महाराष्ट्र में स्थित है।
जतिंद्रनाथ मुखर्जी 1815 बंगाल के क्रांतिकारी थे वे विवेकानंद और अरविंद घोष के निष्ठावान अनुयाई और युगांतर अनुशीलन समिति तथा गदर पार्टी श्री की रंगदारी समितियों के सक्रिय सदस्य रहे थे यह बाघा जतिन के नाम से जाने जाते थे विलन समिति की स्थापना e-mitra और पुलिस द्वारा की गई थी वरिंद्र कुमार घोष तथा केंद्र के सहयोग से कोलकाता में क्रांतिकारी संगठन के रूप में
अनुशीलन समिति का पुनर्गठन किया गया अरविंद घोष भी इससे जुड़े थे उनकी सरलता के लिए इसका दूसरा कार्य कार्यालय ढाका में वर्ष 1960 में खोला गया चापेकर बंधू दामोदर हरी चापेकर बाल कृष्ण हरी चापेकर एवं वासुदेव हरी चापेकर ने 98 ईसवी में पुणे में व्यायाम मंडल की स्थापना की स्थापना विशुद्ध राजनीतिक उद्देश्य से की गई थी।
जून 18 सो 97 में चाफेकर बंधुओं ने पुणे की प्लेट कमेटी के अध्यक्ष रेंस और लेफ्टिनेंट की हत्या कर दी थी इन दोनों ने हत्या के आरोप में दामोदर हरी चापेकर को फांसी दे दी गई गिरफ्तारी की हत्या को लेकर यह आरोप लगाया गया।
की तिलक के नेतृत्व में पुनः के ब्राह्मणों ने यह साजिश की थी परंतु अंग्रेज सरकार तिलक के खिलाफ कोई सबूत नहीं जुटा सके लाइव स्कोर भारतीय दंड संहिता की धाराओं के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन पर मुकदमा चलाकर उन्हें 18 महीने की कैद की सजा दी गई जिसका देश भर में भारी विरोध हुआ इस कारण तिलक अखिल भारतीय नेता के रूप में लोकप्रिय हो गए और जनता ने उन्हें लोकमान्य की उपाधि दी नासिक के जिला मजिस्ट्रेट जैक्सन को गुटके अनंत लक्ष्मण कन्हारे ने गोली मार दी जैक्सन हत्याकांड में कन्हा रे कृष्ण गोपाल करें और विनायक देशपांडे को गिरफ्तार कर
फांसी दे दी गई वी डी सावरकर को लंदन से गिरफ्तार करके नासिक लाया गया इनके साथ और कई अन्य लोगों पर नासिक षड्यंत्र मुकदमा चला जिसमें सावरकर को आजीवन कारावास की सजा मिली कि व डकैती का अस्थान पूर्वी बंगाल में अवस्थित था व डकैती करने वाले क्रांतिकारियों के समूह को पुलिन बिहारी दास ने नेतृत्व प्रदान किया था 30 अप्रैल 1960 को बिहार के मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी और दुर्भाग्य से
राष्ट्रीय आंदोलन से हमदर्दी रखने वाले मिस्टर कैनेडी की पत्नी एवं पुत्री मारी गई प्रफुल्ल चाकी पुलिस से बचने के लिए आत्महत्या कर फांसी दे दी। अलीपुर षड्यंत्र मामले में सौ आठ में अरविंद घोष और उनके भाई वरिंद्र हो सहित 34 लोग अवैध हथियार रखने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे इस मामले में 15 लोगों को सजा हुई थी अरविंद घोष रिहा कर दिए गए थे इस मामले में अरविंद घोष का बचाव एड़ी चोटी का जोर लगाकर चितरंजन दास ने किया था अलीपुर षड्यंत्र मामले में सरकारी गवाह नरेंद्र मोदी की औरत ने जेल में गोली मारकर हत्या
हत्या कर दी थी जिसके कारण उन्हें फांसी की सजा हुई थी।
सर विलियम वेडरबर्न वर्ष 1860 से 1880 के बीच भारत में एक सिविल सेवक थे। भारत में अपनी सेवा के दौरान वेडरबर्न ने अकाल, भारतीय किसानों की गरीबी, कृषि ऋणग्रस्तता और प्राचीन गाँवों की व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के सवाल पर ध्यान केंद्रित किया। इन समस्याओं के साथ उनकी चिंता ने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के संपर्क में ला दिया। उन्होंने वर्ष 1889 में मुंबई में आयोजित चौथे कॉन्ग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की। उन्होंने 1893 में एक लिबरल पार्टी के सदस्य के रूप में संसद में प्रवेश किया। भारत में राजनीतिक सुधारों हेतु सदन में वेडरबर्न ने कैन के साथ मिलकर भारतीय संसदीय समिति का गठन किया जिसके साथ वह वर्ष 1893 से 1900 तक अध्यक्ष के रूप में जुड़े रहे। वर्ष 1895 में वेडरबर्न ने भारतीय व्यय पर वेल्बी कमीशन (रॉयल कमीशन) पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने अकाल की जाँच और निवारक उपायों की जाँच के लिये जून 1901 में स्थापित भारतीय अकाल यूनियन की गतिविधियों में भी भाग लिया।