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सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/महिलाओं की भूमिका और महिला संगठन

विकिपुस्तक से

'महिलाओं हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी' योजना का प्रारंभ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु की है। इसका उद्देश्य विज्ञान की मुख्यधारा से जुड़ने और वैज्ञानिक के रूप में काम करने की इच्छुक 30 से 50 वर्ष उम्र वर्ग की महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के लिये अवसर उपलब्ध कराना है। इस योजना का एक अन्य उद्देश्य उचित प्रौद्योगिकियों को ग्रहण करने,उनका विकास करने,प्रमाणित प्रौद्योगिकियों को स्थानांतरित करने तथा मौजूदा प्रौद्योगिकियों का प्रमाणीकरण कर महिलाओं को लाभान्वित करना है। इस योजना के उद्देश्यों और देश की भौगोलिक/आर्थिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए महिला प्रौद्योगिकी पार्कों की स्थापना की जाएगी। यह महिलाओं के लिये आजीविका प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करने हेतु एक प्रौद्योगिकी मॉडुलेशन और प्रशिक्षण केंद्र के रूप में कार्य करेगा।

  • दूरसंचार मंत्रालय ने 2015 में देश के सभी मोबाइल फोनों में अलग से एक पैनिक बटन लगाना अनिवार्य कर दिया था।

इस पैनिक बटन को स्थानीय पुलिस के माध्यम से एक आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र से जुड़ा होना चाहिये और पैनिक बटन का संदेश संकट की स्थिति में महिला द्वारा निर्दिष्ट परिवार के सदस्यों आदि को सचेत करेगा।

  • व्यवहार परिवर्तन पर बल देने के लिये बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ (BBBP) आंदोलन पानीपत से शुरू किया गया जो इतिहास में कई लड़ाइयों के लिये प्रसिद्ध है। बच्चियों के खिलाफ सामाजिक रूप से जड़ जमाए पक्षपात के विरुद्ध यह एक सांकेतिक इशारा था। पानीपत का बाल लिंगानुपात भी निकृष्टतम था,यह औसत राष्ट्रीय अनुपात 919 (2011 की जनगणना) की तुलना में केवल 834 था।

‘सेल्फी विथ डॉटर’ अभियान से बच्ची के जन्म पर जश्न मनाना तेजी से प्रतिमान बन गया।

  • यूएन वुमन (UN Women)

संयुक्त राष्ट्र की यह संस्था लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये समर्पित है। इसे वैश्विक स्तर पर महिलाओं और लड़कियों की आवश्यकताओं के समर्थन एवं प्रगति के लिये स्थापित किया गया है। इसके तहत लैंगिक समानता प्राप्त करने हेतु वैश्विक मानकों को निर्धारित करके सरकारों और नागरिक समाज के साथ मिलकर कानूनों, नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं को विकसित करने के लिये काम किया जाता है, ताकि मानकों को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके और दुनिया भर में महिलाओं और लड़कियों को सही मायने में लाभ प्राप्त हो सके।

  • इसके साथ ही यह सतत् विकास लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं और लड़कियों के लिये वास्तविक रूप में विश्व स्तर पर काम करता है।
  1. सामाजिक न्याय क्या है?संसद में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण भारत में एक सामाजिक न्याय प्रिय समाज की स्थापना में किस प्रकार योगदान दे सकता है?सिविल सेवा परीक्षा 1997।

महिलाओं के विरुद्ध अपराध उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई गई उसे देश के आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने तथा यह बताने के लिए कहा गया कि आखिर इन कानूनों में ऐसे क्या बदलाव किए जाएं कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने वालों के खिलाफ मुकदमा बिना किसी विलंब के चले किस तरह ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई कर दोषियों को और भी कड़ी सजा दी जा सके।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में 44 पृष्ठों का एक अध्याय भी लिखा जिसका शीर्षक है-चुनाव सुधार उसमें लिखा है कि महिलाओं के विरुद्ध अपराध रोकने के लिए चुनावी प्रक्रिया में सुधार करना अत्यंत आवश्यक है दूसरे शब्दों में कहें तो चुनावी प्रक्रिया में सुधार किए बिना महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कमी करना असंभव है। समिति ने यह भी कहा था कि 1.जब तक संसद में ऐसे लोग बैठे होंगे जो आपराधिक मामलों में आरोपी हैं तब तक देश की कानून बनाने की शैली और तौर-तरीके पर भी विश्वास करना बहुत कठिन है। 2.उस समय छह विधायक ऐसे थे जिन्होंने स्वयं शपथ लेकर लिखा था कि उनके विरुद्ध दुष्कर्म के मुकदमे चल रहे हैं। 3.पिछले 5 वर्षों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने विधानसभा चुनावों में 27 ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए जिनके विरुद्ध दुष्कर्म के मुकदमे चल रहे थे।समिति ने उच्च न्यायालय के विचारों का जिक्र करते हुए कहा था कि स्वाधीनता के 50 वर्ष पूरे होने पर संसद ने अगस्त 1997 में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें राजनीति के अपराधीकरण पर घोर चिंता जाहिर की गई थी तथा भरसक समाप्त करने के प्रयत्न किए जाएँगे। 25 सितंबर 2018 को पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन ने एक जनहित याचिका में उच्चतम न्यायालय से प्रार्थना की कि जिनके विरूद्ध गंभीर आरोप हैं और जिनका संज्ञान न्यायालय ले चुका है उन्हें चुनाव में उम्मीदवार बनाने पर कानूनी तौर पर रोक लगाई जाए हालांकि उच्चतम न्यायालय ने ऐसा करने से यह कहकर मना कर दिया कि कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है साथ ही संसद से भी कहा ऐसे कानून कि देश को शीघ्र आवश्यकता है।