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सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/विज्ञान एवं प्रौद्दोगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ

विकिपुस्तक से

अंतरिक्ष प्रौद्दोगिकी

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चंद्रयान -1 चंद्रमा पर भारत का पहला मिशन था, जिसे अक्तूबर 2008 में श्रीहरिकोटा से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान, PSLV-C11 द्वारा लॉन्च किया गया था। चंद्रयान -1 ने चंद्रमा पर जल की उपलब्धता का पता लगाया। चंद्रयान -2 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला दुनिया का पहला मिशन था। यह चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग और अब तक अन्वेषण से बचे हुए चंद्रमा के शेष भाग की जानकारी जुटाने हेतु एक रोबोट रोवर का संचालन करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है। यह सॉफ्ट लैंडिंग के कार्य को सफलतापूर्वक निष्पादित नहीं कर सका। गगनयान मिशन अंतरिक्ष में भारत का पहला मानव मिशन होगा। चंद्रमा का दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र छाया में रहता है और उत्तरी ध्रुव की तुलना में बहुत बड़ा है। दक्षिण ध्रुव का हिमकृत जल अरबों वर्ष पुराना हो सकता है, जो अभी तक ग्रहों की सतहों को निरंतर परिवर्तित और नवीनीकृत करने वाले सूर्य के विकिरणों या भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से बचा हुआ है, जिससे हमें प्रारंभिक सौरमंडल को समझने में सहायता मिल सकती है।


थुम्बा भूमध्‍यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन (Thumba Equatorial Rocket Launching Station-TERLS) तिरुवनंतपुरम, केरल में स्थित है। इसकी स्थापना 1962 में हुई थी। भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (Indian National Committee for Space Research : INCOSPAR) को डॉ. विक्रम साराभाई के अधीन 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम तैयार करने के लिये स्थापित किया गया था । भारतीय सुदूर संवेदी उपग्रह -1 ए (IRS -1 A) मार्च, 1988 में लॉन्च किया गया था। IRS-1A भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा विकसित अर्द्ध-परिचालित/ परिचालित सुदूर संवेदी उपग्रहों की एक शृंखला का पहला उपग्रह है।

  • इसरो ने GSLV Mk III (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle Mark III) के ज़रिये श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से GSAT-29 (Geostationary Satellite) नामक संचार उपग्रह को लॉन्च किया।

GSLV Mk III द्वारा इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (Geosynchronous Transfer Orbit-GTO) में स्थापित किया गया है। तीन ऑर्बिट रेज़िंग मैन्यूवर्स (orbit-raising maneuvers) के बाद इसे जियो स्टेशनरी ऑर्बिट (Geostationary Orbit) में स्थापित किया जाएगा। महत्त्व

  1. इससे जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के दूर-दराज़ के इलाकों में इंटरनेट पहुँचाने में मदद मिलेगी।
  2. उपग्रह में लगे हाई रिजॉल्यूशन कैमरा की सहायता से हिंद महासागर में जहाजों पर भी निगरानी की जा सकेगी। यह इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस उपग्रह की मदद से भविष्य के स्पेस मिशन के लिये पहली बार इन तकनीकियों का परीक्षण किया गया है।
  3. इस रॉकेट की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह स्वदेश निर्मित है। इस रॉकेट की ऊँचाई 13 मंजिल की इमारत के बराबर है। यह चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है।
  4. इसमें स्वदेशी तकनीक से तैयार नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें ईंधन के तौर पर लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है।

इसरो (Indian Space and Research Organisation-ISRO) ने GSLV Mk III (Geosynchronous Satellite Launch Vehicle Mark III) के ज़रिये श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से GSAT-29 (Geostationary Satellite) नामक संचार उपग्रह को लॉन्च किया। GSLV Mk III द्वारा इसे जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (Geosynchronous Transfer Orbit-GTO) में स्थापित किया गया है। तीन ऑर्बिट रेज़िंग मैन्यूवर्स (orbit-raising maneuvers) के बाद इसे जियो स्टेशनरी ऑर्बिट (Geostationary Orbit) में स्थापित किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है। महत्त्व

  1. इससे जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के दूर-दराज़ के इलाकों में इंटरनेट पहुँचाने में मदद मिलेगी।
  2. उपग्रह में लगे हाई रिजॉल्यूशन कैमरा की सहायता से हिंद महासागर में जहाजों पर भी निगरानी की जा सकेगी। यह इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस उपग्रह की मदद से भविष्य के स्पेस मिशन के लिये पहली बार इन तकनीकियों का परीक्षण किया गया है।
  3. इस रॉकेट की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह स्वदेश निर्मित है। इस रॉकेट की ऊँचाई 13 मंजिल की इमारत के बराबर है। यह चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है।
  4. इसमें स्वदेशी तकनीक से तैयार नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें ईंधन के तौर पर लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का इस्तेमाल होता है।
  • भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (Indian Regional Navigational Satellite System-IRNSS) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक क्षेत्रीय स्वायत्त उपग्रह नौवहन प्रणाली है जो पूर्णतया भारत सरकार के अधीन है।

इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्त्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। IRNSS के तीन उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा (जियोस्टेशनरी ऑर्बिट) और चार उपग्रहों को भूस्थैतिक कक्षा (जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट) में स्थापित किया गया है। IRNSS के अनुप्रयोग : स्‍थलीय, हवाई, महासागरीय दिशा-निर्देशन आपदा प्रबंधन वाहन अनुवर्तन तथा बेड़ा प्रबंधन (Vehicle tracking and fleet management) मोबाइल फोन के साथ समाकलन (Integration with mobile phone) परिशुद्ध काल-गणना (Precise Timing) मानचित्रण तथा भूगणितीय आँकड़ा अर्जन (Mapping and Geodetic data capture) अतः कथन 1 सही है। पदयात्रियों तथा पर्यटकों के लिये स्‍थलीय दिशा-निर्देशन की सुविधा चालकों के लिये दृश्य व श्रव्‍य दिशा-निर्देशन की सुविधा

सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ स्मार्ट कंप्यूटिंग(Centre for Development of Smart Computing-C-DAC) सूचना प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स और अन्य संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) का प्रमुख एक संगठन है। भारत का पहला स्वदेशी सुपर कंप्यूटर, परम (PARAM) 8000 वर्ष 1991 में C-DAC द्वारा ही बनाया गया था।


भारत के पहले सुपरकंप्यूटर PARAM 8000 को 1991 में लॉन्च किया गया था। वर्तमान में भारतीय उष्ण कटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान में सबसे तेज़ सुपरकंप्यूटर लगाया गया है जिसे प्रत्यूष कहा जाता है। इसकी गति 4.0 पेटाफ्लॉप्स है।

नेशनल सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्टिंग में मिहिर नामक सुपरकंप्यूटर लगाया गया है, जिसकी गति 2.8 पेटाफ्लॉप्स है।

नई प्रौद्योगिकी का विकास

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आधुनिक ऑटोमोबाइल में नवाचार के संदर्भ में कर्षण नियंत्रण प्रणाली (टीसीएस) के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: 1) टीसीएस को संचालित सड़क पहियों (Driven Road Wheels) के कर्षण के नुकसान को रोकने के लिये डिज़ाइन किया गया है। 2) टीसीएस इंजन से पिछले पहिये को मिलने वाली पॉवर डिलीवरी को नियंत्रित करता है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? ANS-1 और 2 दोनों सही है। आधुनिक ऑटोमोबाइल में नवाचार एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम को पहली बार 1988 में पेश किया गया था, इसे अक्सर मोटरसाइकिल में सबसे अनिवार्य सुविधाओं में से एक माना जाता है। वाहन की गति के संबंध में लगाए गए ब्रेक फोर्स को विनियमित करते हुए, जिस पर ब्रेक कार्य कर रहा है, यह “प्रेशर मॉड्यूलेशन” के सिद्धांत पर काम करता है। सेंसर की मदद से यह बहुत तीव्र गति की आवृत्ति से इन दो गतियों पर स्वतंत्र रूप से नज़र रखता है। अतः कथन 1 गलत है। इसके बाद यह एक्चुएटर, रिले और बाईपास वाल्व का उपयोग करके कैलिपर में ब्रेक पिस्टन तक जाने वाले ब्रेक फ्लूइड के दबाव को व्यवस्थित करता है। हालाँकि सैद्धांतिक रूप से एबीएस हर परिस्थिति के तहत पहिये को लॉक होने से रोकने में सफल होना चाहिये, लेकिन असल में यह सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये अधिकतम ब्रेकिंग दक्षता प्राप्त करने हेतु कुछ हद तक पहिये को फिसलने देता है।

जीन एडिटिंग (CRISPR Cas-9)

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  • वर्ष 2012 में विकसित इस तकनीक का उपयोग किसी जीव के जीनों में परिवर्तन करने या उसके आनुवंशिक गठन में फेरबदल करने में किया जा सकता है।
  • इसके माध्यम से संपूर्ण आनुवंशिक कोड में से लक्षित हिस्सों (विशिष्ट हिस्सों) या विशेष स्थान पर DNA की एडिटिंग की जा सकती है।
  • यह तकनीक आनुवंशिक सूचना धारण करने वाले DNA के सिरा (Strands) या कुंडलित धागे को हटाने और चिपकाने (Cut and Paste) की क्रियाविधि की भाँति कार्य करती है।
  • यह तकनीक प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
  • DNA सिरा के जिस विशिष्ट स्थान पर आनुवंशिक कोड को बदलने या एडिट करने की आवश्यकता होती है, सबसे पहले उसकी पहचान की जाती है।
  • इसके पश्चात् CAS-9 के प्रयोग से (CAS-9 कैंची की तरह कार्य करता है) उस विशिष्ट हिस्से को हटाया जाता है।
  • DNA सिरा के जिस विशिष्ट भाग को काटा या हटाया जाता है उसमें प्राकृतिक रूप से पुनर्निर्माण, मरम्मत, या बनने की प्रवृति होती है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा स्वत: मरम्मत या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में ही हस्तक्षेप किया जाता है और आनुवंशिक कोड में वांछित अनुक्रम या परिवर्तन की क्रिया पूरी की जाती है, जो अंततः टूटे हुए DNA सिरा पर स्थापित हो जाता है।
28 फरवरी राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
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28 फरवरी, 1928 को देश भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज के उपलक्ष्य राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसमें देश भर के वैज्ञानिक संगठन और संस्थान शामिल हुए। इस वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान दिवस की थीम है: साइंस फॉर द पीपल, एंड पीपल फॉर द साइंस । इस अवसर पर वर्ष 2016, 2017 और 2018 के लिये शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार भी प्रदान किये गए। पृष्ठभूमि

28 फरवरी, 1928 को देश के प्रसिद्द भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकट रमन ने ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी जिसके लिये वर्ष 1930 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी के उपलक्ष्य में 28 फरवरी, 1986 से प्रत्येक वर्ष इस दिन को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1954 में भौतिकी के क्षेत्र में योगदान के लिये सीवी रमन को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। रमन प्रभाव (Raman Effect)

रमन प्रभाव के अनुसार, प्रकाश की प्रकृति और स्वभाव में तब परिवर्तन होता है जब वह किसी पारदर्शी माध्यम से निकलता है। यह माध्यम ठोस, द्रव और गैस कुछ भी हो सकता है।

अनुप्रयोग

यह एक अद्भुत प्रभाव है, इसकी खोज के एक दशक बाद ही 2000 रासायनिक यौगिकों की आंतरिक संरचना का पता लगाया गया। इसके पश्चात् ही क्रिस्टल की आंतरिक रचना का भी पता लगाया गया। फोटोन की ऊर्जा या प्रकाश की प्रकृति में होने वाले अतिसूक्ष्म परिवर्तनों से माध्यम की आंतरिक अणु संरचना का पता लगाया जा सकता है। रमन प्रभाव रासायनिक यौगिकों की आंतरिक संरचना समझने के लिये भी महत्वपूर्ण है। प्रत्येक रासायनिक पदार्थ का अपना एक विशिष्ट रमन स्पेक्ट्रम होता है और किसी पदार्थ के रमन स्पेक्ट्रम को देखकर उन पदार्थों की पहचान की जा सकती है। इस तरह रमन स्पेक्ट्रम पदार्थों को पहचानने और उनकी आतंरिक परमाणु संयोजन का ज्ञान प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण साधन भी है।

  • CSIR अपने स्थपाना दिवस के अवसर पर प्रत्येक वर्ष 45 वर्ष से कम आयु के कई वैज्ञानिकों शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार प्रदान करता है।