सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/संरक्षण

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वन्यजीव संरक्षण[सम्पादन]

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी एवं वन्य जीवन तथा उनके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया। इस अधिनियम में जनवरी 2003 में संशोधन किया गया तथा इस कानून के तहत अपराधों के लिये दी जाने वाली सज़ा और ज़ुर्माने को पहले की तुलना में अधिक कठोर बना दिया गया। इसका उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीवों तथा पर्यावरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है। इसमें कुल छह अनुसूचियाँ हैं:

  • अनसूची-1:-इसमें शामिल 43 वन्यजीव में सूअर से लेकर कई तरह के हिरण,बंदर,भालू,चिंकारा,तेंदुआ,लंगूर,भेड़िया,लोमड़ी,डॉलफिन, कई तरह की जंगली बिल्लियाँ, बारहसिंगा, बड़ी गिलहरी, पेंगोलिन, गैंडा, ऊदबिलाव, रीछ और हिमालय पर पाए जाने वाले अनेक जानवर शामिल हैं। इसके अलावा इसमें कई जलीय जंतु और सरीसृप भी शामिल हैं। इस अनुसूची के चार भाग हैं और इसमें शामिल जीवों का शिकार करने पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 तथा धारा 62 के तहत दंड मिल सकता है।
  • अनुसूची-2 इसमें शामिल वन्य जंतुओं के शिकार पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 और धारा 62 के तहत सज़ा का प्रावधान है। इस सूची में कई तरह के बंदर, लंगूर, साही, जंगली कुत्ता, गिरगिट आदि शामिल हैं। इनके अलावा अन्य कई तरह के जानवर भी इसमें शामिल हैं।

इन दोनों अनुसूचियों के तहत आने वाले जानवरों का शिकार करने पर कम-से-कम तीन साल और अधिकतम सात साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है। कम-से-कम ज़ुर्माना 10 हज़ार रुपए और अधिकतम ज़ुर्माना 25 लाख रुपए है। दूसरी बार अपराध करने पर भी इतनी ही सज़ा का प्रावधान है,लेकिन न्यूनतम ज़ुर्माना 25 हज़ार रुपए है।

  • अनुसूची-3 और अनुसूची-4:

इसके तहत वन्य जानवरों को संरक्षण प्रदान किया जाता है लेकिन इस सूची में आने वाले जानवरों और पक्षियों के शिकार पर दंड बहुत कम है।

  • अनुसूची-5:-शिकार करने योग्य जनवरों को रखा जाता है।
  • अनुसूची-6:-इसमें दुर्लभ पौधों और पेड़ों की खेती और रोपण पर रोक है।

वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB)[सम्पादन]

यह देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिये पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन भारत सरकार द्वारा स्थापित एक सांविधिक बहु अनुशासनिक (Multi-Disciplinary) इकाई है। मुख्यालय नई दिल्ली में तथा नई दिल्ली,कोलकाता,मुंबई,चेन्नई एवं जबलपुर में पाँच क्षेत्रीय कार्यालय; गुवाहाटी, अमृतसर और कोचीन में तीन उप क्षेत्रीय कार्यालय और रामनाथपुरम, गोरखपुर, मोतिहारी, नाथूला एवं मोरेह में पाँच सीमा ईकाइयाँ अवस्थित हैं| वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (Wild Life Protection Act), 1972 की धारा 38 (Z) के तहत, इसे निम्नलिखित कार्यों के लिये अधिकृत किया गया है:-

  • अपराधियों को गिरफ्तार करने हेतु संगठित वन्यजीव अपराध गतिविधियों से संबंधित सूचना/जानकारी इक्कठा करने, उसका विश्लेषण करने व उसे राज्यों व अन्य प्रवर्तन एजेंसियों को प्रेषित करने के लिये।
  • एक केंद्रीकृत वन्यजीव अपराध डेटा बैंक स्थापित करने के लिये।
  • अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के संबंध में विभिन्न एजेंसियों द्वारा समन्वित कार्रवाई करवाने के लिये।
  • संबंधित विदेशी व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को वन्यजीव अपराध नियंत्रण में समन्वय व सामूहिक कार्यवाही हेतु सहायता प्रदान करने के लिये।
  • वन्यजीव अपराधों में वैज्ञानिक और पेशेवर जाँच के लिये वन्यजीव अपराध प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता निर्माण एवं वन्यजीव अपराधों से संबंधित मुकदमों में सफलता सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों की सहायता करने के लिये।
  • भारत सरकार को वन्यजीव अपराध संबंधित मुद्दों, जिनका राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव हो, पर प्रासंगिक नीति व कानूनों के संदर्भ में सलाह देने के लिये।
  • यह कस्टम अधिकारियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wild Life Protection Act), CITES और आयात-निर्यात नीति (EXIM Policy) के प्रावधानों के अनुसार वनस्पति व जीवो की खेप के निरीक्षण में भी सहायता व सलाह प्रदान करता है।

जल संरक्षण[सम्पादन]

औद्योगिक प्रदूषक- नदियों में खतरनाक औद्योगिक तत्त्वों जैसे- लेड, फ्लोराइड, फेकल कॉलीफॉर्म (Faecal Coliform) तथा अन्य अत्यधिक खतरनाक निलंबित ठोस पदार्थों का स्तर बहुत अधिक था,परंतु लॉकडाउन के चलते नदियों में प्रदूषण के स्तर में काफी गिरावट आई है।

गुजरात सरकार के जल संरक्षण कार्यक्रम‘सुजलाम सुफलाम जलसंचय अभियान’ के दूसरे संस्करण का शुभारंभ किया गया। इसका उद्देश्य मानसून से पहले रिवरफ्रंट की सफाई करना,नदियों की तलहटी से गाद निकाल कर उनकी गहराई बढ़ाना, नहरों की सफाई तथा सुंदरीकरण जैसे कार्य करना है जिससे वर्षा जल भंडारण क्षमता को बढ़ाया जा सके।

इस योजना के पहले संस्करण के दौरान 13,000 झीलों, चेक-डैम और जलाशयों को गहरा करके राज्य की जल भंडारण क्षमता को 11,000 लाख क्यूबिक फीट तक बढ़ाने में कामयाबी हासिल की गई थी। सुजलाम सुफलाम जलसंचय अभियान की शुरुआत 1 मई, 2018 को की गई थी।

  • सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल के सतत् प्रबंधन हेतु अटल भूजल योजना (ABHY) 6000 करोड़ रुपए की केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इस योजना में विश्व बैंक और केंद्र सरकार की हिस्सेदारी का अनुपात 50:50 की है।

हाल ही में विश्व बैंक ने अटल भुजल योजना (ABHY) को मंज़ूरी दी है।

  • जल अधिनियम 1974(प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण)और पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986,जल उपकर अधिनियम1977।
  • हरियाली केंद्र सरकार द्वारा प्रवर्तित जल संभर विकास परियोजना है जिसका उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने सिंचाई मत्स्य पालन और वन रोपण के लिए जल संरक्षण के लिए योग्य बनाना है परियोजना लोगों के सहयोग से ग्राम पंचायतों द्वारा निष्पादित की जा रही है।
  • नीरू-मीरू(जल और आप) कार्यक्रम (आंध्र प्रदेश में)और अरवारी पानी संसद (अलवर राजस्थान में)

[१] राजस्थान में वर्षा जल संग्रहण ढांचे जिन्हें कुंड अथवा टाँका(एक ढका हुआ भूमिगत टंकी)के नाम से जानी जाती है जिनका निर्माण के पास या घर में संग्रहित वर्षा जल को एकत्र करने के लिए किया जाता है।

भारतीय राष्ट्रीय जल नीति,2002 की मुख्य विशेषताएँ यह जल आवंटन प्राथमिकताएँ विस्तृत रूप से निम्नलिखित क्रम में निर्दिष्ट की गई है:पेयजल,सिंचाई,जलशक्ति,नौकायान,औद्योगिक और अन्य उपयोग। इस नीति में जल व्यवस्था के लिए प्रगतिशील दृष्टिकोण निर्धारित किए गए हैं। इस प्रकार हैं और बहुत देसी परियोजना में पीने काजल घटक में सम्मिलित करना चाहिए जहां पर जल के स्रोत का कोई भी विकल्प नहीं है पेयजल सभी मानव जाति और प्राणियों को उपलब्ध कराना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। हम जल के शोषण को सीमित और नियमित करने के लिए उपाय करने चाहिए और हम दोनों की गुणवत्ता के लिए नियमित जांच होनी चाहिए जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए एक कार्यक्रम

आर्द्रभूमि संरक्षण[सम्पादन]

  • सरकार ने वर्ष 1986 के दौरान संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से राष्ट्रीय वेटलैंड संरक्षण कार्यक्रम शुरू किया था।
  1. इस कार्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा 115 वेटलैंड्स की पहचान की गई थी, जिनके संरक्षण और प्रबंधन हेतु पहल करने की ज़रूरत है।
  2. इस योजना का उद्देश्य देश में वेटलैंड्स के संरक्षण और उऩका बुद्धिमतापूर्ण उपयोग करना है, ताकि उनमें आ रही गिरावट को रोका जा सके।
  • आर्द्रभूमि (संरक्षण एवं प्रबंधन) नियमावली, 2017 2010 में लागू दिशा-निर्देशों का स्थान लेगी।

नए नियमों में व्याप्त विसंगतियाँ ♦ 2010 के नियमों में वेटलैंड्स से संबंधित कुछ मानदंडों को स्पष्ट किया गया था, जैसे कि प्राकृतिक सौंदर्य, पारिस्थितिक संवेदनशीलता, आनुवंशिक विविधता, ऐतिहासिक मूल्य आदि। लेकिन नए नियमों में यानी 2017 के नियमों में इन बातों का उल्लेख नहीं किया गया है। ♦ वेटलैंड्स में जारी गतिविधियों पर लगने वाला प्रतिबंध ‘बुद्धिमतापूर्ण उपयोग’ के सिद्धांत के अनुसार किया जाएगा जो कि राज्य के आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

  1. नए नियमों के तहत आर्द्रभूमि संरक्षण को हानि पहुँचाने वाली गतिविधि से बचाव के लिये ऐसे दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार (जो कि प्रकृति में बाध्यकारी हो) किसी भी प्राधिकरण को नहीं दिया गया है।
  2. अतः स्पष्ट है कि नए नियम वेटलैंड्स सरंक्षण के लिये नाकाफी साबित होंगे।

नए नियमों की कुछ अच्छी बातें:

  1. नए नियमों में वेटलैंड्स प्रबंधन के प्रति विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाया गया है, ताकि क्षेत्रीय विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके और राज्य अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित कर सकें।
  2. ज़्यादातर निर्णय राज्य के आर्द्रभूमि प्राधिकरण द्वारा लिये जाएंगे, जिसकी निगरानी राष्ट्रीय वेटलैंड समिति द्वारा की जाएगी। इस प्रकार की व्यवस्था सहकारी संघवाद की भावना को मज़बूत करती है।

आगे की राह दरअसल, देश में मौजूद 26 वेटलैंड्स को ही संरक्षित किया गया है, लेकिन ऐसे हज़ारों वेटलैंड्स हैं जो जैविक और आर्थिक रुप से महत्त्वपूर्ण तो हैं लेकिन उनकी कानूनी स्थिति स्पष्ट नहीं है। हालाँकि, नए नियमों में एक स्पष्ट परिभाषा देने का प्रयास किया गया है। वेटलैंड्स योजना प्रबंध और निगरानी संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क के अंतर्गत आते है। हालाँकि अनेक कानून वेटलैंड को संरक्षित करते हैं, लेकिन इनकी पारिस्थितिकी के लिये विशेष रूप से कोई कानून नहीं है।

प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral reefs)[सम्पादन]

  • यह समुद्र का मात्र 0.1% क्षेत्र अधिग्रहित कर 25% समुद्री जीवों को आवास प्रदान करता है।
  • लाखों लोग आवश्यक पोषण,आजीविका,खतरनाक तूफानों से सुरक्षा और महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर के लिए प्रवाल भित्तियों पर निर्भर करते हैं।[२]

दाँये

  • समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं।
  • प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) होते हैं। इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से रंगीन शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) पाए जाते हैं।
  • प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्णस्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है।
  • प्रायः बैरियर रीफ (प्रवाल-रोधिकाएँ) उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय समुद्रों में मिलती हैं, जहाँ तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस रहता है। ये शैल-भित्तियाँ समुद्र तट से थोड़ी दूर हटकर पाई जाती हैं, जिससे इनके बीच छिछले लैगून बन जाते हैं।
  • प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते हैं, क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है।
  • प्रवालों के विकास के लिये स्वच्छ एवं अवसादरहित जल आवश्यक है, क्योंकि अवसादों के कारण प्रवालों का मुख बंद हो जाता है और वे मर जाते हैं।
  • प्रवाल भितियों का निर्माण कोरल पॉलिप्स नामक जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित अस्थि-पंजरों के अलावा, कार्बोनेट तलछट से भी होता है जो इन जीवों के ऊपर हज़ारों वर्षों से जमा हो रही है।
  • ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड के उत्तर-पूर्वी तट में मरीन पार्क के समानांतर 1200 मील तक फैली हुई,ग्रेट बैरियर रीफ दुनिया की सबसे बड़ी और प्रमुख अवरोधक प्रवाल भित्ति है। इसकी चौड़ाई 10 मील से 90 मील तक है। महाद्वीपीय तट से इसकी दूरी 10 से 150 मील दूर तक है।
  • भारतीय समुद्री क्षेत्र में मन्नार की खाड़ी, लक्षद्वीप और अंडमान निकोबार आदि द्वीप भी प्रवालों से निर्मित हैं। ये प्रवाल लाल सागर और फारस की खाड़ी में भी पाए जाते हैं।
  • यह जीवन की एक विस्तृत विविधता का समर्थन करती है, वर्ष 1981 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में चुना गया। ग्रेट बैरियर रीफ लंबे समय से प्रदूषण, कोरल ब्लीचिंग और क्राउन ऑफ थोर्न नामक स्टार फिश के हमलों के कारण क्षतिग्रस्त हो रही है।

ओज़ोन परत संरक्षण[सम्पादन]

ओज़ोन अपक्षय का अर्थ समतापमंडल में ओज़ोन की मात्रा में कमीं से कमी है। ओज़ोन अपक्षय की समस्या का कारण समतापमंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन के ऊँचे स्तर हैं। ओज़ोन अपक्षय पदार्थों के मूल यौगिकों हैं- क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (CFC) जिनका प्रयोग रेफ्रिज़रेटर और एयरकंडीशन को ठंडा रखने वाले पदार्थ या एरासोल प्रोपेलेन्ट्स में तथा अग्निशामकों में प्रयुक्त किए जाने वाले ब्रोमोफ्लोरोकार्बन्स में होता है। ओज़ोन स्तर के अपक्षय के परिणामस्वरूप पराबैगनीं विकिरण पृथ्वी की ओर आते हैं और जीवों को क्षति पहुँचाते हैं। पराबैगनीं विकिरण विकारण से मनुष्यों में त्वचा कैंसर होता है, यह पादपप्लवक (फीटोप्लैंकटन) के उत्पादन को कम कर जलीय जीवों को प्रभावित करता है। ओज़ोन परत के क्षरण के लिये निम्न रसायन उत्तरदायी हैं- क्लोरोफ्लोरो कार्बन कार्बन टेट्राक्लोराइड मिथाइल क्लोरोफॉर्म ब्रोमोफ्लोरो कार्बन (ब्रोमाइन यौगिक जिन्हें हैलोन कहा जाता है।)

मृदा अपरदन[सम्पादन]

भारत में भूमि के अपक्षय के लिए उत्तरदायी कुछ प्रमुख कारण हैं-

  1. वन विनाश के फलस्वरूप वनस्पति की हानि
  2. अधारणीय जलाऊ लकड़ी और चारे का निष्कर्षण
  3. खेती-बारी
  4. वन-भूमि का अतिक्रमण
  5. वनों में आग और अत्यधिक चराई
  6. भू-संरक्षण हेतु समुचित उपायों को न अपनाया जाना
  7. अनुचित फसल-चक्र
  8. कृषि-रसायन का अनुचित प्रयोग जैसे- रासायनिक खाद और कीटनाशक
  9. सिंचाई व्यवस्था का नियोजन तथा अविवेवकपूर्ण प्रबंधन
  10. भूमि जल का पुनः पूर्ण क्षमता से अधिक निष्कर्षण
  11. संसाधनों की निर्बाध उपलब्धता
  12. कृषि पर निर्भर लोगों की दरिद्रता।
  1. भारत लोग और अर्थव्यवस्था,12वीं NCERT,पृ-66-67
  2. https://wwf.panda.org/our_work/oceans/coasts/coral_reefs/