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सिविल सेवा मुख्य परीक्षा विषयवार अध्ययन/सांविधिक विनियामक और अर्ध न्यायिक निकाय

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सांविधिक निकाय

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  • CVC को सरकार द्वारा फरवरी, 1964 में के. संथानम की अध्यक्षता वाली भ्रष्टाचार निरोधक समिति (Committee on Prevention of Corruption) की सिफारिशों पर स्थापित किया गया था। संसद द्वारा अधिनियमित केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 द्वारा इसे सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया।

CVC किसी भी मंत्रालय/विभाग के अधीन नहीं है। यह एक स्वतंत्र निकाय है जो केवल संसद के प्रति उत्तरदायी है।

CVC भ्रष्टाचार या कार्यालय के दुरुपयोग से संबंधित शिकायतें सुनता है और इस दिशा में उपयुक्त कार्रवाई की सिफारिश करता है। निम्नलिखित संस्थाएँ, निकाय या व्यक्ति CVC के पास अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं: केंद्र सरकार लोकपाल सूचना प्रदाता/मुखबिर/सचेतक (Whistle Blower) सूचना प्रदाता/मुखबिर/सचेतक किसी कंपनी या सरकारी एजेंसी का कर्मचारी या कोई बाहरी व्यक्ति (जैसे मीडिया या पुलिस सेवा से संबद्ध या कोई उच्च सरकारी अधिकारी) हो सकता है जो धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार आदि रूपों में किसी भ्रष्ट कृत्य को सार्वजनिक करता है या इसकी सूचना किसी उच्च प्राधिकारी/प्राधिकरण को देता है। केंद्रीय सतर्कता आयोग कोई अन्वेषण एजेंसी नहीं है। यह या तो CBI के माध्यम से या सरकारी कार्यालयों में मुख्य सतर्कता अधिकारियों (Chief Vigilance Officers- CVO) के माध्यम से मामले की जाँच/अन्वेषण कराता है।

यह लोकसेवकों की कुछ श्रेणियों द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988 के तहत किये गए भ्रष्टाचारों की जाँच कराने की शक्ति रखता है। इसकी वार्षिक रिपोर्ट आयोग द्वारा किये गए कार्यों का विवरण देती है और उन प्रणालीगत विफलताओं को इंगित करती है जिनके परिणामस्वरूप सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार होता है। रिपोर्ट में सुधार और निवारक उपाय (Improvements and Preventive Measures) भी सुझाए जाते हैं।

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 (Competition Act, 2002) के प्रवर्तन के लिये उत्तरदायी है। मार्च 2009 में इसे विधिवत रूप से गठित किया गया था।

राघवन समिति की अनुशंसा पर एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापार व्यवहार. अधिनियम, 1969 (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act- MRTP Act) को निरस्त कर इसके स्थान पर प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 लाया गया। भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का उद्देश्य निम्नलिखित के माध्यम से देश में एक सुदृढ़ प्रतिस्पर्द्धी वातावरण तैयार करना है: उपभोक्ता, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय संलग्नता के माध्यम से। उच्च क्षमता स्तर के साथ एक ज्ञान प्रधान संगठन के रूप में। प्रवर्तन में पेशेवर कुशलता, पारदर्शिता, संकल्प और ज्ञान के माध्यम से।

प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम वर्ष 2002 में पारित किया गया था और प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इसे संशोधित किया गया। यह आधुनिक प्रतिस्पर्द्धा विधानों के दर्शन का अनुसरण करता है।

यह अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करारों और उद्यमों द्वारा अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध करता है तथा समुच्चयों [अर्जन, नियंत्रण की प्राप्ति और 'विलय एवं अधिग्रहण' (M&A)] का विनियमन करता है, क्योंकि इनसे भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या इसकी संभावना बनती है। संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (Competition Appellate Tribunal- COMPAT) की स्थापना की गई। वर्ष 2017 में सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया।

 प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग वर्तमान में एक अध्यक्ष और दो सदस्यों के साथ कार्यरत है। आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय (Quasi-Judicial Body) है जो सांविधिक प्राधिकरणों को परामर्श देता है तथा अन्य मामलों को भी संबोधित करता है। इसका अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होते हैं।

CCI के प्रमुख निर्णय

जून 2012 में CCI ने व्यवसायी समूहन या कार्टेलाइज़ेशन (Cartelisation) के लिये 11 सीमेंट कंपनियों पर 63.7 बिलियन रुपये (910 मिलियन डॉलर) का अर्थदंड लगाया। CCI ने माना कि इन सीमेंट कंपनियों ने मूल्य निर्धारण एवं बाज़ार हिस्सेदारी पर नियंत्रण के लिये नियमित बैठकें की और आपूर्ति को बाधित रखा जिससे उन्हें अवैध लाभ प्राप्त हुआ। वर्ष 2013 में CCI ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) पर अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग के लिये 522 मिलियन रुपये (7.6 मिलियन डॉलर) का जुर्माना लगाया। CCI ने पाया कि IPL टीम के स्वामित्व समझौते अनुचित एवं भेदभावपूर्ण थे और आईपीएल फ्रेंचाइज़ी समझौतों की शर्तें BCCI के पक्ष में अधिक थीं साथ ही अनुबंध के संदर्भ में फ्रेंचाइजी के पास कोई शक्ति नहीं थी। CCI ने सूचना और दस्तावेजों की माँग करते हुए महानिदेशक (DG) द्वारा जारी निर्देशों का अनुपालन नहीं करने के लिये वर्ष 2014 में गूगल (Google) पर 10 मिलियन रुपये का जुर्माना लगाया। वर्ष 2015 में CCI ने तीन एयरलाइंसों पर 258 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने एयर कार्गो पर फ्यूल सरचार्ज निर्धारित करने में तीनों एयरलाइनों के कार्टेलाइज़ेशन के लिये उन्हें दंडित किया। रिलायंस जियो द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेलुलर के विरुद्ध कार्टेलाइज़ेशन की शिकायत पर CCI ने भारतीय सेलुलर ऑपरेटर संघ (Cellular Operators Association of India- COAI) के कार्यकलाप की जाँच का आदेश दिया था। एंड्रॉइड के मामले में अपनी प्रधान स्थिति का दुरुपयोग कर अपने बाज़ार प्रतिद्वंद्वियों को प्रतिस्पर्द्धा से वंचित करने के लिये Google के विरुद्ध CCI ने एक स्पर्द्धारोधी (Antitrust) जाँच का आदेश दिया। यह जाँच यूरोपीय संघ में एक ऐसे ही मामले के विश्लेषण के आधार पर आदेशित की गई थी जहाँ Google को दोषी पाया गया था और जुर्माना लगाया गया था। वर्ष 2019 में CCI ने हैंडसेट निर्माताओं को एक पत्र जारी कर Google के साथ उनके समझौते के नियमों और शर्तों का विवरण माँगा। ऐसा यह पता लगाने के लिये किया गया कि वर्ष 2011 से 2019 तक की अवधि में Google ने कंपनी के ऐप्स का उपयोग करने के लिये उन पर कोई नियंत्रण आरोपित किया था या नहीं।


  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग(National Human Rights Commission-NHRC) एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम,1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को की गई थी।

NHRC एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष सहित 7 सदस्य होते हैं। यह भारतीय संविधान द्वारा दिये गए मानवाधिकारों जैसे - जीवन का अधिकार,स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है और उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है। * केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxation) वर्ष 1963 में ‘केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963’ (Central Board of Revenue Act, 1963) के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन दो संस्थाओं का गठन किया गया था, जो निम्नलिखित हैं- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxation)। केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Excise and Customs)। ये दोनों ही संस्थाएँ ‘सांविधिक निकाय’ (Statutory Body) हैं। CBDT प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों का प्रशासन करता है। CBEC भारत में सीमा शुल्क (Custom Duty), केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) तथा नारकोटिक्स (Narcotics) के प्रशासन के लिये उत्तरदायी नोडल एजेंसी है।

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण’ (Food Safety and Standards Authority of India- (FSSAI) की स्थापना खाद्य संरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत की गई है जो उन विभिन्न अधिनियमों एवं आदेशों को समेकित करता है जिसने अब तक विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों में खाद्य संबंधी विषयों का निपटान किया है। अतः कथन 1 सही है। FSSAI की स्थापना खाद्य वस्तुओं के लिये विज्ञान आधारित मानकों का निर्धारण करने और मानव उपभोग के लिये सुरक्षित और पौष्टिक आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु उनके विनिर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री तथा आयात को विनियमित करने के लिये की गई है। FSSAI के कार्यान्वयन के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय प्रशासनिक मंत्रालय है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड Central Board of Direct Taxation वर्ष 1963 में ‘केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963’ (Central Board of Revenue Act, 1963) के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन दो संस्थाओं का गठन किया गया था, जो निम्नलिखित हैं- 1. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxation)

2. केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Excise and Customs)

ये दोनों ही संस्थाएँ ‘सांविधिक निकाय’ (Statutory Body) हैं। इनमें से CBDT. प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों का प्रशासन करता है। वहीं CBEC भारत में सीमा शुल्क (custom duty), केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) तथा नारकोटिक्स (Narcotics) के प्रशासन के लिये उत्तरदायी नोडल एजेंसी है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MOEFCC) के अंतर्गत स्थापित किया गया है। इसका कार्य अनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करना है। जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के लिये स्थापित भारत का सर्वोच्च नियामक है।

चाय बोर्ड वाणिज्य मंत्रालय (Ministry of Commerce) के अधीन एक सांविधिक निकाय है। बोर्ड के 31 सदस्यों में संसद सदस्य, चाय उत्पादक, चाय विक्रेता, चाय ब्रोकर, उपभोक्ता व मुख्य चाय उत्पादक राज्यों से सरकार के प्रतिनिधि एवं व्यावसायिक संघ के सदस्य (अध्यक्ष सहित) शामिल होते हैं। प्रत्येक तीन साल में बोर्ड का पुनर्गठन किया जाता है। कार्य चाय के विपणन, उत्पादन के लिये तकनीकी व आर्थिक सहायता का प्रस्तुतीकरण करना। निर्यात संवर्द्धन करना। चाय की गुणवत्ता में सुधार व चाय उत्पादन के आवर्द्धन के लिये अनुसंधान व विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना। श्रमिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से चाय बागान श्रमिकों और उनके वार्डों तक सीमित तरीके से आर्थिक सहायता पहुँचाना। लघु उत्पादकों के असंगठित क्षेत्र को आर्थिक व तकनीकी सहायता देना व उन्हें प्रेरित करना। सांख्यिकी डेटा व प्रकाशन का संग्रह व रख-रखाव करना।

विनियामक

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भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), संस्कृति मंत्रालय के तहत पुरातात्विक शोध और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण राष्‍ट्र की सांस्‍कृतिक विरासतों के पुरातत्त्वीय अनुसंधान तथा संरक्षण के लिये एक प्रमुख संगठन है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्‍ट्रीय महत्त्व के प्राचीन स्‍मारकों तथा पुरातत्त्वीय स्‍थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है । इसके अतिरिक्‍त प्राचीन संस्‍मारक तथा पुरातत्त्वीय स्‍थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के प्रावधानों के अनुसार, यह देश में सभी पुरातत्त्वीय गतिविधियों को विनियमित करता है। यह पुरावशेष तथा बहुमूल्‍य कलाकृति अधिनियम, 1972 को भी विनियमित करता है। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण संस्‍कृति मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।

अर्ध न्यायिक निकाय

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राष्ट्रीय हरित अधिकरण पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन तथा व्यक्तियों एवं संपत्ति के नुकसान के लिये सहायता और क्षतिपूर्ति देने या उससे संबंधित या उससे जुड़े मामलों सहित, पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्रगामी निपटारे के लिये राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के अंतर्गत वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना की गई।इसका उद्देश्य पर्यावरण के मामलों को द्रुतगति से निपटाना तथा उच्च न्यायालयों के मुकदमों के भार को कम करने में मदद करना है। यह एक विशिष्ट निकाय है, जो पर्यावरण संबंधी विवादों एवं बहु-अनुशासनिक मामलों को सुविज्ञता से संचालित करने के लिये सभी आवश्यक तंत्रों से सुसज्जित है। एन.जी.टी., सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया द्वारा बाध्य नहीं है, लेकिन इसे नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता है। अधिकरण आवेदनों या अपीलों के प्राप्त होने के 6 महीने के अंदर उनके निपटान का प्रयास करता है। एन.जी.टी. की संरचना एन.जी.टी. अधिनियम की धारा 4 में प्रावधान है कि एन.जी.टी. में एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, कम-से-कम 10 न्यायिक सदस्य और 10 विशेषज्ञ सदस्य होने चाहिये, लेकिन यह संख्या 20 पूर्णकालिक न्यायिक एवं विशेषज्ञ सदस्यों से अधिक नहीं होनी चाहिये अधिकरण की प्रमुख पीठ नई दिल्ली में स्थित है, जबकि भोपाल, पुणे, कोलकाता और चेन्नई में इसकी क्षेत्रीय पीठें हैं। इसकी सर्किट स्तरीय पीठें शिमला, शिलॉन्ग, जोधपुर और कोच्चि में स्थित हैं।
वर्ष 2018 की बाघ जनगणना के तहत जानकारियों को संग्रहीत करने के लिये पहली बार "MSTrIPES" नामक एक मोबाइल एप का उपयोग किया जा रहा है। वर्ष 2006 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों में संशोधन कर बाघ संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना की गई। प्राधिकरण की पहली बैठक नवंबर 2006 में हुई थी। भारत सरकार ने वर्ष 1973 में राष्ट्रीय पशु बाघ को संरक्षित करने के लिये 'प्रोजेक्ट टाइगर' लॉन्च किया। 'प्रोजेक्ट टाइगर' पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो नामित बाघ राज्यों में बाघ संरक्षण के लिये केंद्रीय सहायता प्रदान करती है। ट्रैफिक-इंडिया के सहयोग से एक ऑनलाइन बाघ अपराध डेटाबेस की शुरुआत की गई है और बाघ आरक्षित क्षेत्रों हेतु सुरक्षा योजना बनाने के लिये दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।


राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण(NCLT) कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 408 के तहत 1 जून, 2016 को गठित किया गया।कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने इनके लिये अधिसूचना जारी की थी।NCLT कंपनी अधिनियम 2013 या किसी अन्य कानून के माध्यम से उसे दी गईं शक्तियों के तहत कार्य करेगा इसका अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्च न्यायालय का जज हो या पाँच वर्षों तक इस पद पर रह चुका हो।


20 फरवरी,1997 में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम,1997 की धारा 3 के तहत स्थापित (TRAI) एक वैधानिक संस्था है। इसमें एक अध्यक्ष होता है एवं अधिकतम दो पूर्णकालिक एवं दो अंशकालिक सदस्य होते हैं।(1+2+2) यह भारतमें दूरसंचार सेवाएँ उपलब्ध करवानेवाली कंपनियों की नियामक संस्था है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।


भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी)

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम,1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल,1992 को गठित। मुख्यालय मुंबई में।
  • इसकी प्रस्तावना (Preamble) के अनुसार इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
  • प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
  • प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।


बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के अंतर्गत गठित भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) वैधानिक निकाय है। यह एक स्वायत्त संस्था है।यह एक 10 सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक और चार अंशकालिक सदस्य होते हैं। इसका कार्य भारत में बीमा और बीमा उद्योगों को विनियमित करना तथा उन्हें बढ़ावा देना है। इसका मुख्यालय हैदराबाद में है।


केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन(CDSCO)

  1. स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण है।मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  2. देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय,चार सब-ज़ोनल कार्यालय,तेरह पोर्ट कार्यालय और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  3. विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  4. मिशन: दवाओं,सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा,प्रभावकारिता और गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा तय करना।
  5. औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम,1940 और नियम 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के अंतर्गत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, नैदानिक परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।


वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research CSIR) 1942 में स्थापित इस स्वायत्त संस्था का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में अपने अग्रणी अनुसंधान एवं विकास ज्ञानाधार के लिये ज्ञात एक समसामयिक अनुसंधान एवं विकास संगठन है। शिमागो इंस्टीट्यूशन्‍स रैंकिंग वर्ल्‍ड रिपोर्ट 2014 के अनुसार, विश्‍व भर के 4851 संस्‍थानों में CSIR का स्‍थान 84वाँ है और यह शीर्षस्‍थ 100 अंतर्राष्ट्रीय संस्‍थानों में अकेला भारतीय संगठन है। CSIR एशिया में 17वें और देश में पहले स्‍थान पर है।


राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (National Board for Wildlife-NBWL) यह वन्यजीव संबंधी सभी मामलों की समीक्षा के लिये और राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्यों एवं इसके आस-पास परियोजनाओं की मंज़ूरी हेतु एक सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है। यह बोर्ड एक सलाहकार निकाय है और केवल नीति निर्धारण पर सरकार को सलाह दे सकता है।


भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग

  • अर्थव्यवस्था में निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा के सृजन और इस संदर्भ में ‘सबको समान अवसर प्रदान’ करने के लिये संसद द्वारा 13 जनवरी, 2003 को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम,2002 को लागू किया गया था।
  • 14 अक्तूबर,2003 से केंद्र सरकार द्वारा भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग की स्थापना की गई थी। इसके बाद प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
  • 20 मई, 2009 को प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौते और प्रमुख स्थितियों के दुरुपयोग से संबंधित अधिनियम के प्रावधानों को अधिसूचित किया गया।
  • यह अधिनियम संपूर्ण भारत में लागू होता है।एक अध्यक्ष और छह सदस्यों के साथ कार्यरत।
  • आयोग के कार्य निम्नलिखित हैं:-
  1. व्यापार से संबंधित प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव करने वाले कारकों को रोकना।
  2. बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना।
  3. उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना।
  4. व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग

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'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम-1956' के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है। यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत आने वाली एक मुख्य संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ भी आवश्यक हो अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना तथा विकास के लिये योजनाएँ बनाना, उनका प्रचार-प्रसार करना तथा सुविधाएँ एवं सहायता प्रदान करना है।
1 मार्च, 1948 को स्थापित भारतीय खान ब्यूरो,प्रारंभ में यह एक सलाहकारी निकाय था। 1950 में इसके कार्यों में परिवर्तन कर इसे खान और खनिज संभावित क्षेत्रों के निरीक्षण का कार्य दे दिया गया।।वर्तमान में इसके 4 ज़ोन ऑफिस और 13 रीज़नल ऑफिस हैं। इसका प्रमुख कार्य डेटाबेस इकट्ठा करना और उसे व्यवस्थित करना, एक राष्ट्रीय खनिज सूचना भंडार के रूप में देश में अन्वेषण, पूर्वेक्षण, खानों और खनिजों संबंधी सभी जानकारियों को प्रकाशित और प्रसारित करने के लिये कदम उठाना है।

राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण

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(National Pharmaceutical Pricing Authority (NPPA)

  • भारत सरकार का एक संगठन जिसे थोक दवाओं और फॉर्मूलों की कीमतों को व्यवस्थित करने/संशोधित करने और दवा (मूल्य नियंत्रण)आदेश,1995 के तहत देश में दवाइयों की कीमतों और इनकी उपलब्धता को बनाए रखने के लिये स्थापित किया गया था।
  • जून 2019 में इसके द्वारा दवा (मूल्य नियंत्रण)आदेश,2013 के तहत अनुसूची एक में निहित आवश्यक दवाओं के अधिकतम मूल्य वाले प्रावधान को संशोधित किया गया है।
  • उन दवाओं के संदर्भ में जो कि कीमत नियंत्रण के अधीन नहीं हैं,निर्माताओं को अधिकतम खुदरा मूल्य 10% सालाना बढ़ाने की अनुमति दी गई है।

प्रमुख कार्य:-दवा(मूल्य नियंत्रण)आदेश के प्रावधानों को कार्यान्वित करना और उन्हें लागू करना।

  1. प्राधिकरण के निर्णय से उत्पन्न सभी कानूनी मामलों का निपटान करना।
  2. दवाओं की उपलब्धता पर नज़र रखना,दवाओं की कमी की स्थिति का अवलोकन करना तथा आवश्यक कदम उठाना। थोक दवाओं और फॉर्मूलों के उत्पादन, निर्यात और आयात,कंपनियों की बाज़ार में हिस्सेदारी, मुनाफे आदि के संबंध में आँकड़ों को एकत्रित करना/व्यवस्थित करना।
  3. दवाओं/फार्मास्यूटिकल्स के मूल्य निर्धारण के संबंध में संबंधित अध्ययनों को आयोजित करना।
  4. सरकार द्वारा निर्धारित नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य सदस्यों की भर्ती/नियुक्ति करना।
  5. दवा नीति में परिवर्तन/संशोधन पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
  6. नशीली दवाओं के मूल्य से संबंधित संसदीय मामलों में केंद्र सरकार को सहायता प्रदान करना।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

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हिल्टन यंग आयोग की सिफारिशों के आधार पर, RBI अधिनियम,1934 के तहत गठित की गई थी। RBI का मुख्यालय शुरू में कोलकाता में स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया। शुरुआत में RBI निजी स्वामित्व वाला बैंक था। अगस्त 1947 को देश को आज़ादी मिली और 1949 में आरबीआई का राष्ट्रीयकरण हुआ। राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है। देश के चार महानगरों- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में आरबीआई के स्थानीय बोर्ड हैं। RBI के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं: केंद्रीय बैंकिंग का कार्य। नोटों को जारी करने का एकाधिकार। करेंसी जारी करने के साथ उसका विनियमन। विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षक। विदेशी व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाज़ार का विकास करना एवं उसे बनाए रखना। मौद्रिक नीति तैयार करना, उसे लागू करवाना और उसकी निगरानी करना। विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना। सरकार का बैंकर अर्थात् यह केंद्र और राज्य सरकारों के लिये व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है। वाणिज्यिक बैंकों के लिये बैंकर और उनके लिये अंतिम ऋणदाता। अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखना। गैर-मौद्रिक कार्यों के तहत बैंकों को लाइसेंस देने के साथ बैंकों की निगरानी करना। बैंकिंग परिचालन के लिये मानदंड निर्धारित करना जिसके तहत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है। यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर काम करता है और भारत की सदस्यता का प्रतिनिधित्व करता है।