हमारा पर्यावरण/जल

विकिपुस्तक से

पृथ्वी की सतह का तीन-चौथाई भाग जल से ढँका हुआ है।जल का क्वथनांक (और अन्य सभी तरल पदार्थ का भी) सीधे बैरोमीटर का दबाव से संबंधित होता है। उदाहरण के लिए, एवरेस्ट पर्वत के शीर्ष पर, जल 68 °C पर उबल जाता है जबकि समुद्रतल पर यह 100 °C होता है। इसके विपरीत गहरे समुद्र में भू-उष्मीय छिद्रों के निकट जल का तापमान सैकड़ों डिग्री तक पहुँच सकता है और इसके बावजूद यह द्रवावस्था में रहता है।जल का उच्च पृष्ठ तनाव, जल के अणुओं के बीच कमजोर अंतःक्रियाओं के कारण होता है,क्योंकि यह एक ध्रुवीय अणु है। पृष्ठ तनाव द्वारा उत्पन्न यह आभासी प्रत्यास्था (लोच), केशिका तरंगों को चलाती है।

जल वितरण का प्रतिशत
महासागर 97.3
बर्फ छत्रक 02.0
भूमिगत जल 00.68
झीलों का अलवण जल 0.009
स्थलीय समुद्र एवं नमकीन झीलें 0.009
वायुमंडल 0.0019
नदियाँ 0.0001
100.00

लवणता 1000 ग्राम जल में मौजूद नमक की मात्रा होती है।महासागर की औसत लवणता 35 भाग प्रति हजार ग्राम है। इजरायल के मृत सागर में 340 ग्राम प्रति लीटर लवणता होती है।तैराक इसमें प्लव कर सकते हैे,क्योंकि नमक की अधिकता इसे सघन बना देती है। 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है,जब जल संरक्षण की विभिन्न विधियों को प्रबलित किया जाता है। समुद्री सतह पर पवनों के बहने से तरंगे उत्पन्न होती हैं।जितनी ही तेज पवन बहती है,तरंगें भी उतनी ही बड़ी होती जाती हैं। सुनामी जापानी भाषा का एक शब्द है।जिसका अर्थ है-"पोताश्रय तरंगें"क्यों कि सुनामी आने पर पोताश्रय नष्ट हो जाते हैं। भकंप,ज्वालामुखी उद्गार,या जल के नीचे भूस्खलन के कारण महासागरीय जल क अत्यधिक विस्थापन से १५ मीटर तक की ऊँचाई वाली विशाल ज्वारीय तरंगें उठ सकती हैं,जिसे सुनामी कहते हैं।अब तक का सबसे विशाल सुनामी 150 मीटर मापा गया था।ये तरंगें 700 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति से चलती हैं।

2004 के सुनामी की कहानी
26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में सुनामी तरंगों से भारत के तटीय क्षेत्रों में अत्यधिक विनाश हुआ।सुनामी के पश्चात अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का इंदिरा प्वाइंट डूब गया था।ये तरंगें उस भूकंप का परिणाम थीं,जिसका अधिकेन्द्र सुमात्रा की पश्चिचमी सीमा पर था,जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 9.0 मापी गई थी। भारतीय प्लेट के बर्मा प्लेट के नीचे धँसने और समुद्रतल में अकस्मात गति उत्पन्न होने के कारण यह भूकंप आया।महासागरीय तल लगभग 10-20 मीटर तक विस्थापित होकर नीचे की दिशा में झुक गया।इस विस्थापन से निर्मित अंतराल को भरने के लिए विशाल मात्रा में महासागरीय जल उसी ओर बहने लगा।इसके कारण दक्षिणी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया के समुद्री तटों से जल हटने लगा। भारतीय प्लेट के बर्मा की प्लेट के नीचे चले जाने पर जल वापस समुद्र तट की ओर लौटा।यह सुनामी लगभग 800 किमी/घंटे की गति से आया।जिसकी तुलना व्यावसायिक वायुयानों की गति से की जा सकती है और इसके परिणामस्वरूप हिंद महासागर के कुछ द्वीप पूर्णत:डूब गए।

तरंगों के सुमात्रा में भूकंप के अधिकेंद्र से अंडमान द्वीप समूह एवं श्रीलंका की ओर बढ़ने से तरंगों की लंबाई कम होती गई जल की गहराई के कम होने के साथ-साथ इनकी गति भी 700-900 किमी/घंटे से 70 किमी/घंटे तक कम हो गई। समुद्र तट से सुनामी तरंगें 3 किमी/घंटे तक की गहराई तक गईं,जिनके फलस्वरूप 10,000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु हो गई तथा 1 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। भारत में आंध्र प्रदेश के तटीय प्रदेश,तमिलनाडु,केरल,पुदुच्चेरी तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सर्वाधिक प्रभावित हुए।


यद्दपि पहले से भूकंप का अनुमान लगाना संभव नहीं है,फिर भी बड़ी सुनामी के संकेत तीन घंटे पहले मिल सकते है।प्रशांत महासागर प्राथमिक चेतावनी की ऐसी प्रणालियाँ क्रियाशील है,लेकिन हिंद महासागर में ये सुविधाएँ नहीं है।प्रशांत महासागर की तुलना में हिंद महासागर में सुनामी कभी-कभी ही आती हैं,क्योंकि यहाँ भूकंपी क्रिया बहुत कम होती है। हिंद महासागर में निरीक्षण ,आरंभिक चेतावनी की प्रणालियों एवं हिंद महासागर के तटीय निवासियों में जागरूकता की कमी के कारण जीवन एवं संपत्ति की अत्यधिक क्षति हुई। सुनामी आने का प्रथम संकेत तटीय क्षेत्र से जल में तेजी से कमी आना और फिर विनाशकारी तरंगों का उठना है। ऐसा होने पर लोग ऊचे स्थानों पर जाने के बजाए उस अचंभे को देखने के लिए तट पर एकत्र होने लगे,जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग कालकलवित हो गए।

ज्वार-भाटा[सम्पादन]

जल का सर्वाधिक ऊँचाई तक उठकर तट के बड़े हिस्से को डुबोना ज्वार तथा जल का निम्नतम स्तर तक आकर एवं तट से पीछे चला जाना भाटा कहलाता है।सूर्य एवं चंद्रमा के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल के कारण पृथ्वी ज्वार-भाटा आते हैं।जब पृथ्वी का जल चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से अभिकर्षित होता हैं तो उच्च ज्वार आते हैं।पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिनों मे सूर्य,चंद्रमा एवं पृथ्वी तीनों एक सीध में होते हैं,और इस समय सबसे ऊँचे ज्वार उठते हैं इसे बृहत् ज्वार कहते हैं। लेकिन जब चाँद अपने प्रथम एवं अंतिम चतुर्थांश में होता है,तो चाँद एवं सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल विपरीत दिशाओं से महासागरीय जल पर पड़ता है,परिणामस्वरूप ,निम्न ज्वार-भाटा आता इसे लघु ज्वार-भाटा भी कहते हैं।

उच्च ज्वार जल-स्तर को तट की ऊँचाई तक पहुँचाकर जहाज को बंदरगाह तक पहुँचाने में सहायता कर नौसंचालन में सहायक होता है। उच्च ज्वार मछली पकड़ने में भी मदद करते हैं।इस दौारन अनेक मछलियाँ तट के निकट आ जाती हैं। ज्वार-भाटे के दौरान होन वाले जल के उतार-चढाव का उपयोग विधुत उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।