हिंदी:भाषा और साहित्य (हिंदी 'क')/हिमाद्रि तुंग शृङ्ग से

विकिपुस्तक से

"हिमाद्रि तुंग शृङ्ग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतन्त्रता पुकारती-
अमर्त्य वीरपुत्र हो दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पन्थ है-बढ़े चलो-बढ़े चलो!
असंख्य कीर्त्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य-दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य-सिंधु में-सुबाड़वाग्नि से जलो!
प्रवीर हो जयी बनो-बढ़े चलो, बढ़े चलो!"

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संदर्भ[सम्पादन]

  1. सं. श्री रत्नशङ्कर प्रसाद-प्रसाद वाङ्मय, द्वितीय खण्ड, प्रसाद प्रकाशन, वाराणसी, पृष्ठ ६३४ [१]