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हिंदी आलोचना/संदर्भ की खोज

विकिपुस्तक से

संदर्भ की खोज नामक लेख में नेमिचंद जैन ने आधुनिक हिंदी उपन्यास की महत्ता को उजागर किया है, कि उसमें स्वाधीनता के बाद क्या-क्या बदलाव सामने आए,और इसका हिंदी साहित्य व भारतीय समाज पर क्या-क्या प्रभाव पड़ा। इन तथ्यों के बारे में उनके विचार हम निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते है:-

उपन्यास हिन्दी की अन्य सभी विधाओं में लोकप्रिय है। इनका कारण परिस्थतियों के साथ साथ इसका स्वयं का आकर्षण भी है । इसमें जीवन के भाव सत्य की समग्रता सभी स्तरो व आयामों में होती है। यह हमारी परिवेश की उथल-पुथल व जीवन के अनेक पक्षों व आयामो से अवगत कराते है।

→ उपन्यास आज के संवेदनशील व्याक्ति के लिए न केवल आत्म-अभिव्यक्ति अपितु बहुत कुछ आत्म अन्वेषण (स्वयं की खोज) और आत्मोप्लब्धि (स्वयं की प्राप्ति) का साधन है।

→ स्वाधीनता के बाद हिन्दी में अपेक्षाकृत उपन्यास लिखे गए किंतु इसमें हिन्दी साहित्यकार एक प्रकार के अंतर्विरोध से ग्रस्त रहा, क्योंकि स्वाधीन भारत की उन्होंने जो परिकल्पना की थी, वह उन्हें टूटती प्रतीत हुई। एक और उन्हें मुक्ति का अनुभव हो रहा था तो दूसरी और उनका मोह भंग हो रहा था। किंतु इसकी छाप कविता और कहानी में उपन्यास से अधिक देखने को मिली।

→ स्वाधीनता के बाद रचित उपन्यास में पूर्व के यूगो की तुलना में विविध स्तरों व आयामों की झांकी मिलती है।यह मनुष्य के कई जाने अनजाने रूपों, परिवेशों, मानवीय संबंधों और परिस्थितियों का चित्रण करता है।

→ आज की उपन्यासों में केवल दूसरों के मन को छूने वाले भावुक आदर्शवादिता नहीं है, अपितु यह यथार्थवाद का भी सम्यक रूप से समर्थन कर रहा है चाहे वो आंतरिक हो या बाह्य।

→ आधुनिक हिंदी उपन्यास में जीवन का विस्तार अधिक है। इनमें जीवन के विभिन्न स्तर व आयाम दृष्टव्य है। इनमें ब्यौरे की अधिकता है, सामान्य जीवन के अनेक उतार चढ़ाव है। इनमें पुरातन रीति रिवाजों, अंधविश्वासों को भी दिखाया जाता है, और इसके साथ नवीन मान्यताओं की टकराहटों को भी दिखाया जाता है।

→ आधुनिक हिन्दी उपन्यासों में आंचलिक उपन्यास लेखन की बढ़ोत्तरी हुई, क्योंकि स्वाधीनता के बाद मध्यवर्गीय छात्र स्वदेश की ओर उन्मुख हुए, और इनकी जीवन-शैली से अवगत हुए। जिससे ग्रामीण क्षेत्रों आंचलिकता हमारे समक्ष उपन्यासों के माध्यम से आने लगी। इनकी जीवनशैली प्रमुखतः किसान की स्थितियो का वर्णन था, क्योंकि देहाती जीवन में कृषि ही जीवनोपार्जन के लिए अपेक्षाकृत अधिक दृष्टव्य थी।

समय-समय के साथ उपन्यासकार जातियों की ओर भी बढ़े और उनके रीति-रिवाजों, आचार-व्यवहारों,जीवन पद्ध‌ति ,आर्थिक स्थिति को कथाबद्ध करने लगे। इससे उपन्यासों की उपन्यास जगत में यथार्थ के साथ-साथ रोमांटिक उपन्यास लिखने की भी धूम मची।

  1. आधुनिक उपन्यासों में एक नया स्वर नारी के नए रूपों व स्त्री पुरुष के संबंधों के नए आयाम भी है। इनमें नारी को देवी और सती के दृष्टिकोण से निकालकर उसे मनुष्य की तरह देखने व समझने का प्रयास शुरू हुआ। जिसका सकारात्मक प्रभाव भी पड़ा। और रही स्त्री पुरुष संबंद्ध की बात तो वो केवल प्रेम संबंद्ध से ऊपर उठकर, उन्मुक्तता व स्वतंत्रता की और बढ़ी, जिसमे सहजता है।

→इस उपन्यास की सार्थक विशेषता है- साधारण मानव की महत्ता को विशिष्टता देना। यह मानव के बाहरी- सामाजिक द्वंद व आंतरिक मन के द्वंद दोनों में सामंजस्य कर प्रस्तुत करता है। दोनो को समान नजरो से देखता है।

   अंततः आज के उपन्यासों में मानव जीवन को अवसाद और इतना करुणामय दिखाया है, जिसके कारण व्यक्ति जीवन के संघर्ष पूर्व अवगत हो जाता है और उससे आतंकित नहीं होता. अपितु उसका, साध्य के साथ सामना करने तत्पर रहता है।